बेकार (कहानी) : गुरुदत्त

Bekaar (Hindi Story) : Gurudutt

" बरखुरदार ! आजकल क्या काम करते हो ? "
" चाचाजी , केंद्रीय कृषि विभाग में नौकर हो गया हूँ । "
" क्या वेतन मिल जाता है ? "
" महँगाई- भत्ता इत्यादि डालकर साढ़े चार सौ मिल जाता है । "
" बहुत कम है । "
" चाचाजी , अभी नौकर हुए भी तो छह मास ही हुए हैं ! "
" तो तरक्की होने की आशा है ? "

लड़के ने उत्तर देने के स्थान पर मुसकरा दिया । प्रश्न पूछनेवाला लड़के का पड़ोसी लाला रामशरण था । वह स्वयं तो दरीबे में दुकान करता था । उसकी लड़की हायर सेकंडरी पास कर टाइपिंग सीख भागीरथ पैलेस में नौकरी करने लगी थी और पिता को उसके विवाह की चिंता लगने लगी थी ।

लड़के का नाम राधारमण था । एक विधवा माँ का पुत्र पिता की संपत्ति की आय से निर्वाह करता हुआ बी. ए. पास कर नौकरी ढूँढ़ रहा था । रामशरण के पूछने पर कि तरक्की होने की आशा है, लड़के के मुसकराने ने रामशरण के मन पर बहुत अच्छा प्रभाव उत्पन्न किया था ।

राधारमण प्रायः समाचार - पत्रों में वांटेड के स्तंभ पढ़ने दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी में जाया करता था । और आज भी वह वहाँ ही जा रहा था । उसे रामशरण की पूछताछ केवल पड़ोसी होने के नाते ही समझ आई थी । अतः वह उसको विस्मरण कर अपने नित्य के काम पर चल दिया था ।

इसके दो दिन पीछे की बात है कि राधारमण मध्याह्नोत्तर पाँच बजे घर आया तो रामशरण की पत्नी सुमन उसकी माता से घुल -मिलकर बातें करती दिखाई दी । यह तो पहले भी कई बार हुआ करता था । जब राधारमण आया तो सुमन ने मुसकराकर राधारमण की ओर देखा । राधारमण ने हाथ जोड़कर कह दिया , " मौसी , नमस्ते ! "

" जीते रहो बेटा! " सुमन ने आशीर्वाद दे दिया । माँ ने पुत्र को आया देखा तो समीप बैठी सुमन को कुछ कहा और उसे विदा कर दिया । जब पड़ोसन चली गई तो माँ लड़के के लिए चाय बनाने रसोईघर में चली गई । राधारमण ने बाजार के कपड़े बदले और धोती - कुरता पहन अपने कमरे में जा एक उपन्यास पढ़ने लगा ।

माँ ट्रे में चाय बनाकर लाई तो पुत्र के सामने रख उसके समीप ही कुरसी पर बैठ गई । माँ ने अपने लिए और पुत्र के लिए चाय बनाई । जब दोनों पीने लगे तो माँ ने कहा, "रमण! तुम मेरे सामने भी झूठ बोलने लगे हो ? "

" नहीं माँ ! मैंने तुम्हारे सामने कभी झूठ नहीं बोला। कभी भूल से कोई बात मुख से निकल गई हो तो बताओ । क्षमा माँग लूँगा । "
" तुम्हारी नौकरी लग गई है क्या ? "
" नहीं तो । माँ , नौकरी लग जाती तो सबसे पहले लड्डू तुम्हें ही खिलाता । "
" बहन सुमन बता रही थी कि तुम सरकारी दफ्तर में साढ़े चार सौ रुपया महीना पाते हो ? "

राधारमण की हँसी निकल गई । फिर गंभीर हो बोला, " माँ! साढ़े चार सौ की नौकरी तो मेरी बचपन से ही लगी हुई है । बंगाली मार्केटवाले क्वार्टर का किराया इतना तो आता है । "
" तो यह नौकरी है ? "
" हाँ , माँ ! दो दिन हुए कि चाचा रामशरण पूछने लगे तो मैंने यही बताया था कि साढ़े चार सौ वेतनमिल जाता है । "
" पर विमला की माँ तो अपनी लड़की की सगाई की बात करने आई थी । वह कह रही थी कि विमला तीन सौ वेतन पाती है । दोनों का मिलकर अच्छी प्रकार निर्वाह हो जाएगा। "
" मैं समझ नहीं सकी थी कि तुम इतना बड़ा झूठ कैसे बोल सकते हो । इस पर भी मैंने तुम्हारी नौकरी की बात को गलत तो नहीं कहा । मेरे चुप रहने पर वह विमला के विषय में बताने लगी थी । "

