चाँदनी की बाँहें : एडिसन मार्शल
(एडिसन मार्शल अमरीकी लेखक हैं, उन्होंने एशियायी पूर्व देशों की यात्राएँ की हैं और उन देशों के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन का अध्ययन किया है। प्रस्तुत कहानी उनके ‘लव स्टोरीज ऑफ़ इण्डिया’ कथा संग्रह से ली गयी है।)
जेम्स कार्पेण्टर मुझे जहाज पर मिला था। जहाज न्यूयॉर्क से जेनेवा जा रहा था। उस रात जहाज पर फैंसी ड्रेस का कार्यक्रम था। जेम्स रोमन संसद सदस्य के रूप में शो में आया था। उसने अपने बिस्तर की सफेद चादर लपेट ली थी, पर उसका शरीर कुछ ऐसा था कि वह बिलकुल रोमन संसद का सदस्य लग रहा था। उसे ही पहला पुरस्कार मिला।
जब जहाज जेनेवा पहुँचा, मैं कुछ जरूरी कामों में लग गया। जेम्स से मेरी ज्यादा बातें नहीं हुईं। पर इतना पता चला कि वह हिन्दुस्तान जा रहा है। कॉलेज की डिग्री उसके पास है और वह कलकत्ता में लाइफ इन्श्योरेंस का काम करेगा। उसकी अमरीकन कम्पनी ने राह खर्च दिया है। कलकत्ता के बारे में मैं खूब जानता था। वायसराय महोदय के जश्नों का मुझे अन्दाज था। पर मुझे डर लग रहा था कि जेम्स जैसा सीधा-सच्चा नौजवान, जिसकी आँखों में चतुराई की चमक तक नहीं आयी है-वहाँ कैसे सफल हो सकेगा! वह अनुभवी भी नहीं था। न कोई लड़की पीछे छोड़कर आया था। न किसी लड़की को वचन देकर आया था। क्योंकि अमरीकन लड़कियाँ उसे अपने बौद्धिक स्तर तक आती नहीं मिली थीं। उसे पढ़ाई-लिखाई के कारण इतना वक्त ही नहीं मिला था कि वह लड़कियों की तरफ ध्यान देता।
तो, दूसरी सुबह जेम्स अपना सारा सामान लेकर इटैलियन जहाज पर चला गया जो बम्बई जा रहा था। उसकी कम्पनी ने फर्स्ट-क्लास का टिकट दिया था ताकि वह रास्ते में ही अच्छे और प्रख्यात लोगों से सम्बन्ध बनाता हुआ जाए।
उस इटैलियन जहाज पर बहुत से हिन्दुस्तानी भी थे जो योरप में गर्मियाँ बिताकर वापस जा रहे थे। उनमें से एक महाराजा भी थे। रात के खाने पर सब जमा होते थे... उनमें से एक विदेशी सिनेमा स्टार था, बंगाल लांसर्स के एक कप्तान थे। एक वाणिज्य दूत थे और तमाम ऐसे थे जिन्हें अँग्रेजों ने पद औैर पदवियाँ दी हुई थीं।
जेम्स ने महाराजा बाकरतन को देखा तो सहसा उसे विश्वास नहीं हुआ कि हिन्दुस्तानी महाराजा ऐसे भी हो सकते हैं। वे ट्वीड का सूट पहने हुए थे... न हीरों से लदे थे न सोने से मढ़े थे। जेम्स ने सोचा, नाम के लिए यह महाराजा होंगे... बाकी सब कुछ तो अँग्रेजों के मातहत होगा। ताज्जुब उसे सिर्फ महाराजा के रंग को देखकर हुआ। वे अँग्रेजों से भी गोरे ही थे और उसने सोचा शायद यह महाराजा किसी अँग्रेज के वीर्य की देन होंगे क्योंकि वह सोच ही नहीं सकता था कि कोई हिन्दुस्तानी इतना गोरा हो सकता है।
