बेअक्ल : उत्तर प्रदेश की लोक-कथा
Beakal : Lok-Katha (Uttar Pradesh)
शोभलू खशिये को रोटी की समस्या भी हो आई थी। उसने यह सोचा तक न था कि उसे कभी भूखे रहना पड़ेगा। बहुत हाथ-पांव मारने के बाद उसे एक दोस्त से चार रोटियां और चौदह मन अनाज की पर्ची मिल गई। वह पर्ची उसने दुकानदार को देनी थी और उसे चौदह मन अनाज मिल जाना था। उसने रोटी और पर्ची गांठ में बांध ली और घर की ओर चल पड़ा।
शोभलू आनंदपूर्वक घर की ओर चल रहा था कि अचानक उसे शौच छूट गई। उसने रास्ते से थोड़ा किनारे चारों रोटियां और साथ में पर्ची की गांठ रखी और स्वंय थोड़ी दूर जाकर शौच करने बैठ गया। रास्ते-रास्ते एक कुत्ता आया, उसने रोटियों की गंध सूंघ कर रोटियां-पर्ची की गांठ उठाई और चलता बना। शोभलू नाड़ा पकड़कर बस देखता ही रह गया।
वैसे उसे रोटियां और साथ बंधी पर्ची अपने नजदीक रखनी चाहिए थी। पर अब तो रोटियां भी गई और चौदह मन अनाज की पर्ची भी गई। शोभलू को अपनी नासमझी पर बहुत दुःख हुआ। उसके मुख से निकला अक्ल तो थी पर भय नहीं किया। चार रोटी चौदह मन कुत्ता ले गया। (साभार : प्रियंका वर्मा)