राधारमण ने चाय की एक चुस्की लगाकर कहा, " माँ ! वेतन तो मैं पाता ही हूँ । यह वेतन पिताजी ने लगाया हुआ है । हाँ , जब मुझे नौकरी मिल जाएगी तो उतनी मेरी उन्नति हो जाएगी । इस उन्नति के लिए ही यत्न कर रहा हूँ । "
" तो सगाई मान जाऊँ ? "
" हाँ, माँ ! विवाह होते ही मेरी तीन सौ रुपया उन्नति हो जाएगी । "

माँ को यह धोखाधड़ी पसंद न आई। परंतु घर में बहू तीन सौ रुपया महीना और साथ दित्त- दाज का प्रलोभन । यह सब विचार कर वह दुविधा में फँस गई । इसी परेशानी में वह चाय पीना भूल गई और पुत्र का मुख देखने लगी ।

राधारमण ने कहा, " माँ ! मान जाओ। मैं यत्न तो कर ही रहा हूँ । आखिर तो नौकरी मिलेगी ही । कब तक किस्मत की बेरुखी बनी रहेगी? क्या जाने विमला के भाग्य से ही किसी प्रकार की नौकरी मिल जाए ? "

माँ ने अपने मुख से कभी नहीं कहा कि उसका पुत्र कहाँ नौकर है और कितना वेतन पाता है । यह तो रामशरण और उसकी पत्नी सुमन ही जाति -बिरादरी में कह रहे थे कि लड़का भारत सरकार के कृषि कार्यालय में नौकरी करता है और राधारमण की माँ लड़के का विवाह बहुत धूमधाम से करनेवाली है ।

जब राधारमण अभी छोटा था तब मकान का भाड़ा डेढ़ सौ रुपया था । उस डेढ़ सौ में से भी राधारमण की माँ चालीस- पचास बचा लेती थी । जब मकानों के भाड़े बढ़ने लगे तो राधारमण के भी पर निकलने लगे और घर का व्यय भी बढ़ने लगा । अब मकान से आय साढ़े चार सौ रुपए होती थी और सब व्यय हो जाता था ।

एक बात वह हुई कि मकान में रहनेवाले किराएदार का दिल्ली से बाहर तबादला हो गया और उसने मकान मालिक राधारमण को कह दिया कि वह महीने की तीस तारीख को मकान खाली कर देगा । राधारमण ने हिंदुस्तान टाइम्स के टु- लेट के स्तंभ में मकान खाली का विज्ञापन दे दिया । उसने अपना पता देने के स्थान पर एक नंबर ही दिया । अब जो मकान किराए पर लेने आता तो वह उससे पाँच हजार पगड़ी माँग लेता ।

मकान का एक जरूरतमंद मिल गया । पाँच हजार पगड़ी आई तो राधारमण ने विवाह की तिथि निश्चित कर ली । दोनों ओर तैयारी होने लगी। परंतु काठ की हँडिया आग पर रखने से जलने लगी । राधारमण द्वारा बोला झूठ प्रकट होने लगा ।

विवाह के एक दिन पूर्व रामशरण को पता चला कि राधारमण तो अभी तक बेकार है । वह भागा -भागा राधारमण के पास पहुँचा और पूछने लगा, “ बेटा रमण! कृषि विभाग का एक आदमी बताता था कि तुम वहाँ नौकरी नहीं करते ? "

राधारमण ने बहस में पड़ने के स्थान पर यह कह दिया, " चाचाजी, हाथ कंगन को आरसी क्या ! इस पहली तारीख को लड़की से पूछ लीजिएगा । मैं साढ़े चार सौ रुपया उसके हाथ में रख दूँगा तब तो विश्वास हो सकेगा? "

