बुलबुल (डैनिश कहानी) : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन
Bulbul (Danish Story in Hindi) : Hans Christian Andersen
सब जानते हैं कि चीन में राजा, उसके दरबारी और प्रजा सब चीनी होते हैं।
यह कहानी बहुत पहले घटी थी; और इसीलिए इससे पहले कि इसे सब
भूल जायँ सुन लेनी चाहिए। राजा का महल पूरी दुनिया में सबसे सुंदर था।
वह शीशे का बना था और उसे बनाना बड़ा महँगा पड़ा था। वह इतना नाजुक
था कि किसी भी चीज को छूने में डर लगता था और यह एक बड़ा मुश्किल
काम था। बगीचे बहुत सुंदर फूलों से भरे थे, जो फूल सबसे ज्यादा सुंदर थे
उनमें चाँदी की घंटियाँ थीं जो बजती रहती थीं। कोई उन्हें देखे बिना निकल
नहीं सकता था।
राजा के बगीचे में हर चीज़ बड़ी चतुराई से बनाई गई थी। बह बगीचा
इतना बड़ा था कि सबसे बड़ा माली भी यह नहीं जानता था कि वह कितना
बड़ा है। चलते जाने पर आप एक सुंदर जंगल में पहुँच जाओगे जहाँ के
ऊँचे-ऊँचे पेड़ गहरे तालाबों में अपने को देखते रहते थे। जंगल समुद्र तक
फैला हुआ था। समुद्र नीला और इतना गहरा था कि बड़ी नावें भी किनारे के
इतने करीब आ सकती थीं कि उन पर पेड़ों की छाया पड़ती थी। यहाँ एक
बुलबुल रहती थी जो इतना मीठा गाती थी कि वह मछुआरा जो रोज़ रात को
वहाँ जाल डालने जाता था, इसे सुनकर रुक जाता था और कहता था : 'हे
भगवान, यह कितना सुंदर गाती है!' पर वह ज्यादा देर नहीं सुन पाता था
क्योंकि उसे काम करना होता था, और जल्दी ही वह चिड़िया के बारे में भूल
जाता था। पर अगली रात फिर जब वह उसकी आवाज़ सुनता था तो पहली
रात की बात दोहराता था : 'हे भगवान, यह कितना सुंदर गाती है !'
पूरी दुनिया से यात्री राजा का महल और बगीचा देखने उसके शहर में
आते थे; पर बुलबुल की आवाज़ सुनने के बाद कहते थे कि वही सबसे
प्यारी है। अपने देश लौटने पर वे शहर, महल और बगीचे के बारे में लंबी
ज्ञानभरी किताबें लिखते थे; पर बुलबुल को कभी नहीं भूलते थे। पहले
अध्याय में ही उसके बारे में लिखा रहता था। जो कविता लिख सकते थे वे
उसकी प्रशंसा में लंबी कविताएँ लिखते थे कि कैसे गहरे नीले समुद्र के
किनारे के जंगल में एक बुलबुल रहती थी।
ये किताबें सारे संसार ने पढ़ीं, एक किताब राजा को भी भेजी गई। उसने
अपनी सोने की कुर्सी पर बैठकर पढ़ना शुरू किया। थोड़ी-थोड़ी देर में वह
सिर हिलाता जाता था क्योंकि उसे अपने शहर, अपने महल और बगीचे के
बारे में पढ़कर बहुत खुशी हो रही थी; पर तभी उसने पढ़ा : 'पर बुलबुल का
गाना सबसे ज्यादा प्यारा है।'
'क्या!' राजा बोला, 'बुलबुल ? मैं तो उसे जानता भी नहीं, न मैंने उसके
बारे में सुना है; और वह न सिर्फ मेरे राज्य में बल्कि मेरे बगीचे में रहती है।
ऐसी बातें लोगों की किताबें पढ़ने पर ही पता चलती हैं।'
उसने अपने मुख्य दरबारी को बुलाया, वह बहुत भद्र था यहाँ तक कि
कोई उससे नीचे स्तर का आदमी भी अगर उससे बात करता या उससे कुछ
पूछता था तो उसका जवाब सिर्फ 'जी' होता था। और इसका कोई अर्थ नहीं
होता।
राजा ने पूछना शुरू किया, 'एक अजीब और मशहूर चिड़िया है, जिसे
बुलबुल कहते हैं। लोग सोचते हैं कि मेरे राज्य में वही सबसे बढ़िया चीज़
है। मैंने उसके बारे में क्यों नहीं सुना ?'
