भाई-बहिन (अच् आची) (ञीशी जनजाति) : अरुणाचल प्रदेश की लोक-कथा
Bhai-Behan : Folk Tale (Arunachal Pradesh)
यह कहानी है न्योमी गाँव में रहनेवाले एक ताक्यो नाम के व्यक्ति की । न्योमी गाँव में ताक्यो नाम का एक लड़का अपनी बहन यायी और माता-पिता के साथ रहता था। एक दिन ताक्यो ने अपने माँ-बाप से कहा - आने (माँ)-आबू (पिता), मैं आलू (नमक) लेने न्यीने न्योकू अर्थात् चीन जा रहा हूँ, नहीं तो अगले महीने से सर्दी शुरू हो जाएगी और मैं वहाँ जा नहीं पाऊँगा। साथ ही मुझे घर के लिए और भी जरूरी सामान लाने हैं। आप लोग अपना खयाल रखें, मैं आपकी देखभाल के लिए यायी को छोड़कर जा रहा हूँ। जब ताक्यो चीन जाने की बात अपने आने-आबू से कह रहा था, तब यायी ने मन में ठान लिया कि वह भी जरूर न्यीने न्योकू जाएगी, क्योंकि बचपन से ही उसने वहाँ के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था और उसके मन में वहाँ जाने की बड़ी इच्छा थी। भाई के वहाँ जाने की बात सुनकर उसकी यह इच्छा और बढ़ने लगी। कुछ देर बाद ही यायी ने मौका देखकर अपने बड़े भैया से साथ जाने की इच्छा जाहिर की और भैया के न मानने पर जिद करने लगी। ताक्यो ने साफ मना कर दिया और बड़े ही प्यार से अपनी छोटी बहन यायी को न्यीने न्योकू तक पहुँचने के रास्ते में आनेवाली कठिनाइयों के बारे में विस्तार से बताया; परंतु यायी भला कहाँ माननेवाली थी ? वह भी अपनी जिद पर अड़ी रही। मजबूर होकर ताक्यो को अपनी बहन को साथ ले जाना पड़ा।
आने-आबू ने भी यायी को बहुत समझाया और रोका, परंतु यायी नहीं मानी। अंत में आने-आबू ने यायी को हिदायत देते हुए कहा, "बेटी यायी, तुम अभी तो बहुत खुश हो; परंतु रास्ते में आनेवाली अड़चनों से बचकर रहना। तुम्हारा मन बहुत चंचल है। रास्ते में बहुत सी चीजें तुम्हें बहकाने की कोशिश करेंगीं । तुम अपने चंचल मन को स्थिर रखना और अपने बड़े भैया की हर एक बात मानना, वरना तुम ऊयू (बुरी आत्मा) के झांसे में आकर कहीं मुसीबत में फँस जाओगी।" यायी ने सुना तो, परंतु इस कान से सुनकर उस कान से निकाल दिया और अपने चंचल स्वभाव के चलते अपने माँ बाप की हिदायतों पर ध्यान नहीं दिया। बड़ा भाई ताक्यो यात्रा के शुरू होने के पहले से ही अपनी छोटी बहन यायी के लिए चिंतित रहने लगा।
अगले दिन दोनों ने न्यीमे-न्योकू के लिए अपनी यात्रा शुरू कर दी। बड़े भैया ताक्यो ने फिर एक बार अपनी बहन को याद दिलाया कि "हमारे रास्ते में बहुत सी अजीब-अजीब सी वस्तुएँ, पेड़-पौधे एवं पशु-पक्षी मिलेंगे तथा अलग-अलग तरह की आवाजें जंगल के कोने-कोने से आएँगी। कुछ तो सुनने में ऐसी लगेंगी कि वह हमें बुला रही हैं; पर तुम चाहे जो हो जाए, उनका उत्तर मत देना। मेरा नाम मत पुकारना और जिस रस्सी से मैंने तुम्हें अपने साथ बाँध रखा है, उसे छुड़ाना मत। समझ गई न ? वह सारी बुरी आत्माएँ होंगी। साथ ही यह भी ध्यान में रखना कि तुम किसी भी पत्ते, फूल और पत्थर को मत छूना। मेरी प्यारी बहन ! मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता । तो कृपया मेरी बात मानना । कोई भी गलती मत करना, वरना हम दोनों उसी जंगल में हमेशा-हमेशा के लिए फँस जाएँगे।"
पहले तो यायी ने 'हाँ' कहा, परंतु उसका चंचल, अस्थिर मन ! यात्रा शुरू हो गई। जंगल का रास्ता घना होता गया। अजीब-अजीब से फूल - फल दिखने लगे। कुछ सुंदर तो कुछ प्यारे । एक-से-एक मोहक ! तरह-तरह की आवाजें सुनाई पड़ने लगीं । यायी उन फूल, फल और पत्तों को देखकर खुद पर काबू न रख सकी और अपने रास्ते में आनेवाली तमाम चीजों को उसने छुआ । आवाज का जवाब दिया। और तो फिर होना क्या था ? वह उन बुरी आत्माओं के चंगुल में फँस गई। भैया को न बताते हुए उसने स्वयं के कर्मों का अंजाम भाँप लिया और धीरे से अपने और भैया ताक्यो के हाथ में बँधी रस्सी खोल ली। वह रास्ता ऐसा था कि यदि यायी उस वक्त ताक्यो का नाम लेकर उसे पुकारती, तो भैया ताक्यो भी फँस जाता ।
