बंद कमरा (उड़िया उपन्यास) : सरोजिनी साहू
अनुवादक : दिनेश कुमार माली
Band Kamra (Oriya Novel) : Sarojini Sahu
कटे हुए पंखों वाली एक परी हो तुम।" उसने लिखा था। हर रोज ऐसी ही कुछ-न-कुछ कविता लिखकर वह भेजता था, ठीक उसी तरह जैसे कोई अठारह-उन्नीस साल का एक नवयुवक अपनी स्कर्ट पहनने वाली प्रेमिका को लिख रहा हो। उसने अपने ई-मेल में लिखा था, "कटे हुए पंखों वाली एक परी हो तुम। तुम्हारे प्यारे-प्यारे उन पंखों को किसी ने अपने पास रख लिया है। अगर वे पंख तुम्हें कोई लौटा देता, तो क्या तुम मेरे पास होती ?"
कूकी उन ई-मेलों को बार-बार पढ़कर शर्म से लाल हो जा रही थी। जाने-अनजाने वे ई-मेल किसी की नजर में न पड़ जाए, यही सोचकर वह उन्हें एक जंक फोल्डर के अंदर डालकर रख देती थी. कुछ दिनों से उसे लग रहा था जैसे वह अपनी युवावस्था में लौट आई हो। सारी दुनिया उसे बहुत अच्छी लगने लगी थी। वह मानो लौट आई हो अपनी सोलह साल की उम्र में।
भले ही, कूकी एक कवयित्री नहीं थी, जैसे वह भी कोई कवि नहीं था; फिर भी उसका हर ई-मेल कविताओं से परिपूर्ण होने के साथ-साथ एक नएपन का आभास देता था। कविता लिखते-लिखते कभी वह अचानक से गद्य-जगत में प्रवेश कर जाता था तो कभी कभी गद्य लिखते लिखते अचानक से काव्य-जगत में कविता की धारा बनकर बहने लग जाता था।
पहले-पहले कूकी अपने मन के दरवाजे खोलने के लिए हिचकिचाहट अनुभव कर रही थी। इसलिए कुंठाग्रस्त होकर उसने उत्तर दिया था।
"आपने मेरे मन को कुरेद दिया, मेरा रोम-रोम सिहर उठा। उम्र के इस पड़ाव पर मेरी साँवली त्वचा अपने गृहस्थ-धर्म के पालन में व्यस्त है। मेरे अभ्यस्त पाँव बार-बार मेरे दरवाजे की चौखट पर लौट आते हैं। अब मेरे पंखों में वह पुरानी रंगत कहाँ ? कि तुम आवाज दो और मैं उड़ जाऊँ। अब मेरे लिए ना कोई विस्तीर्ण आकाश है और ना ही उसकी नीलिमा का कोई महत्व"।
कूकी के इस ई-मेल के जवाब में उसने लिखा था "तुम इतनी उदास क्यों हो ? शायद तुम्हें मालूम नहीं है, जब से तुम मेरी जिंदगी में आई हो, तब से मैने नए-नए सपनें देखना शुरू किया है। इससे पहले मैं एक अकेले आदमी का जीवन जी रहा था। अगर तुम मेरी जिंदगी में न आती, तो शायद मैं वापस लौट जाता, जिसको आज तक मैने केवल बर्बाद किया है। जानती हो, मैं क्या चाहता हूँ ? मैं चाहता हूँ, फूल की पंखुडियों की तरह खिले-खिले तुम्हारे नाजुक पाँवों के तलवों पर परागकण बनकर चिपक जाऊँ और बस, तुम्हारी पायल की सुरीली झंकार को सुनता रहूँ।" ऐसी ही सब बातें करते-करते वह कविता बनाने लगता था। इसी तरह कभी कविता बनाते-बनाते सामान्य-सी बातें करने लगता था।
ऐसे ही, जब कूकी सोलह-सत्रह साल की थी, ठीक इसी तरह प्यार भरे वाक्य अनिकेत उसके लिए लिखा करता था।
"मैं तुम्हारे पाँवों का अलता बन जाऊँ, मेरा जीवन धन्य-धन्य हो जाए।"
उस समय अनिकेत की उम्र लगभग बीस-इक्कीस साल की रही होगी। आजकल अनिकेत के सिर के बाल पकने शुरु हो गए हैं। और कूकी के चेहरे में भी काफी बदलाव आ गया है। वह जैसे किसी सुदूर क्षितिज के पास अपने यौवन को पीछे छोड़कर आगे बढ़ गई हो। और प्रेम ? जैसे कि किसी पुराने ग्रंथ के मटमैले पन्नों के भीतर दबकर रह गया हो।
वह तरह-तरह के तरीकों को अपनाते हुए कूकी के मन में इस बात का विश्वास लाने की कोशिश करता था, वह कोई फ्लैटरी नहीं कर रहा है, बल्कि वह उसको बेहद प्यार करने लगा है। अपने प्यार का इजहार करने के लिए कभी वह उसे अपने रेखाचित्र बनाकर भेजता था तो कभी वह अच्छी-अच्छी किताबों से अनमोल वचनों को उद्धृत करके भेजता था। एक बार उसने आइन्सटीन की कुछ पंक्तियों का उल्लेख किया था "ग्रेवीटेशन केन नाट बि हेल्ड रेस्पोन्सिबल फॉर पीपुल फालिंग इन लव "।
धीरे-धीरे कर उसने कूकी के दिल में अपनी जगह बना ली थी। लेकिन कूकी को अजीब-सा लग रहा था, कि जिस आदमी ने उसे कभी भी नहीं देखा, वह आदमी अपने दिल में एक गहरी तड़प लिए उसे इतना प्यार कैसे कर सकता है ? अपनी जिज्ञासा का समाधान न पाकर उसने एक दिन इस बात को उससे पूछा भी था।
बड़े ही अद्भुत ढंग से उसने उत्तर दिया था कूकी के इस सवाल का। कौन कहता है, मैने तुम्हें नहीं देखा ? देखकर बताओ, तुम ठीक ऐसी दिखाई देती हो या नहीं ? ई-मेल के अटैचमेंट को डाउनलोड़ करने पर एक रेखाचित्र उभर कर सामने आया और उसका मानना था कि वह रेखाचित्र उसके उसकी कूकी का है। पिछले कुछ दिनों से कूकी के बारे में जो-जो भावनाएँ उसके मन में आई थी, उन्हीं भावनाओं के आधार पर उसने वह चित्र बनाया था। कूकी को इस बात का अहसास हुआ कि सही मायने में कलाकार लोग बड़े ही अद्भुत किस्म के होते हैं। चित्र में जिस लड़की की तस्वीर बनाई गई थी, उस लड़की के कंधे से थोड़ा नीचे तक घने काले बाल झूल रहे थे। उसके चेहरे पर दिखाई दे रहे थे विश्वास और अविश्वास के मिले-जुले भाव। जहाँ उसका एक स्तन खुला दिखाया हुआ था, वहीं उसके दूसरे स्तन के स्थान पर लच्छेदार अंगूर दिखाए गए थे। कटि-प्रदेश में एक सर्पिल लता दिखाई हुई थी तथा नाभि के ऊपर पदम रागमणि जैसे कुछ रंग चितेरे हुए थे। कूकी बार-बार उस पेंटिंग को ध्यान से देखती थी। बारम्बार देखते-देखते उसे मन ही मन लगने लगा था जरुर कहीं न कहीं उस चित्र का उससे ताल्लुकात है। उसकी सुराही-सी लंबी गर्दन है ? उसके उभरे हुए स्तनों से ? अथवा गोल दबी हुई नाभि से ? नहीं। शायद कुछ सामंजस्य है तो होठों पर थिरकती मंद-मंद मुस्कराहट से। उसके बाद, क्या कूकी अपने आपको अपने भीतर बांधकर रख पाती ?
मगर वह तो एक ऐसे-चौराहे पर खड़ी थी, वहाँ से अगर वह उस आदमी की तरफ दो कदम आगे बढ़ाती तो स्वतः एक कदम पीछे लौटती। नहीं-नहीं, ऐसी बात नहीं थी। कूकी परपुरुष प्रेम की बात सोचकर विचलित नहीं थी। उसके मन में संदेह और भय के उत्पन्न होने के अन्य कुछ कारण थे। शायद हो सकता है उस आदमी ने उसके मनोभाव को पहले से ही पढ़ लिया था, इसलिए उसको अंतर्द्वंद्व से ऊपर ऊठने के लिए कहता था वह। यह ही नहीं, वह यह भी कहता था, देखो, हमें देश, जाति और धर्म जैसी तुच्छ बातों से ऊपर उठना होगा। कभी भी ऐसी बातों को अपने दिल में घर मत करने देना।
किन्तु कूकी अपने सदियों पुराने संस्कारों से उभर नहीं पा रही थी। बचपन से वह पठान बस्ती के पास में रहती थी। स्कूल में दो-चार मुसलमान लड़कियाँ उसकी सहेलियाँ भी थीं। वह उनके घर कभी-कभी घूमने जाती थी। उसकी खास सहेली शबनम का परिवार पैसे वाला था। उसका घर हमेशा सुसज्जित रहता था और उसके घर की बगिया में कलम किए हुए गुलाब के फूलों की एक अलग से सुंदर क्यारी थी। उसके घर में डॉवरमेन कुत्ते को देखकर वह भयंकर तरीके से डर जाती थी। बगीचे में सफेदा पेड़ के तले बैठकर शबनम उसको बिस्मिल्ला की रोमाँचक कहानियाँ सुनाती थी। कूकी की दूसरी सखी का नाम था लतफा। उसका घर एक पठान बस्ती के अंदर था, बहुत ही गंदा, मिट्टी का कच्चा घर, घुप अंधेरे से भरा हुआ। घर के आंगन में बकरियों और मुर्गियों का मल-मूत्र इधर-उधर बिखरे हुए थे। एक बार उसने उनके रसोई घर के बरामदे के पास में रखे हुए सिलबट्टे के ऊपर मुर्गियों की विष्ठा गिरी हुई देखी थी।
लेकिन कूकी उन लोगों को कभी भी अपने घर नहीं बुलाती थी। जब वे लोग उसके घर आना-चाहते थे, तो वह किसी न किसी तरह का बहाना बनाकर उन्हें इधर-उधर की बातों में घुमा देती थी। ऐसा भी नहीं था कि उसकी सहेलियाँ उसके घर बिल्कुल भी नहीं आती थी। एक-दो बार उसकी सहेलियाँ उसको मिलने उसके घर आई थी, परन्तु उनके जाने के बाद माँ गुस्से से तमतमा उठी थी।
गुस्से में वह घर का सामान इधर-उधर फेंकने लगती थी। उनके जाने के बाद वह बेडशीट, जिन पर वे लोग बैठे थे, धोना शुरु कर देती थी। चूँकि गद्दा तो धोया नहीं जा सकता था, इसलिए उस पर गंगा जल का छिड़काव करके उसको पवित्र किया जाता था। जिन बर्तनों में उनको नाश्ता खिलाया जाता था, उन बर्तनों को घर के पिछवाड़े ले जाकर कूकी को ही माँजना पड़ता था। उस समय कूकी, भले ही, पिटाई के ड़र से बर्तन माँज देती थी मगर उसका दिल कभी भी इस बात के लिए गवाही नहीं देता था कि मुसलमान लोग अछूत होते हैं।
यह बात सही थी, कूकी उन्हें अछूत, बिल्कुल नहीं मानती थी मगर उसके मन के किसी कोने में कहीं न कहीं उनके प्रति एक अविश्वास की भावना छुपी हुई थी। मुसलमानों के प्रति इस अविश्वास की भावना के पीछे उसके कोई निजी कारण नहीं थे, मगर वह बचपन से सुनती आ रही थी, "किसी जिन्दे मुसलमान का विश्वास करना तो दूर की बात, किसी मरे हुए मुसलान का भी विश्वास नहीं करना चाहिए।" जिस तरह दुनिया में कई चीजों को बिना देखे ज्यों का त्यों मान लिया जाता है, ठीक उसी तरह उसने भी इस बात को अपने गाँठ बाँध लिया था। भले ही, मुस्लिम बस्ती के लोग किसी दूसरे ग्रह के निवासी नहीं थे, मगर फिर भी उन्हें मित्र पक्ष के लोग नहीं माना जा सकता था थे, मानो वह मुस्लिम बस्ती एक 'मिनी -पाकिस्तान' की तरह हो।
वह आदमी पाकिस्तानी था। यह कूकी ने कभी सोचा भी नहीं था कि कुछ ही दिनों में वह किसी पाकिस्तानी आदमी को दिल दे बैठेगी। किसी भी प्रकार से वह उस आदमी के प्यार को नकार नहीं पा रही थी, बल्कि हर दिन अकेले में उसका ई-मेल खोलकर बैठ जाती थी। संयोगवश किसी दिन उसे ई-मेल का उत्तर देने में देर हो जाती थी, तो अगले दिन दुःख भरा एक ई-मेल उसकी प्रतीक्षा करते मिलता था। वह आदमी लिखता था, "मुझे फूट-फूटकर रोने की इच्छा हो रही है।"
हर रात मेरे सपने सुनहरे,
भटकते उन अज्ञात जगहों पर,
जहाँ कभी मेरे पाँव पड़े ही नहीं
वहाँ मैं तुम्हारे ख्यालों में खोकर
प्रेम-निवेदन करताहूँ रो-रोकर
कूकी ने उसको अपने दैनिक क्रियाकलापों की एक समय सारिणी भेज दी थी। और उसे प्यार से समझाती थी कि उत्तर देने में थोड़ी-बहुत देर अगर हो भी जाए तो उसे इस तरह बैचेन नहीं होना चाहिए लेकिन वह खुद उस आदमी का ई-मेल पढ़कर उदास हो जाती थी। कभी-कभी वह आदमी दुखी होकर लिख भेजता था,
"यह मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि किसी भी अवस्था में मैं भारत नहीं आ सकता और न ही तुम मेरे पास पाकिस्तान आ सकती हो। दोनो देशों के मध्य कटु राजनैतिक संबंध, वीसा की समस्या तथा तरह-तरह के प्रतिबंध हमें एक-दूसरे से कोसो दूर रखेंगे। यह भी हो सकता है कि इस जन्म में हम एक दूसरे को मिलना तो दूर की बात, देख भी नहीं पाए। फिर भी अगर तुम चाहो तो हम एक दूसरे का मृत्यु-पर्यन्त साथ दे सकते हैं। मन में ऐसी भावना कभी मत लाना कि तुम हिन्दू हो और मैं मुसलमान, तुम भारतीय हो और मैं पाकिस्तानी।"
उसने कभी वर्जीनिया वुल्फ को पढ़ा था"एक स्त्री होने के नाते मेरा कोई देश नहीं है। एक स्त्री होने के नाते सारी दुनिया मेरा दश है।" मगर 'पाकिस्तानी' कहने से जैसे उसके सामने आतंकवाद का नंगा नाच नजर आने लगता था। कल अगर इस बात की जानकारी उसके पति और बच्चों को हो गई तो ? कल अगर उसका बेटा, भगवान न करे, पूछ बैठा, "माँ, तुमने एक पाकिस्तानी से प्रेम करने की हिम्मत कैसे की ?"
