बेरहम सौदागर : कश्मीरी लोक-कथा
Beraham Saudagar : Lok-Katha (Kashmir)
एक बार की बात है कि एक सौदागर था जो अपने नौकरों से बहुत ही बेरहमी का बरताव करता था। जब भी कोई उसके यहाँ नौकरी के लिये आता तो वह उसको इस शर्त पर अपने यहाँ नौकरी पर रखता कि अगर उसने कभी भी कोई बुरी भाषा इस्तेमाल की या वह गुस्सा हुआ तो उसकी नाक काट ली जायेगी।
अब नौकर लोग अपने मालिक से कोई ज़्यादा अच्छे तो होते नहीं थे तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि बहुत सारे नौकरों को उसकी नौकरी बिना नाक के ही छोड़नी पड़ी थी। इनमें से उसका एक नौकर एक किसान था। क्योंकि उसकी अपनी खेती खराब हो गयी थी इसलिये उसको इस सौदाग्र की नौकरी करनी पड़ी।
यह आदमी पहाड़ों में रहता था जहाँ केवल मक्का ही उगती थी और कुछ नहीं। उस साल पानी बहुत कम बरसा सो उसकी मेहनत और पैसा दोनों ही बेकार गये।
वह एक बहुत ही अच्छे स्वभाव का आदमी था। अगर कोई आदमी उस सौदागर के यहाँ अपनी नौकरी जारी रख सका तो बस वह केवल यही आदमी था। मगर अफसोस यह भी उसके यहाँ बहुत दिनों तक नौकरी नहीं कर सका।
एक दिन की बात है कि किसी बात को ले कर वह बहुत परेशान था। वैसे तो उसका मालिक उससे जो कुछ भी कहता था वह वह कर देता था। पर उस दिन सौदागर ने उससे कुछ बुरे काम करने को कहा और उसको गुस्सा होने के लिये भी उकसाया। इससे वह गुस्से में बोला तो तुरन्त ही उसने उसकी नाक काट ली।
इस किसान का एक भाई भी था। उसको अपने भाई को बिना नाक के देख कर बहुत दुख हुआ सो उसने उस सौदागर से इसका बदला लेने की सोची। वह सौदागर के पास गया और उससे नौकरी की माँग की।
सौदागर बोला — “ठीक है। मैं तुम्हें काम पर रख लेता हूँ पर मेरी एक शर्त है कि अगर तुम कभी भी कुछ बुरा बोलते या गुस्सा होते पाये जाओगे तो तुम्हारी नाक काट ली जायेगी।”
भाई बोला — “मैं आपकी शर्त मंजूर करता हूँ आगर आप भी ऐसी ही शर्त मानें तो।”
सौदागर बोला — “मुझे मंजूर है।”
भाई ने सोचा कि अगर यह प्लान एक आदमी के ऊपर काम करता है तो दूसरे के ऊपर भी काम करना चाहिये।
काफी दिनों तक यह प्लान काम करता रहा। मालिक और नौकर दोनों ही अपने अपने शब्दों और कामों के बारे में सावधान रहे। और स्वभाव के ऊपर काबू रखे रहे।
पर एक दिन सौदागर ने भाई को कहा कि वह जल्दी से उसके बेटे को कपड़े पहना दे। भाई तुरन्त ही गया और मालिक के बेटे को कपड़े पहनाते समय उसको थोड़ा इधर उधर खींचा जिससे वह इधर उधर भागने लगा।
बेटे को उसका यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा सो वह वहीं से चिल्लाया — “ओ पिता जी ओ माँ।”
सौदागर ने पूछा — “अरे तुम क्या कर रहे हो।”
भाई ने जवाब दिया — “जबकि मैं इसे कपड़े पहना रहा हूँ तो यह लड़का इधर उधर नहीं भाग रहा बल्कि बैठना चाहता है।”
अब मालिक ने तो उसको बच्चे को जल्दी से कपड़े पहनाने के लिये कहा था और इसका मतलब बीस में से उन्नीस लोग तो समझेंगे भी यही पर इन शब्दों से यह मानी भी निकलता था कि “इधर उधर दौड़ो और बच्चे को कपड़े पहनाओ।”
सो भाई ने यह सोच कर कि उसका मालिक उस पर नाराज हो जायेगा उसका यह दूसरा मानी ले लिया। वह मालिक को नाराज करने में सफल हो गया।
एक दूसरे मौके पर सौदागर अपने पूरे परिवार के साथ किसी जगह कुछ दिन के लिये ठहरने के लिये गया। वहाँ एक मेला लगने वाला था। यह भाई भी उनके साथ गया था।
सौदागर ने भाई को तो घर की देखभाल के लिये छोड़ा और जाने से पहले उसको घर के दरवाजों और खिड़कियों की देखभाल की खास हिदायत दी। भाई ने मालिक को वफादारी से ऐसा करने का वचन दिया।
मालिक को मेला देखने के लिये गये हुए कुछ ही देर हुई थी कि भाई का मन भी मेला देखने के लिये करने लगा। सो उसने घर का फर्नीचर और दूसरा सामान एक बड़े से गड्ढे में रख दिया। फिर उसने कई कुलियों को बुलाया और उनके ऊपर घर के दरवाजों और खिड़कियों को लाद कर मेले चल दिया।
सौदागर के आश्चर्य की तो सीमा ही नहीं रही जब उसने अपने नौकर को मेले में देखा और उसके साथ उसके पीछे आते कई कुलियों को दरवाजे और खिड़कियाँ उठा कर लाते देखा। गुस्से के मारे उसका पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। वह चिल्लाया — “ओ बेवकूफ यह तूने क्या किया।”
भाई नरमी से बोला — “सरकार मैंने तो आपके हुकुम का पालन किया है। आपने मुझसे दरवाजे और खिड़कियों की ठीक से देखभाल करने के लिये कहा था। आपके जाने के बाद मेरी भी मेला देखने की इच्छा हुई तो मैंने सोचा कि ये मेरे साथ ही सबसे ज़्यादा सुरक्षित रहेंगे सो मैं इनको अपने साथ ही ले आया। आपका फर्नीचर भी सुरक्षित है मैंने उसको एक बड़े से गड्ढे में छिपा दिया है।”
सौदागर चिल्लाया — “अरे बेवकूफ।” और उसके चेहरे पर एक चाँटा मारा।
भाई ने उसकी गरदन पीछे से पकड़ कर और उसकी नाक काट कर बहुत ज़ोर से हँस पड़ा और बोला — “अब हम बराबर हो गये। अब मैं जा कर यह सब अपने भाई से कहता हूँ।”
(सुषमा गुप्ता)