सुन्दरी और जानवर : फ्रेंच/फ्रांसीसी लोक-कथा
Beauty and the Beast : French Folk Tale in Hindi
एक बार की बात है कि फ्रांस में एक सौदागर रहता था। उसके तीन बेटियाँ थीं। वे सब एक बहुत ही अच्छे शहर में और एक बहुत ही अच्छे मकान में रहते थे।
वे सोने और चाँदी की थालियों में खाना खाते थे और उनकी पोशाकें दुनियाँ के सबसे बढ़िया कपड़े की बनी होतीं थीं जिनमें जवाहरात लगे रहते थे।
उनमें से दो बड़ी लड़कियों के नाम थे मैरीगोल्ड और ड्रैसैलिन्डा । ऐसा कोई दिन खाली नहीं जाता था जिस दिन वे दोनों लड़कियाँ कहीं किसी दावत पर न जाती हों। पर तीसरी लड़की सुन्दरी घर पर ही अपने पिता के साथ रहना पसन्द करती थी।
अब एक दिन ऐसा हुआ कि उन लोगों के बुरे दिन आ गये। सौदागर के जहाज़ जिनमें बहुत सारा कीमती सामान भरा हुआ था समुद्र में खेते हुए टूट गये और वह शहर का सबसे ज़्यादा अमीर आदमी होने की बजाय शहर का एक सबसे गरीब आदमी बन कर रह गया।
पर इस सब नुकसान के बाद अभी भी उनके पास गाँव में एक मकान बच गया था। सो शहर में जब उनका सब कुछ बिक गया तो वह सौदागर अपनी तीनों बेटियों को साथ ले कर वहाँ से गाँव चला आया।
मैरीगोल्ड और ड्रैसैलिन्डा दोनों इस बात से बहुत दुखी थीं कि उनका सब कुछ खो गया था। वे पहले बहुत अमीर थीं और लोग उनके साथ घूमने की इच्छा करते थे पर अब जब कि वे एक छोटे से गाँव के छोटे से मकान में रहती थीं वे अकेली पड़ गयी थीं। पर सौदागर की तीसरी सबसे छोटी बेटी सुन्दरी हमेशा अपने दुखी पिता को खुश रखने के बारे में ही सोचती रहती थी। जबकि उसकी दोनों बड़ी बहिनें लकड़ी की कुर्सियों पर बैठी रहतीं और रोती रहतीं।
क्योंकि अब सौदागर कोई नौकर नहीं रख सकता था इसलिये अब सुन्दरी ही सारे घर का काम करती थी। वही घर में आग जलाती और सारे घर के लिये खाना बनाती। फिर बर्तन साफ करती और घर भर को खुश रखने की अपनी पूरी कोशिश करती। उन सबकी ज़िन्दगी इसी तरह चलने लगी।
दोनों बड़ी बेटियाँ घर में कोई काम नहीं करतीं सिवाय इसके कि वे अपनी हालत पर रोती रहतीं या फिर अपना मुँह सुजाये पड़ी रहतीं।
दोनों बहिनें अपनी सबसे छोटी बहिन को बहुत तंग करतीं क्योंकि उसके बारे में उनकी शिकायतें ही खत्म नहीं होतीं। वे घर में काम भी नहीं करती थीं और साथ में उसके हर काम में गलतियाँ भी निकालती रहतीं पर सुन्दरी अपने पिता की वजह से उनकी हर बात शान्ति से सह लेती।
इस तरह से एक साल बीत गया और एक दिन उस सौदागर के लिये एक चिठ्ठी आयी। चिठ्ठी पढ़ कर सौदागर अपनी बेटियों को ढूँढ रहा था ताकि वह उस चिठ्ठी में लिखी हुई अच्छी खबर उनको सुना सके।
जैसे ही वे उसको मिल गयीं वह बोला — “बेटियों, मुझको लगता है कि अब हमारे अच्छे दिन वापस आ गये। आज ही मुझे यह चिठ्ठी मिली है कि हमारा एक जहाज़ जिसको हम यह सोच चुके थे कि वह खो गया है वह मिल गया है और वापस भी आ गया है। और अगर ऐसा है तो अब हमको गरीबी में नहीं रहना पड़ेगा। अब हम लोग पहले की तरह से तो अमीर नहीं होंगे पर कम से कम आराम से रह पायेंगे।
सुन्दरी, जा बेटी मेरा यात्रा वाला शाल ले आ। मैं अभी अपने जहाज़ को लेने के लिये जाता हूँ। अब तुम लोग मुझे यह बताओ कि मैं वहाँ से तुम लोगों के लिये क्या ले कर आऊँ?”
