Bimaar (Drama) : Saadat Hasan Manto

बीमार (नाटक) : सआदत हसन मंटो

पात्र/अफ़राद
कुमार: (बीमार)
गिडवानी:
रशीद:
बेदी: कुमार के दोस्त
आत्मा सिंह:
माधव: कुमार का नौकर

(खाँसने की आवाज़ सुनाई देती है)
कुमार: (खाँसता है) माधव!(खाँसता है)।माधव!
माधव: (आवाज़ दूर से आती है) जी आया साहिब।
कुमार: इधर आ भाग के। उफ़, इस बुख़ार ने मुझे किस क़दर निढाल कर दिया है।(खाँसता है) अरे माधव!
माधव: आया साहिब।बस अभी हाज़िर हुआ सरकार(आवाज़ दूर से आती है)।
कुमार: तू जब तक हाज़िर होगा। मेरी जान लबों तक आ जाएगी कम्बख़्त। मुझे मालूम होता है तुझे बुख़ार से कभी वास्ता नहीं पड़ा।
माधव: क्या हुक्म है सरकार?
कुमार: सरकार के बच्चे!इतनी देर से जो तुझे बुला रहा हूँ क्या तो ने कानों में रूई ठोंस रखी है।
माधव: मैं सरकार, बावर्चीख़ाने में बर्तन साफ़ कर रहा था। फ़रमाईए क्या हुक्म है?
कुमार: मुझे दवा पिला।वक़्त हो गया है और तुझे ख़बर ही नहीं। कोई मरे कोई जिए तेरी बला से। (खाँसता है) परदेस तो वैसे ही दुख से भरा होता है और जब बुख़ार चढ़ जाये तो और मुसीबतें आ घेरती हैं। (खाँसता है) दोस्त यार इतने हैं। पर किसी ने भूले से भी इस तरफ़ का रुख नहीं किया। दवा बनाई तू ने?
माधव: बना ली सरकार।जो डाकदार साहिब ने रात को पिलाई थी। थोड़ी सी, चार पाँच घूँट वो भी मैंने मिक्सचर में डाल दी है।
कुमार: क्या?
माधव: ये बोतल वाली। (मेज़ पर से बोतल उठाने की आवाज़, ये रही बोतल सरकार!
कुमार: (ज़ोर से) तेरा सत्यानास हो। ब्रांडी के तीन पैग ग़ारत कर दिए नाबकार।
(खाँसता है) ये तुझसे किस ने कहा था कि फीवर मिक्सचर में ब्रांडी घोल दे।
माधव: नहीं साहिब। दूसरी बोतल की दवा भी तो डाली है।
कुमार: कौन सी?
माधव: ये रही साहिब (बोतल उठाने की आवाज़)
कुमार: तेरा बेड़ा ग़र्क़ हो माधव। तेरा बेड़ा ग़र्क़ हो। जा दूर हो जा (खाँसता है) पाजी। यू डी क्लोन की सारी शीशी तू ने फीवर मिक्सचर में डाल दी है। तेरा सत्यानास हो(खाँसता है) तो आज मुझे किस किस्म की दवा पिलाना चाहता है?
माधव: सरकार!
कुमार: ख़बरदार जो तूने अब कोई बात की। भाग जा यहां से भाग जा। अरे मैं तुझसे क्या कह रहा हूँ। दूर हो जा मेरी नज़रों से।
माधव: अच्छा साहिब, जाता हूँ।पर।
कुमार: तू चला जा यहां से। मैं कुछ सुनना नहीं चाहता। (खाँसता है)। उफ़, उफ़। खांसी से बुरा हाल हो रहा है। और इस नाबकार ने सारी दवा का सत्यानास मार दिया है।ये तो ख़ैर गुज़री जो मैंने इस से पूछ लिया। वर्ना फीवर मिक्सचर में ब्रांडी और यूडी क्लोन पीना पड़ते(बे-इख़्तियार हँसता है) फीवर मिक्सचर, ब्रांडी और यू डी क्लोन।क्या जोड़ है(हँसता है)
(घंटी बजती है)
कुमार: चले आओ। भई चले आओ। (आहिस्तगी से) शुक्र है कोई आया तो है।
(दरवाज़ा खुलने की आवाज़ सुनाई देती है)
गिडवानी: क्या क़िस्सा है भई, आज।तुम पेट भर के हंस रहे हो। क्या घर से ख़र्च आया है।या किसी लाटरी का टिकट निकल आया है?