उसका बेटा किसी रुढ़िवादी से कम नहीं था। जैसे ही वह किसी मुसलमान का नाम सुन लेता था तो उसका खून खौलने लगता था। उसका छोटा बेटा हमेशा कूकी से परछाई की तरह लिपट कर रहता था। वह माँ को दिल से प्यार करता था, इसलिए वह माँ को पास बिठाकर समझाने की चेष्टा करेगा "माँ, आप नहीं जानती हो, पाकिस्तानी लोग आतंकवादी होते हैं।"
उस समय कूकी क्या जवाब देगी ?
नहीं, वह आदमी न तो कभी नमाज पढ़ता था और न ही रमजान के महीने में कोई रोजे रखता था। यहाँ तक कि इदुलफितर के दिन भी वह ईदगाह में नहीं जाकर घर में चुपचाप सोते रहता था। ऐसी बात नहीं थी कि वह अल्लाह को नहीं मानता था। अल्लाह में उसका प्रगाढ़ विश्वास था फिर भी वह अपने आपको काफिर कहता था। वह अपने प्रत्येक ई-मेल में कूकी से कुछ न कुछ ऐसे सवाल पूछता था जिसका वह उत्तर नहीं जानती थी। अपने उत्तर में कूकी उसको पुराण, उपनिषदों के कई दृष्टांत देती थी। प्रत्येक दृष्टांत को ध्यान पूर्वक पढ़ने के बाद वह प्रभावित होकर लिखता था, "सही मायने में हिन्दू-आध्यात्मिक शास्त्रों, पुराणों और धार्मिक मान्यताओं के पीछे एक दर्शन छिपा रहता है, जबकि ऐसे दर्शन कुरान में नहीं मिलते। कुरान केवल सामाजिक प्रतिबद्धता के उपदेश देता है, जिसका मुख्य उद्देश्य एक सशक्त समाज का निर्माण करना होता है।"
अपने बचपन के दिनों में जब वह कभी सुबह जल्दी-जल्दी उठ जाया करती थी तो कूकी को पास वाली किसी मस्जिद से 'अल्ला-हो-अकबर' की आवाज सुनाई देती थी। उस जमाने में हिन्दू मंदिरों में सुबह के समय आडियो कैसेट के भजन नहीं लगाए जाते थे। जब उसके मोहल्ले के मंदिर सोए रहते थे, तब भोर से ही मस्जिद जाग जाती थी. कभी-कभी नींद में खलल पड़ने पर उसकी छोटी बहन चिल्ला उठती थी, "क्या खुदा को सुनाई नहीं पड़ता है ? सुबह-सुबह इतने जोर से बाग देकर खुदा को क्यों बुलाया जाता है ?" एक बार कूकी शबनम के साथ मस्जिद के अंदर गई थी। शबनम ने उसे मस्जिद की सारी जगहें दिखाई थी। उस समय कूकी की उम्र दस या ग्यारह साल रही होगी। मस्जिद की एक खाली जगह के अंदर कूकी की आँखें भगवान की किसी प्रतिमा को तलाश रही थी, मगर शबनम से उस बारे में पूछने का उसका साहस नहीं हुआ। उसको बुरी तरह डर लग रहा था, कहीं कोई यह न कह दे, "यह हिन्दू लड़की मस्जिद में कैसे घुस गई ?"
मस्जिद के भीतर उसका मन ही मन दम घुट रहा था, इसलिए वह जल्दी से बाहर निकल आई। उस दिन के बाद उसके मन में और मस्जिद देखने का ख्बाव अधूरा का अधूरा रह गया। उसके लिए केवल निराकार और अस्ष्टता ही इस्लाम धर्म का प्रतीक है, हालाँकि तब तक वह यह बात अच्छी तरह जान चुकी थी कि इस्लाम धर्म में मूर्तिपूजा निषेध है। एक बार वह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में मन्नत माँगने भी गई थी । तब भी उसका मन हल्के अंधेरे मकान के अंदर भगवान की किसी प्रतिमा को खोज रहा था खोजते-खोजते उसका मन अपने आप शून्यता से भर गया था।
कूकी उस समय हिन्दू-धर्म का खूब मजाक उड़ाती थी। वह कहती थी, हमने अपनी अंतर्हीन इच्छाओं की पूर्ति के लिए तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का निर्माण किया है। कभी धन के लिए, कभी पढ़ाई के लिए, कभी प्रेम के लिए तो कभी उद्योग-धंधों में लाभ होने के लिए। प्रत्येक देवी-देवता के लिए एक अलग-सी व्यवस्था और अलग-सा विभाग। इतना जानते हुए भी उसका मन एक मूर्तिविहीन शून्य इमारत के अंदर एक चिर परिचित मूर्ति की खोज में लगा हुआ था। वह अच्छी तरह जानती थी कि ई•ार इश्वर निराकार, अजन्मा, सर्वव्यापी और अंतर्यामी हैं। तब भी उसका मन उस शून्य इमारत को ईश्वर मानने के लिए राजी नहीं हो रहा था।
किंतु प्रेम क्या किसी धर्म की परवाह करता है ? प्रेम का वास्तविक धर्म होता है उबड़-खाबड़ रास्तों पर बढ़ते जाना। ऐसा लग रहा था मानो कूकी पर किसी ने मोहिनी जादू कर दिया हो। जिस अंदाज में वह लिखता था ठीक वैसा ही अनुभव कूकी को होने लगता था। एक बार उसने लिखा था, "फॉर, यू सी, इच डे आई लव यू मोर, टुडे मोर देन यस्टरडे एंड लेस देन टूमारो ।"
कूकी को भी इस बात का अनुभव हो रहा था कि शुक्लपक्ष के चन्द्रमा की तरह उसका प्रेम उज्ज्वलता की एक नई कला को हर दिन जोड़ता ही जा रहा था। उस आदमी की निष्कपटता उसको सबसे ज्यादा आकृष्ट करती थी।
पहले ई-मेल में ही उसने अपने बारे में सब कुछ खोलकर बता दिया था। जैसे कि उसकी दो पत्नियाँ तथा चार बच्चे हैं। पहली पत्नी उसके गाँव मं रहती है तथा वहाँ की साज-सँभाल लेती है। आजकल उसके साथ उसका कोई शारीरिक संबंध भी नहीं है। पहली पत्नी की दोनो बेटियाँ उसके साथ शहर में रहती हैं तथा अपनी आगे की पढ़ाई कर रही हैं। उसकी दूसरी पत्नी कभी उसकी छात्रा हुआ करती थी। उसकी शादी होने से पहले ही उसके साथ शारीरिक संबंध स्थापित हो गया था और उसका गर्भ भी ठहर गया था। यही नहीं उसका लिंडा जानसन नाम की अमेरिकन लड़की के साथ भी कई दिनों तक शारीरिक संबंध रहे थे। और उस अमेरिकन लड़की ने ही उसको सिखाया था कि किस तरह खुले मन से सेक्सुअल लाइफ को जिया जा सकता है। पता नहीं आजकल वह लड़की कहाँ है ? इस बारे में उसे बिल्कुल भी जानकारी नहीं है।
किसी अखबार की तरह उसका पूरा जीवन पढ़ने के बाद कूकी के मुँह से अपने आप यह बात निकल आई "बहुत ही परवर्टेड आदमी है।" एम.एफ. हुसैन के मॉधुरी प्रेम की तरह वह उस आदमी के प्रेम का उपभोग नहीं कर पा रही थी चाहे आईनस्टीन हो या फ्लैबार्ट, हर महान प्रतिभा के साथ परवर्सन जुड़ा हुआ रहता है। बल्कि उनका यही गुण उनकी सृजनशीलता को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होता है। एक तरफ उस आदमी की खुली स्पष्ट बातों ने जहाँ कूकी के दिल को प्रभावित किया था, वहीं दूसरी तरफ उसके इधर-उधर मुँह मारने के अवगुण ने कूकी के मन में उसके प्रति घृणा के बीज बो दिए थे।
उस आदमी का मेल पढ़ने के बाद कूकी के मन में मुसलमानों के निकाहनामा के बारे में जानने की उत्सुकता पैदा हुई। उसे यह बात पहले से पता थी कि मुसलमान लोग चार शादी कर सकते हैं। जिस तरह हिंदुओं के बच्चे एक आकाश की तरह एक पिता पर भरोसा करके तथा एक धरती जैसी एक माँ की छाती के ऊपर पाँव रखकर बड़े हुए हैं, उसी तरह मुसलमानों के बच्चें एक आकाश के ऊपर भरोसा करके तथा चार धरतियों के ऊपर पाँव रखकर किस तरह बड़े होते होंगे ? वे लोग किस धरती को अपनी माँ मानते होंगे ? इस विषय पर एक बार कूकी ने प्रो. सिद्दकी से प्रश्न पूछा था। काफी गहन अध्ययन करने के बाद प्रोफेसर सिद्दकी ने अपनी पवित्र पुस्तक कुरान की आयतों का हवाला देते हुए कहा था, "इस्लाम धर्म कभी भी चार शादियों को प्रोत्साहित नहीं करता है। वास्तव में, यह नियम असहाय अबला नारियों के रक्षणार्थ बनाया गया था। युद्ध की विभीषिका में प्रायः पुरुष वीर गति को प्राप्त हो जाते थे। तब नारियों और पितृहीन संतानों के संरक्षण के साथ-साथ उनके चरित्र को अधोपतन होने से रोकने के लिए बहु विवाह प्रथा का प्रचलन था।"
प्रो. सिद्दकी के तर्क सुनने के बाद कूकी के मन को भले ही थोड़ा-सा सकून मिला था। लेकिन उस आदमी ने किसी असहाय नारी का भला करने के लिए दूसरी शादी नहीं की थी। और लिंडा जानसन के साथ उसके प्रेम संबंध को क्या नाम दिया जा सकता था ? तब भी कूकी उसके प्रेमजाल से मुक्त नहीं हो पा रही थी। उसे मन ही मन ऐसा लग रहा था कि किसी ने भी इतना प्रगाढ़ प्रेम पहले उसको कभी नहीं दिया था।
धीरे-धीरे कर कूकी अपने घर-संसार से दूर होती जा रही थी। जैसे उसे एक विचित्र प्रकार का मति-भ्रम हो रहा हो। उसको लगने लगा था उसके पास सिवाय उस आदमी के और कोई नहीं था। आजकल वह अपने बच्चों को विभिन्न प्रकार के व्यंजन वनाकर नहीं खिला पा रही थी। यहाँ तक कि, अनिकेत के शर्ट के टूटे बटन तक ठीक नहीं कर पा रही थी वह। बगिया के फूलों ने पहले की तरह हँसना-मुस्कराना छोड़ दिया था। फूलों की पंखुडियों पर कीड़े लगना शुरु हो गए थे और धीरे-धीरे वे पंखुडियाँ किसी कुष्ट रोगी के अंगों की भाँति क्षय होती जा रही थी। घर के लॉन में जगह-जगह पर घास उखड़ गया था तथा किसी गंजे सिर की भाँति दिखाई देने लगा था। घर के कोनों-कोनों में मकड़ियों ने अपना जाल बुनना शुरु कर दिया था। पूजा अलमारी में रखी मूर्तियों के ऊपर धूल की मोटी परतें जमती जा रही थी। उसकी इस अन्यमनस्कता का पूरी तरह लाभ उठाते हुए नौकरानी भी जैसे-तैसे अपना काम करके जल्दी चली जाती थी। एक घोर अव्यवस्था के बीच से होकर गुजर रहा था उसका घर- संसार । तब कहाँ थी कूकी ?