मैरीगोल्ड बिना किसी हिचक के तुरन्त ही बोली — “मेरे लिये सौ पौंड लाना।”
ड्रैसैलिन्डा बोली — “पिता जी, मेरे लिये एक सिल्क की पोशाक लाना।”
सुन्दरी ने अपने पिता को उसका यात्रा वाला शाल ओढ़ाया तो पिता ने उससे पूछा — “और बेटी मैं तुम्हारे लिये क्या ले कर आऊँ?”
सुन्दरी बोली — “मेरे लिये पिता जी एक गुलाब का फूल लाइयेगा।”
उसके पिता ने उसे प्यार से चूमा और गुड बाई कर के अपने
काम पर चला गया। पिता के जाते ही मैरीगोल्ड ने सुन्दरी से कहा
— “ओ बेवकूफ लड़की, क्या तू पिता जी को यह दिखाना चाहती
है कि तू हमसे ज़्यादा पिता का ख्याल रखती है? क्या तुझको वाकई
गुलाब चाहिये?”
सुन्दरी बोली — “हाँ बहिन मुझे वाकई गुलाब चाहिये। पर उसको माँगने की वजह यह नहीं थी जो तुम सोच रही हो। मुझे लगा कि पिता जी को अपने जहाज़ की सुरक्षा देखने में काफी काम रहेगा सो बिना बाजार जाये ही वह मेरे लिये यह ला सकते हैं मैंने इसी लिये उनसे वह मँगवाया।”
पर उसकी बहिनें उसकी इस बात पर उससे बहुत नाराज थीं। वे वहाँ से अपने कमरे में चलीं गयीं और जा कर अपनी उन चीज़ों के बारे में बात करने लगीं जो उनके पिता उनके लिये लाने वाले थे।
इस बीच वह सौदागर बड़ी उम्मीद से अपने प्लान बनाता हुआ शहर गया कि वह अपने पैसे का क्या करेगा जो उसे उस जहाज़ से मिलेगा। पर जब वह बन्दरगाह पर पहुँचा तो उसको पता चला कि वहाँ तो कोई जहाज़ ही नहीं आया।
उसने सोचा लगता है किसी ने उसके साथ चाल खेली है। सो वह फिर से अपनी उसी हालत में रह गया था। वह बेचारा सारा दिन केवल यह पता करने के लिये इधर उधर घूमता रहा कि जो चिठ्ठी उसको मिली थी उस चिठ्ठी में कोई सच्चाई थी या नहीं। जब उसे वहाँ अपना खोया हुआ जहाज़ नहीं दिखायी दिया तो शाम को बड़े दुखी मन से वह अपने घर की तरफ चल पड़ा। वह बहुत थका हुआ था और परेशान था। जबसे उसने घर छोड़ा था उसने खाना भी नहीं खाया था सो वह भूखा भी बहुत था।
घर आते आते उसको काफी अँधेरा हो गया और वह एक जंगल के पास आ निकला जिसको उसे घर पहुँचने से पहले पार करना होता था।
तभी उसको जंगल में एक रोशनी चमकती हुई दिखायी दी तो उसने उस रात अपने घर जाने का विचार छोड़ दिया और निश्चय किया कि वह वहीं जंगल में उसी रोशनी की तरफ जायेगा और वहीं खाना और रात को रुकने की जगह माँगेगा।
वह सोच रहा था कि शायद वहाँ किसी लकड़हारे की कोई झोंपड़ी होगी पर वह जैसे जैसे उस रोशनी के पास पहुँचा तो उसको यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह रोशनी तो एक बड़े शानदार महल की एक खिड़की से आ रही थी।
उसने उस महल का दरवाजा खटखटाया पर किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। उस समय उसको बहुत तेज़ भूख लग रही थी और बाहर बहुत ठंडा था सो वह हिम्मत कर के उस महल के अन्दर चला गया और संगमरमर की सीढ़ियाँ चढ़ कर एक बड़े से कमरे में पहुँच गया।
रास्ते में भी उसको कोई नहीं मिला। उस बड़े कमरे में आग जल रही थी सो वह उसकी गर्मी लेने के लिये उस आग के पास बैठ गया। जब वह थोड़ा गर्म हो गया तो घर के मालिक को ढूँढने निकला।