कुमार: (ज़ोर से हँसता है।फिर ज़ोर ज़ोर से खाँसना शुरू क्रेता है)
गिडवानी: अरे क्या हो गया है तुम पागल तो नहीं हो गए। और ये कम्बल किया ओढ़ रखे हैं तुमने?
कुमार: (कमज़ोर आवाज़ में) बैठ जाओ। मैं तुम्हें सब कुछ बताता हूँ (खाँसता है) कल से मुझे बुख़ार आ रहा है। खांसी भी है (खाँसता है)
गिडवानी: तो कौन सी आफ़त आ गई।
कुमार: कल रात डाक्टर बुलवाया था। एक मिक्सचर दे गया है। दो ख़ुराकें पी हैं। अब तीसरी पीना थी। माधव को बुलाया कि बोतल में से दवा उंडेल दे। और उसने ये सारी बोतलें गिलास में ख़ाली कर दें।
गिडवानी: यू डी क्लोन, और ब्रांडी?
कुमार: हाँ, हाँ, ये पड़ा है ना गलास?
गिडवानी: (हँसता है) बाई गॉड। तुम्हारा ये माधव अब इस काबिल हो गया है कि उसे चिड़ियाघर भेज दिया जाये।
कुमार: मैं उस की बेवक़ूफ़ी पर हंस रहा था।
गिडवानी: और मैं तुम्हारी बेवक़ूफ़ी पर हंस रहा हूँ तुम्हें खांसी हो रही है। बुख़ार भी है और अभी तक तुमने ईलाज ही शुरू नहीं किया।
कुमार: मिक्सचर पी तो रहा हूँ।
गिडवानी: वो भी इसी किस्म का होगा। जैसा कि तुम्हारे माधव ने तैयार किया है। ये डाक्टर भला क्या जानें खांसी और बुख़ार का ईलाज। तुमने कल मुझे इत्तिला दी होती तो मैं यूं चुटकियों में ठीक कर देता।ख़ैर अब भी सब ठीक हो जाएगा। माधव कहाँ है?
कुमार: अंदर है(खाँसता है)
गिडवानी: माधव!माधव!
माधव: आया साहिब।क्या हुक्म है सरकार?
गिडवानी: तू इतना बड़ा हो गया है, मुँह पर इतनी बड़ी दाढ़ी लिए फिरता है पर अभी तक तुझे बुख़ार का ईलाज मालूम नहीं हुआ। जा किसी उतार की दुकान से दो पैसे की इमली और दो पैसे का आलू बुख़ारा ले आ।और साथ ही बाज़ार से मिट्टी का एक आबख़ोरा भी ले आइयो।समझ में आ गया ना? दो पैसे की इमली और दो पैसे का आलू बुख़ारा।जा भाग के जा।
कुमार: (खाँसता है) इमली और आलू बुख़ारा?
