भैंस का गीत : अमरीकी लोक-कथा
Buffalo Song : American Lok-Katha
(Folktale from Native Americans, Salish Tribe/मूल अमेरिकी, सैलिश जनजाति की लोककथा)
यह बहुत बहुत बहुत पहले की बात है जब धरती पर भैंस नहीं थी। भैंस ऊपर आसमान से धरती पर देखती और देखती कि लोग बहुत दुखी हैं।
सो उसने उपर से गाया — “मैं धरती पर जाऊँगी और लोगों की ज़िन्दगी बदल दूँगी।” उसके ये शब्द धरती पर रहने वाले लोगों ने सुने तो वह बहुत खुश हो गये।
यह कह कर वह भैंस एक पगडंडी पर भागी जो एक पहाड़ी की चोटी पर जाती थी। पहाड़ी की चोटी पर पहुँच कर वह वहाँ से बहुत नीचे कूद पड़ी।
लोग उसको देखने आये पर वह तो मर चुकी थी। वे बोले —
“हमारी माँऐं ठीक ही कहती थीं कि यहाँ हमारे लिये खाना है।”
उसके बाद उन्होंने कुछ खुरों की आवाजें आती सुनी जैसे
बिजली आसमान में कड़कती चली जाती है। उन्होंने देखा कि सारी
धरती तो भैंसों से भर गयी है ... ।
यह 1873 की बात है। वह दिन एक बुरा दिन था। भैंस की एक कटिया ने एक घाटी के घास के मैदान में अपनी माँ के शरीर से अपनी नाक रगड़ी। लोग वहाँ से अपनी अपनी गाड़ियाँ ले ले कर चले गये थे और उनके साथ ही चली गयी थीं बादल के गरजने की आवाजें भी।
जानवरों के उस छोटे से झुंड में और दूसरे जानवर जमीन पर उस कटिया के चारों तरफ चुपचाप पड़े हुए थे। पहाड़ में जहाँ वे रहते थे वह जगह उनकी हिफाजत नहीं कर पायी थी।
शिकारी लोग उन भैसों की केवल जीभ ही काट कर ले गये थे जिनको उन्होंने मारा था।
भैंस की यह कटिया एक ऐसी जगह से आयी थी जहाँ वह छिपे तौर पर रह रही थी। उसकी माँ उस भैंस के झुंड में सबसे बड़ी भैंस थी। एक वही थी जो झुंड को खतरे से बचाती थी और वही आज मर गयी थी।
उस कटिया ने फिर से अपनी माँ को हिलाया पर वह तो हिली नहीं। रात हो गयी थी सो वह कटिया अपनी माँ की ठंडी तरफ सिकुड़ कर बैठ गयी।
सूरज दो बार निकला और दो बार डूब चुका था कि एक घोड़ा दो नैज़ पर्स (Nez Perce) सवारों को ले कर उस घाटी में आया। एक सवार बड़ा था और दूसरा उसका बेटा।
अप्पालूसा घोड़े के खुरों की पत्थर के ऊपर आवाज नहीं होती थी क्योंकि उसके पैरों में सफेद आदमी के घोड़ों की तरह लोहे की नाल नहीं ठोकी जाती थी।
लड़के ने अपने पिता के पीछे से चारों तरफ देखा तो जो कुछ उसने देखा उसे देख कर उसको आश्चर्य तो नहीं हुआ पर वह दुखी हो गया।
तभी भैंस की कटिया ने अपना सिर उठाया। वह भूख से इतनी कमजोर थी कि वह न तो खड़ी ही हो सकी और न वहाँ से भाग ही सकी। वह लड़का घोड़े से नीचे कूदा और उस कटिया की तरफ भागा और उसके सिर को अपनी गोद में ले कर झुलाने लगा।
वह बोला — “ओह, यह तो अभी तक ज़िन्दा है। पिता जी, क्या हम इसकी कुछ सहायता कर सकते हैं?”
