भोला सौदागार : ईरानी लोक-कथा

Bhola Saudagar : Lok-Katha (Iran)

एक मनचला सौदागर दूर-दूर के देशों से व्यापार करता था। जहां जो चीज़ सस्ती देखता खरीद लेता और दूसरे मुल्कों में जाकर अधिक मूल्य में बेच देता । एक बार उसे ख़बर मिली कि तेहरान में चंदन बहुत महंगा बिकता है। अतएव उसने अपनी सारी संपत्ति का चंदन खरीद लिया और उसे बेचने के लिए तेहरान की ओर रवाना हुआ।

जब वह सौदागर तेहरान के समीप पहुंचा तो वहां के एक चंदन के व्यापारी ने उस सौदागर के आने का हाल सुना। वह व्यापारी बड़ा चिंतित हुआ और सोचने लगा कि यदि वह सौदागर यहां आकर व्यापार करेगा तो मेरी बिक्री कम हो जाएगी। इस वास्ते कोई ऐसी तरक़ीब करनी चाहिए कि यह सौदागर शहर में दाखिल होने से पहले ही जाल में फंस जाए।

यह सोचकर तेहरान का वह व्यापारी चंदन की कुछ लकड़ियां लेकर उस सौदागर के पास चल दिया। वह उस पड़ाव के करीब आकर रुक गया जहां वह सौदागर ठहरा हुआ था। जब रात हुई तो उसने डेरे में चंदन की लकड़ियां जलाईं। जब उस सौदागर को चंदन की लकड़ियां जलने की महक आयी तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।

तेहरान का व्यापारी चंदन की लकड़ियां जलाकर रोटी पका रहा था। यह देखकर उस सौदागर को बड़ा अफसोस हुआ । वह कहने लगा, “मैंने तो सुना था कि तेहरान में चंदन बहुत महंगा बिकता है। इस वास्ते मैं अपने सारे रुपयों का चंदन खरीद लाया हूं, परंतु आप तो इसे ईंधन की लकड़ियों की तरह जला रहे हैं। क्या मेरी मेहनत और लागत व्यर्थ ही जाएगी?”

तेहरान के व्यापारी ने बड़ी सहानुभूति दिखलाते हुए कहा, “अफसोस तुम, बुरी तरह से मारे गए। यहां तेहरान में तो चंदन कौड़ियों के भाव बिकता है।”

यह वात सुनकर सौदागर बड़ा ही निराश हुआ और अपने नुकसान के लिए रंज करने लगा। तेहरान का व्यापारी बोला, “तुम शोक न करो मुझे तुम्हारी दशा पर बड़ा रहम आता है। तुम मेरे मेहमान हो और तुम्हारी सहायता करना मेरा फर्ज है। मैं तुम्हारा सब चंदन खरीद लेता हूं। तुम मेरे साथ तेहरान चलो, वहां इसके बदले में इतने ही वज़न की जो चीज़ चाहो वह ले लेना। मैं खुशी से दे दूंगा। परंतु एक डर है, संभव है, वहां पहुंचकर मेरे घर के लोग मुझे ऐसा न करने दें। इस वास्ते इस संबंध में मेरा और तुम्हारा एक इकरारनामा लिखा जाना चाहिए ताकि हम में से कोई भी अपने वायदे से न फिर सके ।”

वह सौदागर रजामंद हो गया और इस प्रकार का एक प्रतिज्ञा-पत्र लिखकर गवाहों के दस्तखत कराए गए। इसके बाद वे दोनों व्यापारी तेहरान आए। सौदागर एक सराय में जाकर ठहर गया। उस सराय का मालिक एक प्रतिष्ठित भटियारा था। बातचीत में उस सौदागर ने चंदन का भाव मालूम किया। भटियारे ने उत्तर दिया कि चंदन तो यहां हीरे से भी महंगा बिकता है।

