बारिश (मलयालम कहानी) : एम. डी. राधिका
Barish (Malayalam Story in Hindi) : M. D. Radhika
मैं हूँ बारह साल की लड़की मेघा। मेरी माँ की सहेली ने कल खुदकुशी की। आज के अखबार में पढ़ा। एक साल पहले तक हम पड़ोसी थे। वे मेरे नगर की सबसे खूबसूरत औरत थीं।
बाहर बारिश हो रही है। शब्दों से परे किसी दु:ख के साथ सदा आने वाली बारिश ! किन्तु आज बारिश के चमकदार पंखें फड़फड़ा कर किसी अज्ञात दुनिया की ओर, कोई चीज ढूँढ कर जाने वाले मेरे मन की चिड़िया को भीगो रही है...।
माँ ने बहुत दिनों पहले मृत्यु का अर्थ बता दिया था। वही बात याद आती है। सिनेमा देखते वक्त अचानक सो जाने के समान। माँ को कविता लिखने का शौक है। वर्षाकाल माँ को भी पसंद है। कदाचित् इसलिए उन्होंने मेरा नाम मेघा रखा होगा। माँ ने मुझे 'मेघ संदेश' की कथा सुनाई थी। उस दिन मेरा संसार और भी व्यापक हो गया। मुझे कभी नहीं लगता था कि इस घर में सिर्फ मैं और माँ रहती हैं। मन के सहारे उड़ने और मग्न न होने लायक कौन-सी चीज है, इस दुनिया में ?
मुझे इस बात पर अफसोस लगता है कि विनु दीदी ने हमें धोखा-सा दिया है। नाराज भी होती हैं। कैसे यह रूपवती औरत अपने को एक राख के ढेर और हड्डी के टुकड़ों के रूप में बदलने की आग को मन में धधका पायी ?
आत्मनिंदा की स्थिति तक किसी से प्रेम मत करना—एक बार उन्होंने कहा था।
माँ और वे परस्पर बातें करती थीं। ऐसे समय अक्सर मैं उनके पास खड़ी होती थी। विनु दीदी रोती थी तब भी मेरी माँ मुस्कुराकर बातें करती थीं। उस समय माँ की ओर देखना मुझे ज्यादा पसंद था। वे उतनी बड़ी खूबसूरत स्त्री नहीं थीं। विनु दीदी की आँखें, कान, ओंठ, सब को किसी शिल्पी ने सूक्ष्म और पूर्ण शैली में गढ़ लिया-सा प्रतीत होता था। माँ का रूप सीधा और सपाट था। किन्तु वे हमेशा ऊपरी हिस्से तक जीवन के शुद्ध शहद को भरे रखे बर्तन के समान है।
शादी के बाद दो साल ही गुजरे थे। मेरी माँ विधवा बन गयी। लोग मानते हैं कि मेरी भलाई के लिए उन्होंने दुबारा शादी नहीं की। कुछ की राय में पिताजी के बारे में सोचकर उन्होंने ऐसा किया है। विनु एक बात मुझे कहने दो, याद है, एक बार माँ ने विनु दीदी से कहा था—ऐसी बात नहीं...कुछ स्वार्थपूर्ण कारणों से ही मैंने दुबारा शादी नहीं की। फिर एक बात अगर मेघा के पिताजी को हतप्रभ करने वाले आदमी से मिलती तो मैं ज़रूर, दुबारा शादी करती। किन्तु मैं जानती हूँ कि ऐसा कभी नहीं होगा...।
वह बात कहते समय माँ की आँखें बस चमक उठती हैं। विनु दीदी कहती थीं- तुम्हें एक दर्शन लाभ हुआ। इसलिए तुम विश्वास कर सकती हो। भाग्यशाली हो। किन्तु संसार के अधिकांश लोग उस सौभाग्य से वंचित रहते हैं। तब भी माँ सौम्य होकर कहती थीं विनु, तेरा अश्रुकण तनिक भी सुन्दर नहीं है। तेरा मुख कितना सुंदर है। मैं कहती थी न ? बेटी प्यार को कभी भी मजबूरन मत मोल लेना। स्नेह के मामले में एक ही कानून है उसके लिए लायक बनना। इस सत्य को अपनाना। धैर्यशाली भी बनना। तब तुझे अपना रास्ता अपने आप दीख पड़ेगा।
नहीं, मेघा की माँ विनु दीदी, मुझे गोद में बिठाकर कहती स्नेह की दुनिया में हमेशा दो प्रकार के लोग हैं वे स्नेह देने के लिए और स्नेह पाने के लिए पैदा होने वाले हैं। पूरी वेदनाएँ प्रथम श्रेणी के लोगों की होंगी। फिर वे मेरे चेहरे को पकड़कर हँसने की कोशिश करेंगी। मेघा बिटिया, मुझे तुझसे ईर्ष्या होती है। तेरा जन्म सिर्फ पाने के लिए हुआ है। मैंने नटखट स्वर में पूछा कि कैसे इसका पता चलेगा। तब उन्होंने इसी प्रकार कहकर मेरे माथे का चुंबन लिया।
एक बार सिनेमा देखने गयी तो विनु दीदी के पति और एक अजनबी औरत को साथ बैठते हुए देखा। एहसास हुआ कि उन्हें उस समय हमारे साथ देखने की आशा नहीं थी। वह एक कार्य-दिवस था—एक शनिवार। माँ ने सुना था कि बढ़िया फिल्म है और इसे देखने के लिए वे दफ्तर से जल्दी आयी थीं। सामने से होकर हमें अपनी सीट की ओर जाना पड़ा। विनु दीदी इस प्रकार खड़ी थीं, मानो वज्राघात पड़ा हो। माँ ने धीरे से आगे बढ़ने के लिए मजबूर किया। उस आदमी की दृष्टि स्क्रीन पर ही पड़ी थी। बाह्य संसार के बारे में उसने लापरवाह होने का बहाना किया। पुरुष की तुरंत खामोशी का कारण अज्ञात था। कदाचित् इस भाव से युवती चारों ओर देखने लगी।
उस दिन सिनेमा खतम होते समय विनु दीदी रूमाल से सिसक को दबाते हुए रो रही थीं...। मुझे ही लगता था कि मेरे मन को कच्चे फल का कसैला रस, तृण की नोक की धृष्टता से बींध रहा है। हाँ, किसी दिन मैं भी माँ के समान बनूँगी। छलक न उठनेवाली स्वच्छ चाँदनी की-सी आंतरिक ताकत की मालकिन। मुझे संवेदना नहीं हुई, जीवन से विद्वेष लगा। एक विरक्ति। मैं उसको भलना चाहती थी। इसके लिए अपने मन में स्वर्ण लिपियों में अंकित माँ के उन शब्दों की ओर ध्यान दिया। स्नेह की दुनिया में एक ही कानून है—उसके लिए लायक बनना।
बारिश खत्म हो गयी। मैं इस खिड़की के नज़दीक से हटी नहीं। माँ दरवाजे पर आकर पुकारती हैं...आ जा, कॉफी पीकर तैयार होना है। आज हमें बुक शॉप जाना है।
माँ हमेशा मेरे मन के बंद दरवाजों को अनायास खोलती है। उधर रहती चिड़िया के लिए अनंत आसमान तैयार करती है। माँ मेरी माँ...
अनुवाद : डॉ. आरसु