बुद्धिवादी (व्यंग्य) : हरिशंकर परसाई
Buddhivadi (Hindi Satire) : Harishankar Parsai
आशीर्वादों से बनी जिंदगी है ।
बचपन में एक बूढ़े अंधे भिखारी को उन्होंने हाथ पकड़कर सड़क पार करा दिया था । अंधे भिखारी ने आशीर्वाद दिया- बेटा, मेरे जैसे हो जाना । अंधे भिखारी का मतलब लम्बी उम्र से रहा होगा । पर उन्होंने दूसरा मतलब निकाला और अध्यापक हो ।
अध्यापक थे, तब एक टिटहरी की प्राण-रक्षा की थी । टिटहरी ने आशीर्वाद दिया- भैया, मेरे जैसे होना । टिटहरी का चाहे जो भी मतलब रहा हो, पर वे "इंटेलेक्चुअल" बुद्धिवादी हो गए । हवा में उड़ते हैं, पर जब जमीन में सोते हैं, तो टाँगे ऊपर करके- इस विश्वास और दंभ के साथ कि आसमान गिरेगा तो पाँवों से थाम लूंगा ।
आशीर्वादों से बनी जिंदगी का अब ये हाल है कि बंधी आमदनी दो-ढाई हज़ार कि है । बँगला है, कार है । दोनों लड़के अच्छी नौकरी पा गए हैं । लड़की रिसर्च कर रही है । ऐसे में शरीफ से शारीफ आदमी इंटेलेक्चुअल हो जायेगा- वे कोई ख़ास शरीफ भी नहीं हैं । वे होने में ऐसे ही लेट हो गए ।
दो साल विदेशों में रहकर वे लौटे तो परिचितों में हल्ला हो गया कि वे बुद्धिवादी हो गए हैं । तमाशा-प्रेमी लोग उन्हें देखने जाते और बताते कि वे सचमुच बुद्धिवादी हो गए । एक ने उन्हें खिड़की से झांककर देखा और हमें बताया- वह तो सचमुच बुद्धिवादी हो गया । कमरे में बैठा छत को ऐसे देख रहा था जैसे हिसाब लगा रहा हो कि छत कितने सालो में गिर जाएगी । एक ने उन्हें बगीचे में घूमते देख लिया । कहने लगा- जब वह फूलो कि तरफ देखता, तो फूल कांपने लगता । वह भयंकर बुद्धिवादी हो गया है ।
एक दिन हम उनसे मिलने पहुंचे- में और मेरा एक मित्र । फोन पर उन्होंने आधे घंटे बाद आने को कहा था । हम उन दिनों पूर्वी बंगाल के तूफ़ान-पीड़ितों के लिए चंदा इकठ्ठा कर रहे थे । सोचा, बुद्धिवादी को देख भी लेंगे और कुछ चन्दा भी ले लेंगे ।
उनके कमरे में हम घुसे । सचमुच वो बदल गए थे । काली फ्रेम का चश्मा निकल गया था । उसकी जगह पतली सुनहरी फ्रेम का चश्मा वे लगाए थे । आँखों कि चमक और फ्रेम कि चमक एक-दूसरी को प्रतिबिंबित करके चकाचौंध पैदा कर रही थीं । मुद्रा में स्थायी खिन्नता । खिन्नता दुखदायी होती है । मगर उनके चेहरे पर सुखदायी खिन्नता थी । खिन्नता दुनिया कि दुर्दशा पर थी । उसमे सुख का भाव इस गर्व से मिला दिया था कि मैंने इस दुर्दशा को देख लिया । बाईं तरफ का नीचे का होंठ कान कि तरफ थोडा खिंच गया था । जिससे दोनों होंठो के बीच थोड़ी सी जगह हो गयी थी । स्थायी खिन्नता व लगातार चिंतन से ऐसा हो गया था । पुरे मुंह में वही एक छोटी-सी सेंध थी जिसमे से उनकी वाणी निकलती थी । बाकी