यह सुनकर उस सौदागर को बड़ा दुःख हुआ। वह सोचने लगा कि यहां के व्यापारी ने उसे ठगने के लिए यह षड्यंत्र रचा है। परंतु अब हो ही क्या सकता था। सौदागर मन मसोसकर रह गया।

दूसरे दिन वह अपना मन बहलाने के लिए नगर की सैर को निकला तो एक जगह देखा कि कुछ लोग शतरंज खेल रहे हैं। उसने उनसे कहा कि मैं भी तुम्हारे साथ शतरंज खेलना चाहता हूं। उन्होंने उत्तर दिया कि हम तो एक शर्त पर खेलते हैं कि हारनेवाला जीतनेवाले की आज्ञा का पालन करे।

जब आदमी के बुरे दिन आते हैं तो उसकी बुद्धि भी नष्ट हो जाती है। सौदागर इस बात पर राज़ी हो गया और जीतनेवाले ने शर्त पूरी करने के लिए कहा |

सौदागर ने कहा कि जो हुक्म आप देंगे ज़रूर पूरा करूंगा। जीतनेवाले ने कहा कि मेरा हुक्म है कि तुम समुद्र का पानी पी जाओ। यह बात सुनकर सौदागर को बड़ा क्रोध आया। वह कहने लगा, “ऐसी असंभव बात को कौन पूरा कर सकता है?” इस बात को लेकर दोनों में झगड़ा होने लगा और वहां बहुत से लोग इकट्ठा हो गए।

उस भीड़ में से एक काना आगे बढ़ा और कहने लगा कि वास्तव में यह सौदागर बड़ा ही धूर्त है। इसने मेरी एक आंख चुरा ली है। मेरी आंख ठीक ऐसी ही थी जैसी इस सौदागर की है। काना अपनी बात पूरी भी नहीं कह पाया था कि दूसरा आदमी आगे निकल आया। वह अपने हाथों में एक पत्थर लिए हुए था। वह लोगों से कहने लगा कि मेरे पास इस तरह के पत्थर का एक पाजामा था। वह इस आदमी ने चुरा लिया है। इस आदमी से मेरा पाजामा दिलवा दें।

यह सुनकर लोगों ने सौदागर को पकड़ लिया और उससे पत्थर का पाजामा तथा काने की आंखें मांगने लगे। सौदागर यह चीजें कहां से देता? वह बेचारा भौंचक्का-सा रह गया और अपने दुर्भाग्य पर पछताने लगा। उस समय उसे कुछ भी नहीं सूझ पड़ता था। इतने में ही वह भटियारा, जिसकी सराय में वह सौदागर ठहरा हुआ था, उधर आ निकला।

उसे सौदागर की इस दुर्दशा को देखकर बड़ा दुःख हुआ। सब हाल दरियाफ्त करके उसने लोगों से कहा कि तुम इसे मेरी जमानत पर छोड़ दो। जिस दिन और जिस अदालत में कहोगे मैं इसे पेश कर दूंगा।

तेहरान में भटियारे की ईमानदारी की बड़ी शोहरत थी। लोग उसका विश्वास करते थे। उन्होंने यह बात मान ली और भटियारा सौदागर को साथ लेकर सराय में वापस आ गया।

सौदागर ने उसको अपना पूरा किस्सा कह सुनाया। भटियारे ने कहा, “यह शहर ठगों और बदमाशों से भरा हुआ है और तुम उनके जाल में बुरी तरह फंस गए हो परंतु मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूं। संभव है, उससे तुम्हारा छुटकारा हो जाए।

बात यह है कि इस शहर में जितने भी ठग और बदमाश हैं, उन सबका एक उस्ताद है, जो आंखों से अंधा है। यह सब लोग शाम को उसके पास जाकर अपनी-अपनी करतूत सुनाया करते हैं और वह अंधा उनकी बातें सुनकर ठगई की तरह-तरह की तरकीबें बताया करता है।