महाराजा के साथ उनके कुछ मन्त्री, सेवक, सेक्रेटरी थे। उनकी रानी, एक लड़का और एक लड़की भी थी। लड़की फ्रांस में पढ़ती थी। वह अपनी आया के साथ डेक पर बैठती थी। जेम्स ने पहली बार राजकुमारी को देखा तो चकित रह गया था। वह विश्वास नहीं कर पाया कि हिन्दुस्तान में इतनी सुन्दर लड़की भी हो सकती है। जेम्स की अजानकारी पर मुझे आश्चर्य भी हुआ। उसे नहीं मालूम कि हिन्दुस्तानी लड़कियों की आँखें हम जैसे ज्यादा उम्र के लोगों को भी डाँवाडोल कर देती हैं। वे फरिश्तों की आँखों से भी ज्यादा चमकदार होती हैं... अगर जेम्स यह खूबसूरती न देख पाता तो मुझे आश्चर्य होता। हिन्दुस्तानी राजकुमारियों की बाँहें और हाथ इतने कोमल और रेशमी होते हैं कि उनकी तुलना असम्भव है। चाँदनी की बाँहें... बस यही कहा जा सकता है।
राजकुमारी को देखकर जेम्म अपने को रोक नहीं पाया। उसने डेक के तीन-चार चक्कर लगाये कि बात कर सके... पर हिन्दुस्तानी लड़कियों को खुद अपना परिचय देना शायद शालीनता नहीं समझी जाती। जेम्स ने यह ठीक ही सोचा था।
डिनर पर उसे वह सोलह वर्षीय, दुबली-पतली पर अनिन्द्य सुन्दरी, चाँदी की बाँहोंवाली राजकुमारी फिर दिखाई दी। पर कुछ ही देर बाद वह अदृश्य हो गयी। सिर्फ एक बार जेम्स की नजर उससे मिली थी और वह हक्का-बक्का रह गया था। किसी अमरीकन लड़की के देखने पर कभी ऐसा ज्वार नहीं उठा था।
जेम्स फौरन यात्रियों की लिस्ट देखने गया। पता चला कि राजकुमारी का नाम लीरा किरनपाला है।
डिनर और डांस समाप्त हो चुके थे पर जेम्स को नींद नहीं आ रही थी। वह ऊपरवाले डेक पर गया... जहाँ महाराजा के केबिन थे। एक केबिन से रोशनी आ रही थी पर उसमें दिखाई कुछ नहीं दे रहा था। वह साँस रोके खड़ा रहा कि वह रोशनी भी बुझ गयी। हताश होकर वह लौट ही रहा था कि किन्नर कन्या के रूप में एक आकार उसे चाँदनी में नहाया, आता हुआ दिखाई दिया... उसकी साँस रुकी की रुकी रह गयी, जब उसने देखा कि वह राजकुमारी ही थी। इससे पहले कि जेम्स प्रकृतिस्थ हो और यथार्थ को देख सके, राजकुमारी खुद ही बोली, माफ करना, मैं और पहले नहीं आ सकी... तुमने मेरा इन्तजार किया, यही बहुत है!
“मैं विश्वास नहीं कर पा रहा हूँ...” जेम्स जैसे-तैसे बोला।
“तुम्हारा नाम क्या है?” राजकुमारी ने पूछा।
“जेम्स कार्पेण्टर...” जेम्स बोला - “तुम मुझे जिम कह सकती हो।”
“जीम साहब”, कहकर वह मुस्करायी, “मेरा नाम जानना चाहोगे?”
“लीरा! यही न... मुझे मालूम है,” जेम्स ने कहा।
वक्त बहुत कम था। जल्दी-जल्दी दोनों ने बातें कीं। जेम्स ने सबकुछ अपने बारे में बताया और चलते-चलते राजकुमारी लीरा ने कहा, “तुम कृष्ण की तरह लगते हो...”
