बाँसुरी रस भरी : स्वीडिश लोक-कथा

Bansuri Ras Bhari : Lok-Katha Sweden

स्वीडन के एक शहर में एक मोहल्ले को संगीत मोहल्ले के नाम से जाना जाता था । कारण यह था कि वहाँ से गुजरने वाले व्यक्ति को हर तरफ से संगीत के सुर सुनाई देते थे। उस मोहल्ले में तीन संगीत विद्यालय थे । वहाँ योग्य संगीत शिक्षक अपने शिष्यों को लगन से संगीत शिक्षा दिया करते थे । और हर समय गहन अभ्यास करवाया करते थे ।

एक बार गुस्ताव नामक लड़का सागर तट पर घूमने गया । वहाँ लहरें तट से टकराकर खूब शोर कर रही थीं। जब लहरें सागर तट की और आतीं तो हवा में बाँसुरी के सुर गूंजने लगते और जैसे-जैसे लहरें तट से पीछे की ओर वापस जातीं तो संगीत की लहरियाँ धीमी होती जातीं ।

कुछ देर बाद लहरें सगार तट की ओर लौटीं तो वंशी के सुर गूँजने लगे। गुस्ताव तट से टकरा कर वापस लौटती लहरों में कूद पड़ा और लहरों के साथ-साथ तैरने लगा। इस बार वंशी की धुन उतनी ही तेज सुनाई दी। तभी उसने लहरों पर एक बाँसुरी देखी और तैरता हुआ जाकर उसे ले आया ।

गुस्ताव ने बाँसुरी लाकर अपने गुरुजी को भेंट कर दी। उन्हें बताया कि कैसे उसे आती-जाती लहरों के साथ बाँसुरी की धुन सुनाई देती थी । गुरुजी ने बाँसुरी होंठों से लगाई पर कोई सुर नहीं निकला। गुरुजी ने बाँसुरी गुस्ताव को लौटा दी। वह उससे क्रोधित थे। उन्हें लगा कि उनका प्रिय शिष्य गुस्ताव उनसे मजाक कर रहा था ।

गुस्ताव इस बात पर लज्जित हो उठा। उनसे क्षमा माँगकर बाँसुरी को वहीं फेंकने गया जहाँ से वह उसे मिली थी- अर्थात् समुद्र की लहरों में समुद्र तट की ओर बढ़ते समय उसने यूहीं बाँसुरी होंठों से लगाकर हवा फूँकी तो मधुर सुर उभरने लगे। गुस्ताव चकित हो गया। वह बाँसुरी बजाने लगा और मस्ती से झूमने लगा। वह हैरान था कि आखिर गुरुजी के बजाने पर बाँसुरी से आवाज क्यों नहीं आई थी।

गुस्ताव सागर तट पर जा खड़ा हुआ और बाँसुरी बजाने लगा। उसने मन में कहा, 'पागल, यह बाँसुरी अद्भुत है। समुद्र की भेंट है। इसे क्यों फेंकता है।' बस, गुस्ताव ने बाँसुरी अपने पास रख ली और उसके बारे में अपने गुरुजी से कोई जिक्र नहीं किया।

कुछ समय बाद गुस्ताव की संगीत शिक्षा समाप्त हुई और गुरुजी से अनुमति लेकर वह अपने घर चला गया। वह समुद्र तट के पास बसे एक गाँव में रहता था।

अब तो वह अकसर पथरीले सागर तट पर जा बैठता और जी भर कर बाँसुरी बजाता। जल्दी ही गुस्ताव पूरे स्वीडन में अद्भुत बाँसुरी वादक के रूप में प्रसिद्ध हो गया ।

स्वीडन के राजा को संगीत का शौक था। उसकी इकलौती बेटी भी संगीत की दीवानी थी। आखिर एक दिन स्वीडन के राजा ने गुस्ताव को दरबार में बुलवाया। गुस्ताव गया। उसने भरी सभा में बाँसुरी बजाई तो सब मस्त हो उठे। राजा तो बहुत प्रसन्न हुआ। राजकुमारी गुस्ताव की बाँसुरी नहीं सुन पाई क्योंकि तब वह अपने नाना के घर गई हुई थी ।

स्वीडन के मन्त्री का बेटा भी बाँसुरी बजाने का शौकीन था । उसके चापलूस उसे देश का सबसे अच्छा बाँसुरी वादक कहते नहीं अघाते थे । मन्त्री का बेटा भी स्वयं को वैसा ही समझता था। लेकिन गुस्ताव की प्रशंसा से वह जल उठा। गुस्ताव को राजा की नजरों में गिराने का षड्यन्त्र करने लगा। क्योंकि वह रोज राजा को विशेष रूप से बाँसुरी सुनाया करता था ।