जिस प्रकार भी हो सके तुम भी आज रात को ठगों का वेश बनाकर उस अंधे उस्ताद के पास पहुंच जाना। जिन लोगों ने तुम्हें फंसाया है वे भी ज़रूर पहुंचेंगे। ठगों का उस्ताद जो परामर्श इन लोगों को दे उसे ध्यानपूर्वक सुनते रहना । मेरा खयाल है कि तुम्हारे फायदे की बात ज़रूर निकल आएगी।”

तदनुसार वह नवयुवक सौदागर ठग का रूप बनाकर बदमाशों के अड्डे पर जा पहुंचा और एक कोने में छिपकर बैठ गया।

थोड़ी देर में वे ठग भी वहां आ पहुंचे। सबसे पहले चंदन वाले व्यापारी ने अपना किस्सा सुनाया। उसने अपनी चालाकी की खूब तारीफ की और कहने लगा कि उस्ताद यह तरकीब कामयाब हो गई तो लाखों के पौबारा हैं।

अंधा उस्ताद यह सुनकर हँसा और बोला, “साहबजादे, तुम तो अपनी चालाकी से खुद ही सौदागर के पंजे में फंस गए। तुमने इकरारनामे में लिखा है कि चंदन के बदले में जो चाहोगे दूंगा। अब ज़रा सोचकर देखो, अगर सौदागर ने बदले में पिस्सू नामक जानवर मांगा तो कहां से दोगे?

पिस्सू इतना हल्का होता है कि अगर तुम सारी उम्र भी सिर पटकते रहो तो भी केवल पावभर पिस्सू एकत्र नहीं कर सकोगे। तुमने इस चीज़ का खयाल तक भी न किया होगा ।”

चंदन का व्यापारी यह सुनकर हक्का-बक्का रह गया। फिर ज़रा होश संभालकर बोला, “उस्ताद! भला उस मूर्ख सौदागर के दिमाग में यह बात कहां आ सकती है?"

इसके वाद शतरंज खेलनेवाले ने अपना किस्सा बयान किया। अंधे ने कहा, “तुम भी धोखा खा गए। अगर नवयुवक तुमसे कहे कि मैं तुम्हारी शर्त के अनुसार सारे समुद्र का पानी पीने के लिए तैयार हूं, पहले तुम उन नदियों को बंद करो जो हर समय समुद्र में गिरती रहती हैं और पानी बढ़ाती रहती हैं तो तुम क्या जवाब दोगे?” शर्त लगानेवाला यह सुनकर खामोश हो गया।

इसके बाद तीसरे ठग ने अपनी कथा सुनाई कि मैंने पत्थर के पाजामे की चोरी का इलज़ाम लगाया है और अदालत में कहूंगा कि यदि वह मेरा पाजामा न दे तो उसकी कीमत के एक हजार रुपए मुझे दिलाये जाएं।

अंधे उस्ताद ने कहा कि तुमने बड़ी गलती की। मान लो कि वह सौदागर तुम से यह कहे कि मैं पत्थर का पाजामा सीने को तैयार हूं, पहले तुम पत्थर का धागा लाओ तो तुम क्या जवाब दोगे? अंधे उस्ताद की यह बात सुनकर उस ठग को बड़ी निराशा हुई।

सबसे आखिर में उस काने ने अपनी मक्कारी का किस्सा सुनाया जिसने उस सौदागर पर अपनी एक आंख चुराने का इलज़ाम लगाया था।

अंधे उस्ताद ने कहा, “तुम बड़ी भारी मुसीबत में फंस गए। अगर वह सौदागर तुमसे कहने लगे कि यदि तुम्हारा दावा सच है, तो पहले तुम अपनी दूसरी आंख बाहर निकालो, मैं अपनी एक आंख निकालकर उसके साथ तोलूंगा और अगर आंखों का वज़न ठीक हुआ तो मैं अपनी आंख तुम्हें दे दूंगा अन्यथा तुम्हारा दावा झूठा है।”