जेम्स ने कृष्ण का नाम सुना था... पर वह ज्यादा नहीं समझ पाया। वह सोच ही रहा था कि लीरा ने कहा, “तुम अब मुझसे मिलने, मुझे देखने या पहचानने की कोशिश मत करना, समझे... यदि तुमने कुछ भी जाहिर किया तो अनर्थ हो सकता है!”
“कैसा अनर्थ लीरा...”
“तुम नहीं समझ पाओगे... तुम साहबों के दिल पत्थर के होते हैं और तुम लोग जीते-जागते लोगों की बलि चढ़ा देने से नहीं हिचकते,” लीरा ने कहा।
“बलि! क्या कह रही हो लीरा, मैं ईसाई हूँ... बलि से हमारा क्या लेना-देना?” जेम्स ने हकलाते हुए कहा।
वह मुस्करा दी। जेम्स को लगा कि चाहे उसकी बात सही न हो, या वह उसके अर्थ न समझ पाया हो, पर कोई आसन्न संकट है जरूर। फिर भी उसने कहा, “मिलने की कोशिश करना...”
लीरा चली गयी।
दूसरे दिन वह मिली तो इतना ही कह पायी, “जीम साहब, अँग्रेजी कानून बहुत ओछा है। हिन्दुस्तान पहुँचकर तुम्हें मालूम होगा कि एक हिन्दुस्तानी लड़की को प्यार करने का हश्र क्या होता है।” और वह चली गयी, “अच्छा अलविदा!”
“पर मैं कल भी इन्तजार करूँगा! यह अलविदा नहीं है,” जेम्स ने कहा और अकेला खड़ा रह गया।
फिर लीरा नहीं आयी।
जब जहाज पोर्ट सईद पहुँचा तो लीरा दिखाई दी। जेम्स के केबिन का यात्री पोर्ट सईद में उतर गया था। रात को लीरा मिली तो बहुत दुखी थी। जेम्स ने उसे बताया कि वह उसके बिना नहीं रह सकता। अगर लीरा इजाजत दे तो वह महाराजा से बात करेगा कि वह लीरा से शादी करना चाहता है।
“हिश्,” लीरा ने उसके होठों पर उँगली रख दी। फिर बोली, “वक्त बहुत कम है जीम साहब... सिर्फ सात दिन! हम हिन्दुस्तान के तट पर पहुँच जाएँगे... और फिर हम कभी नहीं मिल पाएँगे।”
जेम्स उसे देखता रह गया। लीरा की गर्म साँसें उसने महसूस कीं और जैसे स्वप्न में सबकुछ हुआ हो, वह लीरा को अपने खाली केबिन में ले आया। शेष रातों को भी वे केबिन में मिलते और प्यार करते रहे। आखिरी रात लीरा की आँखों में आँसू थे। जेम्स की बाँहों में वह उद्विग्न थी। उन्होंने चुपचाप ही अलविदा कह ली थी और स्वीकार भी कर ली थी। पर लीरा यह भी जान रही थी कि उसका जीम साहब शायद उसके बरजने को मान न पाए और हिन्दुस्तान पहुँचने पर मिलने की कोशिश करे... इसलिए, उसने सोचा, अब सब कुछ बता ही देना श्रेयस्कर होगा। वह उसकी बाँहों से निकलकर बैठ गयी और बहुत उदास स्वर में बोली, “जीम साहब! अब तुम्हें बता ही दूँ... मेरा पति चुना जा चुका है। वह है हमारे राज्य के पासवाले राज्य शन्दौर का राजा! उम्र पचास साल। दो रानियों को छोड़ चुका है, क्योंकि वे उसे बच्चा नहीं दे सकीं। अब बच्चा देने के लिए उस राज्य को मेरी जरूरत है...”
