भस्म कंकड़ : लोककथा (उत्तराखंड)
Bhasma Kankad : Lok-Katha (Uttarakhand)
गुणीराम के जीवन में सुख और ऐश्वर्य की कोई कमी नहीं थी । बस अभाव था तो संतान सुख का । संतान प्राप्ति के लिए वह और उसकी पत्नी यशोधरा कई मंदिरों में मन्नतें मांगने गए । एक दिन एक महात्मा उनके उनके घर भिक्षा मांगने आए । गुणीराम ने महात्मा को अपने मन की बात बताई । महात्मा ने उन्हें शिव की पूजा करने की सलाह दी । गुणीराम और उसकी पत्नी ने शिव की पूजा की । शिव की कृपा से उनका एक बेटा हुआ । उसका नाम उन्होंने महेश रखा ।
एक रात गुणीराम को सपने में शिव जी दिखाई दिए । वे बोले, ‘‘गुणीराम! तुम्हारे पुत्र का अल्पायु का योग है । शादी के बाद तुम्हारे पुत्र की मृत्यु हो जाएगी ।‘‘ गुणीराम ने सपने की बात यशोधरा से छिपा कर रखी । महेश बड़ा हुआ तो उसे विद्याध्ययन के लिए काशी भेज दिया गया । उसकी दीक्षा पूरी होने को आई तो यशोधरा को उसकी शादी की चिन्ता सताने लगी । वह गुणीराम से महेश की शादी के बारे में बात करती तो वह टालता चला जाता । एक दिन यशोधरा ने गुणीराम के सामने ही अपने भाई से महेश के लिए रिश्ते की बात की तो गुणीराम समझ गया कि अब वह उसकी शादी करवा के ही मानेगी । उसने महेश के लिए रिश्ता ढूंढ़ना शुरू कर दिया ।
एक दिन गुणीराम कहीं जा रहा था । उसने रास्ते में तीन लड़कियों को बातें करते हुए सुना ।
एक लड़की कह रही थी,‘‘ विधवा औरत का जीवन कितना दुखदाई होता है । ईश्वर किसी औरत से उसका सुहाग न छीने ।‘‘
‘‘मेरे साथ ऐसा हो ही नहीं सकता । मुझे अपने सद्कर्मों पर पूरा विश्वास है । स्त्री के पतिव्रत्य धर्म में बड़ी शक्ति है । वह सावित्री की तरह अपने पति के प्राण यमराज से भी वापस ला सकती है ।‘‘ - उनमें से सुनैना नाम की लड़की बोली ।
गुणीराम सुनैना की बातों से प्रभावित हुआ । उसने सुनैना के घर का पता किया । वह सुनैना के घर गया । उसने महेश के लिए सुनैना का हाथ मांगा । सुनैना के पिता इस रिश्ते के लिए तैयार हो गए । महेश और सुनैना की सगाई कर दी गई और विवाह की तिथि भी तय हो गई । गुणीराम ने विवाह के लिए महेश को बुलावा भेजा । महेश दीक्षा पूरी कर काशी से घर वापस आ रहा था । रास्ते में उसने कुछ गिद्धों को एक भयानक साँप को मारते हुए देखा । उसे साँप पर दया आ गई । उसने साँप को गिद्धों के चंगुल से छुड़ा दिया ।
साँप अपना फन फुलाकर महेश से बोला, ‘‘ तेरी मौत मेरे हाथों लिखी गई है । ये गिद्ध मुझे मारने का नाटक कर रहे थे जिससे तू मुझे बचाने आए और मैं तुझे डंस सकूं । ‘‘
महेश ने साँप से कहा, ‘‘ मैं दीक्षा पूरी करके कई सालों के बाद अपने घर जा रहा हूँ । अपने माता-पिता से मिलकर मैं तेरे पास वापस आ जाऊंगा । तब तू मुझे डंस लेना ।‘‘
