भारतीय राजनीति का बुलडोजर (व्यंग्य) : हरिशंकर परसाई
Bhartiya Rajneeti Ka Bulldozer (Hindi Satire) : Harishankar Parsai
साधो, बहुगुणा को हम लोग चतुर राजनेता मानते हैं। यह अलग बात है कि इंदिराजी संकट में बहुगुणा के घर गईं और संजय से ‘मामाजी’ के चरण छुवा दिए और बहुगुणा पिघल गए कि ‘मेरी बहना’ संकट में है और राखी की लाज रखने के लिए इसकी रक्षा करना ही पड़ेगी। 31 सूत्रों के बहाने बहुगुणा कांग्रेस (आई) में चले भी गए और महामंत्री बनाए गए। बहुगुणा समझे कि मैं मैडम के बाद नंबर दो हो गया, पार्टी और देश में, मगर वास्तव में इंदिराजी उनसे ‘दो नंबरी’ कूटनीति करा रही थीं। जब बहुगुणा ऑल इंडिया कांग्रेस समिति के दफ्तर में निष्काम महामंत्री के रूप में बैठे-बैठे ‘बोर’ हो गए और फुरसत में उन्हें बोध हुआ कि मैडम उन पर भरोसा नहीं करतीं और उन्हें रस्से में बांधकर कुएं में डाल चुकी है, डूबने-भर की देर है तो वे संभले, कांग्रेस के अंधकूप से बाहर आए और लोकतांत्रिक समाजवादी दल बनाया।
साधो, बहुगुणा ने यह अच्छा किया। चरणसिंह ने जिन्हें केजीबी का एजेंट कहा था, वे बहुगुणा प्रगतिशील विचारों के हैं। उनकी छवि भी है। वे लोकप्रिय भी हैं। मगर नया दल बनाना, नया घर बनाने की तरह है। बहुगुणा छोटा ही घर बना रहे थे, आधा कच्चा, आधा पक्का। दीवारें उठ गई थीं, दल की। ऊपर खपरैल और एस्बेस्टस की चाहतें डाल दी थीं। मगर साधो, घर बनाने वाला साथ में बुलडोजर क्यों रखे? बुलडोजर मकान बनाने का सामान नहीं है, मकान गिराने की मशीन है। बहुगुणा जैसे चतुर आदमी ने मकान बनाया तो साथ में बुलडोजर भी रखा। तुम पूछोगे-यह बुलडोजर कौन? साधो, भारतीय राजनीति में बुलडोजर राजनारायण है। बहुगुणा के दल का मकान आधा-सा बना था कि राजनारायण नाम का बुलडोजर चला और आधा-सा मकान गिराकर चला गया। राजनारायण ने लोकतांत्रिक समाजवादी दल तोड़ दिया यानी अपने साथियों को लेकर, बहुगुणा पर आरोप लगाकर पार्टी से बाहर हो गए।
साधो, राजनारायण नाम का बुलडोजर डॉक्टर लोहिया के जीवनकाल में भी अपनी ही समाजवादी के झोंपड़े पर चलता था। लोहिया पेट्रोल चुपचाप निकलवा लेते थे, इसलिए उनके जमाने में वह घर जमींदोज नहीं हुआ। मगर लोहिया की मृत्यु के बाद बुलडोजर में चौधरी चरणसिंह ने बैल जोतकर समाजवादी झोंपड़ी को तोड़ दिया।
साधो, राजनारायण का कहना है कि उनके बहुगुणा से दो मतभेद हैं- पहला यह कि बहुगुणा अफगानिस्तान में रूसी फौज की उपस्थिति का विरोध नहीं करते। दूसरे वे असम में चुनाव का विरोध नहीं करते। मगर वास्तविक कारण यह है कि सत्ता तक पहुंचने का रास्ता बहुगुणा की पार्टी में से नहीं है, जो कम्युनिस्ट पार्टियों के साथ वाम लोकतांत्रिक मोर्चे में शामिल है। सत्ता का रास्ता दक्षिणपंथी दलों के गठबंधन से निकलता है, जैसा 1977 में हुआ था। यानी राजनारायण 1977 वाली जनता पार्टी फिर बनाकर, 1985 में चुनाव जीतकर, दिल्ली में सरकार बनाकर, हनुमान चालीसा से ऑपरेशन कराने वाले स्वास्थ्यमंत्री फिर बनना चाहते हैं।
साधो, बुलडोजर का कहना है कि मैं चरणसिंह से मिलूंगा, यानी अगर चरणसिंह चाहेंगे तो वे फिर उनका कुत्ता बनने को तैयार हैं। फिर तरक्की करके कुत्ते से हनुमान बनेंगे और फिर लक्ष्मण। वे चंद्रशेखर से बात करेंगे। कर्पूरी ठाकुर से बात करेंगे। अटलबिहारी से बात करेंगे कि आरएसएस को छोड़कर बाकी भारतीय जनता पार्टी को लेकर इस महागठबंधन में शामिल हो जाएं और 1977 जैसी जनता पार्टी बन जाए।
साधो, बुल्डोजर की योजना अच्छी है। मगर अटलबिहारी संघ को नहीं छोड़ सकते। संघ के बिना भारतीय जनता पार्टी कुछ है ही नहीं। अब तो शाखा से बाहर से आए तत्वों को पदों से निकालकर वहां ‘तपे हुए’ (जड़ता की अग्नि में) स्वयंसेवक स्थापित किए जाएंगे। यानी भारतीय जनता पार्टी गठबंधन में आएगी, तो नेतृत्व बालासाहेब देवरस के हाथों में होगा।
साधो, 1977 में जनता पार्टी नाम का यह मकान बना था। यह विचित्र था। इसके ड्राइंगरूम का फर्श मिट्टी का था और पाखाने का फर्श मोजेक का। इसमें एक दरवाजा16वीं सदी का था और दूसरा 20वीं सदी का। इसकी छत ऐसी थी कि पड़ोस के मकानों का पानी भी इसी घर में आता था। इस मकान के बगीचे में बबूल और भटकटैया के सुंदर कांटे खिले थे। इस मकान के हर कमरे में दूसरे कमरे में चोरी करने के लिए सेंध बनी थी। हर कमरे का रखवाला दूसरे कमरे के रखवाले पर बंदूक ताने था। इस मकान पर रोज बदल-बदलकर रंग पोता जाता था। आज काला पुता है, तो कल पीला हो जाएगा। साधो, राजनारायण अगर बुलडोजर हैं तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ डायनामाइट-फैक्ट्री है। उस जमाने में बुलडोजर राजनारायण बाहर से इस मकान को गिरा रहे थे और नानाजी देशमुख चुपचाप, रात के अंधेरे में, मकान के नीचे संघ के डायनामाइट रख रह थे।
साधो, आखिर एक दिन होनी हो गई। बाहर से बुलडोजर ने जनता भवन तोड़ना शुरू किया और साथ ही संघ के डायनामाइट फूटकर मकान को उड़ाने लगे। जनता पार्टी भवन टूटकर उड़ गया-कोई यहां गिरा कोई वहां गिरा। साधो, बुलडोजरजी अब फिर मलबे को एकत्र करके जनता-मकान बनाना चाहते हैं। मकान शायद बन जाए, क्योंकि यह दक्षिणपंथियों की भाग्यरेखा है। भाग्य में यह भी लिखा है कि डायनामाइट और बुलडोजर फिर वही करेंगे। हम बुलडोजर की सफलता की कामना करते हैं-बुलडोजर की सफलता गिराने में है।