बुरे का बुरा : लोक-कथा (मध्य प्रदेश)

Bure Ka Bura : Lok-Katha (Madhya Pradesh)

एक हते चिरवा-चिरैया। वे बड़े मे रैत हते। कछू दिनों में एक नदिया में जाहँ नदिया सूक गई ती, उनने अंडा धरे, फिर उनके बच्चा भये । आषाढ़ के मईना में पानी गिरो और इन दोई प्रानियों खों अपने बच्चों की फिकर भई कि अगर नदिया में बाढ़ आ गई तो बच्चा बिह जैंहें, हम उनके बिना कैसे जी पाहें ? वे दोई भोत दुःखी होरये हते ओई समय उतेसे एक कौवा निकरो, विड़िया ने आँखों देखो और कई कि भैया हमाये बच्चों खौं पेड़ पे धर दे, जब कबऊँ तुमें खावे की दिक्कत होय ओई समय हम अपनों एक बच्चा तुमे खावे खें दे देहें । कौवा ने सोची अबे धर दयें फिर देखी जौहे । ओने चिरैया के बच्चों खों पेड़े पे धर दये और घोंसला सेई धर देओ। कछू दिनों में ओखों खबर भई तो चिरैया से बच्चा माँगन लगों । चिरैया बोलार पेले चौंच धो के आव, फिर बच्चा दैहें। कौवा नदी के पास गव, नदी बोली कि लियाव पेले घड़ा फिर ओमें पानी भरके चोंच धो लियों। वो वापस गव, चिरैया से बोलो तो चिरैया ने कुमार के पास भेजों घड़ा लैवे । कुमार से घड़ा माँगो तो कुमार ने कई कि पैलें माटी लिया और जब माटी लैवे गव तो माटी ने कई कि हमें खेदवे हिरन की सींग लाव, सींग से हमें खोदो, फिर ले जाव, घड़ा बनवा लियो । कौवा हिरन के पास गव, बोलो, 'हिरन दास तुम देव सिंगरी, खुदे मटर्रा, बने घड़ल्ला, धोवें चौंच मटका में, खावें चिरई के चुनवा मटकावें नौनी चौंच।'

हिरन बोले, पैलें हमें खावे खों एक कुत्ता लिया, वो हमें खा लेहे, तुम हमाव सींग ले लियो । कौवा कुत्ता के पास गव और केन लगो- कुतरदास तुम चलो हिरन चों खा लेव हमें ओको सींग चायने हैं। कुतरदास केन लगे कि पैलें भैंस के दूध लियाव, हम पी के हिरन खौं खावें की ताकत बना लेहें । कौवा भैंस के पास गव और बोलो, 'भिसरदास तुम देव दुदर्रा, पिये कुतर्रा, टूटे हिरन्ना, खुदे मटर्रा, बने घड़ला, धोवें, चौंच, खावें चिरई के चेनुवा, मटकावें नौनी चौंच।'

भैस बोली, तुम कांदी (घास) खोद के लियाव, हम ओखों चरहें फिर हमाव दूध ले जौयो। कौवा कांदी के पास गव । कांदी बोली, खुरपा के बिना कैसे छल है, तुम खुरपा लियाव ओ से हमें छी कें ले जैयों । कौवा लुहार के पास गव ओसं बोले, 'लुहारदास तुम देव खुदन्ना, खुदे कंदरी, खावे मिमर्रा कड़े दुदर्रा, पिये कुतर्रा, टूटे हिरन्ना, खुदे मटर्रा, बने घड़ला, धोवे चौंच, खवें चिरई के चेनुवा, मटाकवें नौनी चौंच।'

लुहार बोलो, हम भटिया लगाउत हैं, तुम बैठ जाव, अबई तुमाव काम करें दे रये । लुहार ने खुदन्ना बना दव और कौवा से पूछी जो कहा धर दय ? कौवा बोलो, चौंच पे धर देव लुहार ने कौवा की चौंच में खुदन्ना धर दव । ओके वजन से कौवा की चौंच कट कई और वो मर गव (किस्सा खतम) । 'किसा कहानी दोहरा, कबऊँ ने सीखे केठ । हर हाँकत जनम गव, रचे बैलों के दंत।'

(साभार : उमेश कुमार सिंह)

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