पर उसको बहुत दूर नहीं जाना पड़ा। पहला दरवाजा खोलते ही उसको एक और कमरा मिला जिसमें मेज पर एक आदमी के लिये खाना लगा था। उस खाने को देखते ही उसकी भूख और बढ़ गयी।
क्योंकि घर का मालिक अभी भी उसको नहीं मिला था सो जितनी हिम्मत से वह घर में घुसा था उतनी ही हिम्मत से वह खाना खाने भी बैठ गया।
खाना खाने के बाद उसने फिर से घर के मालिक से मिलने का विचार किया तो उसने महल का दूसरा दरवाजा खोला। वहाँ उस कमरे में एक बहुत सुन्दर बिस्तर लगा हुआ था।
पेट भरने के बाद और थके होने की वजह से उसको बहुत ज़ोर की नींद आ रही थी। पलंग देख कर उसने सोचा “यह तो किसी परी का काम दिखायी देता है सो मुझे अब और आगे इस घर के मालिक को ढूँढने की जरूरत नहीं है। अभी तो में सो जाता हूँ कल सुबह देखूँगा।”
सो वह उस पलंग पर लेट गया और तुरन्त ही सो गया। जब वह उठा तो सुबह हो चुकी थी। एकदम से वह अपने आपको इतने मुलायम बिस्तर में पा कर बहुत आश्चर्यचकित था पर फिर उसको सब याद आ गया कि कल रात क्या हुआ था। उसने सोचा “अब मुझे चलना चाहिये पर अच्छा होता अगर मैं इस घर के मालिक को उसके इस अच्छे खाने और सोने की सुविधा देने के लिये धन्यवाद देता जाता।
पर जब वह बिस्तर से बाहर निकला तो उसको लगा कि इस घर के मालिक को उसको खाने और सोने की जगह देने के अलावा उसको किसी और चीज़ के लिये भी धन्यवाद देना था।
उसके पलंग के पास रखी एक कुर्सी पर एक नया सूट रखा था जिस पर उसका नाम लिखा हुआ था और उस सूट की हर जेब में दस दस सोने के सिक्के रखे हुए थे।
जब उसने वह नीला और सुनहरी सूट पहना जिसकी जेब में वे सोने के सिक्के खनखना रहे थे तो वह तो एक दूसरा ही आदमी लगने लगा।
कपड़े पहन कर जब वह नीचे गया तो उसी छोटे कमरे में जिसमें उसने पिछली रात खाना खाया था सुबह का नाश्ता उसका इन्तजार कर रहा था। उसने पेट भर कर नाश्ता किया और फिर सोचा कि उस महल के बागीचे में थोड़ा घूम लिया जाये।
वह संगमरमर की सीढ़ियाँ उतर कर नीचे गया और जब बागीचे में पहुँचा तो उसने देखा कि वह बागीचा तो गुलाब के फूलों से भरा पड़ा है – लाल और सफेद, गुलाबी और पीले, नारंगी और मैरून। उनको देख कर सौदागर को सुन्दरी की माँग का ध्यान आ गया। उसने सोचा — “बेचारी मेरी प्यारी दोनों बड़ी बेटियाँ, वे
कितनी नाउम्मीद होंगीं जब वे यह सुनेंगी कि मेरा जहाज़ नहीं आया। पर सुन्दरी को वह जरूर मिल जायेगा जो उसने माँगा था।”
और उसने हाथ बढ़ा कर अपने सबसे पास वाला एक गुलाब तोड़ लिया। जैसे ही गुलाब की डंडी उसके हाथ में टूटी वह डर कर पीछे हट गया क्योंकि तभी उसने गुस्से से भरी एक गुर्राहट सुनी।
दूसरे ही पल एक भयानक जानवर उसके ऊपर कूद पड़ा। वह दुनियाँ के किसी भी आदमी से ज़्यादा लम्बा था और किसी भी जानवर से ज़्यादा बदसूरत था। वह जानवर उस सौदागर को दुनियाँ की किसी भी चीज़ से कहीं ज़्यादा भयानक लग रहा था।
जानवर की आवाज में दहाड़ने के बाद वह उससे आदमी की आवाज में बोला — “ओ नीच, क्या मैंने तुमको खाना नहीं खिलाया? क्या मैंने तुमको रात को सोने के लिये जगह नहीं दी? क्या मैंने तुमको पहनने के लिये कपड़े नहीं दिये? क्या मैंने तुमको खर्चे के लिये पैसे नहीं दिये?