दरबारी बोला, 'मैंने उसके बारे में कभी नहीं सुना, न उसे कभी दरबार
में पेश किया गया है।'
राजा ने माँग की कि 'उसे आज शाम को आकर मेरे लिए गाना पड़ेगा।
सारी दुनिया उसके बारे में जानती है, मैं ही नहीं जानता।'
दरबारी ने झुककर कहा, 'मैंने इसके बारे में पहले कभी नहीं सुना पर मैं
उसे ढूँढ़कर लाऊँगा।'
पर यह कहना आसान था, करना मुश्किल | दरबारी पूरे महल की सीढ़ियों
में ऊपर-नीचे दौड़ता रहा, लंबे गलियारे में भागता रहा, पर जितने लोगों से पूछा
कोई बुलबुल के बारे में कुछ नहीं जानता था । वह राजा के पास लौटा और बोला
कि किताबें लिखने वालों की पूरी कहानी गप्प के अलावा कुछ नहीं है।
“महाराज, आपको हर लिखी बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए। एक चीज़
की खोज और कलात्मक कल्पनाएँ अलग होती हैं; यह कहानी है।'
राजा ने जवाब में कहा, 'जो किताब मैंने अभी पढ़ी है वह मुझे जापान के
राजा ने भेजी है; इसलिए उसमें लिखी हर बात ज़रूर सच होगी । मैं आज रात
को बुलबुल को सुनना चाहता हूँ। अगर वह नहीं आएगी तो पूरे दरबारियों के
पेटों पर भोजन के बाद मुक्के मारे जाएँगे।'
दरबारी बोला, 'सिंग पे!' वह फिर सीढ़ियों पर ऊपर-नीचे, गलियारे में
दौड़ने लगा; आधा दरबार उसके साथ दौड़ रहा था क्योंकि वे अपना पेट
पिटवाना नहीं चाहते थे। वे सबसे बुलबुल के बारे में पूछ रहे थे, जिसके बारे
में सारी दुनिया जानती थी, पर दरबारी नहीं जानते थे।
आखिर वे रसोई में पहुँचे। वहाँ एक गरीब लड़की बरतन माँजती थी।
वह बोली, 'ओह, मैं बुलबुल को जानती हूँ। वह बहुत सुंदर गाती है। हर
शाम को मैं समुद्र के किनारे रहती अपनी बीमार माँ के लिए, बचा हुआ
खाना लेकर जाती हूँ। वह जगह बहुत दूर है, इसलिए लौटते वक्त जंगल में
आराम करती हूँ और तब बुलबुल की आवाज़ सुनती हूँ। मेरी आँखों में आँसू
आ जाते हैं, ऐसा लगता है जैसे मेरो माँ मुझे चूम रही है।'
दरबारी बोला, “सुनो लड़की, मैं तुम्हें रसोई में पक्की नौकरी दिलवा
दूँगा, साथ ही राजा को भोजन करते हुए देखने की आज्ञा भी, पर तुम्हें हमें
बुलबुल तक पहुँचाना होगा और उसे आज रात को दरबार में बुलाना होगा।'
आधा दरबार जंगल में बुलबुल को ढूँढ़ने गया। जब वे जा रहे थे तो एक
गाय रंभाने लगी। वे लोग चिल्लाए, 'ओह! वह रही। छोटे-से जानवर की
आवाज़ कितनी ताकतवर है; हमने पहले भी सुनी है।'
रसोई की नौकरानी बोली, 'वह तो गाय है। अभी हम बुलबुल के रहने
की जगह से बहुत दूर हैं।'
वे एक छोटे-से तालाब के पास से निकले, कुछ मेंढ़क टर्रा रहे थे।
राजा का एक दरबारी साँस खींचकर बोला, “बहुत खूब, मैं उसकी
आवाज़ सुन पा रहा हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे गिरजे में घंटियाँ बज रही हों।'
छोटी नौकरानी फिर बोली, 'नहीं, ये तो मेंढ़क हैं, पर अब किसी भी
वक्त हमें उसकी आवाज़ सुनाई दे जाएगी।'
उसी वक्त बुलबुल गाने लगी।
लड़की बोली, “वह रही! सुनो, सुनो । वह वहाँ ऊपर डाल पर है।' और
उसने हरी-भरी डाल पर बैठी एक छोटी सलेटी-सी चिड़िया की तरफ इशारा
किया।
मुख्य दरबारी बोला, 'यह कैसे हो सकता है ! मैं सोच भी नहीं सकता था
