भगवान और मोची (अंग्रेज़ी कहानी) : आर. के. नारायण

Bhagwan Aur Mochi (English Story in Hindi) : R. K. Narayan

लगता था, दुनिया में उसका कोई नहीं है। मंदिर की बाहरी दीवाल और सड़क के बीच की खाली जमीन पर जिसका कोई मालिक नहीं होता, वह बैठता था। दीवाल के पीछे लगे एक विशाल नीम के पेड़ की कुछ शाखाएँ उस पर छाया करती थीं और उसके सफेद-पीले छोटे-छोटे फूल दिन भर उसके ऊपर फूल बरसाते थे। मंदिर की सीढ़ियों पर पिछली शाम से डेरा जमाये हिप्पी ने उसे देखकर सोचा कि इस तरह तो स्वर्ग में रहने वाले देवताओं के ऊपर फूल बरसते हैं। हिप्पी कौन होते हैं, यह सभी जानते हैं-वे होते हैं ये जो अपनी खुदी को भूलकर और देशों की सीमाएँ तोड़कर बाहर निकल पड़ते हैं। वे कहीं के भी हो सकते हैं, बर्कले केयर बाहरी मंगोलिया के या कहीं भी और के। अगर आप अपने सिर और मुँह के बाल बढ़ा लें, तो यह आपका मुखौटा हो गया, और खुले आसमान में रहकर और दिन भर तपते सूरज में अपने बदन को भून डालें तो आपको एक ऐसी रंगत हासिल हो जायेगी, जो सभी जातियों के लिए एक समान होगी और फिर आप इस बहुत बड़ी दुनिया में कहीं भी बेहिचक नंगे बदन भी घूम-फिर सकते हैं। और इसी के साथ अगर आप घुटने तक की सफेद धोती और बंडी पहन लें कि कहीं भी धूल में आराम से बैठने लगें तो आपके कपड़ों को खुद ही ऐसा गेरुआ रंग मिल जायेगा कि आप बिलकुल संन्यासी लगने लगेंगे। इस तरह की सार्वभौमिकता प्राप्त हो जाने के बाद फिर कोई आपसे सवाल नहीं करेगा कि आप कौन हैं और कहाँ से पधारे हैं ? आपको लोग वही समझेंगे जो आप हैं-यानी एक आदमी जो साँस ले रहा है, बस! मोची ने हिप्पी को, जब वह सेंडल का फीता जुड़वाने उसके सामने पहुंचा, इसी तरह देखा।

