भालू बहू : ओड़िआ/ओड़िशा की लोक-कथा

Bhalu Bahu : Lok-Katha (Oriya/Odisha)

एक गाँव में एक पति-पत्नी रहते थे। स्त्री जब गर्भवती थी, उस समय जंगल में ताड़ के फल बीनने गए। दोनों ने मिलकर ताड़ के काफ़ी फल इकट्ठे किए, पर पत्नी को वहीं बच्चा हो गया। अब दोनों सोच में पड़ गए कि इतने फल कैसे लेकर जाएँगे। दोनों में इस बात को लेकर तकरार होने लगी। पत्नी कहने लगी, बच्चे को लेकर जाएँगे। काफ़ी बहस होने के बाद आख़िर में पति की बात ही रही। बच्चे को फल के पत्ते पर सुलाकर वहीं छोड़ दिया और ताड़ के फल उठाकर घर ले गए।

बच्चा उस बीहड़ जंगल में अकेला सोया रहा। जब उसे भूख लगी तो वह रोने लगा। माँ-बाप तो पास थे ही नहीं, फिर भला उसका रोना सुनता कौन? उस समय एक जंगली भैंस वहीं चर रही थी। रोने की आवाज़ का पीछा करते-करते बच्चे के पास पहुँची तो देखा एक छोटी सी बच्ची ताड़ पत्ते पर लेटी रो रही है। मन ही मन बोली, 'शायद इसके माता-पिता जंगल में लकड़ी इकट्ठी करने गए हैं। इसलिए बच्ची को यहाँ सुला दिया है।' पर काफ़ी देर इंतज़ार करने के बाद भी बच्ची को लेने कोई नहीं आया, तब भैंस दया करके बच्ची के पास गई।

पर भैंस भला बच्ची को कैसे उठा पाती? भैंस भगवान का नाम लेते हुए बोली, अगर यह बच्ची किसी माता-पिता के औरस्य से जन्मी होगी तो सींग से छूते ही वह सींग से नहीं चिपकेगी। इतना कहकर उसने सींग से जैसे ही बच्ची को छुआ, बच्ची सींग से चिपक गई। बच्ची को भैंस अपने घर ले गई और अपना दूध उसे पिलाया।

इसी तरह वह बच्ची भैंस का दूध पीते हुए बड़ी होने लगी। प्रतिदिन भैंस जंगल में चरने के लिए जाती। बच्ची भैंस के मकान के आगे खेलती रहती। एक दिन बच्ची अपने-आप से बात कर रही थी, “अगर मेरे माता-पिता होते तो मेरे लिए सूपा-टोकरी लाकर देते, जिसे लेकर मैं खेलती।” भैंस के कानों में उसकी ये बात पड़ी। भैंस ने बच्ची से पूछा, “बेटी तू क्या कह रही थी?” तब बच्ची बोली, “मेरे माता-पिता होते तो मेरे लिए सूपा-टोकरी लाकर देते। मैं उनसे खेलती।” उसकी यह बात भैंस के मन को आहत कर गई। उसने कहा, “बेटी यही बात सोच रही थी? ठीक है, मैं तेरे लिए ला दूँगी।” उसके बाद हाट बेचने के लिए लोग जिस रास्ते से गुज़रते थे, उसी रास्ते के किनारे कीचड़ में शव की तरह वह लेट गई।

हाट में सूपा-टोकरी बेचने के लिए जाने वाले लोगों ने भैंस को इस तरह पड़ा देखा तो दया करके सूपा-टोकरी को नीचे रखकर उसे कीचड़ से घसीटकर निकालने की कोशिश करने लगे। भैंस को जैसे ही उन्होंने खड़ा कर दिया, उसने लोगों को वहाँ से खदेड़ दिया, लोग डरकर अपना सामान वहीं छोड़कर भाग खड़े हुए। उनके सूपा-टोकरी लाकर उसने बच्ची को दे दिया। बच्ची वह सब लेकर ख़ुशी से खेलने लगी। इसी तरह एक दिन बच्ची बोली, “मेरे माता-पिता होते तो मेरे लिए कपड़े, गहने ला देते।” यह बात जंगल से लौटते समय भैंस ने सुनी। पास जाकर उसने बच्ची से पूछा, “कुछ नहीं माँ!” भैंस ने फिर पूछा, “बता दे बेटी!” तब बच्ची बोली, “मेरे माता-पिता होते तो मेरे लिए कपड़े, गहने ला देते। मैं पहनकर नाचते-कूदते ख़ूब खेलती।” भैंस बोली, ‘बस यही बात है न! इसके लिए इतना सोच रही है बेटी! मैं तुझे यह सब लाकर दूँगी।”