कि वह ऐसी होगी। यह तो बहुत मामूली है! कहीं एक साथ इतने ऊँचे लोगों
को देखकर शर्म से उसका रंग तो नहीं उतर गया है।'
नौकरानी बोली, 'छोटी बुलबुल, हमारा राजा चाहता है कि तुम उसके
लिए गाओ।'
'ख़ुशी से।' बुलबुल ने जवाब दिया और जितना अच्छा गा सकती थी,
गाया।
मुख्य दरबारी ने ठंडी साँस लेकर कहा, 'ऐसा लगता है जैसे काँच की
घंटियाँ बज रही हैं। इसके छोटे-से गले को देखो, कैसे धड़क रहा है।
कितनी अजीब बात है कि हमने पहले इसे सुना ही नहीं; दरबार में इसे बहुत
पसंद किया जाएगा।'
बुलबुल ने पूछा, "क्या मैं राजा के लिए और गीत गाऊँ ?” उसने सोचा,
राजा भी वहीं है।
मुख्य दरबारी बोला, 'ओ सर्वोत्तम छोटी बुलबुल, मैं बड़ी खुशी से आज
रात को तुम्हें राजदरबार में आने का न्यौता देता हूँ चीन के राजा चाहते हैं कि
तुम अपनी सुंदर कला से उन्हें मुग्ध करो।'
बुलबुल बोली, ' हरे-भरे जंगलों में ही यह अच्छा लगता है।' पर जब
उसे पता चला कि राजा वहीं सुनना चाहते हैं तो बह उनके साथ महल तक
गई।
वहाँ हर कमरा चमकाया गया था, सैकड़ों सोने के लैंप चमकीली दीवारों
और फर्श पर अपनी परछाईं देख रहे थे। गलियारों में बहुत सुंदर फूल खड़े
थे, ऐसे फूल जिनमें चाँदी की घंटियाँ थीं; नौकरों के आने-जाने से, दरवाज़े
खोलने और बंद करने से जो झोंके आ रहे थे उनसे वे घंटियाँ ऐसे बजने
लगती थीं कि किसी की कही बात सुनाई नहीं देती थी।
एक बड़े कमरे में जहाँ राजा का सिंहासन रखा था, एक सोने की डंडी
लगाई गई ताकि बुलबुल उस पर बैठ सके। पूरा दरबार वहाँ था और उस
छोटी नौकरानी को जिसे अब राजा की रसोई में ऊंची जगह दे दी गई थी,
एक दरवाज़े के पीछे खड़े होकर सुनने की इजाजत थी। सब अपने बढ़िया
कपड़े पहने हुए थे और उस छोटी-सी स्लेटी रंग की चिड़िया की तरफ देख
रहे थे, जिसकी तरफ राजा भी देखकर सिर हिला रहा था।
बुलबुल का गाना इतना मीठा था कि राजा की आँखों में आँसू आ गए;
जब आँसू गालों पर बहने लगे तब वह पहले से भी सुंदर गाने लगी। उसका
गाना लोगों के दिल को छू रहा था। राजा इतना खुश हुआ कि उसने हुक्म
दिया कि उसकी सोने की चप्पल चिड़िया के गले में लटका दी जाए। इससे
बढ़कर कोई इज्जत नहीं दी जा सकती थी। पर बुलबुल ने धन्यवाद देते हुए
कहा कि उसे तो पहले ही बहुत इज्जत मिल चुकी।
“मैंने राजा की आँखों में आँसू देखे हैं, मेरे लिए वही बहुत बड़ी दौलत
है। राजा के आँसुओं में अजीब ताकत होती है और भगवान जानते हैं कि वह
बहुत बड़ा इंसान है।' फिर उसने एक और गीत गाया।
दरबार की सभी औरतों ने कहा कि हमने इससे अच्छा गाना कभी नहीं
सुना। और तभी से वे सब मुँह में पानी भरकर आवाज़ निकालने की कोशिश
करती थीं क्योंकि उन्हें लगता था कि तब आवाज बुलबुल जैसी सुनाई देगी।
नौकर-नौकरानी खुश थे और यह बहुत बड़ी बात थी क्योंकि नौकर बड़ी
मुश्किल से खुश होते हैं। बुलबुल बहुत सफल हो गई थी।
दरबार में उसका अपना पिंजरा होना था, उसे सुबह-शाम दोनों वक्त
घूमने जाने की इजाजत मिली थी। पर बारह नौकर उस बेचारी चिड़िया की
टाँगों में बँधे रेशमी रिबनों को कस कर पकड़े रहने वाले थे। ऐसे बाहर जाने
में क्या मज़ा आता ?