उसने सिर उठाया और सोचने लगा, 'गर्दन पर लटकते धूल-मिट्टी से भरे बालों से तो यह शिवजी लगता है, उस उनके ऊपर कुंडली मारे एक साँप की कमी है। इसलिए यह सोचकर कि कहीं कुछ गलत बात न हो जाये, पहले उसने इस साधु दिखने वाले को नीचे तक सिर झुकाकर नमस्कार किया। उसे लगा कि जरूर यह आदमी हिमालय से आ रहा होगा, जहाँ शिवजी महाराज रहते हैं, और इसके मोटे सेंडलों से भी यही लगता है, जिसमें बहुत-सी चिंदियाँ लगी हुई हैं। मोची ने सेंडल उतार लिये और उन्हें ध्यान से देखा। फिर जमीन पर कागज बिछाया, जो दीवाल पर लगा पोस्टर था, जिसे उसने अपने काम के लिए उखाड़ लिया था, और कहा, 'आप इस पर पैर रख लें, जमीन गीली है।" दरअसल उसके पास पोस्टर बहुत से थे, क्योंकि यह वहाँ की बहुत खास दीवाल थी, जो पूरब की तरफ जाने वाले प्रमुख मार्ग पर रामनगर और कालीदेस के चौराहे पर बनी थी। यहाँ से बहुत ज्यादा ट्रैफिक गुजरता था, इसलिए यहाँ सब तरह के इश्तिहार चिपकाये जाते थे और कभी भी जरा-सी भी जगह खाली नहीं बचती थी। ये लोग रात को आते थे और दीवाल पर गाढ़ी लेई लगाकर कहीं आने वाली पिक्चर का, कहीं अगली शाम पार्क में होने वाले लेक्चर का, कहीं चुनाव में खड़े होने वाले नेताजी का, जिस पर उनकी बड़ी-सी तस्वीर भी बनी होती थी, पोस्टर एक-दूसरे के ऊपर ही चिपका जाते थे। संदेश कोई भी हो, पास में खड़ा एक गधा समान-भाव से उनको फाडफाड़कर कुछ को फेंक देता था और लेई-लगे हिस्सों को बाकायदा खाने लगता था, क्योंकि शायद इसका स्वाद उसे बहुत पसंद था। मोची सवेरे जब यहाँ आता तो कुछ पोस्टर वह खुद भी उखाड़कर अपने पास रख लेता क्योंकि इनसे उसके कई काम निकलते थे। इसमें वह कोने की झोपड़ी वाली दुकान से दोपहर को जब खाना लेता, उसे सफाई से लपेटकर रखता था, ग्राहक जब जूता गाँठवाने आता तो उसके पैर रखने के लिए स्वागत की लाल चादर की तरह बिछाता और जब सूरज बहुत गरम हो जाता तो उन्हें ही ऊपर-नीचे रखकर आराम से सो जाता था। हिप्पी के मन में उसके लिए प्रशंसा का भाव जागा, 'यह कुछ माँगता नहीं है, फिर भी इसे सब कुछ मिल जाता है।' वह सोचने लगा, 'काश! वह भी इसी की तरह शांत और आत्मा-संतुष्ट होता।'

पिछले दिन वह दूसरे साधु-संतों के साथ मंदिर की सीढ़ियों पर हाथ फैलाये भिक्षा माँगने बैठा था। इनमें से कुछ उसकी तरह हट्टे-कट्टे, कुछ लंगड़े-लूले और अंधे और पागल थे, लेकिन इन सबकी जो एक बात उसे आश्चर्य में डाल देती थी, वह यह थी कि भूखे लगते हुए भी वे निश्चित लगते थे। शाम के समय जब लोग मंदिर में देवदर्शन और पूजा-पाठ करके लौटते, तो वह इनके कटोरी में सिक्के फेंकते जाते थे। परंतु यह भाग्य की बात होती कि किसके कटोरे में सिक्का गिरता है और किसका खाली रह जाता है। इन लोगों में यह समझ भी थी कि सबको अपना भाग्य आजमाने के लिए स्वतंत्र छोड़ दें लेकिन अगर अंधे का सिक्का उसके कटोरे में नहीं आ पड़ता तो उसे उठाकर कटोरे में डाल दें। हिप्पी अपने वातावरण में घुलमिल जाने की कला में कुशल था, इसलिए वह किसी से अलग नहीं लगता था। उस दिन पुजारी जी प्रसन्न थे, इसलिए उन्होंने देवताओं को चढ़ाया हुए गुड़ में पका चावल प्रसाद के रूप में इन सबको भी खाने को दिया था। इससे हिप्पी का पेट भर गया था और सड़क पर लगे नल से पानी पीकर वह मंदिर के चबूतरे पर ही वह सो गया था।

सवेरा होने पर उसने देखा मोची अपने कंधे पर थेला लटकाये वहाँ आया और नीम के पेड़ के नीचे उसने अपना आसन जमाया। नीम की हरी-हरी डालों पर ऊपर से गिरती सूरज की ताजी रोशनी बहुत अच्छी लग रही थी। हिप्पी को वहाँ बड़ी शांति की अनुभूति हुई।

