बिल्लियों की कहानी : इतालवी लोक-कथा

Billiyon Ki Kahani : Italian Folk Tale

एक स्त्री के दो बेटियाँ थीं – एक तो उसकी अपनी बेटी थी और दूसरी उसकी सौतेली बेटी थी। वह अपनी बेटी को तो बहुत प्यार करती थी पर अपनी सौतेली बेटी को नौकर की तरह से रखती थी।

एक दिन उसने अपनी सौतेली बेटी को चिकोरी इकठ्ठी करने के लिये जंगल भेजा पर काफी ढूँढने के बाद भी उसको चिकोरी तो मिली नहीं उसको एक बहुत बड़ा गोभी का फूल दिखायी दे गया। उसने उस गोभी के फूल को उखाड़ने की कोशिश की पर वह उसको काफी कोशिशों के बाद ही उखाड़ पायी।

उस फूल को उखाड़ने से वहाँ एक बहुत बड़ा गड्ढा बन गया – एक कुँए जितना बड़ा। उस कुँए में नीचे जाने के लिये एक सीढ़ी बनी हुई थी। वह लड़की यह जानने के लिये बहुत उत्सुक थी कि उस कुँए में क्या था सो वह उस सीढ़ी के सहारे सहारे उस कुँए में नीचे उतर गयी।

नीचे जा कर उसको एक घर मिला जो बिल्लियों से भरा हुआ था। सारी बिल्लियाँ अपने अपने कामों में लगी हुई थीं। कोई घर की सफाई कर रही थी, तो कोई कुँए से पानी खींच रही थी, तो कोई सिलाई कर रही थी। कोई कपड़े धो रही थी तो कोई डबल रोटी बना रही थी।

लड़की ने एक बिल्ली के हाथ से झाड़ू ले ली और उसकी घर की सफाई में मदद करने लगी। फिर एक दूसरी बिल्ली से उसने मैली चादरें ले लीं और उसकी उनको धोने में मदद करने लगी। फिर उसने उनकी पानी खींचने में मदद की और एक बिल्ली को डबल रोटी ओवन में रखने में मदद की।

दोपहर को एक बड़ी बिल्ली आयी जो उन सब बिल्लियों की माँ थी। आ कर उसने घंटी बजायी “डिंग डौंग, डिंग डौंग” और बोली — “जिस जिसने काम किया है वह यहाँ आ कर खाना खा ले। और जिसने भी काम नहीं किया है वह आये और हमको खाना खाते देखे।”

बिल्लियाँ बोलीं — “माँ, हममें से हर एक ने काम किया है पर इस लड़की ने हम सबसे ज़्यादा काम किया है।”

बड़ी बिल्ली बोली — “तुम बहुत अच्छी लड़की हो। आओ और हमारे साथ आ कर खाना खाओ।” सो वे दोनों एक मेज पर बैठ गयीं।

माँ बिल्ली ने उसको थोड़ा सा माँस दिया, मैकेरोनी दी और भुना हुआ मुर्गा दिया पर उसने अपने बच्चों को केवल बीन्स ही दीं।

इससे वह लड़की कुछ नाखुश हो गयी क्योंकि यह अच्छा खाना केवल वही अकेले खा रही थी और बाकी सब बिल्लियाँ तो केवल बीन्स ही खा रही थीं। उसको वे भूखी भी लगीं सो उसने अपने खाने में से हर चीज़ उनको दी।

जब वे सब खाना खा कर उठे तो लड़की ने मेज साफ की, बिल्लियों की भी प्लेटें साफ कीं, कमरा बुहारा और सारा सामान जहाँ रखा जाना चाहिये था वहीं रख दिया।

फिर उसने माँ बिल्ली से कहा — “माँ बिल्ली, अब मुझे अपने घर जाना चाहिये नहीं तो मेरी माँ मुझे डाँटेगी।”

माँ बिल्ली बोली — “बेटी एक मिनट। ज़रा रुको। मैं तुमको कुछ देना चाहती हूँ।”