काने ने यह बात सुनी तो होश उड़ गए। वह सोचने लगा कि कहीं इस झगड़े में मेरी दूसरी आंख भी न जाती रहे।

इसके बाद सब बदमाश मशविरा करने लगे और फिर सोच-समझकर बोले, “उस्ताद, वह सौदागर बिलकुल मूर्ख है। ऐसी बुद्धिमानी के सवाल करने की उसमें समझ कहां है! हम उस पर दावे ज़रूर करेंगे। आगे जो ईश्वर की मर्जी होगी, होगा वैसा ही।”

अंधे उस्ताद ने कहा, “तुम्हारे बयानों में जो कमज़ोरियां हैं, वे मैंने तुमको अच्छी तरह बता दी हैं। अब तुम्हें अधिकार है जो चाहो सो करो ।” भोला सौदागर सब बातें सुनता रहा और फिर सराय में लौट आया।
नियत तिथि पर भटियारा सौदागर को साथ लेकर अदालत में हाज़िर हुआ।

काजी ने सबसे पहले चंदन के व्यापारी का मामला पेश किया और सौदागर से दरियाफ्त किया कि तुम इसके बारे में क्या कहना चाहते हो। सौदागर ने कहा कि मैं अपने वायदे के अनुसार चंदन देने के लिए तैयार हूं, परंतु इसके बदले में इसी वज़न का पिस्सू नामक जानवर मुझे दिलाया जाए।

काजी ने तेहरान के सौदागर की ओर देखकर कहा कि यह सौदागर बेईमान नहीं है। यह प्रतिज्ञा-पत्र के अनुसार माल देने के लिए तैयार है। अब तुम अपने वायदे के अनुसार चंदन के बराबर पिस्सू तोल दो। जितना चंदन उसके पास है, सब तुम्हें दिलवा दिया जाएगा।

तेहरान के व्यापारी ने यह बात सुनी तो उसके होश उड़ गए। अंधे उस्ताद ने जो बात कही थी वही सामने आयी। उसने काज़ी से गिड़गिड़ाकर कहा कि मैं अपने दावे को वापस लेता हूं। नवयुवक सौदागर जिस कीमत पर चाहे अपने चंदन को बेच सकता है।

काजी ने कहा कि तुमने अपनी प्रतिज्ञा का पालन नहीं किया और इस भोले सौदागर को मुफ्त में ही तंग किया इसलिए तुम पर दो हज़ार रुपए जुर्माना किया जाता है, जिसमें से आधी रकम सौदागर को दी जाएगी।

तेहरान का व्यापारी बहुत रोया-गिड़गिड़ाया परंतु न्यायप्रिय काजी ने उसकी एक न सुनी और जुर्माने के रुपए वसूल करके उनमें से एक हज़ार रुपए सौदागर को दिलवा दिए।

अब दूसरे आदमी की पेशी हुई। वह डरता-कांपता सामने आया। उसने पत्थर के कुरते और पाज़ामे की चोरी का इलज़ाम सौदागर पर लगाया।

उस भोले सौदागर ने काज़ी से कहा, “हजूर! यह आदमी बिलकुल झूठ बोलता है। मैंने इसका कुरता और पाजामा कुछ नहीं चुराया। मेरी राय में तो पत्थर का पाज़ामा और कुरता बन ही नहीं सकता और अगर बन सकते हैं तो यह मुझे पत्थर का धागा यह चीज़ें सिलवाने के लिए दिला दे।”

काज़ी ने उस आदमी से पत्थर का धागा लाने को कहा, परंतु पत्थर का धागा कहां से आता! वह आदमी कुछ भी जवाब न दे सका और काजी के भय से थर-थर कांपने लगा।

काजी मुंसिफ तो था ही, परंतु स्वभाव से भी बड़ा कठोर था। उसे इस आदमी की धोखेबाजी मालूम हुई, तो बड़ा क्रोध आया। उसने हुक्म दिया कि इस बदमाश को हवालात में बंद करके बीस कोड़े लगवाओ। सिपाही उसे पकड़कर जेलखाने में ले गए।
अबकी बार काना खड़ा हुआ और अपनी आंख की चोरी का दावा पेश किया।

