जीवन परिचय और रचनाएँ : रवीन्द्रनाथ ठाकुर

Biography : Rabindranath Tagore

रबीन्द्रनाथ ठाकुर (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा वे ही थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांङ्ला' गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।

जीवन परिचय

रबीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म ७ मई १८६१ को कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ। उनके पिता देवेन्द्रनाथ टैगोर और माता शारदा देवी थीं। उनकी आरम्भिक शिक्षा प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। उन्होंने बैरिस्टर बनने की इच्छा में १८७८ में इंग्लैंड के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कूल में नाम लिखाया फिर लन्दन विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया किन्तु १८८० में बिना डिग्री प्राप्त किए ही स्वदेश पुनः लौट आए। सन् १८८३ में मृणालिनी देवी के साथ उनका विवाह हुआ।

टैगोर की माता का निधन उनके बचपन में हो गया था और उनके पिता व्यापक रूप से यात्रा करने वाले व्यक्ति थे, अतः उनका लालन-पालन अधिकांशतः नौकरों द्वारा ही किया गया था। टैगोर परिवार बंगाल पुनर्जागरण के समय अग्रणी था उन्होंने साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन किया; बंगाली और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत एवं रंगमंच और पटकथाएं वहां नियमित रूप से प्रदर्शित हुईं थीं। टैगोर के पिता ने कई पेशेवर ध्रुपद संगीतकारों को घर में रहने और बच्चों को भारतीय शास्त्रीय संगीत पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया था। टैगोर के सबसे बड़े भाई द्विजेंद्रनाथ एक दार्शनिक और कवि थे एवं दूसरे भाई सत्येंद्रनाथ कुलीन और पूर्व में सभी यूरोपीय सिविल सेवा के लिए पहले भारतीय नियुक्त व्यक्ति थे। एक भाई ज्योतिरिंद्रनाथ, संगीतकार और नाटककार थे एवं इनकी बहिन स्वर्णकुमारी उपन्यासकार थीं। ज्योतिरिंद्रनाथ की पत्नी कादंबरी देवी सम्भवतः टैगोर से थोड़ी बड़ी थीं व उनकी प्रिय मित्र और शक्तिशाली प्रभाव वाली स्त्री थीं जिन्होंने १८८४ में अचानक आत्महत्या कर ली। इस कारण टैगोर और इनका शेष परिवार कुछ समय तक अधिक समस्याओं से घिरा रहा था।

इसके बाद टैगोर ने बड़े पैमाने पर विद्यालयी कक्षा की पढ़ाई से परहेज किया और मैरर या पास के बोलपुर और पनिहती में घूमने को प्राथमिकता दी, और फिर परिवार के [5][6] साथ कई स्थानों की यात्रा की। उनके भाई हेमेंन्द्रनाथ ने उसे पढ़ाया और शारीरिक रूप से उसे वातानुकूलित किया - गंगा को तैरते हुए या पहाड़ियों के माध्यम से, जिमनास्टिक्स द्वारा, और जूडो और कुश्ती अभ्यास करना उनके भाई ने सिखाया था। टैगोर ने ड्राइंग, शरीर विज्ञान, भूगोल और इतिहास, साहित्य, गणित, संस्कृत और अंग्रेजी को अपने सबसे पसंदीदा विषय का अध्ययन किया था। हालाँकि टैगोर ने औपचारिक शिक्षा से नाराजगी व्यक्त की - स्थानीय प्रेसीडेंसी कॉलेज में उनके विद्वानों से पीड़ित एक दिन का दिन था। कई वर्षो बाद उन्होंने कहा कि उचित शिक्षण चीजों की व्याख्या नहीं करता है; उनके अनुसार उचित शिक्षण, जिज्ञासा है।