भैंस फिर उसी रास्ते में जाकर मरे हुए की तरह कीचड़ में लेट गई। उस रास्ते से हाट में सामान बेचने वाले व्यापारी गुज़रे तो भैंस को उस तरह पड़ा देखकर सोचा कि ऐसे तो यह मर जाएगी, सोचकर सबने अपना सामान नीचे रखकर उसे कीचड़ से निकालने की कोशिश की। भैंस उठकर उन्हें दौड़ाने लगी।। वे सब अपना सामान वहीं छोड़कर वहाँ से भागने लगे। भैंस उन सब का सामान लेकर घर पहुँची और बच्ची को दिया। बच्ची कपड़े, गहने पहनकर ख़ुशी से खेलने लगी। भैंस रोज़ जंगल में चरने जाती। धीरे-धीरे लड़की बड़ी होकर सुंदर युवती बन गई।

एक राजा अपने सैनिकों को लेकर एक दिन उस जंगल में शिकार करने के लिए आया। जंगल में राजा को चुरुट पीने की तलब लगी तो अपने सैनिकों से कहा कि, “देखो जंगल में कहीं धुआँ निकल रहा है। वहीं से जाकर आग लेकर आओ। मुझे चुरुट पीना है।” राजा के सैनिकों ने चारों तरफ़ देखा। किसी दिशा से भी धुआँ नहीं दिखा। इसी तरह कुछ समय बीत जाने पर उन्हें एक जगह से धुआँ उठता हुआ नज़र आया।

उसी तरफ़ निगाह रखते हुए सैनिक उसी दिशा की ओर बढ़ने लगे। चलते-चलते उसी भैंस की लड़की के पास वे पहुँच गए। वहाँ से आग क्या लाते, उस लड़की के अपूर्व सौंदर्य को देखकर वे महाराज के पास लौट आए और बोले, “महाराज! हम आग लेने गए थे। पर आग क्या लाते, वहाँ हमने एक बेहद ख़ूबसूरत युवती को देखा और लौट आए। महाराज! आपकी रानियों से सौ गुना सुंदर है वह युवती।”

उनकी बात सुनकर राजा ने कहा, “तो चलो उसके पास चलते हैं।” सभी लोग उस युवती के पास पहुँचे। राजा ने देखा कि सच ही युवती बेहद ख़ूबसूरत है। राजा ने उससे आग माँगी। युवती आग ले आई। आग को लाकर राजा ने उसे बुझा दिया और फिर से उससे आग माँगी। युवती ने फिर आग लाकर दी। राजा ने फिर बुझा दी और फिर आग माँगी। तब युवती खीजकर बोली, जैसे आए थे वैसे ही वापस लौट जाओ।'' राजा को इस तरह से जवाब देने पर सैनिकों ने ग़ुस्से में आकर युवती को घर के अंदर बाँध दिया और बाहर से दरवाज़ा बंद करके चले गए।

उस दिन भी भैंस जंगल में चरने गई थी। वापस लौटी तो देखा कि दरवाज़ा बंद है। भैंस ने युवती से कहा, “बेटी दरवाज़ा खोल दे, मेरी तबीयत ठीक नहीं है, मुझे पानी पीना है।” पर युवती बँधी होने के कारण दरवाज़ा खोल नहीं पाई। भैंस भी दरवाज़ा खोल न पाई और उसका अंतिम समय आ गया। प्राण पखेरू उड़ने से पहले भैंस बोली, “बेटी! तूने तो दरवाज़ा खोला नहीं। अब मेरे प्राण निकल रहे हैं। मैं मर जाऊँ तो मेरे दोनों सींग को उखाड़ लेना। उससे तुम्हें सब कुछ मिलेगा। बाएँ तरफ़ के सींग को बाएँ हाथ से और दाहिने तरफ़ के सींग को दाहिने हाथ से उखाड़ना। इतना कहकर वहीं द्वार पर भैंस ने अंतिम साँस ली।

