भ्रम (कहानी) : विभा देवसरे

Bhram (Hindi Story) : Vibha Devsare

उस दिन किटी पार्टी में खासा हंगामा हो गया। बात ही कुछ ऐसी थी। कोई यह मानने को तैयार ही नहीं था कि मिसेज पुरी इस उम्र में प्रेगनेंट हो सकती हैं। सभी महिलाएँ आश्चर्यचकित थीं कि साठ की उम्र पार कर गई मिसेज पुरी कैसे प्रेगनेंट हो सकती हैं। पर यह भी कुछ कम आश्चर्यजनक नहीं था कि भला मिसेज पुरी इस तरह का झूठ क्यों बोलेंगी ? चार बच्चों की माँ हैं, नाती-पोतेवाली हैं। सब बच्चे सैटल हो गए हैं। सभी अच्छी पोजीशन में हैं। बेटी तो अपने पति के साथ अमेरिका में है। अब मिसेज पुरी का खुद का यह बयान कि वह प्रेगनेंट हैं, इसे झुठलाया भी कैसे जा सकता है! किटी पार्टी की कुछ अति आधुनिक विदुषी महिलाओं ने यह तर्क दिया कि आज के वैज्ञानिक युग में सब संभव है। अब टेस्ट ट्यूब में बच्चे बनने लगे हैं। किराए की कोख का इस्तेमाल आम प्रचलन होता जा रहा है, तो असंभव की कोई लक्ष्मण रेखा खींची ही नहीं जा सकती है। लेकिन फिर एक बात की सुई घिसे हुए रिकॉर्ड पर अटक जाती, 'आखिर मिसेज पुरी इस उम्र में प्रेगनेंट कैसे हो गईं ?' कुछ महिलाओं का यह भी तर्क था कि साठ की मिसेज पुरी सठिया गई हैं, खिसक गई हैं। क्यों अचानक एक दिवास्वप्न में जीने लगी हैं ? सभी का आश्चर्य अपने चरम पर था क्योंकि मिसेज पुरी का हाव-भाव, उनकी चाल, उनके अंदाज इस बात का पूरा संकेत दे रहे थे कि वह गर्भवती हैं। गर्भवती नवविवाहिता जैसी झलक लाने की बनावटी कोशिश मिसेज पुरी के चेहरे पर लुका- छिपी का खेल खेल रही थी। किटी की कुछ महिलाओं के लिए तो यह बात हास्य का चटपटा मसाला बनी हुई थी। कुछ खोजी महिलाएँ उस रहस्य की परतों में डूब- उतरा रही थीं। मिसेज सिन्हा तो मिसेज पुरी की हमउम्र हैं। दोनों की पारिवारिक मित्रता वर्षों से है। उन्हें सबसे ज्यादा तकलीफ इस बात से हो रही थी कि मिसेज पुरी आखिर इस बात से अपनी दुर्गति क्यों करा रही हैं? उन्होंने किटी पार्टी की सबसे तेज महिला मिसेज कपूर को भरसक यह समझाना चाहा कि मिसेज पुरी के बारे में यह जो अफवाह फैलती जा रही है, वह सच हो ही नहीं सकती। बस, दुःख तो इस बात का है कि मिसेज पुरी अपने ही बारे में इस बेबुनियाद अफवाह को हवा दे रही हैं। मिसेज सिन्हा ने मिसेज कपूर को यह भी बताया कि पुरी साहब और मेरे पति बचपन से एक-दूसरे को जानते हैं, संग-संग पढ़े हैं, एक तरह से लँगोटिया यार हैं। किसी से किसी की बात छिपी नहीं है। मैंने जब अपने पति से यह बात कही तो वह ठहाका मारकर हँसे और बोले, 'पागल तो नहीं हो गई हो ? इस उम्र में भला पुरी भाभी ! अरे, पुरी तो तीन-चार साल पहले ही मुझे बता रहा था कि उसके और उसकी पत्नी के बीच अब जैसे भाई-बहन का रिश्ता रह गया है।'

