चार मित्र : तमिल लोक-कथा
Chaar Mitra : Lok-Katha (Tamil)
बहुत समय पहले एक गाँव में चार मित्र रहते थे। उनमें से एक शिल्पी था, एक मित्र कपड़ों का व्यापारी था, एक सोनार और एक वेद-शास्त्र का ज्ञाता पंडित था। चारों में घनी मित्रता रही। एक दिन गाँव में अकाल की स्थिति आ गई। लोग भूखे मरने लगे। त्राहि-त्राहि मच गई।
चारों मित्रों ने तय किया, अब इस गाँव को छोड़कर दूसरे गाँव जाना पड़ेगा। जाने का कोई सासधन नहीं था, अत: चारों मित्र पैदल चल पड़े। चलते-चलते एक घने जंगल में पहुँच गए। दिन ढलने लगा। इस अँधेरे में वन को पार करना ठीक न था। अत: चारों ने निश्चित किया कि वे पेड़ के नीचे रात को सो जाएँगे और अगले दिन फिर यात्रा शुरू कर देंगे। वन में एक साथ सब का सो जाना खतरा हो सकता है, ऐसा सोचकर तय हुआ कि बारी-बारी से एक रखवाली का काम करेगा।
सबसे पहले शिल्पी ने रखवाली का बीड़ा उठाया, तीनों मित्र लेट गए और शिल्पी ने सोचा, जगना तो है, क्यों न इस काठ के टुकड़े से कुछ बनाया जाए। ऐसा सोचकर उस शिल्पी ने एक सुंदर सी गुड़िया बनाई। काम खत्म करते ही उसने कपड़े के व्यापारी को जगाया और खुद सो गया। कपड़े के व्यापारी ने सुंदर गुड़िया देखकर आश्चर्य प्रकट किया। उसने सोचा, 'इतनी सुंदर गुड़ियाँ को कपड़े से सजा दिया जाए तो कितनी सुंदर दिखेगी।'
ऐसा सोचकर व्यापारी ने गुड़िया को साड़ी पहनाकर सुंदर बनाया और सोनार को जगाकर खुद सो गया। सोनार इतना सुंदर शिल्प देखकर दंग रह गया, उसने सोचा-यदि इस गुड़िया को गहने से सजा दिया जाए तो कैसा लगेगा?
ऐसा सोच सोने की चूड़ियाँ, नथनी, माला आदि पहनाकर सौंदर्य का आनंद लेने लगा। फिर इसे दुलहन का रूप क्यों न दिया जाए। ऐसा सोच माँग में सिंदूर भी भर दिया। अब उसका सोने का समय आ गया। वह देव-शास्त्र के ज्ञाता पंडित को जगा कर खुद सो गया।
पंडित ने अपने सामने एक खूबसूरत दुलहन स्वरूप गुड़िया को देखकर आश्चर्य प्रकट किया। यदि इस प्यारी सी दुलहन में प्राण भर दिया जाए तो कैसा रहेगा।' ऐसा सोच ब्राह्मण पंडित वहीं आँख बंद करके बैठ गया और मंत्र जाप करने लगा। वेद-शास्त्रों के ज्ञात पं. ने उसमें जान डाल दी। सामने एक सुंदर नारी को देखा। आवाज सुनकर सब लोग उठ बैठे।
अब चारों मित्र उस खूबसूरत नारी को देखकर उसे अपना बनाना चाहते थे। इस पर झगड़ने लगे। खींचातानी को देखकर वह सुंदर नारी चिल्लाकर कहती है-
'बंद करो! इस प्रकार क्यों लड़ रहे हो?' थोड़ा रुककर फिर वह बोली, 'सब आँखें बंद कर लें। सामने देवी प्रकट होगी, वह न्यायसंगत इस समस्या को सुलझा देगी। बंद कर लीजिए अपनी आँख।'
और चारों मित्रों ने अपनी आँखें बंद कर लीं। तब उसने देखा, एक देवी सबके सामने खड़ी है। देवी ने उन चारों की समस्या को जाना।
"देखो शिल्पी, तुमने इस गुड़िया का निर्माण किया, अर्थात् जन्म देने वाला पिता समान होता है। है न?'
'हाँ!' शिल्पी ने हामी भरी।'
'तब इसके साथ तुम शादी कैसे कर सकते हो?' देवी ने पूछा।
'और कपड़े का व्यापारी, तुमने इसके तन को ढककर इसकी लाज को बचाया है। इसका मतलब तुम इसके भाई बन गए हो। है न?' देवी ने उससे कहा।
बीच में पं. वेद शास्त्र के ज्ञाता टपक पड़े और गर्व से कहने लगे। 'हाँ देवी, मैंने ही इसको जीवन दान दिया है। जीवित करके।' बड़े गर्व के साथ उसने कहा।
देवी ने कहा, 'तब तुम इसके गुरु समान हो। तुम कैसे इससे शादी कर सकते हो?'
पंडित ने भी हामी के साथ सिर हिला दिया।
अब अंत में सोनार को देखकर देवी बोली, 'तुमने इस सुंदर स्त्री को आभूषण से न केवल सजाया अपितु उसकी माँग में सिंदूर भरकर उसे वर भी लिया है। इसलिए इससे शादी करने का तुम्हारा ही अधिकार है।' ऐसा कहकर देवी अंतर्धान हो गई।
अब चारों मित्र मिलकर सोनार के साथ उस सुंदर नारी का विवाह कर देते हैं और फिर से अपनी मित्रता को आजीवन निभाते हैं।
(साभार : डॉ. ए. भवानी)