उसके बाद राजा फिर से अपने सैनिकों को लेकर युवती के पास पहुँचे। वहाँ देखा कि दरवाज़े पर एक भैंस मरी पड़ी है। राजा के सैनिकों ने भैंस को वहाँ से हटाकर युवती को बाहर निकाला और बोले, “हम तुम्हें अपने राजा की रानी बनाकर ले जाएँगे।” युवती बोली, “मेरी माँ की मौत हो गई है, उसका अंतिम संस्कार करने तक मैं तुम लोगों के साथ नहीं जा पाऊँगी।”

राजा ने यह सुना तो सैनिकों को धोबी, नाई और ब्राह्मण को लाने के लिए भेजा और शुद्धि-क्रिया करवा दी। उसके बाद राजा बोले, “अब हम तुम्हें अपनी रानी बना लेंगे।” युवती बोली, “मैं ऐसे नहीं जाऊँगी। पहले सिंदूर से एक सड़क बनवाइए। पालकी और बाजा-गाजा लेकर आइए, तभी मैं जाऊँगी।” तुरंत राजा के आदेश पर सिंदूर की एक सड़क बनाई गई। पालकी लाकर बाजे-गाजे के साथ युवती को साथ लेकर चले। बीहड़ जंगल के रास्ते से गुज़रते हुए सभी को प्यास लगी। युवती को वहीं छोड़कर सभी पानी ढूँढ़ने निकले। पर कहीं भी पानी नहीं मिला। इसके बाद आँवले के चार फल लेकर चारों दिशाओं में फेंके। तीन तरफ़ से कोई आवाज़ नहीं आई। चौथी दिशा की तरफ़ से फल पानी में गिरने जैसी आवाज़ आई। सभी उसी ओर दौड़े। देखा तो एक छोटे से गड्ढे में पानी था। सभी ने पानी पीया।

उस समय तक पालकी में युवती अकेली बैठी रही। तभी एक मादा भालू वहाँ पहुँची और युवती से बोली, “अपने गहने मुझे दे, मैं पहनूँगी। अगर गहने नहीं देगी तो मैं तुम्हें खा जाऊँगी।” युवती ने डरकर अपने सारे गहने मादा भालू को दे दिए।

उसके बाद मादा भालू बोली, “अब अपनी चुनरी मुझे दे दे, नहीं तो मैं तुम्हें खा जाऊँगी।” डरकर युवती ने अपनी चुनरी भी दे दी। उसके बाद मादा भालू बोली, “अब इस पालकी से उतरकर चली जा, नहीं तो मैं तुम्हें खा जाऊँगी।” उसकी बात सुनकर भयभीत युवती पालकी से उतरकर दूर चली गई। तब मादा भालू बहू बनकर चुपचाप पालकी में बैठ गई।

राजा ने युवती से पूछा, “पानी पीओगी?” भालू बहू कुछ ना बोलकर ऊँ-हुँ करती रही। सभी ने कहा कि उसे प्यास नहीं लगी होगी। इतना कहकर पालकी लेकर आगे बढ़ने लगे। वह युवती रूदन करते हुए उनके पीछे-पीछे चलती रही।

“पीछे मुड़कर देखो हे लाल साहेब,
पलट के एक बार देखो
मैं जो रानी तुम्हारी पड़ी रही
इस जंगल में।”

उस युवती का रोना सुनकर राजा ने सभी को चुप रहने के लिए कहा और बोला, “कहाँ से लड़की के रोने की आवाज़ आ रही है?” यह सुनकर भालू बहू बोली, “चलो, चलो, जंगल की चिड़िया ऐसे ही कई तरह की आवाज़ करती हैं।” उसकी बात सुनकर सभी फिर से चलने लगे। उनके पीछे-पीछे चलकर युवती राजा के राज्य के मुहाने पर स्थित एक बूढ़ा-बूढ़ी के घर पहुँची। उनका कोई बच्चा नहीं था। उनके पास जाकर युवती बोली, “मैं यहाँ रहकर तुम्हारे गाय-गोरूओं को चराने ले जाऊँगी और तुम लोगों की सेवा करूँगी।” उसकी बात सुनकर उन्होंने ख़ुशी से उसे रख लिया।

इधर भालू बहू को लेकर राजा महल में पहुँचे। वहाँ पैर धोते समय राजा ने देखा कि यह तो भालू का पैर है। उसी समय भालू बहू बोली, “मेरा पैर कुरूप लग रहा है न, पर मैं तो ठीक हूँ।” ऐसा कहकर भालू बहू राजा के महल में रहने लगी। उधर युवती बूढ़ा-बूढ़ी के घर गाय-गोरूओं को चराती रही।