और तुम मेरे इन ऐहसानों का बदला मेरी उन चीज़ों को चुरा कर दे रहे हो जिनकी में इतनी परवाह करता हूँ?”
सौदागर बेचारा रुआँसा हो कर बोला — “दया करो, मुझ पर दया करो। इस गुलाब को चुराने का मेरा कोई बुरा इरादा नहीं था।”
वह जानवर बोला — “तो फिर क्या मतलब था तुम्हारा? नहीं नहीं, तुमको तो अब मरना ही है।”
बेचारा सौदागर घुटनों के बल बैठ गया और सोचने लगा कि वह क्या कह कर उस बेरहम जानवर का दिल पिघलाये।
आखिर वह बोला — “जनाब, मैंने यह फूल केवल इसलिये तोड़ा था क्योंकि मेरी सबसे छोटी बेटी ने मुझसे एक गुलाब का फूल लाने के लिये कहा था। मैं तो यह सोच भी नहीं सकता था कि इतना सब देने के बाद आप केवल एक गुलाब के फूल की वजह से मेरे ऊपर इतना गुस्सा होंगे।”
जानवर ने पूछा — “अच्छा तो तुम अपनी इस बेटी के बारे में बताओ मुझे। क्या वह एक अच्छी लड़की है?”
सौदागर खुश हो कर बोला — “जनाब वह मेरी सबसे अच्छी और सबसे प्यारी बेटी है।”
और यह कह कर वह यह सोचते हुए रो पड़ा कि अब तो वह मर ही जायेगा। उसकी प्यारी बेटी सुन्दरी इस दुनियाँ में अकेली रह जायेगी। कौन उससे दया का बरताव करेगा।
वह रोते रोते बोला — “ओह, मेरे बाद मेरे बच्चे कैसे रहेंगे?”
वह जानवर फिर बोला — “पर यह तो तुमको मेरा गुलाब चुराने से पहले सोचना चाहिये था। हाँ अगर तुम्हारी कोई एक बेटी तुमको इतना प्यार करती हो जो तुम्हारे बिना रहने की बजाय तकलीफ सहना ज़्यादा पसन्द करे तो तुम्हारी जान बच सकती है। तुम अपने घर वापस जाओ और अपनी सब बेटियों को जा कर बताओ कि तुम्हारे साथ क्या हुआ। पर तुम मुझसे वायदा करो कि आज से अगले तीन महीनों के अन्दर अन्दर तुम या तुम्हारी एक बेटी यहाँ मेरे महल के दरवाजे पर जरूर होगी।”
उस बेचारे आदमी के पास इसके अलावा और कोई चारा नहीं था कि वह इस बात का वायदा करे कि ऐसा ही होगा। उसने सोचा कि कम से कम उसकी ज़िन्दगी तीन महीने तो बढ़ी।
जानवर फिर बोला — “मैं तुमको इस तरह खाली हाथ नहीं जाने दूँगा।” कह कर वह अपने महल की तरफ चल दिया और वह आदमी उसके पीछे पीछे चल दिया।
वह जानवर उस आदमी को एक बड़े कमरे में ले गया। वहाँ
उस कमरे के फर्श पर चाँदी की एक बहुत बड़ी आलमारी रखी थी।
जानवर ने वह आलमारी खोल कर उसको दिखाते हुए कहा —
“इसमें से जो चीज़ भी तुमको अच्छी लगे और जितना तुमको चाहिये
तुम उतना खजाना ले लो।”
सौदागर से जितना लिया जा सका उसमें से उसने उतना खजाना ले लिया। जानवर ने उस आलमारी का दरवाजा बन्द करते हुए कहा — “अब तुम अपने घर जा सकते हो।”
