बूढ़ा बावरची (रूसी कहानी) : कोंस्तांतीन पाउस्तोव्स्की
Boodha Bawarchi (Russian Story in Hindi) : Konstantin Paustovsky
सन् १७८६ की जाडे़ की शाम थी। काउंटेस तून का भूतपूर्व अंधा बावरची वियना की सीमा पर एक छोटे से लकड़ी के घर में जिंदगी की अंतिम घडि़याँ गिन रहा था। वस्तुतः जहाँ वह रहता था, वह कहने लायक भी घर नहीं था, वरन् बगीचे के निचले हिस्से में स्थित नौकरों के रहने का एक पुराना सा लॉज था। बगीचा सड़ी हुई डालियों से भरा पड़ा था, जिन्हें हवा के झोंकों ने चारों ओर बिखेर दिया था। चलते समय कदम-कदम पर डालियाँ चरमरा उठती थीं और तब बूढ़ा कुत्ता अपने स्थान से ही धीरे से गुर्रा उठता था। कुत्ता भी अपने मालिक की तरह अंतिम घडि़याँ गिन रहा था और अब भौंक भी नहीं सकता था।
कुछ वर्षों पूर्व तंदूर के ताप के कारण बावरची अंधा हो गया था। असमर्थ बूढे़ को काउंटेस के कारिंदे ने लॉज में भेज दिया था और ऐसी व्यवस्था कर दी थी कि समय-समय पर पेट भरने लायक उसे कुछ पैसे मिल जाया करें।
बावरची के साथ उसकी अठारह वर्षीय लड़की मारिया रहती थी। फर्नीचर के नाम पर लॉज में एक खाट, कुछ पुराने बेंच, एक खुरदुरी मेज, कुछ टूटे-फूटे मिट्टी के बरतन थे और था एक हार्प्सीकॉर्ड, मारिया की एकमात्र संपत्ति।
हार्प्सीकॉर्ड इतना पुराना था कि उसके तार जरा-सा भी झनझना उठते तो उसकी प्रतिध्वनि देर तक गूँजती रहती। बावरची मजाक में उस हार्प को घर का रखवाला कहा करता। जैसे ही घर के अंदर कोई घुसता, हार्प की काँपती हुई ध्वनि से उसका स्वागत होता।
मारिया ने जब बूढे़ के हाथ-पैर धुलवा दिए और साफ-सुथरी कमीज पहना दी तो उसने कहा, ‘‘मैंने सदैव पुरोहितों और संन्यासियों को नापसंद किया है। मैं किसी पादरी को बुला नहीं सकता, परंतु मृत्यु से पूर्व अपनी अंतरात्मा के पाप को धोना चाहता हूँ।’’
‘‘मुझे क्या करना होगा?’’ भयाकुल सी आवाज में मारिया ने पूछा।
बूढे़ ने कहा, ‘‘बाहर जाओ और जैसे ही किसी व्यक्ति पर तुम्हारी दृष्टि पडे़, उससे कहना कि मेरे घर चलिए और दम तोड़ते हुए एक इनसान की स्वीकारोक्ति सुन लीजिए। इससे कोई भी इनकार नहीं करेगा।’’
‘‘इस सड़क पर आते ही कितने लोग हैं।’’ मारिया फुसफुसाई। उसने अपना शॉल उठाया और बाहर निकल गई।
उसने बगीचे को पार किया, बड़ी कठिनाई से जंग लगे फाटक को खोला और बाहर आ गई। सड़क सुनसान थी। हवा के झोंकों से पत्तियाँ उड़ रही थीं और सुरमई आकाश से बारिश की शीतल बूँदें झर रही थीं।
बड़ी देर तक मारिया सड़क पर इंतजार करती रही। सहसा उसे लगा कि चहारदीवारी से होकर कोई मनुष्य गुनगुनाता हुआ उसकी तरफ आ रहा है। वह तेजी से भागी और उसे झकझोरते हुए चिल्ला उठी।
अजनबी ठहर गया और बोला, ‘‘कौन है?’’