गिडवानी: तुम यूं पूछते हो। जैसे मैंने समरक़ंद और बुख़ारा मंगवाने भेजा है उसे।
कुमार: गिडवानी। ये दोनों चीज़ें खट्टी हैं और मैं(खाँसता है) खांसी से मर रहा हूँ।
गिडवानी: तुम इन बातों को नहीं समझ सकते।लोहे को लोहा काट सकता है खांसी का तोड़ सिर्फ़ इमली और आलू बुख़ारा है। पुराने ज़माने का सबसे अच्छा ईलाज है। सौ बीमारीयों की एक दवा है। ज़रा अपनी ज़बान तो दिखाओ।
कुमार: (मुँह खोलने की आवाज़) लो ।
गिडवानी: ज़रा और बाहर निकालो। मैं खींच तो नहीं लूँगा। आ करो।
कुमार: (ज़ोर से मुँह खौलता है) आ।
गिडवानी: कितनी मैली है। उफ़।कितनी मैली है। तुम्हें क़बज़ की शिकायत भी है बस इस दवा से यूं आराम आ जाएगा। यूं(चुटकी बजाता है)। माधव लेकर आए तो इस से कहना वो इमली और आलू बुख़ारे को आब ख़ोरे के अंदर डाल कर इस में पाओ भर पानी डाल दे। इस आब ख़ोरे को खुली छत पर रात-भर ओस में रहने देना। सुबह उठकर उसे छान के पी लेना।
कुमार: आराम आ जाएगा?
गिडवानी: फ़ौरन। अच्छा मैं अब जाता हूँ। कल दोपहर तक तुम बिलकुल ठीक हो जाओगे। कलब में मुलाक़ात होगी। गुड बाई।
कुमार: (खाँसता है) दरवाज़ा बंद कर देना।
(गिडवानी सीटी बजाता हुआ चला जाता है। माधव अंदर दाख़िल होता है)
कुमार: (खाँसता है) माधव ले आया। सब चीज़ें?
माधव: जी हाँ साहिब। आपके दोस्त रशीद साहिब आ रहे हैं।
कुमार: कहाँ हैं?
माधव: बस आ रहे हैं साहिब। माधव कहता है ।
रशीद: सुनाओ मियां। ये इमली और आलू बुख़ारे की चटनी कब से खाना शुरू की है। तुम्हें खांसी हो रही है। ऊपर से मौसम ख़राब है। क्यों ख़ुदकुशी करने का ख़्याल है जीने से तंग आ गए हो!
कुमार: (खाँसता है) अरे भई दवा है। गिडवानी आया था। वही नुस्ख़ा बता गया है (खाँसता है) कहता था यूं चुटकियों में आराम आ जाएगा।
रशीद: आराम चुटकियों में आ जाएगा। इस में कोई शक नहीं। आज इस नुस्खे़ को पियोगे यूं चुटकियों मैं तुम्हारा गला अंदर से फूल जाएगा। सांस रुक जाएगा और तुम्हारी हड्डियां मरघट के किसी कोने में जल रही होंगी।
कुमार: जाने दो यार मज़ाक़ को। मेरी जान निकल रही है और तुम्हें हंसी सूझती है। क्या सच-मुच दवा ठीक नहीं? (खाँसता है)
रशीद: लेमूँ का रस। अमचोरन। इमली। आलू बुख़ारा।तेल के पकौड़े। आम का अचार। बीर। लाल मिर्चें। ये सब कूट कर खाओ और दूसरी दुनिया का टिकट कटवा लो।
कुमार: अब जाने भी दो मज़ाक़ को। क्या इस दवा से आराम ना आएगा!
रशीद: गिडवानी के नुस्खे़ कामयाब होने लगें तो शहर के सारे डाक्टर और हकीम हींग बेचना शुरू कर दें। अरे बाबा, कभी सुना है आज तक किसी ने कि खांसी का ईलाज इमली, आलू बुख़ारे से किया जाये। तुम्हें कुछ भी नहीं हुआ। मेरा ख़्याल है तुम्हारी छाती में बलग़म बैठ गया है। सो वो एक मिनट में साफ़ हो सकता है।
कुमार: बलग़म है तो सही। सीना भारी भारी मालूम होता है।
रशीद: सर में दर्द भी होगा!
कुमार: थोड़ा थोड़ा।
रशीद: ठीक।और बदन भी दुखता होगा।
कुमार: रात-भर दुखता रहा है।
रशीद: तो ऐसा करो।माधव।
माधव: जनाब!