रामशरण मुख देखता रह गया । विवाह महीने की पच्चीस तारीख को नियत था । इस कारण रामशरण परेशानी अनुभव कर रहा था । विवाह के निमंत्रण -पत्र भेजे जा चुके थे। बारात के स्वागत और भोजन के लिए हलवाई , तंबू कनातोंवाले तथा क्रॉकरी और खिलाने -पिलानेवाले सब निश्चित हो चुके थे।

रामशरण अनुभव कर रहा था कि वह इतनी दूर तक जा चुका है कि अब लौट नहीं सकता । इस कारण राधारमण ने आश्वासन पा चुप कर रहा । उसने यह सूचना अपनी पत्नी को भी नहीं दी और विवाह की तैयारियाँ होती रहीं ।
विवाह हुआ । खूब खाना - पीना हुआ और रामशरण ने अपनी इकलौती लड़की को दिल खोलकर दित्त - दाज दिया ।

राधारमण की माँ तो लड़की को भली- भाँति जानती थी और उससे स्नेह रखती थी । इस कारण उसने यही समझा कि एक पड़ोसी की लड़की घर में रहने के लिए आ गई है । अंतर पड़ा था राधारमण को और विमला को । दोनों ने विवाहित जीवन हर्षोल्लास के साथ आरंभ किया था । विमला ने अपने काम से पंद्रह दिन का अवकाश ले रखा था और उसमें से पाँच दिन व्यतीत हो चुके थे। विवाह से पूर्व पाँच दिन तक वह घर में ही रही थी ।

सुहागरात हुई और वर -वधू अगले दिन प्रात : काल अत्यंत प्रसन्नवदन सोकर उठे तो विमला ने पति से पूछ लिया ,
"कितने दिन की छुट्टी पर हैं आप ? "
" अभी तो छुट्टी ही है । पहली तारीख को वेतन लेने जाऊँगा । तब कुछ दिन की छुट्टी और माँग लूंगा । "
" मैं चाहती थी कि एक सप्ताह के लिए कहीं बाहर घूम आएँ । "
" तो हनीमून ट्रिप की अभिलाषा है ? "

" मैं नहीं जानती कि वह क्या होता है । मुझे एक वर्ष हो गया है नौकरी करते हुए । दिनानुदिन एक ही काम करते हुए चित्त ऊब गया है । तनिक जीवन में परिवर्तन आ जाएगा । "
" तब तो और छुट्टी के लिए घर से ही याचिका भेज देता हूँ । "
" हाँ , यही कह रही हूँ । "
" माँ से पूछना पड़ेगा । " राधारमण ने कहा ।
" पूछने की क्या आवश्यकता है ? उनको भी साथ लेते चलें । "
" तो यह हनीमून नहीं होगा । "
" हमारी गोल्डन नाइट तो हो गई है । मैं हनीमून की इच्छा नहीं कर रही । मैं तो आपकी माँ को साथ रखने में कल्याण मानती हूँ । "
" तो तुम ही माताजी से कहो । "

विमला ने एक क्षण तक विचार किया और हरिद्वार , ऋषिकेश, देहरादून तथा मसूरी की सैर का कार्यक्रम बनाकर पलंग से उठी और अपनी सास के पास चली गई । वह स्नान कर बैठक - घर में एक कोने में बैठी हुई राम नाम की माला जप रही थी । परमात्मा का नाम लेते हुए वह विचार कर रही थी कि राधारमण का झूठ प्रकट हुआ तो क्या होगा ? क्या पति - पत्नी में झगड़ा हो जाएगा और विवाह के दो- चार दिन उपरांत ही तलाक की योजना बनने लगेगी ?

इस समय विमला माताजी के सामने आ बैठी । सास का ध्यान टूटा तो उसने आँख खोली और पूछने लगी ,
" जाग पड़ी हो बेटी? बताओ रात कैसी बीती है ? नींद आई अथवा नहीं? "
" माँजी ! बहुत आनंद की रात व्यतीत हुई । आपके पुत्र का बहुत ही धन्यवाद है । उन्होंने मुझे रात यह अंगूठी दी है । "

विमला ने अपनी अंगुली पर अंगूठी पहनी दिखा दी । माँ तो इस विषय में जानती थी । उसने ही अपनी अंगूठी तुड़वाकर विमला की अंगुली की नाप की बनवा दी थी । अपने एक हार में से मनि उतरवाकर अंगूठी में लगवा दी थी । इस पर भी माँ ने अँगूठी ऐसे देखी जैसे कि मानो यह पहली बार देख रही है ।