रात-दिन कम्प्यूटर में बैठकर चिट्ठी टाइप करना उसे सबसे ज्यादा सुखद लगता था। जो बातें उसके ह्मदय में अभी तक अव्यक्त रह गई थी वह उन सभी बातों को भाषा का रूप देने का प्रयास कर रही थी। उसे इस बात पर भी आश्चर्य लगता था बहुत सारी बातें अभिव्यक्त करने के बाद भी कई नई-नई बातें उसके हृदय-पटल पर नई घास की भाँति उगकर तैयार हो जाती थी।
उन्होंने सोच लिया था कि वे तीन विषय पर बातचीत करेंगे। पहला विषय घर की दुनियादारी के बारे में, दूसरा अमूर्त प्रेम के विषय पर तथा तीसरा दैहिक प्रेम पर वार्तालाप करेंगे। इस दौरान कूकी ने बहुत सारे ऐसे नए-नए शब्दों के बारे में जानकारी प्राप्त कर ली थी जिसको अपने जीवन में पहले कभी भी सुन नहीं रखा था।
जब कभी भी कूकी अखबारों, न्यूज चैनलों तथा नेताओं के भाषण से भारत और पाकस्तान के गिरते संबंधों के बारे में खबरें सुनती थी तो वह बुरी तरह से विचलित हो उठती थी। भारत और पाकिस्तान के बीच बिगड़ते संबंधों को लेकर दोनो देशों के बीच युद्ध की आशंका से बुरी तरह व्यग्र हो उठती थी कूकी। उसकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था। वह नहीं समझ पा रही थी कि अगर दोनो देशों के मध्य युद्ध छिड़ गया तो वह क्या करेगी ? यहाँ उसका सारा परिवार बच्चें और पति, माँ-बाप, भाई-बहन सारे सगे-संबंधी रहते हैं। और अगर किसी देश पर परमाणु-विस्फोट कर दिया तो सब जगह तबाही-तबाही मच जाएगी। सब-कुछ सर्वनाश हो जाएगा। उसके मन में यह भी लग रहा था कि पाकिस्तान के किसी अनजान मुहल्ले में उसका हृदय धड़क रहा है। अगर किसी देश ने परमाणु बम फेंक दिया तो उसका वहाँ स्पंदित ह्मदय भी खून से लथपथ होकर बिखर जाएगा।
कभी-कभी कूकी को लगता था, हमारे देश के दो टुकड़े भारत और पाकिस्तान नहीं होने चाहिए थे। क्या जरुरत थी देश को दो टुकड़ों में बाँटने की ? बँटवारे के दिन से दोनो देशों में आमने-सामने की लड़ाई चलती आ रही है। दो औरतों की तरह एक दूसरे के ऊपर किसी न किसी ची चीज को लेकर लगातार दोषारोपण करते आ रहे हैं।
कूकी ने कभी कश्मीर नहीं देखा था। ऐसा क्या है कश्मीर में ? सुन्दर स्त्री को लेकर दोनो देशों के बीच अन्तर्कलह बढ़ता ही जा रहा है। पहले-पहले कश्मीर की आतंकवादी गतिविधियों के बारे में सुनते ही कूकी का खून खौल उठता था। खूंखार आतंकवादियों की बर्बरता को देखकर कूकी सोचने लगती थी, उन लोगों के पास दिल जैसी कोई चीज नहीं है। स्पार्टा की तरह पाकिस्तान जेहाद के नाम पर आतंकवादियों को जन्म दे रहा था, मगर उस आदमी को जानने के बाद कूकी की सारी धारणा बदल गई थी। उसको लगता था, पाकिस्तानी सैन्य-शासन के भीतर अभी भी कुछ बुद्धिजीवी व हृदयवान लोग जिन्दा हैं।
अनिकेत और कूकी एक हिल स्टेशन का भ्रमण करने के बाद लौट रहे थे। ट्रेन में रिजर्वेशन नहीं मिलने के कारण उन्हें दिल्ली में तीन दिन के लिए रुकना पड़ गया था। इधर-उधर घूमते-घामते एक दिन वे दोनों "धूमिमल आर्ट गैलरी" में चले गए थे। कूकी की कला के प्रति थोड़ी-बहुत रूचि थी मगर अनिकेत का कला के प्रति कोई लगाव नहीं था। अनिकेत अक्सर कहता था, आधुनिक कविताओं की तरह आधुनिक आर्ट भी मेरी समझ से परे है। एक अभिजात्य पूर्ण और शांत परिवेश में कूकी के आगे-पीछे घूमते-घामते अनिकेत को एक घुटन-सी महसूस होने लगी, अनिकेत कूकी से बाहर जाने की इजाजत लेने लगा, “बाहर जाकर एकाध सिगरेट पीकर आता हूँ, तुम्हें इसमें कोई आपत्ति तो नहीं है ?"
अब कूकी आर्ट गैलरी में अकेले-अकेले घूम रही थी। दीवारों पर टँगी हुई प्रत्येक पेंटिंग को वह गहराई से जानने की चेष्टा कर रही थी। उसी समय एक विचित्र पेंटिंग ने उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। बहुत ही अद्भुत अकेलापन था उस पेंटिंग में। उसे ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसका हाथ पकड़कर खींचकर ले जा रहा हो, एक अनजान शहर की अनजान गलियों के भीतर, जहाँ एक उदास इंसान बैठकर उसका बेसब्री से इंतजार कर रहा हो। भले ही, वह आदमी इतना गंभीर दिखाई दे रहा था कि उसके मुँह से एक भी शब्द नहीं निकल रहा था, मगर उसके मन की अव्यक्त व्यथा उसके चेहरे पर चारो तरफ स्पष्ट झलक रही थी। पेंटिंग के नीचे छोटे-छोटे अक्षरों में लिखा हुआ था, "एलिएनेशन, आयल आन कैनवास, 191 न् 142 सेमी, मोहम्मद सफीक, पब्लिश्ड बाय पाकिस्तानी आर्ट फॉरम, लाहौर।
कूकी के पास पेंटिंग खरीदने जितने पैसे नहीं थे। फिर भी कूकी को मन ही मन ऐसा लग रहा था अगर वह पेंटिंग उसे नहीं मिल पाई तो उसका जीवन व्यर्थ हो जाएगा। वह सोचने लगी कि पैसे वाले लोग पेंटिंग की कलात्मकता को शायद ही समझ पाते होंगे वे लोग अपना शौक पूरा करने के लिए केवल दिखावे के लिए पेंटिंग खरीदतें हैं. उसमे पेंटिंग की कला को समझने की परख है, मगर उसके पास उसे खरीदने के लिए पैसे नही है। इस पेंटिंग के अलावा उसे उस दिन और कोई पेंटिंग इतनी पसंद नहीं आई। इधर-उधर जाकर फिर से वह 'एलिएनेशन'पेंटिंग के पास लौट आती थी। काऊन्टर मे "मैडम, अगर आप यह पेंटिंग खरीदना चाहती हो तो खरीद सकती हो। उसकी एक प्रतिलिपि हमारे पास उपलब्ध है।"
यह सुनकर कूकी खुश हो गई थी। पेंटिंग की प्रतिलिपि उसी विवरणिका समेत लेकर लौट आई थी वह। शफीक अहमद का ई-मेल आई.डी. उसे इसी विवरणिका से प्राप्त हुआ था। जिस दिन उसने शफीक के मन का दरवाजा खटखटाया था, उसे क्या मालूम था कि एक दिन वह व्याकुल होकर उससे कहने लगेगा, "हर रात मेरे सपने सजीले, भटकते उन अज्ञात जगहों पर, जहाँ मेरे पाँव कभी पड़े ही नहीं।"
कूकी ने उससे पूछा था, "आप भारत क्यों नहीं आ सकते ? जबकि दोनों देशों के बीच में आवाजाही के प्रतिबंध काफी हद तक हटा दिए गए हैं इसके अतिरिक्त , आप एक महान कलाकार भी हो। आपकी 'द एलिएनेशन' पेंटिंग कलाकृति से आपका नाम संपूर्ण एशिया में विख्यात हैं। आपको इधर आने से कौन रोक सकता है ? सीमा किरमानी का नाट¬नाट्य दल अगर कलकत्ता के अकादमी भवन में अपने नाटक की प्रस्तुति कर सकता है, पाकिस्तान की क्रिकेट टीम भारत के शहर-शहर में घूमकर अपने खेल का प्रदर्शन कर सकती है तो आपको कौन रोक सकता है ?"
इस प्रश्न के उत्तर से किनारा करते हुए उसने कूकी का मन बहलाने के लिए बदले में प्रेम की कविता लिखकर भेजी थी। कविता लिखते समय वह जितना भाव-विह्वल हो उठता था, उतना ही चेटिंग करते समय वह स्पष्टवादी। कूकी के सवालों के जवाब मानो वह भी कई दिनों से ढूँढ रहा था। "सीमा किरमानी का नाट्य दल अगर कलकत्ता के अकादमी भवन में अपने नाटक की प्रस्तुति कर सकता है, पाकिस्तान की क्रिकेट टीम भारत में खेल सकती है तो आपको भारत आने से कौन रोक सकता है ?" बहुत सोच-समझकर उसने एक दिन लिखा था "यह मत सोचो कि पृथ्वी पर केवल भारत और पाकिस्तान ही दो देश हैं। इन दोनों देशों के अतिरिक्त भी बहुत सारी जगह खाली पड़ी हुई हैं। जहाँ हम दोनो पूर्ण आजाद होकर घूम सकेंगे, एक दूसरे से घंटो-घंटो बातचीत कर सकेंगे, चाँदनी रात में तुम्हारे कान में प्रेम कविता सुना पाऊँगा। दोनो देशों के बीच के सारे प्रतिबंधों तथा तार की घेराबंदी को उस जगह का एक कमरा और एक बिस्तर तोड़कर टुकडे-टुकड़े कर देगा। मैं उसी दिन की तलाश में हूँ, ऐसी जगह पर तुम्हें एक दिन बुलाकर ले जाऊँगा। कूकी को मन ही मन फिर से लगने लगा कि वह आदमी उसे सपने दिखा रहा है। एक ही प्रकार का अनुत्तरित प्रश्न लगातार लिखने के काम से कूकी का मन मुक्त होना चाहता था। उसी समय फिर एक बार उस आदमी ने सपने दिखाना शुरु कर दिया। सचमुच में इस पृथ्वी पर बहुत सारी जगह हैं। दो प्राणियों के लिए कितनी जगह चाहिए ? उस समय जब कूकी सपनों की कशीदाकारी करने में व्यस्त थी, ठीक उसी समय उस आदमी ने उसके आगे एक अनोखा प्रस्ताव रखा।
"तुम जानती हो, मैं अपने जीवन की सर्वोत्कृष्ट पेंटिंग को तुम्हारे रंगों से रंगना चाहता हूँ। मेरे पास आओ, मेरा वीर्य धारण कर मुझे पितृत्व प्रदान करो।"
उस आदमी के इस तरह के स्पष्ट आह्वान से कूकी का मन कुछ विचलित हो उठा तो कुछ आह्लादित। किसी सुदूर जगह से कूकी के लिए खुला निमंत्रण आ रहा है, मानो वह एक देवी हो और बहुत दूर से उसका एक भक्त अपने हाथ में पूजा की थाली लिए दौड़ा आ रहा हो। कूकी का मन इधर-उधर भटकने लगा। ये सब बातें वह किसको बताएगी ? कौन उसकी बात सुनेगा ? उसका मन हो रहा था किसी को बताने के लिए कि दिल खोलकर वह किसी को बता दे, देखिए मेरे लिए भी किसी का दिल धड़क रहा है। केवल मेरे लिए। कूकी का मन हिलोरे मारने लगा था कविता लिखने के लिए। उसके भीतर ही भीतर एक अनजान भय उमड़ रहा था जैसे कि समुंदर की हिलोरे मारती हुई लहरे उसको छूकर दूर चली जा रही हो।
अंत में कूकी ने लिखा था, "ठीक है, मैं तैयार हूँ तुम्हारा वीर्य-ग्रहण करने के लिए। मैं तैयार हूँ तुमको पितृत्व प्रदान करने के लिए। आ जाओ, मेरे पास। मैं पूरी तरह समर्पित हूँ तुम्हें पितृत्व प्रदान करने के लिए। जरा ध्यान से देखो, तुम्हारे जीवन की सबसे सुंदर पेंटिंग के लिए मैं कैनवस बनकर तैयार खड़ी हूँ। तुम्हारी 'एलिएनेशन' के बाद बनने वाली सर्वश्रेष्ठ कलाकृति के लिए मैं तैयार हूँ।"
कूकी के सहमति भरे जवाब से वह आदमी निश्चित रूप से बहुत खुश हो गया था। उसने अपने अगले मेल में लिखा था "तुम मेरे जीवन का एक नया सवेरा हो। जब से तुम मेरी जिंदगी में आई हो, तबसे मैने अपने जीवन को नए तरीके से देखना शुरु किया है। तुम्हारा प्यार पाकर मैं अपने जीवन की सर्वश्रेष्ठ पेंटिंग बनाऊँगा। तुम्हारे नाम के साथ मैं अपना नाम भी जोड़ दूँगा। तुम मेरे जीवन का एक नया सवेरा हो, इसलिए आज से तुम मेरे लिए कूकी नहीं, बल्कि रूखसाना हो। मैं तुम्हें रुखसाना नाम से सारी दुनिया में परिचित कराना चाहता हूँ।"
कूकी की छाती धक्-धक् करने लगी। मानो किसी ने उसके समग्र अस्तित्व को छोटे-छोटे टुकड़ों में खंडित कर दिया हो। वह अब वह नहीं रही, दूसरी कोई और हो गई। तब वह आज तक क्या थी ? किससे प्रेम करता था वह आदमी ? कूकी या रुखसाना से ? मगर कूकी तो उस आदमी के साथ कभी निकाह करना नहीं चाहती थी। वह तो केवल उससे प्रेम करना चाहती थी, एक निस्वार्थ प्रेम बिना किसी शर्तों के। मगर उसकी तरफ से इतनी सारी शर्तें क्यों ? क्यों वह कूकी को रुखसाना के नाम से परिचित कराना चाहता है ?
रुखसाना कौन है ? कहाँ थी वह आज तक ? वह उसके अंदर छुपी हुई थी अथवा कुरान के पन्नों के भीतर ? मेरी तरफ देखो, मुझे अच्छी तरह परख लो। मैं जैसी भी हूँ, उसी भाव से मुझे छूकर देखो । मेरे संपूर्ण अहम की सत्ता यथावत ग्रहण करो। मुझे मत बदलो मेरा चेहरा जैसा भी है, वैसा ही रहने दो। उम्र के दाग को मत धोओ। रुखसाना की सारी संभावनाओं को वैसे ही रहने दो। मेरे समग्र व्यक्तित्व को बिना किसी परिवर्तन के ऐसे ही स्वीकार करो. मुझे मत बदलो। बताओ, सही-सही बताओ, तुम वास्तव में किसको चाहते हो, अपनी पूरी कूकी को या फिर नई-नवेली रुखसाना को ?