मुंह बंद रहता था । हम पुरे मुंह से बोलते हैं, मगर बुद्धिवादी मुंह के बाएं कोने को ज़रा-सा खोलकर गिनकर शब्द बाहर निकालता है । हम पूरा मुंह खोलकर हँसते हैं, बुद्धिवादी बाईं तरफ के होंठो को थोड़ा खींचकर नाक कि तरफ ले जाता है । होंठ के पास के नथुने में थोड़ी हलचल पैदा होती है और हम पर कृपा के साथ यह संकेत मिलता है कि- आय ऍम एम्युज्ड ! तुम हँस रहे हो, मगर में सिर्फ थोड़ा मनोरंजन अनुभव कर रहा हूँ । गंवार हँसता है, बुद्धिवादी सिर्फ रंजित हो जाता है ।
टेबल पर ५-६ किताबें खुली हुयी उलटी इस तरह पढ़ी हैं जैसे पड़ते-पड़ते लापरवाही से डाल दी हों । पर वे लापरवाही से ऐसे छोड़ी गयी हैं कि हर किताब का नाम साफ़ दिख रहा है । किताबों कि समझदारी पर मैं न्यौछावर हो गया । लापरवाही से एक दुसरे पर गिरेंगी तो भी इस सावधानी से कि हर किताब का नाम न दबे । मैं समझ गया कि वे किताबों को पढ़ नहीं रहे थे । हमें आधा घंटा बाद उन्होंने बुलाया था । इस आधा घंटे में बढ़ी मेहनत से इन किताबों कि बेतरतीबी साधी होगी । बुद्धिजीवी बार-बार किताबों कि तरफ हमारा ध्यान खीचने कि कोशिश करता है । वह चाहता है, हम चकित हों और कहें- कितनी तरह कि पुस्तकें पड़ते हैं आप ! इनके तो हमने नाम भी नहीं सुने । हम चकित होने में देर कर रहे हैं । बुद्धिवादी थोडा बेचैन होता हैं ।
उन्होंने हमें इस तरह बैठाया है कि हमारी तरफ देखने में उनको सिर को ३५ डिग्री घुमाना पढ़े । ३५ डिग्री सिर घुमाकर, सोफे पर कुहनी टिकाकर, हथेली पर ठुड्डी को साधकर वे जब भर नजर हमें देखते हैं तो हम उनके बौद्धिक आतंक से दब जाते हैं । हम अपने को बहुत छोटा महसूस करते हैं । उनकी मुद्रा और दृष्टि में जादू पैदा हो जाता है । जब इस कोण से हमें देखकर वे पेट में से निकलती-सी धीमी घम्भीर आवाज में कहते हैं- टु माय माइंड- तो हमें लगता है, यह आवाज ऊपर बादलो से आ रही है । पर आसमान तो साफ़ है । बढ़ी कोशिश से हम यह जान पाते कि यह आवाज बुद्धिवादी के होंठों के बाएं बाजू कि पतली सी सेंध में से निकली है । जब वे "टु माय माइंड" कहते हैं, तब मुझे लगता है, मेरे पास दिमाग नहीं है । दुनिया में सिर्फ एक दिमाग है और वह इनके पास है । जब वे ३५ डिग्री सिर को नहीं घुमाएं होते हैं और हथेली पर ठुड्डी नहीं होती है तब वे बहुत मामूली आदमी लगते हैं । कोण से बुद्धिवाद साधने कि कला सीखने में अभ्यास लगा होगा उनको ।
बुद्धिवादी में लय है । सिर घुमाने में लय है, हथेली जमाने में लय है, उठने में लय हैं, कदम उठाने में लय है, अलमारी खोलने में लय है, किताब निकालने में लय है, किताब के पन्ने पलटने में लय है । हर हलचल धीमी है । हल्का व्यक्तित्व हडबडाता है । इनका व्यक्तित्व बुद्धि के बोझ से इतना भारी हो गया है कि विशेष हरकत नहीं कर सकता । उनका बुद्धिवाद मुझे एक थुलथुल मोटे आदमी की तरह लगा जो भारी कदम से धीरे-धीरे चलता है ।