लड़के का पिता भी जिसका नाम था “दो हंस” घोड़े पर से नीचे उतर आया।
उसने घोड़े की लगाम जमीन पर ही छोड़ दी और अपने बेटे के कन्धे पर हाथ रख कर बोला — “लाल ऐल्क, इतने छोटे बच्चे को बहुत देखभाल की जरूरत होती है। हम लोगों को बहुत दूर जाना है और यह कटिया हमारे साथ सफर करने के लिये बहुत कमजोर है।”
लाल ऐल्क ने अपने पिता की तरफ ऐसे देखा जैसे कह रहा हो कि पिता जी इसको अपने साथ ले चलिये न।
दो हंस मुस्कुराया और बोला — “अच्छा ठीक है मेरे बेटे। हम इसको यहाँ नहीं छोड़ेगे। मेरा यहाँ एक दोस्त है जो यहीं पास में ही रहता है। वह ऐसे बे माँ बाप भैंसों के बच्चों को इकठ्ठा करता रहा है ताकि वह इन भैंसों की सहायता कर सके।
वह यह सोचता है कि अगर वह इनकी सहायता करेगा तो उसके बच्चों के नाती पोते मैदानों में घूमते हुए इन भैंसों के खुरों की आवाज फिर से सुन पायेंगे। उसका नाम है “चलता हुआ कायोटी” (Walking Coyote)। वह इस छोटे से बच्चे को देख कर बहुत खुश होगा।”
यह कह कर दो हंस ने अपनी बाँह उस कटिया के नीचे को लगायी और उसको उठा कर अपने घोड़े की तरफ ले गया। जब तक उसने उस कटिया को घोड़े की पीठ पर रखा और वह खुद भी उसके ऊपर चढ़ा तब तक वह घोड़ा चुपचाप खड़ा रहा।
लाल ऐल्क अपने पिता के पीछे बैठ गया और वे पश्चिम की तरफ के पहाड़ की तरफ जिधर सूरज छिपता था चल दिये।
सूरज बीच आसमान में ही था जब दो हंस और लाल ऐल्क एक कैम्प में पहुँचे जो पहाड़ की चोटी के साये में लगा हुआ था। दूसरी भैंसों की गन्ध कटिया की नाक में पहुँची तो वह अपना सिर उठाने और इधर उधर देखने के लिये कुलमुलायी।
अपने बेटे की सहायता से दो हंस ने उस कटिया को घोड़े से उतारा और उसको उसके काँपते हुई टाँगों पर खड़ा किया। वहाँ भैंसों का एक बाड़ा था जिसकी दीवार पत्तियों और डंडों को साथ साथ बाँध कर बनायी गयी थी। उसमें भैंसों के और भी कटरे और कटिया थे।
एक आदमी ने जो उस बाड़े के दरवाजे पर खड़ा हुआ था उन लोगों का स्वागत करने के लिये अपना हाथ हिलाया।
उस बाड़े के पीछे एक छोटा सा घर था जहाँ एक स्त्री और एक चौदह पन्द्रह साल का लड़का आग के ऊपर अपना दोपहर का खाना बना रहे थे। आदमी तो आगे बढ़ा पर वे स्त्री और लड़का वहीं बैठे रहे।
आदमी बोला — “आओ दो हंस, आज तुमको यहाँ देख कर बहुत अच्छा लगा।”
दो हंस भी बोला — “ओ चलते हुए कायोटी, मेरे पुराने दोस्त, मुझे भी तुमसे मिल कर बहुत अच्छा लग रहा है।”
फिर उसने चलते हुए कायोटी का हाथ पकड़ लिया और बोला
— “मेरे बेटे ने तुम्हारे लिये, तुम्हारे इस परिवार को बढ़ाने के लिये
एक और बिन माँ बाप का बच्चा पा लिया है। शिकारियों ने इसके
झुँड को देख लिया था तो बाकी सबको तो उन्होंने मार दिया अब
बस यही अकेली बची है।”
चलता हुआ कायोटी उस कटिया की तरफ आगे बढ़ा तो कटिया ने अपना सिर झुका लिया और इनकार में अपना खुर पटका पर कटिया के पैर बहुत कमजोर थे सो वह काँप गयी।
केवल लाल ऐल्क की उसको पकड़ने की कोशिश ने उस कटिया को गिरने से बचा लिया। चलते हुए कायोटी ने अपना बाँया हाथ उस कटिया को सहलाने के लिये आगे बढ़ाया।
जैसे ही उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया तो लाल ऐल्क ने उसके हाथ में भैंस के पूँछ के बालों की चोटी की तरह गूँथा हुआ ब्रेसलैट पड़ा देखा।
चलता हुआ कायोटी बोला — “ओ मेरे छोटे दोस्त, जब मैं चार साल का था तब मैंने अपना पहला भैंसों का झुंड देखा था।
मैं अपने चाचा के साथ घोड़े पर चढ़ा चला जा रहा था कि मैं सिन्येलेमिन में इन पहाड़ों के उस पार की घाटी में आ पहुँचा।
उस समय सारी धरती भैंसों से काली हुई रहती थी। एक कोने से ले कर दूसरे कोने तक भैंसे हीं भैंसें थीं। यह करीब तीस साल पहले की बात है। तुमने ऐसा कभी देखा है क्या?”