साँप बोला, ‘‘ मुझे तेरे घर का रास्ता मालूम है । अगर तूने मेरे साथ विश्वासघात किया तो मैं तेरे घर वालों को भी डंस लूंगा । मैं तुझे फिलहाल छोड़ने को तैयार हूँ लेकिन अपनी जगह किसी मनुष्य या पशु को तुझे गिरबी रखना होगा । यदि तू नहीं आया तो तेरे घर वालों को डंसने से पहले मैं गिरबी रखे मनुष्य या पशु को डंस लूंगा ।‘‘
यह सुनकर महेश ने एक बन्दर से गिरबी पर रहने का निवेदन किया । बन्दर तैयार नहीं हुआ । उसने एक लोमड़ी से कहा । वह भी तैयार नहीं हुई । रास्ते में एक दुबली -पतली गाय जा रही थी । महेश ने उस गाय से विनती की । वह बोली ,‘‘ मैं तुम्हारे लिए यहाँ गिरबी पर रहने के लिए तैयार हूँ । मैं तो यह भी कहती हूँ कि तुम घर से यहाँ वापस मत आना । कहीं छिप जाना । साँप मुझे डंस लेगा, तो तुम्हारी जान तो बच ही जाएगी ।‘‘
महेश ने कहा,‘‘ गाय माता ! मैं तुम्हारा उपकार जीवन भर नहीं भूलूंगा । मैंने साँप को वापस आने का वचन दिया है । मैं घर वालों से मिलकर यहाँ अवश्य वापस आऊॅंगा ।
महेश गाय से विदा लेकर घर की ओर चल पड़ा । घर पहुंच कर उसने अपने माता-पिता से कहा, ‘‘मैं शादी नहीं करना चाहती हूँ । मेरी दीक्षा अभी पूरी नहीं हुई है । कुछ दिन यहाँ रहकर मैं काशी वापस चला जाऊॅंगा ।
महेश की बात को सुनकर गुणीराम प्रसन्न हुआ परन्तु यशोधरा अपनी जिद पर अड़ी रही । वह बोली,‘‘ अगर तूने शादी करने से मना किया तो मैं अपने प्राण त्याग दूंगी ।‘‘
अपनी माँ के दबाव में आकर महेश शादी के लिए तैयार हो गया । महेश और सुनैना की शादी धूमधाम से हो गई । शादी के बाद महेश ने सुनैना से कहा ,‘‘ मेरी दीक्षा अभी पूरी नहीं हुई है । मुझे काशी जाना है। तुम मेरे माता-पिता के पास ही रहो ।‘‘
सुनैना नहीं मानी । वह महेश के साथ जाने को तैयार हो गई । महेश ने उसे साँप और गाय वाली बात बता दी। वे दोनो उस जगह पहुंचे जहाँ साँप और गाय खड़े थे ।
साँप ने महेश से कहा, ‘‘ अब तुम मरने के लिए तैयार हो जाओ ।‘‘
सुनैना बोली, ‘‘सर्पराज! यदि तुमने मेरे स्वामी को मार दिया तो मैं कैसे जियूंगी ? मैं अकेली असहाय और कष्टपूर्ण जीवन कैसे बिताऊॅंगी ?‘‘
‘‘तुम्हारे पति को मेरे हाथों मरने से कोई नहीं बचा सकता । पति की मौत के बाद तुम्हें डरने कोई आवश्यकता नहीं है ।‘‘
‘‘किस प्रकार ?‘‘- साँप की बात को सुनकर सुनैना बोली ।
साँप ने उसे एक चमकती हुई चीज दी और बोला, ‘‘ यह भस्म कंकड़ है । कोई शत्रु तुम्हें कष्ट पहुंचाए तो इसके सामने उसका नाम लेकर ‘भस्म हो जा‘ कहना । शत्रु कुछ ही देर में भस्म हो जाएगा ।‘‘
सुनैना ने भस्म कंकड़ को हाथ में ले लिया ।
‘‘ मेरे पति ने तुझे गिद्धों के चंगुल से मुक्त किया । तूने मेरे पति का एहसान मानने के बजाए उन्हें ही मारना चाहा । इस समय तू मेरा सबसे बड़ा शत्रु है । सर्पराज ! मरने के लिए तैयार हो जा ।‘‘
साँप से ऐसा कहकर सुनैना ने भस्म कंकड़ के सामने उसका नाम लेकर ‘भस्म हो जा‘ कहा । देखते ही देखते साँप राख की ढेरी में बदल गया ।
(साभार : डॉ. उमेश चमोला)