भिखारी ने मुख्य पादरी की कृपा को उत्तेजित कैसे किया ? (स्पेनिश कहानी) : मेटियो एलमन

एक सुबह जल्दी जागकर मैं रिवाज के अनुसार मुख्य पादरी के द्वार पर जाकर बैठ गया। मैंने सुन रखा था कि रोम में महान् दानी होने के कारण वह अत्यंत उत्तम चरित्रवाला था। मैंने अपनी एक टाँग पर सूजन पैदा करने का कष्ट उठाया था, जिसपर न जानते हुए कि क्या गुजरेगी, एक नया फोड़ा देखा जा सकता था, जो एक पैनी दृष्टिवाले अथवा शल्य चिकित्सक की खोज को ललकार सकता था।

मैंने अपने चेहरे को मृत्यु की तरह पीला बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी और पारिवारिक लोगों ने भीख माँगते हुए उसको अत्यंत शोक की हवा से भर दिया था। जो अंदर-बाहर से मुझपर दया करने आते थे, मैं उनकी आत्माओं को झकझोरता था और वे मुझे कुछ-न-कुछ दे जाते थे, परंतु मैं अभी तक अपना खेल खेल रहा था- मैं उनके पादरी को चाहता था। अंत में वह प्रकट हो गया और मैंने अपनी चीख-पुकार को दोगुना कर दिया; मैं बेचैनी से चिल्लाया- " ओ अत्यंत भद्र ईसाई, ईसा मसीह के मित्र और उससे प्रभावित, मुझ नीच पापी पर दया करें। मैं अपने फूलने-फलनेवाले दिनों में काट दिया गया हूँ । मुझे दुःखों से छुटकारा दिलानेवाले के नाम पर मेरे असीम कष्ट से प्रभावित हो, श्रीमान् ! "

मुख्य पादरी, जो वास्तव में धार्मिक व्यक्ति था, रुक गया और मेरी ओर करुणा से देखकर अपने सेवकों की ओर मुड़ा और बोला, "ईसा के नाम पर इस दुःखी जीव को ले जाओ और मेरे कमरे में रखो। इसके चीथड़ों को अच्छे कपड़ों से बदल दो । इसको अच्छे बिस्तर पर लिटाओ - नहीं - मेरेवाले में और मैं दूसरे कमरे में चला जाऊँगा । मैं स्वयं इसका ध्यान रखूँगा, क्योंकि इसको देखकर मैं सोचता हूँ कि हमें छुटकारा दिलानेवाले ने कैसे-कैसे कष्ट उठाए होंगे। "

आज्ञा का पालन किया गया। ओ दयालुता, तूने उन घमंडी पादरियों, जो गरीबों को हेय दृष्टि से देखते हैं और समझते हैं कि स्वर्ग उनका ऋणी है, को किस प्रकार लज्जित किया है, जबकि मेरे अच्छे मुख्य पादरी ने अपने किए पर संतुष्ट न होकर दो शल्य चिकित्सकों को मेरी देखभाल के लिए आज्ञा दी तथा उन्हें कहा कि मेरे दुःख दूर करने के लिए जो कुछ भी संभव हो, उसका प्रयोग करें। मेरी टाँग का निरीक्षण करने और इसका ध्यान रखने के लिए उन्हें अच्छा इनाम दिया जाएगा। फिर मुझे प्रसन्न रहने के लिए और डॉक्टरों से मेरा ध्यान रखने के लिए कहते हुए मुख्य पादरी अपने दूसरे मामलों को निपटाने के लिए चला गया।

डॉक्टरों ने मेरे निरीक्षण के बाद तुरंत घोषणा कर दी कि यह सब व्यर्थ है; क्योंकि मांस का सड़ाव शुरू हो चुका है। उन्होंने यह घोषणा गंभीरता से की थी परंतु मैं जानता था कि सड़ाव का प्रभाव टाँग को विशेष जड़ी-बूटी से मलिन करने के कारण था । मैं परिणाम जानने के लिए जिज्ञासा से भर उठा। फिर उन्होंने अपने औजारों का बक्सा निकाला, गरम पानी की कड़ाही, कुछ साफ कपड़े और पुलसट मँगवाई। जब यह सब तैयारी की जा रही थी, उन्होंने मेरे रोग के कारण की बाबत पूछताछ की और जानना चाहा कि यह कब से है, इत्यादि । इसके अतिरिक्त उन्होंने यह भी पूछा कि क्या मैं शराब पीता हूँ और मेरा सामान्य आहार क्या है।

