भविष्यवक्ता : असमिया लोक-कथा
Bhavishyavakta : Lok-Katha (Assam)
एक गाँव में किसी समय में फोरिंग नामक एक किसान रहता था। उसकी पत्नी बहुत स्वार्थी थी। उनके कोई औलाद नहीं थी। माघ का महीना चल रहा था और हल्की बूँदाबाँदी हो रही थी। फोरिंग सुबह बहुत जल्दी उठ गया और अपनी पत्नी से बोला, “आज आसमान पर बादल छाए हुए हैं। मेरा मन पीथा (राइस केक—चावल के पूए) खाने को कर रहा है। क्या तुम मेरे लिए बना सकती हो? मैं चावल नहीं खाना चाहता।”
पत्नी बोली, “पर चावल के पूए बनाने के लिए बारा धान (चिपचिपी किस्म का एक चावल) कहाँ है? अन्नागार में धान है ही नहीं।”
“लगता है, मुझे अब तो चावल के पूए खाने को मिलेंगे ही नहीं।” पति बोला।
पत्नी ने कहा,” तुम बाहर जाकर देखो कि किसी के घर में बारा धान कूटकर निकाला गया है? किसी से थोड़ा माँगकर ले आओ।”
पति कुछ देर तक कुछ सोचता रहा और फिर उसने एक योजना बनाई। उसने अपने शरीर पर खुरदुरी ऊनी शॉल लपेट ली और बाहर चला गया। यह देखकर कि पड़ोसी के यहाँ बारा धान कूटा जा रहा है। फोरिंग उसके घर गया और पड़ोसी से यहाँ-वहाँ की बातें करने लगा। वह काफी देर तक वहाँ बैठा बातें करता रहा। इस बीच चावल को उनके डंठलों से अलग किया जा चुका था। पड़ोसी ने चावल झाड़कर एक तरफ रख दिए। तभी फोरिंग बहुत तेज दर्द होने की बात कह धान के ढेर पर लेट गया। बारा धान के दाने बहुत ही बारीक बालियों से ढके थे, जिसके कारण चावल के दाने शॉल से चिपक गए, जिसकी सतह खुरदुरी थी। घर जाने से पहले फोरिंग तीन-चार बार चावल के ढेर पर अलटा-पलटा और असहनीय पीड़ा में होने का दिखावा करता हुआ घर चला गया।
उसने घर पहुँचकर उस शॉल को झाड़ा और उसमें से टोकरी भर बारा धान निकल आया। पत्नी ने उन्हें उबाला, फिर सुखाकर सूखे हुए दानों में से उसका छिलका निकाला। फिर चिपचिपे चावलों को उसने पीसा। खाना बनाने के बाद शाम को पति को खाना देने के बाद वह पूए बनाने बैठी। रात होने के कारण फोरिंग सोने चला गया। पत्नी ने बारह पीथा तैयार किए और उन्हें बाँस की एक ट्रे में रख दिया। फिर उसने काफी सारे पीथा खा लिए और बाकी बचे पीथा एक कटोरी में रख दिए। सोने से पहले उसने अपने पति को जगाकर कहा, “मैंने पीथा तैयार कर दिए हैं, पर मेरी एक शर्त है। जो भी सुबह सबसे पहले उठेगा, वह एक-तिहाई पीथा खा लेगा और जो बाद में उठेगा उसे दो-तिहाई पीथा मिलेंगे।” फोरिंग उसकी बात मानकर सो गया।
अगली सुबह कोई भी उठने को तैयार नहीं था। सूरज निकल आया था। फिर भी दोनों सोने का नाटक करते हुए खर्राटे ले रहे थे। आखिरकार फोरिंग को लगा कि वह अपने खेत पर किए जानेवाले काम की अवहेलना कर इस तरह सोया नहीं रह सकता। उसे तो खेत पर जाना ही होगा। उसे अपने से पहले उठते देख पत्नी ने कहा, “तुम्हें केवल एक-तिहाई पीथा ही मिलेंगे।”
“ठीक है, तुम दो-तिहाई खा लो।” पति ने कहा। फोरिंग रसोई में गया और यह देखकर हैरान रह गया कि वहाँ तो केवल कुछ ही पीथा हैं। उसने पत्नी से पूछा, “बाकी पीथा कहाँ हैं? इतने सारे धान से इतने कम पीथा तो नहीं बन सकते हैं?”
अचानक उसकी नजर दीवार से लटकती बाँस की ट्रे पर गई और उस पर पीथा के निशान नजर आ रहे थे। उसने उन्हें गिना तो पाया कि वे बहुत सारे थे। वह पत्नी से कुछ कहे बिना बाहर आकर बैठ गया। उसकी पत्नी काँसे की थाली में कटी हुई सुपारी, पान और साली की छाल लेकर आई। उसे लेते हुए फोरिंग ने एक कहावत सुनाई—
“हल से अपने भविष्य को गढ़ो
बुरी आत्माओं को डंडे से मार दूर भगाओ
किसी ने बहुत सारे पीथा खा लिए
क्या मालूम किसने?”