“ओह लीरा, क्या कह रही हो...,” जेम्स माथा पकड़कर बैठ गया।
लीरा ने उसका सिर अपने कन्धे से सटा लिया - “दुखी मत होओ जीम साहब। यह कोई बहुत बड़ा दुर्भाग्य नहीं है... हमने जो तीन-चार रातें साथ गुजारी हैं - वे पूरे जीवन को रौशन रखने के लिए काफी हैं... मेरा होनेवाला पति, सुना है, बहुत उदार है। पश्चिम में पढ़ा है...”
“तो क्या हम सचमुच अब कभी नहीं मिल पाएँगे?” जेम्स अपने दुख में डूबा था।
“अब इस जन्म में कभी नहीं जीम साहब! मेरा सुहाग का जोड़ा तैयार है... सुहाग का...,” कहते हुए वह किंचित हिकारत से हँसी, फिर बोली, बस यही अन्त है हमारे मिलन का। और फिर जीम साहब... एक दिन तुम अपनी मेमसाहब के साथ रहते हुए मुझे भी भूल जाओगे...”
“भूल जाऊँगा! हुँ!” जेम्स ने कहा।
“शायद हम दोनों ही नहीं भुला पाएँगे एक-दूसरे को... इस जीवन में, या शायद सब जन्मों में... शायद तब भूल पाएँगे जब ब्रह्मा स्वप्न देखना बन्द कर देंगे...जब सृष्टि का अन्त होगा। खैर...,” लीरा ने गहरी साँस लेकर कहा, “जीम साहब, तुम कभी मुझसे मिलने की कोशिश नहीं करोगे!”
“तुम्हारी खातिर...”
“कहीं एक शब्द भी हमारे मिलने के बारे में न सुनाई पड़े... क्योंकि जीम साहब, इससे तुम्हारी जिन्दगी खतरे में पड़ जाएगी,” लीरा ने कहा।
“मैं वचन देता हूँ लीरा, न मैं तुम्हें खत लिखूँगा, न पहचानूँगा, न मिलूँगा, न किसी से कभी कुछ कहूँगा...,” भारी दिल से जेम्स ने कहा।
“और कभी तुम अगर मेरे पिता या पति के राज्य से गुजरो, तो कभी इन राज्यों में किसी स्टेशन पर नहीं उतरोगे...,” लीरा ने और चेतावनी दी, फिर प्यार से आप्लावित होकर बोली, तुम मेरे हो... तब तक, जब तक ब्रह्मा स्वप्न देखना बन्द नहीं कर देते... और मैं तुम्हारी हूँ...”
और क्षण भर बाद ही लीरा उठकर चली गयी। स्वप्नपरी-सी!
कई वर्ष बीत गये। जेम्स कार्पेण्टर कलकत्ता में अपना काम करता रहा। उसने बड़ी-बड़ी सफलताएँ भी पायीं। पर पता नहीं क्यों जेम्स को हमेशा यह एहसास होता रहा कि उसका और लीरा का मिलन छुपा नहीं रह पाएगा।
लीरा की शादी शान्दौर के महाराजा के साथ धूमधाम से हो गयी थी। चारों तरफ शोर हुआ था। राज्य में जो जश्न मनाये गये थे, उनमें कलकत्ता के साहब लोग भी शामिल हुए थे और शान-शौकत की खबरें लाये थे। जेम्स सबकुछ सिर्फ सुनता रहा था।
लेकिन उसी वर्ष जुलाई में ऐसा मौका हुआ कि जेम्स को उत्तर-पूर्वी भारत की ओर अपने काम से जाना पड़ा। उसकी ट्रेन शान्दौर राज्य के एक हिस्से को काटती हुई गुजरी। एक बार पहले भी वह इसी ट्रेन और इसी रास्ते से गुज़रा था... और उसने अपने को बेहद संयत रखा था। वह डिब्बे के बाहर तक नहीं झाँका था, क्योंकि वह ब्रिटिश राज की धरती में पहुँचकर ही बाहर निकलना चाहता था।
रात का वक्त था। गाड़ी चली जा रही थी। जेम्स अपने कपड़े बदल रहा था ताकि आराम से सो सके कि तभी गाड़ी शान्दौर राज्य के किसी छोटे से स्टेशन पर रुकी। और उसके दरवाजे पर दस्तक हुई। डरते-डरते उसने दरवाजा खोला तो देखा कि रेलवे का ही कोई बंगाली बाबू हिन्दुस्तानी में टिकट पूछ रहा था। पूछते-पूछते वह भीतर आ गया। गाड़ी एक मिनट रुककर चल पड़ी।
जैसे ही जेम्स कुछ प्रकृतिस्थ हुआ, उसने देखा वह बंगाली पिस्तौल ताने खड़ा था और कह रहा था - “साहब, सीट पर बैठ जाइए। चीखने-चिल्लाने की जरूरत नहीं है।”
जेम्स पत्थर के बुत की तरह बैठ गया। कुछ सँभलकर उसने कहा, “तुम क्या चाहते हो?”