सो वह सौदागर भारी दिल से अपने घर के लिये चला। जैसे ही वह महल के दरवाजे से बाहर निकला तो वह जानवर बोला — “पर सुन्दरी का यह गुलाब तो तुम भूल ही गये।”
और उसी समय उसने अपने बागीचे के सबसे सुन्दर गुलाब के फूलों का एक बहुत बड़ा गुच्छा सौदागर के हाथों में थमा दिया। वह सौदागर जब घर पहुँचा तो सुन्दरी उससे मिलने के लिये बाहर दौड़ी आयी तो उसने सब कुछ सुन्दरी को पकड़ा दिया और बोला — “ले मेरी बच्ची और आनन्द कर क्योंकि यह सब तेरे गरीब पिता की ज़िन्दगी के बदले में हैं।”
यह कह कर वह बैठ गया और फिर अपनी सारी कहानी अपनी तीनों बेटियों को सुनायी। उसकी कहानी सुन कर दोनों बड़ी बेटियाँ रो पड़ी। वे सुन्दरी को ही इस सबके लिये जिम्मेदार ठहरा रही थीं।
वे सुन्दरी से बोलीं — “अगर तुम्हारी ऐसी माँग न होती तो हमारे पिता जी अपने नये कपड़ों में सोने के सिक्के ले कर महल से ऐसे ही चले आते। पर तुम्हारी गुलाब की माँग ने उनको गुलाब तोड़ने पर मजबूर किया और उसी वजह से यह सब हुआ। उसी ने उनकी जान खतरे में डाली।”
सुन्दरी बोली — “नहीं नहीं, पिता जी अपनी ज़िन्दगी नहीं देंगे। मैं ही अपनी ज़िन्दगी दूँगी क्योंकि यह सब मेरी ही वजह से हुआ है।
तीन महीने पूरे होने पर मैं उस जानवर के पास जाऊँगी और फिर अगर वह चाहे तो मुझे मारे या और कुछ करे पर मैं उसको अपने पिता जी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाने दे सकती।”
सौदागर ने उसे बहुत समझाया कि वह उस जानवर के पास न जाये पर सुन्दरी ने तो यह सोच लिया था सो वह तीन महीने खत्म होने पर उस जानवर के महल की तरफ चल दी। उसका पिता उसको रास्ता दिखाने के लिये उसके साथ गया।
पहले की तरह ही उसने जंगल में रोशनी जलती हुई देखी, पहले ही की तरह बेकार ही उसने उस महल का दरवाजा खटखटाया, बड़े कमरे में जा कर अपने आपको थोड़ा गर्म किया और उसके बाद दूसरे छोटे कमरे में दो लोगों के लिये खाने की मेज लगी देखी।
सुन्दरी बोली — “पिता जी, आप बिल्कुल चिन्ता मत कीजिये। मुझे नहीं लगता कि वह जानवर मुझे मारना चाहता है। क्योंकि अगर ऐसा होता तो वह मुझे इतना अच्छा खाना न खिलाता।”
पर अगली सुबह जब वह जानवर कमरे में आया तो सुन्दरी उसको देख कर डर के मारे अपने पिता से जा कर चिपक गयी।
जानवर बहुत ही नम्र आवाज में बोला — “तुमको मुझसे डरने की जरूरत नहीं है। पर तुम मुझको इतना बता दो कि क्या तुम अपनी मर्जी से यहाँ आयी हो?”