बेचैन -सी हो गई कूकी। कम्प्यूटर के की-बोर्ड पर अंगुलियाँ चल नहीं पा रही थी। प्रथमतः अक्षर उचित शब्दों का रूप नहीं ले पा रहे थे। काफी कोशिश करने के बाद अंत में जैसे-तैसे करके कूकी ने अपना वक्तव्य पूरा किया। उसे लिखने के बाद वह अपने आपको काफी हल्का अनुभव करने लगी थी। उसका आकाश में चिड़िया की तरह उड़ने का मन हो रहा था। उसका मन कर रहा था वह वापस अपने घर और अपनी बगिया की ओर लौट आए। बगीचे में गुलाब के फूलों की पत्तिया मुरझाने लगी थी, डालिया के पौधों पर कलियाँ नहीं खिल पा रही थी। इधर-उधर उग आई जंगली घास के बीच में कुछ पौधें मलिन और उदास दिखाई देने लगे थे। घर के कोने-कोने में मकड़ियों ने अपना जाल बुन लिया था। घर के फर्नीचर पर धूल की मोटी परत जम गई थी। अलमारी में साड़ियाँ इधर-उधर बिखरी हुई पड़ी थी। बाथरुम की खिड़की के ऊपर पीपल का एक छोटा सा पेड़ अपनी जड़े जमा चुका था। बहुत दिन हो गए थे कूकी को अपना घर-संसार को छोड़े हुए। उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह अभी-अभी लौटकर घर आ रही हो।
धीरे-धीरेकर कूकी अपना घर संवारने -सजाने लगी। बगिया के फूलों के पौधों के साथ वह दिल खोलकर बातें करने लगी। उसको वापिस अपनी दुनिया में आया देखकर बगिया के सारे पौधे खिल उठे। सभी के कपड़ों पर उसने इस्तरी की। फिर उसने घर में सभी को मूली-आलू का पराँठा तथा फूल गोभी की स्वादिष्ट सब्जी बनाकर खिलाई। इस तरह उसका सारा घर एक बार फिर से खिलखिला उठा।
फिर भी कूकी के मन के किसी कोने में एक रूखसाना छटपटा रही थी। कई दिन हो गए थे उसको जवाब लिखे हुए मगर आज तक वह उसे भेज नहीं पाई थी। उस दिन के बाद कम्प्यूटर स्क्रीन पर कूकी के नाम से कोई संदेश नहीं आया था। इन बाक्स के ऊपर लिखा हुआ था, "अपठित मेल शून्य हैं।"
फिर भी कूकी का दिल दुखी हो रहा था कि वह आदमी हर दिन अपना मेल बॉक्स खोलकर उसका कोई संदेश नहीं पाकर बुरी तरह निराश हो जाता होगा। शायद वह जरुर सोचता होगा, हो न हो, कूकी के साथ कोई दुर्घटना जरुर घटी होगी। कूकी को ऐसा लग रहा था जैसे कि वह आदमी समय-बेसमय कूकी के घर का दरवाजा खटखटा रहा हो तथा दरवाजा नहीं खोलने पर खिड़की के पास बाहर खड़ा होकर वह अन्यमनस्क होकर सिगेरट के ऊपर सिगेरट के कश लगा रहा होगा। वह कूकी की एक झलक पाने के लिए बुरी तरह बैचन हो गया होगा।
एक बार फिर कूकी कम्प्यूटर के सामने आकर बैठ गई। बैठी तो ऐसी बैठी रही कि उसके शरीर में से उग आ रहे थे डाल पत्तियाँ, जिसे ढकती जा रही थी दीमक की गुदा और जिस पर रंगते जा रहे थे बड़े-बड़े सरीसृप। अपनी अंगुलियो में बिना कोई हरकत किए की- बोर्ड के सामने मूर्तिवत बैठी रही कूकी। शायद उसकी अंगुलियाँ की-बोर्ड पर खटरागी के लिए चंचल हो उठेगी। शायद अभी वह कुछ न कुछ जरुर लिखेगी। "हाय, मुझे देखो, मैं तुम्हारी दुनिया में वापस लौट आई हूँ। मैं अब कूकी नहीं, बल्कि तुम्हारी रुखसाना हूँ। नाम में ऐसा क्या रखा है ? नाम तो केवल निमित्त मात्र है। तुम अपना वीर्य-सिचन कर पितृत्व प्राप्त करने के अधिकारी बनो। तुम अपने जीवन की सर्वश्रेष्ठ पेंटिंग का काम अभी से शुरु कर सकते हो।" देखते-देखते कूकी की अंगुलियाँ की- बोर्ड पर खटर-पटर करने लगी। कुछ पंक्तियाँ लिखने के बाद कूकी चुपचाप बैठी रही। वह अपना एक पुराना मेल खोलकर पढ़ने लगी। जिसमें उसने लिखा था कि वह केवल कूकी बनकर जीना चाहती थी।
दूसरी चिट्ठी लिखने के बाद कूकी जड़वत हो गई। कुंठाग्रस्त होकर वह कम्प्यूटर के पास बैठ गई। अमृत बनकर किसी को अमरत्व प्रदान करेगी या लौट आएगी अपने घोंसले में ? लेकिन उसके प्यार का क्या होगा ? क्या होगा उस प्यार का जो इतने दिनों से उसके दिल में पैदा हुआ था ? प्रेम से वंचित होकर क्या जिंदा रह पाएगा वह आदमी ? एक तरफ अनिकेत और उसका घर-संसार, दूसरी तरफ सफीक और उसका अमरत्व दोनो जैसे कूकी की तरफ अपने हाथ बढ़ाए जा रहे हो। किसी एक जगह पर खड़ी होकर धीरे-धीरे पत्थर में परिवर्तित हो रहे अपने पाँवों को कूकी उठाने की चेष्टा कर रही थी, मगर वह नहीं समझ पा रही थी कि वह अपने पाँव किस दिशा में बढ़ाँए ? उसे अनुभव हो रहा था, उसकी अंगुलियों में कुछ हरकत होने लगी हैं। कुछ ही देर बाद वे अंगुलियाँ की-बोर्ड़ पर तेजी से दौड़ना शुरु कर देगी। फिर भी वह कम्प्यूटर के सामने चुपचाप बैठी रही। "नूनी" जी हाँ, जूलियस सीजर ने क्लियोपेट्रा का नाम रखा था नूनी। प्यार में कोई भी नाम दिया जा सकता है तब उसमें आपत्ति किस चीज को लेकर ? क्यों कूकी व्यर्थ में इतनी दुविधा में पड़ गई है ? अगर किसी ने उसका नया नाम रखकर उसको एक नया जन्म प्रदान किया है, तो उसमें परेशान होने की बात कहाँ है ?
कूकी ने तीसरी चिट्ठी लिखी।
"मैं तैयार हूँ तुम्हारी प्रेमिका बनकर नया जीवन जीने के लिए। आज से मुझे आप किसी भी नाम से पुकारो, मुझे किसी तरह की कोई आपत्ति नहीं है।"
तुम्हारी रुखसाना।
रुखसाना,
शब्द अधरों पर धरे के धरे रह गए,
सारी आवाज गले में दबकर रह गई
अभिव्यक्ति की सारी आर्द्रता सूख गई,
शब्दों के अर्थ अपना रूप बदलते गए,
तुम्हें खोजने के सारे प्रयासों में,
इन पहेली वाले शब्दों के साथ,
मुझे पूरी तरह बाहर निकाल दो
और बदल डालो मेरा व्यर्थ जीवन
इस बार शफीक ने एक छोटी कविता भेजी थी। यद्यपि शफीक की वह पेंटिंग ही उन दोनों के बीच में अपने संबंध का मुख्य आधार थी, उस पेंटिंग के अलावा कूकी को शफीक की दूसरी कोई पेंटिंग देखने का मौका नहीं मिला। इस बार जिस शफीक से वह मिली वह कवि था। उसका हर ई-मेल कविताओं से भरा रहता था।
पूछने पर उसने बताया "मैं पहले कवि नहीं था। तुमने ही मुझे कवि बनाया है। तुम्हारे प्यार ने ही मुझ कविता लिखने के लिए प्रेरित किया है। तुम भी कवयित्री बन सकती हो। अपनी सारी अनुभूतियों को समेटकर मेरे पास कविता के रूप में भेज सकती हो।"
लेकिन कूकी के लिए अनुभूतियों को कविता में पिरोना संभव नहीं होता था। क्या इसका मतलब उस आदमी की तुलना में कूकी के अंदर प्रेम की अनुभूतियाँ कम थी?
कूकी ने उत्तर दिया था, "तुम्हारी तरह मैं भाषा को तोड़ -मरोड़कर सही ढंग से सजा नहीं पाती हूँ। इसके अलावा मेरी भाषा इतनी शुद्ध भी नहीं।"
शफीक ने इस पर लिखा था, " जुबान में क्या रखा है? तुम तो इशारों से ही अपनी बात समझा देती हो, वही तो मेरे लिए काफी है।
शफीक की इस उदारता ने कूकी पर प्रभाव डाला था। वह आदमी कूकी को अथाह प्यार करता है, इसलिए भारत जैसे अनजान देश के राजनैतिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक तथा साहित्यिक वातावरण के बारे में बहुत कुछ जानने के लिए लाइब्रेरी से इन विषयों पर कई किताबें इकट्ठा कर पढ़ना शुरु किया था। इतना ही नहीं, रोजाना थोड़ा-थोड़ा करके कूकी से उसकी मातृभाषा भी सीखते हुए कूकी के नाम एक संदेश लिखा था। "मैं तुमसे प्यार करता हूँ। इस छोटे से वाक्य को कहने के लिए मैने सारा संसार ढूँढ लिया है। जैसे
लैटिन में - 'ते आमो।'
ग्रीक में - 'जे ताइमा।'
पुर्तगाली में - 'आमो।'
स्वीडिश में - 'जम ए लश्कर डिग।'
हिब्रू में - 'आनि ओहेब ओटेक।'
स्पेनिश, डच, जापानी, एल्बेनियन, मोरक्को, पोलिश, रशियन इसी प्रकार विश्व की अड़तीस भाषाओं में अपने मनोभाव को प्रकट किया था। अंत में लिखा था इन सभी के अर्थ मालूम हैं? इन सभी का अर्थ है- आई लव यू।
कूकी पढ़ते-पढ़ते थक गई और मन ही मन हँसने लगी। दो-चार को छोड़कर बाकी सब को याद रखना कूकी के लिए संभव नही था। ऐसे एक पागल इंसान के बारे मे वह और ज्यादा क्या कहती?
अट्ठारह वर्ष का एक नटखट लड़का? या एक जीनियस? जंगली अथवा सृजनशील? इस बार कूकी ने उसको संबोधित करते हुए लिखा था "माई हॉट एण्ड स्वीट हमबर्गर।"
"हमबर्गर? मैं तुम्हारा हरबर्गर क्यों?" शफीक ने पूछा था।
"इसका कारण यह है तुम्हारे अंदर एक बुजुर्ग की बुद्धिमता के साथ-साथ एक युवक की यौवनसुलभ चंचलता भी है।"
कूकी की प्रशंसा भरी बातों को सुनकर शफीक का मन प्रफुल्लित हो गया था। कूकी कभी उसको 'सूरज' के नाम से तो कभी 'बरगद के पेड़' के नाम से संबोधित करती थी। कि वह उसका निर्भय आश्रय स्थली होने के साथ-साथ एक अटूट आश्वासन की छाया प्रदान करने वाला था। शफीक हमेशा कूकी के इस तरह के हास्यास्पद तथा सृजनशील संबोधनों की खुले दिल से तारीफ किया करता था, जैसे वे दोनों 'भाषा का खेल' खेल रहे हो।
एक बार कूकी आठ दिन के लिए बाहर गई हुई थी, जब वह वापस घर लौटी तो उसने देखा कि उसके मेल- इनबाक्स में कई मेल आए हुए थे। उस आदमी की बैचेनी वास्तव में किसी को भी व्याकुल कर देने वाली थी, जैसे कि उसकी कोई कीमती चीज किसी भीड़ के अंदर खो गई हो। और वह उस भीड़ के अंदर अपनी खोई हुई मणि को नहीं खोज पा रहा हो। उसकी अवस्था ठीक उसी तरह थी जैसे बिन पानी तड़पती मछली।
उसने लिखा था :-
तुम्हारे बिना एक सप्ताह
जैसे कि बिना पवन का एक पल
बिना पानी का एक दिन
बिना भोजन के कई दिन
तुम्हारे बिना एक सप्ताह
जैसे कि बिना धूप-छाँव का एक महीना
तुम्हें सुने बिना एक सप्ताह
जैसे कि एक साल का गुजर जाना
बिना संगीत, बिना पंक्षियों की चहचहाट
बिना बारिश की बूँदे, बिना बादलों की गड़गड़ाहट
तुम्हारे सहचर्य के बिना एक सप्ताह
नींदविहीन रातें, विश्रामविहीन हृदयगति
बीत जाते हैं सारे दिन सौन्दर्य हीनता में
जिधर देखता हूँ मेरे चारों तरफ सब कुरुप ही कुरुप
सुंदरता तो है केवल तुम्हारे अधरों की मुस्कान में
तुमसे बिना बातें किए एक सप्ताह
मेरे लिए एक वर्ष के निर्वासन से कम नहीं
एक निर्जन द्वीप के भीतर किसी जंगल में
मेरे चारों तरफ असंख्य लोग होने के बावजूद भी
तुम्हारे बिना एक सप्ताह
किसी अगम्य स्थान में अकेले एक साल गुजारने जैसा
जहाँ जीवन जीवनहीनता में परिणित हो जाता हो।
प्रियतमा, तुम्हारे बिना एक सप्ताह .....
