बौने और मोची : जर्मन लोक-कथा
The Elves And The Shoemaker : Lok-Katha (German)
एक शहर में एक मोची अपने परिवार के साथ रहता था। उसके घर के पास ही उसकी एक छोटी सी दुकान थी, जहाँ वह जूते बनाने और बेचने का काम किया करता था। जूते बेचकर उसे जो पैसे मिलते, उससे उसका और उसके परिवार का गुजारा चलता था।
वह अपने काम में निपुण था और मेहनती भी। इसके बावजूद भी एक समय ऐसा आया कि जब उसके बनाये जूते बिकने कम हो गए। जो बिकते, वे भी बहुत कम दाम पर।
उचित दाम न मिल पाने के कारण उसका धंधा मंदा चलने लगा। उसकी दुकान पर आने वाले ग्राहकों की संख्या कम हो गई। नतीजतन उसकी जमा-पूंजी समाप्त होने लगी। स्थिति ये आ गई कि घर चलाने के लिए उसे पत्नी के गहनें गिरवी रखने पड़े, घर का सामान बेचना पड़ा।
यह बुरा दौर उसकी चिंता का कारण बन गया। वह हर समय चिंता में डूबा रहता। उसे चिंतित देख उसकी पत्नी हमेशा ढाढस बंधाती, “देखिये, ऊपर वाला सब देख रहा है। उस पर भरोसा रखिये। यकीन मानिये सब ठीक हो जायेगा।” पत्नी की बात पर वह मुस्कुरा देता। लेकिन अंदर ही अंदर चिंता में घुलता रहता।
उसकी दुकान में जूते बनाने का सामान भी ख़त्म हो चला था। तैयार जूतों में बस एक जोड़ी जूते बचे थे, जिसे ख़रीदने दुकान पर कोई ग्राहक नहीं आ रहा था। एक दिन वह अपने बनाये आखिरी जूते बेचने बाजार चला गया। जूते बिक गए। जो पैसे मिले, उससे उसने घर की ज़रूरत का कुछ सामान ख़रीदा और घर वापस आने लगा। रास्ते में उसे एक गरीब बूढ़ी औरत दिखाई दी। उसने कुछ पैसे देकर उसकी मदद की और घर चला आया।
शाम को जब वह अपनी दुकान में गया, तो देखा कि वहाँ चमड़े का बस एक छोटा टुकड़ा बचा हुआ है। उस टुकड़े से सिर्फ़ एक जूता बन सकता था। उसने जूते बनाने के लिए चमड़ा तो काट लिया, लेकिन रात हो जाने के कारण जूते नहीं बना पाया। अगले दिन जूते बनाने का सोच वह घर आकर सो गया।
अगली सुबह वह जब अपनी दुकान पर गया, तो चकित रह गया। जहाँ वह चमड़ा काटकर रख गया था, वहाँ बहुत ही सुंदर जूते रखे हुए थे। इतने सुंदर जूते उसने कभी देखे ही नहीं थे। उन्हें बेचने जब वह बाज़ार गया, तो उसे उसके बहुत अच्छे दाम मिले।
वापसी में घर के लिए कुछ सामान के साथ ही उसने जूते बनाने का सामान भी खरीदा। कुछ पैसे उसने ज़रूरतमंदों को दान में भी दिए।
उस रात उसने दो जूते बनाने के लिए चमड़ा काटकर रखा। अगली सुबह दुकान में उसे दो जोड़ी सुंदर जूते मिले। वह हैरान था। जब उसने यह बात अपनी पत्नी को बताई, तो पत्नी बोली, “देखा मैंने कहा था न कि ऊपरवाला सब देख रहा है। उसका ही आशीर्वाद है कि कोई नेकदिल इंसान हमारी मदद कर रहा है।”
मोची के चमड़े काटकर छोड़ने और फिर अगले दिन बने-बनाए जूते मिलने का सिलसिला जारी रहा। एक से दो, दो से तीन और फिर रोज़ उसे कई जोड़ी जूते मिलने लगे। वे जूते ग्राहकों को बहुत पसंद आने लगे। बाज़ार में उसका नाम हो गया और उसकी दुकान में ग्राहकों की भीड़ लगने लगी। अच्छे दाम में जूते बिकने से मोची ने अच्छा-ख़ासा पैसा कमा लिया। उसकी आर्थिक स्थिति सुधर गई।
वह और उसकी पत्नी सदा मन ही मन उन नेकदिल लोगों का धन्यवाद करते थे, जो रोज़ रात उनकी दुकान पर आकर जूते बना जाते थे। एक दिन मोची की पत्नी बोली, “इतने समय से कोई हमारी इतनी मदद कर रहा है और हमें उनके बारे में कुछ भी पता नहीं। क्यों ना आज रात जागकर हम दुकान की रखवाली करें और देंखे कि कौन रोज़ हमारी मदद के लिए आता है?”
