बरसात (रूसी कहानी) : सेर्गेइ अन्तोनोव
Barsaat (Russian Story) : Sergei Antonov
1
पाशा, पोस्ट आफिस से जो चिट्ठियाँ लाया उनमें से एक केन्द्रीय प्रबन्ध विभाग से आयी थी। पत्र के शीर्ष स्थान पर यों लिखा था:
‘‘कामरेड गूर्येव, वलोवाया नदी पर पुल के निर्माण-अध्यक्ष, ओत्रोद्नोये ग्राम के निकट।
आपके संदेश संख्या 147/06, तारीख 13 जून के उत्तर में।
और उसके बाद निम्नलिखित संदेश था:
‘‘इस तिमाही में आपके निर्माण-कार्य के लिए कोई और मोटर-लारी नहीं दी जायगी।
गणित के मामूली हिसाब से यह देखा जा सकता है कि अपनी योजना पूरी करने के लिए (और पेन्सिल से जोड़ दिया गया था: चाहें तो योजना से भी अधिक काम पूरा करने के लिए) आपके पास जरूरत से ज्यादा लारियाँ हैं।
सिर्फ गैरजिम्मेदारी (और पेन्सिल से जोड़ दिया गया था: और दिये गये काम के प्रति पूर्ण उपेक्षा) के कारण ही यह हो सकता है कि वलोवाया का पुल बनाने के लिए बालू, पत्थरों का चूरा और गिट्टी लाने के काम में आप हमेशा योजना से पीछे रहते हैं, जिसके फलस्वरूप जाड़े तक शायद उसके किलए कंक्रीट की नींव भी न पड़े सके और इसका मतलब होगा कि सारा निर्माण-कार्य वक्त से पूरा न हो सकेगा। आपको ठीक एक सप्ताह का समय दिया जाता है, जिसके अन्दर वलोवाया का पुल बनाने के लिए बालू, पत्थर का चूरा और गिट्टी लाने का काम आप निर्धारित योजना से अनुसार पूरा कर लें और उसके लिए मैं सुझाव देता हूँ:
(क) सारी लारियाँ इसी काम के लिए इस्तेमाल की जाए।
(ख) खुदाई का काम दो शिफ्टों (पालियों) में किया जाए।
(ग) सामान के उतार-चढ़ाव का काम मशीनों से किया जाए।
(घ) गाड़ियों और घोड़ों के बारे में आपको जो हुक्म दिये गये हैं, उनका आप
पूरा उपयोग करें...’’
सूत्रों में इसी तरह की दूसरी हिदायतें भी दी गयी थीं, जिनका पालन करना बड़ा आसान और सीधा-सादा था।
निर्माण-कार्य के अध्यक्ष की सेक्रेटरी वेलेन्तिना गिओर्गियेवना ने पूरा पत्र पढ़ डाला, डाक-बही में इसके पाने की सूचना दर्ज कर ली और विचारों में डूब गयी।
उसने वर्षा के बारे में सोचा, जो दो सप्ताह से रात-दिन झड़ी लगाये हुए थी; साबुन की तरह फिसलन भरी, गीली सड़कें; पत्थरों के चूरों और गिट्टी से लदी हुई लारियाँ जो हृदय-भेदी कराहों के साथ सड़क पर घिसटती हुई चलती हैं; ड्राइवरों के चेहरे जो सर्दी और सो न सकने के कारण नीले पड़ जाते; निर्माण-कार्य का अध्यक्ष इवान सेमियोनोविच, नन्हा सा, दमा से पीड़ित व्यक्ति, जो सिर से पैर तक कीच से सना होता; जिला कार्यकारिणी समिति के लोग जो काम के लिए सामूहिक फार्मों के घोड़े देने से इनकार कर रहे थे; वह छोटा-सा कमजोर पम्प जो पत्थर तुड़ाई में लगा धक-धक करता रहता और जिसे लोग ‘‘मेंढक’’ कहकर पुकारते थे-ये सभी उसके दिमाग में घूम गये।
आज की भोर बड़ी उदास-उदास और अँधेरी थी। जल्दी में बनायी गयी बैरकों की छतों पर वर्षा उछल-कूद कर रही थी। यहाँ दफ्तर था। विभाजन की दूसरी ओर इवान सेमियोनोविच और बायें किनारे के काम के फोरमैन की जोरदार आवाजें आ रही थीं।
‘‘उसका दिमाग आज तमाम दिन खराब रखने के लिए यह काफी है,’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने सोचा। ‘‘मैं उसे यह पत्र बाद में दिखाऊँगी।’’ उसने दराज खोली और पत्र को एक फोल्डर के अन्दर रख दिया जिस पर सुनहरे अक्षरों में ‘‘रिपोर्ट’’ लिखा हुआ था-यह फोल्डर युद्ध के अन्त में उसने अपने पैसे से खरीदा था। फिर वह पेन्सिलें बनाने बैठ गयी। इवान सेमियोनोविच को अपनी मेज पर अच्छी नुकीली बनी हुईं रंग-बिरंगी पेन्सिलें रखने का बड़ा शौक है।
प्रवेश द्वार के प्लाई वुड के पल्ले पर किसी ने इस तरह लात मारी के वह भड़ाक से खुल गया और इस तरह काँपता रहा मानों उसे जूड़ी चढ़ आई हो। कमरे में एक अट्ठारह वर्षीय लड़की ने प्रवेश किया जो पानी में पूरी तरह सराबोर थी और जिसके लम्बे बूटों में एक चाबुक खुँसी हुई थी।
‘‘अध्यक्ष अन्दर हैं?’’ लड़की ने पूछा।
‘‘आप कौन हैं?’’ वेलेन्तिना गिओर्गियेवना ने हरी पेन्सिल बनाते हुए पूछा।
‘‘मैं ‘नवीन पंथी’ सामूहिक फार्म के गाड़ीवानों की ब्रिगेड-लीडर हूँ। कुरेपोवा नाम है। ओल्गा कुरेपोवा। अध्यक्ष हमें वापस भेज दें। हम लोग कल घर चले जायेंगे।’’
‘‘यह काम अध्यक्ष नहीं किया करते,’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने अध्यक्ष शब्द पर उचित जोर देने के लिए आँखें आधी मूँदते हुए कहा। ‘‘इसके बारे में आप को अपने फोरमैन से कहना चाहिए।’’
‘‘हमारे फोरमैन की अकल तो है मोटी-वह यह भी नहीं जानता कि घोड़े को कैसे जोता जाता है। मैंने उसको कई बार बताया कि हमारे फार्म के अध्यक्ष ने यहाँ काम के लिए हमें सिर्फ पाँच दिन की आज्ञा दी थी, लेकिन सात दिन हो गये हैं। मगर फिर भी हमें वह जाने नहीं देता। हमें अपने खेतों के लिए खाद की ढुलाई कराना है।’’
‘‘मैं इसके बारे में कुछ नहीं जानती। लेकिन ऐसी चीजों के लिए निर्माण-अध्यक्ष को परेशान नहीं करना चाहिए। वह बहुत व्यस्त हैं।’’
‘‘अगर वह व्यस्त हैं तो मैं इंतजार करती हूँ।’’
और पानी चुआती हुई वह ब्रिगेड-लीडर एक बेंच पर बैठ गई और अपने कपड़ों से पानी निचोंड़ने लगी।
‘‘यह दफ्तर है, टपता नहीं।’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने जरा सख्ती से कहा।
‘‘फर्श तो साफ किया ही जाएगा,’’ लड़की ने कपड़े निचोड़ना जारी रखते हुए कहा। ‘‘देखो कितना कीचड़ फैला हुआ है। जरा से पानी से कुछ नहीं बिगड़ेगा।’’
वलेन्तिना गिओर्गियेवना अपने कमरे को एक महत्वपूर्ण दफ्तर की तरह व्यवस्थित रखने का प्रयत्न करती थी, ताकि आनेवालों के दिल में अध्यक्ष के प्रति और उसकी देख-रेख में चलने वाले काम के प्रति सम्मान का भाव पैदा हो। वह खुद भी बड़े साफ-सुथरे और रौबदाब से, कलफदार ब्लाउज और उसके कालर में पुरुषोंं जैसी टाई पहनकर आती थी जिसके अन्दर से कोई गुलाबी सी चीज झाँकती रहती थी। उसके काले बालों में हल्की सी सफेद रेखाएँ थीं और उन्हें वह जूड़े में बाँधे रहती थी।
सफाई करने वाली पाशा, सेक्रेटरी महोदया का इतना रौब मानती थी कि वह दिन में कम से कम तीन बार फर्श साफ करने आती थी। लेकिन वलेन्तिना गिओर्गियेवना के इतने प्रयत्नों के बावजूद इस कमरे का स्वरूप अस्थायी ही रहता। सेक्रेटरी की मेज और एक दूसरी भोंड़ी बैंच के अलावा इस कमरे में कुछ न था ओर जब अध्यक्ष के कमरे में कार्य के सम्बन्ध में मीटिंग होने लगती तो यह बैंच भी यहाँ से उठा ली जाती। बिजली के लट्टू ने इस कमरे का सौन्दर्य और भी खत्म कर दिया था, क्योंकि इसको तार के जरिए मेज के ऊपर लटका दिया गया था और इस तार को भी डोर से एक तरफ बाँध दिया गया था ताकि रात में काम करने में सुविधा हो और किसी का सिर बल्ब से न टकरा जाए।
वलेन्तिना गिओर्गियेवना चौथी पेन्सिल बना रही थी कि बायें किनारे का फोरमैन दफ्तर से बाहर निकला और मन ही मन बड़बड़ाता हुआ चला गया।
वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने सोचा कि, ‘‘अब मुझे यह पत्र दे देना चाहिए,’’ और वह अध्यक्ष के कमरे में चली गयी। पत्र पढ़ कर इवान सेमियोनोविच परेशानी में पड़ गया। उसने लारीखाने के प्रधान तिमोफेयेव को बुलाया और लारियों के काम की रिपोर्ट देखने के लिए मँगावाई।
बढ़ी हुई दाढ़ी, थकी और उदासीन शकल लिये हुए तिमोफेयेव ने प्रवेश किया।
‘‘लो, यह देखो,’’ इवान सेमियोनोविच ने रिपोर्ट के ऊपर उँगली फेरते हुए कहा।
‘‘सोलह में से, सिर्फ आठ लारियाँ लाइन पर काम कर रही हैं। इसकी क्या सफाई दोगे?’’
‘‘लाइन पर बारह काम कर रही हैं, इवान सेमियोनोविच’’ तिमोफेयेव ने खिड़की के बाहर मटमैले आसमान की तरफ ताकते हुए जवाब दिया और वह हैरान हो रहा था कि अध्यक्ष इस बेकार के हिसाब-किताब से थकता क्यों नहीं है।
‘‘क्या कहते हो, बारह?’’ इवान सेमियोनोविच उठा, पीतल के कप में से एक लाल पेन्सिल निकाल ली और जोर से रिपोर्ट के ऊपर फेंक दी। नाराज कैसे होना चाहिए, इसका उसे रत्ती भर ज्ञान नहीं था और अपनी इस कामजोरी को वह हद से ज्यादा जानता था। ‘‘गिट्टी लाने का काम सिर्फ आठ लारियाँ कर रही हैं। इसका क्या जवाब है, कामरेड तिमोफेयेव?’’
कुजि़्मचोव और कुवायेव की ओवरहालिंग हो रही है और स्तेगानोव, भोजनालय के मैनेजर को शहर भेजने गया है। इसकी आज्ञा खुद आपने ही दी थी...।’’
‘‘लो, यह देखो। मैंने तो सिर्फ एक बार के लिए उसे इजाजत दी थी, और वह रोज उससे जाता है।’’
तिमोफेयेव ने कोई उत्तर नहीं दिया। वह खिड़की के बाहर उसी तरह ताकता रहा, मानो उसे अध्यक्ष की बातों की चिन्ता जरा भी नहीं है।
‘‘अच्छा, तो ये ग्यारह हुई, बाकी पाँच कहाँ हैं?’’ अध्यक्ष ने बात जारी रखी।
‘‘वलोव और कोरकिना जर्जर हो गये हैं। अलेक्सेयेव पेट्रोल लेने गया है। लेकिन लारियों को गिनने से लाभ ही क्या है? इस मौसम में गिट्टी ढोने के लिए आप को नावों की जरूरत है, लारियों की नहीं।’’
‘‘ठीक। लेकिन बाकी दो कहाँ हैं?’’
‘‘एक, बायें किनारे वाले फोरमैन को दे दी गयी है... आपके हुक्म से।’’
‘‘यह क्यों?’’
‘‘मैंने बताया न... आपके हुक्म से’’, तिमोफेयेव ने दृढ़तापूर्वक कहा।
‘‘और सोलहवीं?’’
वलेन्तिना गिओर्गियेवना उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा कर रही थी कि ये लोग सोलहवीं के बारे में भी चर्चा खत्म कर दें। दो दिन पहले इस जिद्दी तिमोफेयेव ने, अध्यक्ष के हुक्मों को ताक में रखकर इस लारी को अपने दोस्त के पास सैर के लिए भिजवा दी थी, क्योंकि इस मित्र ने ‘‘मेढ़क’’ के बदले एक अधिक शक्तिशाली पम्प देने का वायदा किया था। वर्षा के कारण वह गाड़ी कहीं फँस गयी और फिर न लारी मिली, न पम्प। वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने अपने अध्यक्ष की ओर देखा-गठा बदन, ठिंगना कद, फूला हुआ परेशान चेहरा और बच्चे की तरह नीली-नीली, भोली आँखें। फिर उसने दाढ़ी बढ़ाये हुए, बेफिक्र तिमोफेयेव की तरफ देखा। उसने इन दोनों ही आदमियों की ओर देखा, जो उसकी ही तरह भली-भाँति जानते हैं कि मुसीबत की असली जड़ लारियाँ नहीं, यह मौसम है और जो दिल से यह मानते हैं कि यह बातचीत बेकार चल रही है। और यह सब देख-समझ कर वलेंतिना को दोनों पर ही बड़ी तरस आयी।
इवान सेमियोनोविच ने फिर जोर दिया: ‘‘हाँ, तो वह सोलहवीं कहाँ है?’’