राधारमण की माँ कुंती ने अंगूठी को और बहू के हाथ को चूम लिया और कहा, " बैठो । जीवन भर ऐसी रातों का भोग मिलता रहे । यही अब बैठी परमात्मा से प्रार्थना कर रही थी । "

विमला ने अपने मन की बात कह दी । उसने कहा, " मेरा यह प्रस्ताव है कि हम, मेरा मतलब है कि आप एक सप्ताह के लिए दिल्ली से बाहर घूमने चलें । "

" मेरी क्या आवश्यकता है ? तुम दोनों चले जाओ। "
" नहीं माँजी ! मुझे अकेले उनके साथ जाते भय और संकोच होता है । "
" मैं रमण से कह दूंगी । वह तुमसे बहुत प्रेमपूर्वक रहेगा । "
" पर माँजी , मेरी इच्छा है कि आप भी चलें । "
कुंती मानी तो उसी दिन कुंती, राधारमण और विमला हरिद्वार के लिए बस-स्टैंड को चल पड़े ।

वापस आते समय रेल से लौटना हुआ और विमला के नौकरी पर जाने से एक दिन पूर्व दंपती और कुंती प्रात : काल मकान पर पहुंच गए ।

मध्याह्न के समय विमला के माता-पिता लड़की और दामाद से मिलने आए । सुमन ने उलाहना देते हुए पूछ लिया , " कहाँ चले गए थे तुम सब? "
" हनीमून मनाने गए थे। " विमला ने कहा ।
" हमें बताकर भी नहीं गए? " रामशरण ने कह दिया ।
" तो विवाह के उपरांत भी आपसे पूछने की आवश्यकता थी? विमला ने मुसकराते हुए पूछ लिया , “ मैं तो समझी थी कि अब मैं खुद मुख्तार हो गई हूँ । "

रामशरण हँस पड़ा । इस समय उसे राधारमण के वेतन की बात स्मरण आ गई । उसने पूछा, " तुम्हारे घरवाले का वेतन तो अभी आया नहीं होगा ? "
" वह वेतन लेने कार्यालय में गए हैं । "
" तो वह कहीं नौकरी करता है ? "

इस पर विमला की हँसी निकल गई । उसने हँसते हुए कहा, “ पिताजी, विवाह से पहले वह अपनी माताजी की नौकरी करते थे। अब वह मेरी नौकरी करते हैं । "
" और तुमसे वेतन पाते हैं ? क्या वेतन दे रही हो उसको ? "
" अभी दिया नहीं, मगर तीन सौ रुपया तो देना ही पड़ेगा । कल अपनी फर्म में काम पर जाऊँगी और वहाँ से वेतन लेकर उनको दे दूंगी । "
" तो यह ठीक है कि माँ - पुत्र दोनों ने हमें धोखा दिया है ? " रामशरण ने पूछा ।
" धोखा कैसा ? "
" राधारमण ने मुझे कहा था कि वह सरकारी कृषि विभाग में नौकरी करता है और साढ़े चार सौ वेतन पाता है । "
" तो यह उन्होंने आपको कहा था ? "
" हाँ ! "
" तो मैं पता करूँगी कि उनका इस बात से क्या मतलब था । पर पिताजी , मुझे तो विदित था कि वह नौकरी नहीं करते । इस पर भी उनको साढ़े चार सौ रुपया महीना एक मकान का भाड़ा मिलता है । "
" तो तुम्हें पता था कि वह बेकार है? "
" हाँ , पिताजी! "
" तुम बताती तो विवाह नहीं होता । "
" वह कैसे रुक सकता था ? विवाह , जन्म और मरण तो भाग्य से होते हैं । जिस दिन सगाई हुई थी, मैं उसी दिन जानती थी कि मेरा भाग्य मुझे यहाँ खींचकर ला रहा है । "
" तो निर्वाह कैसे होगा? "
" हो जाएगा । "
" बच्चे भी होंगे तो क्या करोगी ? " माँ ने पूछ लिया ।