पिस्तौलवाले आदमी ने अदब से कहा, “मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं मालिक का हुक्म पूरा कर रहा हूँ। मुझे हुक्म मिला है कि शान्दौर-राज्य के अगले स्टेशन पर आपको उतार लिया जाए। बस।”
और दस मिनट बाद ही गाड़ी एक और अँधेरे स्टेशन पर रुक गयी। रुकते ही चार आदमी डिब्बे में आये और जेम्स को सामान समेत उतार लिया गया।
दूसरे दिन सुबह जेम्स ने अपने को एक सजे-धजे आरामदेह कमरे में पाया। लग रहा था कि जैसे यह महाराजा का कोई दूसरा महल हो। उसकी पूरी आवभगत की गयी और नाश्ते के बाद जब वह उस कमरे में अकेला रह गया तो महाराजा की तरह दिखनेवाला एक पचास वर्षीय रोबीला आदमी उस कमरे में आया। जेम्स उसके सम्मान में उठ खड़ा हुआ।
“बैठिए, बैठिए जेम्स साहब!” महाराजा ने कहा, “मैं शान्दौर का महाराजा हूँ... घबराइए मत...”
“पर मुझे यहाँ इस तरह क्यों लाया गया है?” जेम्स ने पूछा।
“बात जरा नाजुक है!” महाराजा ने कहा, “पर घुमा फिराकर कर कहने से भी क्या फायदा। सीधी बात यह है जेम्स साहब कि मैंने जो यह तीसरी शादी की है, यही मेरी अन्तिम उम्मीद है! कि शान्दौर राज्य को एक वारिस मिल सकेगा। अगर मैं पुत्रहीन ही मर जाता हूँ तो यह राज्य मेरे सौतेले भाइयों को चला जाएगा, जिसे अँग्रेज सरकार भी नहीं चाहती। ...कुछ महीने पहले मेरे राज्य भर में यह खबर बिजली की तरह फैल गयी कि महारानी लीरा गर्भवती हुई हैं! पर इस सूचना से मेरे सारे सपने बिखर गये, क्योंकि महारानी लीरा की देखभाल करने वाले डॉक्टरों ने बताया था कि यह गर्भ शादी से पहले का है!”
“मुझे क्या मालूम हो सकता है? आप यह सब मुझे क्यों बता रहे हैं?” जेम्स ने कहा।
“जेम्स साहब, बनने की कोशिश मत कीजिए! मैं अब सिर्फ सच्चाई जानना चाहता हूँ, जो सिर्फ आप ही बता सकते हैं। मुझे मालूम है कि जहाज पर राजकुमारी लीरा और आप मिलते रहे थे!” महाराजा ने कहा।
“मुझे कुछ भी नहीं मालूम!” जेम्स ने सीधा जवाब दिया।
अपना गुस्सा पीते हुए महाराजा ने कहा, “आप झूठ बोलते हैं!”
“मैं सच बोल रहा हूँ!” जेम्स तिलमिलाकर बोला।
“अगर सच्चाई मेरे सामने नहीं आती तो आपके बदन की बोटी-बोटी नुचवा ली जाएगी जेम्स साहब! समझे!”