इन और ऐसे ही अन्य सैकड़ों प्रश्नों के उत्तर में मैंने एक शब्द भी नहीं कहा, क्योंकि मेरे स्वास्थ्य को बहाल करने और उसे अखंड रखने के लिए जो भयानक प्रक्रियाएँ सोची जा रही थीं, उनसे मैं डर गया था। मैं वास्तव में घबरा गया था और यह नहीं जानता था कि किस संत का आश्रय लूँ, क्योंकि मेरा विचार था कि स्वर्ग में कोई भी ऐसा संत नहीं जो मेरे जैसे पूर्ण दुष्ट के मामले में हस्तक्षेप करेगा। मैंने उस पाठ को स्मरण किया जो मुझे अभी-अभी गईटा में सिखाया गया था। अपने संदेह को भी याद किया कि वहाँ अच्छी शर्तों पर भी मेरा छुटकारा नहीं होगा। शल्य चिकित्सक अपने काम में बहुत प्रवीण थे। टाँग को कोई बीस बार अजीब ढंग से मोड़कर और अपने इस निरीक्षण पर बातचीत करने के लिए दूसरे कमरे में चले गए। मैं उसी अकथनीय भय की स्थिति में पड़ा रहा, क्योंकि मेरे दिमाग में यह बात घुस गई कि अब ये टाँग को काट देंगे। मैं उनकी बात सुनने के लिए दरवाजे के पास धीरे से रेंगकर गया और पूर्ण निश्चय कर लिया कि भयानक विकल्प के लिए वह पाखंड को जाहिर कर देगा।

'श्रीमान्!” एक ने कहा, "हम यहाँ हमेशा के लिए वार्त्तालाप करते रहें, उसका कोई लाभ नहीं होगा; उसे सेंट एंथोनी की आग लगी है।"

"ऐसी कोई बात नहीं, " दूसरे ने कहा, "उसकी टाँग में मेरे हाथ से अधिक आग नहीं है। हम उसको कुछ ही दिनों में आसानी से बाहर निकाल देंगे। "

"तुम गंभीर नहीं हो सकते।" पहले ने कहा, "सेंट कोमस की कसम, मैं फोड़ों की बाबत कुछ-न- कुछ जानता हूँ और मेरा दावा है कि यह मांस का सड़ाव ही है।"

"नहीं, नहीं, मित्र, " दूसरे ने उत्तर दिया – “यहाँ कोई फोड़ा-वोड़ा नहीं है, यहाँ एक धूर्त से निपटना है। उसको कुछ भी नहीं हुआ है। मैं फोड़े का सारा इतिहास जानता हूँ कि यह किस तरह से बनाया गया है। यह कोई अनहोनी चीज नहीं है, क्योंकि मैं ऐसी जड़ी-बूटियों को जानता हूँ, जिनसे पाखंड किया गया है और जिस चतुराई से उनको लगाया गया है। "

इस कथन पर दूसरा हैरान -सा प्रतीत हुआ, परंतु अपने आपको छला हुआ मानने में शर्म महसूस करता हुआ अपनी पहली राय पर अड़ा रहा, जिसको प्यार भरे वार्त्तालाप से सुलझाया जा सकता था, यदि दोनों की चतुराई ने मेरी टाँग का पहले निरीक्षण करने का निर्णय न लिया होता और उसके बाद ही वाद-विवाद को समाप्त कर लिया जाता ।

"इस मामले को जरा गहराई से देखो, " उसने कहा, "और तुम इस आदमी की धूर्तता को समझ पाओगे।"

“मैं दिल से कहता हूँ और मानता हूँ कि तुम ठीक कहते हो। मैं देखता हूँ कि यहाँ न फोड़ा है और न ही मांस का सड़ाव । "

"यह काफी नहीं है, " साथी ने कहा, "इस गलती को मानने के बाद तुम्हें यह भी मानना होगा कि मुझे तुम्हारी फीस में से एक-तिहाई इस बीच और मिलनी चाहिए। "

"वास्तव में, " दूसरे ने उत्तर दिया – “मेरे पास तुम्हें परखने की आँखें हैं। मेरा परामर्श है कि मुख्य पादरी की फीस को हम दोनों आपस में बाँट लेंगे।"

अब झगड़े की गरमी जाती रही। उन्होंने अपनी जिद छोड़ दी और घोषणा की कि वे मुख्य पादरी को सारे मामले से अवगत करा देंगे। इस मामले को लेकर मैं क्षण भर के लिए भी नहीं हिचकिचाया। खोने के लिए समय नहीं था, बचना असंभव था । मैं अधिकृत व्यक्तियों के सम्मुख उपस्थित होने के लिए भागा और अपने आपको उनके कदमों में डाल दिया तथा कपटपूर्ण दुःख के साथ उनसे कहा, "आह! मेरे प्यारे महानुभावो, एक हतभाग्य जीव पर दया करो। ध्यान दो, श्रीमान्, मनुष्य के कल्याण से बढ़कर कुछ भी नहीं। मैं भी आपकी तरह मरणशील हूँ। तुम बड़े आदमियों की वज्र - हृदयता को जानते हो। इस कारण निर्धनों तथा अनाथों को विवश होकर भयानक शक्लें बनानी पड़ती हैं, ताकि उनकी कठोरता को कम कर सकें। भयानक शक्लें बनाने में उन्हें कितना दुःख झेलना पड़ता है! इसके अतिरिक्त एक विनीत हतभाग्य को थोड़े पारितोषिक के लिए नंगा करके आप लोगों को क्या लाभ होगा? तुम वास्तव में अपनी फीस गँवा बैठोगे। तुम्हें कुछ करने की जरूरत नहीं है, यदि हम एक-दूसरे को समझ लें। तुम मेरी कार्य- स्वतंत्रता पर विश्वास कर सकते हो; परिणामों का डर मुझे चुप रखेगा और हम लोगों को अपने-अपने व्यवसाय में लाभ होगा।"