उस समय राजा को अपने गधों और ऊँटों को चराने के लिए कोई चरवाहा नहीं मिल रहा था। राजा की परेशानी को जानकर बूढ़ा-बूढ़ी ने कहा, “हमारे घर में एक युवती है, वही आपके गधों और ऊँटों को चराने ले जाएगी।” उसके बाद युवती राजा के गधों और ऊँटों को लेकर हर दिन सात जंगल पार करके चराने ले जाती। वहाँ पहुँचकर अपनी भैंस माँ के सींग से सोने का झूला निकलवाकर पेड़ पर टाँग देती और रानी की तरह सजकर झूले पर बैठकर झूलते हुए गीत गाती:

ऊँट रे ऊँट, गधा रे गधा
सात जंगलों में जाकर चर आओ
ऊँट रे ऊँट, गधा रे गधा
सात झरनों का पानी पी आओ
मैं तो झूल रही हूँ सोने के झूले में

उसका यह गीत सुनकर ऊँट, गधे युवती की तरफ़ देखते रहते, चरते नहीं। शाम होने पर युवती झूले से उतरकर उसी भैंस के सींग में झूले को रख करके ऊँट और गधों को वापस घर ले आती। ऊँट और गधे न खा-पीकर धीरे-धीरे बीमार होने लगे। राजा ने उनकी यह हालत देखकर अपने नौकरों से कहा, “उस युवती पर नज़र रखो। देखो कि ऊँट और गधों को चराने ले जाकर वह क्या करती रहती है।”

उसके दूसरे दिन युवती ऊँट और गधों को लेकर सात जंगल पार करके उसी जगह पर पहुँचकर सींग से झूला निकालकर, रानी की तरह कपड़े-गहनों से सजकर झूले पर झूलते हुए वही गीत गाने लगी। हर दिन की तरह ऊँट और गधे उसे ही देखत हुऐ खड़े रहे। यह सब बातें देखकर राजा के परिचारकों ने जाकर राजा से सारी बातें बताईं।

यह सुनकर राजा ख़ुद देखने गए और देखा कि वह युवती सींग से झूला निकालकर रानी की तरह सजकर, झूला झूलते गीत गा रही है। ऊँट और गधे उसे देखते खड़े रहे। राजा ने पेड़ के पीछे छिपकर सारा नज़ारा देखा। वह अपूर्व सुंदरी युवती झूला झूल लेने के बाद झूले से उतरकर सारा सामान समेटकर सींग में जमा करने लगी। तभी राजा उसका आँचल पकड़कर खींचते हुए बोले, “तुम यहीं रहकर ऐसा काम कर रही हो, यह मुझे नहीं पता था। मैं तुम्हें आज अपने साथ ले जाऊँगा।

राजा की बात सुनकर युवती बोली, “मैं आपके पास वापस नहीं लौटूँगी। पहले ही मुझे परेशानी में डालकर भालू बहू को साथ ले गए। जाइए, जाकर उस भालू बहू को निकाल बाहर करें, तभी मैं रानी बनकर वहाँ जाऊँगी।”

राजा ने कहा, “उसे मैं कैसे निकालूँ?” युवती बोली, “आज से आप कुछ खाएँ-पीएँ मत। कोई पूछे तो कहिएगा एक नया कुआँ खुदवाकर सारी बहुएँ जब उसकी प्रतिष्ठा कर लेंगी तभी आप खाएँगे। और जब सारी बहुएँ प्रतिष्ठा के लिए कुएँ के पास जाएँगी तो उसी समय भालू बहू को कुएँ में धकेल दीजिएगा।” राजा ने युवती के कहे अनुसार किया।

एक नया कुआँ खुदवाया गया। सारी बहुएँ मिलकर प्रतिष्ठा के लिए कुएँ पर पूजा करने गईं। पूजा करते समय प्रणाम करने के लिए जब बहुएँ झुकीं तो भालू बहू को राजा ने कुएँ के अंदर धकेल दिया। फिर राजकर्मचारियों ने कुएँ में मिट्टी डालकर उसे पाट दिया। भालू बहू अंदर से चिल्लाती रही, “ठहर जाओ, मेरे वंश के दूसरे भालू तुम्हारे इस काम का ज़रूर बदला लेंगे।” भालू बहू के मरने के बाद उस युवती को राजा ने हमेशा के लिए रानी बनाकर रखा।

(साभार : अनुवाद : सुजाता शिवेन, ओड़िशा की लोककथाएँ, संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र)

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