बन्दर, शार्क और धोबी की गधी : ज़ांज़ीबार (तंजानिया) लोक-कथा
Bandar, Shark Aur Dhobi Ki Gadhi : Zanzibar (Tanzania) Folk Tale
एक बार की बात है कि कीमा बन्दर और पापा शार्क बहुत गहरे दोस्त बन गये। बन्दर तो एक बहुत बड़े कूयू के पेड़ पर रहता था जो समुद्र के किनार ही उगा हुआ था। उसकी कुछ शाखें जमीन की तरफ थीं और कुछ शाखें समुद्र के ऊपर थीं और पापा शार्क समुद्र में रहता था।
हर सुबह जब बन्दर कूयू पेड़ की गिरी का नाश्ता कर रहा होता तो पापा शार्क किनारे पर पेड़ के नीचे आता और आवाज लगाता — “मुझे थोड़ी सी गिरी दो न कीमा भाई। ” और बन्दर उसके लिये कई सारी गिरी नीचे फेंक देता।
यह सिलसिला कई महीनों तक चलता रहा कि एक दिन पापा शार्क ने बन्दर से कहा — “कीमा भाई, तुमने मेरे ऊपर बहुत मेहरबानियाँ की हैं। मैं चाहता हूँ कि एक दिन तुम मेरे घर चलो ताकि मैं तुम्हारी उन मेहरबानियों का कुछ बदला चुका सकूँ। ”
बन्दर बोला — “मैं तुम्हारे साथ कैसे जा सकता हूँ पापा शार्क। हम जमीन पर रहने वाले लोग हैं पानी में नहीं जा सकते। ”
शार्क बोला — “तुम उसकी चिन्ता मत करो। मैं तुमको पानी में ले भी जाऊँगा और एक बूँद पानी भी तुमको नहीं छू पायेगा। ”
बन्दर बोला — “तब ठीक है। चलो चलते हैं। ”
सो पापा शार्क ने कीमा बन्दर को अपनी पीठ पर बिठाया और नदी में तैर गया। जब वे लोग बीच पानी में पहुँच गये तो शार्क बोला — “तुम मेरे दोस्त हो इसलिये मैं तुमको सच सच बताता हूँ। ”
बन्दर यह सुन कर आश्चर्य में पड़ गया और बोला — “क्या बात है पापा शार्क क्या बात है? वह क्या सच है जो तुम मुझे बताना चाहते हो?”
पापा शार्क बोला — “सच तो यह है बन्दर भाई कि हमारा राजा बहुत बीमार है और हमारे डाक्टर ने हमें बताया है कि उसकी दवा केवल बन्दर के कलेजे से ही बन सकती है। ”
कीमा बन्दर एक पल सोच कर बोला — “तुम तो बहुत ही बेवकूफ हो। तुमने यह बात मुझे चलने से पहले क्यों नहीं बतायी?”
पापा शार्क ने पूछा — “पर वह क्यों?”
कीमा बन्दर थोड़ी देर तो चुप रहा उसने कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि वह अपने बचाव का कोई तरीका सोच रहा था।
कीमा बन्दर को चुप देख कर पापा शार्क ने पूछा — “अरे तुम बोलते क्यों नहीं?”
कीमा बन्दर बोला — “अब मैं क्या बोलूँ क्योंकि अब तो बहुत देर हो गयी पापा शार्क। अगर तुमने यह बात मुझे चलने से पहले बतायी होती तो मैं अपना कलेजा अपने साथ ले कर आता। ”
पापा शार्क ने आश्चर्य से पूछा — “क्या मतलब? क्या तुम्हारा कलेजा तुम्हारे पास नहीं है?”
कीमा बन्दर बोला — “ओह तो तुम हमारे बारे में कुछ भी नहीं जानते क्या? हम बन्दर लोग जब बाहर जाते हैं तो अपना कलेजा पेड़ पर ही छोड़ आते हैं और बिना कलेजे के ही इधर उधर घूमते रहते हैं। तुमको मेरा विश्वास नहीं हो रहा? तुम समझ रहे हो कि मैं डर रहा हूँ?
