बुद्धिमती : हरियाणवी लोक-कथा
Buddhimati : Lok-Katha (Haryana)
शिल्पवर्मा नामक एक प्रौढ़ वास्तुकार था। उसने अपने बेटे को वास्तुकला की सारी शिक्षा दी, लड़का भी वास्तुकला में प्रवीण हो गया था। तभी उन्हें पडोस के एक राज्य के राजा के यहाँ से एक महल तामीर करने के लिए निमन्त्रण आया। हालाँकि पड़ोसी राज्य के राजा की शिल्पवर्मा के राजा से अनबन भी थी। मगर कहावत है स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान ‘सर्वत्रपूज्यते’ (राजा केवल अपने देश में तथा विद्वान अपने गुणों के कारण हर स्थान में पूजा जाता है।)
शिल्प वर्मा था ही ऐसा वास्तुकार, उसकी ख्याति दूर-दूर तक थी, उसने अनेक धनाढ्यों की हवेलियाँ तथा राजाओं के महल अपनी देख-रेख में बनवाए थे। पिता ने सोचा, वहाँ तो महल बनता-बनाते कई साल लग जाएँगे। क्यों न बेटे का विवाह ही करता चलूँ। विवाह के एक-दो साल बाद बेटा भी उसके साथ आ मिलेगा काम करने के लिए। वह अपने बेटे के लिए सुयोग्य वधू की तलाश में जुट गया। वह जहाँ भी किसी लड़की को अपने बेटे के लिए देखने जाता सबसे एक ही सवाल करता।
“बेटी कहो, दिन कौन-से अच्छे होते हैं?
“एक लड़की ने उत्तर दिया।
“जी फागुन के, क्योंकि तब न जाड़ा होता है न गरमी।
दूसरी लड़की ने उत्तर दिया, “जी गरमी के, तब आम खरबूजे, तरबूज जैसे रसीले फल मिलते हैं।
तीसरी लड़की ने उत्तर दिया, “जी बरसात के, रिमझिम बरसात शीतलता लेकर आती है तथा धरती को हरियाली की औढनी दे जाती है।
चौथी ने कहा “शरद ऋतु, तब मेवे-पकवान खाने का आनन्द आता है।
शिल्पवर्मा ने चारों लड़कियों को इस काबिल नहीं समझा कि वे उसके बेटे से विवाह कर सके। यूँ चारों अच्छे, खाते-पीते परिवारों की लड़कियाँ थी तथा उनके पिता भी अच्छे नामी-गिरामी वास्तुकार थे।
पाँचवीं लड़की के पिता तो नामी वास्तुकार थे मगर उनकी मृत्यु हो चुकी थी। वह लड़की उस वास्तुकार की अकेली सन्तान थी। उसकी माँ गरीबी में उसका पालन-पोषण बड़ी मुश्किल से कर रही थी। उसका नाम था-सुगन्धा, शिल्पवर्मा ने सुगन्धा से पूछा, “बेटी कहो, दिन कौन से अच्छे होते हैं?” तो उसने उत्तर दिया “जी, वे दिन जो बीत गए।”
शिल्प वर्मा ने पूछा “क्यों?”
तो उसने उत्तर दिया, “जी, आने वाले दिनों का क्या पता, कैसे निकले अनिश्चितता है ना?”
शिल्पवर्मा ने अपने बेटे के लिए उसे चुन लिया। दोनों का विवाह कर शिल्पवर्मा दूसरे राज्य में महल निर्माण हेतू चला गया।
लगभग डेढ़ वर्ष बाद, एक पुत्र होने पर शिल्पवर्मा का पुत्र भी उससे आ मिला। राजा का महल सातवीं मंजिल पर आ पहुंचा था। अभी पूरा ही नहीं हुआ था कि उस महल की प्रशंसा देश-विदेश में फैल चली थी। अनेक राजाओं के राजदूत महल पूरा होने पर शिल्पवर्मा को अपने राज्य में राजमहल बनाने हेतु निमन्त्रण देने पहुंच रहे थे।
राजा क्रूर सिंह, जिसका महल अब शिल्पवर्मा बना रहे थे, सोचने लगा कि शिल्पवर्मा ने जो महल उसका बनाया है, वैसा महल और किसी राजा का नहीं है और शिल्पवर्मा अगर महल बनाता है तो हो सकता है कि वह उसके महल से भी सुन्दर महल बना दे। अतः उसने सोच लिया कि महल पूरा होने पर वह दोनों बाप-बेटा को मरवा देगा।
इधर शिल्प वर्मा भी गुणी व्यक्ति था, वह राजा की बात भाँप गया। अतः वह सातवीं मंजिल की दीवार बनाता और अगले ही दिन यह कह कर तुड़वा देता कि यह तो गलत बनी है। ऐसा करते-करते कई महीने बीत गए।
