चालाक ब्राह्मण : हिमाचल प्रदेश की लोक-कथा
Chalaak Brahmin : Lok-Katha (Himachal Pradesh)
पहले के जमाने की बात है। बहुत से ग्वालु नाले के किनारे पशु चराने गए थे। नाले के पानी में ग्वालुओं ने मिलजुल कर वह हिरण की तरह का प्राणी बाहर निकाला और कांटे-झाड़ियां इकट्ठी कर आग का अलाव जलाया। फिर उसे आग में भून कर उसे खा लिया। उसी वक्त अचानक एक वृद्ध व्यक्ति ने उस प्राणी के कान और खुर देख कर कहा कि यह हिरण नहीं गधा था।
देखते ही देखते गांव में बहुत शोर पड़ गया। पाप हो गया रे पाप हो गया। सभी ग्वालुओं के माता-पिता डर गए। फिर उन्होंने विचार-विमर्श किया और अपने पुरोहित (ब्राम्हण) के पास गए। ब्राम्हण ने उन्हें शीघ्र बता दिया कि यह तो बहुत अनर्थ हो गया। महापाप हो गया है। इस पाप से मोक्ष तो दान-पुण्य करने तथा धन सम्पति के दान से ही होगा। नहीं तो देव देविया नाराज हो जाएंगी। देव-देवियों के रोष से गांव में सबको संकट आ जाएगा। सभी ग्रामवासी डर गए। अब सैंकड़ों-हजारों रूपए खर्च कहां से लाएंगे। उस समय ही गांव के एक सयाने व्यक्ति ने कहा- “पण्डित जी महाराज, आपका बेटा भी मांस खाने वाले उन ग्वालुओं में शामिल था। पण्डित जी आपके बेटे ने भी गधा खाया है।
हैं! ……….अच्छा। तब तो भई अब ज्योतिष की किताब देखना पडेगी।
ब्राह्मण ने पुस्तक खोल कर पन्ने इधर-उधर बदले। उंगलियों पर भी गणना की। फिर बहुत ही मधुर स्वर में उच्चारण किया
नाल तो सुन्दर पानी का स्रोता। वहां बहता-बहता आया खोता। वह सात पानियों ने धोया। उसका कोई पाप नहीं होता।
गधा तो सात पानी से धोया गया है। वह पवित्र था। गांव वाले अब पाप मुक्त थे। अब उन्हें कोई दान-पुण्य नहीं करना था।
(साभार : कृष्ण चंद्र महादेविया)