वे बोले - मुझे यूरोप जाकर समझ में आया कि हम लोग बहुत पतित हैं ।
मैंने कहा - अपना पतन को जानने के लिए आपको इतनी दूर जाना पड़ा।
बुद्धिवादी ने जवाब दिया- जो गिरनेवाला है वह नहीं देख सकता कि वह गिर रहा है । दूर से देखने वाला ही उसके गिरने को देख सकता है ।
उस वक़्त हमें लगा कि हम एक गड्डे में गिरे हुए हैं और यह गड्डे के ऊपर से हमें बता रहा है कि हम गिर गए हैं । उसने हमारा गिरना देख लिया है इसलिए वह गिरने वालों में नहीं है ।
मेरे मित्र ने पूछा- हमारे पतन का कारण क्या है ।
बुद्धिजीवी ने आँखें बंद करके सोचा । फिर हमारी तरफ देख कर कहा- टु माय माइंड, हममें करेक्टर नहीं है ।
अपने पतन कि बात उन्होंने इस ढंग से कही कि लगा, उन्हें हमारे पतन से संतोष है । अगर हम पतित न होते तो उन्हें ये जानने और कहने का सुयोग कैसे मिलता कि हम गिरे हुए हैं और हमारा गिरना वे साफ़ देख रहे हैं ।
साथी ने अब मुद्दे कि बात कहना जरुरी समझा । बोला- पूर्वी बंगाल में तूफ़ान से बड़ी तबाही हो गयी है ।
उसने मृत्यु, बिमारी, भुखमरी कि करुण गाथा सुना डाली ।
बुद्धिवादी सुनता रहा । हम दोनों असर का इंतज़ार कर रहे हैं । असर हुआ । बुद्धिवादी ने मुंह के कोने से शब्द निकाले- हाँ, मैंने अखबार में पड़ा है ।
उस वक़्त हमें लगा कि पूर्वी बंगाल के लोग कृतार्थ हो गए हैं कि उनकी दुर्दशा के बारे में इन्होने पढ़ लिया । तूफ़ान सार्थक हो गया । बिमारी और भुखमरी पर उन्होंने बड़ा एहसान कर डाला ।
मैंने कहा- हम लोग उन पीड़ितों के लिए धन संग्रह करने निकले हैं ।
हम चन्दा लेने आये थे । वे समझे, हम ज्ञान लेने आये हैं ।
उन्होंने हथेली पर ठुड्डी रखी और उसी मेघ-घम्भीर आवाज़ में बोले- टु माय माइंड- प्रकृति संतुलन करती चलती है । पूर्वी बंगाल स्तान कि आबादी बहुत बढ़ गयी थी । उसे संतुलित करने के लिए प्रकृति ने तूफ़ान भेजा था ।
इसी बीच पूर्वी बंगाल में उनकी सहायता के अभाव में एक आदमी और मर गया होगा ।
अगर कोई आदमी डूब रहा हो, तो वे उसे बचायेंगे नहीं, बल्कि सापेक्षिक घनत्व के बारे में सोचेंगे ।
कोई भूखा मर रहा हो, तो बुद्धिवादी उसे रोटी नहीं देगा । वह विभिन्न देशों के अन्न-उत्पादन आंकड़े बताने लगेगा ।
बीमार आदमी को देखकर वह दवा का इन्तेजाम नहीं करेगा । वह विश्व स्वास्थ्य संगठन कि रिपोर्ट उसे पढ़कर सुनाएगा ।
कोई उसे अभी आकर खबर दे कि तुम्हारे पिताजी की मृत्यु हो गयी, तो बुद्धिवादी दुखी नहीं होगा । वह वंश विज्ञान के बारे में बताएं लगेगा ।