‘‘काम कर रही है। ये आँकड़े ठीक नहीं हैं।’’
‘‘इनकी जाँच कर ली जाए। वलेन्तिना गिओर्गियेवना, जरा सभी फोरमैनों की रिपोर्टें तो ले आओ।’’
वलेन्तिना गिओर्गियेवना बाहर चली गयी, वह उतनी ही परेशानी महसूस कर रही थी जितनी कि उसका अध्यक्ष। भीगे कपड़े पहने हुए ब्रिगेड-लीडर अभी भी बेंच पर बैठी हुई थी।
‘‘जबतक हमें यहाँ से चले जाने का हुक्म नहीं मिल जाता, मैं टलूँगी नहीं,’’
उसने कहा। ‘‘क्या आप समझते हैं कि हम कानून नहीं जानते? ऐसे ‘‘व्यस्त’’ अध्यक्ष हमने भी बहुत देखे हैं। एक बाद कोई आलू के महकमे का प्रधान हमारे फार्म के घोड़े लेकर अपना काम बनाने आया था। हमने उसे वह मजा चखाया था। जहाँ वह बैठता था, ठीक वहीं...।’’
‘‘अपनी भाषा सम्भालिये, जनाब।’’ वलेन्तिना ने उसे बीच में ही टोक दिया और उसे चोट इस बात से ज्यादा लगी कि वह लड़की एक विशाल निर्माण-कार्य के अनुभवी इंजीनियर की तुलना किसी आलू-वाले से कर रही है।
‘‘क्या बात है?’’ इवान सेमियोनोविच ने दरवाजे तक आकर पूछा।
‘‘यह मुझे आपसे मिलने नहीं देती,’’ ब्रिगेड-लीडर ने कहा। ‘‘हमारा वक्त खत्म हो गया है और हमारा खाना भी चुक गया है, और अब हमें अपने खेत के लिए खाद की ढुलाई करना है, लेकिन फोरमैन हमें जाने नहीं देता।’’
‘‘हुँह,’’ इवान सेमियोनोविच ने कहा। ‘‘ईमान से कहती हूँ। वह कहता है कि हमने अपना काम पूरा नहीं किया। गिट्टी के लिए अगर हमें मीलों दूर जाना पड़ेगा तो हम इतने समय में योजना के अनुसार काम कैसे पूरा कर सकते हैं? और हर बार जब नाला पार करते हैं, तो चढ़ाव पर हमें अपनी गाड़ी में एक घोड़ा और जोतना पड़ता है। ऐसे मौसम में गाड़ी चढ़ाना और कितना मुश्किल है?’’
‘‘हुँह,’’ इवान सेमियोनोविच ने फिर वही कहा।
‘‘ईमान से कहती हूँ। नदी किनारे एक मील दूर पर भी गिट्टी है। अगर वहाँ से हमें गिट्टी लाने को कहा गया होता तो कल तक हमने दिये गये काम से दुगना काम कर दिया होता। क्या आप समझते हैं कि हम उन गिट्टी मिलाने वाली मशीनों को खामोश खड़ा देख सकते थे और हाथ पर हाथ धरे बैठे रह सकते थे।’’
इवान सेमियोनोविच ने नरमी से कहा: ‘‘सभी तरह की गिट्टी काम की नहीं होती मेरी बिटिया! देखना होता है कि गिट्टी काफी सख्त है या नहीं। नरम पत्थर की गिट्टी से काम नहीं चलता।’’
‘‘यह आप जानें। खैर, आप खुद लिखेंगे या टाइप करायेंगे?’’
‘‘इतनी जल्दीबाजी न मचाओ,’’ इवान सेमियोनोविच ने ऊबड़-खाबड़ तरीके से उसके कन्धे पर थपथपाया मानों वह गर्म चूल्हा हो। ‘‘चलो, हम मित्रतापूर्वक काम करें और तीन दिन और एक दूसरे की मदद करें।’’
‘‘तीन दिन! हम लोग यह नहीं कर सकते।’’
‘‘ठहरो भी। तुम कोम्सोमोल की सदस्य हो कि नहीं? हालत क्या है, यह तुम खुद देख रही हो। काम को खत्म किये बिना तुम्हें नहीं जाना चाहिए। काम्सोमोल के सदस्य ऐसा नहीं किया करते। ऐसा करना उसके लिए बड़ी शर्म की बात होती है।’’
‘‘यह सब ठीक है, हमें शर्म नहीं आयेगी।’’
‘‘तुम्हारी बात मेरी समझ में नहीं आती। अगर मैं तुम्हारी जगह होता, तो जब तक पुल बनकर तैयार न हो जाता, मैं यहाँ डटा रहता। तुमने नहीं देखा कि कितने अच्छे नौजवान यहाँ काम कर रहे हैं। मिकेनिक, सर्वेयर, ड्राइवर-सभी नौजवान और खूबसूरत!’’
‘‘तुम्हारे ड्राइवरों से मुझे क्या लेना-देना है? मेरा अपना आदमी है,’’ ब्रिगेड-लीडर ने जरा भी पसीजे बिना कहा। ‘‘और अगर आप यहाँ से जाने नहीं देंगे, तो हम लोग आपकी इजाजत के बिना ही चले जाएंगे।’’
निर्माण-कार्य के अध्यक्ष के सामने गौर करने के लिए दर्जनों सवाल थे, फिर भी उसने इस लड़की को रुकने के लिए राजी करने में समय लगाया बिना यह बताये हुए कि परिस्थिति कितनी संगीन है या केन्द्रीय प्रबन्ध विभाग की ओर से कितना सख्त और अन्यायपूर्ण पत्र आया है। वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने देखा कि वह किस तरह लड़की को समझा रहा है, उससे अपनी आत्मा की आवाज सुनने की अपील कर रहा है, हँसी मजाक कर रहा है-हालाँकि जिस तरह उसे नाराज होना नहीं आता, उसी तरह मजाक करना भी नहीं आता है। उसके खिचड़ी बालों और विश्वासपूर्ण मुसकान को देखकर सेक्रेटरी को यह महसूस हुआ कि उसके अन्दर इस जिद्दी लड़की के खिलाफ गुस्सा बढ़ता जा रहा है।
आखिरकार इवान सेमियोनोविच ने हाथ झुलाया और हकलाते हुए कहा: ‘‘वलेन्तिना गिओर्गियेवना, हुक्म टाइप कर दो। मैं किसी को जबर्दस्ती नहीं रोक सकता,’’ और वह दफ्तर में चला गया।
जब दरवाजा बन्द हो गया तो वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने गुस्से से उबलकर कहा: ‘‘तुम्हें अपने ऊपर शर्म आनी चाहिए। तुम खुद देख रही हो कि मौसम कितना खराब है, लारियाँ फिसल-फिसल जाती हैं, और अध्यक्ष महोदय पिछले कुछ दिनों में कितने स्याह पड़ गये हैं। फिर भी तुम जाने की इजाजत माँगती हो। पुल की जरूरत तो तुम्हें ही है, हमें नहीं,’’ और उसके होंठ काँपने लगे।
आश्चर्य और भय में डूब कर वह लड़की बोली: ‘‘अच्छा, जाने दो। हम कल भी काम करते रहेंगे। लेकिन हमें जाने की इजाजत तो दे ही दो।’’
दीवाल पर खट-खट की आवाज हुई। वलेन्तिना गिओर्गियेवना अध्यक्ष के दफ्तर में गयी। सोलहवीं लारी के बारे में अध्यक्ष सब कुछ भूल गया सा लगता था, क्योंकि इस समय वह कुछ लिख रहा था और तिमोफेयेव जा चुका था।
‘‘यह कुछ... पत्रों और कागजों की सूची है...’’ इवान सेमियोनोविच ने बीच-बीच में रुकते हुए कहा, ‘‘मैं चाहता हूँ... तुम इन्हें निकाल कर मेरे लिए रख दो.. आज रात तक। मैं मास्को जा रहा हूँ।’’ और फिर एक दृढ़ निश्चय के भाव के साथ उसने पेन्सिल उछाल दी। ‘‘मैं उन्हें बताना चाहता हूँ कि ढुलाई के लिए हमें अब नावों की जरूरत है, लारियों की नहीं।’’
2
इवान सेमियोनोविच के मास्को जाने के बाद मौसम भी बदल गया। सूरज निकल आया और वलेन्तिना गिओर्गियेवना अब अपने प्रिय, सफेद जूतों को पहन कर आने लगी।
इवान सेमियोनोविच का दफ्तर अब खाली-खाली और खामोश था। खिड़की की देहरी पर रखे गुलदस्ते से सूखे हुए फूलों की पँखुड़ियाँ झर रही थीं।
उसके मेज पर पीतल के कप में खूबसूरती के साथ नुकीली पेन्सिलें रखी हुई थीं, जिनकी नोक ऊपर को थी।
जब इवान सेमियोनोविच बाहर होते तो वलेन्तिना गिओर्गियेवना बड़ी खिन्न रहती। ऐसे मौकों पर यह बिल्कुल स्पष्ट हो जाता था कि लोग उसमें दिलचस्पी महज इसलिए लेते हैं कि वह अध्यक्ष की सेक्रेटरी है। टाइप करने के लिए कुछ न था, दीवाल पर खट-खट करके कोई नहीं बुलाता था, टेलीफोन की घण्टी कभी कमरे में नहीं बजती थी। और उसे यह चिन्ता भी सता रही थी कि इवान सेमियोनोविच पर मास्को में अकेले-अकेले क्या बीत रही होगी तथा उसके लिए कागजात निकाल कर कौन रखता होगा।
भोजन के समय तक उसने दिन का काम खत्म कर दिया और फोरमैनों को याद दिला दी कि उनकी पाक्षिक रिपोर्ट आने का समय हो गया है। इसके बाद वह कुछ ताजे फूल चुनने चली गयी।
पुल इस दफ्तर से मील भर दूरी पर बन रहा था, खामोश पानी को चीरकर झाँकते हुए पुल के खम्भों को, ऊँचे कगार पर खड़े होकर, देखा जा सकता था। एक पर कोई काम नहीं हो रहा था ओर दो पर कारीगर लगे हुए थे और वलेन्तिना गिओर्गियेवना को वह वाक्य याद आ गया जो इवान सेमियोनोविच ने हाल में लिखवाया था: ‘‘सामान की कमी के कारण, कंक्रीट का सारा काम दूसरे और तीसरे खम्भों पर केन्द्रित किया जाय।’’
ऊबड़-खाबड़ ढेरों के ऊपर एक अस्थायी पुल नदी पर खिंचा हुआ था। इवान सेमियोनोविच ने इस पुल की डिजाइन दस मिनट के अन्दर सिगरेट के डिब्बे पर बना दी थी, और तब वलेन्तिना गिओर्गियेवना को पता था कि यह पुल थरथरा कर गिर जायगा। लेकिन वह जमा हुआ खड़ा था और उस पर नदी के किनारे से खम्भों तक छोटे-छोटे ट्रक आते-जाते दिखाई दे रहे थे। वे नींव के लिए पत्थर, कांक्रीट, धातुओं की पहिया, लोहे के कुन्दे, कीलें आदि ढोकर ला रहे थे, जिनकी सूची आदेश के साथ अठारह पृष्ठों में लगी हुई थी। वे साटिन की तरह नये चीरे गये एक-इंच मोटे तख्ते भी ढो रहे थे, जिनके लिए अभी कुछ दिन पहले वलेन्तिना ने टेलीफोन पर तार देने के लिए चीख-चीख कर कहा था: ‘‘एक इंची तख्ते फौरन उतरवाओ। उनके बिना कंक्रीट का काम रुका है।’’
वलेन्तिना ज्यों-ज्यों पुल के करीब पहुँची, निर्माण-कार्य की मिश्रित और आनन्दपूर्ण गर्जन में से अलग-अलग स्वरों को पहचानना सहज होता गया। दूसरे खम्भे पर कुदाली के फल गिरने की चमक के कुछ सेकण्ड बाद उस की चोटों की स्पष्ट आवाज-जिसमें कीलों के सिर पर पहली चोट की मंद्र ध्वनि से लेकर अन्तिम विजय सूचक निनाद तक, जब कील सिर तक अन्दर घुसेड़ी जा चुकी हो, स्वरों का सरगम शामिल था, आरे का क्रंदन-जो उस समय तो हल्का और अनिश्चित सा होता जब वह जिद्दी लोहा लकड़ी में घुसने से इनकार कर देता और उसे अँगूठे से ठीक करना पड़ता था, लेकिन यह क्रन्दन उस समय जोरदार और लगातार जारी हो जाता जब वह आरा हुकुम मान लेता और बुरादे की महीन फुहार सी छोड़ता हुआ तेजी पकड़ लेता; दक्षिणी किनारे पर ढेर ढोने वाली मशीनों की मनहूस थप्प-थप्प, कंक्रीट मिलानेवाली मशीन में पत्थरों की सिलों के चूर होने की रगड़, जिसे सुनकर खून सूख जाय, किनारे पर लगे हुए इंजिन की जल्द-जल्द छक-छक-कभी जोरदार और कभी हल्की, मानों वह कभी दूर भाग जाती हो और फिर वापस लौट आती हो, दाहिने किनारे पर लट्ठों की उतराई का चौंका देने वाला गर्जन।
और इन सभी नियमित गर्जनों, गुनगुनाहटों, घनघनाहटों का, जिसे इवान सेमियोनोविच ने कई दिन के हिसाब-किताब, तर्क-वितर्क, बहस और समर्थन के बाद चालू किया था, वलेन्तिना गिओर्गियेवना के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध था, इसी लिए वह बड़ा सुख अनुभव कर रही थी। पुराने बुरादे के गुदगुदे गर्दे, पैरों के नीचे से खिसक कर लुढ़क जाने वाले लट्ठों और पाँच टन की लारियों से बने गड्ढों को पार करती हुई वह आगे बढ़ रही थी। कभी-कभी लोग उसे अभिवादन करते, जिनके चेहरों के बारे में उसे कुछ याद नहीं है। वह बायें किनारे के काँपते हुए कगार पर चढ़ गयी, फिर वह लोहे की मेहराबें लादने वाली नावों के पास से गुजरी और अन्त में वह अपने परमप्रिय मैदान में पहुँच गयी जहाँ बटरकप और गुलबहार तथा कुछ छोटे-छोटे लाल फूल खिल रहे थे, जिन का नाम वह नहीं जानती।
इस मैदान के एक तरफ छोटी-सी खाड़ी थी और दूसरी तरफ छोटे-छोटे देवदार वृक्षों का उपवन जिनकी शाखाओं के अन्त में नुकीले क्रास के चिन्ह बने हुए थे। जब हवा बह जाती तो फूल नत-मस्तक हो जाते और इस तरह सिर हिलाते मानो वे आँख मिचौनी खेल रहे हों; और देवदार के वृक्ष विदूषक की तरह एक दूसरे के सामने शीश झुकाने लगते। निर्माण-कार्य की आवाजें यहाँ मुश्किल से ही सुनायी पड़तीं; जब कभी कोई लट्ठा उधर से बह निकलता, जिसके सिर पर खड़िया से नम्बर लिखा होता, तो उसे देखकर यह बोध होता कि कहीं नजदीक ही निर्माण-कार्य चल रहा है।
यहाँ फूल इकट्ठे हुए वलेन्तिना गिओर्गियेवना सपनों में डूब गयी। वह सपना देखने लगी कि इवान सेमियोनोविच को केन्द्रीय प्रबन्ध विभाग का अध्यक्ष बना दिया गया है और उसके दफ्तर में सिल्क के पर्दे टँगे हुए हैं तथा सेक्रेटरी को बुलाने के लिए घण्टी लगी हुई है; और पास के कमरे में फाइलें रखने की आल्मारियाँ सजी हुई हैं और हर आल्मारी में बढ़िया फोल्डर रखे हुए हैं जो अपने आप बन्द हो जाते हैं; और वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने पिछले वर्ष का कलेण्डर काटकर इन सभी फोल्डरों पर नम्बर चिपका दिये हैं; और इन फोल्डरों की संख्या इनती अधिक है कि अगर काम के घण्टों के बाद इवान सेमियोनोविच को किसी खास कागज की जरूरत होती है, तो वे वलेन्तिना को बुलाने के लिए कार भेजते हैं। सफेद तितलियाँ हवा में कागज के छोटे-छोटे टुकड़ों की तरह उड़ रही थीं और वलेन्तिना गिओर्गियेवना यह सपना देख रही थी। वह इवान सेमियोनोविच के साथ आठ वर्ष से काम कर रही थी और वह किसी और के साथ काम करने की कल्पना भी न कर सकती थी। इसके पहले दस वर्ष तक उसने एक टेक्निकल प्रकाशन गृह के टाइप विभाग में टाइप करने का काम किया था। युद्ध काल में यह विभाग तोड़ दिया गया और तब वह फौज के हेडक्वार्टर में गयी जहाँ उसने किसी भी हैसियत से काम करने की इच्छा प्रकट की। स्वयंसेवक के रूप में उसे इंजीनियरिंग दस्ते के कैप्टन इवान सेमियोनोविच गूर्येव का सेक्रेटरी बना दिया गया और तब से उसके साथ वह एक निर्माण-स्थल से दूसरे निर्माण-स्थल तक सफर करती रही। अपनी रुखाई-भरी आकृति और मेल-जोल न करने की प्रवृत्ति के कारण वह अपने साथ काम करनेवालों में से किसी को दोस्त न बना सकी। उसके एक मात्र ‘‘प्रेम-काण्ड’’ का अन्त भी विचित्र था। मोर्चे पर आने वाले अखबार में एक दिन एक मल्लाह का चित्र छपा जिसका चेहरा प्रसिद्ध हवाबाज वलेरी चकालोव से बहुत मिलता-जुलता था। इस मल्लाह की वीरता से प्रभावित होकर वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने उसके नाम पत्र की दो कापियाँ टाइप कीं। एक कापी उसने अपने पास रख ली और दूसरी उस अखबार की मार्फत उस मल्लाह के पास भेज दी। इस तरह पत्र-व्यवहार शुरू हुआ। उस समय वलेन्तिना गिओर्गियेवना फौजी सड़क विभाग में तिखविन के पास काम कर रही थी और खलासी लेनिनग्राद के पास लड़ रहा था। उनके पत्र जल्दी-जल्दी और नियमित रूप से आते रहे। एक पत्र में उस खलासी ने वलेन्तिना से उसका चित्र माँगा था और वलेन्तिना ने आनर्स बोर्ड पर लगे हुए अपने चित्र को काटकर उसके पास भेज दिया और उसके उत्तर की प्रतीक्षा में दिन गिनने लगी। उत्तर कभी न आया। इवान सेमियोनोविच को उसके सभी सीधे-सादे राज मालूम थे; उन्होंने भी उसे बहुत समझाने का प्रयत्न किया कि सम्भव है वह मल्लाह मारा गया हो-हालाँकि उन्हें खुद इस बात का विश्वास नहीं था।
काफी फूल इकट्ठे करने के बाद वलेन्तिना गिओर्गियेवना पानी के किनारे गयी और यह देखभाल करके कि कहीं कोई छिपकली तो नहीं बैठी है, वह एक लट्ठे पर बैठ गयी।
हल्के नीले आसमान और लहराते हुए बादलों के प्रतिबिम्ब के कारण उस जगह पानी अगाध प्रतीत होता था। सतह पर तैरती हुई कुमुदिनी की सुनहली पत्तियों के चारों ओर कभी-कभी हल्के से घेरे उतरा जाते और किसी मछली के स्पर्श से सफेद फूल सिहर उठते। बड़ी-बड़ी मक्खियाँ एक दूसरे का पीछा करते हुए उड़ रही थीं और उनके पंख भनभना रहे थे। गर्म माप से लदी हवा के कारण उस पार तट की रेखाएँ धुंधली लग रही थीं और उससे आगे कुहरे में झाँकता हुआ जंगल नजर आ रहा था।
वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने इस सब की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। सावधानी से फूल चुनकर, वह गुलदस्ता बनाने मे जुट गयी और अपने काम में इतनी लीन हो गयी कि उसे तिमोफेयेव के आने की आहट भी न मिल सकी।
‘‘अध्यक्ष के लिए बना रही हो?’’ उसने पूछा।
‘‘अध्यक्ष के दफ्तर में रखने के लिए,’’ वलेन्तिना ने उसके वाक्य को ठीक किया और तिमोफेयेव पर उड़ती हुई नजर डाली।
‘‘जल्दी ही आ रहे हैं?’’
