भाग्य का लेखा : आदिवासी लोक-कथा
Bhagya Ka Lekha : Adivasi Lok-Katha
एक राजा था। वह कर्मवादी था। वह कार्य करने पर विश्वास रखता था, भाग्य पर नहीं। उसे अपनी प्रजा के सुख-दुख का पर्याप्त ध्यान रहता था। एक बार राजा अपने सिपाहियों सहित शिकार खेलने निकला। घने जंगल में पहुँचते ही अचानक एक शेर सामने आ गया। शेर को इस प्रकार आचानक सामने खड़ा पाकर राजा के सारे सिपाही भाग खड़े हुए। राजा अकेला रह गया। राजा ने शेर को अपनी तलवार से मार डाला। इसके बाद वह अपने महल के लिए लौट पड़ा। कुछ दूर जाने पर वह रास्ता भटक गया और एक गाँव में जा पहुँचा। उस गाँव में एक कुम्हार रहता था। राजा कुम्हार के घर पहुँचा। उस समय रात हो चली थी।
‘कौन हो?’ कुम्हार ने पूछा।
‘परदेसी।’ राजा ने कहा।
‘कहाँ से आ रहे हो?’
‘अपने शहर से।’
‘इधर कैसे आए?’
‘शिकार खेलते हुए भटक कर इधर आ निकला।’
‘क्या चाहिए?’ कुम्हार ने पूछा।
‘रात भर के लिए ठिकाना चाहिए। भोर होते ही चला जाऊँगा।’ राजा ने कहा।
‘ठीक है। तुम मेरे घर पर रात बिता सकते हो।’ कुम्हार ने अनुमति देते हुए ने कहा।
राजा ने हाथ-मुँह धोया तब तक कुम्हार की पत्नी ने राजा के लिए आँगन में चारपाई बिछा दी। वह चारपाई उसके सबसे छोटे बेटे की थी। राजा उस चापाई पर सो गया। आधी रात को एक आदमी आँगन में प्रवेश करता हुआ दिखाई दिया।
‘कौन हो तुम?’ राजा ने उसे चोर समझकर ललकार कर पूछा।
‘मैं भाग्य का देवता हूँ और भाग्य लिखने आया हूँ।’ उस आदमी ने कहा जो भाग्य का देवता था।
‘तुम किसका भाग्य लिखने आए हो?’ राजा ने पूछा।
‘इस चापाई पर सोने वाले का।’ देवता ने उत्तर दिया।
‘इस पर तो मैं सोया हुआ हूँ जबकि यह चारपाई इस घर के मालिक के सबसे छोटे बेटे की है।’ राजा ने कहा।
‘तो मैं तुम दोनों का भाग्य लिखूँगा।’ देवता ने कहा।
‘तुम क्या भाग्य लिखोगे?’ राजा ने पूछा।
‘वही, जो बड़े देवता ने कहा है।’ देवता ने बताया।
‘बड़े देवता ने क्या बताया है?’ राजा ने पूछा।
‘यही कि तुम्हारे हाथों इस घर का छोटा बेटा मारा जाएगा।’ देवता ने कहा।
‘यह नहीं हो सकता। मैं भला अपने शरणदाता के बेटे को क्यों मारूँगा? ऐसा कभी नहीं हो सकता है।’ राजा दृढ़तापूर्वक बोला।
‘ऐसा ही होगा। तुम दोनों के भाग्य में यही लिखा है।’ इतना कहकर देवता अदृश्य हो गया। राजा बहुत देर तक देवता की बातों पर विचार करता रहा। फिर उसने सोचा कि मैं इस कुम्हार के सबसे छोटे बेटे को उसी स्थिति में मारने को विवश हो सकता हूँ जब यह मेरे विरोधी राजा की सेना में भर्ती होकर मुझ पर आक्रमण करे।
इसलिए अच्छा होगा कि मैं इसे अपने साथ अपने महल में ले जाऊँ। यह मेरे साथ रहेगा तो मुझे इसे मारना नहीं पड़ेगा।
भोर होते ही राजा ने कुम्हार को अपना असली परिचय दिया और उसके सबसे छोटे बेटे को अपने साथ ले जाने की इच्छा प्रकट की। कुम्हार राजा की इच्छा जानकर बहुत ख़ुश हुआ। उसका सबसे छोटा बेटा यूँ भी बहुत उदंड था और दिन भर शरारत करता रहता था। कुम्हार ने सोचा कि इस बहाने उसके सबसे छोटे बेटे का जीवन सँवर जाएगा।
कुम्हार के सबसे छोटे बेटे को अपने साथ लेकर राजा अपने महल में लौट आया। उसने कुम्हार के सबसे छोटे बेटे को अपने रनिवास में रानियों की सेवा में लगा दिया।
एक दिन राजा अपनी सभा में बैठा मंत्रियों से विचार-विमर्श कर रहा था कि उसी समय रनिवास से एक सेवक भागा-भागा आया।
‘महाराज-महाराज! रक्षा कीजिए, रनिवास में शेर घुस आया है। रानियों को बचाइए।’ सेवक ने पुकार लगाते हुए कहा।
राजा ने तुरंत म्यान से तलवार खींची और सेवक के साथ रनिवास की ओर दौड़ा। पीछे-पीछे सभी मंत्री अपनी-अपनी तलवारें लेकर दौड़े। राजा ने रनिवास में पहुँचकर देखा कि बड़ी रानी के कक्ष में एक शेर बैठा हुआ है और बड़ी रानी भय से मूर्छित होकर वहीं भूमि पर गिरी हुई हैं। राजा को लगा कि यदि एक पल की भी देर की तो शेर बड़ी रानी को खा जाएगा। राजा लपका और उसने तलवार के वार से एक झटके में ही शेर का सिर उसके धड़ से अलग कर दिया।
यह क्या? जैसे ही शेर का सिर धड़ से अलग हुआ वैसे ही एक मनुष्य की चींख़ सुनाई दी और शेर की खाल से मनुष्य का शरीर निकल आया। यह देखकर राजा हतप्रभ रह गया। उसने सेवकों को आदेश दिया कि शेर का कटा हुआ सिर उठा कर देखो कि उसके सिर में किस मनुष्य का सिर है?
सेवकों ने शेर का सिर उठा कर उसमें से मनुष्य का सिर निकालकर राजा को दिखाया। वह कुम्हार के सबसे छोटे बेटे का सिर था। राजा ने रनिवास के अन्य सेवकों को बुलाया और उनसे पूछताछ की तो पता चला कि कुम्हार के सबसे छोटे बेटे को नई-नई शरारतें सूझा करती थीं। उसने शेर की खाल पहनकर रानियों को डराने की योजना बनाई थी। इसीलिए वह शेर की खाल पहनकर रनिवास में घुस आया था और रानियों को डरा रहा था। बड़ी रानी ने उसे सचमुच का शेर समझकर शोर मचा दिया तब एक सेवक भाग कर राजा को बुला लाया था। यह सब जानकर राजा को भाग्य के देवता की बात याद आ गई जिसने कहा था कि कुम्हार का सबसे छोटा बेटा तुम्हारे हाथों मारा जाएगा। यही हुआ भी।
राजा ने अपने मंत्रियों को सारी बात बताई और कहा कि ‘कर्म तो बलवान होता ही है लेकिन भाग्य का लेखा भी बलवान होता है।’
(साभार : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं, संपादक : शरद सिंह)