लाल ऐल्क ने ना में सिर हिलाया।
चलता हुआ कायोटी फिर बोला — “अपनी ज़िन्दगी में यह जो कुछ भी मैंने देखा उनमें वह सबसे अच्छी चीज़ थी। मैं तो उसको कभी भूल ही नहीं सकता।”
फिर उसने अपना वह भैंस की पूँछ के बालों वाला ब्रेसलैट अपनी कलाई से निकाला और लड़के के हाथ पर रख दिया और बोला — “यह तुमको वह याद दिलाने के लिये है जो मैंने देखा था।”
लाल ऐल्क को उसको धन्यवाद देने की कोई जरूरत नहीं थी। चलते हुए कायोटी को पता था कि उसके दिल में क्या था। लाल ऐल्क अपने पिता के पास वापस आ गया।
पिता ने अपने बेटे को अपने पीछे घोड़े पर बिठाने के लिये ऊपर खींचा और वे बिना पीछे देखे आगे चले गये।
चलते हुए कायोटी ने कटिया को उठाया और उसको भैंसों के बाड़े में ले गया। वह उसके हाथों से छूटने के लिये कुलमुलाती रही जब तक उसने यह गाना नहीं गाया —
हेचा हे, हेचा हो, हेचा हे ये हो
उसके बाद उसने उसको भैंसों के बाड़े में धीरे से उसके पैरों पर खड़ा कर दिया। वह उसके शरीर से लग कर खड़ी हो गयी और हलके हलके अपने पैरों को जमीन पर मारने लगी।
चलता हुए कायोटी बोला — “तुम तो बहुत बहादुर हो ओ मेरी छोटी बिजली की सी कड़क के खुर वाली । तुम्हारी भैंसों ने ही तो मेरे लोगों को ज़िन्दा रखा है। तुमने हमको खाना दिया और शरण दी। अब यह हमारी बारी है कि हम तुम्हारी सहायता करें।
मैं तुमको और इन भैंसों को पहाड़ों के उस पार ले जा रहा हूँ,। वहाँ काले कपड़े वाले फादर रहते हैं जो सेन्ट इगनेशियस मिशन के कैथोलिक पादरी हैं।
उनके पास बहुत अच्छे अच्छे घास के मैदान हैं। वे हमारी आत्मा की देखभाल करते हैं सो यकीनन वे तुम्हारी भी देखभाल करेंगे जो हमारी आत्मा को ताकतवर बनाते हैं।
तभी चलते हुए कायोटी की पत्नी एक कटोरा ले आयी और उसको छोटी बिजली की कड़क के खुर वाली के सामने रख दिया।
चलते हुए कायोटी ने कटिया से कहा — “यह मेरी पत्नी है मैरी। तुमको इसका धन्यवाद करना चाहिये क्योंकि यह इसी का विचार था। मैरी, इसको बताओ कि तुमने मुझसे क्या कहा था।”
मैरी मुस्कुरायी और अपने पति की तरफ देख कर बोली —
“हमारे सैलिश लोग जो भैंस को बहुत प्यार करते हैं उनका प्यार
बहुत जल्दी ही चला जायेगा। हम सब इसी वजह से बहुत दुखी
थे।
तो मैंने कहा कि तुम उन सब कटरे और कटियों को पकड़ो जिनको तुम पकड़ सकते हो और उनको हमारे लोगों के पास ले जाओ। जब वे उन भैंसों को देखेंगे तो बहुत खुश होंगे।”
तभी उनका बेटा वहाँ आ गया और उस कटिया के बराबर में आ कर खड़ा हो गया तो चलते हुए कायोटी ने उसका परिचय कराया — “यह मेरा बेटा है कम्बल बाज़ ।”
कम्बल बाज़ ने बड़े मुलायम हाथों से कटिया की नाक को थोड़ा नीचे की तरफ कटोरे की तरफ किया जिसमें जड़ें मिला हुआ पतला सा दलिया था। जैसे ही खाने की खुशबू बछिया के नथुनों में पहुँची तो उसने अपना मुँह नीचे किया और उसे खाना शुरू कर दिया।
चलते हुए कायोटी ने देखा और हाँ में सिर हिलाया और बोला
— “जब तक बर्फ यहाँ के दर्रों से हटेगी तब तक तुम पहाड़ों पर
जाने के लायक हो जाओगी।”
सूरज कई बार उगा और कई बार डूबा यानी समय गुजरता गया और छोटी बिजली की कड़क के खुर वाली बछिया बड़ी और मजबूत होती गयी और दूसरे कटरे और कटियों के साथ खेलने लगी।