काँपते हुए सुन्दरी बोली — “हाँ।”
जानवर बोला — “तुम बहुत अच्छी लड़की हो।”
फिर वह उसके पिता की तरफ घूम कर उससे बोला — “तुम अगर चाहो तो आज की रात यहाँ सो सकते हो। पर सुबह होते ही तुम अपने घर चले जाना और अपनी बेटी को यहाँ छोड़ जाना।”
अगली सुबह पिता बेचारा अपनी बेटी को छोड़ कर ज़ोर ज़ोर से रोता हुआ अपने घर चला गया। सुन्दरी भी अपने आपको सँभालती हुई न डरने की कोशिश करती रही।
वह महल में इधर उधर घूमती रही। उसने इतना अच्छा महल पहले कभी नहीं देखा था।
उस महल में जो सबसे अच्छे कमरे थे उनके दरवाजों के ऊपर लिखा था “सुन्दरी का कमरा”।
उन कमरों में से किसी में बहुत सारी किताबें रखी थीं तो किसी में संगीत के साज़ रखे थे, किसी में कैनेरी चिड़ियाँ थीं तो किसी में फारस की बिल्लियाँ थीं और वह सब कुछ वहाँ था जो किसी के लिये अच्छा समय गुजारने के लिये हो सकता था।
यह सब देख कर उसके मुँह से निकला — “ओह, काश यहाँ मैं अपने पिता को देख सकती तो मुझे कितना अच्छा लगता।”
जब वह यह बोल रही थी तो इत्तफाक से वह एक बहुत बड़े शीशे के सामने खड़ी थी। तुरन्त ही उस शीशे में उसने अपने पिता की परछाईं देखी जो घोड़े पर सवार उसी महल की तरफ चला आ रहा था।
उस रात जब सुन्दरी शाम को खाना खाने बैठी तो वह जानवर वहाँ आया और उससे पूछा — “क्या मैं तुम्हारे साथ खाना खा सकता हूँ?”
सुन्दरी बोली — “अगर तुमको अच्छा लगे तो।”
सो वह जानवर भी उसके साथ खाना खाने बैठ गया।
जब वह खाना खा चुका तो बोला — “सुन्दरी, मैं तो बहुत बदसूरत हूँ और बहुत बेवकूफ भी। पर मैं तुमको बहुत प्यार करता हूँ। क्या तुम मुझसे शादी करोगी?”
सुन्दरी बड़ी नर्मी से बोली — “नहीं जानवर।”
जानवर ने एक लम्बी साँस भरी और वहाँ से उठ कर चला गया।
हर रात ऐसा ही होता रहा। जानवर सुन्दरी के साथ खाना खाता। खाना खा कर वह उससे पूछता कि क्या वह उससे शादी करेगी। वह हमेशा उसको नर्मी से मना कर देती “नहीं, जानवर” और वह वहाँ से उठ कर चला जाता।
इस सारे समय में कोई छिपे छिपे उसके कामों के लिये खड़ा रहता जैसे वह कोई रानी हो। उसको कोई गवैया या बाजे बजाने वाले तो दिखायी नहीं देते थे पर उसके कानों में संगीत की आवाज सुनायी पड़ती रहती।
पर इन सब चीज़ों में वह जादुई शीशा सबसे अच्छा था क्योंकि उसमें वह सब कुछ देख सकती थी जो वह चाहती थी।
जैसे जैसे दिन गुजरते गये उसने महसूस किया कि उसकी छोटी से छोटी इच्छा वहाँ उसके कहने से पहले ही पूरी हो जाती थी। इस सबसे उसे ऐसा लगने लगा कि यह जानवर उसको बहुत चाहता है। और उसको इस बात का दुख होने लगा कि हर रात जब भी वह उससे अपनी शादी बात करता और वह ना कर देती तो वह कितना दुखी हो कर वहाँ से चला जाता था।
एक दिन उसने उस शीशे में देखा कि उसके पिता बीमार थे तो उस रात उसने उस जानवर से कहा — “ओ जानवर, तुम हमेशा से मेरे लिये बहुत अच्छे रहे हो। क्या तुम मुझे मेरे पिता को देखने जाने दोगे? वह बहुत बीमार हैं और यह सोचते हैं कि शायद मैं मर चुकी हूँ।
मेहरबानी कर के मुझे उनको देखने जाने दो। वह मुझको देख कर खुश हो जायेंगे। मैं तुमसे वायदा करती हूँ कि उनसे मिल कर मैं सचमुच में जल्दी ही वापस आ जाऊँगी।”
जानवर बड़ी नर्मी से बोला — “ठीक है। तुम जाओ पर देखो एक हफ्ते से ज़्यादा नहीं रहना क्योंकि अगर तुम इससे ज़्यादा रहीं तो मैं तुम्हारे बिना दुख से मर जाऊँगा। क्योंकि मैं तुमको बहुत प्यार करता हूँ।”