मारिया ने उसकी बाँहें पकड़ लीं और काँपती हुई आवाज में अपने पिता की प्रार्थना कह सुनाई।
अजनबी बोला, ‘‘बहुत अच्छा! मैं पादरी तो नहीं हूँ, लेकिन कोई बात नहीं। आओ, चलें।’’
दोनों ने घर में प्रवेश किया। मोमबत्ती के प्रकाश में मारिया ने देखा, अजनबी एक छोटा सा दुबला-पतला मनुष्य है। उसने अपने गीले लबादे को बेंच पर रख दिया। उसकी वेशभूषा सादगीपूर्ण और सुरुचिपूर्ण थी। मोमबत्ती की रोशनी में उसकी पोशाक मारिया को बड़ी अच्छी लगी।
अजनबी की उम्र अधिक नहीं थी। उसने झटके से सिर हिलाया, हैट को ठीक किया और स्टूल खींचकर खाट के पास बैठ गया। फिर कुछ क्षण तक बूढे़ के चेहरे की ओर एकटक गौर से देखता हुआ बोला, ‘‘शुरू करो। शायद ईश्वरप्रदत्त शक्ति के द्वारा तो नहीं, पर जिस कला की मैं उपासना करता हूँ, उसकी शक्ति से मैं तुम्हारे मन को शांति पहुँचाऊँगा और तुम्हारी आत्मा का बोझ हल्का कर सकूँगा।’’
बूढे़ ने अजनबी को अपने नजदीक खींचते हुए क्षीण आवाज में कहा, ‘‘जब तक मेरी आँखें सही-सलामत थीं, मैंने निरंतर काम किया और जो इनसान काम करता है, उसके पास पाप करने के लिए अवकाश नहीं होता। जब मेरी पत्नी मार्था गर्भवती हुई तो डॉक्टर ने उसे बड़ी महँगी दवाइयाँ देने के लिए कहा और बताया कि उसे अंजीर के साथ क्रीम खिलाओ और लाल गरम शराब पिलाओ। मैंने काउंटेस तून के डिनर सेट से एक सोने की तश्तरी चुरा ली और उसके छोटे-छोटे टुकडे़ करके बाजार में बेच दिया। इस समय उस बात के स्मरण मात्र से मुझे पीड़ा हो रही है। अपनी ही संतान से उस बात को छिपाकर मैं घुटन सी महसूस कर रहा हूँ। मैंने उसे हमेशा यही सिखाया है कि बेटा, दूसरे की मेज से धूल के एक कण को भी हाथ नहीं लगाना।’’
‘‘क्या काउंटेस के नौकरों में से किसी को इसके लिए सजा भुगतनी पड़ी?’’ अजनबी ने पूछा।
‘‘मैं कसम खाता हूँ सर, किसी को भी नहीं।’’ बूढे़ ने उत्तर दिया और वह फूट-फूटकर रो पड़ा, यदि मुझे स्वप्न में भी इसका खयाल होता कि उस सोने के टुकडे़ से मार्था का भला नहीं होगा तो क्या मैंने चोरी की होती?’’
‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’
‘‘जोहान मेयर, सर।’’
‘‘अच्छा, जोहान मेयर।’’ अपनी हथेली को बूढे़ की अंधी आँखों पर रखते हुए अजनबी ने कहा, ‘‘तुम निर्दोष हो। जो कुछ तुमने किया, वह न तो पाप है और न चोरी, बल्कि इसको तो दया का कार्य कहा जा सकता है।’’
‘‘आमीन!’’ बूढ़ा फुसफुसाया।
‘‘आमीन!’’ अजनबी ने दुहराया, ‘‘अब बोलो, तुम्हारी आखिरी ख्वाहिश क्या है?’’
‘‘मैं चाहता हूँ कि कोई मारिया का भार अपने ऊपर ले ले।’’
‘‘मैं ले लूँगा। तुम्हारी और क्या ख्वाहिश है?’’
सहसा बूढे़ के मुख पर अप्रत्याशित मुसकान खिल गई। वह ऊँचे स्वर में बोला, ‘‘एक बार फिर मैं मार्था को उसी रूप में देखना चाहता हूँ और इस पुराने बगीचे में वसंत की बहार देखना चाहता हूँ, लेकिन यह नामुमकिन है। सर, मेरी ऊटपटाँग बातों से नाराज मत होना। बीमारी के कारण मेरा चित्त अस्थिर हो गया है।’’
‘‘ठीक है, ठीक है,’’ कहते हुए अजनबी उठा और हार्प्सीकॉर्ड के पास जाकर स्टूल पर बैठ गया। ऊँचे स्वर में उसने तीसरी बार कहा, ‘‘ठीक है।’’ और अचानक हार्प्सीकॉर्ड के तार झनझना उठे, मानो फर्श पर सैकड़ों क्रिस्टल बॉल गिर पडे़ हों।
‘‘गौर से सुनो।’’ अजनबी ने कहा, ‘‘गौर से सुनो और देखो।’’
‘‘अजनबी ने तारों को छेड़ा। उनमें कंपन उत्पन्न हुआ, तो मारिया ने पहचान लिया कि वह कौन है, जिसकी भौंहों में असाधारण सी उदासी घिर आई थी और जिसकी काली आँखों में मोमबत्ती की लौ काँप-काँप उठती थी। वर्षों बाद हार्प्सीकॉर्ड से पहली बार ऐसा श्रेष्ठ संगीत उत्पन्न हो रहा था, जिसकी ध्वनि से लॉज ही नहीं, वरन् पूरा बगीचा गूँज उठा। बूढ़ा कुत्ता अपनी जगह से बाहर निकला और चुपचाप बैठ गया। उसकी गरदन एक ओर झुकी हुई थी, कान खडे़ थे और पूँछ धीरे-धीरे हिल रही थी। बर्फ गिरने लगी थी, लेकिन कुत्ता अपनी जगह से नहीं हिला, केवल कानों को झटक देता था।
बिस्तर से सिर उठाते ही बूढे़ ने कहा, ‘‘सर, वह दिन मेरी आँखों के सामने है, जब मैं मार्था से मिला था और घबराहट में उसके हाथ से दूध भरा जग छूट गया था। जाड़ों के दिन थे, हम पहाड़ों पर रहते थे। नीले काँच की तरह आकाश स्वच्छ था और मार्था हँस रही थी।’’ वाद्य-यंत्र की स्वर-लहरी में डूबते हुए बूढे़ ने दुहराया, ‘‘वह हँस रही थी।’’
अँधेरे में खिड़की के बाहर देखता हुआ अजनबी लगातार हार्प्सीकॉर्ड बजाए जा रहा था। उसने पूछा, ‘‘और अब तुम्हें कुछ दिखाई दे रहा है?’’