‘‘हाँ। शायद परसों।’’
‘‘तुम उन्हें बधाई दे सकती हो। गिट्टी उठाने के काम को हम लगभग निर्धारित समय तक ले आये हैं। मौसम खुले रहने का यही फायदा है।’’
‘‘मौसम की खबरों से लगता है कि कल भी दिन सुहावना रहेगा।’’
‘‘तुम इन फूलों के साथ बेरहमी से क्यों पेश आ रही हो, वलेन्तिना गिओर्गियेवना?’’
‘‘मेरी उँगलियाँ दुख रही हैं। पता नहीं क्यों। शायद, मानसिक पीड़ा है। या शायद बहुत अधिक टाइपिंग का नतीजा है,’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने उसके स्वर से पसीजते हुए कहा।
तिमोफेयेव घास पर बैठ गया और वलेन्तिना की गोद से जो फूल गिर गये थे, उन्हें उठाकर उसे देने लगा।
‘‘तुम दाढ़ी क्यों नहीं बनाते?’’ वलेन्तिना ने पूछा और लजा गयी, और यह सोचकर काँप उठी कि कहीं वह उसकी तरफ देखने न लगे।
‘‘किसके लिए?’’
‘‘अपने लिए।’’
तिमोफेयेव एक क्षण सोच में पड़ गया और ठण्डी साँस भर कर रह गया। वह बोला: ‘‘क्या रखा है, और वक्त भी तो नहीं मिलता। अपने इस काम का कहीं ओर-छोर ही नजर नहीं आता। निर्माण-सामग्री वक्त से नहीं मिलती और अब उन लोगों ने पेट्रोल की आखिरी किश्त भी दे दी है। ट्रैक्टर किसी भी मौसम में काम कर सकते हैं, लेकिन लारियों के लिए एक-एक मिनट कीमती होता है। कल उनसे काम न हो सकेगा।’’
‘‘सचमुच?’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने सूखे स्वर में कहा, क्योंकि तिमोफेयेव के शब्दों में उसे इवान सेमियोनोविच की आलोचना की गन्ध आयी।
‘‘हाँ, सचमुच। हम सब लोग भले आदमी हैं, लेकिन हम लोग मिलकर काम नहीं कर रहे हैं। हम लोग एक मुट्ठी की तरह नहीं हैं, पाँचों उँगलियों की तरह अलग-अलग हैं। कोई दिमाग नहीं। हमारा दिल तो इसीलिए दुखता है।’’
वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने कुछ खीझ के स्वर में कहा: ‘‘बस धन्यवाद, अब मुझे और अधिक फूलों की जरूरत नहीं है।’’
‘‘अच्छा जाने दो।’’ तिमोफेयेव उठ बैठा और पुल की तरफ चला गया।
वलेन्तिना गिओर्गियेवना उस समय तक बैठी रही जब तक तिमोफेयव पहाड़ों के पीछे ओझल नहीं हो गया। फिर वह भी उठ बैठी और काम पर वापस चली गयी। इस शाम काम बहुत थोड़ा था, इसलिए वह शीघ्र ही गाँव लौट आयी, ब्लाउज पर लोहा किया, चेखव की किताब पढ़ी और फिर सोने के लिए लेट गयी।
जब वह ऊंघ रही थी, उसे यकायक ख्याल आया कि अध्यक्ष ने जाने से पहले उससे जो रिपोर्ट टाइप करायी थी, उसमें 127 घन गज कंक्रीट के बजाय, उसने 107 घन गज टाइप कर दिया है। वह चारपाई से कूद पड़ी, जल्दी से कपड़े पहने और, हालाँकि उसे अँधेरे में डर लगता है, फिर भी वह दफ्तर पहुँची और उस रिपोर्ट की कापी पर एक नजर डाली। सभी कुछ ठीक था: उसने 127 घर गज कंक्रीट ही लिखा था।
बड़े संतोष की साँस लेकर जब वलेन्तिना गिओर्गियेवना घर लौटी, तो काफी देर हो गयी थी। उधर पुल पर, ढेर उठाने वाली मशीनें मनहूसियत के साथ थक-थक कर रही थीं।
3
दो दिन बाद इवान सेमियोनोविच वापस लौटे और अपने साथ एक और व्यक्ति को लाये। वलेन्तिना गिओर्गियेवना तुरन्त इतने अधिक छोटे-बड़े कामों में व्यस्त हो गयी कि उसे उस दूसरे व्यक्ति की तरफ ध्यान देने की फुर्सत ही न मिली। उसने सिर्फ इतना देखा कि जब वह कमरे में प्रवेश करता है तो अपने सिर को एक तरफ झुका लेता है। और अपनी सूट कोट के नीचे एक वास्कट भी पहनता है। अगले दिन बड़े भोर वह इवान सेमियोनोविच के साथ आया और इस बार उसने जरा अच्छी तरह उसको देखा। वह पैंतीस या अड़तीस वर्ष का लम्बा और मजबूत व्यक्ति था ओर उसके बाल झड़ रहे थे। वह रंग-उतरा काला कोट, वास्कट और पतलून पहने हुए था और पतलून के पाँयचे नकली चमड़े के बूटों में ठूँसे हुए थे। वास्कट की जेब में एक पैमाना-रेखक था। उसका चेहरा और हाथ इस तरह ताँबे जैसे रंग के हो गये थे, मानो वह अभी-अभी किसी ग्रीष्म-विश्राम गृह से लौटा हो, उसकी उँगलियों पर बड़े-बड़े रोयें थे।
यह अजनबी इवान सेमियोनिविच के साथ दफ्तर में गया। इवान सेमियोनिविच ने दरवाजा बन्द करते हुए अपनी सेक्रेटरी का आदेश दिया कि किसी को अन्दर न आने दिया जाय।
‘‘बहुत अच्छा,’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने उत्तर दिया। काम की परीक्षा और निरीक्षण करने के लिए केन्द्रीय प्रबन्ध-विभाग अक्सर लोगों को भेजता था; वह इस की आदी थी।
भोजन-काल के बाद वह ‘‘आग लगने से रोकने के उपाय’’ टाइप कर रही थी, तभी तिमोफेयेव आया।
उसने अध्यक्ष के कमरे की ओर आँखों से इशारा करते हुए, फुस-फुसाकर पूछा :
‘‘नया अध्यक्ष तुम्हें कैसा लगा?’’
‘‘क्या मतलब?’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने अनभिज्ञता प्रकट की। ‘‘तुम अभी तक भाँप नहीं पायीं?’’ तिमोफेयेव ने आश्चर्य से कहा। ‘‘इवान सेमियोनोविच उसे हर चीज सुपुर्द कर रहे हैं।’’
और यकायक वलेन्तिना गिओर्गियेवना की समझ में आ गया कि इवान सेमियोनोविच ने उससे तमाम नक्शे, दस्तावेज और हिसाब-किताब की रिपोर्टें लाने के लिए क्यों कहा था और क्यों यह आदेश दिया था कि किसी का अन्दर न आने दिया जाय। उसने टाइप करना जारी रखने की कोशिश की, लेकिन हर पंक्ति में गलतियाँ होने लगीं और अन्त में हार मानकर बन्द कर दिया।
यह कोई पहला मौका नहीं है जब इवान सेमियोनोविच का तबादला एक निर्माण-स्थल से दूसर जगह हो रहा है, लकिन हर अवसर पर इस बात की जानकारी सबसे पहले वलेन्तिना गिओर्गियेवना को ही हुआ करती थी। अध्यक्ष उसे अपने कमरे में बुलाते थे और बता देते थे कि फलाँ दिन फलाँ जगह जाना होगा और इसके बारे में फिलहाल वह किसी से कुछ न कहे-साथ ही जाने की तैयारी करने के लिए हिदायतें दे देते थे।
वलेन्तिना गिओर्गियेवना को यह बात अपमानजनक मालूम हुई कि इसकी जानकारी उसे तिमोफेयेव से हो रही है। नया अध्यक्ष जब चला गया तो वह निश्चयपूर्वक उठी और हमेशा की तरह दरवाजा खटखटाये बिना इवान सेमियोनोविच से बातें करने चली गयी।
इवान सेमियोनोविच लिख रहे थे। लेकिन अपनी हमेशा की कुर्सी पर न बैठकर, वे एक ओर एक स्टूल पर बैठे थे। वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने प्रवेश पर उन्होंने एक नजर उसकी तरफ देखा और अपना खिचड़ी सिर और नीचे झुकाकर एक शब्द कहे बिना फिर लिखने में जुट गये।
‘‘इवान सेमियोनोविच, क्या हम लोग यहाँ से जा रहे हैं?’’ उसने पूछा।
धीरे-धीरे अध्यक्ष ने सिर उठाया और बेचैनी के साथ उसकी तरफ देखा।
‘‘लगता है, जाना ही पड़ेगा,’’ उसने कहा। ‘‘कोई चारा नहीं। मुझे केन्द्रीय प्रबन्ध कार्यालय में टेक्निकल विभाग का अध्यक्ष बना दिया गया है। निर्माण-कार्य के लिए शायद मैं बूढ़ा हो गया हूँ। कोई चारा नहीं। क्या मजे की बात है, क्यों; बुढ़ापा, बिना चेतावनी दिये, न जाने कब सवार हो जाता है?’’
और वे हल्की-सी उदास हँसी हँस पड़े।
‘‘हम लोग कब जायेंगे?’’
‘‘देखो, वलेन्तिना गिओर्गियेवना,’’ अध्यक्ष ने अपने सामने रखे पत्रों को बड़ी सावधानी से शुद्ध करते हुए कहा, ‘‘मेरा ख्याल है कि इस बार मैं अकेला ही जाऊँगा। केन्द्रीय प्रधान कार्यालय के अध्यक्ष का कहना है कि निर्माण-स्थल से मैं किसी भी व्यक्ति को अपने साथ न ले जाऊँ। कोई चारा नहीं।’’
‘‘मुझे भी नहीं?’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने आश्चर्य से कहा।
‘‘चलो देखा जायगा,’’ इवान सेमियोनोविच उठे और उसके कन्धे उसी तरह थपथपाने लगे जैसे उन्होंने उस ब्रिगेड-लीडर लड़की के कन्धे थपथपाये थे। ‘‘तुम कुछ दिन यहाँ काम करो, फिर मैं बुला लूँगा। फिलहाल मैं यह नहीं कर सकूँगा। लेकिन मुझ बूढ़े आदमी के पीछे-पीछे फिरने से-और दम-घोंटू शहर में-फायदा ही क्या है?’’
‘‘मैं नहीं जानती,’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने चकित होकर कहा।
‘‘निर्माण-कार्य में दूसरी ही बात होती है,’’ इवान सेमियोनोविच ने बात जारी रखी, ‘‘नदी, मैदान, जंगल, ताजी हवा...’’