जब चलते हुए कायोटी, मैरी और कम्बल बाज़ उन सब भैंसों को आपस में अपने सिर टकराते और एक दूसरे का पीछा करते देखते तो उनको विश्वास हो गया कि अब छोटी बिजली की कड़क के खुर वाली कटिया उनके भैंसों के झुंड की लीडर बन गयी है।
सारे कटरे और कटियें उन तीनों आदमियों को जो उनकी देखभाल कर रहे थे अच्छी तरह जानते थे और उन पर विश्वास भी करते थे पर वे जब बुलाते थे तो वे तब तक नहीं आते थे जब तक कि छोटी बिजली की कड़क के खुर वाली कटिया उनको ले कर नहीं जाती थी।
एक दिन चलते हुए कायोटी ने छोटी बिजली की कड़क के खुर वाली कटिया से कहा — “ओ छोटी बिजली की कड़क के खुर वाली कटिया, यह बहुत अच्छा है कि तुम अपने झुंड की लीडर बन गयी हो। हमको इन सबको पहाड़ के उस पार ले जाने में तुम्हारी सहायता की जरूरत पड़ेगी। पर वह कोई आसान सफर नहीं होगा।”
जब आधी गर्मियाँ बीत गयीं और जब भैंसों ने अपने जाड़ों वाले बाल गिरा दिये तब और बहुत सारे भैंसों के कटरे और कटियें वहाँ लाये गये। वह छोटा सा झुंड अब नौ कटरे और कटियों का हो गया था – पाँच कटरों का और चार कटियों का।
एक दिन सुबह सुबह चलते हुए कायोटी ने पहले ऊपर की तरफ ऊँचे ऊँचे पहाड़ों की तरफ देखा और फिर उस भैंसों के झुंड की तरफ देखा जो अब तक भैंसों के बाड़े के किनारे तक आ गया था।
फिर वह उनसे बोला — “दोस्तों, आज का दिन सफर के लिये बहुत ही अच्छा दिन है। हम लोग आज ही चलेंगे।”
तभी कम्बल चील भी बाड़े के पास आ गया और उसने छोटी बिजली की कड़क के खुर वाली कटिया की नाक सहलाने के लिये अपना हाथ बढ़ाया और बोला — “मैं तुम्हारे लिये आगे जा कर रास्ता देख आया हूँ। मुझे पता चल गया है कि रास्ता बहुत अच्छा है।
मैंने तुम्हारे लिये पीने का पानी भी ढूँढ लिया है और खाने के लिये घास भी, और ऐसी जगहें भी जहाँ तुम रात को आराम कर सकती हो।”
मैरी हँसी और बोली — “अगर तुम दोनों इन कटरे और कटियों से ऐसे ही बातें करते रहोगे तो हम लोगों को लौटने में रात हो जायेगी इसलिये अब हमको चलना चाहिये।”
मैरी ने बाड़े के दरवाजे का किवाड़ खोला और छोटी बिजली की कड़क के खुर वाली के पीछे पीछे सब कटरे और कटियें भी उस बाड़े में से निकल आये और वे सब उन आदमियों के पीछे पीछे पहाड़ के ऊपर की तरफ चल दिये।
रास्ता मुश्किल था। कहीं कहीं उनको पानी के नालों में से हो कर भी जाना पड़ा तो कहीं कहीं गिरे हुए पेड़ों को भी लाँघना पड़ा।
चलते हुए कायोटी और मैरी को छोटे कटरों को या तो गोद में उठा कर चलना पड़ा या फिर जब वे उनको गोद में ले जाते हुए थक गये तो उनको घोड़ों के ऊपर थैलों में लाद कर ले जाना पड़ा।
रात को सोने के लिये जब उन्होंने कैम्प लगाया तो चलते हुए कायोटी ने छोटी बिजली की कड़क के खुर वाली कटिया और दूसरे कटरों से कहा — “ज़रा ध्यान रखना। यहाँ पर भेड़िये और पहाड़ों वाले शेर हैं जिनको तुम्हारी गन्ध आ सकती है।”
फिर उसने गाना गाया —
हैचा हे, हैचा हो, हैचा हे ये हो
पहली दो रातें तो ठीक से निकल गयीं पर तीसरे दिन जब वे एक ऊँचे दर्रे से गुजर रहे थे एक भेड़िया उनको छोटे पाइन के पेड़ों के पीछे से देख रहा था।