पूरा शहर उस कमाल की चिड़िया के बारे में बातें कर रहा था। जब भी
दो लोग गली में मिलते तो ठंडी साँस भरते और एक कहता 'बुल' और दूसरा
कहता 'बुल'। दोनों एक- दूसरे की बात समझ जाते। बारह मिठाई की
दूकान वालों ने अपने बच्चों के नाम बुलबुल रखे, पर एक भी गाना नहीं
जानता था।
एक दिन राजा के लिए एक पैकेट आया जिस पर 'बुलबुल' लिखा था।
राजा बोला, 'शायद यह हमारी चिड़िया पर एक और किताब है।' पर
राजा गलत था; वह एक मशीनी बुलबुल थी। वह एक छोटे-से डिब्बे में थी
और असली लग रही थी। वह सोने और चाँदी से बनी थी और उसमें हीरे,
लाल, हरे बेशकीमती रत्न जड़े हुए थे। जब उसमें चाभी भरी जाती थी तो
वह असली बुलबुल वाला एक गाना गाती थी; और जब वह गाती थी तो
उसकी छोटी-सी चाँदी की पूँछ ऊपर-नीचे होती थी। उसके गले पर एक
रिबन बँधा था जिस पर लिखा था, 'जापान के राजा की बुलबुल चीन के राजा
की बुलबुल से घटिया (नीची) है।'
पूरा दरबार बोला, ' यह सुंदर है! जो दूत उसे लेकर आया था उसे फौरन
'सर्वोत्तम राजकीय बुलबुल देने वाले' का खिताब दिया गया।
सब बोले, 'इन दोनों को साथ-साथ गाना चाहिए।' दोनों ने गाया। पर वह
उतना अच्छा नहीं रहा। क्योंकि असली चिड़िया अपने ढंग से गा रही थी
और जो मशीनी चिड़िया थी उसकी छाती में दिल की जगह सिलेंडर लगा
था। राजकीय संगीत शिक्षक ने कहा कि 'यह इसकी गलती नहीं है। यह
बिल्कुल वक्त से चलती है। यह मेरे संगीत विद्यालय की तरह है।' फिर
मशीनी बुलबुल को अकेले गाना पड़ा। सब मान गए कि उसका गाना
असली बुलबुल के गाने की तरह सुंदर था। इसके अलावा नकली चिड़िया
देखने में ज्यादा सुंदर थी क्योंकि वह हीरे-पन्ने मानिक से जड़ी थी और
जड़ाऊ कंगन और पिन की तरह चमक रही थी।
मशीनी बुलबुल ने तेंतीस बार गाना गाया और फिर भी नहीं थकी।
दरबारियों का मन था कि वह चौंतीसवीं बार गाए लेकिन राजा को लगा कि
अब असली बुलबुल को गाना चाहिए। पर वह थी कहाँ? किसी ने ध्यान भी
नहीं दिया कि वह खुली खिड़की से उड़कर अपने प्यारे जंगल में चली गई
थी।
राजा ने गुस्से से कहा, 'इसका क्या मतलब है?' और पूरा दरबार भी
बुलबुल को दोष देते हुए कहने लगा कि वह कितनी कृतघ्न है।
'फिर भी अच्छी चिड़िया तो मौजूद है,' उन्होंने कहा और मशीनी
चिड़िया ने फिर एक बार गाना गाया। वही गाना था क्योंकि वह दूसरा गाना तो
जानती ही नहीं थी। पर वह बड़ा मुश्किल गाना था, इसलिए दरबारियों को
अभी याद नहीं हुआ था। राजकीय गाने के मास्टर ने चिड़िया की तारीफ
करते हुए कहा कि वह असली चिडिया से सिर्फ देखने में ही नहीं, बल्कि
अंदर से भी बेहतर है।
'महाराज और लोगो, आप जानते ही हैं कि असली बुलबुल पर निर्भर
नहीं किया जा सकता। उसका कुछ नहीं पता कि वह क्या गाने लगे, जबकि
मशीनी बुलबुल का सब कुछ तय होता है। बस एक ही गाना तय है, दूसरा
नहीं! इसके बारे में सब कुछ बताया जा सकता है। हम इसे खोलकर देख
सकते हैं, इंसानी सोच की तारीफ कर सकते हैं जिसने इसमें गोल घूमने का
यंत्र लगाया, फिर वापस वैसे ही बंद कर सकते हैं जैसा होना चाहिए।'
पूरा दरबार एक सुर में बोला, 'बिल्कुल, मैं भी यही सोच रहा था।' फिर
यह तय किया गया कि राजकीय संगीत शिक्षक आने वाले इतवार को लोगों
को नई बुलबुल दिखाएँगे।
राजा को लगा कि उन्हें भी चिड़िया की आवाज़ सुनने का मौका मिलना
चाहिए । उन्होंने सुना और ऐसे खुश हुए जैसे ज्यादा चाय पी ली हो। सब कुछ
चीनी था। उन्होंने अपनी उँगलियाँ आसमान की तरफ उठाते हुए कहा,
ओह!'
