चार टका : चार ज्ञान : लोक-कथा (बंगाल)

Chaar Taka : Chaar Gyan : Lok-Katha (Bangla/Bengal)

एक गाँव में एक ब्राह्मण सपरिवार रहता था। उसका भानजा उसके साथ रहता था। भानजा एकदम मूर्ख था। कोई काम-धाम नहीं करता। घर में रहकर मामा-मामी की रोटियाँ तोड़ता रहता था। मामा-मामी उससे अत्यंत परेशान रहते थे। वे उसे कुछ कमाने-धमाने को कहते, पर उस मूर्ख को कोई काम न आता था, न ही कोई उसे कुछ काम देता था।

मामा-मामी ने यह सोचकर उसका विवाह कर दिया कि शायद पत्नी के घर आने से उसका भाग्य खुल जाए! उन्होंने उनके रहने की भी अलग व्यवस्था कर दी।

उसकी पत्नी अपने साथ कुछ दहेज लेकर आई थी। उसी से उसकी गृहस्थी की गाड़ी चल रही थी। परंतु जैसे बूंद-बूंद से घड़ा भरता है, वैसे ही बूंद-बूंद टपकने से घड़ा खाली भी हो जाता है। कुछ ही दिनों में उसके घर का सारा सामान खत्म हो गया। पत्नी समझ गई थी कि उसका पति मूर्ख है, इसे कोई भी काम नहीं देगा। इसीलिए एक दिन उसने अपने पति से कहा कि वह कहीं से भी कुछ ज्ञान सीखकर आए। राह खर्च के लिए उसने उसे कुछ रुपए दिए।

पत्नी की बात मानकर वह ज्ञानी को ढूँढ़ने निकला। अनेक दिन भटकने के उपरांत उसे एक ज्ञानी मिला। ज्ञानी को प्रणाम कर उसने कहा, "ज्ञानीजी, मुझे कुछ ज्ञान दीजिए। मैं अत्यंत कष्ट में हूँ।"

ज्ञानी बोले, "बिना ज्ञान के तो मनुष्य को कष्ट होगा ही। मैं तुम्हें ज्ञान जरूर दूंगा, पर मैं मुफ्त में किसी को भी ज्ञान नहीं देता।"

मूर्ख ने पूछा, “आप ज्ञान देने का क्या लेंगे?"

ज्ञानी बोला, “एक ज्ञान का एक टका।"

मूर्ख के पास चार टके बचे थे। वे उसने ज्ञानी को दे दिए। टके लेकर ज्ञानी ने पहले ध्यान किया, फिर बोले, “अच्छी तरह याद कर लो। पहला ज्ञान यह कि जिस बात को पाँच आदमी कहें, उसे सत्य मान लेना चाहिए। दूसरा ज्ञान यह कि धन मिलने पर किसी को भी उसके बारे में नहीं बताना चाहिए। तीसरा ज्ञान यह कि पत्नी को कभी सच बात नहीं बतानी चाहिए और चौथा ज्ञान यह कि अपने स्वामी या राजा को सच बात ही बतानी चाहिए।"

ज्ञान की चारों बातों को अच्छी तरह याद कर वह मूर्ख ब्राह्मण अपने घर को लौटा। रास्ते में एक गाँव में उसने देखा कि एक जगह भीड़ जुटी हुई है। उसे पता चला कि कोई भिखारी मर गया है, पर कोई उसे वहाँ से उठाने को तैयार नहीं था। तभी मूर्ख ब्राह्मण वहाँ पहुँचा। सभी ने उसे घेर लिया और कहा, वह उस लाश को उठाकर कहीं फेंक आए। पहले तो उसने सोचा कि ब्राह्मण होकर वह ऐसा काम क्यों करेगा? फिर उसे ज्ञानी द्वारा दिए गए पहले ज्ञान की याद आई कि पाँच आदमी जो कहें, उसे मान लेना चाहिए। यहाँ तो पाँच से भी अधिक आदमी हैं। उसने लाश उठाई और गाँव से बाहर एक वीरान जगह में उठाकर फेंकने लगा। तभी उसने देखा कि भिखारी के फटे-पुराने चोगे से अनेक रुपए गिर रहे हैं। उसने सारे रुपयों को इकट्ठा किया और अपनी जेब में रखकर चुपचाप अपने घर आ गया।

घर पहुँचने पर जब पत्नी ने उससे पूछा कि ज्ञान सीखकर आए, तो उसने 'हाँ' कहा, पर रुपया पाने की बात उससे छिपा ली। अब उसके पास अनेक रुपए थे। उसके दिन सूखपूर्वक बीतने लगे। उसका रहन-सहन बदल गया। उन लोगों ने एक अच्छा मकान भी बनवा लिया। उनके ठाठ-बाट देख पड़ोसियों को जलन होने लगी। एक दिन एक पड़ोसन मूर्ख ब्राह्मण के घर आई और उसकी पत्नी से पूछा, "दीदी, आपका पति क्या करता है, जो आप लोग इतने ठाठ-बाट से रहते हैं?"

वह बोली, “मैंने तो कभी पूछा नहीं।"

पड़ोसन बोली, “पूछना चाहिए। जो पति पत्नी से अपनी आमदनी छुपाता है, निश्चित रूप से वह गलत तरीके से धन कमाता है। यदि वह आपसे सचमुच प्रेम करता है, तो उसे आप से कोई भी बात नहीं छुपानी चाहिए।"

वह बोली, "ठीक है, मैं आज ही रात उनसे पूछूँगी।"

रात में मूर्ख ब्राह्मण की पत्नी ने उसकी आमदनी का रहस्य जानना चाहा, तो उसे तीसरे ज्ञान की बात याद आई कि पत्नी को कभी सच नहीं बताना चाहिए। उसने पत्नी को झूठ कह दिया कि उसने हाट से एक छंटाक हरड़ एवं बहेड़ा खरीदा और उसे चूर्णकर पानी के साथ पी गया, जिससे उसे अपार धन की प्राप्ति हुई।"

उसकी पत्नी ने दूसरे ही दिन अपनी पड़ोसन को सारी बातें बता दीं। उसने अपने पति को यह बात बताई। उसका पति तुरंत हरड़ और बहेड़ा बाजार से ले आया और उसे पीसकर पानी के साथ पी गया। थोड़ी ही देर में वह पेट दर्द से तड़पने लगा। उसे दस्त आने लगे। अंत में वह मर गया।

पड़ोसन ने राजा के पास जाकर उनकी शिकायत की। राजा ने मूर्ख ब्राह्मण को बुलाया और सारा माजरा पूछा। उसे ज्ञानी की चौथी बात याद आई कि अपने स्वामी या राजा को झूठ नहीं बोलना चाहिए। उसने राजा को सारी बातें बता दी। राजा उसके सच बोलने से बहुत खुश हुआ और उसे ढेर सारा धन देकर विदा किया।

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