यहाँ किसी को किसी बात की शिकायत नहीं लगती थी-धूल या शोर या बदहवास आवागमन के खतरे जिसमें साइकिलें और पैदल आदमी औरतें एक दूसरे से भिड़ते-बचते, बड़ी गाड़ियों के बीच से अपना रास्ता बनाते चले जा रहे थे, लारियाँ और स्कूटर पागलों की तरह पों-पों करते, अपने पीछे धूल के गुबार छोड़ते ऐसे दौड़ते चले जा रहे थे, मानो प्रागैतिहासिक-युग के भयंकर जानवर एक-दूसरे का पीछा कर रहे हैं-किसी से भी किसी को कोई परेशानी नहीं हो रही थी। कई दफा कोई राह चलता जोर से खाँस-खखार के हवा में कहीं भी जोर से थूक देता या किसी भी दीवाल पर खड़े होकर पेशाब कर देता, और किसी भी बात पर किसी का ध्यान ही नहीं जाता था, न कोई विरोध करता था। हिप्पी यह देखकर चकित था कि लोग जिंदगी को, जैसी भी वह है, उसी तरह स्वीकार कर रहे हैं।

मोची अपना सिर झुकाये चमड़ा छीलता या सुएँ से उसमें छेदकर उसके भीतर मोम लगा मोटा डोरा डालकर दूसरे धागे में इस तरह फंसाकर खींचता कि जादू की तरह चमड़ा सिलता चला जाता। उसके पास एक छोटे से बर्तन में पानी होता था, जिसमें डुबोकर वह कड़े और जिद्दी चमड़े के टुकड़ों को मुलायम करके सीधा करता और फिर उसे लोहे के ऊपर रखकर निर्दयता से ठोंकने लगा, जिससे उसके सब बल निकल जायें। जब कोई काम न होता तो वह चुप बैठा आने-जाने वालों के पैरों पर नजर मारता रहता कि इनमें से किसकी पट्टी टूट गयी है, किसकी हिलकर टूटने की दशा को पहुँच गयी है और किसकी कीलें निकल गयी हैं। उसके हाथ जब कभी खाली होते तो उनमें खुजली मचने लगती और वह अपने औजारों को पत्थर पर घिस-घिसकर पैना करता रहता। उसके हाथों को काम में लगा देखकर हिप्पी सोचता कि इसे चमड़ा काटने, सीने, पीटने के काम में एक प्रकार का आध्यात्मिक सुख प्राप्त होता है। उसके लिए खाना भी दूसरे दर्जे का काम था। कोने की दुकान से एक लड़के को इशारा कर एक कप चाय या एक बंद मैंगाने के अलावा वह खाने पर ज्यादा ध्यान नहीं देता था। कभी-कभी जब उसके पास काफी देर तक कोई काम न होता तो वह ऊपर पेड़ की तरफ देखता रहता, जैसा उसका दिमाग बंद हो गया हो। वह बेकारी की इस स्थिति में भी संतुष्ट था-उसके चेहरे से न कोई इच्छा झलकती थी, न कोई शिकायत। वह आवाज लगाकर काम नहीं माँगता था, न किसी काम के लिए मना करता था। वह किसी से सौदेबाजी भी नहीं करता था। जूता मिलने पर उसे ध्यान से देखता, ग्राहक के पैर रखने के लिए पोस्टर बिछा देता और मरम्मत करने के बाद उसे पाँव में सही ढंग से पहनाकर चुपचाप पैसे का इन्तजार करता था। धीरज तो उसे रखना ही होता था क्योंकि जेब से बटुआ निकालकर उसमें से सिक्के तलाशने में समय लगता ही था। अगर ग्राहक कंजूस होता और पैसे कम देता तो वह ऊपर देखता और हाथ में दिया पैसा ऊँगलियों से न पकड़कर वैसे ही पड़ा रहने देता, जिसके जवाब में कोई तो एकाध पैसा डाल देता और कोई एकदम पलटकर आगे बढ़ जाता।

