बैला और भालू : रूसी लोक-कथा
Bella and the Bear : Russian Folk Tale
एक बूढ़े पति पत्नी थे जिनके एक पोती थी जिसका नाम था बैला। हालाँकि उनका घर एक अँधेरे जंगल के पास था फिर भी उनका मकान था बहुत साफ सुथरा। हर गर्मियों में उनकी पोती बैला उनके पास उनके उस साफ सुथरे मकान में रहने के लिये आ जाती थी।
एक गर्मी के दिन उसकी दोस्तों ने उसको मैदान में जाने के लिये बुलाया ताकि वे वहाँ से मुशरूम61 तोड़ सकें। बैला चिल्लायी — दादी, बाबा, क्या मैं खेलने जाऊँ? मैं आपके लिये बहुत सारे मुशरूम तोड़ कर लाऊँगी। मैं वायदा करती हूँ।”
वे बूढ़े पति पत्नी बोले — “हाँ हाँ बेटी, जाओ भाग जाओ। पर ज़रा ध्यान रखना कि जंगल के ज़्यादा पास मत जाना नहीं तो भेड़िये या भालू तुम्हें खा जायेंगे।”
“ठीक है।” कह कर बैला अपनी दोस्तों के साथ जंगल के किनारे वाले मैदान की तरफ भाग गयी। बैला को मालूम था कि सबसे अच्छे और सबसे बड़े मशरूम जंगल में लगे हुए पेड़ों और झाड़ियों के नीचे ही मिलते थे।
अब क्योंकि वह यह जानती थी कि अच्छे और बड़े मुशरूम कहाँ मिलते हैं तो वह उनको लेने के लिये अपनी धुन में आगे बढ़ती हुई अपने दोस्तों से कब अलग हो गयी उसको पता ही नहीं चला।
वह एक पेड़ से दूसरे पेड़ की तरफ एक झाड़ी से दूसरी झाड़ी की तरफ जाती रही और अपनी टोकरी बढ़िया बढ़िया मुशरूमों से भरती रही – कत्थई, सफेद, लाल, पीले।
मुशरूम इकठ्ठा करते करते वह जंगल में अन्दर और और अन्दर तक चलती चली गयी , , , कि अचानक उसने अपने सामने देखा और उसको लगा कि वह तो खो गयी है। वह डर गयी।
डर के मारे वह चिल्लायी — “हलो ओ ओ ओ। हलो ओ ओ ओ।” पर उसके हलो का कोई जवाब ही नहीं दे रहा था।
पर कोई दूसरा था जो उसको सुन रहा था। तभी पेड़ों की पत्तियाँ में सरसराहट हुई और एक कत्थई रंग का भालू उनमें से निकल कर बाहर आ गया।
जब उसने उस छोटी लड़की को देखा तो उसने खुशी से अपनी बाँहें उसकी तरफ फैला दीं। वह बोला — “आहा, तुम तो मेरी एक बहुत अच्छी नौकरानी साबित होगी मेरी प्यारी।”
कह कर उसने उस लड़की को अपनी बाँहों में उठाया और उसको अँधेरे जंगल में अपने घर ले गया। जब वह जंगल के अन्दर पहुँच गया तो वह उस पर गुर्रा कर बोला — “चलो आग जलाओ और मेरे लिये दलिया बनाओ। मुझे भूख लगी है। फिर मेरा घर साफ करो।”
बैला की नयी खराब ज़िन्दगी भालू के घर में इस तरह शुरू हुई। बैला इस डर से कि भालू कहीं उसको खा न ले उसके घर में रोज ही सुबह से शाम तक काम करती पर साथ में वह यह भी सोचती रहती कि वह वहाँ से किस तरह से बच कर भाग सकती है। आखिर उसके दिमाग में एक विचार आया।
एक दिन वह भालू से बड़ी नम्रता से बोली — “मिस्टर भालू, क्या मैं एक दिन के लिये अपने घर जा सकती हूँ ताकि मैं अपने दादी बाबा को यह दिखा आऊँ कि मैं ज़िन्दा हूँ और ठीक हूँ।”
भालू गुर्राया — “नहीं कभी नहीं। तुम यहाँ से कहीं नहीं जाओगी। अगर तुम्हें उनके लिये कोई सन्देश देना भी है तो वह सन्देश उनके लिये मैं खुद ले कर जाऊँगा।”
बैला ने ठीक यही प्लान किया था।
सो उसने कुछ चैरी पाई बनायीं और उनको एक प्लेट में ऊँचे तक सजा दिया। फिर वह एक बड़ी सी टोकरी ले आयी और भालू को बुला कर उससे कहा — “मिस्टर भालू, मैं ये पाई इस बड़ी टोकरी में रख रही हूँ। तुम इनको मेरे घर ले जाओ और मेरे दादी बाबा को दे देना। और उनसे कहना कि ये पाई आपकी बेटी ने आपके लिये भिजवायी हैं।
पर याद रखना कि इस टोकरी को तुम रास्ते में खोलना नहीं और इन पाई को तो तुम छूना भी नहीं। मैं इस मकान की छत से तुमको देखती रहूँगी।,”
भालू बोला — “ठीक है ओ सुन्दर लड़की। पर जाने से पहले मैं ज़रा सा सो लूँ।”
जैसे ही भालू सोया बैला जल्दी से घर की छत पर चढ़ गयी। वहाँ जा कर उसने एक लठ्ठे की अपनी जैसी एक मूर्ति बनायी और उसको वहाँ खड़ा कर के उसको अपना कोट और स्कार्फ पहना दिया।
यह सब कर के वह नीचे आ गयी। फिर वह उस टोकरी में बैठ गयी जिसमें उसने पाई रखी थीं और पाई की प्लेटें अपने सिर पर रख ली।
