बोलेसलोव (रूसी कहानी) : मैक्सिम गोर्की
Boleslaw (Russian Story) : Maxim Gorky
यह वह है जो मेरे मित्र ने एक दिन मुझे बताया—
जब मैं मॉस्को में पढ़ रहा था तब एक छोटे से घर में रहता था, जहाँ एक अजीब लड़की मेरी पड़ोसन थी। वह पोलैंड की रहनेवाली थी। उसका नाम टेरेसा था। वह लंबी, तगड़ी, भूरी, भारी भौंहों और गँवारू नैन-नक्शवाली थी। उसकी आँखें भोथरी नजर आती थीं और आवाज गहरी थी। उसका व्यवहार इनाम जीतनेवाले लड़ाकू की तरह था। भारी और मांसल शरीर, कुल मिलाकर उसकी आकृति भयानक रूप से भद्दी थी। अट्टालिका में कमरे आमने-सामने थे। मैं अपना दरवाजा कभी नहीं खोलता था, जब यह जानता था कि वह घर में है। कभी-कभी सीढि़यों में या सेहन में उससे भेंट हो जाती थी और मुझे एक प्रकार की चिड़चिड़ी मुसकराहट देती थी। मैंने उसे प्रायः लाल आँखों और बिखरे बालों के साथ घर आते देखा था। ऐसे अवसरों पर मेरी दृष्टि उसकी निरर्थक रूप से ताकनेवाली दृष्टि से मिल जाती थी और फिर वह कहती—‘हैलो, विद्यार्थी!’
उसकी मूर्खतापूर्ण हँसी दुःखदायी होती थी। उसके मिलने को टालने के लिए मैं अपना कमरा बदलना चाहता था, परंतु वह जगह इतनी मनोहर थी जहाँ से नगर का दृश्य बिना अवरोध के देखा जा सकता था और सड़क भी शांत थी, इसलिए मैं रुका रहा।
एक दिन प्रातःकाल मैं कपड़े पहनकर अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था कि अकस्मात् दरवाजा खुला और दहलीज पर टेरेसा नजर आई।
‘‘हैलो, विद्यार्थी!’’ उसने अपनी गहरी आवाज में कहा।
‘‘तुम क्या चाहती हो?’’ मैंने पूछा।
मैंने उसकी ओर देखा। उसके चेहरे पर व्याकुल लज्जा थी, ऐसी लज्जा जिसको मैंने पहले कभी नहीं देखा था।
‘‘विद्यार्थी!’’ उसने कहा, ‘‘मैं तुम्हारी सहायता चाहती हूँ, कृपया इनकार न करना!’’
बिस्तर में लेटे हुए मैंने सोचा—‘यह एक बहाना है।’ परंतु मैंने कुछ नहीं कहा।
‘‘मैं अपने घर पत्र लिखना चाहती हूँ।’’ उसने कहना जारी रखा।
‘यह कैसा उपद्रव करना चाहती है!’ मैंने विचार किया। मैं अपने बिस्तर से उठा, कागज एवं स्याही ली और कहा, ‘‘आओ, बैठो और लिखवाओ।’’
वह अंदर आ गई और सावधानी से बैठकर मेरी आँखों में तीखी नजर डाली।
‘‘ठीक है, किसको लिखवाना है?’’ मैंने पूछा।
‘‘बोलेसलोव केसपुट को, स्वेनजिआनी में रहता है, जो वारसा रेलवे पर स्थित है।’’
‘‘क्या लिखवाना चाहती हो? आगे कहो।’’
‘‘मेरे प्यारे, बोलेस प्रेमीजन, मेरे प्रेम, मेरी आत्मा! पवित्र कुमारी तुम्हारी रक्षा करे। मेरे प्यारे, तुमने अपनी नन्ही कबूतरी टेरेसा, जो बहुत उदास रहती है, को एक लंबे समय से पत्र क्यों नहीं लिखा?’’
मैं उसपर हँसे बिना नहीं रह सका। ‘उदास नन्ही कबूतरी!’ लगभग छह फीट ऊँची, खिलाड़ी की तरह पुष्ट और इतने काले चेहरेवाली, मानो कबूतरी ने अपने सारे जीवन में और कुछ न करके केवल चिमनियाँ साफ की हों!
परंतु मैंने अपना चेहरा ठीक रखा और पूछा, ‘‘यह बोलेसलोव कौन है?’’
‘‘बोलेसलोव, श्रीमान्!’’ उसने इस हैरानी से उत्तर दिया कि यह सोचा भी नहीं जा सकता था कि
कोई बोलेसलोव को न जानता हो।
‘‘बोलेस मेरा मंगेतर है।’’
‘‘मंगेतर?’’
‘‘तुम इतने विस्मित क्यों हो रहे हो, विद्यार्थी? क्या मेरे जैसी युवा लड़की का प्रेमी नहीं हो सकता?’’ उसने कहा।
‘एक युवा लड़की!’—क्या मजाक है! ‘‘हो सकता है, ’’ मैंने कहा, ‘‘हर चीज संभव है। तुम्हारी सगाई को कितना समय हो गया?’’