ग्यारह वर्ष की आयु में उनके उपनयन (आने वाला आजीवन) संस्कार के बाद, टैगोर और उनके पिता कई महीनों के लिए भारत की यात्रा करने के लिए फरवरी १८७३ में कलकत्ता छोड़कर अपने पिता के शांतिनिकेतन सम्पत्ति और अमृतसर से डेलाहौसी के हिमालयी पर्वतीय स्थल तक निकल गए थे। वहां टैगोर ने जीवनी, इतिहास, खगोल विज्ञान, आधुनिक विज्ञान और संस्कृत का अध्ययन किया था और कालिदास की शास्त्रीय कविताओं के बारे में भी पढ़ाई की थी। १८७३ में अमृतसर में अपने एक महीने के प्रवास के समय, वह सुप्रभात गूरुवाणी और नानक वाणी से बहुत प्रभावित हुए थे, जिन्हें स्वर्ण मंदिर में गाया जाता था जिसके लिए दोनों पिता और पुत्र नियमित रूप से आगंतुक थे। उन्होंने इसके बारे में अपनी पुस्तक मेरी यादों में उल्लेख किया जो १९१२ में प्रकाशित हुई थी।

साहित्यिक जीवन

बचपन से ही उनकी कविता, छन्द और भाषा में अद्भुत प्रतिभा का आभास लोगों को मिलने लगा था। उन्होंने पहली कविता आठ वर्ष की आयु में लिखी थी और सन् १८७७ में केवल सोलह वर्ष की आयु में उनकी प्रथम लघुकथा प्रकाशित हुई थी।

टैगोर ने अपने जीवनकाल में कई उपन्यास, निबंध, लघु कथाएँ, यात्रावृन्त, नाटक और सहस्रो गाने भी लिखे हैं। वे अधिकतम अपनी पद्य कविताओं के लिए जाने जाते हैं। गद्य में लिखी उनकी छोटी कहानियाँ बहुत लोकप्रिय रही हैं। टैगोर ने इतिहास, भाषाविज्ञान और आध्यात्मिकता से जुड़ी पुस्तकें भी लिखी थीं। टैगोर के यात्रावृन्त, निबंध, और व्याख्यान कई खंडों में संकलित किए गए थे, जिनमें यूरोप के जटरिर पत्रों (यूरोप से पत्र) और 'मनुशर धर्म' (मनुष्य का धर्म) शामिल थे। अल्बर्ट आइंस्टीन के साथ उनकी संक्षिप्त बातचीत, "वास्तविकता की प्रकृति पर नोट", बाद के उत्तरार्धों के एक परिशिष्ट के रूप में सम्मिलित किया गया है।

टैगोर के १५० वें जन्मदिन के अवसर पर उनके कार्यों का एक (कालनुक्रोमिक रबीन्द्र रचनाबली) नामक एक संकलन वर्तमान में बंगाली कालानुक्रमिक क्रम में प्रकाशित किया गया है। इसमें प्रत्येक कार्य के सभी संस्करण शामिल हैं और लगभग अस्सी संस्करण है। २०११ में, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने विश्व-भारती विश्वविद्यालय के साथ अंग्रेजी में उपलब्ध टैगोर के कार्यों की सबसे बड़ी संकलन द एसेंटियल टैगोर, को प्रकाशित करने के लिए सहयोग किया है यह फकराल आलम और राधा चक्रवर्ती द्वारा संपादित की गयी थी और टैगोर के जन्म की १५० वीं वर्षगांठ की निशानी हैं।

रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कृतियाँ

रवीन्द्रनाथ ठाकुर का सृष्टिकर्म काव्य, उपन्यास, लघुकथा, नाटक, प्रबन्ध, चित्रकला और संगीत आदि अनेकानेक क्षेत्रों में फैला हुआ है।

उपन्यास

करुणा (१८८०) : रवीन्द्रनाथ ठाकुर का पहला (लघु) उपन्यास। इसके स्वरूप को लेकर आरंभ में इसके उपन्यास माने जाने पर विवाद था; परंतु बाद में इसे उपन्यास के रूप में ही स्वीकृति मिली।

हिन्दी अनुवाद : 'रवीन्द्रनाथ टैगोर रचनावली' (सस्ता साहित्य मंडल, नयी दिल्ली से प्रकाशित) के खण्ड-२४ में संकलित।

बउ-ठाकुरानीर हाट (१८८२) : रवीन्द्रनाथ ठाकुर के प्रथम उपन्यास के रूप में प्रसिद्ध। यशोहर के राजा प्रतापादित्य और चंद्रद्वीप के राजा (जमींदार) रामचन्द्र राय के विवाद को आधार बनाकर लिखित ऐतिहासिक (लघु) उपन्यास। १३१६ बंगाब्द (१९०९ ई॰) में प्रकाशित उनका प्रायश्चित्त नाटक बउ-ठाकुरानीर हाट पर ही आधारित है। प्रायश्चित्त १३३६ बंगाब्द (१९२९ ई॰) में पुनर्लिखित होकर परित्राण नाम से मुद्रित हुआ।