पर जिन गरीब मछुआरों ने असली बुलबुल का गीत सुना हुआ था, वे
फुसफुसाए, 'यह चिड़िया के गीत की तरह सुंदर तो है पर कोई कमी है
जिसे मैं समझ नहीं पा रहा हूँ।'
असली बुलबुल को देशनिकाला दे दिया गया।
मशीनी बुलबुल को राजा के पलंग के पास आराम करने के लिए रेशमी
तकिया दिया गया; उसे जो तोहफे मिले थे, उसके आस-पास रख दिए गए।
उनमें सोना और कीमती रत्न भी थे। उसे सर्वोच्च राजकीय रात की मेज के
गायक का पद और बाईं ओर का पहला नंबर दिया गया-राजा का ख्याल था
कि बाईं तरफ ज्यादा ऊँची है क्योंकि उसी तरफ दिल होता है, यहाँ तक कि
एक राजा का दिल भी उधर ही होता है।
राजकीय संगीत शिक्षक ने पच्चीस भागों में मशीनी बुलबुल पर एक
किताब लिखी। वह सिर्फ लंबी और ज्ञान से भरी ही नहीं थी बल्कि उसमें
सबसे मुश्किल चीनी शब्द भी थे, इसलिए सबने उसे खरीद लिया और कहा
कि पढ़ ली और समझ भी ली है, क्योंकि नहीं तो लोग सोचेंगे कि वे बेवकूफ
हैं और फिर उनके पेट पर घूँसे मारे जाएँगे।
एक साल बीत गया। राजा, दरबार और चीन के सभी लोगों ने सर्वोच्च
राजकीय रात की मेज़ के गायक का गाना याद कर लिया था और यही कारण
था कि उन्हें वह इतना अच्छा लगता था; वे खुद इसे गा सकते थे, और गाते
थे। गली के बच्चे भी गाते थे 'ज़ि ज़ि ज़िज़्ज़ी, क्लक् क्लक् क्लक् क्लक् '।
राजा भी गाता था। ओह, मज़ा आता था।
पर एक शाम को राजा बिस्तर में लेटा हुआ सुन रहा था और चिड़िया
बहुत बढ़िया गा रही थी कि तभी उसके अंदर आवाज़ हुई : 'क्लाँग!' वह
टूट गई थी। सब पहिए घूम रहे थे और फिर चिड़िया चुप हो गई।
राजा पलंग से कूदा, अपने डॉक्टर को बुलाया पर वह कुछ नहीं कर
सका, इसलिए राजा के घड़ीसाज को बुलाया गया। उसने बड़ी मुश्किल से
चिड़िया की मरम्मत की, पर उसने बताया कि सिलेंडर घिस गए हैं और नए
नहीं लग सकते । चिड़िया को रिहाई देनी पड़ेगी, उसे इतनी बार नहीं चलाया
जाना चाहिए।
यह बहुत बड़ी दुर्घटना थी। अब सिर्फ साल में एक बार मशीनी
चिड़िया को गाने दिया जाता था और तब भी पूरा गाना गाने में उसे मुश्किल
होती थी, पर राजकीय संगीत मास्टर ने बड़े मुश्किल शब्दों में एक भाषण
दिया और बताया कि चिड़िया पहले की तरह बिल्कुल ठीक थी, और थी
भी।
पाँच साल बीत गए। एक बड़ी बदकिस्मती की बात हुई। सब बूढ़े राजा
को बहुत प्यार करते थे, पर वह बीमार पड़ा, सब मान गए कि अब वह ठीक
नहीं होगा। कहा गया कि नया राजा चुन लिया गया था। जब लोगों को सड़क
पर मुख्य दरबारी मिलता तो वे राजा का हाल पूछते थे पर वह सिर हिलाकर
सिर्फ एक शब्द कहता था--- 'पी'।
राजा अपने सोने के पलंग पर पीला और निर्जीव-सा पड़ा था। सारे