दूसरे दिन अपना सामान बाँधने के लिए इवान सेमियोनोविच घर ही रहे और नया अध्यक्ष, नेपैवौदा, दफ्तर में आकर जम गया। वलेन्तिना गिओर्गियेवना दफ्तर आयी तो उसने उसे पहले से वहाँ बैठा पाया। दफ्तर का दरवाजा खुला पड़ा था।
‘‘वलेन्तिना गिओर्गियेवना,’’ नये अध्यक्ष ने उसके नाम के एक-एक अक्षर को बड़े सुघड़ तरीके से उच्चारित करते हुए बुलाया।
‘‘हे भगवान, उसे मेरा नाम और पैतृक नाम पहले से ही मालूम है’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने चौंक कर अपने आप से कहा और जल्दी ने करने का प्रयत्न करते हुए दफ्तर के अन्दर गई।
नेपैवोदा अपने रोम भरे हाथ डेस्क पर टेके बैठा हुआ था और वह डेस्क उससे कहीं छोटा मालूम पड़ रहा था, जब इवान सेमियोनोविच उसके सामने बैठता था। नये अध्यक्ष ने सिर एक तरफ झुकाये हुए, उसकी तरफ देखा जिससे उसकी दृष्टि में व्यंग्य का आभास होता था।
‘‘कहिए?’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने सूखे स्वर में कहा।
नेपैवौदा ने उसकी नाक की तरफ देखा-इतनी देर तक इतनी टकटकी लगाकर ओर ऐसी पैनी नजर से देखा कि उसे अपनी नाक की नोक पर दर्द महसूस होने लगा।
‘‘ये रंगीन पेन्सिलें, कृपा कर, यहाँ से उठा ले जाइए,’’ नेपैवोदा ने कहा। ‘‘तस्वीरें बनाने के लिए मेरे पास फुर्सत नहीं। मेरे लिए एक पेन्सिल काफी है।’’
‘‘बहुत अच्छा,’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने कहा।
‘‘एक बात और। उस कोने में एक हैण्ड-वाशर लगाने के लिए कहो।’’
‘‘क्या चीज?’’
‘‘हैण्ड-वाशर। हाथ धोने का साज-सामान।’’ नया अध्यक्ष अपनी लम्बाई के साथ उठ खड़ा हुआ और उसकी छाया वलेन्तिना गिओर्गियेवना के पैरों पर पड़ने गी। वह एक ओर को हटी। ‘‘और एक घड़ा या पानी का टब। साबुन और तौलिया में खुद ले आऊँगा।’’
‘‘यह हैण्ड-वाशर मुझे कहाँ मिलेगा?’’
‘‘यह भी समस्या है! ये क्या मिलते नहीं? नहीं मिलते, तो उन्हें तेल का खाली टिन और छः इंची कील लाने को कहो और मैं खुद हैण्ड-वाशर बना लूँगा।’’
‘‘बहुत अच्छा,’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने कहा।
‘‘और फिर इसे हुक्म के रूप में टाइप कर दो।’’ उसने एक कागज का पुर्जा दिया, जिस पर घसीट लिखावट में कुछ लिखा हुआ था। ‘‘इसे सभी विभागों के पास भिजवा दो। आज ही।’’
और नेपैवोदा की आँखों ने कहा, ‘‘बस। इतना ही काम है।’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना खिसक गयी।
वह अपनी मेज पर जा बैठी और उँगलियों के सिरों पर के खोल चढ़ाकर टाइप करने बैठ गयी:
‘‘आदेश संख्या 69
ओत्रादनोये, 26 जून 19..
वलोवाया नदी पर पुल-निर्माण-कार्य के अध्यक्ष ने, केन्द्रीय प्रबन्ध कार्यालय के तारीख 21 जून 19... के आदेश संख्या 3751 ओ. क. के अनुसार, आज से कार्य भार सम्भाला...’’
वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने उँगलियों पर से रबर के खोल उतारे, तीनों कापियों पर ‘‘मूल से मिला लिया गया’’ लिखा और फूट-फूटकर रो पड़ी।
4
इवान सेमियोनोविच के चले जाने के बाद, निर्माण-स्थल की हर चीज में उलट-फेर हो गया। बायें किनारे के फोरमैन से लारी छीन ली गयी और उसे कंक्रीट के काम का फोरमैन बना दिया गया, दायें किनारे के पास की खुदाई बन्द कर दी गयी, दायें किनारे के फोरमैन को पत्थर तुड़ाई के काम का फोरमैन बना दिया गया और लगभग साठ कारीगरों को पत्थर की खान की तरफ जाने वाली सड़क को सुधारने में लगा दिया गया। ट्रैक्टर आदि अन्य मशीनों का चलना बन्द हो गया, क्योंकि नये अध्यक्ष ने हुक्म दे दिया कि पाँच टन पेट्रोल, किसी असाधारण स्थिति में इस्तेमाल करने के लिए, अलग रख दिया जाय। शेष के बाँटने का काम तिमोफेयेव को सौंप दिया गया जो लारियों के अलावा किसी और काम के लिए पेट्रोल नही देता था। नये अध्यक्ष को, किसी तरह, नदी के किनारे बनी हुई गिट्टी की खान की खबर लग गयी थी-शायद यह वही खान थी जिसका जिक्र उस ब्रिगेड-लीडर लड़की ने किया था। उसने वहाँ से एक बोरा मिट्टी मँगवायी, उसे अपने दफ्तर के फर्श पर फैला दिया और उसका नमूना विश्लेषण के लिए भेज दिया। उसने गिट्टी की खान से लेकर निर्माण-स्थल तक घोड़ों पर सवार होकर चक्कर लगाना शुरू कर दिया। कीचड़ और सीमेण्ट की गर्द से भरा हुआ, जब वह दफ्तर लौटता तो कमर से ऊपर सारे कपड़े उतार कर वह अपनी सफाई करने में जुट जाता और सारी दीवार को पानी के छींटे से भिगो देता।
चन्द घण्टे, जब वह दफ्तर में बैठता तो दफ्तर के दरवाजे बिल्कुल खुले पड़े रहते, वह हर एक से मिलता और उसे जब किसी चीज की जरूरत होती तो वह इवान सेमियोनोविच की तरह दीवाल पर खट-खट न किया करता, बस, पूरी आवाज से चिल्ला उठता, ‘‘वलेन्तिना गिओर्गियेवना!’’ जिला कार्यकारिणी और जिलापार्टी केदफ्तर के लोग उससे मिलने के लिए आने लगे-जो पहले कभी नहीं आते थे। नेपैवोदा उनसे फौरन ही घुल-मिल जाता, वह उन्हें अक्सर टेलीफोन करता और दहाड़ मार-मार कर फोन पर हँसता।
हालाँकि नयी व्यवस्था में तिमोफेयेव का महत्व बढ़ गया था, लेकिन फिर भी नया अध्यक्ष उसे हमेशा फटकारा करता। एक दिन अध्यक्ष ने पेट्रोल का पीपा ध्ूाप में पड़ा देखा। उसने फौरन तिमोफेयेव को बुला भेजा और उसको पेट्रोल-घर के सामने यह वाक्य लिखकर टाँग देने के लिए कहा: ‘‘अगर पेट्रोल का एक पीपा एक दिन धूप में पड़ा रहे, तो जितना पेट्रोल उड़ जाता है, उससे तीन-टन बोझ ढोने वाली लारी पैंतीस मील चल सकती है।’’ तिमोफेयेव को इस पर विश्वास तो नहीं हुआ, लेकिन फिर भी उसने उसे लिखवाया और खुद अपने हाथों से टाँगा। अध्यक्ष ने ‘‘मेंढक’’ को अदला-बदला की बात भी पकड़ ली। उसने वह नया पम्प वापस मँगवा लिया और लाने का खर्चा तिमोफेयेव की तनख्वाह से कटवा दिया। उस बात पर बहस करने के लिए तिमोफेयेव आया, लेकिन अध्यक्ष ने उससे, दाढ़ी बनाकर आये बिना, बात करने से इनकार कर दिया। तिमोफेयेव दाढ़ी बनाकर आया, मगर फिर भी फैसला टस से मस न हुआ।
वलेन्तिना गिओर्गियेवना को लगा कि नये अध्यक्ष से सभी लोग उतने ही असंतुष्ट हैं, जितना कि वह खुद, और उसी की तरह इवान सेमियोनोविच को वापस पाने के लिए उत्सुक हैं। वलेन्तिना को इवान सेमियोनोविच की कमी बुरी तरह खटकती थी और एक दिन जब मास्को से प्राप्त हुए नक्शे पर टेक्निकल विभाग के अध्यक्ष की हैसियत से इवान सेमियोनोविच के हस्ताक्षर दिखायी दिये, ता उसे इतनी प्रसन्नता हुई मानो उसे खत ही मिल गया हो। बड़ी देर तक वह सोचती रही कि अपने आनन्द को किससे मिल कर बाँटे और अन्त में उसने पाशा को बुलवा भेजा।
‘‘तुम यह दस्तखत पहचाहती हो?’’ उसने बड़े रहस्यमय स्वर में कहा।
पाशा नहीं पहचान सकी।
‘‘ये इवान सेमियोनोविच के हैं। वे अब मास्को में काम कर रहे हैं और निर्माण के काम के नक्शे देश भर में भेजते हैं।’’
‘‘अच्छा यह बात है,’’ पाशा ने सावधानी से कहा और फिर जरा रुककर पूछा: ‘‘सफाई अभी कर दूँ या थोड़ी देर बाद?’’
वलेन्तिना गिओर्गियेवना को उसके इस रुख से चोट लगी और उसने नक्शा अलग रख दिया, लेकिन जब तिमोफेयेव आया तो वह उसे फिर निकाले बिना न रह सकी।
‘‘यह दस्तखत पहचानते हो?’’ वह पूछ बैठी।
‘‘जरूर। बुड्ढा अब ठीक जगह पहुँच गया है। जरा, इधर को दिखाना।’’ उसने नक्शे को गौर से देखा। ‘‘जरा देखो तो, उन्होंने हमारे लिए क्या योजना बनायी है: अलकतरा और बालू मे मिश्रण की तह पाँच इंच मोटी। उनके दिमाग का कोई पुर्जा जरूर ढीला पड़ गया है। इतना हम लोग कभी कर सकेंगे?’’
‘‘जाहिर है, टेक्निकल दृष्टि से यही आवश्यक होगा।’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने जरा सख्त स्वर में कहा। ‘‘इवान सेमियोनोविच जो कुछ करते हैं, पक्का करते हैं।’’
‘‘होगा। अगर टेक्निकल दृष्टि से यह आवश्यक होगा, तो हमें यह करना ही होगा।’’ तिमोफेयेव ने चापलूसी के साथ कहा। ‘‘हालत अब बेहतर हो रही है।’’
वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने उफनते हुए कहा: ‘‘बेहतर इसलिए हो रही है कि पानी बरसना बन्द हो गया है।’’
‘‘पानी बरसना बन्द हो गया है और हम लोग जरा ज्यादा अक्ल से काम कर रहे हैं। हर चीज ढुलाई पर केन्द्रित कर दी गयी है, जो आज भी हमारे काम का सबसे कमजोर हिस्सा है।’’
‘‘तुम्हें तो सिर्फ आलोचना करने से मतलब रह गया है। तुम्हारी ही सुनवाई हो रही है। लेकिन जो कुछ फोरमैन लोग कहते हैं, वह भी तो जाकर सुनो।’’
‘‘वे कुछ नहीं कहते। पहले वे बहुत कुछ कहा करते थे, लेकिन अब उनके पास इसके लिए फुर्सत नहीं है-खूब व्यस्त हैं।’’
तिमोफेयेव के शब्दों से वलेन्तिना गिओर्गियेवना को ठेस लगी। इवान सेमियोनोविच की मधुर स्मृतियों को अगर तिमोफेयेव नहीं सँजोये रह सकता, तो फिर कौन रहेगा? नये अध्यक्ष के आने के बाद से तिमोफेयेव अब एक घड़ी भी चैन से नहीं बैठ पाता। और वही तिमोफेयव यहाँ दाढ़ी बनाये, मुस्कुराता हुआ इस विश्वास के साथ खड़ा हुआ है कि ढुलाई का काम चाहे कितना भी दिया जाय, वह उन सोलह लारियों से पूरा कर देगा।
उन दिन वलेन्तिना गिओर्गियेवना के मन में भयंकर अभिलाषा जागृत हुई काश, कि फिर पानी बरसने लगे। दो असमान परिस्थितियों में दोनों अध्यक्षों की तुलना करना नयायसंगत नहीं है। अगर पानी फिर बरसने लगे और लारियाँ फिर कीचड़ में फँसने लगें, गिट्टी की खानों में फिर पानी भर जाय, और कंक्रीट मिलाने वाली मशीन बन्द हो जाय, तब सभी को मालूम हो जाएगा कि इवान सेमियोनोविच, नेपैवोदा की तुलना में, कितने अच्छे हैं।
और वलेन्तिना गिओर्गियेवना वर्षा की प्रतीक्षा करने लगी।
सामूहिक फार्म के जिस किसान के यहाँ वलेन्तिना तथा अन्य दो लड़कियाँ, जो नक्शा बनाने का काम करती थीं, ठहरी हुई थीं, उस किसान ने कहा कि अगर बतख एक पैर पर खड़ी होने लगे तो यह सर्दी और वर्षा की निशानी होती है। सुबह काम पर जाते समय, जब वलेन्तिना गिओर्गियेवना बाड़े को पार करती तो मन में अपने आपसे घृणा करती हुई, वह उन बतखों पर विशेष ध्यान देती। वह बतखों के पास पहुँचती तो वे धीरे-धीरे क्वेक-क्वेक बोलने लगतीं मानों उन्हें भी यह मालूम है कि वलेन्तिना क्या सोच रही है।
एक सुबह जब उसकी नींद टूटी तो उसने देखा कि सामूहिक खेतिहर लैम्प जलाकर नाश्ता कर रहे हैं। कमरे में इतना अँधेरा था कि उनींदी अवस्था में उसे लगा कि अभी भी शाम है। पहली चीज, जिस पर उसकी नजर पड़ी, वह एक कौआ था, वह पड़ोस के मकान के छप्पर के नीचे सिकुड़ा हुआ बैठा था और कुत्ते की तरह काँप रहा था। वर्षा बड़े जारे से हो रही थी। घर की मालकिन बड़े ताव में संदूक से बूट ओर बूटों पर चढ़ाने के लिए रबर के गोलोश निकाल रही थी। वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने जल्दी से कपड़े पहने, एक छतरी खोली और किसी गीत की धुन गुनगुनाती हुई दफ्तर की तरफ चल पड़ी।
अध्यक्ष का दफ्तर तमाम लोगों से भरा हुआ था।
इंजीनियरों को सड़क सुधारने का काम दिया गया। असाधारण परिस्थिति के लिए रखे गये पेट्रोल से भरकर ट्रैक्टरों को सबसे बुरी जगहों पर रख दिया गया ताकि लारियों के फँसने पर, उनके जरिए उन्हें निकाला जा सके। पुल के खम्भों के ऊपर छप्पर बनाने और हर हालत में कंक्रीट का काम जारी रखने का हुक्म दिया गया। अध्यक्ष ने मास्को को टेलीफोन करने का प्रयत्न किया, लेकिन लाइन खराब थी। हर जगह ऐसी उथल-पुथल मच गयी कि वलेन्तिना गिओर्गियेवना के सिर में दर्द होने लगा। अन्त में अध्यक्ष उठ गया, दफ्तर खाली हो गया और वलेन्तिना गिओर्गियेवना अपने रोज के काम में जुट गयी।
घण्टे दो घण्टे में अध्यक्ष भीगा और कीचड़ से लिथड़ा हुआ वापस आया और उसने एक बार फिर मास्को को फोन करने की कोशिश की, लेकिन सफलता न मिली। उसने हाथ-मुँह धोया और उसी समय एक तार लिख दिया। अध्यक्ष ने चारों तरफ पानी के छींटे छिटकाते हुए बोलना शुरू किया: ‘‘लिखो-‘अत्यावश्यक। नाम।’ लिख लिया? ‘वलोवाया के किनारे की गिट्टी खान का नमूना भेजे हुए एक सप्ताह हो गया और अभी जवाब नहीं मिला।’ विराम। लिख लिया? ‘देखने से यह गिट्टी कंक्रीट के लिए उपयुक्त मालूम होती है। विराम। विश्लेषण के परिणामों को कृपया तार द्वारा भेजिये वरना विश्लेषण के बिना ही हम वह गिट्टी इस्तेमाल करने लगेंगे। विराम। आपकी देरी अब जरा भी बर्दाश्त नहीं की जा सकती।’’
‘‘यह तार क्या केन्द्रीय प्रबन्ध विभाग को भेजा जा रहा है?’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने चतुराई के साथ यह बताने की कोशिश की कि इसकी भाषा बड़ी अशिष्ट है। लेकिन अध्यक्ष ने उसकी बात समझी ही नहीं।
‘‘हाँ, क्या?’’ उसने अपने मोजे निचोड़ते हुए कहा।
‘‘कोई खास बात नहीं,’’ उसने कहा और मन में सोचने लगी, ‘‘मुझे क्या चिन्ता है?’’ फिर जोर से उसने कहा, ‘‘मैंने लिख लिया है: ‘अपकी देरी अब जरा भी बर्दाश्त नहीं की जा सकती।’ ’’
‘‘ठीक। ‘भविष्य में सरकारी चिट्ठियाँ भेजने के बजाय, कृपया, शीघ्रतापूर्वक व्यावहारिक सहायता भेजा कीजिये। नेपैवोदा।’ बस। और जरा अपने टेक्निकल विशेषज्ञ को बुलावाओ।’’
‘‘मेरा ख्याल ठीक निकला,’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना अपने टाइपराइटर के सामने बैठते हुए सोचने लगी। ‘‘जरा सा पानी बरसा कि वह सौ रूबल का तार मास्को भेजने लगा।’’ जब तार टाइप हो गया, तो उस पर दस्तखत कराने के लिए वह अध्यक्ष के दफ्तर में गयी, नेपैवोदा ने पेन्सिल उठायी लेकिन किसी विचार ने उसके हाथ रोक लिये ओर उसने टेक्निकल विशेषज्ञ से कहा:
‘‘अगर विश्लेषण करने में उन्हें इतना ज्यादा वक्त लगा है तो यह तार भेजने में कोई सार नहीं मालूम होता। हफ्ते भर में हमें पुल के खम्भे बनाकर तैयार करने की आवश्यकता है, न कि विश्लेषण की। तुम्हें पता है कि इस खान की गिट्टी को, पहले वे लोग कब ले गये थे?’’
