ब्राह्मण की दुर्बा : लोककथा (उत्तराखंड)
Brahman Ki Durba : Lok-Katha (Uttarakhand)
एक राजा हर दिन अपने कुल पुरोहित को सौ स्वर्ण मुद्राएं दान के रूप में देता था । उसके राज्य में एक गरीब ब्राह्मण भी रहता था । उस ब्राह्मण की पत्नी ने उससे कहा,‘‘ यहाँ के राजा बड़े दानी हैं । वह अपने कुल पुरोहित को हर दिन सौ स्वर्ण मुद्राएं देते हैं । तुम भी राजा के पास जाओ । वह तुम्हें भी कुछ न कुछ अवश्य दान देंगे ।‘‘ उसने ब्राह्मण को पीली पिठाईं और एक दूब का तिनका देकर विदा किया । वह ब्राह्मण, राजा के पास पहुंच गया । उसने राजा के मस्तक पर पिठाईं लगाई और सिर पर दूब का तिनका रख दिया । ब्राह्मण को देख राजा बोला, ‘‘ ब्रह्मदेव ! आज मुझे कुल पुरोहित से पहले आपके दर्शन हुए । इसलिए कुल पुरोहित के बदले आज का दान मैं आपको ही दे रहा हूँ ।‘‘ राजा ने ब्राह्मण को स्वर्ण मुद्राएं दान कर दीं । कुल पुरोहित को जब इस बात की भनक लगी तो वह आग बबूला हो गया । उसने राजा को डराया,‘‘ जो राजा कुल पुरोहित को छोड़कर दूसरे ब्राह्मण को दान करता है वह नरक का भागी बनता है ।‘‘ राजा ने डरकर ब्राह्मण से दान की गई सौ स्वर्ण मुद्राएं वापस मांग ली । गरीब ब्राह्मण रोने लगा । पास ही राजकुमार आदित्य खड़ा था । उसे ब्राह्मण पर दया आ गई । उसने अपनी ओर से उस ब्राह्मण को सौ स्वर्ण मुद्राएं भेंट कर दीं ।
कुल पुरोहित को जब इस बात का पता चला तो वह सोचने लगा, ‘‘ राजा के मरने के बाद राजकुमार आदित्य मुझे बेदखल कर सकता है । इसलिए इसे राज्य से बाहर कर देना हितकर रहेगा । कुल पुरोहित ने राजा को फुसलाकर राजद्रोह के आरोप में आदित्य का राज्य से निकाला करवा दिया । राजकुमार आदित्य ने जाते समय अपने पिता के पैर छुए । जैसे ही राजा ने आदित्य को ऊपर उठाया राजा के सिर पर रखा दूब का तिनका जो गरीब ब्राह्मण ने दिया था गिर गया । कुछ देर के बाद वह तिनका एक सुन्दर कन्या के रूप में बदल गया । वह कन्या राजकुमार आदित्य से बोली, ‘‘ मैं तुम्हारे साथ -साथ रहना चाहती हूँ । मैं तुम्हारी विपत्ति में सहायता करूंगी । मेरा नाम दुर्बा है ।‘‘ राजकुमार और दुर्बा साथ-साथ चल पड़े । रास्ते में उन्होंने देखा कई चूहों को एक साँप मारकर खा रहा है । दुर्बा के कहने पर राजकुमार ने साँप को मार दिया । यह देखकर चूहे प्रसन्न हुए । उन्होंने आदित्य और दुर्बा से कहा, ‘‘ तुम लोगों ने हमें दुष्ट साँप से बचाया । इसलिए जब भी हमारी आवश्यकता होगी तो हमें याद कर लेना । हम आ जाएंगे ।‘‘
वे आगे चले गए । रास्ते में उन्हें एक अजगर दिखाई दिया । वह साँपों को मारकर खा रहा था । दुर्बा और राजकुमार ने अजगर को मारकर साँपों की रक्षा की । साँपों ने राजकुमार और दुर्बा को विपत्ति में सहायता करने का वचन दिया ।
राजकुमार और दुर्बा आगे चलते गए । चलते-चलते वे राजा के महल में पहुंच गए । दुर्बा ने वहाँ के राजा से कहा, ‘‘ जिस कार्य को कोई नहीं कर सकता, उस कठिन कार्य को मेरे पति कर सकते हैं । ‘‘ यह सुनकर राजा ने राजकुमार आदित्य को दरबार में नियुक्त कर दिया । उसकी नियुक्ति से राजा के वजीर को ईर्ष्या हुई ।
एक दिन राजा और वजीर नदी के किनारे घूमने गए । वहाँ नदी में एक मछली उछल रही थी । वजीर ने राजा से कहा,‘‘ महाराज! मछली का इस प्रकार उछलना बहुत बड़ा अपशकुन है । इससे बचने के लिए आपको महारानी द्वारा दी गई अंगूठी नदी में डालनी होगी । ‘‘ राजा ने वह अंगूठी नदी में डाल दी । राजदरबार में पहुंच कर वजीर ने महारानी को फुसलाया, ‘‘ राजा द्वारा नदी में डाली गई अंगूठी वह वापस मंगवाए । इस कार्य में आदित्य की मदद ली जाए ।‘‘ दूसरे दिन राजा ने आदित्य को नदी से अंगूठी वापस लाने का आदेश दिया नहीं तो उसे अब तक दी गई धनराशि वापस करनी होगी ।