हिन्दी अनुवाद : ठकुरानी बहू का बाजार नाम से 'रवीन्द्रनाथ टैगोर रचनावली' (सस्ता साहित्य मंडल, नयी दिल्ली से प्रकाशित) के खण्ड-२६ में संकलित।

'राजर्षि (१८८६) : त्रिपुरा के राजपरिवार के इतिहास को लेकर रचित ऐतिहासिक (लघु) उपन्यास। १२९७ बंगाब्द (१८९० ई॰) में इस उपन्यास के प्रथमांश के आधार पर विसर्जन नामक नाटक की रचना हुई।

हिन्दी अनुवाद : 'रवीन्द्रनाथ टैगोर रचनावली' (सस्ता साहित्य मंडल, नयी दिल्ली से प्रकाशित) के खण्ड-२३ में संकलित।

प्रजापतिर निर्बन्ध (१९०१) : हास्यरसात्मक (लघु) उपन्यास। १३११ बंगाब्द (१९०४ ई॰) में रबीन्द्र-ग्रन्थाबली ('हितबादीर उपहार') संकलन में चिरकुमार सभा नाम से प्रकाशित है। बाद में चिरकुमार सभा नाम से इस उपन्यास का नाट्यरूपान्तरण १३३२ बंगाब्द (१९२५ ई॰) में प्रकाशित हुआ।

नष्टनीड़ (१९०२) : सामाजिक-मनस्तात्त्विक उपन्यासिका। इस लघु उपन्यास के प्रकाशन से रवीन्द्रनाथ की अति विशिष्ट कथा-यात्रा, बल्कि बाङ्ला साहित्य की ही एक नयी कथा-यात्रा आरंभ हुई। बंगाली उच्च मध्यवर्ग की स्त्रियों की मनोदशा और उसकी विडंबना का इसमें बहुत ही प्रामाणिक और विश्वसनीय चित्र उकेरा गया है। इसका प्रकाशन लम्बी कहानी के रूप में भी होते रहा है। सत्यजीत राय ने सन् १९६४ में इसी कथा पर आधारित फ़िल्म 'चारुलता' बनायी थी।

हिन्दी अनुवाद : 'रवीन्द्रनाथ टैगोर रचनावली' (सस्ता साहित्य मंडल, नयी दिल्ली से प्रकाशित) के खण्ड-२९ में लम्बी कहानी के रूप में संकलित।

चोखेर बालि (१९०२) : सामाजिक-मनस्तात्त्विक उपन्यास। रवीन्द्रनाथ के श्रेष्ठ उपन्यास के रूप में प्रसिद्ध। २००३ साल में ऋतुपर्ण घोष ने इस उपन्यास के आधार पर चोखेर बालि चलचित्र का निर्माण किया।

हिन्दी अनुवाद : आँख की किरकिरी नाम से साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली से प्रकाशित एवं 'रवीन्द्रनाथ टैगोर रचनावली' (सस्ता साहित्य मंडल, नयी दिल्ली से प्रकाशित) के खण्ड-१६ में संकलित।

नौकाडुबि (१९०६) : सामाजिक उपन्यास। सर्वप्रथम १३१०-११ बंगाब्द में बंगदर्शन पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।

हिन्दी अनुवाद : नौका डूबी नाम से 'रवीन्द्रनाथ टैगोर रचनावली' के खण्ड-१७ में संकलित।

गोरा (१९१०) : महाकाव्यात्मक उपन्यास। रवीन्द्रनाथ टैगोर का दीर्घतम उपन्यास। देश पत्रिका एवं कई अन्य लोगों के विचार से बीसवीं शताब्दी का श्रेष्ठ बाङ्ला उपन्यास।

हिन्दी अनुवाद : साहित्य अकादेमी, नयी दिल्ली से प्रकाशित एवं 'रवीन्द्रनाथ टैगोर रचनावली' के खण्ड-१८ में संकलित।

घरे बाइरे (१९१६) : राजनैतिक उपन्यास। १९८४ साल में सत्यजित राय ने इस उपन्यास के आधार पर घरे बाइरे चलचित्र का निर्माण किया।

