भाग्य का लिखा : हरियाणवी लोक-कथा
Bhagya Ka Likha : Lok-Katha (Haryana)
बहुत पुरानी बात है, पंचनद देश में एक राजा था। राजा की सात बेटियां थीं। एक दिन राजा ने बेटियों से पूछा, ‘मैं तुम्हें कैसा लगता हूं?’ बड़ी बेटी ने कहा, ‘आप मुझे शहद से मीठे लगते हैं।’ दूसरी से पूछा तो उसने कहा, आप मुझे गुड जैसे मीठे लगते हैं फिर तीसरी, चौथी, पांचवीं और छठी ने कुछ ऐसी ही बात दोहराई। किसी ने शक्कर की तरह, किसी ने शहद की तरह, किसी ने मिश्री जैसा मीठा कहा। सबसे छोटी व राजा की सबसे प्रिय बेटी से पूछने पर उसने कहा,
‘महाराज! आप मुझे नमक की तरह स्वाद लगते हो।’
यह सुनकर राजा को गुस्सा आ गया। उसने राजकुमारी से पूछा, ‘तुमने मुझे नमक जैसा क्यों कहा? लड़की ने मासूमियत से जवाब दिया ‘पिताजी मैंने जैसा महसूस किया है, वैसा ही तो कहा है।’ यह सुनकर राजा का गुस्सा आसमान पर चढ़ गया और यह तो हम सभी जानते हैं कि गुस्से में आम आदमी भी होशोहवास खो बैठता है। उसने लड़की से कहा, नालायक मैं तुझे इसकी सजा दूंगा। लड़की बोली मेरे भाग्य में जो लिखा है वह होकर रहेगा। वैसे राज ज्योतिषी ने मेरे भाग्य में रानी बनने की बात कही है। राजा ने गुस्से में सेवकों को आदेश दिया कि नगर से किसी भी कोढ़ी आदमी को उठा लाओ और इस छोटी लड़की की शादी उससे कर दो।’ राजा की बात सुनकर सब लोग चिंता में डूब गए। रानी ने हाथ-पाँव जोड़े, मंत्रियों ने राजा को समझाया लेकिन राजा ने उनकी एक न सुनी।
सेवक एक बूढ़े कोढ़ी को उठाकर राज-दरबार में ले आए। राजा ने छोटी बेटी का विवाह रस्मो-रिवाज से कोढ़ी के साथ कर दिया। राजा की बेटी ने अपनी जरा भी उदासी प्रकट न होने दी।
राजकुमारी अपने पति को लेकर महल से बाहर निकल गई। उसने अपनी एक मात्र अंगूठी बेचकर एक ठेला खरीद लिया। रोज उस ठेले में अपने पति को बिठाकर भीख मांगने लगी।
एक दिन वह अपने पति को एक तालाब के पास एक पेड़ की छाँव में ठेले में बैठा छोड़कर बाजार से खाना लेने गई। ठेले में बैठे कोढ़ी ने देखा कि कुछ कौवे उस तालाब में डुबकी लगा रहे हैं और जब वे बाहर निकलते हैं तो हंस निकलते हैं। यह देखकर वह हैरान हुआ। अचानक उसके दिमाग में एक विचार आया कि, ‘क्यों न मैं भी तालाब में डुबकी लगाऊं। कव्वा हंस बनकर बाहर निकल सकता है तो हो सकता है, मेरा कोढ़ ठीक हो जाए और मैं भी सुंदर नौजवान बन जाऊं।’ वह तालाब में डुबकी लगाने उतरने लगा तो उसने सोचा कि यदि मैं सुंदर नौजवान युवक बनकर निकलूंगा तो मेरी पत्नी मुझे कैसे पहचानेगी। यह सोचकर उसने अपनी चितली उंगली को पानी से बाहर रखकर डुबकी लगाने का फैसला किया, ताकि उसकी पत्नी उसे पहचान ले। डुबकी लगाकर वह पानी से बाहर निकला तो उसका सपना साकार हो चुका था। वह मुस्कुराता हुआ ठेले पर बैठ गया।
जब राजकुमारी वापस आई तो उसने देखा कि उसके पति की जगह एक सुंदर नौजवान ठेले पर बैठा हुआ मुस्कुरा रहा है। उसके मन में ख्याल आया कि शायद इस नौजवान ने उसके कोढ़ी पति को मार डाला है और अब उससे शादी करना चाहता है। यह सोचते ही उसकी आंखें गुस्से से लाल हो गईं। वह युवक से बोली, ‘बता, मेरा पति कहां है?’ नहीं तो मैं तुझे मार डालूँगी
युवक ने हँस कर कहा, ‘पगली मैं ही तेरा पति हूं।’
परंतु वह न मानी और रोते हुए बोली, ‘तुम मुझसे झूठ कह रहे हो, मैं पतिव्रता स्त्री हूँ। मेरा पति ही मेरा परमेश्वर है, मैं तुम्हारी चाल में नहीं आउंगी तुम्हे मारकर खुद भी मर जाउंगी। यह कहते हुए उसने अपनी कटार निकाल ली। नौजवान युवक अपनी पत्नी के सच्चे प्रेम की मन-ही-मन सराहना करने लगा। उसने अपना हाथ, जो अब तक पीछे छुपा रखा था, सामने कर दिया और अपनी वह उंगली दिखाई जिसमें कोढ़ का निशान अभी भी बाकी था।
राजकुमारी ने अपने पति को पहचान लिया। युवक ने बताया कि वह कश्मीर का राजकुमार है। एक बार उसने भूलकर एक साधू का अपमान कर दिया था, उसकी जरा-सी भूल के कारण साधु क्रोधित हो उठा था और उसने मुझे कोढ़ी होने का शाप दिया था। कोढ़ी हो जाने के बाद वह खुद ही अपने पिता के राज्य से दूर पंचनद में आ गया था।
इस चमत्कार को देखकर राजकुमारी की खुशी का ठिकाना न रहा। राजकुमार अपनी पत्नी के साथ अपने राज्य में लौटा। उसके पिता उसे देखकर खुश हो गए, उन्होंने उसी दिन उसे राज गद्दी सौंप दी।
(डॉ श्याम सखा)