उसकी पत्नी उन शब्दों में छिपे आशय को समझ गई। उसे अपने ऊपर शर्म आई और वह नदी से पानी लेने के बहाने वहाँ से चली गई। उसे नदी पर बहुत सारी औरतें मिलीं और उसने उन्हें पीथे की बात कह दी, ताकि मन का बोझ हल्का हो जाए। उसने बात यह कहते हुए खत्म की कि उसका पति वास्तव में भविष्यवक्ता है। यह बात धीरे-धीरे पूरे गाँव में फैल गई।
एक गाँववाले की काली गाय खो गई थी। जब उसे पाँच दिनों तक भी ढूँढ़ने पर गाय नहीं मिली तो वह फोरिंग के पास गया, जो अब तक जान चुका था कि लोग उसे भविष्यवक्ता समझते हैं। संयोग की बात थी कि उस दिन सुबह ही उसने अपने खेत के पीछे एक खेत में गाय को ईख जैसी लंबी घास को चरते देखा था। इसलिए फोरिंग ने उस आदमी से कहा, "मेरे खेत के पीछे जाओ। वहाँ तुम्हें तुम्हारी गाय मिल जाएगी।" उस आदमी को वहाँ जाते ही अपनी गाय मिल गई। उसके बाद तो हर तरफ यह चर्चा होने लगी कि वह भविष्यवक्ता है।
यह खबर राजा के पास भी पहुँची। संयोग की बात थी कि राजा का एक कीमती सोने का हार खो गया था, जिसकी कीमत एक सौ हजार सिक्कों के बराबर थी। राजा ने हर जगह उसे ढूँढा, पर हार कहीं नहीं मिला। जब राजा को फोरिंग के बारे में पता चला तो उसने उसे बुलवाया। वह बहुत डर गया कि अगर वह हार नहीं ढूँढ़ पाया तो राजा कहीं उसे मृत्युदंड न दे दे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, इसलिए ईश्वर पर अपने भाग्य को छोड़कर वह राजा के सामने जाकर उपस्थित हो गया। राजा ने फोरिंग का स्वागत किया और सेवकों से उसका सत्कार करने को कहा। फोरिंग को स्वादिष्ट भोजन परोसा गया।
राजा की दो रानियाँ थीं-एक का नाम मदोई था और दूसरी का हदोई। हदोई ने ही हार चुराकर उसे कहीं छिपा दिया। यह जानकर कि एक भविष्यवक्ता आया है, वह बुरी तरह से घबरा गई कि कहीं वह पकड़ी न जाए। इसलिए वह उस कमरे के पास जाकर खड़ी हो गई, जहाँ बैठा फोरिंग खाना खा रहा था
और दीवार के छेद से झाँकने लगी। फोरिंग भी बुरी तरह से डरा हुआ था। जब उसने अपने सामने रखे पके चावल व दोई (दही) को रखे देखा तो वह जोर से खुद से बोला, “ओह हु-दोई। आज अच्छे से खा लो। क्या पता, राजा कल क्या करे?"
जब हुदोई ने यह सुना तो उसने सोचा, 'ओह, इस भविष्यवक्ता को तो पता चल गया कि चोरी मैंने की है।' वह उसके पास आई और बोली, "हे भविष्यवक्ता, इस राज को किसी को मत बताना। तुम जो चाहोगे, मैं तुम्हें दूँगी।"
फोरिंग को तुरंत समझ आ गया कि हदोई ही चोर है। वह रानी से बोला, "मैं यह राज किसी को नहीं बताऊँगा, पर आप तुरंत हार को लाकर राजा के आभूषणों के डिब्बे में रख दो।" रानी ने ऐसा ही किया।
अगले दिन राजा ने उसे बुलाया और उससे कहा कि वह चोर का नाम बताए। भविष्यवक्ता राजा के सामने सिर झुकाते हुए बोला, "मुझे नहीं लगता है कि आपका हार चोरी हुआ है। वह आपके आभूषण के डिब्बे में ही रखा हुआ है।"
राजा ने तुरंत अपना डिब्बा मँगवाया। जब उसे खोला गया तो हार उसमें ही रखा हुआ था। यह देख सब आश्चर्यचकित रह गए। राजा ने फोरिंग को अपना दरबारी बनाकर उसे जमीन, धन और अन्य वस्तुओं से सम्मानित किया।
एक दिन राजा ने एक फोरिंग (टिड्डे) को अपने हाथ में पकड़ा और फिर भविष्यवक्ता से पूछा, "बताओ, मेरी मुट्ठी में क्या है ?"
भविष्यवक्ता समझ गया कि अब तो उसकी असलियत राजा के सामने आ जाएगी इसलिए दु:खी स्वर में बोला"एक को मैंने गिनकर जाना दूसरे को देखकर हु-दोई कहते हुए हार ढूँढ़ा अब फोरिंग, तुम्हारे जीवन का अंत आ गया है।"
राजा को उसका नाम नहीं पता था। उसने सोचा कि फोरिंग से उसका मतलब टिड्डे से था। राजा ने टिड्डे को छोड़ दिया और फोरिंग को अपने राजसी वस्त्र उपहार में दे दिए।
एक दिन राजा ने अपनी मुट्ठी में नीलकमल की जड़ (सेलुक), जिसे खाया जाता है, को छिपाते हुए उससे पूछा, “बताओ, मैंने अपनी मुट्ठी में क्या छिपाया हुआ है ?" घबराया हुआ फोरिंग बुदबुदाया, "स्वोरगोडे बारेपोटी सोलुकू", यानी हर बार मैं किसी न किसी तरह से बच जाता हूँ।
राजा ने इसे इस कहावत के रूप में सुना, “बूरेपाती जीलुक, यानी मुझे हर बार डुबकी लगाने पर नीलकमल की जड़ मिलती है।"
राजा ने एक बार फिर भविष्यवक्ता को सोने-चाँदी के उपहार दिए और उसे शाही भविष्यवक्ता नियुक्त कर दिया।
(साभार : सुमन वाजपेयी)