बुलबुलों की गवाही : लोककथा (उत्तराखंड)
Bulbulon Ki Gawahi : Lok-Katha (Uttarakhand)
सुरेन्द्र और नरेन्द्र किसी गांंव में साथ रहते थे । सुरेन्द्र दुष्ट था । वह नरेन्द्र से जलता था किन्तु उससे दोस्ती का दिखावा करता था । एक दिन सुरेन्द्र ने नरेन्द्र से कहा- ‘‘दोस्त! सुना है आजकल रुई का व्यापार करने में बहुत पैसा है। चलें रुई का व्यापार करने शहर की ओर ।‘‘
नरेन्द्र तैयार हो गया । उन दोनों ने अपने माता-पिता को भी यह बात बता दी । वे भी उनको रूई के व्यापार के लिए शहर भेजने को राजी हो गए ।
वे शहर चले गए । उनका रूई का व्यापार अच्छा चला । नरेन्द्र का व्यापार इतना अच्छा चला कि सुरेन्द्र को ईर्ष्या होने लगी ।
एक दिन सुरेन्द्र ने नरेन्द्र से कहा-‘‘अब हमने बहुत धन कमा लिया । अब हमें अपने गांव वापस लौटना चाहिए ।’’
नरेन्द्र गांव वापस लौटने को तैयार हो गया । वे दोनों गॅांव लौट रहे थे । सुनसान रास्ता था । तभी बारीश होने लगी । जमीन में पानी के बुलबुले उठने लगे । सुरेन्द्र के मन में पाप आ गया । वह सोचने लगा-’’नरेन्द्र ने बहुत सारा पैसा कमाया है । मैंने बहुत कम कमाया है । अगर मैं यहीं रास्ते में नरेन्द्र को मार दूं तो सारा माल और पैंसा मेरा हो जाएगा ।’’
वह नरेन्द्र का गला दबाने को तैयार हो गया । नरेन्द्र फूट पड़ा- ‘‘देख, सुरेन्द्र! तू यह अच्छा नहीं कर रहा है । बुरे काम का बुरा परिणाम होता है । मैं मर जाऊँगा तो तू भी नहीं बचेगा । राजा तुझे मृत्युदण्ड देगा ।’’
‘‘इस सुनसान जंगल में राजा के पास कौन तेरी गवाही देगा ?’’- सुरेन्द्र बोला ।
‘‘देख! इस समय बारिश हो रही है । जमीन में पानी के बुलबुले उठ रहे हैं । ये सब राजा के सामने मेरी गवाही देंगे।‘‘
‘‘ पानी के बुलबुले क्या इन्सान हैं जो राजा के सामने गवाही देंगे ? मूर्ख कहीं का ।‘‘- नरेन्द्र की बात को सुनकर सुरेन्द्र बोला।
सुरेन्द्र ने नरेन्द्र का गला दबा कर उसे मार दिया । उसने नरेन्द्र की लांश गहरी खाई में फेंक दी । नरेन्द्र के सामान और धन को अपने साथ लेकर सुरेन्द्र अपने गांव पहुंच गया ।
गांव में पहुंचते ही नरेन्द्र के माता-पिता ने सुरेन्द्र से अपने बेटे के बारे में पूछा ।
वह बोला- ‘‘बौडा (ताऊ) जी । हम दोनों रूई का व्यापार साथ-साथ करते थे । नरेन्द्र बुरे लोगों की संगत में पड़ गया । उसने जो धन कमाया गलत कार्यों में खर्च कर दिया । अब वह वहां गरीबी में जीवन बिता रहा है ।‘‘
इस घटना को बीते काफी समय हो गया था । एक दिन सुरेन्द्र अपनी पत्नी के साथ कहीं घूमने निकल गया । उस समय बारीश हो रही थी । पानी में बुलबुले उठ रहे थे । इस दृश्य को देखकर सुरेन्द्र को नरेन्द्र के कहे शब्द याद आ गए- ‘‘देख! इस समय बारीश हो रही है पानी की बूंदों से जमीन में बुलबुले उठ रहे हैं। ये सब राजा के सामने मेरी गवाही देंगे।’’
‘‘भला पानी के बुलबुले राजा के सामने कैसे गवाही दे सकते हैं ?‘‘-यह कहकर सुरेन्द्र ठहाका मारकर हॅंसा।
..‘‘.क्या मतलब ?‘’
आश्चर्य से सुरेन्द्र की पत्नी बोली । सुरेन्द्र ने उसे पूरी बात बता दी | यह हिदायत भी दी कि वह किसी और के पास यह बात न बताए ।
दूसरे दिन सुरेन्द्र की पत्नी रैजा पनघट पर गई । पानी भरते-भरते उसने अपनी सहेली गंगा को यह बात बता दी । उसने गंगा से सौगन्ध ले ली कि वह इस बात को किसी और को नहीं बताएगी । गंगा ने यह बात अपनी दूसरी सहेली को बता दी और उससे औरों को न बताने की सौगन्ध ले ली। ऐसा होते-होते बात रानी की दासी तक पहुंच गई ।वह रानी की प्रिय दासी थी । उसने रानी को यह बात बता दी और उससे सौगन्ध ले ली । अन्त में रानी से राजा को भी इस बात का पता चल गया ।
राजा ने सुरेन्द्र को दरबार में हाजिर होने की आज्ञा दी । पहले वह ना नुकर करता रहा । अन्त में उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया । राजा ने उसे मृत्युदण्ड की सजा दी ।
(साभार : डॉ. उमेश चमोला)