हिन्दी अनुवाद : घर और बाहर नाम से 'रवीन्द्रनाथ टैगोर रचनावली' के खण्ड-१९ में संकलित।

चतुरंग (१९१६) : सामाजिक-मनस्तात्त्विक (लघु) उपन्यास। रवीन्द्रनाथ के अत्यन्त श्रेष्ठ उपन्यास के रूप में प्रसिद्ध। २००८ साल में सुमन मुखोपाध्याय ने इस उपन्यास के आधार पर चतुरंग चलचित्र का निर्माण किया।

हिन्दी अनुवाद : 'रवीन्द्रनाथ टैगोर रचनावली' के खण्ड-२५ में संकलित।

योगायोग (१९२९) : सामाजिक-मनस्तात्त्विक उपन्यास। बिचित्रा मासिकपत्र में धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ था (आश्बिन, १३३४ - चैत्र, १३३५)। पत्रिका में प्रकाशन के समय नाम था तिन-पुरुष।

हिन्दी अनुवाद : 'रवीन्द्रनाथ टैगोर रचनावली' के खण्ड-२० में संकलित।

शेषेर कबिता (१९२९) : रोमांटिक-मनस्तात्त्विक काव्यात्मक (लघु) उपन्यास।

हिन्दी अनुवाद : आखिरी कविता नाम से 'रवीन्द्रनाथ टैगोर रचनावली' के खण्ड-२१ में संकलित।

दुई बोन (१९३३) : उपन्यासिका/लघु उपन्यास

हिन्दी अनुवाद : दो बहनें नाम से 'रवीन्द्रनाथ टैगोर रचनावली' के खण्ड-५० में संकलित।

मालंच (१९३४) : सामाजिक-मनस्तात्त्विक (लघु) उपन्यास। नर-नारी के जटिल सम्बन्ध के परिप्रेक्ष्य में रचित।

हिन्दी अनुवाद : फुलवाड़ी नाम से 'रवीन्द्रनाथ टैगोर रचनावली' के खण्ड-२५ में संकलित।

चार अध्याय १९३४) : राजनैतिक (लघु) उपन्यास। इस उपन्यास के रूप में रवीन्द्रनाथ ने सशस्त्र आन्दोलन के विरुद्ध तार्किक सृष्टि की है। उत्पल दत्त ने इस उपन्यास के नाट्यरूप का मंचन किया।

हिन्दी अनुवाद : एला दीदी नाम से 'रवीन्द्रनाथ टैगोर रचनावली' के खण्ड-२७ में संकलित।

से (१९३७) : मनस्तात्त्विक उपन्यासिका/लघु उपन्यास। रूपकथा (रहस्यमय एवं कौतुकपूर्ण) तथा कल्पनाश्रित विरूप (एब्सर्ड) कथा के संयोजन से रचित मनोरंजक कृति।

हिन्दी अनुवाद : 'वह' नाम से 'रवीन्द्रनाथ टैगोर रचनावली' के खण्ड-२२ में संकलित।

कविता

रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित समग्र कविता-पुस्तक/काव्य-संग्रहों की कालक्रमानुसार सूची इस प्रकार है :-

कवि काहिनी -1878, बनफूल -1881, भग्न हृदय -1881, संध्या संगीत -1882, प्रभात संगीत -1882, छबि ओ गान -1884, शैशव संगीत -1884, भानुसिंह ठाकुरेर पदावली -1884, कड़ि ओर कोमल -1887, मानसी 1890, सोनार तरी 1893, विदाय अभिशाप 1894, नदी 1896, चित्रा 1896, चैताली 1896, कणिका 1899, क्षणिका 1899, कल्पना -1900, काहिनी 1900, कथा 1900, नैवेद्य 1901, स्मरण 1903, शिशु 1903, उत्सर्ग 1903, खेया 1906, गीतांजलि 1910, गीतांजलि : सॉन्ग ऑफ़रिंग्स 1912 (गीतांजलि का अंग्रेजी गद्यानुवाद), गीतिमाल्य 1914, गीतालि 1914, बलाका 1916, पलातका -1918, लिपिका -1922, शिशु भोलानाथ -1922, पूरबी 1925, पथिक ('पूरबी' का उत्तरार्ध) -1925, प्रवाहिनी -1925, लेखन 1927, महुया 1929, वनवाणी 1931, परिशेष 1932, पुनश्च 1933, विचित्रिता 1933, शेष सप्तक 1935, वीथिका 1935, पत्रपुट 1936, श्यामली 1936, खापछाड़ा 1937, छड़ार छबि 1937, प्रान्तिक 1938, सेँजुति 1938, प्रहासिनी 1938, आकाश प्रदीप 1939, नवजातक 1940, सानाइ 1940, रोगशय्याय 1940, आरोग्य 1941, जन्मदिने 1941, छड़ा 1941, शेषलेखा 1941