" जब होंगे तब देख लेंगे । मैं तो यह समझी हूँ कि जमाना बदल रहा है । कभी पुरुष घर से बाहर का काम करते थे और स्त्रियाँ घर का काम करती थीं । आजकल के पढ़े-लिखे कहा करते हैं कि हिंदुस्तान में पचास प्रतिशत जनता बेकार रहती है । उनका अभिप्राय था कि हिंदुस्तान की स्त्रियाँ बेकार हैं । अब हम, मेरा अभिप्राय है स्त्रियों ने काम करना आरंभ कर दिया है और पुरुषों को नौकरी नहीं मिलती और वे बेकार रहने लगे हैं । इस कारण मैंने यह विचार किया है कि मैं घर से बाहर का काम करूँगी तो वह घर के भीतर का काम करेंगे । "

रामशरण हँस पड़ा और बोला, " मतलब यह कि अब तुम्हारे बच्चों का ट्टटी- पेशाब वह साफ किया करेगा और उनको बच्चागाड़ी में बिठा घुमाने वह ले जाया करेगा? "
" क्या हर्ज है ? "

इस समय राधारमण आ गया । वह अपने सास-श्वसुर को आया देख बैठक - घर में उनके पास आ गया और हाथ जोड़ नमस्ते कर उनका सुख - समाचार पूछने लगा ।
रामशरण ने उसके आते ही पूछ लिया , " तो ले आए हो वेतन? "

" हाँ , पिताजी! पहली तारीख के उपरांत आज ही कार्यालय में गया था और वेतन ले आया हूँ । " यह कहकर उसने जेब से चार सौ - सौ के नोट और पाँच दस -दस के नोट निकाल विमला के हाथ पर रख दिए ।
विमला मुसकरा रही थी । राधारमण ने मुख गंभीर बनाया हुआ था । रामशरण ने कह दिया , " तुम माँ - पुत्र दोनों ठग हो । "
" चाचाजी! माँ के विषय में नहीं जानता कि उसने क्या ठगी की है । जहाँ तक मेरा प्रश्न है तो मैंने जो कहा था , वह आपके सम्मुख यह रुपया विमला को देकर सिद्ध कर दिया है । "
" पर तुम सरकारी नौकर हो क्या ? "
" हाँ , चाचा जी ! मैंने विमला को बता दिया है कि पहले किस सरकार की नौकरी करता था । और अब किस सरकार की करने लगा हूँ । "
" मैं तो विमला को कहूँगा कि अपना सबकुछ लेकर यह घर छोड़ दे। "
" क्यों ? " विमला ने पूछ लिया ।
" इन्होंने मुझे धोखा दिया है । "

राधारमण उठ खड़ा हुआ और बैठक - घर से निकलने लगा तो सुमन ने पूछ लिया , " रमण बेटा ! कहाँ जा रहे हो ? "

राधारमण जाता- जाता रुक गया और लौटकर अपनी सास के सामने खड़ा हो गया । रामशरण उसकी ओर माथे पर त्योरी चढ़ाए देख रहा था । रमण ने विमला की माँ को जवाब दे दिया । मैं समझा था कि चाचाजी विमला से पूछकर ही मेरी नौकरी छुड़ा रहे हैं । इसलिए सेवामुक्त हो जा रहा था । "
" पर मैंने कुछ नहीं कहा । " विमला ने कहा ।
" तब ठीक है । मैं समझा था कि तुम जा रही हो और मैं फिर बेकार हो रहा हूँ । "
विमला ने कहा, " जी नहीं , आप बैठिए । हमारा समझौता हो चुका है । आप बैठिए । "

लड़की की बात सुन रामशरण उठ खड़ा हुआ । सुमन चाहती तो नहीं थी , परंतु अपने पति को उठा देख स्वयं भी उठ पड़ी और दोनों मकान से नीचे उतर गए ।

जब रामशरण और सुमन मकान से नीचे उतर गए तो राधारमण की माँ बैठक - घर में आ गई । उसने आते ही कहा, “ बेटा! मैं समझती हूँ कि तुम्हें शीघ्र ही कोई नौकरी ढूँढ़नी चाहिए । "
" माँ ! यत्न तो कर रहा हूँ, मगर विमला कहती है कि मुझे नौकरी मिली तो उसकी नौकरी छूट जाएगी । "
" तो यह ठीक ही होगा । " रमण की माँ ने कहा , " नौकरी पुरुष ही करते हैं । स्त्रियाँ तो रानी बन घूमा करती हैं । "