जब भालू सो कर उठा तो उसने देखा कि पाई की टोकरी तैयार थी। उसने उस टोकरी को अपनी चौड़ी पीठ पर रख लिया और गाँव की तरफ चल दिया।
वह पेड़ों के बीच से हो कर चलता जा रहा था। बोझ की वजह से वह लड़खड़ा कर चल रहा था सो वह उसकी वजह से थक भी बहुत जल्दी गया।
वह एक पेड़ के टूटे हुए तने के पास रुक गया और आराम करने के लिये वहाँ बैठ गया।
उसको लगा कि पहले वह उस टोकरी में से एक पाई खाले तब वह आगे जायेगा पर जैसे ही वह टोकरी खोलने वाला था कि उसको बैला की आवाज सुनायी पड़ी — “तुम वहाँ सारे दिन मत बैठो मिस्टर भालू और पाई तो तुम बिल्कुल छूना भी मत।”
भालू ने इधर उधर देखा तो उसको अपने घर की छत पर केवल बैला की मूर्ति ही दिखायी दी। वह बोला — “ओह इस लड़की की आँखें तो बहुत तेज़ हैं।”
वह उठा और फिर चल पड़ा। वह अपना वह भारी बोझ ले कर फिर चलता गया चलता गया। जल्दी ही वह एक दूसरे कटे हुए पेड़ के तने के पास आ गया।
बोझे से थके हुए उसने सोचा कि अब तो मैं अपने घर से काफी दूर आ गया हूँ अब वह लड़की मुझे नहीं देख पायेगी सो मैं यहाँ थोड़ी देर आराम करता हूँ और एक पाई खाता हूँ। सो वह वहीं बैठ गया।
जैसे ही वह पाई की टोकरी खोलना चाहता था कि एक बार फिर बैला की आवाज सुनायी पड़ी — “बैठो नहीं। और हाँ पाई तो बिल्कुल छूना भी नहीं। जैसा कि मैंने तुमसे कहा था सीधे मेरे गाँव जाओ और ये पाई मेरे दादी बाबा को दे कर आओ।”
भालू ने फिर पीछे देखा पर इस बार तो उसको अपना घर भी दिखायी नहीं दिया। उसने फिर वही सोचा कि इस लड़की की आँखें तो बहुत ही तेज़ हैं पर यह देख कहाँ से रही है। सो वह फिर चल दिया।
पेड़ों के बीच से होता हुआ, घाटी में से गुजरता हुआ, घास के मैदानों को पार करता हुआ आखिर वह एक बड़े से घास के मैदान में आ निकला।
अब तक वह बहुत थक गया था। उसने सोचा “मुझे यहाँ अपने थके हुए पैरों को कुछ आराम जरूर देना चाहिये और मुझे अब भूख भी बहुत लगी है सो मैं एक पाई भी खा लेता हूँ और यहाँ तो वह मुझे देख भी नहीं पायेगी क्योंकि अब तो मैं अपने घर से बहुत दूर आ गया हूँ।”
पर यहाँ भी उसको दूर से एक आवाज आती सुनायी दी —
“मिस्टर भालू, मैं तुम्हें यहाँ से देख रही हूँ। और उन चैरी पाई को
छूने की तो तुम हिम्मत भी नहीं करना। चलते जाओ बस चलते
जाओ।”
इस बार भालू कुछ परेशान हो गया और डर भी गया। वह फिर गुर्राया “इसकी आँखें कितनी तेज़ हैं, उफ़।” और फिर आगे चल दिया।
चलते चलते आखिर वह बैला के गाँव आ पहुँचा। वहाँ जा कर उसने बैला के घर का दरवाजा खटखटाया — “दरवाजा खोलो मैं आपके लिये आपकी पोती की तरफ से कुछ भेंट ले कर आया हूँ।”
जैसे ही बैला के दादी बाबा ने यह सुना तो वे दरवाजा खोलने भागे। उधर भालू की आवाज सुन कर गाँव भर के कुत्ते वहाँ भौंकते हुए आ गये।
कुत्तों के भौंकने से वह भालू इतना डर गया कि उसने वह टोकरी तो वहीं दरवाजे पर छोड़ी और बिना पीछे देखे सीधा जंगल की तरफ भाग गया।
जब बैला के दादी बाबा ने दरवाजा खोला तो उनको तो यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि एक टोकरी उनके दरवाजे पर रखी थी और वहाँ कोई भी नहीं था।
बैला के बाबा ने टोकरी का ढक्कन उठाया और उसमें अपनी आँखें गड़ा कर देखा तो उनको बड़ी मुश्किल से अपनी आँखों पर विश्वास हुआ कि चैरी पाई के नीचे उनकी छोटी सी पोती ज़िन्दा और ठीक ठाक बैठी थी।
बैला के दादी बाबा दोनों खुशी से नाच उठे। उन्होंने बैला को टोकरी में से निकाल कर गले लगा लिया और उसकी होशियारी की बहुत तारीफ की कि किस तरह वह उस भालू को चकमा दे कर अपने घर वापस आ गयी थी।
जल्दी ही यह खबर बैला की दोस्तों को भी मिल गयी सो वे भी वहीं आ गयीं। उन्होंने भी बैला को गले लगाया। बैला भी भालू के चंगुल से छूट कर बहुत खुश थी।
इस बीच भालू घने जंगल में से हो कर अपने घर पहुँचा और ऊपर छत पर जा कर उस मूर्ति पर चिल्लाया कि वह उसके लिये चाय बनाये।
पर उसको यह जानने में बहुत देर नहीं लगी कि वह बैला नहीं बल्कि उसकी मूर्ति थी और बैला तो उसको चकमा दे कर उस टोकरी में बैठ कर निकल गयी थी।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)