हमने चंदे की उम्मीद छोड़ दी । अगर हमने बुद्धिवादी से चंदा माँगा तो वह दुनिया की अर्थव्यवस्था बताने लगेगा ।
अब हमने अपने-आपको बुद्धिवादी को सौंप दिया ।
वह सोच रहा था, सोच रहा था । सोचकर बड़ी गहराई से खोजकर लाया वह सत्य जिसे आजतक कोई नहीं पा सका था । बोला- टु माय माइंड, अवर ग्रेटेस्ट एनिमी इज पावर्टी । (मेरे विचार में, हमारा सबसे बड़ा शत्रु गरीबी है।)
एक वाक्य सूत्र रूप में कहकर बुद्धिवादी ने हमें सोचने के लिए वक़्त दे दिया । हमने सोचा, खूब सोचा । मगर गरीबी की समस्या के हल के लिए फिर बुद्धिवादी की तरफ लौटना पड़ा । मैंने पूछा- गरीबी दुनिया से कैसे मिट सकती है ?
बुद्धिवादी ने कहा- मैंने सोचा है । पूँजीवाद और साम्यवाद दोनों मनुष्य-विरोधी हैं । ये दोनों गरीबी नहीं मिटा सकते । हमें आधुनिक तकनीकी साधनों का प्रयोग करके खूब उत्पादन बढ़ाना चाहिए ।
मैंने पूछा- मगर वितरण के लिए क्या व्यवस्था होगी ?
बुद्धिवादी ने कहा- वही मैं आजकल सोच रहा हूँ । एक थ्योरी बनाने में लगा हूँ ।
मनुष्य जाति की तरफ आशा की एक किरण बढाकर बुद्धिवादी चुप हो गया ।
मेरे साथी ने कहा- हमें समाज का नव-निर्माण करना पड़ेगा ।
बुद्धिवादी ने फिर हम बौनों को घूरकर देखा । बोला- समाज का पहला फ़र्ज़ यह है की वह अपने को नष्ट कर ले । सोसाइटी मस्ट देस्त्रॉय इटसेल्फ ! यह जाति, वर्ण और रंग और ऊँच-नीच के भेदों से जर्जर समाज पहले मिटे, तब नया बने ।
सोचा पूछूं- सारा समाज नष्ट हो जायेगा तो प्रकृति को मनुष्य बनाने में कितने लाख साल लग जायेंगे ? मैंने पूछा नहीं । यह सोचकर संतोष कर लिया की सिर्फ मैं समझता हूँ, यह एहसास आदमी को नासमझ बना देता है ।
बुद्धिवादी मार्क्सवादी की बात कर लेता है । फ्रायड और आइन्स्टीन की बात कर लेता है । विवेकानंद और कन्फुसिय्स की बात कर लेता है । हर बात कहकर हमें उसे समझने और पचाने का मौक़ा देता है । वह जानता है, ये बातें हम पहली बार सुन रहे हैं ।
हम पूछते हैं- फिर दुनिया की बिमारी के बारे मैं आपने क्या सोचा है ? किस तरह यह बीमारी मिटेगी ?
वह आँख बंद कर लेता है । सोचता है ! हम बड़ी बात सुनने के लिए तैयार हो जाते हैं । बुद्धिवादी कहता है: अल्तिमेत्ली आई हेव टू रिटर्न टू गाँधी । (आखिर मुझे गांधी की तरफ लौटना पड़ता है।) 'लव्ह' प्रेम ।
बुद्धिवादी अब क्रांतिकारिता पर आ गया है । कहता है- स्टुडेंट पावर ! यूथ पावर ! हमें अपने समाज के युवा वर्ग को आजादी देनी चाहिए । वही पलटेंगे इस दुनिया को । वही बदलेंगे । जो कौम अपने युवा वर्ग को दबाती है, वह कभी ऊपर नहीं उठसकती । यह किताब देखिये मर्क्युज़ की । यह कोहेन बेंडी की किताब !