टेक्निकल विशेषज्ञ ने बताया कि उसे पता नहीं है।
‘‘तुम्हें भी पता नहीं है क्या?’’
वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने बताया कि उसे भी पता नहीं है।
‘‘गाँव में पूछताछ करने किसे भेजा जाय?’’ नेपैवोदा ने पूछा ‘‘यथा-सम्भव शीघ्र ही।’’
किसे भेजा जा सकता है, इस पर वे विचार करने लगे। लेकिन बुरे मौसम के कारण सभी बहुत व्यस्त थे। दफ्तर में सिर्फ एक टेक्निीशियन ही था, वह जुलाई के लिए नयी योजना बना रहा था, जो बहुत पहले तैयार हो जाना चाहिए थी। हर आदमी व्यस्त था। अध्यक्ष ने वलेन्तिना गिओर्गियेवना की तरफ देखा।
यकायक उसने पूछा: ‘‘तुम घोड़े पर सवारी कर लेती हो?’’
‘‘क्या?’’ वलेन्तिना ने आश्चर्य से पूछा।
‘‘नहीं। मेरा ख्याल है, तुम नहीं जानती।’’ उसने निराश भाव से कहा, ‘‘मैंने सोचा, शायद तुमने फौज में रहकर सीख लिया हो।’’
‘‘फौज में, मैंने हमेशा कार में सफर किया है। इवान सेमियोनोविच मुझे हमेशा अगली सीट पर ड्राइवर के साथ बैठाते थे।’’ और उसने बड़े घमण्ड के साथ अपनी आँखें आधी मींच ली।
‘‘लेकिन ऐसे मौसम में कार में सफर नहीं किया जा सकता।’’ अध्यक्ष ने खिड़की से बाहर देखते हुए कहा। ‘‘क्या तुम गाँव तक पैदल जा सकती हो और उस गिट्टी की खान के बारे में स्थानीय लोगों से अथवा सामूहिक फार्म के अध्यक्ष से पता लगा सकती हो?’’
‘‘कर सकती हूँ,’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने कन्धे उचका कर कहा। अगर इंजीनियरों को सड़के सुधारने के लिए भेजा जा सकता है, तो उसे चपरासी क्यों नहीं बनाया जा सकता।
‘‘लेकिन तुम्हें पैदल जाना होगा।’’
‘‘जाहिर है।’’
अपने कमरे में जाकर वह बाहर आँधी की चीख सुनने लगी, उसने बूट चढ़ाये और उठे हुए कन्धों का हल्का कोट पहना, कालर खड़ा कर दिया और छाता लेकर बाहर निकल पड़ी।
अध्यक्ष ने पुकारा, ‘‘वलेन्तिना गिओर्गियेवना!’’
वह थोड़ा-सा मुड़ी, मगर उसकी आँखों से अपनी आँखें नहीं मिलाना चाहती थी।
‘‘निश्चय ही तुम इस तरह नहीं जाओगी?’’
‘‘किस तरह?’’
‘‘तुम सराबोर हो जाओगी। एक मिनट ठहरो।’’
वह एक सख्त सी, बड़ी बरसाती ले आया, जिस पर फौजी बटन लगे हुए थे ओर अन्दर की तरफ बड़े अक्षरों में कोई संख्या लिखी थी। उसमे तम्बाकू की गन्ध आ रही थी।
‘‘इसे पहन लो,’’ अध्यक्ष ने उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा।
लम्बे कद की वलेन्तिना गिओर्गियेवना के लिए भी यह बरसाती बहुत बड़ी थी। अध्यक्ष ने उसके बटन लगा दिये, आस्तीनें उलट दीं और सिर के आवरण को उसके हैट पर लगा दिया।
‘‘अब ठीक रहेगा। अपना छाता यहीं छोड़े जाओ। अगर इस गाँव में कुछ पता न चले, तो अगले गाँव चली जाना। अच्छा, मेरी शुभकामनाएँ लो।’’
वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने कागज में लिपटी हुई सैंडविच जेब में डाली और चल दी।
गर्जन और बिजली के चमक के बिना ही, पानी लगातार धीरे-धीरे बरस रहा था-ठोस, और अभेद्य झड़ी लगी हुई थी। सामने कठिनाई जान पड़ती थी। नदी फेन के कारण सफेद हो गई थी और खौलती-सी नजर आयी पानी सोख कर सड़क फिसलनी हो गयी थी, इसलिए वलेन्तिना गिओर्गियेवना नाली की खाई में कूद पड़ी। वहाँ चलना आसान था। छोटे-छोटे गीले मेंढक, जो अचारों-से दीख रहे थे, उससे पाँव-तले से उछल पड़े। सिर पर बरसाती के आवरण पर बूँदें इस तरह टप-टप कर रही थीं, मानो छप पर गिर रही हों, लेकिन एक भी बूँद अन्दर नहीं घुस पाती थी और इस विराट बरसाती को ओढ़कर भीगे-भीगे खेतों के बीच चलने में वलेन्तिना गिओर्गियेवना को बड़ा मजा आया-‘‘मानो मैं किसी खेमे के अन्दर हूँ,’’ उसने जरा सा सिहरते हुआ सोचा।
जिस घर में वह रहती थी, उसके मालिकों को यह देखकर बड़ा आश्यर्च हुआ कि वह दफ्तर के वक्त यहाँ आ गयी है। उस गिट्टी की खान के बारे में उनके पास कोई सूचना नहीं थी-दरअसल, उन्हें उसके अस्तित्व का भी कोई ज्ञान न था। जाहिर है, उस खान को बरसों पहले त्याग दिया गया होगा। उस घर के स्वामी ने उसे सलाह दी कि वह सड़क बनाने वाले कारीगर के पास जाये, जो गाँव के छोर पर रहता है।
यह कारीगर हँसमुख नौजवान निकला। उसने एक नक्शा निकाला जिस में एक-एक सूत का हिसाब बारीकी से दिया गया था और उस पर उस खान को अंकित करने वाला निशान उसने खोज निकाला, जिसके नीचे उस खान की गिट्टी का परिमाण भी लिखा था (लगभग 176, 500 घन फुट)। लेकिन उसने बताया कि सड़क बनाने के लिए इस खान का उपयोग कभी नहीं किया गया। उसे यह जानकारी भी न थी कि कब और किस उद्देश्य के लिए इस खान में काम शुरू किया गया था और उसने यह भी विश्वास दिलाया कि गाँव में किसी को इसकी जानकारी न होगी।
‘‘ ‘सुनहरी बाल’ नामक अगले सामूहिक फार्म में अब भी कुछ बूढ़े लोग काम करते हैं, जिन्होंने क्रान्ति से पहले रेल बिछाने के लिए ठेकेदारों के लिए काम किया था,’’ उसने बताया। ‘‘उन्हें शायद जानकारी हो।’’
इसलिए वलेन्तिना गिओर्गियेवना ‘सुनहरी बाल’ नामक फार्म की ओर चल पड़ी। यह सड़क और भी खराब थी। यहाँ पहाड़ियों पर चढ़ना पड़ा और खाइयों में उतरना पड़ा। फिसलन भरी ढलवाँ सड़क के दोनों तरफ काले-काले, जुते हुए खेत फैले थे और आधा मील पार करने के बाद तो बूट उठाना भी कठिन हो गया, क्योंकि उनमें भारी गीली मिट्टी चिपक गयी थी, जो बूटों को पकड़ लेती थी और उन्हें खींचकर पाँवों से अलग कर देती थी। हवा में बरसाती उड़ रही थी और कन्धों पर फँस गयी थी। ज्यों-ज्यों वह आगे बढ़ती, त्यों-त्यों इस निरर्थक यात्रा पर उसका गुस्सा उमड़ता जाता और उसके मन में यह गम्भीर सन्देह पैदा होने लगा कि नेपैवोदा ने इस मूसलाधार वर्षा में उसे सिर्फ सताने के उद्देश्य से भेजा है, क्योंकि वह जानता है कि यह लड़की उसे पसन्द नहीं करती।
शीघ्र ही उसे भूख लग आयी। उसे अपनी सैण्डविच की याद आ गयी और वह कहीं बैठने की जगह खोजने लगी, मगर जुते खेतों, कुछ झाड़ियों और कीचड़ भरी सड़क के अलावा कहीं कुछ नजर नहीं आता था। और उसकी सैण्डविच भी पानी से भीग कर आटे की लोई जैसी गिलगिली हो गयी, जिसमें तम्बाकू के रेशे लिपट गये थे। उसने उसे फेंक ही दिया। ‘‘इस वक्त, काश, इवान सेमियोनोविच मेरी हालत देख पाते,’’ उसने मन में कहा और रास्ते पर बढ़ती ही गयी। उसे रास्ता अनुमान से अधिक लम्बा जान पड़ने लगा। सड़क बनाने वाले कारीगर ने बताया था कि ‘सुनहरी बाल’ नामक फार्म गाँव से तीन मील दूर है, लेकिन उसको विश्वास था कि वह कम से कम पाँच मील पार कर आयी है।
‘‘मैं रास्ता तो नहीं भूल गयी हूँ?’’ उसने सोचा, और वह यह मानने के लिए तैयार नहीं थी कि जब कभी उसे कोई दोराहा मिला तो उसने आसान दीख पड़ने वाला रास्ता ही चुना था। एक क्षण वह किसी से भेंट हो जाने की प्रतीक्षा में खड़ी हो गयी, लेकिन कोई नहीं गुजरा और इसलिए वह बराबर चलती ही गयी और जब कभी कोई दोराहा आ जाता तो वह बायीं दिशा का रास्ता पकड़ लेती। एक घण्टा वह इसी तरह चलती रही, तभी उसे किसी छप्पर की धुँधली रेखाएँ दिखायी दीं और शीघ्र ही वह गाँव के सिरे पर किसी साग-सब्जी के बगीचे में पहुँच गयी। जो पहला घर मिला, उसे उसने खटखटाया। उसे अन्दर आने के लिए कहा गया तो वह एक अँधेरे दरवाजे में घुस गयी, जहाँ मुर्गी के बच्चों ने बरसात से बचने के लिए शरण ले रखी थी और इस प्रकार वह एक बड़े कमरे में पहुँच गयी। तीन व्यक्ति खाना खा रहे थे-एक बूढ़ी महिला, एक जवान लड़की और एक जवान लड़का जिसकी आँखें बूढ़ी महिला की तरह थीं। वह उठ बैठा और उसने वलेन्तिना गिओर्गियेवना को बरसाती उतारने में मदद दी-यह बरसाती इतनी सख्त हो गयी थी कि उसे अकेले खड़ा किया जा सकता था। बूढ़ी महिला उसके लिए गरम, ऊनी जूते ले आयी और रबर के जूते उतारने के लिए कहने लगी।
‘‘बाप रे। पाँच बज रहे हैं।’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने घड़ी देखकर कहा।
‘‘तुम कहाँ से आयी हो?’’ लड़की ने पूछा, लेकिन वलेन्तिना गिओर्गियेवना के जवाब दे पाने से पहले ही, उस लड़की ने वलेन्तिना की टाई देख ली और चकित होकर कहा: ‘‘अरे, यह तो वही पुल वाली महिला है, अलेक्सेय।’’
वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने उस लड़की की तरफ फिर देखा और पाया कि यह वही ब्रिगेड-लीडर है जो उस दिन काम से छुट्टी पाने के लिए आयी थी।
‘‘पुल से आयी हो, ठीक है,’’ ब्रिगेड-लीडर ने कहना जारी रखा। ‘‘क्या तुम फिर हमारी गाड़ियाँ लेने आयी हो?’’
‘‘नहीं इस बार नहीं। क्या नाम है तुम्हारा? ओल्गा, क्यों?’’