उसको मिले अनेक मेलों में में एक मेल ऐसा भी था जिसमें एक पंक्ति इस तरह लिखी हुई थी, "मैं
तुम्हारे प्यार में अंधा हो गया हूँ मेरा हाथ थामने के लिए जल्दी लौटकर आओ।"
स्कूल या कॉलेज जमाने में ऐसी ही पंक्ति कूकी ने पढ़ी थी। शायद उड़िया कवि उपेन्द्र भांज द्वारा रचित थी "नया नया अंधा हुआ हो जैसे..."
कूकी अपने हर मेल को बहुत सोच समझ कर लिखती थी। उसके हर मेल तर्क संगत तथा आवेगविहीन होते थे। कूकी की भाषा इस प्रकार की होती थी मानो वह मालकिन हो और शफीक उसका सेवक। वह उसकी हर बात को महत्व देता था और उसके अनुसार चलने की कोशिश करता था। कभी-कभी कूकी को ऐसा लगता था मानो वह उसका शरारती बेटा है, जो अधिक लाड-प्यार पाकर आजकल बेलगाम हो गया था। कूकी उसको सही रास्ते पर लाने की कभी भी कोशिश नहीं करती थी। जबकि शफीक खुद ही उसके कदम के साथ अपने कदम मिलाकर एक दूसरी दुनिया की ओर बढता जा रहा था। जिस तरह कूकी की दुनिया उसके लिए आश्चर्यजनक थी, ठीक उसी तरह उसकी दुनिया कूकी के लिए।
एक बार शफीक ने अपनी आश्चर्यजनक दुनिया के रहस्यो पर से परदा हटाते हुए कहा था, "मैने आज तक बावन औरतों के साथ संभोग किया है। रुखसाना, क्या तुम्हारे पास इस प्रकार का कोई अनुभव है?"
उसके बाद अपनी बहादुरी दिखाते हुए उसने अपने गोपनीय सामूहिक सभोग के बारे में वर्णन किया था। उस 'मेल' को पढ़ने के बाद, पता नहीं क्यों, कूकी का मन खराब हो गया था। मानो एक ही झटके में कई दिनों की आस्था और विश्वास का स्तंभ टूटकर चूर-चूर हो गया हो। एक लंपट आदमी के साथ इतने दिनों से जुड़ी हुई थी कूकी। छिः! जिस आदमी को वह प्यार करती है, वह आदमी अपने पतन के अंतिम छोर तक पहुँचा हुआ है। ऐसे एक पतित आदमी के चक्कर में फँस गई है वह? वह अपने आपको मन ही मन धिक्कारने लगी। उसे लगने लगा था कि उसे भावनात्मक रूप से प्रताड़ित किया गया है। उसके बारे में वह जितनी गहराई से सोचती जा रही थी, उतनी ही अधिक वह अपने आपको अंधेरेगर्त में पा रही थी।
ऐसे इंसान के साथ पहले कभी कूकी का परिचय नहीं हुआ था। परपुरुष व परस्त्री-गमन के बारे में उसने पहले से थोड़ा बहुत सुन रखा था। अपने मन में कभी किसी के प्रति आकर्षण पैदा होने पर वह तुरंत अगले पल अपनी सारी दुर्बलताओं और वासनाओं को धो डालती थी जैसे कि गंदे हाथों को साबुन से धोना।
इसका मतलब इतने बड़े संसार में एक ऐसी भी दुनिया है? यद्यपि ऐसी कुछ बातें कूकी के कान में आई थी, उनकी सोसायटी के कुछ लोग भी इस तरह की गतिविधियों में लिप्त रहते हैं। टेलीवीजन के कुचर्चित कार्यक्रमों से भी उसको इसी तरह की कुछ-कुछ बातों की भनक लगी थी। वह सोच भी नहीं पा रही थी, कैसी-कैसी मनोस्थिति वाले लोग इस दुनिया में रहते हैं? उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। मानो अचानक तबीयत खराब हो गई हो। उसे लग रहा था जैसे कि कोई अनावश्यक और अव्यक्त चीज उल्टी के रुप में बाहर निकल जाएगी। शफीक के सामूहिक संभोग के सारे गोपनीय दृश्य उसके दिमाग में एक-एक करके घूम रहे थे। उसके बारे में सोच-सोचकर उसका सिर फटे जा रहा था।
कूकी ने शफीक को कभी प्रत्यक्ष देखा नहीं था। कूकी के पास उसका एक मात्र वही फोटो या जिसको उसने शुरु-शुरु में कूकी के पास भेजा था। उसी फोटो को देखकर कूकी कल्पना कर रही थी, इसी आदमी ने इतना कुकर्म किया है। शफीक के लिए जो स्वर्गीय आनंद उसके लिए वह सब नारकीय वासना थी।
क्यों उसने ऐसे लंपट आदमी के साथ इतने दिनों तक अपना संबंध बनाए रखा? उसके साथ संबंध जोड़ना तथा उसको हमेशा अपने दिल में संभालकर रखना महज एक कल्पना नहीं थी? वर्तमान को आनंद से जिओ। रही आने वाले कल की बात, उसे कल के भरोसे छोड़ दो।
क्या कोई इंसान अपने लिए जीता है? उसके चार बच्चे कैसे होंगे? जिनके माँ-बाप रातभर नाइट क्लबों में ऐशो आराम की जिंदगी जी रहे होंगे। घर में बच्चों को कौन पढ़ाता होगा, ए फॉर एपल और (ए प्लस बी) का वर्ग...? बच्चों के दिमाग पर क्या गुजरती होगी?
पता नहीं क्यों, कूकी उस आदमी की जीवन शैली को लेकर बहुत दुखी हो गई? जब उसे उस आदमी की वह पंक्ति याद आ जाती थी, "मैने अपने जीवन में बावन अलग-अलग औरतों के साथ संभोग किया है।" उसे सोच-सोचकर उबकाइयाँ आने लगती थी। कैसी धारणा रखता है वह औरतों के बारे में? केवल शारीरिक सुख देने वाली मशीन? हृदय नाम की चीज क्या खो गई है उसकी दुनिया से? उसकी अपनी दुनिया में हृदय, मन आवेग, रुचि जैसे शब्द कोई मायने नहीं रखते हैं। केवल शरीर ही सबकुछ है? पता नहीं, शफीक के अंदर हृदय नाम की कोई चीज है भी या नहीं।
इसका मतलब आज तक उस आदमी ने अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से उसे धोखा दिया है। उसने उसके साथ विश्वासघात किया है। शायद उसकी तालिका में अगला नंबर कूकी का होगा, तिरेपनवाँ? उस आदमी को भले ही कूकी को स्पर्श करने का अवसर नहीं मिला, मगर ई-मेल के जरिए वे दोनो एक दूसरे को पूरी तरह से उपभोग कर चुक थे। उसको एक ऐसे आदमी के सामने निर्वस्त्र होना पड़ा है जिसके पास कूकी के शरीर के अलावा किसी भी चीज का कोई महत्व नहीं था। यही सोचकर कूकी आत्मग्लानि से भर गई।
धीरे-धीरे कर कूकी का दुःख और पश्चाताप क्रोध में बदल रहा था। बेवजह वह किसी पर भी चिड़चिड़ा जाती थी। मानो उसका बसा-बसाया घर उज़ड़ गया हो। वह एक गलत आदमी का हाथ पकड़कर मानो अपना घर छोड़कर चली गई हो और किसी भी हालत में वह अपने घर वापस नहीं जा पाएगी। वह जरुरत से ज्यादा गंभीर रहने लगी। बच्चें और अनिकेत उसके इस तरह के बदले हुए व्यवहार से दुःखी हो गए थे। एक बार अनिकेत ने कूकी से पूछा - "कूकी, ऐसा तुम्हें क्या हो गया है? तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है क्या? क्या फिर से पेट की वही पुरानी बीमारी सताने लगी है?"
कुकी थोड़ा चिड़चिड़ाते हुए बोली थी, "नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। अगर मेरे पेट में दर्द होता तो यह बात क्या मैं तुमसे छिपाती? कैसी बहकी-बहकी बातें करते हो आप भी?"
"अच्छा-खासा घर में बैठी हुई हो, मेरी तरह आफिस में आठ-दस घंटे ड्यूटी करनी नहीं पड़ती है। फिर भी हमेशा गंभीर मुद्रा बनाकर क्यों रहती हो? क्या घर से कोई फोन आया था?"
"नहीं, मुझे ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। मैं भला गंभीर क्यों रहूँगी?"
कूकी मन ही मन सोचने लगी थी, क्या अनिकेत उसका चेहरा देखकर उसके मन की सारी बातें पढ़ ली है? अपने चेहरे की बदली भाव-भंगिमाओं को छुपाने का प्रयास करते हुए कूकी कहने लगी, "क्या हर समय नाचते-कूदते रहना चाहिए? 'हा हा ही ही' करते रहना चाहिए? अगर कोई कुछ समय के लिए चुप्पी बांध ले तो इसका मतलब कतई यह तो नहीं है कि उसकी दुनिया में कोई तूफान आया हो।"
छोटे बेटे ने कहा, "मम्मी, आप जब इतना चुपचाप रहती हो तो हमें यह घर काटने दौड़ता है।"
अनिकेत ने कहा, "अपनी मम्मी को कुछ मत बोलो, बेटा। पता नहीं क्यों, उसका मूड़ अच्छा नहीं है।"
कूकी के मस्तिष्क में यह बात कौंध रही थी, क्या कहीं वास्तव में उसकी मनोस्थिति उसके चेहरे पर एक काले बादल की तरह उमड़-धुमड़ रही है। उसकी छाती में दर्द के काँटे चुभ रहे थे। वह किसी दूसरे से यह बात कैसे करती? दो नाव में पाँव रखकर क्या वह चल पाएगी? उसके निरीह परिवार के प्रति क्या वह अन्याय नहीं कर रही है? कूकी ने बहुत सोच-समझकर अंतिम निर्णय लिया कि आज के बाद वह कभी भी अपने मन को उधर भटकने नहीं देगी। मन के उस दरवाजे को वह हमेशा- हमेशा के लिए बंद कर देगी।
इधर अनिकेत ने दोनों बच्चों को अच्छी तरह समझा दिया था कि उनमे से कोई भी कूकी को बिना मतलब का परेशान न करे। यह सुनकर दोनो बच्चें अपनी दुनिया में व्यस्त रहने लगे। अनिकेत भी जब घर में रहता था या तो अखबार या फिर दूरदर्शन की खबरों में मशगूल रहने लगा था। कूकी को अपना घर किसी श्मशान-घाट से कम नहीं लगता था।
अगले दिन कूकी चुपचाप अपने बिस्तर पर पड़ी रही थी। वह यह भी भूल गई थी कि वह किसी की पत्नी तथा किसी की माँ भी है। जब तक वह रसोई नहीं बनाएगी, उन लोगों का पेट कैसे भरेगा? अनिकेत भी दूरदर्शन की खबरें सुनते-सुनते बोर होकर अचानक उठकर उसके पास चला जाता था तथा उससे पूछने लगता था, "बहुत ज्यादा खराब लग रहा है? कुछ दवाई दूँ? चले, एक बार जाकर किसी डॉक्टर को दिखा देते हैं।"
"तुम व्यर्थ में परेशान मत होओ। थोड़ी देर बाद उठकर मैं घर के सारे काम निपटा लूँगी।"
"रहने दो, थोड़ा और आराम कर लो, आज हम सभी ब्रैड -आमलेट खाकर अपना काम चला लेंगे। क्या कह रहे हो बच्चो? ब्रैड -आमलेट खाओगे न?"
"हाँ पिताजी, खा लेंगे। लेकिन एक दिन आप हमें पिज्जा जरुर खिलाना। ठीक है? छोटे बेटे ने कहा।
कूकी अपने आपको भयंकर आहत अनुभव कर रही थी। यह क्या हो गया सब? जहाँ उस पर जान छिड़कने वाला एक भरापूरा परिवार उसके इर्द-गिर्द घूम रहा है तब भी उसे ऐसा क्यों लग रहा है जैसे उसका सारा घर संसार उजड़ गया हो? वह अपना मुँह लटकाए ऐसे क्यों बैठी है? अपनी स्वार्थगत आकांक्षा, आशा, प्रेम, घृणा से परे भी उसकी कोई न कोई भूमिका बनती है अपने परिवार के लिए। अपने दायित्वों के निवर्हन से दूर भागना क्या उचित है?
इसी अंतर्द्वंद्व में उलझी कूकी खाना बनाने के लिए जल्दी से उठकर तैयार हो गई। मगर उसको दिल से प्यार करने वाले परिवार ने उसे कोई भी काम करने की इजाजत नहीं दी और उसे छोड़ दिया ऐसे ही दुःख के महासागर में गोते लगाने।
अगले दिन जब सब अपने-अपने काम पर चले गए थे तब कूकी के अभ्यस्त कदम अपने आप कम्प्यूटर की तरफ बढ़ गए। और कुछ ही क्षण में उसके हठी मन ने एक बार फिर खोल दिया इंटरनेट का पिटारा। वह सोच रही थी शायद उसका उत्तर नहीं पाकर उस आदमी ने अवश्य कोई न कोई मेल किया होगा। एक जवान लड़की की तरह अपने प्रेमी से मिलने की असह्र तड़प उसके सीने की धड़कनों को बढ़ा दे रही थी। की-बोर्ड पर अंगुलियाँ अपने आप थिरकने लगी। जब उसने अपना ई-मेल आई.डी खोला, तो उसने देखा कि इनबॉक्स खाली था। कोई भी संदेश उसके नाम का नहीं आया था।
मगर ऐसा तो कभी भी नहीं हुआ था जब वह किसी काम से घर से बाहर रहती थी तब भी उसके नाम का कोई न कोई मैसेज इनबॉक्स में अवश्य मिलता था।। फिर आज ऐसा क्या हो गया उसका कोई मैसेज नहीं आया हुआ था इनबॉक्स में? कहीं ऐसा तो नहीं है वह आदमी कूकी के प्रेमपाश से मुक्त होना चाह रहा हो? शायद यही कारण रहा होगा कि उसने कूकी को बावन स्त्रियों के साथ अपने यौन-संबंधों के बारे में सविस्तार बताया था। क्या वह यही चाहता था कि उन यौन-संबंधों के बारे में जानकर कूकी के मन में घृणा के भाव जागृत हो जाए तथा वह अपने आप उससे कटकर बहुत दूर चली जाए?