दरबारी सोच रहे थे कि वह मर ही गया था और वे नए राजा के पास जाने
और उसको इज्जत देने में लग गए। सारे नौकर गलियों में गप्पें मार रहे थे और
सारी नौकरानियाँ कॉफी पीने में लगी हुई थीं। पूरे महल की हर मंज़िल पर
काले कालीन बिछा दिए गए थे ताकि मरते हुए राजा को किसी के पैरों की
आवाज़ से परेशानी न हो; और इसलिए पूरे महल में जितनी हो सकती थी
उतनी चुप्पी थी।
पर राजा अभी मरा नहीं था। अपने बड़े सोने के पलंग पर पड़ा था। रंग
पीला था और वह हिलडुल भी नहीं रहा था; लंबे-लंबे मखमल के पर्दे खिंचे
हुए थे। एक खिड़की खुली थी और उसमें से आती हवा में पर्दों के छोर
हल्के-हल्के हिल रहे थे। चाँद की चाँदनी राजा पर और मशीनी चिड़िया के
हीरों पर पड़ रही थी।
राजा मुश्किल से साँस ले रहा था, उसे लग रहा था जैसे कोई उसकी
छाती पर बैठा था। उसने आँखें खोलीं। वहाँ मौत बैठी थी। उसने राजा का
सोने का मुकुट पहना हुआ था, एक हाथ में सोने का राजदंड था दूसरे में
राजकीय झंडा। पर्दों के बीच से अजीब चेहरे राजा की तरफ देख रहे थे।
कुछ चेहरे डरावने और बदसूरत थे और कुछ मामूली और दयालु। ये राजा
के अब तक के किए हुए कर्म थे, जिनमें कुछ अच्छे और कुछ बुरे थे। मौत
उसकी छाती पर बैठी थी और वे उसे देख रहे थे।
पहले एक फिर दूसरा फुसफुसाकर पूछ रहे थे : 'तुम्हें याद है ?' और वे
ऐसी बातें बता रहे थे जिनके डर से राजा के माथे पर ठंडा पसीना आ गया।
“नहीं, नहीं, मुझे याद नहीं है! यह सच नहीं है!' राजा चिल्लाया, वह
बिनती करने लगा, “संगीत, संगीत, चीनी घंटा बजाओ, जिससे मुझे इनकी
बातें सुनाई न दें।'
पर चेहरे बोलते रहे, और मौत पक्के चीनी की तरह हर कही हुई बात
पर सिर हिलाती रही।
राजा ने कहा, 'ओ सोने की चिड़िया, गाओ, गाओ। मैंने तुम्हें अपने हाथों
से सोना और अमूल्य रत्न दिए थे और अपना सुनहरी स्लीपर तुम्हारे गले में
लटकाया था, गाओ । कृपा कर गाओ!'
पर मशीनी चिड़िया वैसी ही चुप खड़ी रही क्योंकि उसमें चाभी भरने
वाला कोई नहीं था, और ऐसे में वह कैसे गा सकती थी।
मौत खोपड़ी के खोखले छेदों में से राजा को घूरती रही, महल में
डरावना सन्नाटा था।
सहसा एक सुंदर गीत ने सन्नाटा तोड़ दिया। वह बुलबुल थी, जिसने
राजा की बीमारी और परेशानी की बात सुनी थी। वह उसकी खिड़की के
बाहर एक डाल पर बैठकर गा रही थी जिससे राजा को आराम और उम्मीद
मिले । जैसे-जैसे वह गा रही थी, पर्दों से झाँकते चेहरे गायब होने लगे, राजा
के कमज़ोर शरीर में खून तेज़ी से बहने लगा। खुद मौत ने गाना सुना और
कहा, 'छोटी बुलबुल, कृपा करके गाती जाओ !'