इसपर डॉक्टरों ने फिर परस्पर बातचीत की और अंत में अपनी जेबें फीस से भरने का निश्चय किया। हम सभी ने एकमत होकर प्रार्थना की कि हमें मुख्य पादरी के सम्मुख पेश किया जाए। फिर शल्य चिकित्सकों ने मुझे काऊच पर बैठने की आज्ञा दी - काऊच के एक तरफ चिकित्सकों के औजार और पट्टियाँ आदि को बड़ी खूबी से सजाया गया था । पुनः परामर्श किया गया और मेरी टाँग को अनगिनत पट्टियों से लपेटा गया। उन्होंने इच्छा प्रकट की कि मुझे गरम बिस्तर पर लिटाया जाए।

इस बीच में मुख्य पादरी मेरे स्वास्थ्य के बारे में जानने के लिए चिंतित रहा। वह जानना चाहता था कि क्या आराम आने की कोई संभावना है!

"माई लॉर्ड, " डॉक्टरों में से एक ने उत्तर दिया – “रोगी बड़ी दयनीय दशा में है, मांस सड़ना शुरू हो चुका है, फिर भी यदि ईश्वर ने चाहा तो समय पाकर देखभाल से ठीक हो जाएगा, परंतु इसमें लंबा समय लग जाने की आशंका है।"

" आपके हाथ पड़ जाने के कारण, " सहायक ने कहा, "वह सौभाग्यशाली है, कई दिनों पहले वह हमेशा के लिए समाप्त हो गया होता। इसमें कोई शक नहीं कि भाग्य ने उसे बचाने के लिए श्रीमान् के द्वार पर भेजा।" इस सारे विवरण से मुख्य पादरी प्रसन्न प्रतीत होता था । उसे सच्ची दयालुता प्रदर्शित करने का सुअवसर प्राप्त हुआ था । पादरी ने इच्छा प्रकट की कि मुझे स्वस्थ करने के लिए कोई कसर न छोड़ी जाए। उसने यह भी कहा कि मुझे हर वस्तु उपलब्ध करवाई जाए। डॉक्टरों ने अपने तौर पर शपथ ली कि वे 'सबकुछ करेंगे जिससे उनकी चिकित्सा का पूरा प्रभाव पड़े; उनमें हर एक मुझे दिन में कम-से-कम दो बार देखने के लिए आएगा, क्योंकि मेरी वर्तमान स्थिति में भी परिवर्तन को देखने के लिए जरूरी था ।

फिर वे पीछे हट गए, मेरे थोड़े धीरज के लिए नहीं, क्योंकि मैं उनका आदर किए बिना नहीं रह सकता था, जब वे उपस्थित थे। दो जल्लादों की तरह वे किसी क्षण भी मुझे दबोच सकते थे अथवा मेरे पाखंड को दुनिया में प्रकाशित कर सकते थे । यहाँ तक कि उन्होंने मुझे तीन महीने तक कमरे में रखने के लिए कहा। ये तीन महीने मेरे लिए कई शताब्दियों के बराबर थे । जुएबाजी और भीख माँगने की आदत को छोड़ना कितना कठिन है, विशेषकर उनकी स्वतंत्रता की चेष्टा को देखते हुए! मुझे व्यर्थ में कोमलता से रखा और खिलाया पिलाया जा रहा था, मुख्य पादरी की तरह। यह आतिथ्य मेरे लिए असहनीय था। मैं डॉक्टरों से निरंतर याचना कर रहा था कि वे मुझपर दया करें और इस स्वाँग को समाप्त करें। अंत में उनको मेरी प्रार्थना स्वीकार करने के लिए विवश होना पड़ा।

उन्होंने मेरी टाँग पर पट्टी करना बंद कर दिया और उसको प्राकृतिक स्थिति में छोड़ते हुए उन्होंने मुख्य पादरी को इस तथ्य से अवगत कराया । वह अपने तत्त्वावधान में इस कार्यवाही और इलाज पर आनंदविभोर हो गया। उसने उनको भरपूर इनाम दिया और उस अवसर पर मुझे बधाई देने आया । मेरे पास आने-जाने से उसने मेरी बाबत जानकारी तथा मेरे परामर्शों और सिद्धांतों का आदर करते हुए अपने हृदय में मेरे लिए सच्ची दया का संचार किया। इसका प्रमाण देने के लिए उसने अपने विश्वस्त सहायक के रूप में मेरी नियुक्ति कर दी, जिस सम्मान को इनकार करने के लिए मुझे ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं थी!

(अनुवाद: भद्रसेन पुरी)

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