लघुकथा

भिखारिणी, घाटेर कथा घाट की कथा, राजपथेर कथा राजपथ की कथा, देना-पाउना दहेज, पोस्टमास्टर, गिन्नि, सुभा, ब्यबधान व्यवधान, ताराप्रसन्नेर कीर्ति (ताराप्रसन्न की कीर्ति), बाबू की चरस, सम्पत्ति-समर्पण, दालिया, कंकाल, मुक्तिर उपाय (मुक्ति का उपाय), त्याग, एकरात्रि (एक रात), एकटा आषाढ़े गल्प, जीबन ओ मृत (जीवित और मृत), स्वर्णमृग, रीतिमत नावेल, जय-पराजय, काबुलिवाला, महामाया, रामकानाइयेर निर्बुद्धिता (रामकन्हाई की मूर्खता), ठाकुरदा (पितामह/दादा), दानप्रतिदान, सम्पादक, मध्यबर्तनी (मध्यवर्तिनी), असम्भब कथा, शास्ति (सजा), एकटि क्षुद्र पुरातन गल्प, समाप्ति, समस्यापूरण, खाता (कॉपी), अनधिकार प्रबेश, मेघ ओ रौद्र (धूप और छाया), प्रायश्चित, बिचारक, निशीथे (आधी रात में), आपद (आफत), दिदि (दीदी), मानभंजन, प्रतिहिंसा, अतिथि, दुराशा, पुत्रयज्ञ, डिटेक्टिव (जासूस), अध्यापक, राजटीका, मनिहारा, दृष्टिदान, सदर ओ अन्दर (बाहर और भीतर), उद्धार, फेल, शुभदृष्टि, उलुखरेर बिपद (तिनके का संकट), प्रतिबेशिनी (पड़ोसिन), दर्पहरन, माल्यदान, कर्मफल, गुप्तधन, माष्टर मोशाय (मास्टर साहब), रासमनिर छेले (रासमणि का बेटा), हालदार गोष्ठी (हालदार परिवार), हैमन्ती, बोष्टमी (वैष्णवी), स्त्रीर पत्र (पत्नी का पत्र), भाइफोँटा, शेषेर रात्रि (अंतिम रात), अपरिचिता, तपस्विनी, पात्र ओ पात्री, नामंजुर गल्प (विचित्र कहानी), संस्कार, बलाय (बला), चित्रकर, चोराइ धन (चोरी का धन), रबिबार (रविवार), शेष कथा, लेबोरेटरी, प्रगतिसंहार (कापुरुष), शेष पुरस्कार, पणरक्षा (प्रतिज्ञा), क्षुधितपाषाण, यज्ञेश्बरेर यज्ञ (यज्ञेश्वर का यज्ञ), दुर्बुद्धि, छुटि (छुट्टी)

गीतिनाट्य, नाटक, नृत्यनाट्य

रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा रचित 'नाटक' विधा के अन्तर्गत 'संगीत नाटक' अथवा 'गीतिनाट्य', 'काव्य नाटक', 'व्यंग्य नाटक', 'प्रहसन' आदि समस्त नाट्य रचनाओं की कालक्रमानुसार सूची इस प्रकार है :-