मोची सेंडिल ठीक कर रहा था तो हिप्पी सामने रखे कागज पर बैठ गया। उसे यह देखकर मजा आया कि वह एक रंगीन फिल्मस्टार के घर बैठा है। ऐसा नहीं था कि उसे बैठने के लिए कागज की जरूरत थी, लेकिन यहाँ यही ठीक था, नहीं तो मोची को बुरा लगता। हिप्पी तो खुरदरी जमीन पर बैठने का अभ्यस्त था। हो सकता है कि कुछ दिन बाद वह कीलों के आसन पर उसी शांति से बैठने योग्य हो जाता। यह सम्भव था कि गुरु के लिए उसकी खोज उसे यहाँ तक पहुँचा देती। बनारस की अपनी यात्रा में उसने योगियों को कीलों पर ध्यान लगाकर बैठे देखा था। गया में उसने एक साधक देखा था, जो अपने गालों में एक लंबी सुई घुसाये बैठा था, जो उसकी जीभ के भी आर-पार जा रही थी। परंतु यह भी उसे स्वीकार था क्योंकि वह मौनव्रत की साधना कर रहा था। हिप्पी ने कुंभ मेले के समय गंगा और जमुना के संगम पर लाखों लोगों को डुबकी लगाते देखा था। इनमें एक साधु था, जो अपने साथ एक भरापूरा शेर लेकर घूमता था जिसे वह अपना पिछले जन्म का भाई बताता था। ऐसे लोग भी थे जो जहरीले साँपों को रस्सी की तरह इस्तेमाल करते थे। कई आग को खा जाते थे, कुछ तलवारें निगल लेते थे, कुछ शीशा चबाते रहते थे। ऐसे योगी थे जो श्मशानों में रात-दिन बिना खाये-पिये या हिले-डुले बैठे रहते थे और उनके पास मुर्दे जलतेसुलगते रहते थे। नेपाल में एक आदमी ने हवा में हाथ घुमाकर एक चाँदी की मूर्ति निकाली और हिप्पी को थमा दी, इसे उसने सँभालकर अपने थैले में रख लिया। यह चार हाथों की एक देवी की छोटी-सी मूर्ति थी। ऐसी घटनाएं देखकर पहले तो वह आश्चर्य से भर उठता और चाहता कि वह भी यह सब सीख ले, लेकिन वह पाता कि ये लोग उसे यह ज्ञान सिर्फ एक अफीम के टुकड़े के बदले में देने को तैयार हैं। तब वह यह सोचने लगता कि इसको सीख लेने से उसे क्या लाभ होगा! यह मुझे चाँद की सैर से ज्यादा क्या दे सकेगा, बस, उससे कम खर्चीला है यह। उसे ऐसा कोई जवाब नहीं मिलता, जिससे उसे संतोष मिलता। सड़क पर, गाँवों में और खेतों में उसे काम-धंधों में लगे स्त्री-पुरुष दिखायी देते तो काम तो गंभीरता से करते लेकिन उत्तेजित नहीं होते थे। उसे लगता था कि इनकी जिंदगी का कोई दर्शन है जिसका अध्ययन किया जाना चाहिए। वह घूमता रहता, ट्रेनों में, पैदल, आती-जाती गाड़ियों में या बैलगाड़ी में। लेकिन क्यों? इस बारे में वह स्पष्ट नहीं हो पाता था।

अब वह मोची से बात करना चाहता था। उसने एक बीड़ी निकाली-वह सिगरेट नहीं बीड़ी पीता था, क्योंकि सिगरेट से जहाँ शान बढ़ती थी, बीड़ी से दूरियाँ कम होती थीं, और यह एक पैसे की चार मिलती थीं। मोची को बीड़ी लेते हुए संकोच हुआ लेकिन हिप्पी ने बढ़ावा देते हुए कहा, 'अरे, पियो, तुम को अच्छी लगेगी, तोता छाप है...।' फिर वह थैले में दियासलाई ढूँढने लगा। कुछ देर दोनों चुपचाप बीड़ी पीते रहे, उसका धुआँ और पत्ती की बू हवा में तैरने लगी। आटो रिक्शे और साइकिलें सड़क पर दौड़ रही थीं। एक आइसक्रीम का ठेला आया जो अपना रबर का भोंपू बजा-बजाकर ग्राहकों को आकर्षित करने की कोशिश करने लगा। स्कूल की भी छुट्टी होने वाली थी और बच्चे एकदम गेट से निकल पड़ते। बातचीत शुरू करते हुए हिप्पी ने कहा, 'तुम्हारे ऊपर तो फूल बरसते हैं," और ऊपर पेड़ की डालियों से तब भी गिरते हुए फूलों की ओर इशारा किया। मोची ने ऊपर देखा और कोट पर गिरे फूलों को झाड़ा, फिर सिर पर बँधी पगड़ी से भी, जिसका रंग उड़ गया था पर जो धूप और पानी से उसकी रक्षा करती थी और उसके व्यक्तित्व को भी एक शान देती थी, कुछ फूल निकाले। हिप्पी ने अपनी बात दोहरायी, 'दिन में भी आशीर्वाद की तरह तुम्हारे ऊपर फूल झरते रहते हैं।'