रशीद: तू यहां खड़ा है। अच्छा। देख मैं तुझे नुस्ख़ा बताता हूँ। भाग के गली के नुक्कड़ वाले उतार से बनवाला। दो पैसे के उन्नाब, एक पैसे का बिहीदाना। एक पैसे की मलट्ठी और दालचीनी एक पैसा का बनफ़्शा और ख़ुदा तेरा भला करे। एक पैसा का रेशा ख़तमी। बस दौड़ के ये तमाम चीज़ें ले आ। एक बर्तन में डाल कर थोड़े से पानी में उनको ख़ूब जोश देना और छानकर गर्मगर्म पी लेना पीने के बाद नाक मुँह लपेट कर सो जाना। सारी तकलीफ़ दूर हो जाएगी।
माधव: मैं जाऊं साहिब?
कुमार: जा, मगर जल्दी आइयो।
रशीद: और तुम्हारे पिंडे में दर्द भी तो है।
कुमार: हाँ। हाँ, है।
रशीद: तो इस का ईलाज मालिश है। ये तुम्हारे जिस्म में ख़ून की रफ़्तार तेज़ करेगी। यानी जितनी ख़ून की हरकत तेज़ होगी। उतनी ही सेहत बढ़ेगी। ख़ून की हरकत ठीक होने पर ऑक्सीजन बहुत ज़्यादा मिक़दार में ख़ून के ज़रीये से जिस्म में पहुँचेगी। तुम समझ रहे हो ना। तो मालिश जो है। सिर्फ इसी से ख़ून की हरकत ठीक की जा सकती है। तुम कपड़े उतार दो।
कुमार: सर्दी है।
रशीद: अम्मां हटाओ इस कम्बल को, तुम्हें ठीक भी होना है कि नहीं। चलो उतार दो बिनयान वनयान।
कुमार: मालिश कौन करेगा?
रशीद: तुम ख़ुद और कौन।बस-बस ये चड्डी रहने दो। अब मालिश के मअनी सुन लो। तुम्हें सब कुछ समझाए देता हूँ। मालिश जिस्म को आहिस्ता-आहिस्ता हाथों से रगड़ने को कहते हैं।पहले आहिस्ता-आहिस्ता हथेली से जल्द के हर एक हिस्से को रगड़ो। फिर ज़ोर ज़ोर से मलो। हाथ, पांव, छाती, पेट, सीना रान जिस्म के हर हिस्से पर मालिश होनी चाहीए।मालिश करने से पहले नारीयल सरसों, ज़ैतून या बादाम का तेल, घी या वेज़लेन लगा लेनी चाहीए इस से बदन को तकलीफ़ नहीं पहुँचेगी। समझ गए ना?
कुमार: समझ गया। मेरे पास वेज़लेन तो है।
रशीद: ठीक है। तो बस शुरू कर दो।अल्लाह का नाम लेकर।
कुमार: तुम जा रहे हो?
रशीद: भई माफ़ करना मुझे ज़रूरी काम है वर्ना मैं यहां ज़रूर ठहरता। ख़ुदा हाफज़ (चला जाता है)
कुमार: उफ़ कितनी सर्दी है।(खाँसता है) बदन का जोड़ जोड़ सर्दी से जम रहा है।
(दरवाज़े पर दस्तक की आवाज़)
कुमार: (खाँसता है) कौन है?
बेदी: बेदी है बेदी। (दूर से आवाज़ आती है) कोई जिन्न भूत नहीं है
कुमार: तो आ जाओ अंदर। बाहर खड़े क्या चिला रहे हो (खाँसता है दरवाज़ा खुलने की आवाज़)
बेदी: ये क्या सिलसिला है।अरे! तुम तो पहलवानी सीख रहे हो क्यों पढ़ना वुड़ना तर्क कर दिया?