मोची को पत्नी की बात जंच गई। उस रात दोनों सोये नहीं, बल्कि दुकान में जाकर छुप गए। कुछ घंटे इंतज़ार करने के बाद उन्होंने देखा कि खिड़की के रास्ते तीन बौने दुकान के भीतर आये और गीत गुनगुनाते हुए कटे हुए चमड़ों से जूते बनाने लगे। मोची और उसकी पत्नी उन्हें छुपकर देखते रहे। रात भर मेहनत कर जूते बनाने के बाद तीनों बौने खिड़की के रास्ते ही वापस चले गए।
उनके जाने के बाद मोची और उसकी पत्नी आपस में बात करने लगे। मोची की पत्नी बोली, “उन तीन बौनों ने हमारी बहुत मदद की है। हमें उन्हें उपहार देकर अपनी कृतज्ञता व्यक्त करनी चाहिए।”
“तुम ही बताओ, हमें उन्हें उपहार में क्या देना चाहिए? मोची ने पूछा।
“तुमने ध्यान दिया, उनके कपड़े और जूते पुराने हो चुके थे। मैं उनके लिए नए कपड़े सिल देती हूँ और तुम उनके लिए नए जूते बना देना।”
मोची मान गया। बाज़ार से सामान लाकर वे बौनों के लिए कपड़े और जूते बनाने लगे। कुछ दिनों में कपड़े और जूते तैयार हो गये। कपड़े बहुत ही सुंदर बने थे और जूते शानदार थे। उस रात चमड़े के स्थान पर उन्होंने बौनों के लिए तैयार किये कपड़े और जूते रख दिए।
रात जब तीनों बौने दुकान के भीतर आये, तो चमड़े के स्थान पर अपने नाप के कपड़े और जूते देखकर बड़े ख़ुश हुए। कपड़े और जूते पहनकर वे नाचने-गाने लगे। उन्हें नाचता-गाता देख मोची और उसकी पत्नी बहुत ख़ुश हुए। वे समझ गए कि बौनों को उनका उपहार पसंद आ गया है।
उस रात के बाद कुछ रोज़ तक मोची ने देखा कि उसके काटे गए चमड़े दुकान में जस-के-तस पड़े हुए हैं। बौनों ने वहाँ आना बंद कर दिया था। मोची समझ गया कि बौने अब कभी नहीं आयेंगे।
बौनों को मोची की जितनी मदद करनी थी, वे कर चुके थे। अब मोची ने अपनी मेहनत से जूते बनाने का निश्चय किया। इतने दिनों में उसे ग्राहकों की पसंद-नापसंद का अंदाज़ा लग चुका था और हुनर की उसमें कोई कमी नहीं थी। मेहनत से वह जूते बनाने की अपनी कला को और निखारने लगा। अब उसके बनाये जूते भी बौनों द्वारा बनाये गए जूतों जैसे सुंदर थे। ग्राहकों को उसके बनाये जूते भी पसंद आने लगे। वे उसकी दुकान में आते रहे और उसकी दुकान ‘सबसे सुंदर जूतों वाली दुकान’ के रूप में शहर भर में मशहूर हो गई।