रुद्रचंड (लघु नाटिका) -1881, वाल्मीकि प्रतिभा (संगीत नाटक) -1881, कालमृगया (संगीत नाटक) -1882 (वाल्मीकि प्रतिभा के 1886 के संस्करण में समाहित), नलिनी -1884, प्रकृतिर प्रतिशोध -1884, मायार खेला -1888, राजा ओ रानी -1889, विसर्जन (राजर्षि उपन्यास पर आधारित) -1890 (1893 एवं 1926 में पुनर्लिखित), गोड़ाय गलद -1892, चित्रांगदा -1892, विदाय अभिशाप (काव्य नाटक) 1894, मालिनी -1896, बैकुंठेर खाता (बैकुंठ का पोथा) -1897, पंचभूतेर डायरी -1897, काहिनी (नाट्य कविताएँ) -1900, हास्य कौतुक -1907, व्यंग्य कौतुक -1907, शारदोत्सव -1908, मुकुट -1908, प्रायश्चित्त -1909, राजा -1910, अचलायतन -1911, डाकघर -1912, फाल्गुनी -1916, गुरु (अचलायतन का भिन्न रूपांतर) -1918, स्वर्ग-मर्त्य -1919, अरूप रतन (राजा का संक्षिप्त रूपांतर) -1920, ऋणशोध -1921, मुक्त धारा -1922, वसन्त -1923, रथयात्रा -1923, रक्त करबी (लाल कनेर) -1924, शोध बोध -1925, गृह प्रवेश -1925, शेष वर्षण -1925, सुंदर -1926, चिरकुमार सभा -1926, नटीर पूजा -1926, नटराज -1927, परित्राण -1927, ऋतुरंगशाला (नटराज का संशोधित रूप) -1927, शेष रक्षा (गोड़ाय जलद का पुनर्लिखित रूप) -1928, तपती (राजा ओ रानी पर आधारित) -1929, नवीन -1931, कालेर यात्रा -1932, तासेर देश (ताश का देश) -1933, चण्डालिका -1933, बंसरी (बाँसुरी) -1933, श्रावण गाथा -1934, चित्रांगदा -1936, परिशोध -1938, मुक्तिर उपाय -1938, स्वर्गे चक्रटेबिल बैठक (स्वर्ग का प्रहसन) -1938, श्यामा -1939

प्रमुख निबन्ध

रामायणी कथा -1878, चीने मरनेर व्यवसाय 1881, राजनीतिक द्विधा 1893, ऐतिहासिक निबंध 1898, काव्येर उपेक्षिता 1899, कुमारसंभव ओ शकुंतला 1901, शकुंतला 1902, साहित्येर तात्पर्य 1903, रंगमंच 1903, स्वदेशी समाज 1904, अवस्था ओ व्यवस्था 1905, सौंदर्य बोध -1906, विश्व साहित्य 1907, दुःख -1908, उत्सव -1908, आत्मपरिचय -1908, हिन्दू ब्राह्म -1908, तपोवन 1909, भारतवर्षीय इतिहासेर धारा 1912, स्वराज साधन 1925, शुद्र धर्म 1926, मानव सत्य 1933, मानुषेर धर्म (मानव धर्म) -1933, सभ्यतार संकट -1940

प्रमुख निबन्ध संग्रह

साहित्य 1907, धर्म 1908, विचित्र प्रबंध 1909, शांतिनिकेतन दो भागों में (1909-1915), राष्ट्रवाद 1917, साहित्येर पथे 1937, कालान्तर 1938

भ्रमण कथा

यूरोप प्रबासीर पत्र (१८८१), राशियार चिठि (१९१९), पारस्ये (१९१९), जापान यात्री (१९३१)

आत्मकथा/जीवनी

जीबनस्मृति -१९१२ (हिन्दी अनुवाद 'मेरी आत्मकथा' नाम से रवीन्द्रनाथ टैगोर रचनावली, खंड-४२ में संकलित।)
चरित्रपूजा -१९०७ (हिन्दी अनुवाद रवीन्द्रनाथ टैगोर रचनावली, खंड-४२ ('महापुरुष और यात्रा साहित्य' के अंतर्गत संकलित।)

पत्र-साहित्य

छिन्नपत्र (हिन्दी अनुवाद 'छिन्न पत्रावली' के नाम से दो भागों में 'रवीन्द्रनाथ टैगोर रचनावली' के खण्ड 39 एवं 40 के अंतर्गत सस्ता साहित्य मंडल, नयी दिल्ली से प्रकाशित।)

रवीन्द्र संगीत

टैगोर ने लगभग 2,230 गीतों की रचना की। रवींद्र संगीत बाँग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग है। टैगोर के संगीत को उनके साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता। उनकी अधिकतर रचनाएँ तो अब उनके गीतों में शामिल हो चुकी हैं। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ध्रुवपद शैली से प्रभावित ये गीत मानवीय भावनाओं के अलग-अलग रंग प्रस्तुत करते हैं।