भले ही सबके लिए मिसेज पुरी की प्रेगनेंसी मजाक हो और लोगों को खिल्ली उड़ाने का मसाला मिल गया हो, पर मिसेज सिन्हा निश्चय ही बहुत दुःखी थीं। कई बार उन्होंने कोशिश भी की कि वे मिसेज पुरी को समझाएँ। कभी वे बेबी सूट बुनती नजर आतीं तो कभी छोटे बच्चे के नैपकिन सिलने में व्यस्त रहतीं। जब भी मिसेज सिन्हा उनके घर जातीं, उनका यही तमाशा देखतीं। मिसेज सिन्हा अपने मिशन में कामयाब नहीं हो पा रही थीं कि मिसेज पुरी के प्रेगनेंट होने के इस नाटक का पर्दाफाश कर सकें। उन्होंने अपने पति पर भी इस बात का बराबर दबाव डाला कि वे किसी तरह पुरी साहब को समझाएँ कि उनकी पत्नी सारे मोहल्ले में मजाक का कारण बनी हुई हैं।

एक दिन मिसेज सिन्हा ने पुरी की नौकरानी कमला को बुलाया। पहले तो कमला ने आने से इनकार किया, पर मिसेज सिन्हा ने जब उसे बहुत चढ़ाया तो आखिर वह आ गई।

कमला घर आते ही लॉबी में पड़े तख्त पर बैठती हुई बोली, "गरमी बहुत है, ए.सी. नहीं चलाती हैं ?" फिर इधर-उधर देखती मुँह बिचकाकर बोली, “यहाँ लगा भी नहीं है।"

मिसेज सिन्हा ने कुछ झेंपते हुए कहा, "हाँ, सभी जगह तो ए.सी. नहीं लग सकता है। और बता, तू कैसी है? बड़े दिनों बाद पकड़ में आई है।"

कमला ने गरदन झटकते हुए कहा, "मुझे क्या होना है! अच्छी भली हूँ।"

" और तेरी मालकिन ?" संदेह का पूरा प्याला उड़ेल दिया था श्रीमती सिन्हा ने।

कमला ने अपनी हँसी रोकने की कोशिश में साड़ी के पल्लू से अपना मुँह ढाँप लिया। फिर अपने को सँभालते हुए बोली, "अब क्या कहूँ, आंटीजी! जो मेम साहब अपने बेटों को श्रवणकुमार साबित करने से चूकती नहीं थीं, वही आज अपनों से ऐसी टूटी हैं कि अपना होश गँवा बैठी हैं। क्या कहूँ, अपने ही दर्द के लिए कोई मरहम नहीं खोज पाई हैं और अपने दर्द को छिपाने की कोशिश में सबकी निगाह में मजाक बन गई हैं। "

"तुम क्या कह रही हो, मैं समझ नहीं पा रही हूँ?" मिसेज सिन्हा ने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा।

"अब आपसे कुछ छिपा है क्या! मेम साहब दूर हो गए बच्चों के लिए भी रात-दिन चिंता करती हुई कुछ-न-कुछ करती रहती हैं। सर्दियों में ढेर सारे गरम कपड़े बहू और पोते-पोती के लिए खरीद लातीं । लड्डू मठरी और अचार- -मुरब्बे का क्रम तो कभी टूटता ही नहीं। हर छुट्टीवाले दिन कार्यक्रम बनाती हैं कि आज फलाँ बेटे के घर जाना है। तीनों इसी शहर में रहते हैं, पर छुट्टी के दिन की व्यस्तता की फेहरिस्त वे मेम साहब को पहले ही थमा देते हैं। साहब और मेम साहब एक-दूसरे का मुँह ताकते रह जाते हैं। लड्डू मठरी यह कहकर वापस आ जाती हैं कि इतनी चिकनाई खाकर हमें बीमारियों का शिकार नहीं होना और एक बहू ने तो बड़े अदब और मीठे स्वर में यह भी सुना दिया कि 'अरे मम्मीजी, वह लड्डू - मठरी आपने हम लोगों के लिए भेजा था। हमने तो अपनी कामवाली को दे दिया।' ऐसा ही अच्छे कीमत में खरीदे कपड़ों का भी होता। अब क्या कहूँ, आंटीजी, मैं तो बहुत मेम साहब को समझाती हूँ। अब तक तो उनके आँसू नहीं थमते थे। लेकिन कुछ महीनों से तो उनका रवैया ही ऐसा हो गया है कि मेरी खुद समझ में नहीं आता कि आखिर अपनों का दर्द फूटकर कैसे बह रहा है !"

