बुद्धिमान साधु : मणिपुरी लोक-कथा
Buddhiman Sadhu : Manipuri Lok-Katha
एक साधु घने जंगल से होकर जा रहा था। उसे अचानक सामने से बाघ आता
हुआ दिखाई दिया। साधु ने सोचा कि अब तो उसके प्राण नहीं बचेंगे। यह
बाघ निश्चय ही उसे खा जाएगा। साधु भय के मारे काँपने लगा। फिर उसने
सोचा कि मरना तो है ही, क्यों न बचने का कुछ उपाय करके देखे ।
साधु ने बाघ के पास आते ही ताली बजा-बजाकर नाचना शुरू कर
दिया। बाघ को यह देख कर बहुत आश्चर्य हुआ । वह बोला, ओ रे मूर्ख ! क्यों
नाच रहे हो ? क्या तुम्हें नहीं पता कि मैं तुम्हें कुछ ही देर में खा डालूंगा ।”
साधु ने कहा, “हे बाघ, मैं प्रतिदिन बाघ का भोजन करता हूं। मेरी
झोली में एक बाघ तो पहले से ही है किंतु वह मेरे लिए अपर्याप्त है। मुझे
एक और बाघ चाहिए था। मैं उसी की खोज में जंगल में आया था। तुम
अपने आप हो मेरे पास आ गए हो इसीलिए मुझे खुशी हो रही है ।”
साधु की बात सुन कर बाघ मन-ही-मन कुछ डरा। फिर भी उसे
विश्वास नहीं हुआ। उसने साधु से कहा, “तुम अपनी झोली वाला बाघ मुझे
दिखाओ । यदि नहीं दिखा सके तो मैं तुम्हें मार डालूँगा।”
साधु ने उत्तर दिया, “ठीक है, अभी दिखाता हूँ। तुम जरा ठहरो, देखो
भाग मत जाना ।”
इतना कहकर साधु ने अपनी झोली उठाई। उसकी झोली में एक
शीशा था। उसने शीशे को झोली के मुख के पास लाकर बाघ से कहा,
“देखो, यह रहा पहला वाला बाघ ।”
बाघ साधु के पास आया। उसने जैसे ही झोली के मुंह पर देखा, उसे
शीशे में अपनी ही परछाई दिखाई दी । इसके बाद वह गुर्राया तो शीशे वाला
बाघ भी गुर्राता दिखाई दिया। अब बाघ को विश्वास हो गया कि साधु की
झोली में सचमुच एक बाघ बंद है । उसने सोचा कि यहाँ से भाग जाने में ही
कुशल है। वह पूँछ दबाकर साधु के पास से भाग गया।
वह अपने साथियों के पास पहुँचा और सब मिल कर अपने राजा के
पास गए। राजा ने जब सारी घटना सुनी तो उसे बहुत क्रोध आया। वह
बोला, “तुम सब कायर हो । कहीं आदमी भी बाघ को खा सकता है। चलो,
मैं उस साधु को मजा चखाता हूं।”
बाघ का सरदार दूसरे बाघों के साथ साधु को खोजने चल पड़ा। इसी
बीच साधु के पास एक लकड़हारा आ गया था। साधु उसे बाघ वाली घटना
सुना रहा था। तभी बाघों का सरदार वहाँ पहुँचा। जब लकड़हारे ने बहुत से
बाघों को अपनी ओर आते देखा तो डर के मारे उसकी घिग्घी बंध गई । वह
कुल्हाड़ी फेंक कर पेड़ पर चढ़ गया। साधु को पेड़ पर चढ़ना नहीं आता
था। वह पेड़ के पीछे छिप कर बैठ गया।
जो बाघ साधु के पास से जान बचा कर भागा था, वह अपने सरदार से
बोला, देखो सरदार सामने देखो, पहले तो एक ही साधु था, अब दूसरा भी आ
गया है । एक नीचे छिप गया है और दूसरा पेड़ के ऊपर,चलो भाग चलें ।”
बाघों का सरदार बोला, "मैं इनसे नहीं डरता । तुम सब लोग इस पेड़ को
चारों तरफ से घेर लो, ताकि ये दोनों भाग न जाएं। मैं पेड़ के पास जाता हूं ।”
इतना कह कर बाघों का सरदार पेड़ की तरफ बढ़ने लगा। साधु और
लकड़हारा अपनी-अपनी जान की खैर मनाने लगे। अचानक लकड़हारे को एक
चींटी ने काट खाया । जैसे ही वह दर्द से तिलमिलाया कि उसके हाथ से टहनी
छूट गई । वह घने पत्तों और टहनियों से रगड़ खाता हुआ धड़ाम से नीचे आ
गिरा । जब साधु ने उसे गिरते हुए देखा तो वह बहुत जोर से चिल्लाया,“बाघ के
सरदार को पकड़ लो । जल्दी करो, फिर यह भाग जाएगा ।”
धड़ाम की आवाज और साधु के चिल्लाने से बाघों का सरदार डर गया ।
उसने सोचा कि यह साधु सचमुच ही बाघों को खाने वाला है। वह उलटे पैरों
भागने लगा। उसके साथी भी उसे भागता हुआ देखते ही सिर पर पैर रखकर
भाग गए।