‘‘ठीक है,’’ ओल्गा ने थोड़ा हँसकर कहा। ‘‘तुम्हारे यहाँ इतने आदमी हैं, और फिर भी तुम्हें मेरा नाम याद है। यह हमारी दादी हैं। और यह मेरे पति हैं अलेक्सेय घबराओ नहीं। वह देखने में ही ऐसे हैं, वैसे चूहे की तरह शांत स्वभाव के हैं।’’ अलेक्सेय की उम्र सिर्फ बाईस साल ही होगी, लेकिन उसके आचार, परिवार के बुजुर्ग की तरह प्रभावपूर्ण प्रतीत हुए।
‘‘देखती नहीं, ये कितनी थकी हैं? उसने मेज पर साफ तश्तरी रखते हुए कहा।
‘‘कुछ खिलाओ-पिलाओ, और मनचाहे जितनी जबान चलाना।’’
‘‘ओह, मैं भूखी नहीं हूँ,’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने कहा और मन में यह डरने लगी कि इन शब्दों पर कहीं ये लोग सचमुच यकीन न कर लें। लेकिन वृद्धा, चाय के प्यालों और शराब के गिलासों के पीछे, किनारे पर रखी हुई, एक तश्तरी को बड़ी सावधानी से उठा रही थी और ओल्गा एक डबल रोटी को अपनी छाती से चिपटाकर टुकड़े कर रही थी।
‘‘तुम यहाँ कैसे आयीं?’’ उसने कहा।
‘‘मैं राह भूल गयी। मैं ‘सुनहरी बाल’ फार्म की तरफ जाना चाहती थी।
‘‘और ‘सुनहरी बाल’ की तरफ जाने के बजाय तुम ‘नवीन पंथी’ फार्म पर आ पहुँची। कितना रास्ता भटक गयीं तुम।’’ वृद्धा ने रसोई घर से ही आवाज लगायी।
‘‘ ‘सुनहरी बाल’ से तुम्हें क्या काम था,’’ वाचाल ओल्गा ने पूछा।
‘‘तुमने जिस खान की उस समय चर्चा की थी, मैं उसके बारे में जानना चाहती हूँ।’’
‘‘तो यह बात है। मेरा ख्याल है कि अब आप लोग उस खान से गिट्टी लेंगे। और क्या हो सकता है।’’
‘‘उसमें पहले कब काम हुआ था?’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने गोभी के शोरबा में चम्मच डुबाते हुए कहा।
‘‘उसमें तो सदियों से काम नहीं हुआ,’’ ओल्गा ने कहा। ‘‘वहाँ तमाम झाड़-झँखाड़ उग आये हैं।’’
वृद्धा ने रसोई से ही चिल्लाकर कहा: ‘‘मुझे लगता है कि जब रेल की पटरी बिछायी गयी थी, तब उस खान से गिट्टी ली गयी होगी।’’
‘‘कब की बात है?’’
‘‘लड़ाई से पहले की।’’
‘‘कौन-सी लड़ाई?’’
‘‘पहली लड़ाई। जब जार था।’’
‘‘और फिर?’’
‘‘मेरा ख्याल है कि बाद में उन्होंने सड़क बनाने के लिए इससे गिट्टी ली होगी।’’
‘‘अगर तुम नहीं जानती, तो बेकार टाँग मत अड़ाओ, दादी।’’ अलेक्सेय ने उठते हुए कहा और कोट पहन लिया। ‘‘सड़क के लिए हमने क्रिवाया की खाई से गिट्टी ली थी। जिस खान की बात यह कर रही है, वह यहाँ से दस मील दूर है। बात को इतनी दूर क्यों घसीटा जाय?’’
‘‘ठीक-ठीक पता मुझे किससे मिल सकता है?’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने पूछा। ‘‘मुझे पता लगाना ही है।’’
अलेक्सेय ने विचारलीन होकर कहा: ‘‘मेरा ख्याल है, यहाँ कोई ऐसा नहीं है, जो यह बता सके।’’
ओल्गा ने बात बीच में काट दी: ‘‘इस खान के बारे में मुझे कुछ खान खोजनेवालों से पता चला था। वे अब जिला केन्द्र में हैं। उनका प्रधान एक बूढ़ा है और उसी ने मुझे इसके बारे में बताया था।’’
‘‘वह भी क्या जिला केन्द्र में होगा?’’
‘‘अन्दाज तो यही है।’’
‘‘उसका नाम क्या है?’’
‘‘उसका नाम? मुझे याद नहीं।’’
‘‘सूखी-सूखी बाँहवाला आदमी? उसका नाम मोश्करोव तो नहीं है?’’ वृद्धा ने रसोई से आवाज दी। ‘‘मेरा ख्याल है वह मोश्करोव था।’’
‘‘टाँग मत अड़ाओ दादी,’’ अलेक्सेय ने कहा। ‘‘तुम्हें नहीं मालूम, तो टाँग मत अड़ाओ। तुम्हारा मतलब उस सूखी बाँहवाले आदमी से है जो येवग्राफोव के यहाँ ठहरा था?’’ उसने अपनी पत्नी की तरफ मुड़कर कहा।
‘‘हाँ वही है।’’
‘‘जरा ठहरो, मैं उन लोगों से अभी पूछ कर आता हूँ।’’
और अलेक्सेय चला गया। दस मिनट में ही वह एक दाढ़ी वाले व्यक्ति को लेकर वापस आ गया जिसके कन्धे पर पुराना फौजी कोट पड़ा हुआ था। अलेक्सेय ने बताया: ‘‘कमरोव है उसका नाम। वसीलि इग्नात्येविच कमरोव।’’
‘‘जरा ठहरो। मैं खुद इन्हें बता दूँगा।’’ उस दाढ़ी वाले व्यक्ति ने कहा। उसने कोट उतार दिया, अपने गीले हाथ उस पर पोंछ दिये और मेज पर बैठ गया। उसने आदर से कहा: ‘‘आप पुल से आयी हैं? अच्छा, तो आप कागज का टुकड़ा ले लीजिये और लिख लीजिए, ताकि आप इसे भूल न जाए, कमरोव वसीलि इग्नात्येविच, सड़क का इंजीनियर। बड़ा अच्छा आदमी है। इस इलाके में चप्पा-चप्पा उसका जाना हुआ है-वह सारी जमीन के बारे में। सभी सड़कों के विषय में और सभी पुलों के विषय में, छोटी से छोटी बात को जानता है। आप जो कुछ भी जानना चाहें, वह बता देगा। आजकल वह शहर में रहता है, सोवियत स्क्वायर से कोई खास दूर नहीं। स्क्वायर से गुजरते ही सिनेमा मिलेगा; सीधे चले जाइये और दूसरे मोड़ पर पहुँचकर बायीं तरफ चौथा या पाँचवाँ मकान होगा। आपको बड़ी आसानी से मिल जायगा-उसमें सामने के सायबान पर लोहे का छप्पर पड़ा है।’’
दाढ़ाीवाले व्यक्ति ने कमरोव का पता बताने में इतना वक्त लगाया कि यही मालूम पड़ता था कि कमरोव को खोजने की आवश्यकता वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने बजाय खुद उसे है।
‘‘यहाँ से शहर कितनी दूर है?’’ वलेन्तिना ने पूछा।
‘‘बड़ी सड़क से बारह मील।’’
‘‘अच्छा। अब मैं चलती हूँ और अपने अध्यक्ष का यह बता दूँगी।’’
अलेक्सेय ने कहा: ‘‘मैं मशीन ट्रैक्टर स्टेशन ले जा रहा हूँ। अगर आप चाहें, तो मैं वहाँ पहुँचा सकता हूँ। रास्ते में ही तो पड़ेगा।’’
अलेक्सेय ने घोड़े जोत लिये, तो वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने विदा ली और बाहर निकल आयी। आठ से अधिक बज चुके थे। पानी की झड़ी अब बन्द हो गयी थी, लेकिन ठण्डी और तेज बूँदें अभी भी पड़ रही थीं और अँधेरे में उनकी आवाज दिन से समय से भी अधिक स्पष्ट सुनायी दे रही थी। वलेन्तिना गिओर्गियेवना राह टटोलती गाड़ी तक पहुँच गयी और पुआल पर बैठ गयी। ‘‘पैर सिकोड़ लो, यहाँ एक खम्भा लगा है।’’ अलेक्सेय ने कहा और गाड़ी हँक गयी। दाढ़ीवाला आदमी साथ चल रहा था और हालाँकि वलेन्तिना गिओर्गियेवना यह कह चुकी थी कि वह कमरोव का पता पूरी तरह समझ चुकी है और इसके लिए धन्यवाद भी दे चुकी थीं, फिर भी वह यह बताये जा रहा था कि कमरोव के यहाँ कैसे पहुँचा जा सकता है। आखिर में वह भी चला गया। अल्प भाषी अलेक्सेय के साथ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने आधा रास्ता पार कर लिया, लेकिन उसे यह सवारी पैदल-यात्रा से भी ज्यादा थका देने वाली महसूस हुई, क्योंकि गाड़ी कभी इस तरफ और कभी उस तरफ उछलती हुई बढ़ रही और कई बार तो उलटने को हो गयी। आखिरी चार-पाँच मील उसने पैदल ही पार किये और मन में सोचती रही कि सारा दिन खत्म हो गया और कहीं इस बेवकूफी के काम में न फँसी होती, तो बड़े आराम से घर में होती, जहाँ लोटा भर ताजा गरम दूध और उसकी चारपाई तथा चेख़व कि किताब उसका इंतजार कर रहे होंगे।
दूर पर दफ्तर की रोशनी दिखायी पड़ने लगी। कुहरा भरे अंधकार में बिजली की रोशनी सर्चलाइट की किरणों की तरह आ रही थी। दफ्तर का कमरा उसे पहली बार आरामदेह और आतिथ्यपूर्ण मालूम हुआ और उसने घुसते ही रबर के बूट उतारे, स्लीपर पहने और अध्यक्ष के दफ्तर में घुस गयी।
‘‘हाँ, तुम्हें कुछ पता लगा?’’ अध्यक्ष ने लिखना रोक कर बेसब्री के साथ पूछा।
‘‘नहीं। किसी को कुछ नहीं मालूम।’’
‘‘बुरा हुआ,’’ अध्यक्ष ने फिर लिखना शुरू करते हुए टीका की।
‘‘शहर में कमरोव नाम का एक व्यक्ति, एक इंजीनियर है,’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने उसके रोम भरे हाथों की तरफ देखते हुए अपनी बात जारी रखा।
‘‘लोगों का कहना है कि वह कई वर्षों तक एक खान खोजनेवाले दल का प्रधान था...।’’
‘‘और यह कमरोव क्या कहता है?’’
‘‘मैं कहती हूँ कि वह शहर में रहता है।’’
‘‘यानी तुम उससे नहीं मिलीं?’’
‘‘नहीं। गाँव में लोगों ने सिर्फ यही बताया कि वह कहाँ रहता है।’’ अध्यक्ष ने एक क्षण कुछ सोचा।
‘‘तुम्हें उससे मिलना होगा,’’ उसने अन्त में कहा। ‘‘बहुत अच्छा।’’
‘‘मैं कार मँगवाता हूँ।’’
‘‘तो क्या मुझे फौरन जाना होगा?’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने चकित होकर पूछा। ‘‘मैं....।’’
‘‘क्यों नहीं? शहर के लिए बड़ी अच्छी सड़क है। हलो, जरा गैरेज से मिलाइये.. एक घण्टे में पहुँच जाओगी और एक घण्टे में वापस आ जाओगी। तुम सामने की सीट पर ड्राइवर के पास बैठना।...हलो, कौन बोल रहा है? तिमोफेयेव? एक हल्की लारी फौरन तैयार कराओ... हाँ, शहर को...।’’ उसने टेलीफोन रख दिया। ‘‘वलेन्तिना गिओर्गियेवना, अगर तुम बढ़िया खबर लायीं, तो पुल निर्माण के काम की गति जितनी तुम्हारी वजह से तेज होगी, उतनी सारी मशीनें एक साथ लगा देने से भी न हो सकेगी। समझीं?’’
‘‘हाँ,’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने जवाब दिया और स्लीपर उतार कर रबर के बूट पहनने चली गयी।
लारी का ड्राइवर असहनीय रूप में बातूनी निकला। उसने एक के बाद एक, अनेक फिल्मों की कथाएँ सुना डालीं। वलेन्तिना को लगा कि यह रुकेगा ही नहीं। पहले तो वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने उसकी बातें सुनने का प्रयत्न किया, फिर वह ऊँघ गयी और जब आँख खुली तो फिर सुनने लगी।
और पानी बरसता रहा। हैडलाइट्स की रोशनी में रडियेटर पर दिखनेवाली बूँदें बन्दूक की गोली की तरह मालूम हो रही थीं।
लारी तेज चल रही थी। कहीं कोई गढ़ा आ जाता तो लारी के पीछे बँधा हुआ फालतू पहिया शोर मचाता उछल पड़ता। वे शहर पहुँचे तो आधी रात बीत गयी थी। सड़कें लगभग सुनसान थीं।
‘‘हमें किधर चलना है?’’ ड्राइवर ने पूछा।
‘‘मुझे खुद नहीं मालूम,’’ उनींदी वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने कहा। ‘‘सोवियत स्क्वायर की तरफ कहीं चलना है।’’
ड्राइवर ने लारी का द्वार खोला और पुकारा, ‘‘ऐ भाई।’’ और किसी से कुछ पूछने लगा, जो अँधेरे में दिखायी नहीं पड़ रहा था। वे फिर चल दिये और एक चौराहे पर पहुँचे, जहाँ हैडलाइट की रोशनी में एक नाई की दूकान, पंसारी की दूकान, फोटोग्राफर की दूकान और सिनेमा घर-सभी बन्द नजर आ रहे थे। सिनेमा के प्रवेश द्वार पर एक पोस्टर बोर्ड लगा था, जिसके नीले अक्षर पानी से धुल गये थे। तीसरी मंजिल की खिड़की पर एक लैम्प का मनोहर आवरण दिखाई दे रहा था ओर न जाने क्यों वलेन्तिना गिओर्गियेवना के दिमाग में यह ख्याल आया कि वहाँ लूटो का खेल खेला जा रहा है।
‘‘और यहाँ से हमें किधर जाना है?’’ ड्राइवर ने फिर पूछा।
‘‘सिनेमा से आगे दूसरे मोड़ पर, इंजीनियर कमरोव का घर वहीं कहीं है,’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने थकान-भरी आवाज में जवाब दिया। ‘‘लेकिन मेरी समझ में नहीं आता कि इतनी रात गये हमें पता कैसे मिलेगा?’’
‘‘अगर उसका घर यहीं है, तो पता चल ही जाएगा,’’ ड्राइवर ने विश्वास के साथ कहा।
वे लोग एक अँधेरी गली में मुड़े। ड्राइवर लारी से कूद पड़ा और पहले ही मकान पर बेतकल्लुफी के साथ दस्तक देने लगा। रोशनी हुई, खिड़की खुली और किसी ने कुछ कहा। उसके बाद खिड़की धड़ाक से बन्द हो गयी। ड्राइवर घर-घर गया। ‘‘वह सारी गली का ही जगा डालेगा,’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने मन ही मन कहा और फिर ऊँघ गयी। जब किसी ने हिलाया, तभी उसकी नींद टूटी।
‘‘हमलोग कहाँ जा रहे हैं?’’ उसने घबराकर पूछा।
‘‘कमरोव के यहाँ’’ ड्राइवर ने जवाब दिया। ‘‘उन दो खिड़कियों में रोशनी दिखायी दे रही है? वहीं उसका घर है। तुम जाओ, उससे बात कर लेना, तब तक मैं स्पार्कप्लग साफ किये लेता हूँ।’’
ड्योढ़ी पर ही वलेन्तिना गिओर्गियेवना की एक छोटे से कद के हँसमुख वृद्ध से भेंट हुई, जो ड्रेसिंग गाउन और टोपी पहने था। उसके पीछे-पीछे चलते हुए वलेन्तिना ने हाल पार किया, जहाँ उसकी सख्त बरसाती साइकिल में उलझी, फिर किसी डलिया में उलझी और आगे चलकर कपड़े टाँगने की पेड़नुमा खूंटियों से उलझ गयी। दोनों ने एक कमरे में प्रवेश किया जिसके बीचोंबीच साफ कपड़े से ढँकी मेज पड़ी थी। एक दीवाल के किनारे नीचा सोफा रखा था, जिस पर कमरोव सोता था और एक तरफ एक पर्दा पड़ा था। पर्दे की पीछे से किसी के साँस लेने की आहट सुनाई दे रही थी, जिससे पता लगता था कि वहाँ कोई सो रहा है। मेज पर तश्तरी में एक भीगी हुई ऊनी टोपी इस्तरी के लिए फैलाकर रखी थी।
‘‘तो आपको वलोवाया पुल के निर्माणकर्ताओं ने भेजा है?’’ वृद्ध ने उत्साहपूर्वक फुसफुसा कर पूछा और तेज रोशनी में आँखें मिचमिचायीं। ‘‘आपसे मिलकर बड़ी खुशी हुई। बैठिये। अफसोस है, इस समय मैं चाय नहीं पिला सकता, मकान-मालिकिन सो गयी है। मैं कुछ-कुछ आप लोगों की तरह हूँ-खानाबदोश।’’
वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने धीमें स्वर में अपने आने का उद्देश्य बताया।
‘‘मुझे उस खान की याद जरूर है,’’ वृद्ध ने मुस्कुराकर कहा। ‘‘मैंने ही तो उसे खोज निकाला था-उस समय मैं विद्यार्थी था और एक दोस्त के साथ, जो आजकल लेनिनग्राड के इंजीनियरिंग विद्यालय में प्रोफेसर है, मैं वलोवाया में नहाने गया था। जो ठेकेदार रेलवे की शाखा-लाइन बना रहा था, उसने इस खादिम को इस खोज के पुरस्कार स्वरूप वोदका की एक बोतल पिलायी थी, लेकिन वर्तमान सामूहिक फार्म के पूर्वजों ने पुरस्कार स्वरूप उसकी खूब पिटायी की थी और बाँह तोड़ दी थी.. बाद में, लगभग 1926 में, मेरी सिफारिश पर उस खान की गिट्टी को बनाने के लिए इस्तेमाल किया गया था...’’