अलग-अलग रागों में गुरुदेव के गीत यह आभास कराते हैं मानो उनकी रचना उस राग विशेष के लिए ही की गई थी। प्रकृति के प्रति गहरा लगाव रखने वाला यह प्रकृति प्रेमी ऐसा एकमात्र व्यक्ति है जिसने दो देशों के लिए राष्ट्रगान लिखा।

दर्शन

गुरुदेव ने जीवन के अंतिम दिनों में चित्र बनाना शुरू किया। इसमें युग का संशय, मोह, क्लान्ति और निराशा के स्वर प्रकट हुए हैं। मनुष्य और ईश्वर के बीच जो चिरस्थायी सम्पर्क है, उनकी रचनाओं में वह अलग-अलग रूपों में उभरकर सामने आया। टैगोर और महात्मा गाँधी के बीच राष्ट्रीयता और मानवता को लेकर हमेशा वैचारिक मतभेद रहा। जहां गान्धी पहले पायदान पर राष्ट्रवाद को रखते थे, वहीं टैगोर मानवता को राष्ट्रवाद से अधिक महत्व देते थे। लेकिन दोनों एक दूसरे का बहुत अधिक सम्मान करते थे। टैगोर ने गान्धीजी को महात्मा का विशेषण दिया था। एक समय था जब शान्तिनिकेतन आर्थिक कमी से जूझ रहा था और गुरुदेव देश भर में नाटकों का मंचन करके धन संग्रह कर रहे थे। उस समय गान्धी जी ने टैगोर को 60 हजार रुपये के अनुदान का चेक दिया था।

जीवन के अन्तिम समय ७ अगस्त १९४१ से कुछ समय पहले इलाज के लिए जब उन्हें शान्तिनिकेतन से कोलकाता ले जाया जा रहा था तो उनकी नातिन ने कहा कि आपको मालूम है हमारे यहाँ नया पावर हाउस बन रहा है। इसके जवाब में उन्होंने कहा कि हाँ पुराना आलोक चला जाएगा और नए का आगमन होगा।

विशेषताएं

पिता के ब्रह्मसमाजी होने के कारण वे भी ब्रह्म-समाजी थे।

उनकी रचनाओं में मनुष्य और ईश्वर के बीच के चिरस्थायी सम्पर्क की विविध रूपों में अभिव्यक्ति मिलती है।

उन्होंने बंगाली साहित्य में नए तरह के पद्य और गद्य के साथ बोलचाल की भाषा का भी प्रयोग किया। इससे बंगाली साहित्य क्लासिकल संस्कृत के प्रभाव से मुक्त हो गया। टैगोर की रचनायें बांग्ला साहित्य में एक नई ऊर्जा ले कर आई। उन्होंने एक दर्जन से अधिक उपन्यास लिखे। इनमे चोखेर बाली, घरे बहिरे, गोरा आदि शामिल है। उनके उपन्यासों में मध्यम वर्गीय समाज विशेष रूप से उभर कर सामने आया। 1913 ईस्वी में गीतांजलि के लिए इन्हें साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला जो कि एशिया मे प्रथम विजेता साहित्य मे है। मात्र आठ वर्ष की उम्र मे पहली कविता और केवल 16 वर्ष की उम्र मे पहली लघुकथा प्रकाशित कर बांग्ला साहित्य मे एक नए युग की शुरुआत की रूपरेखा तैयार की। उनकी कविताओं में नदी और बादल की अठखेलियों से लेकर अध्यात्मवाद तक के विभिन्न विषयों को बखूबी उकेरा गया है। उनकी कविता पढ़ने से उपनिषद की भावनाएं परिलक्षित होती है।

सम्मान

१९१३ ई. में रबीन्द्रनाथ ठाकुर को उनकी काव्यरचना गीतांजलि के लिये साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला।
१९१५ ई. में उन्हें राजा जॉर्ज पंचम ने नाइटहुड की पदवी से सम्मानित किया था। १९१९ ई. में जलियाँवाला बाग हत्याकांड के विरोध में उन्होंने यह उपाधि लौटा दी थी।

  • रबीन्द्रनाथ टैगोर की बांग्ला कहानियाँ और उपन्यास हिन्दी में
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