बुलबुल ने पूछा, ' क्या तुम मुझे अपना सोने का राजदंड दोगी। क्या तुम
मुझे राजा का झंडा दोगी ? सोने का मुकुट दोगी ?'
मौत ने एक-एक गीत के बदले में एक-एक चीज़ दे दी; फिर बुलबुल ने
शांत गिरजाघर के बगीचे में जाकर गाया, जहाँ सफेद गुलाब खिलते हैं जहाँ
सफेद फूलों के खुशबूदार पेड़ हैं, जहाँ की घास आने वाले दुःखी लोगों के
आँसुओं से हरी है। मौत को अपने बगीचे की इतनी याद आई कि वह ठंडे
सफेद कोहरे की तरह खिड़की से बाहर उड़ गई।
'धन्यवाद, धन्यवाद' राजा ने फुसफुसाकर कहा, 'ओ दिव्य चिड़िया,
मुझे तुम याद आ गयी हो। मैंने तुम्हें अपने राज्य से निकाल दिया था, पर तुम
फिर भी आ गईं और तुमने मेरे लिए गाया। तुम्हारे गाने से मुझे सताने वाले बुरे
भूत-पिशाच गायब हो गए और स्वयं मौत मेरा दिल छोड़ गई। मैं तुम्हें क्या
इनाम दूँ?'
बुलबुल ने कहा, 'आपने मुझे पहले ही बहुत इनाम दे दिए। मैं कभी
नहीं भूल सकती कि जब मैंने आपके लिए पहली बार गाया था तो आपने
मुझे अपनी आँखों के आँसू दिए थे, और एक कवि के दिल के लिए वे
बेशकीमती हैं। पर अब आप सो जाओ ताकि आप ठीक और ताकतवर हो
जाओ। मैं आपके लिए गाती हूँ।'
छोटी चिड़िया गाती रही और राजा शांतिपूर्वक सोता रहा।
जब वह उठा तो उसकी खिड़की में सूरज चमक रहा था, अब उसे ऐसा
नहीं लग रहा था कि वह बीमार है। उसका कोई भी नौकर नहीं आया क्योंकि
उन्होंने सोचा था कि वह मर गया होगा, पर बुलबुल वहीं थी और गा रही थी।
राजा बोला, 'तुम्हें हमेशा आना पड़ेगा। जब तुम चाहोगी मैं तभी तुमसे
गाने को कहूँगा। और इस मशीनी चिड़िया के मैं टुकड़े-टुकड़े कर दूँगा।'
बुलबुल ने जवाब दिया, 'ऐसा मत करना! मशीनी चिड़िया जितना
अच्छा गा सकती थी, उसने गाया, उसे रखे रहिए। मैं महल में अपना घोंसला
नहीं बना सकती; मुझे मेरी इच्छा से आने दें, मैं आपकी खिड़की के बाहर
डाल पर बैठकर आपके लिए गाऊँगी। मेरे गाने से आपको खुशी मिलेगी। मैं
सिर्फ उनके बारे में नहीं गाऊँगी जो खुश हैं बल्कि दुखी लोगों के बारे में भी
गाऊँगी। मैं आपके आस-पास अच्छा-बुरा जो होता है सबके बारे में गाऊँगी,
पर फिर भी आपसे छिपी रहूँगी। क्योंकि एक गाने वाली चिड़िया बहुत दूर-
दूर तक उड़ती है। मैं गरीब मछुआरों की कुटिया में जाऊँगी और किसानों की
झोपड़ी में भी। मैं आपके महल और दरबार से बहुत दूर-दूर तक जाऊँगी। मैं
आपके मुकुट से ज्यादा आपके दिल को प्यार करती हूँ, पर यह भी मानती हूँ
कि मुकुट में पवित्रता की गंध होती है। मैं आऊँगी, आपके लिए गाऊँगी, पर
आपको एक वायदा करना होगा।'
राजा ने अपनी राजसी पोशाक पहन ली थी, राजदंड अपनी छाती से
सटाकर बोला, 'मैं तुमसे कोई भी वायदा कर लूँगा।'
'मेरी विनती है कि आप किसी को नहीं बताना कि आपके पास एक
चिड़िया है जो आपको सब कुछ बताती है। तब आप और भी अच्छे काम
करेंगे।' इतना कहकर बुलबुल उड़ गई।
नौकर अपने मरे हुए मालिक को देखने कमरे में आए। जब राजा ने
'शुभ प्रभात' कहा तो वे देखते रह गए।