बारिदा शिमाली (कहानी) : सआदत हसन मंटो
Barida Shimali (Hindi Story) : Saadat Hasan Manto
दो गॉगल्स आईं। तीन बुश शर्टों ने उन का इस्तिक़बाल किया। बुश शर्टें दुनिया के नक़्शे बनी हुई थीं, उन पर परिंदे, चरिंदे, दरिंदे, फूल बूटे और कई मुल्कों की शक्लें बनी हुई थीं।
दोनों गॉगल्स ने अपनी किताबें मेज़ पर रखीं। अपने डस्ट कौर उतारे और बुश शर्टों के बटन बन गईं।
एक गॉगल ने इस बुशशर्ट से जो ख़ालिस अमरीकी थी, कहा “आप का लिबास बड़ा वाहियात है।”
वो बुशशर्ट हंसा। “तुम्हारे गॉगल्स बड़े वाहियात हैं। उसे लगा कि तुम ऐसी दिखाई देती हो जैसे रोशन दिन अंधेरी रात बन गया है।”
इस अंधेरी रात ने उस बुशशर्ट से कहा। “मैं तो चांदनी रात हूँ।”
अमरीकी बुशशर्ट ने उस को एक कोह हिमाला पेश किया जो बहुत ठंडा और मीठा था।
उस ने चम्मच से उस कोह हिमाला को सर कर लिया। लेकिन इस मुहिम के दौरान में उस को बड़ी कोफ़्त हुई....... वो बर्फ़ों की आदी नहीं थी। वो मजबूरन अपनी सहेली दूसरी गॉगल्स के साथ आगई थी कि वहां उस का चहेता बुशशर्ट मिल गया।
दूसरी गॉगल्स अपने बुशशर्ट से अलाहिदा बातें कर रही थी।
“आज तुम इतनी हसीन क्यों दिखाई दे रही हो”
“मुझे क्या मालूम”
“अपनी चकीं उतार दो”
“क्यों?”
“मुझे तुम्हारी आँखें नज़र नहीं आतीं।”
“मेरा दिल तो तुम्हें नज़र आरहा होगा।”
“नज़र आता रहा है................. नज़र आता रहेगा................. लेकिन मुझे तुम्हारी आँखों पर ये ग़िलाफ़ पसंद नहीं।”
“तेज़ रोशनी मुझे पसंद नहीं।”
“क्यों?”
“बस नहीं.............. तुम्हारी बुशशर्ट भी मुझे पसंद नहीं।”
“क्यों?”
“इस लिए कि इस का डिज़ाइन बहुत बे-हूदा है.............. ऐसा मालूम होता है कि आइसक्रीम में कीड़े मकोड़े चल रहे हैं।”
“तुम खा तो चुकी हो।”
“मैंने तो सिर्फ़ चखी है, खाई कब है?”
“आप बारिदा शुमाली में सिर्फ़ आइसक्रीम चखने के लिए ही आती हैं”
“आप मजबूर करते हैं तो मैं आती हूँ, वर्ना मुझे उस जगह से कोई रग़बत नहीं।”
“मैं ये चाहता था कि हम दोनों मिल कर कोई मुहिम सर करें।”
“कौन सी मुहिम?”
“बे-शुमार मुहिमें हैं.............. लेकिन एक सब से बड़ी है।”
“कौन सी?”
“किसी आतिंश फ़िशां पहाड़ के अंदर कूद जाएं और वहां के हालात मालूम करें।”
मैं तैय्यार हूँ.............. लेकिन फिर मैं यहां आकर आइसक्रीम ज़रूर खाऊंगी।”
“मैं ख़िलाऊँगा तुम्हें”
दोनों बाँहों में बाँहें डाले एक ऐसी दोज़ख़ में चले गए जो आहिस्ता आहिस्ता ठंडी होती गई। इस गॉगल्स की सारी किताबें उस बुशशर्ट की लाइब्रेरी में दाख़िल होगईं।
दूसरी गॉगल्स ने अपनी बुशशर्ट को अपने बुलाउज़ की सारी किताबें पढ़ाईं मगर उस की समझ में न आईं, ऐसा मालूम होता था कि वो बुशशर्ट किसी घटिया क़िस्म के दर्ज़ी की सिली हुई है।
उस ने बारिदा शिमाली में उस से कहा। “तुम आइसक्रीम न खाया करो.............. हम आइन्दा आतिशीं हाऊस में जाया करेंगे................