उनके घर के नीचे की तरफ एक बहुत बड़ा भंडारघर था जिसमें बहुत सारी चीज़ें रखी थीं – सिल्क का सामान, पोशाकें, स्कर्ट, ब्लाउज़, ऐप्रन, सूती रूमाल, गाय की खाल के जूते आदि आदि।

माँ बिल्ली उस लड़की को नीचे ले गयी और बोली — “तुमको इसमें से जो चाहिये वह ले लो।”

उस गरीब लड़की ने जो नंगे पैर थी और फटे कपड़ों में थी बोली — “बस मुझे एक ड्रैस दे दो, एक गाय की खाल का जूता दे दो और एक स्कार्फ। बस केवल इतना ही।”

माँ बिल्ली बोली — “नहीं केवल इतना ही नहीं तुमने मेरी बच्चियों की बहुत सहायता की है इसलिये मैं तुमको एक बहुत ही अच्छी भेंट दूँगी।”

कह कर उसने वहाँ से सबसे अच्छा सिल्क का एक गाउन उठाया, एक बड़ा और बहुत सुन्दर रूमाल और एक जोड़ी स्लिपर उठाये और उन सबको उस लड़की को पहना कर बोली — “अब जब तुम बाहर जाओगी तो तुमको दीवार में छोटे छोटे छेद दिखायी देंगे। तुम उनमें अपनी उँगली डालना और उसके बाद ऊपर देखना और फिर देखना कि क्या होता है।” और उसको विदा किया।

जब वह लड़की बाहर गयी तो उसको दीवार में छेद दिखायी दिये। माँ बिल्ली के कहे अनुसार उसने उनमें अपनी उँगलियाँ डालीं तो उसकी उँगलियों में बहुत सुन्दर सुन्दर अंगूठियाँ आ गयीं।

फिर उसने ऊपर देखा तो एक तारा उसकी भौंह पर आ गिरा। इस तरह वह एक दुलहिन की तरह सजी धजी घर पहुँची।

उसकी सौतेली माँ ने पूछा — “तुझको ये इतनी अच्छी अच्छी चीजें. कहाँ से मिलीं?”

वह लड़की सीधे स्वभाव बोली — “माँ मुझको कुछ छोटी छोटी बिल्लियाँ मिल गयी थीं। मैंने उनका काम करने में थोड़ी सी मदद कर दी तो उन्होंने मुझे ये थोड़ी सी भेंटें दे दीं।” और उसने उनको अपनी सारी कहानी सुना दी।

यह सुन कर उसकी सौतेली माँ तो बस उस जगह अपनी आलसी बेटी को भेजने का इन्तजार करने लगी। अगले दिन उसने अपनी बेटी से कहा — “बेटी जा तू भी जा ताकि तू भी अपनी बहिन की तरह से अमीर हो कर आ सके।”

वह बोली — “मुझे नहीं चाहिये यह सब। मैं कहीं नहीं जाती।” क्योंकि उसको तो बड़े आदमियों से बात करने की भी तमीज नहीं थी।

वह फिर बोली — “और हाँ मुझे तो अभी कहीं जाना भी नहीं है। बाहर बहुत ठंडा है। मैं तो यहीं आग के पास बैठती हूँ।”

पर उसकी माँ ने एक डंडी उठायी और उससे उसको हड़काते हुए घर के बाहर निकाल दिया। सो अब तो उस बेचारी को वहाँ से उन बिल्लियों के घर जाना ही पड़ा। बड़ी मुश्किल से तो उसको वह बड़ा गोभी का फूल मिला और फिर बड़ी मुश्किल से उससे वह उखड़ा।

फूल उखाड़ कर वह भी उस कुँए में बनी सीढ़ियों से उतर कर नीचे बिल्लियों के घर में पहुँची।

जब उसने पहली बिल्ली को देखा तो हँसी हँसी में उसने उसकी पूँछ अपनी टाँगों के बीच में दबा ली। फिर दूसरी को देखा तो उसके कान खींच लिये और तीसरी की मूँछें खींच लीं।

जो बिल्ली सिलाई कर रही थी उसने उसकी सुई में से धागा निकाल दिया। जो बिल्ली पानी खींच रही थी उसकी उसने बालटी का पानी पलट दिया।