मोची ने सिर उठाया और कुछ तल्खी से बोला, 'लेकिन ये फूल मैं खा तो नहीं सकता! इन्हें मैं न घर ले जा सकता हूँ कि बीवी को देकर कहूँ आज इनका खाना बनाओ। किसी पेटभरे आदमी के ऊपर फूल बरसें, तो दूसरी बात है-स्वर्ग के देवता ही उनका मजा ले सकते हैं, मेरे जैसा आदमी नहीं।'

'तुम भगवान् में विश्वास करते हो?" हिप्पी ने सवाल किया जिसे सुनकर मोची को आश्चर्य हुआ। इस तरह का सवाल उठ ही कैसे सकता है? शायद यह रहस्यमय आदमी उसकी परीक्षा ले रहा है। इसलिए जवाब सोच-समझकर दिये जाने चाहिए। मोची ने सामने खड़े मंदिर की तरफ इशारा किया और कहा, 'यह तो कई दफा हमारी तरफ देखता ही नहीं है। देखे भी कैसे? उसे देखने के लिए बहुत कुछ तो है।' उसने भगवान् की एक ऐसी तस्वीर की तरफ कुछ मिनट तक देखा जिसमें उसके चारों तरफ हजारों-हजार लोग अपनी अर्जियाँ लिये खड़े थे। फिर कहा, 'अपने बड़े अफसर, कलक्टर साहब की ही मिसाल लें, क्या हर कोई उनसे मिल सकता है या वे खुद एक ही अर्जी का जवाब दे सकते हैं? जब एक आदमी अफसर से मिल पाना ही इतना कठिन है, तो ईश्वर तक पहुँचना कितना ज्यादा मुश्किल होगा। उसे कितना सोच-विचार करना होता है...।' फिर उसने अपनी दोनों बाँहें उठाकर आसमान में इधर-से-उधर तक घुमायीं। इससे हिप्पी को लगा कि भगवान् का उद्देश्य और कार्यक्रम कितना ज्यादा विस्तृत है, मोची कहता रहा, 'और वह सो भी नहीं सकता। मंदिर के पुजारी जी कहते हैं कि देवता न सोते हैं, न आँखें झपकाते हैं, झपका भी कैसे सकते हैं? एक क्षण में दुनिया में न जाने कितनी बुरी बातें हो सकती हैं। ग्रह अपना रास्ता छोड़कर एक-दूसरे से टकरा सकते हैं, आसमान में से आग और पत्थर निकल सकते हैं और राक्षस लोग सारी सृष्टि को नष्ट-भ्रष्ट कर सकते हैं। प्रलय ही आ सकती है।' हिप्पी भी भगवान् के एक पलक झपकने में सारी दुनिया के विनाश की इस कल्पना से सिहर उठा। मोची ने कहा 'मैं भगवान् से रोज पूछता रहता हूँ और हर घंटे पूछता रहता हूँ। जब भी उसे जरा फुरसत मिलेगी, वह मेरी बात सुनेगा। तब तक मुझे सहन करना होगा।'

'क्या सहन करना होगा?' हिप्पी ने जानना चाहा, उसकी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी।