दूसरी गॉगल्स गलगबाने लगी। इस गलगाहट में उस ने अपनी बुशशर्ट के काज बनाने शुरू कर दिए और इन में कई फूल टॉनिक दिए।
ये बुशशर्ट घटिया किस्म के दर्ज़ी की सिली हुई नहीं थी, असल में उस का कपड़ा खुर्दरा था, जैसे टाट हो, इस में दूसरी गॉगल्स ने अपनी मख़मल के कई पैवंद लगाए, मगर ख़ातिर-ख़्वाह नतीजा बरामद न हुआ।
वो आतिशीं हाऊस में भी कई मर्तबा गए, वहां उन्हों ने कई गिलास पिघली हुई आग के पिए। मगर कोई तस्कीन न हुई।
दूसरी गॉगल्स हैरान थी कि उस का बुशशर्ट जिस के लिए उस ने अपने बुलाउज़ के तमाम बख़िए उधेड़ दिए, उस से मुल्तफ़ित क्यों नहीं होता। वो उस की हर सिलवट से प्यार करती थी। लेकिन वो बारिदा शुमाली में और आतिशीं हाऊस में उस के ख़ूबसूरत फ़्रेम से कोई दिलचस्पी लेता ही नहीं था।
अजीब बात है कि वो बारिदा शुमाली में गर्म हो जाता और आतिशीं हाऊस में ओला सा बन जाता। दूसरी बुशशर्ट बहुत हैरान थी कि ये क्या माजरा है!
उस ने पहली गॉगल्स को जो उस की सहेली थी, एक ख़त लिखा और उस को अपना सारा दुख बताया।
उस ने जवाब में ये लिखा। “तुम कुछ फ़िक्र न करो। ये बुशशर्ट ऐसे ही होते हैं। कभी सिकुड़ जाते हैं। कभी फैल जाते हैं। मेरा ख़याल है कि तुम्हारी लांड्री में भी कोई नुक़्स है। उसे दूर करने की कोशिश करो। तुम्हारी इस्त्री भी ऐसा मालूम होता है, ख़राब होगई है, इसे ठीक कराओ। कहीं करंट तो नहीं मारती?”
दूसरी गॉगल्स ने उसे लिखा। “कभी कभी मुझे ऐसा महसूस होता है कि मेरी इस्त्री करंट मारती है............ मेरा बुशशर्ट गीला हो चुका होता है कि मेरी इस्त्री गर्म होती है, मैं जब इस पर फेरती हूँ तो मुझे बिजली के धचके लगते हैं।”
जवाब में उस की सहेली ने लिखा। “मैं तुम्हारी इस्त्री की ख़राबी समझ गई हूँ। नया प्लग भेज रही हूँ, उस को लगा कर देखो, शायद ये ख़राबी दूर हो जाये।”
वो प्लग आया। बड़ा ख़ूबसूरत था। मगर जब उस ने अपनी इस्त्री में लगाना चाहा तो फ़िट न हुआ। कंडम करके उस ने वापिस कर दिया, और अपने बुशशर्ट की रफू गिरी शुरू करदी।
ये काम बड़ा नाज़ुक था मगर इस दूसरी गॉगल्स ने बड़ी मेहनत से किया पर नतीजा फिर भी सिफ़र रहा ........ वो बारिदा शुमाली में गई। वहां उस ने पाँच कोह हिमाला चमचों से सर किए........... वहां से यख़-बस्ता हो के उठी और एक निहायत वाहियात बुशशर्ट के साथ आतिशीं हाऊस जा कर उस ने दस ज्वालामुखी निगले और वापस अपने चमड़े के थैले में आगई।
दूसरे दिन वो फिर अपने चहेते बुशशर्ट से मिली। उस को इस ने बताया कि वो रात एक निहायत लग्व क़िस्म के बुशशर्ट के साथ आतिशीं हाऊस गई थी, उस ने क़तअन बुरा न माना, वो सोचने लगी कि ये कैसा किलिफ़ लगा बुशशर्ट है जिस की जेबों में रश्क और हसद के सिक्के खनखनाते ही नहीं।
