बन्दर और खरगोश : कौंगो लोक-कथा

Bandar Aur Khargosh : Congo Folk Tale

यह लोक कथा मध्य अफ्रीका के कौंगो देश में बड़े लोग अपने बच्चों को यह सिखाने के लिये सुनाते हैं कि उनको भी बन्दर और खरगोश की तरह से आपस में अलग अलग स्वभाव का होते हुए भी एक दूसरे को सहते हुए प्यार से रहना चाहिये।

एक बन्दर और एक खरगोश बहुत अच्छे दोस्त थे। वे अक्सर साथ रहते थे और बहुत बात करते थे। वे एक दूसरे से बात करना बहुत पसन्द करते थे और उनकी दोस्ती भी बहुत अच्छी थी सिवाय दो बातों के।

बन्दर का साथ बहुत अच्छा था। वह बहुत अच्छी कहानी सुनाता था। पेड़ पर जहाँ वह बैठता था वहाँ से वह सारे जंगल को देख सकता था। उसको यह भी पता था कि किस जानवर के साथ क्या हो रहा था और वह उसे खरगोश को बताना चाहता था।

पर उसकी एक बुरी आदत थी वह यह कि बात करते समय वह खुजलाता रहता था। कभी वह अपना सिर खुजलाता, तो कभी वह अपना पेट खुजलाता, कभी वह अपनी बाँह खुजलाता और कभी अपना पिछवाड़ा।

इस तरह वह बात करते समय कुछ न कुछ खुजलाता रहता, और खुजलाता ही रहता। यह उसकी एक बहुत ही बुरी आदत थी और खरगोश को इस बात से बहुत परेशानी होती थी।

उधर खरगोश सारे मैदान में घूमता रहता। तो उसको हर घर में, हर घास के हर छेद में क्या होता रहता, यह सब मालूम रहता। और वह भी अपने दोस्त बन्दर से यह सब कहने के लिये बेताब रहता।

बन्दर की तरह खरगोश भी बहुत अच्छी कहानी सुनाता था पर बन्दर की तरह खरगोश की भी एक बुरी आदत थी और वह थी कि वह जब भी बात करता तो वह हमेशा हिलता रहता और इधर उधर घूमता रहता।

वह एक जगह बिना हिले बैठ ही नहीं सकता था। वह अपने कान भी हिलाता रहता। वह अपना सिर भी हमेशा हिलाता रहता क्योंकि उसको कभी आगे देखना होता था तो कभी पीछे।

पहले वह एक तरफ देखता, फिर दूसरी तरफ देखता। वह बात करते समय अपनी नाक भी सिकोड़ता रहता जैसे कुछ सूँघने की कोशिश कर रहा हो।

उसका यह बार बार हिलना बन्दर को बहुत परेशान करता। वह जब खरगोश से बात करता तो उसको खरगोश के इस हिलने से बहुत परेशानी होती।

एक दिन आखिर बन्दर से रहा नहीं गया। एक दिन जब वे बात कर रहे थे तो बन्दर बोला — “बन्द करो यह सब। ”

खरगोश बोला — “क्या यह सब?”

बन्दर बोला — “यही चारों तरफ देखना और हवा में चारों तरफ सूँघना। तुम हमेशा अपने कान फड़फड़ाते रहते हो और आगे पीछे देखते रहते हो। तुम अपनी इस बुरी आदत से मुझे बहुत परेशान करते हो। ”

“तुमने क्या कहा? मैं तुमको परेशान करता हूँ? और तुम तो बिना खुजलाये बात ही नहीं कर सकते हो। ज़रा अपनी तरफ तो देखो। तुम्हारी भी तो खुजलाने की बुरी आदत है।

तुम तो हमेशा ही खुजलाते रहते हो। देखो तुम तो अभी भी खुजला रहे हो। तुम अपना सिर खुजलाते हो, तुम अपना पेट खुजलाते हो, तुम अपनी बाँहें खुजलाते हो, यहाँ तक कि तुम तो अपना पिछवाड़ा भी खुजलाते हो। तुम एक जगह बिना खुजलाये बैठ ही नहीं सकते। ”

बन्दर बोला — “मैं जब चाहूँ तब बिना हिले बैठ सकता हूँ। समझे। ”

खरगोश बोला — “वह तो मैं भी बैठ सकता हूँ। मुझे हमेशा सूँघने और हिलने की जरूरत नहीं होती। मैं यह सब जब भी चाहूँ छोड़ सकता हूँ। ”

तब बन्दर ने उसको एक मुकाबले के लिये कहा। वह बोला — “मैं सारा दिन बिना खुजलाये रह सकता हूँ अगर तुम बिना सूँघे और बिना हिले रहो तो। हम अभी इसी समय से अपनी बुरी आदतें छोड़ देते हैं। ”

और दोनों एक दूसरे की तरफ देखते हुए दुखी से बैठ गये। बन्दर बिना खुजलाये चुपचाप बैठा रहा और खरगोश भी बिना हिले और बिना सूँघे बैठा रहा। दोनों में से कोई भी नहीं हिला।

