भाई-बहन का राज्य : ओड़िआ/ओड़िशा की लोक-कथा
Bhai-Behan Ka Rajya : Lok-Katha (Oriya/Odisha)
पृथ्वी पर मानव, पशु, पक्षी, पेड़, लता, पौधे आदि थे। एक बार पृथ्वी पर बरसात हुई और ऐसी बरसात हुई कि तीन महीने तीन दिन हो गए, फिर भी लगातार पानी बरसता रहा। बरसात के पानी से पूरी पृथ्वी जल से भर गई। एक वृद्ध व्यक्ति थे। उनके एक लड़का और एक लड़की थी। वृद्ध ने सोचा कि मैं तो बुड्ढा हो गया हूँ, बरसात के पानी में अगर डूब कर मर जाऊँ तो भी चलेगा, पर ऐसा क्या काम करूँ कि मेरे लड़के और लड़की की जान बच जाए।
उन्होंने एक बहुत बड़े पेड़ को काटा और उसकी लकड़ी से एक बड़ी नाव तैयार की। उसी नाव में महीने-डेढ़ महीने तक खाने की चीज़ें, जैसे भात, दाल, नमक, मिर्च, पानी रखा और साथ में बाक़ी ज़रूरत की चीज़ें भी रख दीं। अपने लड़के-लड़की को उसी नाव में चढ़ा दिया। नौका को चारों तरफ़ से लकड़ी के फट्टे से बंद कर दिया। हवा आने-जाने के लिए एक छोटा सा छेद बना दिया और उस नाव को पानी में बहा दिया। पृथ्वी पर पानी इतना बढ़ गया कि सारे जीव-जंतु, पेड़-पौधे मर गए।
चंदरसिल पहाड़ के पठार पर सारे देव-देवी इकट्ठा हुए। सभी वहाँ बैठकर विचार करने लगे कि क्या करें? तीन महीने तीन दिन हो गए पर बरसात बंद नहीं हुई। पृथ्वी का सारा भाग जलमय हो गया। प्राणी, वनस्पति सब मर गए। सृष्टि-ध्वंस हो गया। सभी देव-देवियों ने बूढ़ा देव (महादेव) और पार्वती को चंदरसिल पठार पर आने के लिए बुलावा भेजा। महादेव और पार्वती ने चंदरसिल पठार पर आकर देव-देवियों से साक्षात्कार किया। देव-देवियों ने पार्वती और महादेव से सृष्टि नष्ट हो जाने की बात कही। महादेव और पार्वती ने देखा कि सारी पृथ्वी जलमग्न हो गई है। कोई भी जीव-जंतु, वनस्पति नज़र नहीं आ रहे हैं। देव-देवियों ने विचार किया कि पहले देखें कि पृथ्वी पर कहीं कोई जीव है या नहीं। पार्वती ने अपनी जाँघ को जाँघ से घिसकर उसकी मैल से एक कौवा बनाया और उसमें प्राण भर दिया। फिर उस कौवे से कहा कि तू पूरी पृथ्वी घूमकर देखना कि कहीं कोई जीव-जंतु है या नहीं। कौवा वहाँ से उड़ते हुए पृथ्वी की हर दिशा घूमा, पर कहीं भी उसे किसी जीव का निशान नहीं मिला। हर दिशा ढूँढ़ लेने के बाद कौवा आख़िर में देव-देवियों के पास वापस लौट आया और बताया कि उसे कहीं भी किसी जीव की खोज-ख़बर नहीं मिली।
देव-देवियाँ सोचने लगे कि अब क्या करें? महादेव ने एक मादा कौवा बनाकर उसमें प्राण भरा और उसे जीव-जंतु की खोज में भेजा। मादा कौवा हर तरफ़ गई पर कहीं भी उसे किसी जीव का पता नहीं मिला। तभी उसने देखा कि पानी में एक बड़ी-सी लकड़ी बह रही है। मादा कौवा को कहीं बैठने की जगह नहीं मिली तो उसी लकड़ी की नाव पर बैठकर काँव-काँव करने लगी। उसी नाव के अंदर भाई-बहन थे।
कौवे की आवाज़ सुनकर आपस में दोनों ने बात की कि पृथ्वी में जीव-जंतु अभी बचे हैं। भाई-बहन ने कौवे के लिए एक पत्ते में थोड़ा सा भात रखकर नाव के उसी छोटे से छेद में से बाहर फेंक दिया। मादा कौवे ने भात देखकर सोचा कि इस लकड़ी के बक्से में ज़रूर इंसान हैं, नहीं तो उसे भला भात कौन देगा? मादा कौवा उस भात को लेकर देव-देवियों के पास लौट गई और सभी को भात दिखाई। देव-देवियों ने भात को देखकर विश्वास किया कि पृथ्वी पर इंसान हैं। मादा कौवे से पूछने पर उसने लकड़ी के बक्से में इंसान होने की बात बताई।
देव-देवियों ने आपस में बातचीत करके उस काठ के बक्से को लाने के लिए गरुड़ को भेजा। गरुड़ ने वहाँ पहुँचकर देखा कि काठ का बक्सा काफ़ी बड़ा है। उतना बड़ा बक्सा उससे उठाया नहीं गया। गरुड़ वापस देव-देवियों के पास लौट गया। देव-देवी विचार-विमर्श करने लगे कि कौन उस लकड़ी के बक्से को उठाकर ले आएगा? महादेव ने भीमसेन को बुलाया। भीमसेन महादेव की पुकार सुनकर वहाँ पहुँचे। देव-देवियों ने तब भीमसेन को सारी बातें बताईं।
भीमसेन ने देखा कि पृथ्वी पर कहीं भी ज़मीन का टुकड़ा नज़र नहीं आ रहा है। चारों तरफ़ पानी ही पानी है। भीमसेन समझ गए कि नल राजा सारी मिट्टी को निगल गए हैं। भीमसेन नल राजा के पास गए। नल राजा को अपनी काँख में दबोच लिया। भीमसेन के दबा देने से नल राजा ने सारी मिट्टी उगल दी। चारों तरफ़ ठोस धरातल उभर आया। इसलिए सभी लोग केंचुए को नल राजा कहते हैं।
अब पृथ्वी में ठोस ज़मीन फैल गई। भीमसेन मादा कौवे के साथ गए और लकड़ी के बक्से को उठा लाए। लकड़ी की नाव के अंदर बैठे भाई-बहन को बाहर निकाला। सिर्फ़ यही दो प्राणी भाई-बहन पृथ्वी पर ज़िंदा रहे। भाई-बहन दोनों साथ रहने लगे। धीरे-धीरे दोनों बड़े होने लगे। जिस तरह से मानव जवान होने पर अपनी जाति, कुल, गोत्र भूलकर प्रेम में पड़ जाते हैं, उसी तरह दोनों भाई-बहन ने भी आख़िर में विवाह कर लिया। उनके बच्चे हुए और उसी भाई-बहन से मानव जाति की पुनः सृष्टि हुई। इसलिए पृथ्वी को भाई-बहन का राज्य कहा जाता है।
(साभार : ओड़िशा की लोककथाएँ, संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र)