कुमार: मैं मर रहा हूँ और तुम्हें मज़ाक़ सूझ रहा है (खाँसता है)।
बेदी: भई वाह मरने की ख़ूब कही डन पेल रहे हो और कहते हो मर रहा हूँ (हँसता है) आख़िर बताओ तो सही कि ये सिलसिला किया है।
कुमार: सुन तो लो। अभी रशीद आया था उसने कहा है मालिश से आराम आ जाएगा।
बेदी: (हँसता है) कहता था कि मालिश से आराम आ जाएगा (ज़ोर ज़ोर से हँसता है) अबे चुग़द वो तुझे बना गया है(हँसता है) अजीब मसख़रा है और तुम भी कितने बुध्धू हो कि उस शरीर की बात मान गए, तुम्हें सच-मुच खांसी आ रही है क्या?
कुमार: तो और क्या झूट बक रहा हूँ? (खाँसता है)
बेदी: अरे!तुम्हें तो वाक़ई खांसी की शिकायत है सीने में दर्द तो नहीं किया?
कुमार: है तो सही। रशीद कह रहा था कि बलग़म बैठ गया है।
बेदी: सीने में दर्द हो रहा है ना?
कुमार: हाँ हाँ
बेदी: तो यहां नंग धड़ंग क्यों बैठे हो। क्या मरने का ख़्याल है। लोगों को धड़ा धड़ निमोनिया हो रहा है। उठो उठो मैं कह रहा हूँ जल्दी उठो।
कुमार: उठता हूँ।
बेदी: जल्दी उट्ठो!। बिस्तर में लेट जाओ बस-बस ये कम्बल ओढ़ लो। कोई और कम्बल है। ये भी ऊपर डाल लो बस-बस तुम्हारा ये ओवरकोट।ये भी ऊपर डाल देता हूँ।माधव!
कुमार: बाहर गया है।
बेदी: कहाँ भेज दिया तुमने उसे। आए तो इस कमरे को फ़ौरन अँगीठी से गर्म कराओ। तुम भी निरे अहमक़ हो।
कुमार: (खाँसता है) अरे भई क्या हुआ।
बेदी: हुआ क्या मैं वक़्त पर ना पहुंचता तो सब कुछ होके रहता। दूसरे दिन का सूरज देखना तुम्हें नसीब ना होता जनाब को ज़ुकाम है खांसी है सीने में दर्द है। फेफड़ों में वर्म हो गया है और ईलाज क्या हो रहा है! डनटर पेले जा रहे हैं कल तुम्हारे पेट में दर्द होगा तो नाचना शुरू कर दोगे, परसों तुम्हारी आँखें दुखेंगी तो क्रिकेट खेल कर इस मर्ज़ का ईलाज करोगे!हद हो गई है।कोई अक़लमंद आदमी पास ना हो तो इस से बढ़कर हमाक़तें भी हो सकती हैं मामूली बात पर तुमने अपनी बे समझी से मर्ज़ इतना बढ़ा लिया है।
कुमार: (खाँसता है) तुम अब ये लैक्चर क्यों दे रहे हो।
बेदी: लैक्चर इस लिए दे रहा हूँ कि जनाब को निमोनिया होने के क़रीब क़रीब है।
कुमार: निमोनिया!
बेदी: जी हाँ निमोनिया और आपके फेफड़ों पर सर्दी का असर हो चुका है।
कुमार: (खाँसता है) क्या कह रहे हो बेदी!
बेदी: निमोनिया निमोनिया।प्लेग तो नहीं कह सकता। सुनो अब अपनी बकवास बंद करो मैं अपने घर से राई का पलसतर बनवा के भेजता हूँ उसे गर्म गर्म सीने पर लगा देना फ़ौरन आराम आ जाएगा तुम्हें ज़ुकाम भी तो है।ठहरो तो।मेरी जेब में इस का ईलाज मौजूद है ये रहा।
कुमार: क्या है(खाँसता है)
बेदी: कुछ भी हो तुम्हें आम खाने से ग़रज़ है ना कि पेड़ गिनने से। ये लो उस की एक चुटकी भर के सूंघ लो।
कुमार: (खाँसता है) पता भी तो चले किया है!