तो फिर चलो, हम तुम्हारे घर ही चलते हैं। वहाँ तुम मुझे मार सकते हो और मेरा कलेजा ढूँढ सकते हो पर वह सब बेकार ही रहेगा क्योंकि वह तो वहाँ है ही नहीं तो वह तुमको मिलेगा कहाँ से। ”
बन्दर शार्क का दोस्त था सो शार्क को बन्दर पर विश्वास हो गया। वह बोला — “अगर ऐसा है तो चलो फिर वापस तुम्हारे घर ही चलते है तुम्हारा कलेजा लाने। ”
कीमा बोला — “नहीं नहीं, पहले अब हम तुम्हारे घर ही चलते हैं। ”
लेकिन शार्क बोला — “नहीं नहीं, पहले तुम्हारे घर चलते हैं तुम्हारा कलेजा लाने के लिये। ”
आखिर बन्दर ऊपर से अपने घर जाने के लिये अनमनापन दिखाते हुए अपने घर ही चलने को तैयार हो गया और शार्क बन्दर के घर की तरफ वापस लौट पड़ा।
शार्क के किनारे पहुँचते ही बन्दर जमीन पर कूद गया और जल्दी से पेड़ पर चढ़ गया। वहाँ से वह बोला — “शार्क पापा, मेरा इन्तजार करो। मैं जरा अपना कलेजा ले लूँ फिर चलते हैं। ”
जब वह पेड़ पर काफी ऊँची टहनियों पर पहुँच गया तो वहाँ जा कर वह चुपचाप शान्ति से बैठ गया। शार्क बेचारा काफी देर तक इन्तजार करता रहा फिर बोला — “कीमा भाई, आओ चलें। ”
पर कीमा बन्दर चुपचाप वहीं बैठा रहा। शार्क ने फिर कीमा को आवाज लगायी पर इस बार बन्दर बोला “कहाँ?”
“मेरे घर। ”
कीमा बन्दर चिल्लाया — “क्या तुम पागल हो?”
शार्क ने पूछा — “क्यों, मैं पागल क्यों हूँ?”
बन्दर बोला — “क्या तुमने मुझे धोबी की गधी समझ रखा है?”
शार्क ने पूछा — “धोबी की गधी में क्या खास बात है भाई?”
बन्दर बोला — “उसकी खासियत यह है कि न तो उसके कलेजा होता है और न ही उसके कान होते हैं। ”
अब शार्क अपनी उत्सुकता नहीं रोक पाया उसने बन्दर से उस धोबी की गधी की कहानी सुनाने के लिये कहा जिसके न तो कलेजा था और न कान थे। बन्दर ने शार्क को धोबी की गधी की कहानी कुछ ऐसे सुनायी —
धोबी की गधी की कहानी
एक धोबी के पास एक गधी थी। उसका नाम पूँडा था। वह धोबी अपनी गधी को बहुत प्यार करता था पर किसी वजह से वह गधी घर से भाग गयी और जंगल चली गयी। वहाँ जा कर कोई काम न होने की वजह से वह सुस्ती की ज़िन्दगी बिताने लगी और सुस्ती की ज़िन्दगी बिताने की वजह से वह बहुत मोटी भी हो गयी।
एक दिन सूँगूरा नाम का बड़ा खरगोश जंगल में घूमते घूमते पूँडा गधी के पास से गुजरा। अब बड़ा खरगोश तो बहुत ही चालाक जानवर होता है। अगर तुम ध्यान से देखो तो उसका मुँह हमेशा चलता ही रहता है। ऐसा लगता है जैसे वह हमेशा अपने आपसे हर तरीके की बातें करता रहता है।
सो जब सूँगूरा बड़े खरगोश ने पूँडा गधी को देखा तो सोचा “ओह यह गधी तो बहुत मोटी है। इसमें से तो हमको बहुत सारा माँस मिलेगा। ”
तो अब वह खुद तो गधी को मार नहीं सकता था सो वह तुरन्त ही सिम्बा शेर के पास गया।
सिम्बा शेर काफी बीमार था और बेचारा अभी पूरी तरह से ठीक भी नहीं हो पाया था सो काफी कमजोर भी था। वह शिकार के लिये भी नहीं जा सकता था और वह भूखा भी बहुत था।
सूँगूरा बड़ा खरगोश उससे बोला — “ंमैं कल तुम्हारे लिये काफी माँस ला सकता हूँ जो हम दोनों के लिये काफी से भी ज़्यादा होगा पर तुमको उस शिकार को मारना पड़ेगा। ”
सिम्बा शेर बोला — “दोस्त यह तो बड़ी अच्छी बात है। ठीक है, तुम उसे ले कर आओ फिर मैं देखता हूँ। ”
यह सुन कर सूँगूरा बड़ा खरगोश तुरन्त ही जंगल में भाग गया। वह गधी के पास पहुँचा और उससे बोला — “ओ मिस पूँडा, मुझे तुम्हारा हाथ माँगने के लिये तुम्हारे पास भेजा गया है। ”
पूँडा गधी ने पूछा — “किसने भेजा है तुम्हें? किसने माँगा है मेरा हाथ?”