“सचमुच, मुझे कुछ नहीं मालूम!” जेम्स का चेहरा फक हो गया था पर वह दृढ़ था।
“मैं कल सुबह तक का वक्त देता हूँ, अगर आप सच्चाई को मंजूर कर लेंगे तो आपकी जान बख्श दी जाएगी। नहीं मंजूर करेंगे तो मौत के सिवा दूसरा अन्त नहीं है, समझे!” कहते हुए महाराजा कमरे से निकल गये।
रात हुई ही थी कि जेम्स के कमरे में एक दासी आयी। उसने जेम्स को चुपचाप पीछे आने का इशारा किया। जेम्स भी क्या। मौत से बेहतर तो कुछ भी हो सकता था। गलियों से गुजरकर वह जिस कमरे में दाखिल हुआ, वहाँ पास ही लीरा एक रत्नजटित बिस्तर पर लस्त लेटी थी। उसी बेड में उसका नवजात शिशु सो रहा था।
“जीम साहब!” लीरा ने जेम्स की आँखों में देखते हुए कहा।
“नहीं महारानी, मैं एक कैदी हूँ जिसे महाराजा ने बेबात के लिए बन्दी बनाया है।” जेम्स बोला।
“धीमे बोलो कैदी, नहीं तो मेरा बच्चा जाग जाएगा!” महारानी बोली।
और पसीने से नहाये खड़े जेम्स ने अपनी पूरी बदहवासी में भी अनुभव किया कि आज लीरा उसके जितने निकट थी, उतनी तो तब भी नहीं थी, जब वह उसकी बाँहों में थी।
“मुझे यहाँ क्यों लाया गया है?” जेम्स ने अपरिचित की तरह कहा।
“मुझे क्या मालूम कैदी! पर मैं इतना ही कह सकती हूँ कि मैं तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं कर सकती!” महारानी लीरा ने कहा।
और जेम्स फौरन समझ गया कि यह मिलन महाराजा का रचा हुआ है कि वह अपने गुनाहों को मानने के लिए पिघल उठेगा। वह यह सोच ही रहा था कि कमरे में महाराजा दाखिल हुए और बोले, “जेम्स साहब, आपको यहाँ खामख्वाह नहीं लाया गया है... यहाँ आकर भी आपने अपने बच्चे के रहस्य को नहीं खुलने दिया, यह सिर्फ एक अँग्रेज साहब ही कर सकता है। क्योंकि अँग्रेजों की यही खसलत है। अब मुझे कोई शक नहीं है कि यह बच्चा आपका ही है।” महाराजा ने एक गहरी साँस ली और फिर दर्प से बोले, “पर यह राज्य मेरे सौतेले भाइयों को जाए, यह मैं कभी मंजूर नहीं करूँगा! इसलिए यह बच्चा मेरा नाम धारण करेगा और राजकुमार बनेगा!”
जेम्स के पास कोई शब्द नहीं थे। वह बुत की तरह खड़ा था।
“जेम्स साहब!” महाराजा ने कहा, “तुम्हें सौगन्ध लेकर वचन देना पड़ेगा कि आज से तुम महारानी लीरा और इस राज्य के वंशधर राजकुमार को कभी जानने-पहचानने की कोशिश नहीं करोगे। इनके रास्ते में कभी नहीं आओगे!...” इसी शर्त पर तुम्हें आजाद किया जा सकता है।
जेम्स ने आँखें, झुकाये-झुकाये ही स्वीकृति में सिर हिला दिया।
“ठीक! तो फिर जेम्स साहब, आप आजाद हैं। मैं आपके लिए दुखी भी हूँ, आपके प्रति मेरे मन में संवेदना भी है... और मैं आपको सलाम भी करता हूँ!” और दूसरे ही क्षण महारानी लीरा और बच्चे को बिना देखे ही जेम्स कमरे से बाहर निकल गया।