उसदिन कूकी ने कम के कम पाँच-छह बार इंटरनेट लगाकर देखा था कि कहीं उसे नाम का कोई मैसेज आ गया हो। जितनी बार वह इंटरनेट लगाती थी, अपने नाम कोई मेसेज न पाकर उतनी ही ज्यादा निराश हो जाती थी। सोच-सोचकर वह बेहाल हो जाती थी। किसके सामने वह अपने इस दुःख को प्रकट करेगी? वह कोई राधा तो नहीं थी जो अपनी सखियों को बुलाकर कहती, "हे विशाखा सुनो, हे ललिता सुनो, तुम मेरी खास सखियाँ हो इसलिए पूछ रही हूँ। मेरा मन प्रेम की अग्नि से जल रहा है, कैसे उसको शांत करुँ? उसका कोई रास्ता बताओ।" थक-हारकर दुखी होकर वह अपने खाली घर के अंदर बहुत जोर से चिल्लाने लगी, "शफीक, तुम कहाँ हो?"
अपनी व्यग्रता पर काबू पाने के लिए कूकी बिना किसी मन के, टी.वी. लगाकर देखने लगी। मगर टी.वी. पर आने वाला कोई भी धारावाहिक उसके दिल को छू नहीं रहा था। वह शांति से सोना चाहती थी
मगर उसकी आँखों में नींद कहाँ? वह शफीक के ख्यालों में इस तरह डूबी हुई थी कि उसे कोई भी चीज समझ में नहीं आ रही थी रह-रहकर शफीक की बातें याद आने लगती थी,
"तुम्हारे भीतर मैने अपने अस्तित्व को मिटा दिया
तुम्हारे बिना मैं अपने आप को खोजते हुए पाता हूँ
एक बार फिर से खो जाने के लिए।"
कूकी अपने गम भूलाने के लिए सोच रही थी कि वह अपने पडोसी के घर चली जाए। कम से कम अपने पड़ोसियों से कुछ बातचीत करेगी तो अपने दिल के दुःख भूल जाएगी। पिछली रात के दुख की तुलना में आज रात का दुख पूरी तरह अलग था। पिछले रात के दुख के पीछे अपमान-बोध एक मुख्य कारण था, जिसमें जड़ा हुआ था आत्मग्लानि का एक मनोभाव। उसे बहुत बड़ा धोखा हुआ है एक लंपट के हाथों। उस आदमी ने उसके सच्चेपन, उसके गांभीर्य और उसके अहंकार को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है और वह मानो अट्टाहास करते हुए कह रहा हो, "तुम जानती हो, मैं किसी भी औरत का दिल जीत सकता हूँ।"
एक लंपट के हाथों अपमानित होने का दुख नहीं था अगले दिन। दुख तो था उसे अगले दिन अपने आप से हारने का, अपने प्रियतम को खो देने का। वह शफीक को किसी भी हालात में खोना नहीं चाहती थी। पिछली रात का वह अपमान-बोध, वह पश्चाताप जैसे कि उसके मन से गायब हो चुके थे।
दो दिन के बाद कूकी ने देखा उसके नाम का एक ई-मेल आया हुआ था।
"ऐसा क्या हो गया है तुम्हें? तुम कुछ भी उत्तर नहीं दे रही हो?क्या तुम्हारी तबीयत खराब है? या घर में कोई दिक्कत है? या फिर कहीं बाहर चली गई हो मुझे बिना बताए? क्या मेरे मेल से तुम्हें किसी प्रकार का दुःख पहुँचा है?
जैसे कि वह आदमी बुरी तरह झुंझला गया हो।
"मुझे पता नहीं क्यों, मैने तुम्हे मिस किया जितना ज्यादा कर सकता था, उससे ज्यादा मिस किया।"
कूकी का जीवन एक बार फिर से सुवासित हो उठा। उसके अधरों पर मुसकान छाने लगी। उसके घर में फिर से एक बार उजाला हो गया। उसे ऐसा लग रहा था मानो किसी ने उसके रास्ते में पडे हुए पत्थर को दरकिनार कर दिया हो। अब सब-कुछ धीरे-धीरे स्वाभाविक रूप से चलने लगेगा। किसी को कानो कान पता भी नहीं चलेगा उसकी हँसती-रोती दुनिया के बारे में।
एक बार फिर कूकी लौट आई कम्प्यूटर के पास, एक नशेड़ी आदमी की तरह। प्रेम की परिभाषा के बारे में लिखते-लिखते अनजाने में उसने उस आदमी की भर्त्सना करते हुए कुछ वाक्य लिख दिए।
"एक रेंगते हुए केटरपिलर की जिंदगी जीने से क्या लाभ ? प्रेमविहीन होकर केवल शारीरिक सुख की लालसा रखने वाले किसी भी आदमी की तुलना उस कुत्सित रेंगते हुए केटरपिलर के अलावा किसके साथ की जा सकती है? क्या तुम्हारे दिमाग में यह बात है कि मैने किसी शारीरिक सुख की खातिर तुम्हारे साथ संबंध स्थापित किया है? काश! मुझे ये बातें पहले से मालूम होती।"
"तुमने दूसरी बार फिर मेरा अपमान किया है। तुमने वापस मुझे केटरपिलर के नाम से गाली दी है।" शफीक ने लिखा था।
"हाँ मैं इस बात को स्वीकार करता हूँ कभी मेरा जीवन एक रेंगते हुए केटरपिलर की तरह हुआ करता था। हाँ, मैने जवानी के जोश में हर रात तरह-तरह की औरतों को भोगा है। लेकिन रूखसाना, तुम वह पहली औरत हो, जिसने मुझे निस्वार्थ और निश्छल प्रेम की ओर आकर्षित किया है। किसी दूसरी औरत के साथ तुम्हारी तुलना कतई नहीं की जा सकती। एक दिन यह बात मैं तुम्हें सिद्ध करके दिखा दूँगा कि सही मायने में मैं तुमको कितना प्यार करता हूँ। मैं तुम्हारा दिल से सम्मान करता हूँ। "आइ विल प्रूफ इट वन डे। डोंट लीव मी। आइ बो माय हेड़ आन योर फिट, फॉरगिव मी, बट डोंट लीव मी। प्लीज़ डोन्ट काल मी केटरपिलर।"
"प्लीज़ डोन्ट काल मी केटरपिलर।" इसका मतलब यह बात शफीक के दिल को चुभ गई है। इस नाम से संबोधित कर क्या उसके मन को कष्ट देना उचित था? अपने चाहने वाले को कुत्सित, रुचिहीन तथा व्यभिचारी नाम से बुलाना क्या उसको शोभा देता है? ऐसे शब्दों का उसके लिए प्रयोग करने से पूर्व कूकी को कम से कम एक बार सोच लेना चाहिए। ओह, उसके दिल पर क्या गुजर रही होगी? फिर से कूकी की छाती के अंदर वेदना की धारा फूट पड़ी।
पता नहीं क्यों, कूकी अपने मनोभावों को दबा नहीं पाती। उसके चेहरे पर कभी भी कृत्रिम मुस्कराहट टिक नहीं पाती थी। जब शुरु से ही शफीक के बारे में वह सब कुछ जानती थी, उसके उपरांत उसने शफीक को अपने दिल से ग्रहण किया। फिर अभी उसकी दुनिया को कुत्सित, कदाचारी तथा नर्क के कीड़े की उपमा देने का क्या औचित्य है?
कूकी ने बारम्बार उस आदमी को अपमानित किया है। जब-जब उसका मन हुआ, उसने उस आदमी की खुले मन से आलोचना एवं भर्त्सना की है। मगर उसे इस बात का आश्चर्य लग रहा था कि उनके सम्बंधों के बीच दरार पड़ने के बजाय पहले की तुलना में और अधिक प्यार बढ़ रहा था। कभी-कभी कूकी सोचती थी कि यह सब उसके प्रारब्ध का प्रतिफल है। शायद एक ऐसा आदमी उसके जीवन में आएगा, यह सब जैसे पूर्व निर्धारित घटना थी। वह उसके जीवन में तब प्रवेश करेगा जब वह बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतामग्न होगी, जब वह पंचांग देखकर धार्मिक रीति-रिवाजों का नियम-बद्ध पालन कर रही होगी और मन ही मन अपनी संपत्ति को जल्दी से जल्दी दुगुना करने के बारे में सोच रही होगी। ऐसे समय में कूकी के जीवन में उसका प्रवेश उसे बीस साल पीछे की ओर ले गया।
ना तो वह आदमी उसके बिना रह पाएगा और ना ही कूकी उसके बिना। लेकिन दोनों अपने- अपने आदर्शों और सिद्धांतों को लेकर परस्पर लगातार लड़ते रहेंगे। कूकी बार-बार उसका अपमान और भर्त्सना करती रहेगी और वह आदमी भीतर से टूट जाता होगा। उन टूटे हुए टुकड़ों को लेकर कूकी जोड़कर एक नया रूप देती रहेगी। जब इच्छा होगी वह उसके साथ खेलती रहेगी तथा जब इच्छा होगी वह उसको तोड़ती रहेगी। इतना होने के बावजूद भी वह आदमी उसे नहीं छोड़ पाता होगा। काफी विचार मंथन के बाद कूकी ने लिखा था, "तुम मेरे प्रारब्ध हो। अगर ऐसा नहीं होता तो सारी प्रतिकूलताओं का अतिक्रमण करते हुए मेरा मन बार-बार तुम्हारे पास चला नहीं जाता।
जरा सोचो,
तुम मेरे शत्रु देश के रहने वाले हो,
तुम मेरे धर्म से भी बाहर वाले हो,
कैसे मिलन होगा तुम्हारे साथ,
मेरी प्रकृति का?
फिर भी कुछ तो है,
पेड़ से गिरे एक पत्ते की भाँति
उड़ाते हुए कोई मुझे तुम्हारे पास ले जाता है
बार-बार।"
शफीक ने इस तरह उत्तर दिया था जैसे वह नशे में धुत हो, "ओ माइ स्वीट एरोटिक गोडेस ऑफ़ दि नाईट आइ हेव नोन् यू आल माइ ट्रान्कुरलटि इन रेस्टफुल फेयर अलोंग माइ क्वाइट चिअर्स।"
उस दिन, तबस्सुम शफीक को अपने साथ एक नाइट-पार्टी में लेकर गई थी। जब शफीक घर लौटा था, तब सुबह होने में एक या दो घंटे बाकी थे . उसके स्टूडियों में कैनवास, उसके रंग, ब्रश, चार फुट - छः फुट का एक बिस्तर स्टडी टेबल और पास में रखा हुआ एक कम्प्यूटर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। और उस कम्प्यूटर के भीतर में कैद थी उसकी रूखसाना। अपने डगमगाते कदमों के साथ वह पहुँच गया अपनी रुखसाना के पास। जैसे ही उसने इंटरनेट लगाया, वैसे ही डेस्कटॉप पर उभर आई रुखसाना की एक खूबसूरत मनमोहक मुस्कराहट। मानो वह अपने पास आमंत्रित करते हुए कह रही हो, "आइए जनाब, यहाँ तशरीफ रखिए।"
शफीक लिखने लगा था, "मैं नए साल की पार्टी में नहीं गया था, इसलिए आज तबस्सुम मुझे नाइट-पार्टी में लेकर गई थी। तुझे छोड़कर कहीं भी जाने की इच्छा नहीं हो रही थी, मगर मैं तबस्सुम को मना नहीं कर पाया। मैं वहाँ खाली बैठे-बैठे शराब पीता रहा। तुम जानती हो मुझे नाचना नहीं आता। क्या तुम नाचना जानती हो? वहाँ खूब सारी औरतें नाच रही थी, मगर तुम मुझे वहाँ कहीं भी दिखाई नहीं दी। कहाँ से दिखाई देती तुम? तुम तो मेरे दिल के अंदर कैद थी। मैं जाम के ऊपर जाम पीता रहा और केवल तबस्सुम को देखता रहा। वह अपने ब्वायफ्रैंड के साथ बहकी हुई अवस्था में थी। वे दोनो वाइल्ड हो चुके थे। सी वाज आलमॉस्ट हॉफ फक्ड!"