शाम को घर पहुंच कर आदित्य ने दुर्बा को सारी बातें बताईं । दुर्बा ने उन चूहों को याद किया जिन्हें उन्होंने साँप से बचाया था । उसके कहने पर सभी चूहे मछली वाली नदी की तलहटी में पहुंच गए । उन्होंने वहां बिल बनाकर नदी की दिशा बदल दी । अब ऐसा लग रहा था जैसे नदी का पानी सोख लिया गया हो । चूहों को वहां वह अंगूठी दिखाई दी । वे उस अंगूठी को लेकर राजकुमार आदित्य और दुर्बा के पास पहुंच गए । दूसरे दिन आदित्य ने राजदरबार खुलने पर वह अंगूठी राजा को सौंप दी । यह देखकर वजीर ईर्ष्या से जल भुन गया । उसने महारानी से कहा कि वह महाराज से नागदेश का पुष्पहार लाए ।
महारानी ने राजा से कहा, ‘‘ महाराज ! मेरे पास श्रृंगार की सभी सामग्री है किन्तु आप जैसे पराक्रमी राजा की रानी होने के नाते मेरे गले में पुष्पहार नहीं है । इसलिए शीघ्र नागदेश से पुष्पहार लाकर मुझे दे दीजिए ।‘‘ राजा ने वजीर से पुष्पहार प्राप्त करने के बारे में राय ली । वजीर ने कहा, ‘‘ महाराज! आप इस काम के लिए आदित्य को आदेश दे दीजिए।‘‘
दूसरे दिन राजा ने दरबार खुलते ही राजकुमार आदित्य को नागदेश से पुष्पहार लाने का आदेश दिया । आदित्य ने दुर्बा को यह बात बता दी । उन्होंने उन साँपों को याद किया जो उन्होंने अजगर से बचाए थे । याद करते ही सारे साँप वहां पहुंच गए । दुर्बा ने आदित्य को उन साँपों के साथ नागदेश भेज दिया । जाते समय दुर्बा ने आदित्य से कहा, ‘‘ नागदेश का राजा सर्पराज तुम्हें एक नागकन्या भी देगा । तुम निःसंकोच उसे अपने साथ ले आना ।‘‘ नागदेश पहुंच कर साँपों ने आदित्य का परिचय सर्पराज से करवाया और यह भी बताया कि उसने अजगर से उनकी रक्षा की थी । सर्पराज बहुत प्रसन्न हुआ । उसने आदित्य को पुष्पहार के साथ ही अपनी कन्या भी दे दी ।
दूसरे दिन आदित्य के साथ दूर्बा भी राज दरबार पहुंची । उसने राजा से कहा,‘‘ महाराज! यह पुष्पहार अभी कच्चे हैं । यह पक्के तभी बनेंगे जब सरे दरबार वजीर को दण्डित किया जाए ।‘‘ राजा ने वजीर को दण्ड दिया । वजीर ने आदित्य से क्षमा मांगी और भविष्य में उसे परेशान न करने का वचन दिया । राजा ने सोचा, ‘‘ जो काम आदित्य ने किए उन्हें और कोई नहीं कर सकता था । यदि मेरे बाद राजपाट आदित्य के नाम किया जाए तो बहुत अच्छा रहेगा ।‘‘ राजा की कोई संतान नहीं थी । राजा ने आदित्य को अपने पुत्र के रूप में स्वीकार कर सारा राजपाट उसके नाम कर लिया । दुर्बा, सर्पकन्या और आदित्य को साथ लेकर आदित्य के पुराने घर गई । राजकुमार आदित्य को देखकर उसके वृद्ध माता-पिता की आँखे भर आई । राजकुमार आदित्य को दोनो राज्यों का राजपाट मिल गया ।
इस समय आदित्य उसी स्थान पर था जहाँ पर वर्षों पहले उसकी दुर्बा से मुलाकात हुई थी । वह यादों में खोया ही था अचानक उसका ध्यान दुर्बा की ओर गया । यह क्या ? दुर्बा अदृश्य हो गई थी । जहाँ पर दुर्बा खड़ी हुई थी वहाँ पर दूब का एक तिनका दिखाई दिया । उससे आवाज आई, ‘‘ राजकुमार आदित्य! तुम्हारा और मेरा साथ यहीं तक था । सर्पकन्या से विवाह कर दोनो राज्यों का राजपाट अच्छी तरह से चलाना ।‘‘
राजकुमार दुर्बा को ढूंढ़ता रहा लेकिन वह कहीं नहीं थी । राजकुमार के चेहरे पर अपने बिछुड़े वृद्ध माता-पिता से मिलने और राजपाट पाने की प्रसन्नता थी किन्तु आँखों में थे दुर्बा से बिछुड़ने के आँसू ।
(साभार : डॉ. उमेश चमोला)