बेदी: नसवार है। नसवार।ज़ुकाम के लिए अकसीर है । सूँघ लो ।साँप तो नहीं जो तुम्हें डस लेगा।
कुमार: यहां तिपाई पर रख दो मैं अभी सूँघता हूँ
बेदी: शाबाश। तो अच्छा। मैं चलता हूँ। मुझे वकील के यहां जाना है पर तुम उसे याद से सूँघ लेना पलसतर मैं अभी भिजवा देता होऊं बे फ़िक्र रहो कल तक तुम बिलकुल ठीक हो जाओगे।माधव आ गया है तो?
माधव: जी हाँ साहिब
बेदी: किसी बड़ी अँगीठी में कोइले सुलगा कर इस कमरे में ले आओ समझे!
माधव: जी हाँ साहिब
बेदी: अच्छा भई मैं अब चलता हूँ
माधव: सरकार मैं जोशांदा ले आया हूँ उतार के पास मलट्ठी नहीं थी इस लिए पान वाले से ख़ुशबू की गोलीयां लेता आया हूँ
कुमार: कत्था और चूना भी ले आ
माधव: बहुत अच्छा सरकार
कुमार: ज़ोर से चिलाता है भाग जा यहां से माधव भाग जा मैं दीवाना हो जाऊँगा।
माधव: सरकार मेरा क़सूर?
कुमार: तो अब ज़्यादा बक बक ना कर।भाग जा यहां से।नाबकार पाजी। बेवक़ूफ़। अहमक़ (ज़ोर ज़ोर से खाँसता है) उफ़ उफ़ कैसे पागल नौकर से वास्ता पड़ा है। कहाँ रख गया है निसवार।ये रही। थोड़ी सी सूंघ ही लूं। छींक।खांस।छींक)
आत्मा सिंह: कुमार!कुमार! वही हुआ जिसका खटका था तुमने उस नालायक़ बेदी का कहा मान ही लिया भला वो जाहिल डाक्टर किया जाने।मेरी और उस की रास्ते में बेहस भी हुई! अब भागा भागा यहां आ रहा हूँ और ये देखता हूँ कि तुम नाक में पाओ भर निसवार ठूंसे बैठे हो। मैं पूछता हूँ तुम्हारी अक़ल कहाँ चरने गई है।
(इस मकालमे के दौरान में कुमार की छींकों की आवाज़ आती रहती है)
कुमार: (छींकें) में तो बहुत तंग आ गया हूँ। सुबह से एक हज़ार ईलाज बदल चुके हैं। जो आता है। हिक्मत का नया पिटारा खोल देता है(छींक) मैं क्या(छींक) करूँ।
आत्मा सिंह: तुम कुछ ना करो मुझ पर भरोसा रखो मेरा बाप अव़्वल दर्जे का हकीम था उस का बाप यानी मेरा दादा भी हकीम था।मैं ईलाज मुआलिजे के मुताल्लिक़ बहुत कुछ जानता हूँ। तुम्हारे अन्दर सुफ़रा बढ़ गया है और तुम्हें कोई बीमारी नहीं सीने में जलन सी महसूस तो नहीं होती!
कुमार: (छींक) होती है थोड़ी सी
आत्मा सिंह: थोड़ी ही होना चाहीए आँखों के आगे कभी कभी अंधेरा भी आ जाता होगा!