उस ने फिर अपनी सहेली गॉगल्स को ख़त लिखा और सुनाया। “तुम्हारा भेजा हुआ प्लग मेरी इस्त्री में लगा ही नहीं................ मैंने वापस भेज दिया था। उम्मीद है कि तुम्हें मिल गया होगा............. अब मुझे तुम से ये पूछना है कि मैं क्या करूं.............. वो मेरा बुशशर्ट................ समझ में नहीं आता क्या शैय है............. ख़ुदा के लिए आओ.............. मैं बहुत परेशान हूँ, अपने बुशशर्ट को मेरा सलाम कहना, मेरा ख़याल है कि तुम उस को हर रात पहनती हो............ उस का कपड़ा बड़ा मुलाइम है।”
उस की सहेली, उस के बुलावे पर आगई, उस के साथ का अपना बुशशर्ट नहीं था........... दोनों बहुत ख़ुश थीं, उन के शीशे आपस में टकराए......... बड़ी खनकें पैदा हुईं, जैसे कई कांच की चूड़ियां एक कलाई में पड़ी बज रही हैं।
उस की सहेली गॉगल्स का फ्रे़म सुनहरा था। उसे देख कर दूसरी को थोड़ा सा रश्क हुआ, मगर उस ने इस जज़्बे को फ़ौरन दूर कर दिया और इस सुनहरे फ्रे़म का तआरुफ़ अपने बुशशर्ट से कराया ताकि वो उस के मुतल्लिक़ कोई राय क़ायम करे और बताए कि उस पर इस्त्री किस तरह करनी चाहिए। ताकि उस की सिलवटें दूर हो जाएं।
वो अपनी सहेली के बुशशर्ट से बड़े तपाक से मिली, उस ने बड़े ग़ौर से उस का टांका टांका देखा, मगर उसे कोई ऐब नज़र न आया वो उस के अपने बुशशर्ट के मुक़ाबले में कई दर्जे अच्छा सिला हुआ था।
इन दोनों की मुलाक़ातें होती रहें, आख़िर एक दिन उन्हों ने बारिदा शुमाली जाने का प्रोग्राम बनाया वो मालूम करना चाहती थी कि इस बुशशर्ट का रद्दे-अमल क्या होता है। वो अपनी सहेली गॉगल्स से कह गई थी कि वो अपने शीशों में से उस के बुशशर्ट को देखना चाहती है।
जब वो बारिदा शुमाली में गए तो वहां उस बुशशर्ट को आग लग गई जिस में उस ने अपनी साथी गॉगल्स को भी लपेट में ले लिया.............. दोनों देर तक उस आग में जलते रहे............. और उसे बुझाने के लिए आतिशीं हाऊस में चले गए................ चूँकि आबले ज़्यादा पड़ गए थे, इस लिए वो कई दिन उन का ईलाज बाहर ही बाहर करते रहे।
दूसरी गॉगल्स हैरान थी कि ये दोनों कहाँ ग़ायब होगए हैं.............. इस के दोनों शीशे धुनदले होते जा रहे थे कि अचानक उस की सहेली का बुशशर्ट आगया। उस ने उस को न पहचाना और कहा। “माफ़ कीजिएगा मेरे शीशे धुँदले होगए हैं।”
उस ने फ़ौरन उस के शीशे निकाले, उन को अपनी सांसों से पहले गर्म, फिर नम-आलूद किया, और अपने दामन से पोंछ कर साफ़ कर दिया।
वो हैरत-ज़दा होगई................ उस की ज़िंदगी में उस के शीशे कभी इतने साफ़ नहीं हुए थे........... दोनों बारिदा शुमाली में कोह हिमाला खाने के लिए गए............ वो ये खा ही रहे थे कि पहला बुशशर्ट दूसरी गॉगल्स के साथ आगया।
दोनों ख़ामोश रहे......... उन्हों ने दिल ही दिल में महसूस कर लिया कि वो ग़लत चोटियों पर चढ़ रहे थे।