बुद्धिवादी गंभीर हो गया । उसने अंतिम सत्य कह दिया ।
हम उठने की तैयारी करने लगे । इसी वक़्त नौकर ने एक लिफाफा लाकर उन्हें दिया।
बुद्धिवादी चिट्ठी पड़ने लगा । पड़ते-पड़ते उसमे परिवर्तन होने लगे । ३५ डिग्री का सिर का कोण धीरे-धीरे कम होने लगा । बुद्धिवादी सीधा बैठ गया । होंठ की मरोड़ मिट गयी । आँखों मैं बैठी बुद्धि गायब हो गयी । उसकी जगह परेशानी आ गयी । चेहरा सपाट हो गया । सांस जोर से चलने लगी । बुद्धिवादी निहायत बौड़म लगनेलगा ।
बुद्धिवादी ने चिट्ठी को मुट्ठी में कस लिया । चश्मा उतार लिया । हम नंगी आँखें देख रहे थे । वे बुझ गयी थीं । चमक चश्मे के साथ ही चली गयी थी । दंभ शायद मुट्ठी में चिट्ठी के साथ दब गया था ।
मैंने कहा- आप परेशान हो गए । सब खैर तो हैं ।
बुद्धिवादी हतप्रभ था । वह हमारे सामने अब उस असहाय बच्चे की तरह हो गया था जिसका खिलौना बाल्टी में गिर गया हो ।
गहरी सांस लेकर बुद्धिवादी ने कहा- यह ज़माना आ गया !
मैंने पूछा- क्या हो गया ?
बुद्धिवादी ने कहा- लड़की अपनी मौसी के घर लखनऊ गयी थी। वहीँ उसने शादी करली । हमें पता तक नहीं ।
मैंने पूछा- लड़का क्या करता है ?
बोले- इंजिनीयर है ।
मैंने कहा- फिर तो अच्छा है ।
बुद्धिवादी उखड पड़ा- क्या अच्छा है ? मैं उसे जेल भिजवाकर रहूँगा ।
हमारे सामने एक महान क्षण उपस्थित था । मनुष्य जाति के आतंरिक संबंधो के बारे में कोई महान सत्य निकलनेवाला है उनके मुख से । अब उनका मुँह पूरा खुलने लगा है । चश्मा लगाए वे तब होंठों की सम्पुट के कोने से गुरु-गंभीर आवाजनिकालते थे । अब पूरा मुँह खोलकर बोलते हैं ।
बुद्धिवादी इस स्थिति का क्या विश्लेषण देता है ! यूथ पावर ? स्त्री-पुरुष संबंधो की बुनियाद ? विवाह की स्वतंत्रता ?
हम उनके मुँह की तरफ देखते हैं । उनकी परेशानी बढती जाती है । चिट्ठी को वे लगातार भींच रहे हैं । वे शायद पत्नी को यह खबर बताने को आतुर हैं । पर हम यह जानने को आतुर हैं की इतनी अच्छी शादी को लेकर ये परेशान क्यों हैं ? जरुर इसमें कोई महान दार्शनिक तथ्य निहित है, जो सिर्फ बुद्धिवादी समझता है ।
मैंने कहा- लड़का-लड़की बड़े हैं । शादी मौसी के यहाँ हुई है । वर अच्छा है । फिर आप दुखी और परेशान क्यों है ? हम जिज्ञासुओं को यह रहस्य बताइए ताकि हम जीवन के प्रति बुद्धिवादी दृष्टिकोण अपना सकें ।
उन्होंने नंगी बुझी आँखों से हमारी तरफ देखा । फिर अत्यंत भरी आवाज़ में कहा- वह लड़का कायस्थ है न !