रास्ता बहुत चढ़ाई वाला था और एक कटरा पीछे रह गया था। भेड़िया उसके पीछे पीछे आ गया।
छोटी बिजली की कड़क के खुर वाली कटिया ने हवा सूँघने के लिये अपना सिर उठाया तो उसको खतरे की गन्ध आयी तो वह घूमी और पहाड़ी पर नीचे की तरफ भागी।
वह छोटा कटरा पहाड़ी से निकले एक पत्थर के पीछे छिपा हुआ था। छोटी बिजली की कड़क के खुर वाली कटिया ने अपना सिर नीचा किया और अपना खुर ज़ोर से जमीन पर मारा तो भेड़िया घूमा और घूम कर पहाड़ी के नीचे भाग गया।
चलता हुआ कायोटी और कम्बल बाज़ यह सब देख रहे थे। वे भेड़िये के भाग जाने पर एक दूसरे को देख कर मुस्कुराये।
कम्बल बाज़ छोटी बिजली की कड़क के खुर वाली कटिया को गले लगाते हुए बोला — “तुम तो सचमुच में लीडर हो।”
इसके जवाब में छोटी बिजली की कड़क के खुर वाली ने कम्बल बाज़ के मुँह पर अपनी नाक रगड़ दी। पलट कर फिर उसने अपना सिर एक छोटे से कटरे के शरीर से उसको ऊपर ले जाने के लिये रगड़ दिया।
और कई दिन गुजर गये और झुंड ने पहाड़ी के दूसरी तरफ उतरना शुरू कर दिया था। यह रास्ता बहुत पथरीला और ढालू था।
जब वे एक तंग रास्ते से गुजर रह थे तो छोटी बिजली की कड़क के खुर वाली ने कटिया ने अपना खुर पटक कर पलट कर ऊपर की तरफ देखा तो उसको पत्थर गिरने की आवाज आयी। फिर उनके पैरों तले जमीन भी काँपने लगी।
मैरी चिल्लायी — “अरे यह तो जमीन गिर रही है ।”
उसने अपनी बाँहें हिलायीं और सब कटरे और कटियों को छोटी बिजली की कड़क के खुर वाली के पीछे कर दिया जो उनको एक बड़ी चट्टान की तरफ ले कर जा रही थी जहाँ उनको सुरक्षा मिल सकती थी।
कम्बल बाज़ और चलते हुए कायोटी दोनों ने एक एक कटरा पकड़ लिया। ढीली मिट्टी और बड़े बड़े पत्थर ऊपर से नीचे एक नदी के रूप में लुढ़क कर आ रहे थे।
जब सब कुछ शान्त हो गया तो चलते हुए कायोटी ने अपने कटरों को गिना तो उनमें एक कटरा नहीं था। वह उस जमीन गिरने में कहीं चला गया था।
अगर छोटी बिजली की कड़क के खुर वाली कटिया नहीं होती तो शायद और कई कटरे और कटियें भी उसमें चले गये होते।
सेंट इगनेशियस मिशन की तरफ चलते चलते कायोटी का दिल दुखी हो गया। वह उन भैंसों से बोला — “हम तुमसे अलग होना नहीं चाहते पर क्या करें हमारा परिवार गरीब है। हम तुमको काले कपड़े पहने फादर को दे देंगे। वे तुम्हारी बहुत अच्छे से देखभाल करेंगे।”
पर मिशन के पादरी चलते हुए कायोटी के जानवरों को लेना नहीं चाहते थे। यह सुन कर चलता हुआ कायोटी बहुत नाउम्मीद हुआ। वहाँ से चलते हुए कायोटी बोला — “मुझे लगा कि शायद वे समझते होंगे कि भैंसें हमारी आत्मा को कितना मजबूत बनाती हैं।”
मैरी बोली — “तुम फिकर न करो। अगर पादरी ने इनको लेने से मना कर दिया तो तुम इतने नाउम्मीद न हो। हम लोग अपने सैलिश लोगों के पास चलते हैं।
हमारे सैलिश लोग जो यहाँ पास में ही रहते हैं इन भैंसों के देख कर बहुत खुश होंगे। वे इनकी देखभाल करने में हमारी सहायता जरूर करेंगे।”
यकीनन, जैसे ही भैंसों के आने की बात उस घाटी में फैली तो वहाँ रहते हुए लोग बहुत खुश हो गये। चलते हुए कायोटी, मैरी और कम्बल बाज़ के लिये एक दावत का इन्तजाम किया गया।
