बेवकूफ लड़का : कश्मीरी लोक-कथा

Bewkoof Ladka : Lok-Katha (Kashmir)

एक गरीब विधवा की बदकिस्मती और बढ़ गयी जब उसको यह पता चला कि उसका एकलौता बेटा जिससे उसको बड़ी बड़ी उम्मीदें थीं कुछ बेवकूफ सा था।

एक दिन उसने उसको कुछ कपड़ा ले कर बाजार भेजा और कहा कि वह उसको चार रुपये में बेच दे। लड़का उस कपड़े को ले कर बाजार चला गया और उसको बेचने के लिये एक ऐसी जगह बैठ गया जहाँ बहुत सारे लोग आते जाते थे।

एक आदमी उधर आया और उस लड़के से पूछा — “इस कपड़े का क्या दाम है?”

लड़का बोला — “चार रुपये।”

आदमी बोला — “ठीक है पर मैं तुमको छह रुपये दूँगा क्योंकि यह इतने पैसे के ही लायक है।”

लड़का बोला — “नहीं नहीं इसका दाम तो केवल चार रुपये है।”

आदमी गुस्से से बोला — “तुम बेवकूफ हो।” और यह कह कर वहाँ से चला गया। उसने सोचा कि लड़का उससे मजाक कर रहा था।

लड़का शाम को जब अपने घर पहुँचा तो उसने माँ को यह घटना बतायी तो उसको बहुत दुख हुआ कि उसके बेटे ने उस आदमी के दिये हुए पैसे क्यों नहीं लिये।

एक दिन फिर उसने उसको बाजार भेजा और उसको समझाया कि वहाँ जा कर वह हर एक को सलाम करे। नम्रता में कोई आदमी कुछ भी खोता नहीं है बल्कि अक्सर उसे कुछ मिल ही जाता है।

सो वह बेवकूफ लड़का चल दिया। रास्ते में उसे जो भी मिला वह हर आदमी और हर चीज़ को सलाम करता गया – झाड़ू लगाने वाले को घोड़े को छोटे बच्चों को घर को। कुछ गधे अपनी पीठ पर बोझा लिये जा रहे थे उसने उनको भी सलाम किया।

यह देख कर गधों के मालिक ने कहा — “ओ बेवकूफ यह तुम क्या कर रहे हो। क्या तुम नहीं जानते कि हम इनको कहते हैं फ्री फ्री।” यह सुन कर लड़के ने हर आदमी और हर चीज़ को फ्री फ्री कहना शुरू कर दिया और आगे चल दिया।

जब वह लड़का हर आदमी और हर चीज़ को फ्री फ्री कहता जा रहा था तो उसको एक चिड़िया पकड़ने वाला चिड़ियाँ पकड़ने का जाल बिछाता दिखायी दे गया।

जब उसने लड़के को फ्री फ्री कहते हुए सुना तो उसने देखा कि उसकी चिड़ियाँ तो वहाँ से जा रही हैं। उसने उससे कहा — “ओ बेवकूफ तू यह क्या कह रहा है। बहुत ही मुलायम आवाज में कह “लग लग लग लग”। सो लड़के ने धीमे धीमे “लग लग लग लग” कहना शुरू कर दिया।

जब वह “लग लग लग लग” कहता जा रहा था तो रास्ते में उसको एक चोरों का झुंड मिल गया जो एक बागीचे से निकल रहा था। वे लोग वहाँ से कुछ फल चुरा कर निकल रहे थे।

वे बोले — “यह तुम क्या कह रहे हो। या तो चुपचाप रहो ओ बेवकूफ या फिर कुछ और कहो। जाओ और कहो “एक को जाने दो दूसरे को लो।” सो उस लड़के ने ऐसे ही कहना शुरू कर दिया।

जब वह यह कहता जा रहा था तो रास्ते में उसको एक जनाज़ा मिला। जनाज़े के साथ जाने वालों में से कुछ ने कहा — “चुप रहो। क्या तुम्हारे दिल में मरने वाले के लिये कोई इज़्ज़्त नहीं है। जाओ घर जाओ।’

आखिर वह बड़ी नाउम्मीदी और टूटे दिल से यह न जानते हुए कि उसे क्या करना चाहिये या उसे क्या कहना चाहिये अपनी माँ के पास लौट आया और उसे सब बताया।

माँ बेचारी क्या करती वह तो खुद ही अपने बेवकूफ बेटे से बहुत परेशान थी।

(सुषमा गुप्ता)

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