नशे की हालत में शफीक ने लिखा था, "तुम मेरे जीवन की एक सर्वश्रेष्ठ नारी हो। मैने पहले से ही गाँव की सम्पत्ति पहली बीवी के नाम कर दी है। और अभी जो बंगला है, वह मैने तबस्सुम के नाम लिख दिया है। और बच गया मेरा दिल, जिसे मैने तुम्हारे हवाले कर दिया है। तुम्हारे अलावा अब मेरा इस दुनिया में और कोई नहीं है। तुम मुझे छोड़कर कभी कहीं चली मत जाना।"
शफीक ने मादक अवस्था में तीन कविताएँ भी लिखी थी, "ओ माई मदर, ओ माई डॉटर, ओ माई स्वीट वाइफ" तीनों कविताएँ कूकी को समर्पित करते हुए लिखी गई थी। उसने कूकी को तीन रुपों में देखा था। उसकी प्रत्येक कविता में कूकी के सहचर्य की एक चाहत छिपी हुई थी।
इस बात को शफीक कई बार लिख चुका था। "जानती हो रुखसाना, यह वही स्टूडियो है जिसमें मुझे अपार शांति मिलती है। मुझे लगता है जैसे मैं तुम्हारे पास लौट आया हूँ। कम्प्यूटर में तुम्हारी मौजूदगी का मुझे हर पल अहसास होता है। मैं तुम्हें अपने पास पाता हूँ। मैं यहाँ बैठकर केवल तुम्हारे पन्ने देखता हूँ। कभी मेरा मन तुम्हें न पाकर हाहाकार करने लगता है। बार- बार मैं तुम्हें पाने के लिए बिस्तर पर अपने हाथ बढ़ाता हूँ, मगर तुम हो कि वहाँ मुझे नहीं मिलती हो।"
कई दिनों से कूकी देख रही थी कि शफीक एक निशाचर की भाँति सारी रात जागकर रहता था। कभी वह रात में पेंटिंग करने लगता था, तो कभी वह कूकी को ई-मेल लिखने में व्यस्त रहता था तो कभी वह क्लब गई हुई तबस्सुम का बेसब्री से सुबह तक इंतजार करता था।
जिस दिन से कूकी शफीक को जानती थी, उस दिन से ही वह तबस्सुम के आशिकमिजाजी व्यवहार के बारे में सुनती आई है। उसके लिए शफीक कभी भी चिंतित नहीं था। ना ही वह उससे असंतुष्ट था और ना ही वह उसका विरोध करता था। ऐसे ही शफीक के ई-मेलों में कभी-कभी एकाध वाक्य बनकर चली आती थी तबस्सुम।
"बेबी, कम टू माइ आर्म्स। इट इज नाऊ वन ए.एम, तबस्सुम नॉट येट कम।"
या तो कभी-कभी वह लिखता था, "अभी-अभी गई है तबस्सुम अपने कम उम्र वाले ब्वायफ्रैंड के साथ। तुम जानती हो, उसका एक ब्वायफ्रैंड है, जिसका नाम है शमीम, उसकी उम्र मात्र पच्चीस साल है।"
फिर वह आगे लिखता जाता था, "रुखसाना, आज तबस्सुम डेटिंग पर चली गई है। आज नौकरानी घर में काम करने नहीं आई। आज मैने अपनी बेटियों के साथ मिलकर खाना बनाया। अभी मैने रात का भोजन कर लिया है। इसके बाद वन पेग रम एंड सिगार देन विद यू।"
अधिकांश समय तबस्सुम अपने ब्वायफ्रैंड के साथ डेटिंग पर जाती थी और लौटती थी कभी-कभी आधी रात को, तो कभी-कभी सवेरे-सवेरे। शफीक ने अपनी दूसरी पत्नी को पूरी तरह से आजादी दे रखी थी। कूकी ने कभी भी उसको तबस्सुम के प्रति असंतोष व्यक्त करते नहीं देखा। कूकी को ऐसा लगता था कि वह आदमी कम से कम स्वार्थी नहीं है। कम से कम वह ऐसा आदमी नहीं है जो अपनी बीवी को घर की चार दीवारी में कैद कर खुद ऐशो-आराम की जिन्दगी बिताने में व्यस्त रहता हो।
तबस्सुम का इस तरह डेटिंग में जाना कूकी को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था, फिर भी उसने शफीक से इस बारे में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की थी। शायद शफीक तबस्सुम की आलोचना सुनकर नाराज हो जाता। केवल एक बार उसने शफीक से पूछा था, "तुम शाम को घर में क्या करते हो? न तुम नमाज पढ़ते हो, न बच्चों के साथ बैठकर डाइनिंग टेबल पर खाना खाते हो। बच्चों को प्यार से सुलाने के लिए भी तुम्हारे पास समय नहीं। क्या बच्चें अपनी माँ को नहीं ढूँढते हैं? क्या कभी वे तुमसे यह प्रश्न नहीं करते, पापा, माँ कहाँ गई है? उसके बिना हमें अच्छा नहीं लगता।"
शफीक उत्तर देते समय कई प्रश्नों के उत्तर देना भूल जाता है जैसे कि वह इस बार इस प्रश्न का उत्तर देना भूल गया था। मध्यम वर्गीय कूकी का संस्कारी मन तबस्सुम के चाल-चलन को स्वीकार नहीं कर पा रहा था। किन्तु सारी बातें तो उनकी व्यक्तिगत बातें थी। कूकी इधर-उधर की बातें कहकर उन दोनों की निजी जिंदगी में दरार गिराना नहीं चाहती थी।
उस दिन शफीक ने लिखा था, "जानती हो रुखसाना, आज मेरे से एक बहुत बड़ी गलती हो गई। आज मेरे मुँह से अनजाने में तबस्सुम के साथ संभोग करते समय तुम्हारा नाम निकला। मुझे इस बात पर बहुत आश्चर्य हुआ, जब तबस्सुम नाराज होने की जगह मुझ पर हँसने लगी।
हँसते-हँसते उसने कहा, तुम एक ऐसी औरत से प्यार करते हो जिसे तुम अपने जीवन में कभी भी मिल नहीं सकते। "मैं इस बात को अच्छी तरह जानता हूँ तबस्सुम कभी भी किसी दूसरी औरत को अपने जीवन में सहन नहीं कर सकती है। मगर तुम्हें उसने इतने सहज भाव से कैसे स्वीकार कर लिया? यह क्या कोई करिश्मा नहीं है? माइ एरोटिक गोडेस।"
यह सुनकर कूकी मन ही मन सिहर उठी थी तथा दूसरी तरफ इन सारी बातों से उसका मन असह्य हो जा रहा था। न कोई भूख, न कोई दुख, न किसी प्रकार की कोई अप्राप्ति, न किसी भावनाओं की कोई कद्र, केवल शारीरिक सुख? ये सब फेंटेसी नहीं तो और क्या है? कहीं यह आदमी उसे किसी फैंटेसी की दुनिया में तो नहीं ले जा रहा है? यथार्थ में जिस दुनिया का कोई अस्तित्व ही नहीं है।
शादी के बाद एक बार अनिकेत कूकी को दार्जिलिंग घुमाने लेकर गया था। उस नई जगह पर घूमते-घामते वे लोग गलती से रेड लाइट एरिया में चले गए थे। वहाँ उनको अजीबो-गरीब किस्म के दृश्य देखने को मिले। वहाँ उसे भयंकर गरीबी का नंगा नाच देखने को मिला था। फिर भी वहाँ की औरतें अधखुला ब्लाऊज पहने हुए, होठों पर लाल-लाल लिपिस्टिक लगाए हुए, बालों में गजरा सजाए हुए मुस्कराते हुए हर दरवाजे के बाहर खड़ी हुई थी मानो वे किसी के आने का इंतजार कर रही हो कुछ लावारिस मैले-कुचेले बच्चे नाले के पास एक देसी कुतिया के पिल्लों को गोद में लेकर इधर-उधर घूम रहे थे। उन औरतों को वहाँ खड़ा देखकर कूकी से रहा नहीं गया, उसने अनिकेत से पूछा था, "अनिकेत, ये औरतें इस तरह सज-धजकर दरवाजों पर क्यों खड़ी हुई हैं?"
बिना कुछ उत्तर दिए अनिकेत हाथ पकड़कर खींचते हुए उसको उस गली से बाहर लेकर गया, फिर उसने एक लंबी सांस छोड़ी और कहा, "अरे! यह रेड लाइट एरिया है। यहाँ सब वेश्याएँ रहती हैं।"
"हे भगवान! इतनी दयनीय अवस्था में रहती हैं ये वेश्याएँ?"
उनकी यह अवस्था देखकर वह दुख से कातर हो उठी थी। वह सोचने लगी कि एक निर्धन भिखारी को जितना थोड़ा-बहुत सम्मान मिलता है, उतना सम्मान भी इन लोगों को नहीं मिलता होगा।
वेश्याएँ तो मजबूरी में अपना शरीर बेचती हैं मगर शफीक जैसे आदमियों की क्या मजबूरी हो सकती है? उनके लिए औरत का शरीर भोग विलास की वस्तु के अलावा कुछ भी नहीं है। एक बार कूकी ने तो इस बारे में सवाल किया, "तुम लोग किस तरह एक दूसरे को इतनी छूट दे देते हो ? जबकि तुम्हारे यहाँ के काजी, मुल्ला काफी कंजरवेटिव और रूढिवादी होते हैं। क्या वे लोग तुम्हारे चरित्र की ओर अंगुली नहीं उठाते? शरियत के नियमों के अनुसार तुम्हें सजा सुनाई जा सकती है। क्या इस प्रकार के सामाजिक दंड से तुम्हें डर नहीं लगता है? तुम्हारे यहाँ तबस्सुम बुरका पहनती है अथवा नहीं?"
शफीक ने इस बात का उत्तर देते हुए लिखा था, "रुखसाना, हमारे देश में दो पाकिस्तान है। एक पैसे वालो का पाकिस्तान तो दूसरा गरीब लोगों का पाकिस्तान। हम लोग पैसे वालो में से आते हैं। और अधिकांश पैसे वाले यहाँ पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण करते हैं। उनके लिए समाज का कोई प्रतिबध नहीं है। वे लोग शरियत के नियम-कानून को बिल्कुल नहीं मानते हैं। यहाँ मुझे लोग अमेरिकी समर्थक मानते हैं। तुम जिन मुल्लाओं का जिक्र कर रही थी वे सब पाकिस्तान की साधारण जनता हैं। बचपन से ही उन्हें मदरसों में धार्मिक शिक्षा दी जाती है और वे लोग अपने जीवन भर उनी कानूनों के अनुसार अपना जीवन जीते हैं। मगर ये सब बातें तुम मुझसे क्यों पूछ रही हो? क्या तुमने अभी तक मुझे माफ नहीं किया? क्या तुम अभी तक यही सोच रही हो, मैने पुरानी जीवन-शैली को अभी तक तिलांजलि नहीं दी है? तुम्हारे अलावा इस दुनिया में मेरा और कोई नहीं है। इस बात पर क्या तुम्हे विश्वास नहीं हो रहा है?माइ स्वीट हार्ट, आइ नो आइ एम नॉट ए परफेक्ट मेच फॉर यू। आइ नो आइ हेव कमिटेड सो मेनी बलंडर्स, बट आइ नीड़ यू टू फॉरगिव मी, माई बेबी गोडेस। आइ कान्ट लिव विदाउट यू एंड योर स्माइल।
आइ नो आइ एम नॉट ए परफेक्ट मेच फॉर यू। आइ नो आइ हेव कमिटेड सो मेनी बलंडर्स, बट आइ नीड़ यू टू फॉरगिव मी, माई बेबी गोडेस। आइ कान्ट लिव विदाउट यू एंड योर स्माइल।
उस आदमी के क्रियाकलापों को देखकर बार-बार कूकी दुःखी हो जाती थी। उस आदमी की वजह से वह काफी मानसिक यंत्रणा झेल रही थी। मगर वह चाहती तो हमेशा-हमेशा के लिए उस आदमी से अपने सम्बन्ध तोड़ देती, मगर वह ऐसा नहीं कर पा रही थी। एक अनजाना आकर्षण उसे हर समय उसकी तरफ खींचकर रखता था।
वह उसकी बातों से पूरी तरह सम्मोहित हो चुकी थी। ये सभी तो प्रेम की परिभाषा के अन्तर्गत आते हैं। वह एक अनोखे मायाजाल मे फँस गई थी। कम्प्यूटर के पास बैठे बिना कूकी नहीं रह पाती थी। बिना कुछ लिखे कूकी को अच्छा नहीं लगता था। उसको गंदी-गंदी गालियाँ देने तथा बुरी तरह अपमानित करने के बाद भी, यहाँ तक कि दुनिया का सबसे घटिया आदमी कहने के बाद भी वह उसके पास कुछ न कुछ जरुर लिखती थी।
शफीक ने अपने जीवन मे ऐसा क्या पाप कर दिया था, जिसके बारे में वह अपने हर ई-मेल में इस बात का जिक्र करता था। वह आदमी इतने भयंकर अपराध-बोध से क्यों ग्रस्त है?
क्या उसने किसी का खून कर दिया? क्या उसने किसी की जमीन-जायदाद लूट ली? फिर इतना भयंकर अपराध-बोध क्यों? क्या कभी आतंकवादी बनकर उसने कुछ लोगों की हत्या कर दी? नहीं तो फिर वह इस चीज को क्यों लिखता, "आई हेव डन सो मेनी मिस्टेक्स। आइ नो आइ एम नॉट ए परफेक्ट मेच फॉर यू।"
इस बारे में कूकी ने कभी भी उससे कोई बात नहीं पूछी थी। वह उसकी दुखती रग पर हाथ रखना नहीं चाहती थी। मगर इतने पुराने संबंध के बीच अपने आप खुलती जा रही थी उसके दिल की ग्रंथियाँ।
शफीक ने अपने दिल पर हाथ रखकर लिखा था, "रुखसाना, आज मैं तुम्हें एक लम्बा ई-मेल नहीं लिख पाऊँगा। आज मैं बहुत परेशान हूँ। आई हेव बीन सम्मनड फॉर एन इन्टरोगेशन । वापस लौटने के बाद मैं तुम्हें एक लंबा ई-मेल करुँगा।
अभी तक इतने दीर्घ दिनों के संबंध में यह पहला पत्र था जो संक्षिप्त में लिखा गया था। क्या हो गया है उसे? उसको समन क्यों हुआ है? कूकी चिंतामग्न हो गई थी। लेकिन हकीकत किससे पता करेगी? वह आदमी ना तो उसका कोई पड़ोसी है और ना ही किसी आस-पास के शहर का निवासी है। उसके न तो घर का पता मालूम है और ना ही उसका टेलीफोन नम्बर। अगर उसके पास उसका टेलिफोन नम्बर होता भी तो क्या वह उससे फोन पर बात करती? तबस्सुम के साथ तो उसकी कभी बातचीन नहीं हुई। मगर क्या यह संभव है, पास के किसी पब्लिक टेलीफोन बूथ से वह पाकिस्तान बात कर पाती?
शफीक के लिए वह बुरी तरह परेशान होकर छटपटाने लगी। उसे यह सोचकर बेहद आश्चर्य हो रहा था कि उसको कभी स्पर्श तक नहीं किया ; उस आदमी के पसीने की गंध कई हजार मील दूर होने के बाद भी हरपल वह उसे सूंघ रही है। यह कैसे संभव हो सकता है?