सुन्दरी बोली — “पर मैं यहाँ से जाऊँ कैसे मुझको तो रास्ता ही नहीं मालूम।”
तब जानवर ने उसको एक अँगूठी दी और कहा कि जब वह सोने जाये तो उस अँगूठी को अपनी उँगली में पहन ले। उसमें लगा लाल वह अपनी हथेली की तरफ कर ले।
इससे अगली सुबह जब वह उठेगी तो अपने पिता के घर में ही उठेगी। जब वह वापस आना चाहेगी तो वह फिर उसी तरह करेगी तो वह यहाँ आ जायेगी। उसने ऐसा ही किया। अगले दिन सुबह वह अपने पिता के घर में थी।
अपनी बेटी को अपने पास देख कर उसका पिता बहुत खुश हुआ पर उसकी बहिनों को उसका आना अच्छा नहीं लगा। और जब उन्होंने यह सुना कि वह जानवर उसके साथ कितनी अच्छी तरह से बर्ताव करता है तब तो उनको उसके अच्छे भाग्य से जलन ही होने लगी। वह तो कितने अच्छे महल में रहती है जबकि वे एक छोटे से मकान में रहती हैं।
मैरीगोल्ड बोली — “काश हम वहाँ चले जाते तो हम भी ऐसे ही रहते। सुन्दरी को हमेशा ही सबसे अच्छी चीज़ मिल जाती है।”
ड्रैसैलिन्डा सुन्दरी से बोली — “अच्छा ज़रा अपने महल के बारे में भी तो कुछ बताओ। तुम वहाँ क्या करती हो? कैसे बिताती हो अपना समय?”
सो सुन्दरी ने यह सोचते हुए कि यह सब उनको सुनने में अच्छा लगेगा अपनी सब बातें उनको बतायीं। और वह सब सुन सुन कर हर दिन उनकी जलन बढ़ती ही गयी।
आखिर ड्रैसैलिन्डा ने मैरीगोल्ड से कहा — “सुन्दरी ने उसको एक हफ्ते में वापस आने के लिये कहा है अगर हम उसको यह बात किसी तरह भुला दें तो वह जानवर उससे नाराज हो जायेगा और उसको मार देगा। फिर हम लोगों को मौका मिल सकता है।”
सुन्दरी को अगले दिन जानवर के पास वापस जाना था। सो अगले दिन सुन्दरी के वापस जाने से पहले उन्होंने सुन्दरी के शराब के गिलास में पौपी का रस मिला दिया जिसने उसको इतना सुलाया कि वह पूरे दो दिन और दो रात सोती रही।
अपनी नींद के आखिरी समय में उसने एक सपना देखा और उस सपने में उसने उस जानवर को उसके महल के बागीचे में गुलाबों के बीच में मरा पड़ा देखा। वह बहुत ज़ोर से रोते हुए उठ गयी। हालाँकि उसको यह पता नहीं चला कि जानवर को छोड़े हुए उसको एक हफ्ते के ऊपर दो दिन और हो गये हैं फिर भी उसने अपनी अँगूठी का लाल अपनी हथेली की तरफ किया और सो गयी।
अगली सुबह जब वह उठी तो जानवर के महल में अपने बिस्तर पर थी। अब उसको यह तो नहीं मालूम था कि उस महल में उस जानवर के कमरे कहाँ हैं पर वह शाम के खाने तक का इन्तजार नहीं कर सकती थी।
उसको लगा कि उसको जानवर को अभी अभी देखना चाहिये। सो वह महल में उसका नाम पुकारते हुए इधर से उधर भागने लगी। वह सारा बागीचा छान आयी पर उसका कहीं पता नहीं था।
वह बोली — “ओह, अब मैं क्या करूँ मुझे तो वह कहीं मिल ही नहीं रहा। अब मैं फिर कभी खुश नहीं रह पाऊँगी।”
फिर उसको अपना सपना याद आया तो वह गुलाब के बागीचे में भागी गयी। वहाँ बड़े फव्वारे के पास वह बड़ा जानवर मरा पड़ा था। सुन्दरी तुरन्त ही उसके पास घुटनों के बल बैठ गयी।
वह रोते रोते बोली — “ओह प्यारे जानवर, क्या तुम वाकई मर गये हो? अगर ऐसा है तो मैं भी मर जाऊँगी। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती।”
लो यह सुन कर वह जानवर तो तुरन्त ही उठ कर बैठा हो गया और एक लम्बी सी साँस भर कर बोला — “सुन्दरी, क्या तुम मुझसे शादी करोगी?”