बन्दर कुछ परेशान सा हो उठा उसकी उँगलियाँ जहाँ रखी थीं वहीं हिलने लगीं क्योंकि वह अपना सिर खुजलाना चाहता था। उसके पेट पर भी खुजली आ रही थी, उसकी बाँहों पर भी खुजली आ रही थी पर फिर भी वह चुपचाप बैठा रहा।

खरगोश भी बिना हिले बैठा था। वह अपनी नाक हिलाना चाह रहा था, हवा में सूँघना चाह रहा था कि कोई खतरा है या नहीं। वह इधर उधर यह भी देखना चाह रहा था कि कोई जंगली जानवर शिकार तो नहीं कर रहा था।

पर उसके बाद खरगोश ने बिल्कुल भी नहीं सूँघा और वह हिला भी नहीं।

आखिर खरगोश बोला — “बन्दर भाई मुझे एक विचार आया है। जब तक हम यहाँ अपनी बुरी आदतों को छोड़ कर बैठे हुए हैं तब तक हम एक दूसरे से कहानी ही क्यों न कहें ताकि हमारा दिन जल्दी कट जाये। ”

बन्दर बोला — “यह तो बड़ा अच्छा विचार है। तो चलो तो पहली कहानी तुम सुनाओ। ”

खरगोश बोला — “मैं एक बार तुमसे मिलने के लिये आने के लिये घास में से गुजर रहा था तो मैंने घास को सूँघा। मुझे पता चला कि घास में एक शेर था। मैं वहीं का वहीं रुक गया। पहले मैंने अपने बाँयी तरफ देखा फिर मैंने अपनी दाँयी तरफ देखा।

फिर मैंने हवा में सूँघा कि देखूँ कि शेर की खुशबू हवा में भी है या नहीं। फिर मैंने अपने कान हिलाये और सुनने की कोशिश की कि वहाँ शेर था कि नहीं।

पर वहाँ तो कोई शेर नहीं था सो फिर मैं नदी की तरफ चला जहाँ मुझे तुम मिल गये और फिर हम लोगों ने खूब बातें कीं। ”

इसके बाद वह फिर से चुपचाप बैठ गया। पर इस बीच बन्दर ने देख लिया कि कहानी सुनाते समय खरगोश हिला भी, उसने सूँघा भी और इधर उधर देखा भी। सो बन्दर ने भी कुछ ऐसी ही कहानी सुनाने का विचार किया।

अब बन्दर ने अपनी कहानी शुरू की — “कल जब मैं नदी के किनारे की तरफ जा रहा था तो रास्ते में मुझे गाँव के कुछ लोग मिल गये। उन्होंने सोचा कि मैंने उनके खेतों से उनका खाना चुराया है सो उन्होंने मेरे ऊपर पत्थर फेंकने शुरू कर दिये। एक पत्थर मेरे यहाँ लगा। ”

जैसे ही उसने यह कहा तो खरगोश ने देखा कि उसने अपना सिर छुआ और वहाँ खुजलाया।

“दूसरा मुझे यहाँ लगा, फिर एक यहाँ लगा, एक यहाँ लगा। ” यह सब कहते हुए उसने उन उन जगहों को छुआ जहाँ जहाँ उसको पत्थर लगे थे क्योंकि वहाँ वहाँ उसको खुजली आ रही थी और वहाँ वहाँ खुजलाया।

जब वह खुजला चुका तो वह बोला — “जब मुझे लगा कि अब सब खत्म हो गया तो फिर मैंने अपने सारे शरीर पर हाथ फेर कर देखा कि मुझे कहीं कोई चोट तो नहीं आयी थी। यह पक्का करने के बाद कि मैं बिल्कुल ठीक था मैं तुम्हारे पास चला आया। ”

यह सुन कर खरगोश मुस्कुराया और साथ में बन्दर भी। फिर उसके बाद दोनों ज़ोर से हँस पड़े। खरगोश जान गया था कि बन्दर क्या कर रहा था और बन्दर को भी पता चल गया था कि खरगोश क्या कर रहा था।

खरगोश बोला — “तुम यह मुकाबला हार गये। तुम अपनी सारी कहानी में खुजलाते रहे। ”

बन्दर बोला — “और तुम भी यह मुकाबला हार गये क्योंकि तुम भी अपनी कहानी में सारा समय सूँघते रहे, हिलते रहे और कूदते रहे। ”

खरगोश बोला — “मेरा ख्याल है कि हम दोनों में से कोई भी सारा दिन चुपचाप नहीं बैठ सकता। सूँघना, हिलना और कूदना यह खरगोश की आदत में है। ”

बन्दर बोला — “और खुजलाना एक ऐसी चीज़ है जो बन्दर लोग करते ही हैं। सो अगर हम एक दूसरे के दोस्त बने रहना चाहते हैं तो हम लोगों को एक दूसरे की बुरी आदतों की आदत डालनी ही पड़ेगी। ”

और फिर ऐसा ही हुआ। दोनों साथ साथ खुजलाते रहे, हिलते रहे, सूँघते रहे, कूदते रहे और एक दूसरे के दोस्त बने रहे।

(साभार : सुषमा गुप्ता)

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