बुराई का फल : उत्तर प्रदेश की लोक-कथा
Burai Ka Phal : Lok-Katha (Uttar Pradesh)
सयाने सच कहते हैं कि तलाई के बिगाड़े रजाई से सुधारे नहीं जा सकते। ठाकरू भी वैसा ही था। उसे हमेशा पंगा लेने को मिर्ची लगी रहती थी। वह कभी पाखी-पखेरूओं तो कभी कुत्ते-बिल्ली को मारने के लिए तत्पर रहता था। सच यह था कि वह कुबुद्धि व्यक्ति हर कहीं हर किसी को छेड़ता रहता था।एक दिन उसे सेमल के पेड़ पर रिघड़ का छत्ता दिखाई दिया था। समतल जगह पर सेमल का वृक्ष था।
वहां चार-पांच व्यक्ति बैठे हुए थे, वे सुकेत राजदरबार की बातें कर रहे थे। उनमें वह भी घुस गया। वह घुस गया किन्तु वह शरारती अपनी ही कथा सुनाने लग गया। और तो और उसने डींग मार दी कि वह पेड़ पर चढ़कर रिंघड़ों का छत्ता जला आएगा। उसके पास इतनी ताकत है कि वह कुछ भी कर सकता है। वहां बैठे सभी ने उसे समझाया कि ठाकरू रिंघड़ों से छेड़खानी मत करना, ये पानी के भीतर भी नहीं छोड़ते हैं। इन्होंने किसी का क्या खाया है जो इन्हें वैसे ही उकसाना है। परन्तु ठाकरू के कान में जूं नहीं रेंगी। उसने उन्हें बता दिया कि वे घड़ी-पल में उसकी हिम्मत देख लें। ठाकरू झट नजदीक ही अपने घर गया। उसने मोमजामी शीट का टोप और मोमजामी शीट का ही अपने कपड़े के ऊपर कमीज-पायजामा डाल लिया। फिर शीघ्र ही उसने एक मशाल बनाई और उसे जला लिया। वैसे जनाब वह था बड़ा तेज। कांटों वाले सेमल के पेड़ पर वह बिल्ली की तरह चढ़ गया। नीचे से उन लोगों ने उसे फिर समझाया कि बेकसूर रिघड़ों को मत छेड़े-मत जलाए। पर उस लड़ाकू ने रिघड़ों के छत्ते को आग लगा दी। रिघड़ भूखभिंन करते जलने लगे, कई उड़ने लगे थे।
अचानक जलता छत्ता उसके सिर के ऊपर गिर गया। उसके द्वारा पहने मोमजामी टोप और कपड़ों को भी आग लग गई। अब वह लगा जलने और मोमजामी शीट उससे चिपकने भी लग गई थी। कुछ जीवित-बचे रिघड़ों ने उसे डस भी लिया था। अब वह चीखने-चिल्लाने लगा और वह मशाल फेंक कर शीघ्र-जल्दी में उतर पड़ा। किन्तु सेमल पर से उतरते हुए उसके हाथ-पांव-पेट लहूलुहान हो गए। उसके बाल-चमड़ी-हाथ जल गए। पेड़ से उतरते ही वह मरे की तरह लेट गया। किन्तु जलन और रिंघड़ों के काटने के दर्द से वह रोने-पीटने लग गया था। बड़ी कठिनाई से नीचे बैठे लोगों ने उसकी आग बुझाई और आनन-फानन में पालकी में डाल कर उसे वैद्य के पास ले चले। परन्तु एक व्यक्ति ने उसे कह ही दिया- “ठाकरू आया स्वाद! भ्राता, किसी का बुरा करेगा तो खुद का भी बुरा ही होगा। अब कान पकड़ ले अगर जीवित रह जाएगा।” ठाकरू से कुछ भी बात नहीं हो पा रही थी। केवल दर्द से वह हाय अम्मा!! हाय अम्मा!! करने लगा था। ऐसे भी उसके जिन्दा रहने की उम्मीद कम ही थी। (साभार : प्रियंका वर्मा)