आखिर राजा ने पूछा, “शिल्पवर्मा! क्या बात है? महल पूरा क्यों नहीं हो रहा? तो शिल्पवर्मा ने कहा, “महाराज! मेरा सूत टूट गया है (सूत वह धागा होता है, जिससे वास्तुकार दीवार का सीधापन तथा लम्ब नापते हैं।) राजा क्रूर सिंह ने कहा, “मेरे राज्य में सूत की कोई कमी है क्या? शिल्पवर्मा कहने लगा, “नहीं महाराज! साधारण सूत से ठीक प्रकार से काम नहीं हो सकता। मेरे गुरु का दिया हुआ मन्त्र सिद्ध सूत मेरे घर पर है। मेरे बेटे को घर जाने दें, वह सूत लेकर आ जाएगा। उसने सोचा था, इस तरह से कम से कम बेटे की जान तो बच जाएगी। मगर क्रूर सिंह ने सोचा कि इसका बेटा भी तो इतना ही बड़ा गुणी है। उसे छोडना उचित नहीं होगा। सो कहा, “तुम दोनों को तो महल पूरा हुए बिना जाने नहीं दूंगा। हाँ अपने आदमी भेज कर, मैं सूत तुम्हारे घर से मंगवा देता हूँ।
शिल्पवर्मा ने कहा, “महाराज! सूत हमारे घर के तहखाने में रखा है तथा उसे या तो मैं या मेरा लड़का या जिसका भवन हम बना रहे हैं वह स्वयं या उसका लड़का ही ला सकते हैं। दूसरे को तो उसके छूने की भी मनाही है मेरे गुरु की।
राजा ने सोचा, वह तो दुश्मनी के कारण शिल्पवर्मा के राजा के राज्य में जा नहीं सकता क्योंकि पहचान लिया जाएगा। अतः उसने अपने इकलौते बेटे को सूत लेने को भेजने का निर्णय ले लिया।
राजा क्रूर सिंह का बेटा भेष बदल कर अपने एक मुसाहिब के साथ सूत लेने चल दिया। शिल्प वर्मा ने उसे एक खत दिया था कि इसे मेरे बेटे की पत्नी को दे देना। वह तुम्हे सूत तक पहुँचा देगी।
राजकुमार ने शिल्पवर्मा के घर जाकर उसकी पुत्र वधू को वो पत्र सौंप दिया। खत में लिखा था।
म्हारों सूत कसूत है
थारे सूताँ सूत
राजकुमार आ रहयो सै
इसने देना सूत
वधू बहुत समझदार थी, उसने राजकुमार की बड़ी आवभगत की फिर कहा, “राजकुमार जी, आप अस्त्र-शस्त्र बाहर रखकर, नंगे पाँव तहखाने में जाकर पवित्र सूत ले आएँ, स्त्रियों का वहाँ जाना वर्जित है। वह उसे लेकर मकान के अन्दर चली गई। मुसाहिब बाहर बैठा रहा। जैसे ही राजकुमार तहखाने में उतरा सुगन्धा ने दरवाजा बन्द कर ताला लगा दिया तथा बाहर आकर क्रूरसिंह के नाम खत लिखकर मुसाहिब को दे दिया।
खत में लिखा था कि राजा! तुम्हारा बेटा हमारे कब्जे में है, मेरे ससुर व पति के लौटने पर ही उसे छोड़ा जाएगा वरना मैं उसे अपने राजा के हवाले कर दूंगी।
मरता क्या न करता, क्रूर सिंह ने शिल्पवर्मा से माफी माँग कर उसे तथा उसके बेटे को उनका मेहनताना देकर, इस विनती के साथ विदा किया कि वह उसके राजकुमार को सकुशल पहुँचा दे। सुगन्धा गरीब की बेटी थी, मगर गणी थी। इसलिए उसने पत्र की बात ठीक से समझ कर अपने पति व ससुर की जान बचाई। पत्र का अर्थ इस तरह था :
म्हारो सूत कसूत है
यानि हमारा, शिल्पवर्मा तथा बेटे का हाल खराब है
थारे सूताँ सूत
तुम्हारे सम्भालने पर ही कोई उम्मीद है
राज कुमार आ रहयो है
राजकुमार तुम्हारे पास आ रहा है
उसको देना सूत
सूत- हर भाषा में और विशेष कर लोक भाषा में शब्दों के अर्थ अलग होते हैं कई बार तो एक ही शब्द के कई अर्थ होते हैं जिनका अक्षरस अनवाद सम्भव नहीं होता फिर हरियाणवी भाषा में तो शब्द संस्कृत प्राकत व् अपभ्रंश कई भाषाएं अभी तक मौजूद हैं और संस्कृत में तो शब्द धातु से बनते हैं अत; एक ही धातु से अनेक शब्द बन जाते हैं उसका काफी प्रभाव हरियाणवी में मिलता है यथा यह शब्द सूत-इसे सूत कातने वाले सूत के अलावा राज मिस्तरियों द्वारा दीवार की सिधाई हेतु प्रयोग में लाये जाने वाले पतले धागे के अलावा भी कई और अर्थ होते हैं। [म्हारो सूत कसूत है- हमारे हालात खराब हैं, सूत देना- हरियाणवी में इसका इलाज करना, कुछ गड़बड़ है इसलिए इस व्यक्ति को ठीक करना है सबक देना है आदि] उसको कैद कर लेना।
(डॉ श्याम सखा)