मिसेज सिन्हा कमला की बात सुन अपने आँसू नहीं रोक पाईं। जाती हुई अनपढ़ कमला के बारे में सोचती रहीं कि आज के बदलते माहौल में इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी की पढ़ाई जो कमला ने की है और समय की नब्ज को जिस तरह उसने पकड़ा है, तेज रफ्तार से भागती दुनिया में संवेदना के दफन होने की जिस सच्चाई को वह जान पाई है, उससे लोग जानकर भी अनजान बने रहने का नाटक इसलिए भी करते हैं कि यह संवेदना और आपसी रिश्ते जो हैं, वही तो आदमी को कमजोर बनाते हैं। जब कि बदलते दौर में कमजोर होकर कोई भी जमाने की तेज रफ्तार में पीछे नहीं रहना चाहता। मिसेज सिन्हा ने अपनी गंभीर अंदरूनी सोच पर मुहर लगाई। पर उन्हें दुःख तो इस बात का है कि मिसेज पुरी को लेकर वे जितना ही दुःखी और परेशान हैं, सिन्हा साहब उस बारे में बात करने से उतना ही कतरा रहे हैं।

एक दिन मिसेज सिन्हा अपने पति के पीछे ही पड़ गईं, "आखिर बात क्या है ? आप जरूर मुझसे कुछ छिपा रहे हैं।"

सिन्हा साहब ने बहुत आनाकानी करनी चाही, पर आज वे पत्नी की जिद के आगे हार मान बैठे। उन्होंने बताया, "पुरी बहुत परेशान है। वह इस शहर के सभी बड़े डॉक्टरों को अपनी पत्नी को दिखा चुका है। मिसेज पुरी अब कुछ दिन की ही मेहमान हैं।"

मिसेज सिन्हा के हाथ से चाय का प्याला छूट गया। अपने को सँभाल पाना उनके लिए कठिन था ।

"क्या कह रहे हो ?" मिसेज सिन्हा का मुँह खुला रह गया।

सिन्हा ने बताया, “मिसेज पुरी के पेट का कैंसर काफी बढ़ चुका है। कोई भी डॉक्टर उसे हाथ नहीं लगाना चाहता, क्योंकि वह लाइलाज है और मजा तो यह है कि अपनी इस पीड़ा को मिसेज पुरी ने जिस भ्रम से जोड़ लिया है, उसका इलाज मनोचिकित्सक के पास भी नहीं है। जिंदगी का सारा निचोड़ भ्रम के गुंजलक में बुरी तरह लिपट चुका है और बेबस पुरी ही उसका एकमात्र दर्शक व गवाह है। एकाध बार उसने गिड़गिड़ाकर अपने बेटों से कहा भी कि अगर अपनी माँ के दर्द को समझ नहीं सकते तो कम-से-कम इस तरह उसका मजाक तो मत बनाओ। पर अपने दुःखों का जहर पीने के सिवाय पुरी के पास बचा भी कुछ नहीं। ममत्व का दिवास्वप्न देखनेवाली उसकी पत्नी की साँसों का काउंट डाउन शुरू हो गया है। उसकी जीवन संगिनी उनसे दूर होती जा रही है।"

एक दिन कॉलोनी के लोग पुरी साहब के घर एकत्रित थे। जाहिर था, मिसेज पुरी का देहांत हो गया था। अरथी उठाने के लिए उनके बेटों का इंतजार था।

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