'इस जिंदगी को, मैं उससे कहता हूँ, मुझे उठा ले। लेकिन उसका समय अभी नहीं आया। वह भी आयेगा।'

'लेकिन क्यों? क्या तुम जिन्दा रहने से खुश नहीं हो?' हिप्पी ने प्रश्न किया।

'मैं तुम्हें समझ नहीं पाया, ' मोची ने उत्तर दिया। और तभी सामने से निकलते एक पैर को देखते ही वह बोला, 'अरे, यह तस्मा टूट गया है। आओ, ठीक कर दूँ।' यह एक विद्यार्थी था। वह यह सुनकर एक क्षण रुका, फिर आगे बढ़ गया। मोची की नजर में एक चिढ़ पैदा हुई, 'देखो, आज के इन लड़कों को क्या हो गया है! अब ये परवाह ही नहीं करते। बुरी आदतें हैं ये। यह तस्मा उसके घर तक पहुँचने से पहले टूट जायेगा। लेकिन वह यह जूता फेंक देगा और दूसरा खरीद लेगा।" उसने एक आह भरी और कहा, 'आजकल लोगों की आदतें बदल गयी हैं। सिर्फ पाँच पैसे में यह साल भर और चल सकता था।'

उसने पीछे बोरी पर रखे ऐसे कई जोड़े सेंडल दिखाये।' ये सब मैंने इधर उधर से इकट्ठा किये हैं। ये इसी तरह के लड़कों के हैं। कई दफा स्कूल के पास सड़क के किनारे ऐसे सेंडिलों की लाइन लगी दिखायी देती है। लड़के इन्हें वहीं छोड़कर चले जाते हैं, कुछ को उन्हें हाथ में उठाकर घर ले जाते शरम आती है। ये सब न एक रंग के होते हैं, न जोड़े ही होते हैं। लेकिन मैं इन्हें काट-पीटकर और नए सिरे से रंग-रोगन कर जोड़े बना देता हूँ।' लगा कि इस तरह जोड़े बनाने की योग्यता पर उसे गर्व है। 'मैं इन्हें यहाँ रखे रहता हूँ तो देर से ही सही, कभी न-कभी भगवान् मुझे ग्राहक भेज देता है जिसे कम पैसें में अच्छी चीज भी मिल जाती है। इनके लिए मुझे जो भी मिल जाय, मैं ले लेता हूँ।'

'इन्हें कौन खरीदता है?'

'अरे, कोई भी। खासतौर से जब कहीं कोई इमारत बनती है तो लोगों को सीमेंट पर चलने के लिए मजबूत चमड़े की जरूरत होती है। मुझे भी हर रोज कमसे-कम रोज पाँच रुपये कमाने की जरूरत होती है जिससे कुछ चावल या और कुछ अनाज खरीदकर घर ले जा सकू। वहाँ दो मुँह खाने का इन्तजार करते हैं।... अब जिंदगी को क्या होता जा रहा है? दो जून के खाने को भी पूरा नहीं पड़ता। पान भी एक पैसे के दो हो गये हैं.जो पहले बीस मिलते थे, और मेरी बीवी को खाने को भले ही कुछ न मिले, पान हर वक्त चबाने को चाहिए। भगवान् इस जिंदगी में हमें सजा दे रहा है। पिछले जन्म में मैं जरूर लोगों को कर्ज देने वाला रहा होऊँगा, जो गरीबों को चूसता होगा, या दुकानदार होऊँगा, जो सारा चावल मुनाफे के लिए, दबा रखता है-जब तक मेरा हिसाब साफ नहीं हो जाता, भगवान् मुझे यहीं रखेगा। मुझे धीरज ही रखना है।'

'तुम अगले जन्म में क्या होना चाहते हो?'