‘‘दस वर्ष हो गए।’’
‘‘ठीक है।’’ मैंने उसके लिए पत्र लिख दिया—प्यार और कोमलता से इतना भरा पत्र कि मैंने सोचा, काश! बोलेसलोव की जगह मैं होता, यदि टेरेसा की बजाय संदेश किसी और से आता!
‘‘दिल से तुम्हारा धन्यवाद, विद्यार्थी।’’ टेरेसा ने कहा। वह गहराई से प्रेरित हुई प्रतीत हो रही थी—‘‘तुम्हारे लिए मैं कुछ कर सकती हूँ क्या?’’
‘‘नहीं, धन्यवाद!’’
‘‘मैं तुम्हारी कमीज और कपड़ों की मरम्मत कर सकती हूँ, विद्यार्थी!’’ उसने मुझे थोड़ा क्रुद्ध कर दिया और मैंने संक्षेप में उसे विश्वास दिलाया कि मुझे उसकी सेवा नहीं चाहिए। इस तरह वह चली गई।
दो सप्ताह बीत गए। एक शाम को खिड़की में बैठा मैं सीटी बजा रहा था और सोच रहा था कि व्याकुलता को दूर करने के लिए क्या किया जाए? बाहर मौसम खराब था। इसलिए मैं बाहर नहीं जाना चाहता था। एकाएक दरवाजा खुला।
‘परमात्मा के लिए!’ मैंने सोचा—‘कोई आया है।’
‘‘विद्यार्थी, इस समय कुछ कर रहे हो क्या?’’ यह टेरेसा थी। मेरी इच्छा थी कि उसकी बजाय कोई और होता।
‘‘नहीं तो, क्यों?’’
‘‘मैं चाहती हूँ कि मेरे लिए एक पत्र लिख दो।’’
‘‘बहुत अच्छा, बोलेस को?’’
‘‘नहीं, मैं उसका उत्तर चाहती हूँ!’’
‘‘क्या?’’ मैं चिल्लाया।
‘‘क्षमा चाहती हूँ, विद्यार्थी, मैं मूर्ख हूँ। मैं अपने आपको स्पष्ट नहीं कर सकी। यह मेरे लिए नहीं, बल्कि मेरे एक मित्र के लिए है। वह मित्र नहीं, केवल जान-पहचानवाला है। वह लिखना नहीं जानता। मेरी तरह उसकी भी मंगेतर है।’’
मैंने उसकी ओर भरी नजर से देखा। वह लज्जित सी प्रतीत हुई। उसके हाथ काँपे और वह व्याकुल हो गई। मैंने सोचा, मैं समझ गया था।
‘‘सुनो लड़की!’’ मैंने कहा, ‘‘वह सबकुछ जो तुमने अपने और बोलेसलोव के बारे में बताया है, सब तुम्हारे मन की कल्पना है; तुम झूठ बोल रही थीं। यह यहाँ आने के लिए केवल बहाना है। मुझे आगे के लिए तुमसे कोई वास्ता नहीं है, समझती हो न?’’
मैंने देखा, वह भयभीत हो गई थी। वह शरमा गई थी और उसने कुछ कहने का भरसक प्रयास किया। मुझे महसूस हुआ कि मैंने उसके साथ अन्याय किया था। सबकुछ होते हुए भी वह मेरे पास किसी भ्रष्ट भाव से मुझे सदाचार के रास्ते से हटाने नहीं आई थी। उसके पीछे कुछ-न-कुछ जरूर था, परंतु वह क्या था?
‘‘विद्यार्थी!’’ उसने कहना शुरू किया, परंतु एकाएक मेरा संकेत पा वह अपनी एडि़यों पर मुड़ी और कमरे से बाहर निकल गई।
मैं अशांत होकर रह गया। मैंने उसे अपना दरवाजा जोर से बंद करते सुना। वह क्रुद्ध थी। मैंने कुछ देर तक सोचा और फिर उसे वापस बुलाने का निश्चय किया। मैं पत्र लिखूँगा। मैंने उसके लिए खेद महसूस किया।
मैं उसके कमरे में गया। वह अपना चेहरा हाथों से थामे बैठी थी।
‘‘सुनो, लड़की!’’ मैंने कहा, ‘‘तुम...!’’
जब मैं अपनी कहानी के इस बिंदु पर आता हूँ तो मेरा हृदय हमेशा गहराई से प्रभावित होता है। वह उछल पड़ी। सीधी मेरे पास आई। उसकी आँखें चमक रही थीं, मेरे कंधों पर अपने हाथ रखकर सुबकने लगी, जैसे उसका दिल टूट गया हो।
‘‘तुम्हें क्या फर्क पड़ता है, यदि तुम...तुम कुछ पंक्तियाँ लिख दो? ओह, तुम...तुम अच्छे व्यक्ति नजर आते थे! हाँ, कोई बोलेसलोव नहीं है और कोई टेरेसा भी नहीं है। यहाँ केवल मैं हूँ...मैं!’’