भोले सौदागर ने कहा, “अन्नदाता! यह भी मेरे ऊपर झूठा इलज़ाम लगाता है। श्रीमान्‌ ख़ुद सोचकर देखें कि भला कहीं आंख भी चुराई जा सकती है। और अगर इसका दावा सच्चा ही है, तो मैं आंख देने के लिए तैयार हूं। पहले यह अपनी दूसरी आंख निकालकर सामने रखे, फिर मैं अपनी आंख निकालकर इसकी आंख के साथ तोलूंगा। अगर दोनों आंखों का वज़न एक ही हुआ तो मैं वह बड़ी ख़ुशी से दे सकता हूं, वरना इसे झूठ बोलने का उचित दंड दिया जाए।!

काजी ने काने की आंख निकालने का हुक्म दिया। यह हुक्म सुनकर काने के होश उड़ गए। दूसरे की आंख के लालच में अपनी आंख भी चली।

वह काजी के पैर पकड़कर रोने लगा और माफी मांगने लगा। काजी ने सिपाहियों से कहा कि इसके भी बीस कोड़े लगाओ और अगर आगे से यह कोई हरकत करे तो आजन्म कैद में रखा जाए।

सबसे आखिर में शर्त लगाने वाला खड़ा हुआ और सौदागर से अपनी शर्त पूरी करने के लिए कहा।

सौदागर ने काजी से कहा, “सरकार! यह आदमी भी ठगों की मंडली में से एक है। इसने धोखा देकर मुझसे ऐसी कठिन शर्त करा ली है, परंतु मैं इस असंभव शर्त को भी पूरा करने के लिए तैयार हूं। पहले आप इससे उन समस्त नदियों का पानी रुकवा दें, जो समुद्र में गिरती रहती हैं। यदि यह पानी बराबर उसी तरह समुद्र में गिरता रहा तो मैं क्योंकर पी सकूंगा?”

काजी ने उससे कहा कि सौदागर ठीक कहता है। तुम पहले नदियों का पानी रोको, बाद में सौदागर से पानी पीने के लिए कहा जाएगा।

उसने यह सुना तो पसीना आ गया और आंखें मींचकर काजी की अदालत में लेट गया।

काजी ने यह देखा तो उसे बड़ा क्रोध आया। उसने सिपाहियों को आज्ञा दी कि इसकी मुश्कें बांध लो और इसकी पीठ पर कोड़े लगाओ। कोड़ों का नाम सुनकर उसने आंखें खोल दीं और रोना-पीटना शुरू किया। वह बार-बार अपने कान पकड़ता था और कहता था कि आइंदा कभी किसी के साथ धोखा न करूँगा। परंतु काजी अपने हुक्म पर अटल था।
सिपाही उसको बांधकर जेल में ले जाने लगे।

सौदागर एक अत्यंत उच्च कूल का सज्जन था। उसे बड़ी ही दया आयी। वह काजी से कहने लगा, “हुजूर, इन लोगों को जो कुछ मेरे साथ करना था वह तो कर चुके। इन लोगों की करनी इनके साथ है। परंतु मुझे इस प्रकार की शिक्षा मिली है कि शत्रुओं के अपराधों को भी क्षमा कर देना चाहिए। इसलिए मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप इनके कसूरों को माफ कर दें।”

सौदागर की यह बात सुनकर काजी बहुत खुश हुआ और उसने उन्हें क्षमा कर दिया। तीनों धोखेबाजों ने ईश्वर की शपथ खाकर कहा कि हम आगे से किसी के साथ दगा नहीं करेंगे।

सौदागर लाखों रुपए का चंदन बेचकर ख़ुशी-खुशी अपने घर लौट आया।

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