मोची को अचानक यह लगा कि वह कहीं किसी देवता या उसके दूत से तो बात नहीं कर रहा है। इस पर वह थोड़ी देर तक सोचता रहा। 'मुझे अब इस दुनिया में जिंदगी नहीं चाहिए। क्या पता अब मुझे नरक में ही भेज दिया जाये और मैं नरक में नहीं जाना चाहता।" उसने दूसरी दुनिया का खाका खींचा जिसमें एक ताकतवर एकाउन्टेंट बैठा हर आदमी के हिसाब-किताब का पूरा लेखा जोखा तैयार करता है और अंत में उसे क्या मिलना चाहिए, यह निश्चित करता है।

'तुमने ऐसा क्या किया है?" हिप्पी ने पूछा।

अब तो मोची का यह संदेह पक्का होने लगा कि जरूर यह देवता से बात कर रहा है। 'जब कोई शराब पीता है तो उसे याद नहीं रहता कि उसने क्या किया है! अब मेरे अंग कमजोर पड़ गये हैं पर जवानी के दिनों में अपने दुश्मन की झोपड़ी में, जिसमें बच्चे भी सोये हुए हों, आग लगा देने में संकोच नहीं होता था। झगड़े हों तो ऐसी बातें हो जाती थीं। वह मेरा रुपया उड़ा ले गया, मेरी बीवी को परेशान करने की धमकी दी और संदेह पर उसे मैंने मारा-पीटा जिससे बेचारी की एक आँख ही फूट गयी। उस वक्त हमारे पास पैसा था और एक रुपये में शराब की तीन बोतलें आती थीं। एक बेटा था, उसकी मौत के बाद मैं बदल गया। अब उसी का बेटा हमारे साथ रहता है।'

'मैं सवाल नहीं पूछना चाहता, ' हिप्पी कहने लगा, 'लेकिन मैं भी गाँवों के ऊपर उड़ते हुए उनमें आग लगाता जाता था, और जिन लोगों को मैं जानता तक न था, उन्हें भी मार देता था।'

मोची ने ताज्जुब से उसे देखा, 'अच्छा!. लेकिन कहाँ और कब...।"

हिप्पी ने जवाब दिया, 'किसी पिछले जीवन में। तुम बता सकते हो कि मुझे इसके बदले में क्या मिलेगा ?'

मोची बोला, 'अगर तुम मंदिर में पुजारी के आने का इन्तजार करो. वह ज्ञानी आदमी है, वह ठीक बता सकेगा।'

हिप्पी ने कहा, 'तुमने जिस की झोपड़ी जलायी, उससे तुम कम-से-कम गुस्सा तो थे। मैं तो यह भी नहीं जानता था कि मैं किन की झोपड़ियाँ जला रहा हूँ। मैंने तो उनको कभी देखा ही नहीं था।'

'लेकिन क्यों किया यह तुमने?'

फिर यह देखकर कि हिप्पी जवाब नहीं देना चाहता, मोची कहने लगा, 'पुराने दिन होते तो हम साथ बैठकर शराब पीते और खाना खाते...।"

'फिर कभी, ' यह कहकर जाने को उठा। सेंडिल में पैर डालकर बोला, 'मैं फिर आऊँगा, हालांकि वह यह नहीं जानता था कि वह कहा जायेगा और इसके बाद कहाँ रुकेगा। उसने मोची को पच्चीस पैसे दिये, यही तय हुए थे। फिर उसने थैले से चाँदी की मूर्ति निकाली और उसे मोची को देते हुए कहा, 'यह तुम्हारे लिए है, लो।'

मोची ने मूर्ति को ध्यान से देखा और कहा, 'अरे, यह तो दुर्गा की मूर्ति है, यह तुम्हारी रक्षा करेगी।" क्या कहीं से चुरायी है?

हिप्पी को यह सवाल अच्छा लगा, क्योंकि इससे जाहिर था कि अब वह इज्जतदार आदमी नहीं दिख रहा था। 'शायद जिस आदमी ने यह मुझे दी, उसने इसे चुराया होगा।'

'इसे अपने ही पास रखो, यह तुम्हारी रक्षा करेगी, ' यह कहकर उसने मूर्ति वापस कर दी।

हिप्पी के चले जाने के बाद वह सोचने लगा, 'देवता को भी जब मौका मिले तो वह चोरी करता है।'

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