‘‘क्या!’’ मैंने उसके शब्दों को सुनकर कहा, ‘‘तो फिर कोई बोलेस नहीं है?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘और कोई टेरेसा भी नहीं?’’
‘‘नहीं, वह मैं ही हूँ, टेरेसा।’’
मेरा सिर चकरा गया। मैंने हैरानी से उसको देखा। हम दोनों में से जरूर एक सनकी था। वह मेज के पास लौट आई, दराज टटोला और कागज का एक टुकड़ा निकाला।
उसने मेरी ओर आते हुए कहा, ‘‘इस पत्र को, जो तुमने मेरे लिए लिखा था, वापस ले लो। तुम दूसरा लिखना नहीं चाहते। दूसरे दयालु दिलवाले आदमी इस काम को कर देंगे।’’
जो पत्र मैंने उसकी तरफ से बोलेसलोव को लिखा था, वह उसके हाथ में था। दुनिया में इसका अर्थ क्या था?
‘‘सुनो, टेरेसा!’’ मैंने कहा, ‘‘यह सब क्या है? जब तुमने इसको डाक में डाला ही नहीं तो दूसरे लोग तुम्हें पत्र क्यों लिखें?’’
‘‘मैं किसके लिए इसको डाक में डालूँ?’’
‘‘क्यों, बोलेसलोव—अपने मंगेतर के लिए।’’
‘‘परंतु ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है!’’ मैंने छोड़ दिया। मैं जो कर सकता था, वह यह कि मैं वहाँ से चला जाऊँ, परंतु उसने फिर कहना शुरू कर दिया—
‘‘नहीं, उसका अस्तित्व नहीं है; कोई बोलेसलोव नहीं है।’’ इस संकेत से कहा कि इसे वर्णन करना कितना असंभव है। ‘‘परंतु मैं उसे चाहती हूँ कि वह जीवित हो। मैं जानती हूँ कि मैं दूसरों की तरह नहीं हूँ—मैं जानती हूँ कि मैं क्या हूँ, परंतु यदि मैं उसे लिखती हूँ तो किसी को हानि नहीं होती।’’
‘‘तुम्हारा क्या मतलब है, किसको?’’
‘‘क्यों, बोलेसलोव को।’’
‘‘परंतु तुमने अभी मुझे बताया, ’’ अभी तक उलझे हुए मैंने टोका—‘‘कि इस नाम का कोई आदमी नहीं है।’’
‘‘ओह, परमात्मा की माता! मुझे इसकी क्या परवाह है कि इस नाम का कोई आदमी नहीं है, परंतु मैं मानती हूँ कि बोलेसलोव है। मैं इसलिए पत्र लिखती हूँ कि वह वस्तुतः है और उत्तर देता है। मैं पुनः लिखती हूँ, वह पुनः उत्तर देता है।’’ अंत में मैं समझ गया। मैंने अपने आपको लज्जित और दोषी महसूस किया। मुझे शारीरिक पीड़ा का आघात लगा। मेरी बगल में एक हाथ की दूरी पर एक ऐसा विनीत मानव जीव रहता था जिसको प्यार देने के लिए संसार में एक आत्मा भी नहीं थी—माता-पिता नहीं, मित्र-बंधु नहीं, कोई भी नहीं। उस विनीत प्राणी ने अपने लिए प्रेमी का, दूल्हे का आविष्कार कर लिया था।
वह अपनी एक ही तरह की आवाज में कहती रही—‘‘यह पत्र, जो तुमने मेरी तरफ से बोलेसलोव को लिखा है, मैंने दूसरे व्यक्ति को इसे ऊँची आवाज में मेरे लिए पढ़ने को कहा। मैंने सुना और माना कि बोलेसलोव जीवित है। फिर मैंने बोलेस से अपनी टेरेसा को अर्थात् मुझे उत्तर के लिए कहा। मैं विश्वास करती हूँ कि बोलेसलोव जीवित है—कहीं-न-कहीं—मैं नहीं जानती कि कहाँ; और इस प्रकार मैं भी जीवित रहने का प्रबंध करती हूँ। यह इतना कठिन नहीं है, इतना भयंकर नहीं है और न ही इतना असहाय!’’
तो ठीक है, उस दिन से मैंने सप्ताह में निरंतर दो बार पत्र लिखे—टेरेसा से बोलेस को और बोलेस से टेरेसा को। मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि वे लालसा और उत्कंठा से भरपूर थे, विशेषकर उत्तर। वह कभी सिसकियाँ लेकर और कभी हँसकर उन्हें सुनती थी, प्रसन्न होती थी। उसके बदले में वह मेरे कपड़ों का ध्यान रखती थी। मेरी कमीजों की, मेरी जुराबों की मरम्मत करती थी, मेरे जूते साफ करती थी और टोपी पर ब्रश लगाती थी।
तीन महीने के बाद उसे किसी संदेहवश बंदी बना लिया गया और जेल में डाल दिया गया। मैं फिर उससे कभी नहीं मिला।
वह मर चुकी होगी!