‘‘क्या उसे कंक्रीट बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है?’’
‘‘खूब अच्छी तरह-जहाँ तक उसकी मशीनी विशेषताओं का सम्बन्ध है, वह उपयुक्त है। यह गिट्टी के दानेदार तत्व, जरूर, टेक्निकल स्तर के नहीं हैं, लेकिन यह कोई महत्व की बात नहीं है। आप लोग मोटे दानों को बारीक दानों से अलग कर लें और फिर उनमें कुछ और मोटी सामग्री मिला दें, सुनो, इसकी मिसाल के लिए तुम्हें कुछ अधिक दूर नहीं जाना पड़ेगा-इसी सड़क पर 194वीं चौकी पर कंक्रीट का पुल है-वह उतना खूबसूरत तो नहीं है, जैसा आप लोग बना रहे हैं, लेकिन 18 फुट लम्बा दोहरा पुल है और वह सब का सब उसी खान की गिट्टी से बना है-चट्टान की तरह ठोस,’’ वृद्ध ने फुसफुसाकर कहा।
‘‘और वह बेलिये क्रेस्ती वाला पुल भी,’’ पर्दे के पीछे से अप्रत्याशित स्वर आया।
‘‘बिल्कुल ठीक,’’ कमरोव ने पर्दे की तरफ सिर हिलाकर स्वीकार करते हुए, अब अपनी स्वाभाविक आवाज में कहा। ‘‘ताईसिया इवानोवना, वह पुल 241वीं चौकी से आगे 40वीं या 50वीं पर है। मुझे ठीक याद नहीं।’’
वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने उठते हुए कहा: ‘‘आपको बहुत-बहुत धन्यवाद। मुझे अब जाना चाहिए। सभी लोगों को हमने जगा दिया, इसके लिए क्षमा चाहती हूँ।’’
‘‘किसी काम आ सका, इससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। अगर कुछ और जरूरत पड़े तो फिर आइयेगा।’’ वृद्ध ने अनजाने ही फिर अपनी आवाज धीमी करते हुए कहा। ‘‘आपसे मिलकर बड़ी खुशी हुई।’’
वलेन्तिना गिओर्गियेवना बाहर निकल आयी और ड्राइवर के पास फिर जा बैठी। झटके के साथ कार चल पड़ी और शीघ्र ही शहर से बाहर हो गयी; सड़क को चीरते हुए, गढ़ों का पानी उछालते हुए और अपनी हैडलाइट से सड़क पर लगे चिन्हों, सफेद खम्भों और झाड़ियों की चमकदार पत्तियों को उजागर करते हुए बराबर बढ़ती जा रही थी। वलेन्तिना गिओर्गियेवना सो गयी और उन पानी भरे गढ़ों, सफेद रंग-पुते खम्भों और लारी के पहियों के नीचे पानी की तरह बहती हुई सड़क को सपने में देखने लगी, और आखिर में जब दफ्तर से सामने गाड़ी रुकी तो उसे यह पूरा विश्वास था कि उसे एक क्षण-भर के लिए झपकी नहीं आई।
लारी से उतरी तो उसके शरीर का एक-एक हिस्सा दर्द कर रहा था; कमरे में घुसकर उसने बरसाती उतारी। वह इतनी थक गयी थी कि बूट उतारने की भी हिम्मत न कर सकी और वैसे ही अध्यक्ष के कमरे में चली गयी।
वह चला गया था। पाशा उसकी कुर्सी पर बैठी हुई अखबार पढ़ रही थी।
‘‘नेपैवोदा कहाँ है?’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने पूछा।
‘‘वह खान की तरफ गये हैं। कह गये हैं कि तुमसे उनका इंतजार करने को कह दूँ।’’
‘‘तुम यहाँ क्या कर रही हो?’’
‘‘वह मुझसे कह गये हैं कि अगर कहीं से फोन आये, तो उसका नाम पूछ लेना।’’
‘‘ठीक। तुम अब जा सकती हो। मैं उनका इंतजार करूँगी। जरा यह तो बताओ, अध्यक्ष का अखबार पढ़ने की इजाजत तुम्हें किसने दी?’’
‘‘किसी ने नहीं। मैं अगर पढ़ ही लूँगी तो क्या उसमें आग लग जाएगी, क्यों?’’
‘‘तो मामला यहाँ तक बिगड़ गया है?’’ थककर चूर-चूर वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने अपने कमरे में एक स्टूल पर बैठते हुए मन ही मन कहा। ‘‘अब पाशा भी मेरा रत्ती भर लिहाज नहीं करती। पाशा भी।’’ उसके हृदय में आत्म-ग्लानि का भाव उमड़ आया; जल्दी से उसने कागज उठाया, टाइपराइटर में सरका दिया, अपनी उँगलियों पर रबर की खोलें चढ़ा लीं और टाइप करने लगी:
‘‘प्रियवर इवान सेमियोनोविच,’’
वह लिखना चाहती थी कि यहाँ की बातें अब बर्दाश्त के बाहर हो गयी हैं; अब कोई मेरा लिहाज नहीं करता; मेरे न तो कोई दोस्त हैं और न रिश्तेदार और अब इसी आशा में जीवित हूँ कि एक दिन आप बुला लेंगे और मुझे विश्वास है कि किसी भी अन्य सेक्रेटरी के बजाय आपको मेरे साथ अधिक आराम मिलेगा..
लेकिन उसने लिखा यों:
‘‘मैं यह कहना चाहती हूँ कि अगर आपको मुझसे अधिक संतोषजनक कोई व्यक्ति न मिला हो, तो मैं आज भी आने के लिए और आपके लिए काम करने को तैयार हूँ। लेकिन अगर मास्को में मुझे कोई कमरा नहीं मिलता, तो मैं वहाँ न आ सकूँगी। कृपया यथासम्भव शीघ्र ही मुझे यह सूचित कीजिये के इस सम्बन्ध में क्या सम्भावनाएँ हैं, क्योंकि मैं शरद में यहाँ नहीं रहना चाहती, ओर किसी अन्य सुदृढ़ संगठन में काम करने के लिए चली जाऊँगी।
ताजे समाचार यह हैं: दूसरे और तीसरे खम्भे पर कंक्रीट का काम समाप्त हो गया है और पहले पर लगभग खत्म हो गया है। कल हम पुल के लिए मचान बाँधना शुरू कर देंगे। नदी किनारे की खान से गिट्टी लेने का काम भी हम जल्दी ही शुरू कर देंगे। लाइन पर काम करने वाली लारियों ने अपने लक्ष्य का 90 फीसदी काम पूरा कर लिया है।
आपकी ही,
वलेन्तिना गिओर्गियेवना’’
5
तीन बजे सुबह नेपैवोदा ने विभिन्न विभागों के प्रधानों को अपने साथ लिया और 194वीं चौकी के उस पुल को देखने के लिए रवाना हो गया जिसका जिक्र कमरोव ने किया था। जेबी टार्चों की रोशनी में उसने पुल के खम्भे को इस तरह हथौड़े से पीटते हुए गले से ऐसी घर्र-घर्र आवाज की, मानो वह जन्मजात लुहार हो। कंक्रीट लोहे से भी अधिक सख्त साबित हुआ। ‘‘लेबोरेटरी का विशेषण तो यही है,’’ नेपैवोदा ने कहा और सभी लोग लौट आये।
छः बजे सुबह गिट्टी तोड़नेवाली मशीनों को एक ट्रैक्टर में बाँधकर नदी किनारे की खान पर भेज दिया गया। उन्होंने काम शुरू कर दिया-रास्ते साफ कर दिये और गिट्टी का छानने-बीनने वाली मशीनें लगा दी गयीं। दोपहर तक निर्माण-स्थल पर नयी खान से गिट्टी लेकर पहली लारी आ पहुँची।
दूसरे दिन ढुलाई का काम रोजाना के निश्चित लक्ष्य से अधिक पूरा हुआ। पुल-निर्माण में देर होने का दोष अब तक जिन ड्राइवरों के मत्थे मढ़ा जाता था, वे अब खिल उठे, मस्त हो गये और लदाई कराने वालों से बराबर झगड़ उठते कि उनकी लारियों पर और अधिक लदाई की जा सकती है; वे यह हठ करते कि उनकी लारियाँ बिल्कुल ऊपर तक भर दी जाएँ और दलील यह देते कि खूब लदी गाड़ियों के फिसलने का डर कम होता है।
इस बीच वर्षा भी जारी रही। तीन दिन से बिना थमें लगातार वर्षा हो रही थीं; लोग किसी कदर उसके आदी हो गये थे और अपने को परिस्थिति के अनुरूप बना चुके थे। तिमोफेयेव ने दीवार-पत्र के लिए बड़ी चतुराई से एक कार्टून बनाया था, जिसमें सारे निर्माण क्षेत्र को सागर-तल का लोक चित्रित किया गया था और नेपैवोदा समेत सभी कर्मचारियों को मछली बनाया गया था। एक व्यक्ति जिसे मछली नहीं बनाया गया था, वह थी वलेन्तिना गिओर्गियेवना; उसे मत्स्य-बाला बनाया गया था।
उसी शाम नेपैवोदा ने वलेन्तिना को बुलाया और एक कागज दिया।
उसने कहा: ‘‘कृपया इसकी तीन प्रतियाँ टाइप कर दीजिये। एक फाइल के लिए, एक नोटिस-बोर्ड के लिए और तीसरी हिसाब-किताब विभाग के लिए। और मेरी बधाई स्वीकार करो।’’
बधाई क्यों दी जा रही है, यह जाने बिना ही वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने उसको अपना हाथ पकड़ लेने दिया; नेपैवोदा के हाथ बड़े आनन्ददायक और शीतल थे, क्योंकि उसने अभी ही धोये थे। फिर वह कमरे से बाहर चली गयी।
वलेन्तिना ने टाइप करने के लिए कागज निकाले-ऊपर बढ़िया कागज रखा, जिस पर अध्यक्ष के हस्ताक्षर होंगे; हिसाब-किताब विभाग और नोटिस-बोर्ड के लिए घटिया कागज लगाया, पर, इसके पहले कि वह टाइप करना शुरू कर पाती, तिमोफेयेव अन्दर आया-गन्दगी में डूबा हुआ, और शोर मचाता हुआ।
‘‘तुम्हें मालूम है कि तुम्हारी उस खान से मेरे आदमियों ने आज कितनी गिट्टी निकाली?’’ उसने पूछा।
‘‘मुझे इसमें रत्ती भर भी दिलचस्पी नहीं है,’’ वलेन्तिना ने आँखें मिचमिचाते हुए रोष के साथ कहा और उसको यह महसूस कराया कि जब और सबको उसने मछली के रूप में चित्रित किया है तो अकेली वलेन्तिना को मत्स्य-बाला के रूप में क्यों बनाया है।
‘‘अच्छा, जाने दो,’’ तिमोफेयेव ने बात वहीं खत्म कर दी। ‘‘तुम्हें दिलचस्पी लेने के लिए मजबूर थोड़े ही कर सकता हूँ।’’ और वह अध्यक्ष से बातें करने चला गया।
वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने कागज उठाया और पढ़ने लगी कि नेपैवोदा ने बड़े-बड़े अक्षरों में क्या लिखा है। हर अक्षर उसी तरह साफ लिखा हुआ था, जिस तरह वह एक-एक स्वर साफ-साफ बोलता है।
आदेश
‘‘जो काम निर्दिष्ट किया गया था (यानी वलोवाया नदी के किनारे पर स्थित खान की गिट्टी की किस्म का पता लगाना) उसको बहुत अच्छी तरह से पूरा करने और इस प्रकार, प्रतिकूल मौसम के बावजूद गिट्टी ढुलाई के काम को लक्ष्य से अधिक पूरा करना सम्भव बनाने के पुरस्कार स्वरूप निर्माण-कार्य के अध्यक्ष की सेक्रेटरी वलेन्तिना गिओर्गियेवना ओस्त्रोवस्काया को एक मास के वेतन के बराबर रकम दी जाती है।’’
उसने लापरवाही के साथ जरा-सा मुस्कुरा दिया; उसने अपनी उँगलियों पर रबर के खोल चढ़ा लिये और स्टूल को तनिक आरामदेह जगह पर खिसका लिया। पुरस्कारों के प्रति अपना तिरस्कार प्रकट करने के लिए, उसने इस नोटिस को तमाम दूसरे नोटिसों की लम्बी सूत्री के बीच में टाइप कर दिया; इसके ऊपर के पैरे में था कि मिकैनिक मतवेयेव फलाँ-फलाँ तारीख को छुट्टी से वापस आ गया और इसके नीचे के पैरे में था कि टेक्नीशियन नतालिया रूम्यान्त्सेवा अपना नाम स्मिर्नोवा कर लेना चाहती है, क्योंकि उसके पति का नाम स्मिर्नोव है।
अध्यक्ष ने कागज पर दस्तखत कर दिये और उसने अन्य कागजात के साथ उसे भी भेज दिया।
एक दिन, जब तिमोफेयेव अध्यक्ष के दफ्तर से निकल रहा था तब वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने उसे रोका।
‘‘केन्द्रीय प्रबन्ध विभाग से तार आया है,’’ उसने कहा, ‘‘विश्लेषण से पता चला है कि इस खान को कंक्रीट बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।’’
‘‘यह तो हमें भी मालूम है,’’ तिमोफेयेव ने जवाब दिया। ‘‘लेकिन ऐसा लगता है कि हमें फिर उल्टे पैर लौटना होगा। पुरानी खान की तरफ।’’
‘‘पुरानी खान की तरफ?’’ वलेन्तिना ने चिढ़चिढ़ाकर कहा। ‘‘इस खान को खोजने के लिए मैं सारी रात इसलिए नहीं भटकी थी कि तुम लोग पुरानी खान का ही इस्तेमाल करते रहोगे।’’
‘‘ठीक है, लेकिन अब हम किनारे से गिट्टी नहीं ढो सकते-वह सब बह गया है। वह किसी समय भी ढह सकता है। और तुम्हारी खान के लिए कोई और सड़क भी तो नहीं है।’’
‘‘नयी सड़क बना लो न!’’