एक दिन मन्त्री के बेटे ने दोस्ती का स्वाँग करते हुए गुस्ताव को अपने महल में दावत पर बुलवाया। बातों-बातों में उसने कहा, "दोस्त! दो दिन बाद पूर्णिमा है। मैंने सुना है कि उस रात परी रानी समुद्र तट पर आती है । तुम भी वहाँ चले जाओ। उस समय अपनी बाँसुरी परी रानी को सुनाना । अगर वह खुश हो गई तो अपने जादू से तुम्हें कोई भी दिव्य पुरस्कार दे सकती है।"

गुस्ताव ने कहा, "मैं किसी पुरस्कार की आशा में बाँसुरी नहीं बजाता । मुझे इससे आनन्द मिलता है इसलिए बजाता हूँ । हाँ मैं परी रानी को अवश्य बाँसुरी सुनाऊँगा।”

असल में मन्त्री के बेटे ने गुस्ताव को पूर्णिमा की रात समुद्र तट पर बाँसुरी बजाने का सुझाव देकर एक गहरी चाल चली थी । पूर्णिमा की रात स्वीडन की राजकुमारी समुद्र तट पर जाया करती थी । लेकिन यह बात गुस्ताव को पता नहीं थी ।

मन्त्री के बेटे ने सोचा था - गुस्ताव स्वीडन की राजकुमारी को ही परी समझकर बाँसुरी बजाएगा और सैनिकों द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाएगा। क्योंकि राजकुमारी के आगमन के समय कोई भी नागरिक सागर तट पर नहीं रह सकता था। अगर कोई गलती से चला जाता तो गिरफ्तार होने पर उसे मृत्युदण्ड मिलना निश्चित था। कुटिल मन्त्री पुत्र ने इस तरह गुस्ताव को समाप्त करने की योजना बनाई थी।

पूर्णिमा की रात आई। बेचारा गुस्ताव बाँसुरी लेकर समुद्र तट पर जा पहुँचा। कुछ देर बाद स्वीडन की राजकुमारी की नौका वहाँ आ पहुँची । गुस्ताव उसे ही परी रानी समझकर बाँसुरी बजाने लगा। राजकुमारी के साथ आए सैनिकों ने झट गुस्ताव को पकड़ लिया। उसे मृत्युदण्ड की सजा सुना दी गई । पर राजकुमारी के कानों में गुस्ताव की बाँसुरी के सुर पड़े थे। सुनकर वह चकित रह गई थी। उसने कहा, “उस कैदी को बुलवाया जाए। मैं उससे बाँसुरी सुना चाहती हूँ।”

सैनिक गुस्ताव को ले आए। उसने राजकुमारी को बाँसुरी सुनाई तो सुनकर वह मस्त हो गई। उसका मन अभी गुस्ताव की बाँसुरी से भरा नहीं था। उसने गुस्ताव की सजा माफ कर दी और हर दिन उससे बाँसुरी सुनने लगी। इस तरह मन्त्री पुत्र का षड्यन्त्र बेकार हो गया। पर वह आसानी से हार मानने वाला नहीं था। उसने रात के समय अपने आदमी भेजकर गुस्ताव की बाँसुरी चोरी करवा ली। इस तरह वह सोचता था कि बाँसुरी न रहने पर गुस्ताव राजकुमारी के सामने बाँसुरी नहीं बजा पाएगा और उसे सजा मिलेगी।

अगले दिन गुस्ताव राजकुमारी को बाँसुरी नहीं सुना सका तो मन्त्री पुत्र ने बाँसुरी बजाने का प्रस्ताव किया। वह गुस्ताव से चुराई हुई बाँसुरी राजकुमारी को सुनाने लगा । सुनकर राजकुमारी हँसने लगी, क्योंकि बाँसुरी से बड़े भद्दे सुर निकल रहे थे। बाँसुरी बजाते बजाते मन्त्री पुत्र के हाथ से बाँसुरी उछलकर गुस्ताव के हाथ में चली गई । अपनी बाँसुरी वापस पाकर गुस्ताव बहुत खुश हुआ और बाँसुरी बजाने लगा। सुनकर राजकुमारी आनन्द से झूमने लगी । गुस्ताव की बाँसुरी चोरी करने के आरोप में मन्त्री के बेटे को जेल में डाल दिया और मन्त्री को भी उसके पद से हटा दिया गया।

अब गुस्ताव स्वीडन का बाँसुरी सम्राट था ।

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