बूढे़ ने अजनबी की बातों को गौर से सुना, पर कुछ नहीं बोला।
‘‘क्या सचमुच तुम कुछ नहीं देख रहे हो?’’ हार्प्सीकॉर्ड बजाते हुए अजनबी ने शीघ्रतापूर्वक कहा, ‘‘क्या तुम नहीं देख रहे हो कि काली अँधेरी रात गहरे नीले रंग में और फिर हलके नीले रंग में बदल गई है तथा ऊपर से रोशनी छन-छनकर आ रही है। तुम्हारे वृक्षों की पुरानी डालियों पर सफेद मंजरियाँ प्रस्फुटित हो रही हैं। मुझे तो लगता है, सेब के फूल खिल रहे हैं; यद्यपि यहाँ कमरे से वे बडे़-बडे़ ट्यूलिप से प्रतीत हो रहे हैं। देखो तो सही, सूरज की पहली किरण पत्थर की चहारदीवारी पर गिरी है और उसकी गरमी से भाप उड़ रही है। और देखो, वह काई पिघलती हुई बर्फ से भरी हुई, जो अब सूख रही है। आकाश कितना ऊँचा दिखाई दे रहा है, नीला-पीला सा और कितना भव्य! चिडि़यों के झुंड-के-झुंड हमारी वियना के ऊपर उत्तर दिशा की ओर उड़े जा रहे हैं।’’
‘‘मुझे वह सब दिखाई दे रहा है।’’ बूढ़ा चिल्ला उठा। हार्प्सीकॉर्ड से आनंदमय ध्वनि उत्पन्न हो रही थी, मानो वह ध्वनि तारों में से न उत्पन्न होकर कई मुखों से एक साथ मुखरित हुई हो।
‘‘नहीं सर,’’ मारिया ने अजनबी से कहा, ‘‘वे फूल ट्यूलिप की तरह बिल्कुल नहीं हैं। वे सब सेब के वृक्ष हैं, जो रातोरात फूलों से लद गए हैं।’’
‘‘हाँ,’’ अजनबी ने उत्तर दिया ‘‘ये सब सेब के वृक्ष हैं, लेकिन उनकी पँखुडि़याँ कितनी बड़ी-बड़ी हैं।’’
‘‘मारिया! बेटा जरा खिड़की तो खोलना!’’ बूढे़ ने गद्गद स्वर में कहा।
मारिया ने खिड़की खोल दी। कमरे में हवा का तेज झोंका आया। अजनबी धीरे-धीरे हार्प्सीकॉर्ड बजाता रहा।
बूढ़ा तकिए पर लुढ़क गया। उसकी साँस फूलने लगी और उसके हाथ कंबल पर कुछ टटोलने लगे। मारिया उसकी ओर तेजी से दौड़ी। अजनबी ने हार्प्सीकॉर्ड बजाना बंद कर दिया। अपनी ही संगीत-लहरी से स्तब्ध वह हार्प्सीकॉर्ड के पास चुपचाप बैठा रहा।
मारिया चीख पड़ी। अजनबी उठा और खाट की ओर बढ़ा। बूढे़ ने बड़ी कठिनाई से साँस लेते हुए कहा, ‘‘मैंने सबकुछ बहुत साफ-साफ देखा, लेकिन मेरे प्राण तब तक नहीं निकलेंगे, जब तक मुझे यह न मालूम हो जाए कि तुम्हारा नाम क्या है।’’
‘‘मेरा नाम वोल्फगांग आमडेयुस मोजार्ट है।’’ अजनबी ने उत्तर दिया।
मारिया खाट के पास से उठकर महान् संगीतज्ञ के पास आई और घुटने के बल बैठ कुछ क्षण सिर झुकाए रही।
गरदन उठाते ही उसने देखा, उसका पिता अब इस दुनिया में नहीं है। खिड़कियों के बाहर उषा का आगमन हो रहा था और उसका प्रकाश हिम-पुष्पों से लदे हुए बगीचे में धीरे-धीरे फैल रहा था।
अनुवाद : सुशीला गुप्ता