‘‘इसे टाइपराइटर पर टाइप कर लेना तो बड़ा आसान है, लेकिन बना लेना टेढ़ी खीर हैं तीन मील सड़क बना लेना कोई मजाक नहीं है।’’
‘‘तो नदी के किनारे-किनारे ढुलाई कर लो।’’
‘‘अब इसके बाद सलाह दोगी कि हम लारियों को पानी में चलायें।’’
‘‘मैं मजाक नहीं कर रही हूँ।’’
लेकिन यकायक तिमोफेयेव का चेहरा चमक उठा और वह दौड़कर अध्यक्ष के कमरे में घुस गया।
‘‘कामरेड नेपैवोदा।’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने उसे उत्तेनापूर्वक चिल्लाते हुए सुना। ‘‘एक नाव। उस खान से गिट्टी की ढुलाई करने के लिए हमें इसी की जरूरत है। हम एक साथ 35,000 घन फुट गिट्टी ढो लेंगे।’’
‘‘क्या तुम्हारा सुझाव यह है कि पुल के लिए लोहे के मेहराब बगैरह की ढुलाई से नावों को मुक्त कर दिया जाये?’’ अध्यक्ष ने शान्त भाव से पूछा।
‘‘लोहा-लक्कड़ चूल्हे में जाये। उन्हें हम बाद में लगा सकते हैं।’’
‘‘लेकिन नाव के बोझ को खींचने वाला इंजन कहाँ से मिलेगा?’’
वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने टाइप करना बन्द कर दिया और सुनने लगी। वह देख रही थी कि तिमोफेयेव के प्रस्ताव से यातायात की समस्याएँ तत्काल हल हो जाएगी-जल्दी और सस्ते ढंग से हल हो जायेंगी। वलेन्तिना का हृदय धक्-धक् करने लगा।
‘‘यह सही है, हमें इंजन की जरूरत होगी,’’ तिमोफेयेव ने निराश भाव से कहा।
‘‘इंजन भी शायद हमें मिल जाएगा। मैं काठ गोदाम को फोन करता हूँ और वे लोग मुझे इंजन दे देंगे। लेकिन वहाँ पानी कितना है? इतनी लदी हुई नाव क्या हर जगह आ-जा सकेगी?’’
‘‘जा सकेगी। आप कहें तो पानी की थाह का पता लगाने का इंतजाम मैं अभी कर दूँ।’’
‘‘ठीक। पता लगा लो और फिर हम तय करेंगे कि उस खान का क्या करना है।’’
तिमोफेयेव दफ्तर और दरवाजे को पार कर आँधी की तरह चला गया।
‘‘ठीक तो है, एक ही ढुलाई में हम इतनी गिट्टी ले जा सकेंगे, जितनी कि सारी लारियाँ मिलकर दस दिन में ढो पातीं। क्या ही शानदार करिश्मा होगा।’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने मन ही मन कहा और उसके दिमाग की आँखों के सामने उस खान की गिट्टी से लदी हुई नाव मूर्त हो गयी जो उस खान से ठीक उस पुल तक पहुँच गयी; उसे तमाम कारीगरों, फोरमैनों और तिमोफेयेव के आनन्दपूर्ण चेहरे दिखायी देने लगे। ‘‘क्या यह आश्चर्यजनक चमत्कार न होगा।’’
वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने दस मिनट तक इंतजार किया। ‘‘वह भूल गया होगा,’’ उसने सोचा। ‘‘मुझे याद दिला देना चाहिए।’’
वह दफ्तर में गयी। अध्यक्ष चाय पी रहा था।
‘‘आप काठ गोदाम को फोन करना तो नहीं भूल गये?’’ उसने पूछा।
‘‘किसलिए?’’ अध्यक्ष ने एक गिलास में अपने लिए दो चायदानियों, एक छोटी और एक बड़ी से इस तरह चाय डाली जिस तरह लोग शराबखानों में ढालते हैं। ‘‘इंजन के लिए’’ यकायक वलेन्तिना गिओर्गियेवना को यह अहसास हुआ कि इन शब्दों से यह सिद्ध होता है कि वह सारी बातें सुन रही थी और वह लजा गयी।
‘‘यह बात है।’’ अध्यक्ष ने उसकी तरफ देखा और थोड़ा सा हँसा। ‘‘जरा पानी की गहराई का पता लग जाये, फिर देखेंगे। अगर सब कुछ संतोषजनक निकलता है तो हम फौरन इधर-उधर फोन कर लेंगे। तुम्हें अपनी खान की चिन्ता है?’’
‘‘मुझे सारे निर्माण-कार्य की चिन्ता है,’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने बड़े स्वाभिमान के साथ उत्तर दिया। रोष के साथ उसने गर्दन का झटका दिया और अपने आप से बहुत ही असंतुष्ट होकर दफ्तर से बाहर चली गयी।
और पानी बरसता रहा। हल्की-सी, जी उबानेवाली वर्षा। कमरे की एक मात्र खिड़की के शीशे पर वर्षा की बूँदें टेढ़े-मेढें रास्ते बना रही थीं। आसमान अंधकारपूर्ण और उदास था। दिन ढल रहा था और तिमोफेयेव अपनी छानबीन का नतीजा लेकर अभी तक नहीं लौटा था। ‘‘हे भगवान, यह पानी क्या अनन्त काल तक ऐसे ही बरसता रहेगा?’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने सोचा।
‘‘पाशा, तू तो यहीं की रहने वाली है, क्यों?’’ उसने पूछा।
‘‘हूँ तो,’’ पाशा ने जवाब दिया।
‘‘नदी यहाँ गहरी है?’’
‘‘हूँ, हूँ। खूब गहरी। कुछ जगहों पर तो खास तौर से।’’
‘‘और कुछ छिछली जगहें भी हैं?’’
‘‘छिछली जगहें भी हैं। क्यों तैरने की सोच रही हो?’’
वलेन्तिना गिओर्गियेवना आह भर कर रह गयी और तिमोफेयेव की प्रतीक्षा करने लगी। लेकिन वह अपनी छानबीन के नतीजे लेकर अगली सुबह तक नहीं लौटा। नतीजे संतोषजनक थे, और नेपैवोदा ने वलेन्तिना गिओर्गियेवना से कहा कि वह काठ गोदाम को फोन करे। वहाँ से इंजन के बारे में कोई निश्चित उत्तर नहीं मिला, लेकिन उन्होंने आधे घण्टे के अन्दर फोन करके जवाब देने का वायदा किया। वलेन्तिना गिओर्गियेवना लगभग एक-एक मिनट बाद घड़ी देखकर उनके फोन की प्रतीक्षा करने लगी।
अपना ध्यान बँटाने के लिए वह डाक देखने लगी। एक लिफाफा केन्द्रीय प्रबन्ध विभाग से आया था। उसने कैंची से काट कर उसे खोला और कुरकुरा कागज निकाल पर पढ़ने लगी:
‘‘निर्माण-कार्य के अध्यक्ष की सेक्रेटरी, वलेन्तिना गिओर्गियेवना ओस्त्रोवस्काया का अपना नया पद सम्भालने के लिए कर्मचारी विभाग भेजा जाए।’’
तो यह बात है। आखिर इवान सेमियोनोविच उसे भूले नहीं हैं।
वलेन्तिना गिओर्गियेवना को लगा कि उसे हर्ष से नाचने लगना चाहिए। लेकिन वह आनन्दित नहीं हो सकी।
‘‘अध्यक्ष को यह पत्र मैं बाद में दिखा दूँगी,’’ उसने सोचा। ‘‘अभी ही उन का दिमाग काफी उलझनों में फँसा हुआ है।’’
और निश्चय ही कम पेरशानी न थी। काठ गोदाम वालों ने कोई इंजन देने से इनकार कर दिया था और इसलिए नेपैवोदा जिला कार्यकारिणी कमेटी को फोन करने के लिए मजबूर हुआ। लेकिन इस बार वे भी कुछ मदद न कर सके। नेपैवोदा को पत्र दिखाने के लिए वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने शाम तक इंतजार किया।
‘‘खैर,’’ उसने कहा, ‘‘बेहतर होगा कि तुम जाने की तैयारी कर लो। अपना काम स्मिर्नोवा के सुपुर्द कर देना,’’ और उसने अगले पत्र पर गौर करना शुरू कर दिया।
कुछ-एक क्षण वलेन्तिना गिओर्गियेवना बिना कुछ बोले मेज के पास खड़ी रही। उसके स्वच्छ हाथों की तरफ देखती हुई वह सोचने लगी: ‘‘हैरान हूँ कि वह मेरे जाने से खुश है या दुखी।’’
‘‘स्मिेर्नोवा सदा के लिए तो आपकी सेक्रेटरी न रह सकेगी, क्यों?’’ आखिरकार वह पूछ ही बैठी और यह न भाँप सकी कि वह खुश है या दुखी।
‘‘नहीं तो।’’
‘‘आप किसको नियुक्त करेंगे?’’
‘‘ओह, कोई मिल ही जाएगी। इस समय मैं उसके बारे में चिन्ता नहीं कर सकता।’’
वलेन्तिना गिओर्गियेवना जरा देर और ठहरी और फिर बाहर चली गयी। जिस ड्राइवर ने उस दिन कमरोव को खोजने में सहायता की थी, वही उसे स्टेशन छोड़ने गया। रास्ते में वह एक शब्द भी नहीं बोला, और वलेन्तिना गिओर्गियेवना को महसूस हुआ कि उसका यों चला जाना ड्राइवर को नापसन्द है। अध्यक्ष से विदा लेने का उसे अवसर ही नहीं मिला, क्योंकि वह एक किश्ती का इन्तजाम करने के लिए शहर गये हुए थे। जब वह उस छोटे से स्टेशन पर पहुँचे, तब ड्राइवर ने अलविदा कहा और फौरन गिट्टी ढोने के लिए चला गया। मास्को की ट्रेन के लिए कुछ लोग प्रतीक्षा कर रहे थे, लेकिन उन सभी के दोस्त उन्हें छोड़ने आये हुए थे। सिर्फ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ही थी जो अपने थैले और बिस्तरे के साथ अकेली बैठी हुई थी।
ट्रेन आने के कोई पन्द्रह मिनट पहले नेपैवोदा ने मुसाफिरखाने में प्रवेश किया और वलेन्तिना गिओर्गियेवना को खोजकर, उसके पास पहुँचा।
‘‘तुम एक मेहरबानी कर देना,’’ उसने कहा, ‘‘ये सेब क्या तुम मेरे बच्चों तक पहुँचाने की तकलीफ करोगी?’’ और उसने काले धागे से ढीला-पोला सिला हुआ मँझोले किस्म का पैकेट उसकी तरफ बढ़ा दिया, जिसे शायद उसने खुद बाँधा था।
‘‘मैंने इसे डाक से भेजने की कोशिश की थी, लेकिन उन लोगों ने लेने से इनकार कर दिया। कहा कि यह ठीक तरह से सिला नहीं है।’’
‘‘जरूर, मैं पहुँचा दूँगी,’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने खड़े होकर कहा।
‘‘बैठी रहो। मैं अब तुम्हारा अफसर नहीं हूँ,’’ उसने मुस्कुरा कर कहा। ‘‘और, लो, यह पोस्टकार्ड है। मैंने जो खाली जगह छोड़ दी है, उसमें तुम अपना पता लिख देना और डिब्बे में डाल देना। मेरी पत्नी यह पैकेट लेने आ जायेगी।’’
पता नहीं क्यों, वलेन्तिना गिओर्गियेवना को यह सुनकर आश्चर्य हुआ कि इस व्यक्ति के पत्नी और बच्चे भी हैं और वह उन्हें उपहार मैं सेब भेज सकता है, और उसने अपना पोस्टकार्ड इन शब्दों से प्रारम्भ किया था: ‘‘मेरे प्राणों से भी प्यारे....।’’
‘‘क्या वे लोग आपको इंजन दे रहे हैं?’’ उसने पूछा।
‘‘हाँ। ढुलाई की मशीनें तो हमने खान पर भेज दी हैं। कल हम नाव भी ले आयेंगे और लदाई शुरू कर देंगे।’’
ट्रेन आ गयी। नेपैवोदा उसका सामान उठा कर डिब्बे में ले गया और उसे सामान रखने की जगह पर लगा दिया। फिर वह डिब्बे से बाहर हो गया और पानी बरसते में ही सिगरेट सुलगा कर पीने लगा।
‘‘अब घर जाइये,’’ वलेन्तिना गिओर्गियेवना ने कहा। ‘‘अब आप क्यों खड़े हैं और भीग रहे हैं?’’
‘‘सब ठीक है, मैं तो इसका आदी हूँ।’’
इस विदाई के अवसर पर वह दो-चार शब्दों में अपने हृदय के भाव रख देना चाहती थी-अध्यक्ष की तरफ उसने जिस तरह का रूखा और रस्मी रुख अख्तियार किया था, शायद उसकी माफी माँगना चाहती थी, मगर शब्द जबान पर न आये और इसलिए जब ट्रेन ने सीटी दे दी तब उसने जल्दी से यह कह डाला: ‘‘मैं अपना फौल्डर, जिस पर रिपोर्ट लिखा हुआ है, बायीं तरफ की दराज में छोड़ आयी हूँ। आप उसे अपनी नयी सेक्रेटरी को दे सकते हैं।’’
‘‘धन्यवाद,’’ नेपैवोदा ने कहा।
वह जान भी न पायी और ट्रेन रवाना हो गयी। और हालाँकि वह विदा हो रही थी और नेपैवोदा वहीं ठहर रहा था, लेकिन उसे महसूस यों हुआ मानों वह खड़ी हुई है और नेपैवोदा और वह छोटा-सा स्टेशन, और वह सड़क जिस पर से वह इस शहर तक आयी थी और वह दमकते हुए पेड़ और वर्षा से भीगी धरती की सौंधी सुगन्ध और वह हल्का-सा नीचे झुका हुआ आसमान-ये सब चीजें चल रही हैं और धीर-धीरे उससे दूर होती जा रही हैं। उसे पाशा की याद आयी, चतुर और अनगढ़ तिमोफेयेव की याद आयी, उस ब्रिगेड-लीडर ओल्गा और उस दाढ़ी वाले आदमी की याद आयी जो पुराना फौजी कोट कन्धे पर डाले था, इंजीनियर कमरोव की भी याद आयी और वह ड्राइवर भी, जिसने उसका जाना पसन्द नहीं किया था, और यकायक उसे गहरा अफसोस हुआ कि ये सभी व्यक्ति, जिन्होंने उसका सम्मान करना शुरू किया था, दूर और दूरतर हटते जा रहे हैं और शायद उनमें से किसी को भी अब वह नहीं देख पायेगी।
उसे उस इंजन का ख्याल आया, नाव और अपनी खान का ध्यान आया-उन सभी चीजों की याद आयी जो हाल में उसके लिए इतनी प्यारी और आवश्यक चीजें बन गयी थीं। लेकिन ट्रेन उसको इन सब चीजों से दूर करते हुए बढ़ी ही चली जा रही थी।
(1951)