“सिम्बा शेर ने। ”
यह सुन कर तो गधी बहुत ही खुश हो गयी। वह बोली — “ओह यह तो बहुत ही अच्छा रिश्ता है चलो जल्दी चलें। ”
सो दोनों शेर के घर आ पहुँचे। शेर ने उनको प्रेम से अन्दर बुलाया और बैठाया। सूँगूरा बड़े खरगोश ने सिम्बा शेर को यह बताने के लिये अपनी भौंहों से इशारा किया कि यही है वह शिकार जिसकी मैं कल बात कर रहा था। मैं बाहर जाता हूँ और मैं वहीं इन्तजार करता हूँ।
फिर उसने पूँडा से कहा — “मिस पूँडा, मुझे थोड़ा काम है, वह काम करके मैं अभी वापस आता हूँ। तब तक तुम अपने होने वाले पति के पास बैठ कर गपशप करो। ” और यह कह कर वह बड़ा खरगोश वहाँ से बाहर भाग गया।
जैसे ही बड़ा खरगोश बाहर गया शेर गधी के ऊपर कूद पड़ा। दोनों में बहुत ज़ोर की लड़ाई हुई। गधी ने शेर को बहुत ज़ोर से मारा। शेर उस समय बहुत कमजोर था। काफी कोशिशों के बाद भी शेर गधी को न मार सका और वह गधी शेर को नीचे पटक कर जंगल में अपने घर भाग गयी।
थोड़ी ही देर में बाहर से बड़ा खरगोश आ गया और शेर से पूछा — “सिम्बा शेर जी क्या हुआ? क्या तुमने उस गधी को मार दिया?”
शेर बोला — “नहीं, मैं उसको नहीं मार सका। बल्कि वह मुझे ठोकर मार कर चली गयी। हालाँकि मैं अभी ज़्यादा ताकतवर नहीं हूँ फिर भी मैंने भी उसकी खूब धुनाई की। ”
बड़ा खरगोश बोला — “कोई बात नहीं। इस बात के लिये तुम अपने आपको दोष मत दो। मैं फिर देखूँगा। ”
फिर खरगोश काफी दिनों तक इन्तजार करता रहा जब तक कि शेर और गधी दोनों ही ठीक नहीं हो गये।
एक दिन खरगोश ने फिर पूछा — “क्या कहते हो सिम्बा शेर? अब ले आऊँ उस गधी को?”
शेर बोला — “हाँ अब ले आओ तुम उसको। अब की बार मैं उसको फाड़ कर रख दूँगा। ”
सुन कर खरगोश फिर जंगल की तरफ चला गया।
गधी ने खरगोश को अपने घर में बुलाया और उससे जंगल की खबर पूछी। खरगोश बोला — “तुम्हारे प्रेमी ने तुमको फिर बुलाया है, चलो। ”
पूँडा बोली — “उस दिन तुम मुझे उसके पास ले गये थे न। उसने मुझे बहुत खरोंचा। अब तो मुझे उसके पास जाते में भी डर लगता है। ”
खरगोश बोला — “श श श। वह तो उसके तुमको सहलाने का एक ढंग था। वह तो तुमको बहुत प्यार करता है। ”
गधी बोली — “अच्छा? तो चलो मैं फिर चल कर देखती हूँ। ”
सो वे दोनों फिर शेर के पास चले। जैसे ही शेर ने उनको आते देखा तो वह गधी के ऊपर उछला और अब की बार उसने उस गधी के दो टुकड़े कर दिये।
फिर शेर ने खरगोश से कहा — “यह माँस ले जाओ और इसे भून कर ले आओ। और देखो, मुझे तो केवल इसका कलेजा और कान चाहिये। ”
खरगोश बोला “ठीक है” और गधी को ले कर चला गया।
उसने माँस को एक ऐसी जगह ले जा कर भूना जहाँ शेर उसको देख नहीं सकता था।
उसने गधी का कलेजा और कान निकाल कर एक तरफ रख दिये। बचे हुए माँस में से उसने पेट भर कर माँस खाया और फिर उसमें से भी जो बचा वह उठा कर रख दिया। इतने में ही शेर आ गया और उसने गधी का कलेजा और कान माँगे।
खरगोश बोला — “कलेजा और कान? वे कहाँ हैं?”
शेर गुर्राया — “क्या मतलब?”
खरगोश हँसा और बोला — “मैंने तुम्हें बताया तो था कि वह धोबी की गधी थी। ”
शेर बोला — “तो इससे क्या होता है। क्या धोबी की गधी के कलेजा और कान नहीं होते?”
खरगोश अपने सिर पर हाथ मार कर बोला — “तुम इतने बड़े हो गये सिम्बा और तुमको अभी तक यह पता नहीं चला कि अगर इसके कलेजा और कान होते तो क्या यह दोबारा तुम्हारे पास आती?”
यह तो शेर ने कभी सोचा ही नहीं था। शेर को खरगोश पर विश्वास हो गया कि इस धोबी की गधी के कलेजा और कान तो थे ही नहीं।
सो कीमा बन्दर ने शार्क से कहा — “क्या तुम मुझे धोबी की गधी समझते हो? जाओ जाओ और अपने घर चले जाओ। अब तुम मुझे कभी नहीं पा सकते और हमारी तुम्हारी दोस्ती भी खत्म। ”
(साभार : सुषमा गुप्ता)