बुरी नीयत का फल : डोगरी लोक-कथा

Buri Niyat Ka Phal : Lok-Katha (Dogri/Jammu)

एक बार की बात है, एक बूढ़ा था। उसे कब्र में से पैसे और कफन निकालने का मंत्र आता था। एक बार वह किसी काम से दूसरे शहर गया। वह रात को एक सराय में रुका। वहाँ पर और भी लोग रात गुजारने के लिए रुके हुए थे। बातों ही बातों में उस बूढ़े की एक और आदमी से दोस्ती हो गई।

वह दूसरा आदमी भी बड़ा गुणवान था। वह ताँबे से सोना बनाने का हुनर जानता था। दोनों में समझौता हुआ कि वह दोनों अपना-अपना हुनर एक-दूसरे को सिखाएँगे। दूसरे दिन उस आदमी ने बूढ़े को ताँबे से सोना बनाने की कला सिखाई। बूढ़ा भी बहुत अच्छे ढंग से वह कला सीख गया। फिर उस आदमी ने बूढ़े से कहा कि अब आप अपना हुनर मुझे सिखाओ। बूढ़ा तो सिखाने को तैयार था। परंतु उस शहर का कोई अमीर आदमी मरे तो ही वह अपनी कला उस आदमी को सिखा सकता था। बहुत दिनों के बाद एक अमीर आदमी मरा। वे दोनों बहुत खुश हुए। बूढ़े ने बाजार से थोड़ा सा मांस खरीदा और उसके तीन टुकड़े किए। शाम को वे दोनों कब्र के पास गए। बूढ़े ने मंत्र पढ़ा। मांस का एक टुकड़ा जमीन पर रखा और उसने मंत्र जोर-जोर से पढ़ा, ताकि वह आदमी भी सुन सके और याद कर सके। फिर बूढ़े ने दूसरा मंत्र पढ़ा और मांस का दूसरा टुकड़ा कब्र के पास रखा। कब्र में से मुर्दा निकलकर खड़ा हो गया। मुर्दे ने अपने हाथों में से वे पैसे जो लोगों ने उसे दफनाते समय कब्र में रखे थे और अपना सारा कफन उस बूढ़े की ओर फेंक दिए। सारा सामान समेटकर बूढ़े ने तीसरा मंत्र पढ़ा और मांस का एक और टुकड़ा कब्र के पास रखा। मुर्दा फिर कब्र में लेट गया और कब्र बंद हो गई। दोनों साथी वापस सराय में लौट आए। सुबह उठकर दोनों अपने-अपने रास्ते पर चल पड़े।

घर पहुँचकर उस आदमी ने सोचा कि काश! कोई अमीर आदमी मरे और मैं स्वयं भी उसकी कब्र से पैसे और कफन निकालने के हुनर को आजमा कर देखूँ। काफी समय बीत जाने के उपरांत उनके शहर में एक सेठ मर गया। सेठ बहुत अमीर था। उस आदमी ने विचार किया कि अब अपनी कला को आजमाना चाहिए। वह मन ही मन बहुत प्रसन्न हुआ। उसने भी तीन टुकड़े मांस के लिए और कब्रिस्तान पहुँच गया। कब्र के पास उसने पहला मंत्र पढ़ा और मांस का एक टुकड़ा कब्र के पास रखा। दूसरा मंत्र पढ़ा और मांस का दूसरा टुकड़ा कब्र के पास रखा। देखते ही देखते कब्र में से मुर्दा निकलकर खड़ा हो गया। उसने अपने कफन और पैसे उस आदमी की ओर फेंक दिए। अब वह आदमी तीसरा मंत्र पढ़ने लगा। पर यह क्या, वह मंत्र बीच में ही भूल गया। उसने अपने दिमाग पर बहुत जोर डाला, परंतु उसे मंत्र याद नहीं आया। वह बहुत डर गया। भयभीत होकर वहाँ से भागने लगा। परंतु यह क्या, वह मुर्दा भी उसके पीछे-पीछे आने लगा।

उस आदमी ने घबराहट में कफन और वह पैसे उस मुर्दे की ओर फैंक दिए। परंतु उस मुर्दे ने दुबारा वह पैसे और कफन उस आदमी की ओर फेंक दिए। ऐसा कई बार हुआ। छुपते-छुपते वह आदमी किसी तरह अपने घर पहुँचा।

उसे बहुत भूख लगी हुई थी। उसने घर पहुँचकर अपनी पत्नी से खाना माँगा। हड़बड़ाहट में जल्दी-जल्दी खाना खाकर हाथ धोने और कुल्ला करने बाहर निकला तो क्या देखता है, वह मुर्दा चलते-चलते उसके घर आ गया है। उस आदमी ने जल्दी-जल्दी अपनी घरवाली को सारी कहानी सुनाई और कहा कि मैं अब घर नहीं रह सकता। यह मुर्दा मुझे घर पर रहने नहीं देगा। मैं जंगल में चला जाता हूँ। तुम रोटी-पानी मुझे वहीं पर दे जाया करना।