इस सबसे अनजान ताक्यो पूरे रास्ते यही समझता रहा कि बहन यायी उसके साथ ही है । वह रास्ते में आगे बढ़ता रहा। जब वह न्यीमे न्योकू पहुँच गया, तब उसे महसूस हुआ कि यायी उसके साथ नहीं है। वह तुरंत पलटा तो देखा कि वह तो रास्ते में ही पीछे कहीं छूट गई है। बहुत जोर-जोर से पुकारते हुए वह अपनी बहन को खोजने लगा।
बहुत तलाशने के बाद उसे अपनी बहन आधे रास्ते में एक बड़े से पेड़ के तने से जकड़ी हुई मिली। भैया ने यायी से पूछा, “तुमने मुझे आवाज क्यों नहीं लगाई ?" यायी ने रोते हुए बताया, “यदि मैं आपको पुकारती तो आप भी फँस जाते और मेरी तरह आप भी वृक्ष की इन शाखाओं और जटाओं में कैद हो जाते।" आगे यायी रोते हुए अपने भैया को बताती है कि "मुझे इन जटाओं के कारण बहुत दर्द हो रहा है। यह पेड़ मुझे अपने अंदर खींच रहा है। भैया, मेरा सारा शरीर दर्द से कराह रहा है। भैया, मुझे आप बचा लो। मैं मरना नहीं चाहती हूँ ।" यह सुनकर भैया ताक्यो अपना पूरा जोर लगाकर उस पेड़ की शाखाओं को काटने की कोशिश करने लगा, परंतु ताक्यो जितना काटता जाता, जटाएँ उतनी ही दुगनी रफ्तार से बढ़ने लगतीं। धीरे-धीरे यायी उस पेड़ के अंदर समाने लगती है। यह देख, भैया ताक्यो और भी दुःखी हो जाता है।
इधर बहन को उस बड़े से पेड़ के अंदर समाते वह नहीं देख पाता है, तो दूसरी तरफ उसे अपने बूढ़े माँ-बाप की चिंता सता रही थी। वह बहन को इस बुरे हाल में अकेले छोड़कर भी नहीं जा पा रहा था, न ही उसे आजाद करा पा रहा था।
बहुत कोशिश के बावजूद जब वह अपनी बहन को छुड़ा नहीं पाया, तब वह हार मानते हुए घर लौटने के लिए जैसे ही खड़ा हुआ और अलविदा कहकर जाने ही वाला था कि यायी रोकर उससे कहने लगी कि " आची (भैया ) ! जाते-जाते मेरे लिए एक कंघी बना दीजिए, ताकि मैं अपने बाल सँवार सकूँ। यहाँ जंगल में मेरी बात कौन सुनेगा ? मैं तो यहाँ अकेली हो जाऊँगी।" भैया कंघी का खिलौना बनाकर उसे आँसू भरे नयनों से देखकर वह कंघी वहाँ रखकर चलने लगता है। तब बहन फिर पुकारती हुई कहती है- " ओ ! आची, मेरे लिए सुंदर सी एक छोटी सी अगे (टोकरी) बना दो, फिर जाना।" भैया मुड़कर आता है और अपनी बहन के लिए टोकरी बनाकर उसके पास रख देता है, फिर वह चलने लगता है। बहन फिर कुछ फरमाइश उसके सामने रख देती है। इस तरह बहन बहाने से थोड़ा और वक्त अपने भैया के साथ बिताने के लिए जो-जो कहती, उसका भैया वे सारी चीजें वहाँ बना-बनाकर उसे देता है। ऐसा करते-करते शाम हो जाती है और भैया ताक्यो रोते हुए घर जाने लगता है। तभी कुछ दूर चलते ही बहन यायी जोर-जोर से रोते हुए अपने भैया को फिर पुकारती है। वह कहती है, "भइया, भइया! मुझे बचाओ! यह चील - कौए मेरी आँखें नोचकर खानेवाले हैं। भैया! मुझे इनसे बचाओ।" यह सुनते ही ताक्यो दौड़ते हुए लाठी लेकर आकर चील-कौवों को वहाँ से मारकर भगा देता है, परंतु पेड़ की सख्त जटाओं के दर्द से यायी का सारा शरीर जख्मों से बेहाल हो जाता है और धीरे-धीरे रात होते- होते उसके बचने की उम्मीद कम होने लगती है। भैया ताक्यो बेहद दुःखी होकर बहन की अंतिम घड़ी में उसके साथ उस घने जंगल में देर रात तक रहता है।
यायी लंबी-लंबी साँसें लेती हुई अपने भैया से कहती है कि “भैया, आखिरी बार मुझे अच्छे से देख लो! इसके बाद मैं आपको कभी कष्ट नहीं दूँगी। आप मेरे प्यार और यादों को सदा अपने हृदय में बसाना। मुझे माफ कर दीजिए। आने और आबू को मेरी इस दुर्दशा के बारे में मत बताना, वरना वे बहुत दुःखी होंगे। आप जहाँ भी आराम के लिए रुकेंगे, इस दिशा की ओर मुँह करके मुझे एक बार जरूर याद करना। मैं जिस स्थान पर मृत्यु को प्राप्त करूँगी, वहाँ पर धान और खूबसूरत पौधे उगेंगे। आप कभी फिर इन रास्तों से गुजरें तो उन पौधों को देखकर मुझे याद करना।... "
(साभार : नूरी शांति )