इस तरह उसने उन सब बिल्लियों के सारे काम रोक दिये जो वे उस समय कर रही थीं। वे बेचारी कुछ भी नहीं कर सकीं।

दोपहर को जब माँ बिल्ली आयी तो उसने रोज की तरह घंटी बजायी “डिंग डौंग, डिंग डौंग।” और आ कर रोज की तरह से बोली “जिस किसी ने भी काम किया है वह यहाँ आये और खाना खा ले और जिसने भी काम नहीं किया है वह हमको केवल खाना खाते देखता रहे।”

बिल्लियाँ बोलीं — “माँ, हम लोग तो काम करना चाहते थे पर इस लड़की ने हमको हमारी पूँछ पकड़ कर खींच लिया, हमारे सारे काम रोक दिये और हमारी ज़िन्दगी दूभर कर दी इसलिये हम कुछ भी नहीं कर सके।”

माँ बिल्ली बोली — “ठीक है, आओ मेज पर बैठो और खाना खाओ।”

माँ बिल्ली ने उस लड़की को सिरके में डूबी हुई जौ की केक खाने के लिये दी और अपनी बच्चियों को मैकेरोनी और माँस खाने के लिये दिया। जितनी देर तक वे सब खाना खाते रहे वह लड़की बिल्लियों का ही खाना खाती रही।

जब उनका खाना खत्म हो गया तो उस लड़की ने कुछ नहीं किया – न तो उसने मेज साफ की, न ही उसने प्लेटें साफ कीं और न ही उसने वहाँ का सब सामान वहाँ से उठा कर उनकी जगह रखा।

वह बोली — “माँ बिल्ली, मुझे वह सब सामान दो जो तुमने मेरी बहिन को दिया था।”

माँ बिल्ली उसको नीचे बने अपने भंडारघर में ले गयी और उससे वहाँ रखे सामान को दिखा कर पूछा कि उसमें से उसको क्या चाहिये।

उस सब सामान को देख कर तो उस लड़की की आँखें चकाचौंध गयीं। वह लड़की बोली — “वह वाली पोशाक जो सबसे अच्छी है और वह वाले जूते जिनकी एड़ी सबसे ऊँची है। वह मुझे दे दो।”

माँ बिल्ली बोली — “ठीक है। तुम अपने कपड़े उतारो और यह तेल लगी ऊनी पोशाक पहन लो और ये जूते जिनकी एड़ी सारी खत्म हो चुकी है इनको पहन लो।”

उसको ये कपड़े पहना कर और उसके बालों में एक फटा स्कार्फ बाँध कर उस माँ बिल्ली ने उसको वहाँ से भेज दिया और बोली — “अब तुम जाओ और जब तुम बाहर जाओ तो तुमको दीवार में छोटे छोटे छेद दिखायी देंगे। तुम उनमें अपनी उँगलियाँ डालना और फिर ऊपर देखना और फिर देखना कि क्या होता है।”

यह सब पहन कर वह लड़की वहाँ से चली गयी। बाहर जा कर उसने दीवार में कुछ छेद देखे तो उनमें अपनी उँगलियाँ डाल दीं। उसकी उँगलियों में बहुत सारे कीड़े लिपट गये। उसने अपनी उँगलियों को उन छेदों में से जितना खींचने की कोशिश की उतनी ही वे उसमें जकड़ी रह गयीं।

फिर उसने ऊपर देखा तो एक खून से भरा सौसेज उसके मुँह पर गिर पड़ा और वहाँ से वह नीचे गिरा भी नहीं इसलिये उसे उसको बराबर खाते रहना पड़ा।

जब वह इस पोशाक में घर पहुँची तो वह एक चुड़ैल से भी बुरी शक्ल में थी। उसकी माँ तो उसको इस शक्ल में देख कर इतना गुस्सा और परेशान हुई कि वह तो वहीं की वहीं मर गयी। और वह लड़की भी वह खून भरा सौसेज खा कर कुछ दिनों बाद ही मर गयी।

इस तरह दूसरों से अच्छे व्यवहार और बुरे व्यवहार का नतीजा ऐसा ही होता है।

(साभार : सुषमा गुप्ता)

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