बतख और कछुए की कहानी : अलिफ़ लैला

Batakh Aur Kachhue Ki Kahani : Alif Laila

एक बार एक बतख बहुत ऊपर उड़ा और बहते हुए पानी में खड़ी एक चट्टान पर जा कर बैठ गया। जब वह वहाँ बैठा हुआ था तो पानी की एक लहर एक आदमी का ढाँचा उसके पास ला कर छोड़ गयी। बतख ने उसको ठीक से देखा तो उसको पता लगा कि वह तो एक आदमी का शरीर था जो एक चट्टान से आ कर रुक गया था। उसने उस शरीर पर एक निशान भाले का और एक निशान तलवार का देखा।

उसने सोचा कि शायद यह आदमी कोई बुरा काम करने वाला था इसी लिये कुछ आदमियों ने इसको मार डाला होगा और अब वे लोग शान्ति से रह रहे होंगे।

वह बतख यह सोच ही रहा था कि एक गिद्ध और कुछ बड़ी चिड़ियाँ उसके ऊपर आयीं। उनको आते देख कर उसने सोचा कि अब उसको वहाँ नहीं रुकना चाहिये।

वह यह सोच कर वहाँ से उड़ चला और एक ऐसी जगह जा कर बैठ गया जहाँ से वह सब कुछ देख सकता था कि वहाँ क्या हो रहा था। अबकी बार वह एक नदी के बीच में उगे हुए एक पेड़ पर आ कर बैठ गया।

वह अपने पैदा होने की जगह छोड़ने की वजह से बहुत दुखी था। वह सोच रहा था कि ये दुख मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रहे। पहले मैंने वह मरा हुआ शरीर देखा। उसको देख कर मुझे लगा कि मैं उसको खा लूँगा पर उसके बाद वहाँ वे बड़ी बड़ी चिड़ियें आ गयीं तो उनकी वजह से मुझे अपनी जन्म भूमि तक छोड़नी पड़ी और यहाँ अनजानी जगह में आना पड़ा। मैं अपने इस बुरे भाग्य से कैसे बचूँ?

जब वह यह सोच ही रहा था तो एक नर कछुआ नदी में आ पहुँचा। वह उस बतख के पास आया और उसको सलाम किया और उससे पूछा — “तुम यहाँ इतनी दूर कैसे आ गये?”

बतख बोला — “कुछ दुश्मन वहाँ आ गये थे और अक्लमन्दों का कहना है कि जहाँ दुश्मन रहते हों वहाँ नहीं रहना चाहिये।”

कछुआ बोला — “अगर ऐसा है तो मैं तुमको किसी भी तरह अकेला नहीं छोड़ूँगा। मैं हमेशा तुम्हारे सामने ही खड़ा रहूँगा ताकि अगर तुमको किसी चीज़ की जरूरत पड़े तो मैं तुम्हारे पास ही रहूँ। मुझे उम्मीद है कि तुमको मेरा साथ अच्छा लगेगा क्योंकि आज से मैं तुम्हारा नौकर रहूँगा और तुम्हारी देखभाल करूँगा। और देखो दुखी बिल्कुल भी मत होना क्योंकि दुख से ज़िन्दगी खराब हो जाती है।”

फिर दोनों कुछ दूर तक साथ साथ चले कि बतख फिर बोला — “मुझे समय के इधर उधर होने से बहुत डर लगता है।”

कछुआ उसके पास आया, उसे उसकी आँखों के बीच में चूमा और उसको आशीर्वाद देता हुआ बोला — “चिड़ियें हमेशा तुम्हारे शब्दों में अक्ल की बातें पायेंगी।”

वह बतख को दिलासा देता ही रहा जब तक उसको यह भरोसा नहीं हो गया कि बतख वहाँ अपने आपको सुरक्षित महसूस कर रहा था।

बतख को भी उसके शब्दों से बहुत तसल्ली मिली। उसके बाद वह बतख अपनी पुरानी जगह उड़ गया। वहाँ जा कर उसने देखा कि वे बड़ी चिड़ियें वहाँ से चली गयी हैं।

उन्होंने उस आदमी के शरीर को पूरा का पूरा खा लिया था और अब उसकी तो बस हड्डियाँ ही हड्डियाँ रह गयीं थीं। यह देख कर वह वापस कछुए के पास उड़ कर आ गया और उसको बताया कि उसके दुश्मन वहाँ से चले गये हैं और अब वह अपने घर अपने लोगों के साथ रहने के लिये वापस जा रहा था। वे दोनों बतख के घर तक गये और देखा कि अब वहाँ पर कोई डर नहीं है सो वे दोनों वहाँ उस टापू पर आनन्द से रहने लगे।

जब वे वहाँ पर ज़िन्दगी का आनन्द ले रहे थे कि अचानक एक भूखी चील ने आ कर बतख के पेट में अपनी चोंच मारी और उसको मार डाला।

उसकी मौत की वजह थी तारीफ करने के तरीके की तरफ ध्यान न देना। ऐसा कहा जाता है कि उसने तारीफ इस तरह से की — “सब अल्लाह की मेहरबानी है। वही हुकुम देता है वही सबको चीज़ें देता है और वही सबका पालन करता है।” और इसी वजह से बतख का यह अन्त हुआ।

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