" माँ ! देश में नौकरियों की संख्या तो सीमित ही है । जब से लड़कियाँ बी.ए., एम. ए. कर नौकरी करने लगी हैं , तब से लड़के अधिक और अधिक बेकार होने लगे हैं । इसी कारण मैंने और विमला ने यह निश्चय किया है कि दोनों में से एक ही नौकरी करेगा , जिससे कि दूसरों के लिए स्थान रिक्त रहे । "

"विमला! " अब कुंती ने विमला को संबोधित करते हुए कहा, “ तुम अपनी माताजी को समझा दो । उनको नाराज होने की आवश्यकता नहीं । यदि तुम नौकरी नहीं करती , तो अवश्य रमण को कहीं-न- कहीं नौकरी मिल चुकी होती । "
विमला हँस पड़ी और बोली, " मैं आज सायंकाल जाकर उनको यह समझाऊँगी। "

रामशरण और सुमन में घर जाकर झगड़ा होने लगा । रामशरण ने अपनी पत्नी को कहा, " तुमने लड़की को इतनी अक्ल भी नहीं सिखाई कि इन धूर्तों को खरी - खरी सुना सकती? "

सुमन ने कुछ विचारकर कहा, " जहाँ तक मुझे स्मरण है , रमण की माँ ने कभी मुख से नहीं कहा कि उसका लड़का नौकरी करता है । वह स्वयं इस धोखाधड़ी से तटस्थ ही रही है। "
" परंतु राधारमण ने तो मुझे कहा था कि वह नौकर है ? "
" हाँ , आपने बताया था , परंतु यह तो हमें उस समय जाँच करनी चाहिए थी । अब यह मामला पति - पत्नी के बीच का हो गया है । इसमें किसी बाहरी व्यक्ति को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए । "
" लड़की पति के मोह में फँस गई प्रतीत होती है । "

" यह तो बहुत अच्छा हुआ है । ऐसा होना ही चाहिए । मैं भी तो आपके मोह में फँसी हुई पिछले बाईस वर्षों से आपके पास पड़ी हूँ । इसे मैं बुरी बात नहीं समझती । मैं तो यह समझी हूँ कि विवाह और नौकरी का संबंध नहीं है । जब मेरा आपसे विवाह हुआ था तो आप नौकरी कहाँ करते थे? "
" नौकरी? मैं तो पिताजी के साथ दुकान पर बैठता था । "

यही तो विमला ने बताया कि विवाह से पहले रमण माँ के साथ घर पर रहता था और अब वह विमला के साथ घर पर रहता है । आप दुकान की नौकरी करते थे और वह घर की नौकरी करता है । विवाह आपका भी हुआ था और उसका भी हो गया है । "

इस घटना को छह मास व्यतीत हो चुके थे। रामशरण और सुमन लड़की तथा दामाद से मिलने नहीं गए ।

एक दिन प्रात : काल विमला माँ से मिलने आई । रामशरण दुकान पर जाने की तैयारी कर रहा था । माँ लड़की के बढ़ रहे पेट से समझ गई कि वह गर्भवती है । माँ ने लड़की को बिठाया और कहा , " तुमको हमारी याद आई है । परमात्मा का धन्यवाद करना चाहिए । "

" पर तुम भी तो कभीमिलने नहीं आई, माँ, आज मैं आपको एक समाचार सुनाने आई हूँ । "
" हाँ , तो बताओ? " माँ ने पूछ लिया ।
" माँ! अब मैंने और आपके दामाद ने अदला-बदली कर ली है । "
" क्या अदला - बदली कर ली है? " समीप खड़े रामशरण ने पूछ लिया ।
" पिताजी! यही कि अब आज से वह घर से बाहर का काम करेंगे और मैं घर के भीतर का काम करूँगी । "
" तो वह अब नौकरी करेगा ? "
" जी । यही तो कह रही हूँ । उनको ओखला में एक फैक्टरी में मैनेजर के रूप में नौकरी मिल गई है । और मैंने अपने काम से त्यागपत्र दे दिया है । आज काम से अवकाश पाया तो पहला काम यही किया है कि आप लोगों से मिलने चली आई हूँ । "