कुमार: सुबह तो ऐसा मालूम नहीं होता था।
आत्मा सिंह: ये सुफ़रा की सबसे बड़ी निशानी है। कद्दू के टुकड़े सर पर घिसो। बार्ली वाटर का तीन चार दिन इस्तिमाल करो और और ! भला सा नाम है इस का।हाँ संदल का बुरादा और काफ़ूर को पानी में भिगो कर बार-बार सूंघो। खीरे और ककड़ी के बीज खाओ तो वो भी अच्छे रहेंगे।
कुमार: ठीक है अब जाओ मैं सब चीज़ें मंगा लूंगा मुझे नींद आ रही है।
आत्मा सिंह: मैं जाता हूँ पर तुम भूल जाओगे मैं ख़ुद ही सारी दवाएं लेकर अभी आता हूँ।
कुमार: हाँ हाँ ये अच्छा रहेगा। दरवाज़ा भीड़ देना (दरवाज़ा भीड़ने की आवाज़)।
कुमार: (खाँसता है) अगर अब कोई और आ गया तो मैं यक़ीनन पागल हो जाऊँगा एक ही दिन कितने ईलाज मालूम हुए हैं (खाँसता है) फीवर मिक्सचर में ब्रांडी और यूडी क्लोन। इमली ।और आलू बुख़ारा, उन्नाब बिहीदाना और बनफ़्शा मलट्ठी और दार चीनी कत्था और चूना।ख़ुशबू की गोलीयां। तेल की मालिश। कोयलों की अँगीठी।राई का पलसतर निसवार(छींक) और अब कद्दू के टुकड़े, बार्ली वाटर संदल का बुरादा और काफ़ूर।खीरे और ककड़ी के बीज। कोई और आया?
(दरवाज़े पर दस्तक की आवाज़)
कुमार: कौन है? चले आओ
निरावन: मैं आपका पड़ोसी हूँ मुझे अभी मालूम हुआ कि आप कल से बीमार पड़े हैं क्या आपकी ख़िदमत कर सकता हूँ।
कुमार: शुक्रिया । तशरीफ़ रखीए।
निरावन: ईलाज तो आप कर रहे होंगे
कुमार: जी हाँ।अगर आप को कोई ईलाज है तो फ़ौरन बता दीजिए। ज़रा देर ना लगाइये मेरे सर में दर्द है, दाँतों को पाईओरया हो रहा है, गठिया भी है, निमोनिया हो चुका है, प्लेग होने वाली है, हैज़ा कल हो जाएगा।
निरावन: फिर तो केस Serious मालूम होता है!
कुमार: जी हाँ बहुत Serious, हिस्टेरिया के दौरे पड़ते हैं।
निरावन: हिस्टेरिया!
कुमार: जी हाँ हिस्टेरिया। पिसली में दर्द है, दाँत निकल रहे हैं, इनफ़लोइंज़ा की अलामात ज़ाहिर हो रही हैं। अंतड़ियों में वर्म हो गया है दिक़ परसों तक हो जाएगा बताईए क्या आप उस का कोई ईलाज बता सकते हैं मालीखूलिया भी हो गया है।
निरावन: इस में क्या शक है। ईलाज, मेरा ख़्याल है।
कुमार: आपका ख़्याल है कि इन तमाम बीमारीयों का ईलाज सिर्फ एक है और वो ये कह दो छटांक दूध में सरका डाल कर पियूँ, सेब छील कर उसे सर पर घिसूं नमक सुलैमानी में चावल का आटा डाल कर सारा दिन फांकता रहूं। गुड़ के शर्बत में हिना का इतर घोल कर सूंघूं हीज़लीन सुनो की मालिश करूँ, गर्मगर्म कोलतार का पलसतर सीने पर लगाऊँ, बक्री की मेंगणों पर कस्तूरी चढ़ा कर बबूल की छाल के अर्क़ के साथ निगलता रहूं डनटर पेलूं, मुगदर घुमाओं नाचूं गाऊँ यही कहना चाहते थे ना आप! अब आप तशरीफ़ ले जाईए आपका बहुत बहुत शुक्रिया, माधव!माधव!माधव!
माधव: जी आया साहिब
कुमार: उनको उतार की दुकान पर ले जाओ और ब्रांडी में पान के पत्ते डाल कर उन्हें दो तीन घूँट पिला दो
निरावन: आप ! आप! मैं ! मैं!
(फेड आउट)

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