भक्त के भगवान् : ओड़िआ/ओड़िशा की लोक-कथा

Bhakt Ke Bhagwan : Lok-Katha (Oriya/Odisha)

पंचसखा कवियों में बलराम दास महाप्रभु जगन्नाथ के परम भक्त थे । वे तत्त्वदर्शी थे, परम ज्ञानी थे, लेकिन उनकी एक कमजोरी थी। वे वेश्यासक्त थे। रोज गणिकाओं के यहाँ जाना मानो उनकी दिनचर्या थी ।

गजपति प्रतापरुद्र देव का समय, श्रीगुंडिचा का दिन, बड़दांड में तीनों रथ सज चुके थे। घंटा, तुरही की आवाज से दिशाएँ प्रकंपित थीं । रथारूढ़ जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा तथा सुदर्शन के दर्शन के लिए बड़दांड में जनसैलाव उमड़ रहा था। बलराम दास के कानों में भी यह आवाज पड़ी। फिर भी वे वेश्या के यहाँ गए। भीतर से दरवाजा बंद कर लिया, पर अंदर रुक नहीं पाए। जगन्नाथ दर्शन की लालसा से उनका मन बेचैन हो उठा। उनका शरीर काँपने लगा। वे दरवाजा खोलकर बाहर निकल आए। बड़दांड की भीड़ को चीरते हुए सीधे जगन्नाथ के नंदिघोष रथ के पास पहुँचे।‘जय जगन्नाथ' कहते हुए सीधे रथ पर चढ़ गए। उनके बिखरे बाल, शरीर में जगह-जगह लगा कुंकुम, गले में लगे पान- पीक के दाग तथा कंधे पर उत्तरीय न देखकर जगन्नाथ के सेवकों ने उन्हें नीचे भगा दिया और क्रोधित होकर तिरस्कार के वाक्य भी कहे। फिर रथ के शोधन में लग गए।

पंडों के द्वारा किए गए इस अपमान को बलराम दास सह नहीं सके। वे रोते-बिलखते, दुःखी मन से समुद्र के किनारे बांकी मुहाने के पास बालिकुद चले आए। वहीं रेत से तीनों रथों का निर्माण किया। बड़ी तन्मयता से प्राणप्रिय विग्रहों की प्रतिष्ठा । की। उनके साथ हुए दुर्व्यवहार की कथा जगन्नाथ से कह सुनाई और कसम दिलाई कि‘हे प्रभु! यदि मैं सचमुच आपका भक्त हूँ तो आप नंदघ छोड़कर यहाँ आ जाइएगा।' ठीक वैसा ही हुआ, जैसा बलराम दास चाह रहे थे।

महाप्रभु जगन्नाथ अपने भाई-बहनों के साथ सुसज्जित रथ छोड़ त से बने उन रथों पर जा पधारे। इधर बड़दांड में रथ के पहिए हिलने का नाम नहीं ले रहे थे। राजा भी परेशान था और भक्त भी । राजा प्रतापरुद्र देव ने रथ खिंचवाने की लाखों कोशिशें कीं। यहाँ तक कि हाथियों को भी रथ खींचने के काम में लगाया, पर वे भी नाकाम रहे। अंत में राजा प्रतापरुद्र जगन्नाथ की शरण में गए। उन्हें स्वप्नादेश हुआ कि 'पंडों ने मेरे परमभक्त बलराम दास के साथ दुर्व्यवहार किया है। इससे दुःखी होकर उसने बांकी मुहाने के पास रेत से रथ बनवाया है। मैं वहीं उसकी भक्ति से बँधा पड़ा हूँ। पहले तुम जाकर उन्हें ससम्मान यहाँ लिवा लाओ। फिर देखना, बड़दांड में तीनों रथ अपने आप आगे बढ़ेंगे।' स्वप्नादेश पाकर राजा स्वयं अपने सेवकों के साथ जाकर बलराम दास को लिवा लाए। रथ पर उन्हें उचित सम्मान मिला। तब रथ आगे बढ़ने लगे ।

(साभार : अमूल्य रत्न महांति)

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