वह आदमी जंगल में चला गया। वहाँ पर उसने एक जगह अपना डेरा जमा लिया। मुर्दा भी उसके पास ही रहने लगा। उसकी पत्नी रोज उसे खाना-पानी दे जाती। परंतु वह अब बहुत परेशान और उदास रहने लगा। एक दिन उसकी पत्नी ने उसे मशवरा दिया कि अपने गुरु के पास जाओ और इस मुर्दे को दोबारा कब्र में भेजने का उपाय पूछो।

पत्नी की बात मानकर वह एक दिन अपने गुरु के गाँव गया। वह उनके घर रात को गया, क्योंकि वह मुर्दा भी उसके साथ चल रहा था। छुपते-छुपते जब उसने गुरु का घर ढूँढ़ लिया तो बाहर से ही अपने गुरु को पुकारने लगा। उसकी आवाजें सुनकर भीतर से एक महिला बाहर आई और उसने उस आदमी से पूछा कि आप कौन हो? उस आदमी ने सारी कहानी उस महिला को बता दी। उस महिला को रोना आ गया। उसने बड़े दु:खी होकर कहा कि उसके गुरु को मरे हुए तीन दिन हो गए हैं। यह सुनते ही वह आदमी और भी चिंतित और परेशान हो गया। उसने गुरु की कब्र के बारे में जानकारी ली और सोचा, चलो गुरु को प्रणाम ही कर आता हूँ। उस महिला ने उसे कब्र का पता बताया। उस आदमी ने रात जंगल में बिताई। बड़ी मुश्किल से एक मरे पक्षी का मांस मिला, उसके तीन टुकड़े किए। दूसरे दिन रात ढलते ही वह कब्र की ओर चल पड़ा।

उसने मंत्र पढ़ा और एक टुकड़ा मांस उस कब्र के पास रखा। उसने दूसरा मंत्र पढ़ा और मांस का दूसरा टुकड़ा कब्र की ओर फेंका। कब्र में से मुर्दा निकलकर खड़ा हो गया। उसने कब्र में से सारे पैसे और कफन उस आदमी की ओर फेंक दिए।

शिष्य बोला, गुरुजी प्रणाम! आप मेरे गुरु हो। मुझे आपके पैसे और कफन नहीं चाहिए। मुझे आपका आशीर्वाद चाहिए। उसने गुरु को नमस्कार करते हुए वह पैसे और कफन गुरु की ओर फेंके, साथ ही कहा कि गुरुजी मुर्दे को दुबारा कब्र में भेजने वाला तीसरा मंत्र मैं भूल गया हूँ। कृपा करके मुझे सिखाओ। गुरु का मुर्दा कुछ न बोला।

उसने पैसे और कफन दुबारा उस आदमी की ओर फेंक दिए और चुपचाप कब्र के पास खड़ा रहा। अब कभी वह आदमी पैसे और कफन मुर्दे की ओर फेंके और कभी मुर्दा उस आदमी की तरफ। अब शिष्य और भी घबरा गया। वह डर के मारे अपने घर की ओर चल पड़ा। जब उसने पीछे मुड़कर देखा तो एक के बजाए दो मुर्दे उसके पीछे चल रहे थे। शिष्य फिर पीछे मुड़ा और दोनों हाथ जोड़कर विनती करते हुए कहने लगा—हे गुरु महाराज! मुझ पर कृपा करो, दया करो। मुझे तीसरा मंत्र भूल गया है, मुर्दे को वापस कब्र में कैसे भेजा जाए? कृपा करके मुझे तीसरा मंत्र बताओ। परंतु गुरु का मुर्दा मुँह से कुछ भी नहीं बोला और अपने शिष्य के पीछे-पीछे चल पड़ा।

अब चेला बहुत ज्यादा डर गया। वह यह सोचकर घबरा गया कि पहले तो एक मुर्दा था, अब दो हो गए हैं। रातोरात वह जंगल में उस जगह पहुँचा, जहाँ वह रहता था। वह वहाँ जाकर सिर पर हाथ रखकर बैठ गया। वह डर के मारे काँप रहा था। इसी तरह डर से उसकी मृत्यु हो गई। अगली सुबह जब उसकी पत्नी उसे खाना देने आई तो वहाँ पर तीन मुर्दे देखकर घबरा गई। वह रोने-चिल्लाने लगी। परंतु अब क्या हो सकता था। वह उसे घर भी नहीं ला सकती थी, क्योंकि बाकी के दो मुर्दे भी घर आ जाते। उसने जंगल में ही एक बहुत बड़ी कब्र बनाई। और उन तीनों को उस एक ही कब्र में दफना दिया। इस प्रकार उसने चैन की साँस ली।

(प्रस्तुतकर्ता : यशपाल निर्मल)

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