उसको ज़िन्दा देख कर तो सुन्दरी बहुत ही खुश हो गयी। वह बिना सोचे समझे तुरन्त बोली — “हाँ हाँ, मैं तुमसे शादी करूँगी क्योंकि मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ।”
बस जैसे ही सुन्दरी ने यह कहा तो उस जानवर के खुरदरे बाल नीचे गिर पड़े और वहाँ जानवर के बदले में एक बहुत सुन्दर राजकुमार खड़ा हुआ था। उसने सफेद और रुपहला सूट पहना हुआ था जैसा कि लोग शादी के समय पहनते हैं।
वह सुन्दरी के पैरों के पास बैठ गया और ताली बजायी और बोला — “प्रिय सुन्दरी, तुम्हारे प्यार के अलावा मेरे ऊपर का यह जादू और कोई नहीं तोड़ सकता था।”
तब राजकुमार ने सुन्दरी को अपनी कहानी सुनायी — “एक नीच परी ने मुझे जानवर में बदल दिया था। और मुझे तब तक इसी हालत में रहना था जब तक कि कोई कुँआरी लड़की मुझसे मेरी बदसूरती और बेवकूफी के बावजूद इतना प्यार न करने लगे कि वह मुझसे शादी करने के लिये तैयार हो जाये।
अब मेरा वह जादू टूट गया है। चलो प्रिये, अब हम अपने महल चलते हैं। अब तुमको वहाँ मेरे सारे नौकर चाकर दिखायी देंगे। वे पहले इसलिये दिखायी नहीं देते थे क्योंकि उस परी ने उन सबके ऊपर भी जादू डाल दिया था। वे अब तक तुमको दिखायी दिये बिना ही तुम्हारी सेवा करते रहते थे। अब तुम उनको देख पाओगी।”
वे अपने महल में लौट आये। अब महल में खूब धूमधाम हो रही थी। वहाँ बहुत सारे राज दरबारी इधर उधर घूम रहे थे जो बड़ी बेसब्री से राजकुमार और राजकुमारी का हाथ चूमने का इन्तजार कर रहे थे।
वहाँ बहुत सारे नौकर भी इधर इधर घूम रहे थे। राजकुमार ने एक नौकर के कान में कुछ फुसफुसाया जिसे सुन कर वह बाहर चला गया और सुन्दरी के पिता और बहिनों को ले कर वापस आ गया।
सुन्दरी की बहिनों को मूर्तियाँ बना दिया गया और उनको महल के दरवाजे को दोनों तरफ खड़ा कर दिया गय जब तक कि उनके दिल नर्म न हो जायें और वे अपनी बहिन के साथ किये गये बुरे बर्ताव पर पछताने न लगें।
सुन्दरी की राजकुमार के साथ शादी तो हो गयी पर सुन्दरी छिपे छिपे अपनी बहिनों की मूर्तियों को पास रोज जाती थी और रोती थी।
उसके आँसुओं ने उन पत्थर दिल मूर्तियों के दिलों को भी नर्म कर दिया और वे फिर से ज़िन्दा हो गयीं और फिर ज़िन्दगी भर हर एक के लिये नर्म दिल और दयावान रहीं।
सुन्दरी भी अपने जानवर के साथ जो अब जानवर नहीं था बल्कि एक सुन्दर राजकुमार था हँसी खुशी रही। मेरे ख्याल से तो वे अभी भी उस देश में खुशी खुशी रह रहे होंगे जहाँ सपने सच हो जाते हैं।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)