बिलाल की जिद : कश्मीरी लोक-कथा
Bilal Ki Jid : Lok-Katha (Kashmir)
बिलाल ने फिर जिद पकड़ ली कि वह तब तक रोटी नहीं
खाएगा, जब तक उसका नाम नहीं बदला जाएगा। माँ ने लाख समझाया
पर वह टस-से-मस नहीं हुआ। बिलाल के दोस्तों ने उसके मन में वहम
डाल दिया था कि उसका नाम सुंदर नहीं है।
तंग आकर उसकी माँ ने कहा, 'जा बेटा, जो नाम तुझे पसंद हो
वही छाँट ला। मैं तेरा नाम बदलवा दूँगी।'
बिलाल जी नए नाम को खोज में निकले। एक आदमी की
शवयात्रा जा रही थी। बिलाल ने लोगों से पूछा-
'यह जो मर गया, इसका नाम क्या था?'
लोगों ने उत्तर दिया, 'अमरनाथ।'
“हैं, नाम अमरनाथ है, फिर भी मर गया!' बिलाल हैरान हो
गया।
आगे बाजार में एक बुढिया माई सब्जी बेच रही थी। उसकी सड़ी
हुई सब्जी कोई नहीं खरीद रहा था। बिलाल ने उसी से पूछा, “माई,
तुम्हारा नाम क्या है?!
माई ने खाँसते-खाँसते जवाब दिया-
“मुझे रानी कहते हैं।"
बिलाल ने अचरज से उसके चेहरे की ओर देखा और आगे बढ़
गया। एक मैदान में दंगल हो रहा था। दोनों दलों के व्यक्ति अपने-अपने
पहलवानों की प्रशंसा में लगे थे। बिलाल ने एक हट्टे-कट्टे पहलवान
का नाम जानना चाहा तो लोगों ने कहा-
'अरे बेटा, उसे नहीं जानते वह तो मशहूर चींटी दादा है।'
बेचारा बिलाल परेशानी में पड़ गया-
अमरनाथ तो स्वर्ग सिधार गया।
सब्जी बेचे रानी।
आया नया जमाना
चींटी दादा करे पहलवानी।
शाम को थक-हारकर बिलाल घर पहुँचा तो माँ ने पूछा, 'मेरे
लाल को क्या नाम पसंद आया?'
बिलाल ने माँ के गले में बाँहें डाल दीं और लाड से बोला-
'माँ, नाम में क्या रखा है! इंसान अपने कर्मों से महान बनता है। मेरे नाम
में कोई कमी नहीं है। मैं बिलाल ही ठीक हूँ।'
माँ ने चैन की साँस ली। उसके बेटे ने बहुत सच्ची बात कही थी।
(भोला 'यामिनी')