सैलिश का सरदार बोला — “हम बड़े खुशकिस्मत हैं कि हमारा भाई और उसका परिवार हमारे लिये भेंट ले कर आया है।”
चलते हुए कायोटी और उसके परिवार के लिये ज़िन्दगी आसान नहीं थी। बदलते मौसम के साथ भैंसों के झुंड को घास चराने के लिये इस घास के मैदान से उस घास के मैदान तक ले कर जाना उनका सारा समय और ताकत ले लेता था।
एक जाड़ा आया और फिर दूसरा। सब बछड़े और बछियें बड़े हो गये थे। जब तीसरा वसन्त आया तो छोटी बिजली की कड़क के खुर वाली कटिया और तीन दूसरी भैंसों ने बच्चे दिये। भैंसें अब आजादी से घूमती थीं।
चलता हुआ कायोटी अपने झुंड को हर साल बढ़ता हुआ देख कर बहुत खुश था। उसका अपना परिवार भी बढ़ रहा था। उसके और मैरी के तीन लड़कियाँ और हो गयी थीं।
वे सालों साल बहुत मेहनत से काम करते रहे थे पर फिर भी वे बहुत गरीब थे। अब 1884 आ गया था।
एक दिन चलते हुए कायोटी ने कहा — “मेरे भैंस बच्चों, अब हमें तुम्हारी सहायता की जरूरत है। काश हमें कोई और मिल जाता जिसको यह याद होता कि वे दिन कितने सुन्दर थे जब सारे मैदान भैंसों से भरे रहते थे।”
माइकल पाबलो एक ऐसा आदमी था जिसको वे दिन याद थे जब सारे मैदान भैंसों से भरे रहते थे। माइकल का पिता मैक्सिको का रहने वाला था और उसकी माँ एक पीगन इन्डियन थी। वह इस घाटी में काम करने के लिये बहुत साल पहले आया था और अब एक बहुत अमीर आदमी बन गया था।
जब वह गाँवों में जाता तो वह अक्सर चलते हुए कायोटी के भैंसों के झुंड को देखता तो उसको देखते ही उसका दिल बहुत खुश हो जाता।
सो एक दिन वह चलते हुए कायोटी के पास गया और बोला
— “मुझे तुम्हारा भैंसों को वापस लाने वाला यह सपना बहुत पसन्द
है। हमारी घाटी ऐसे झुंड के लिये बहुत ही अच्छी है।
वहाँ बहुत बड़े बड़े घास के मैदान हैं, जाड़ों के तूफान से बचने के लिये अच्छी जगहें हैं और बहुत सारे इन्डियन लोग हैं जो इन जानवरों को बहुत प्यार करते हैं। मैं तुम्हारे इस झुंड को खरीदना चाहता हूँ।”
चलते हुए कायोटी के लिये उन भैंसों से अलग रहना बहुत मुश्किल काम था क्योंकि वे उसके परिवार के साथ कितने समय से रह रही थीं। पर आखीर में उसने हाँ में अपना सिर हिला ही दिया।
चलता हुआ कायोटी बोला — “मेरे दोस्त, मैं तुमको अपने बच्चे तुम्हारे भरोसे पर देता हूँ।” और इस तरह यह सौदा हो गया।
और इस तरह चलते हुए कायोटी और उसके परिवार ने छोटी बिजली की कड़क के खुर वाली और दूसरी भैंसें माइकल पाबलो को दे दीं। फ्लैटहैड नदी के पास पहाड़ों की छाया में उन भैंसों को बड़ा सुन्दर घर मिल गया।
उसके बाद माइकल पाबलो ने चाल्र्स ऐलर्ड से साझेदारी कर ली क्योंकि उसको भी भैसों का समय याद था। अब पाबलो ऐलर्ड का झुंड सैंकड़ों में बढ़ गया था।
सैलिश लोगों को उस झुंड पर बड़ा घमंड था और इससे उनकी आत्मा को बहुत ताकत मिलती थी क्योंकि यह उनको उस समय की याद दिलाता था जब वे और भैंसें सब एक साथ एक ही जमीन पर रहते थे।
जब भी वे घाटी में भैंसों के खुरों की आवाजें सुनते तो उनको यह गाना सुनायी पड़ता –
हैचा हे, हैचा हो, हैचा हे ये हो
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है)