आज की इस भौतिकवादी दुनिया में कोई उसकी बात पर विश्वास करेगा? कूकी को मन ही मन बहुत डर लग रहा था, कहीं उसकी वजह से शफीक किसी परेशानी में तो नहीं पड़ गया? आखिरकर वह उसके शत्रुदेश की रहने वाली है। कहीं वह उसके देश की किसी गुप्तचर संस्था की नजर में तो नहीं आ गया है। कूकी को डर लगने के पीछे एक कारण यह भी था - शफीक का पागलपन। उसने कूकी के फोटो की कई कापी बनवा ली थी। एक फोटो उसने अपने पर्स में रखा था, एक डायरी में तो एक फोटो अपनी कार में लगा दिया था। उसने अपने स्टूडियो की दीवारों पर अलग-अलग साइज के कूकी के खूब सारे फोटो चिपका दिए थे। एक बार उसके किसी दोस्त ने पूछा था, "यह कौन है? तुम्हारी पत्नी या दोस्त?" शफीक ने उत्तर दिया था, "यह मेरे लिए सबकुछ है।"
एक बार कूकी ने इस बारे में लिखा था, "क्या मेरे फोटो को इस तरह खुले आम अपने पास रखने तथा घर की दीवारों पर लटकाने से तुम्हें डर नहीं लगता? तुम्हारे बच्चे तुम्हें कुछ भी नहीं कहते?"
"नहीं, उन्हें सबकुछ पता है कि तुम मेरी जिंदगी हो।"
शफीक ने बिना किसी हिचकिचाहट के यह बात लिखी थी। "मेरे कुछ भी बताने से पहले तबस्सुम ने बच्चों को सारी बातें बता दी है। तुम यहाँ आ जाओ, तुम देखोगी, मेरे घर वाले तुम्हारा किस प्रकार स्वागत करते हैं। तुम चली आओ मेरे पास। मेरे घर में रानी बनकर रहोगी।"
हाय, काश! कूकी भी अपने घर में ऐसी बातें कह पाती। अगर अनिकेत और उसके बच्चों को इस बारे मे जरा सी भनक भी लग गई तो उसकी क्या अवस्था होगी? जिसकी वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी। या तो अनिकेत गुस्से में आकर उसकी हत्या कर देगा या फिर वह खुदजहर खाकर आत्म-हत्या कर लेगा। और बच्चे क्या उसे माँ कहकर बुलाएँगे?
कूकी पाकिस्तान के एक परिवार में बिंदास अपना जीवन जी सकती है। वहाँ वह चर्चा की एक विषय वस्तु बन सकती है। यहाँ तक कि वहाँ उसे उचित सम्मान भी मिल सकता है। मगर कूकी के घर में शफीक का क्या स्टेटस होगा? केवल कम्प्यूटर के एक फोल्डर में गुप्त रुप से छुपकर बैठे रहना या फिर अकेले में कूकी के साथ गपियाते-गपियाते कुछ नटखट शरारतें करना? यह तो ठीक ऐसी ही एक कहानी हुई जैसे कोई अप्सरा अपने जादू के बल पर किसी राज्य के राजकुमार को भेड़ में बदल देती हो।
अगले दिन शफीक का ई-मेल आया। स्वाभाविक ढंग से प्रेम की बात लिखते-लिखते अचानक उसके दिल की बाते निकल आई थी उस ई-मेल में जैसे कि कूकी के सामने वह कुछ भी बातें छिपा नहीं पाता था। उसने लिखा था, "रुखसाना, मैं इस देश को छोड़ कर कहीं दूसरी जगह जाना चाहता हू। मैं इस देश के सिस्टम से नफरत करता हूँ। आई हेट देट मिलीटरी जनता। उन्होंने गड़े मुर्दे जिंदा करने की तरह दो साल पुराना मेरा एक केस पुनर्जीवित कर दिया है। जबकि आज की परिस्थितियों में उस केस का कोई महत्व नहीं है।" और आगे शफीक ने कुछ भी स्पष्ट नहीं किया।
कौन-सा केस? वह इतना चिंतित क्यों है? कूकी की मन-ही-मन इच्छा हो रही थी कि वह उड़कर उसके पास चली जाए और उससे कहती, "इतनी चिंता मत करो। मैं तुम्हारे साथ हूँ।" उसे यह बात समझ में आ गई थी कि उसकी वजह से उसे कोई परेशानी नहीं है। मगर शफीक की बेचैनी और विवृत हाव-भाव देखकर उसे बात का अंदाजा लग गया था कि शफीक, हो न हो, किसी बड़ी मुसीबत में फँस गया है।
शफीक बार-बार यह लिखा करता था, "मैं उन सभी चीजों की लेशमात्र भी परवाह नहीं करता हूँ। मैं किसी से भी नहीं डरता हूँ, इन सब बातों से मुझे कोई परेशानी नहीं हो रही है।"
किन चीजों की परवाह नहीं करने की बात कर रहा है वह? अचानक उसे ऐसा क्या हो गया जिसके कारण वह बुरी तरह से विचलित हो गया है? कूकी ने अपने ई-मेल में यह बात उठाई थी, "अगर तुम्हारी पर्सनल बात न हो तो क्या मुझे यह बताना चाहोगे कि क्या हुआ है तुम्हारे साथ? क्यों इतना चिंतित हो तुम?"
शफीक ने अपने ई-मेल में इस बात का जवाब दिया था, जिसे पढ़कर कूकी का मन नफरत से भर उठा। वह उस आदमी को क्या कहेगी, उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।
शफीक ने लिखा था, "दो साल पहले मुझसे एक बहुत बड़ी गलती हो गई थी। उस समय किसी ने इस बात को महत्व नहीं दिया था। अपने आप सारा मामला दब गया था। लेकिन एक मिलिटरी आफिसर तबस्सुम को ब्लैकमेल करते हुए इस मामले को फिर से एक बार उछालेगा, उसका मुझे अंदाजा नहीं था। एक पुरानी फाइल में से उस केस को निकालकर फिर एक गड़े मुर्दे को उसने जिंदा किया। रुखसाना, वन्स आइ हेव डन ए मिस्टेक। आई फक्ड ए गर्ल, वन आफ माइ स्टूडेन्ट एंड आलसो द मॉडल फॉर वन आफ माइ पेंटिंग्स। उस लड़की की बाद में शादी हो गई और अभी वह अपने परिवार के साथ खुशीपूर्वक रहती है। वह लड़की उस घटना को भूल चुकी थी। आज के समय यह घटना कोई मायने नही रखती है। फिर भी तबस्सुम को ब्लैकमेल करने वाले मिलिटरी आफिसर ने उस लड़की को बहलाया-फुसलाया और मेरे विरुद्ध खड़ा कर दिया।
मॉडल आफ माई पेंटिंग? कौनसी पेंटिंग? ब्लैकमेलिंग क्यों? इन सब बातों को कूकी बिल्कुल समझ नहीं पा रही थी। केवल उसको इतना ही समझ में आया था कि दो साल पहले शफीक के किसी लड़की के साथ अवैध संबंध थे, जो कि उसकी स्टूडेंट थी। शफीक के इस तरह के उन्मुक्त जीवन के बारे में कूकी पहले से ही जानती थी मगर ब्लैकमेलिंग? यह सब क्यों? हर दिन शफीक कूकी को उसके शहर, शहर की गलियों, कोर्ट-कचहरी सभी जगह घुमा-घुमाकर दिखा रहा था, मानो कूकी आधे समय भारत में रहती हो तो आधे समय पाकिस्तान में।
कूकी ने लिखा था, "शफीक, जो भी तुम कहना चाहते हो, साफ-साफ शब्दों में कहो। मैं नहीं समझ पा रही हूँ कि तुम क्या कहना चाहते हो। तुमने अपनी मॉडल लड़की के प्रति कोई अच्छा काम नहीं किया है। क्या यह सच है कि वह लड़की तुम्हें प्यार नहीं करती थी। बिना प्रेम किए किसी से संभोग करना किसी रेप से कम नहीं होता है। शायद वह लड़की संभोग के लिए असहमत थी, इसलिए तो उसने तुम्हारे विरुद्ध शिकायत दर्ज की है। फिर तुम कैसे लिख सकते हो ऐसा कुछ भी नहीं है? उसे एक छोटी सी घटना कहते हो। उस घटना की तुम परवाह नहीं करते हो? तुम ऐसा क्यों करते हो, शफीक?"
विक्षुब्ध होकर शफीक ने लिखा था, "मैं जानता हूँ रुखसाना, एक डॉक्टर के पास बीमार आदमी का शरीर बीमार खेत की तरह होना चाहिए। उसमें उगी हुई हरी-भरी घास, ओस की बूँदें, छोटे-छोटे खिले हुए फूलों की तरफ उसकी नजर नहीं जानी चाहिए। मेरे सामने भी वह शरीर केवल मॉडल बनकर रहना चाहिए था। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। उसकी मद भरी आँखे, रसीले होठ तथा उभरे स्तन मुझे खुला आमंत्रण दे रहे थे। जैसे कि वह पुकार रही हो, आओ, मुझे छू लो, मुझे पूर्ण कर दो। यस रुखसाना, आइ हेव डन द मिस्टेक। लेकिन रुखसाना, उस दिन उस लड़की की आँखों में किसी भी तरह की कोई प्रतिक्रिया दिखाई नहीं दे रही थी। उसे तो किसी भी तरह का कोई क्रोध भी नहीं आया था। लेकिन पता नहीं कैसे, अचानक वह लड़की बदल गई! मैं नहीं समझ पाया उसने किसके बहकावे में आकर मेरे खिलाफ शिकायत दर्ज की है। मैं जानता हूँ मैं तुम्हारा एक गुनहगार हूँ। आइ एम सॉरी रुखसाना। आइ एम योर फॉरएवर कलप्रिट,शफीक।"
कूकी अपने मध्यमवर्गीय जीवन को बहुत पीछे छोड़ आई थी। अपने सारे सुख-दुख, सफलता-असफलता सभी को शफीक के प्रेम में वह अपनी वास्तविक दुनिया को पूरी तरह से भूल चुकी थी। शादी शुदा जिंदगी एक गज़ब किस्म का बंधन है जो दिल से बहने वाले सारे प्रेम के झरनों को सुखा देता है। जिन्दा रहना महज एक समझौते और एक हिसाब-किताब में बदल जाता है। पता नहीं कहाँ छुप गई होगी प्रेम की वह धारा जो जमीन के नीचे लुप्त हो गई। कई दिनों से वह नदी सूखती जा रही थी। उसका जल प्रवाह दूर-दूर तक फैले बालू के नीचे गायब होता जा रहा था। क्या वास्तव में यह दिल उस जल की एक बूँद के लिए प्यासा था? क्या शफीक ही एकमात्र समाधान था उस समस्या का?
कूकी को याद आ रहा था विगत आठ महीनों से वह कभी बीमार नहीं पड़ी थी। आठ महीनों से वह हँसते हुए अपना जीवन-यापन कर रही थी। वह कभी भी नहीं टूटी, तरह-तरह की भद्दी गालियों, झगड़े -झंझटों तथा अपमान के तानों के बीच। पहले की तरह अब उसे अनिकेत का गुस्सा और गालियाँ खराब नहीं लगती थी।
आखिर बार वह बीमार कब पड़ी थी? हाँ, एक साल पहले। उस समय अनिकेत उसे मौत के मुँह से बचाकर लाया था। उसकी बड़ी आँत में घाव हो गए थे। लगातार खून बहने की वजह से उसके शरीर में खून की कमी हो गई थी। उसके शरीर में हीमोग्लोविन की मात्रा खतरे के स्तर तक पहुँच गई थी। घर में बच्चों की देख-रेख करना, कूकी के लिए खून की व्यवस्था करना, रात-रातभर जागना, बार-बार कूकी के बेडपैन को इधर-उधर करते रहना तथा उसकी गंदी बेड शीट को बदलते रहना इत्यादि कई काम अनिकेत को बिना खाए-पीए करने पड़ रहे थे जिसकी वजह से वह थककर चकनाचूर हो जाता था तथा एक अद्र्धपागल की तरह दिखाई देने लगता था।
आठ दिन के बाद कूकी को अस्पताल से छुट्टी दी गई थी। शुचिता-प्रिय अनिकेत ने कूकी को पानी में गंगाजल तथा सेवलोन की कुछ बूँदे मिलाकर नहलाया था। और उसके कपड़ों को अपने हाथ से धोकर बाहर सुखाया था। घड़ी, जूता, चैन, अँगूठी सभी को अलग-अलग करके गरम पानी में गंगाजल डालकर धोया था। तब जाकर उसने उन सभी चीजों को पवित्र एवं जीवाणु रहित माना था।
फिर भी अनिकेत के मन में कुछ संदेह बाकी रह गया था। उसको मन ही मन लगने लगा था कि एक बार फिर कूकी के सारे जीवाणु उसकी चीजों पर अदृश्य रुप से लौटकर आ गए हो। वे जीवाणु भले दिखाई नहीं पड़ रहे हैं, मगर घर के अंदर चारों तरफ घूम रहे हैं। तब तक कूकी पूरी तरह ठीक नहीं हो पाई थी। घर का कामकाज करने के लिए उसके शरीर में ताकत नहीं बची थी। लगातार रक्तस्राव होने अथवा किसी दवाई के रिएक्शन हो जाने की वजह से उसके हाथ-पैरों में सूजन आ गई थी। रह-रहकर हल्का-हल्का दर्द हो रहा था। जहाँ अनिकेत घर और दफ्तर के बीच उलझ कर रह गया था, उसी समय उसके हेडक्वार्टर से प्रमोशन के लिए कोन्फिडेंशियल रिपोर्ट माँगी गई थी।
वह काफी चिंतित दिखाई दे रहा था। उसके साथ वाले सभी लोगों का प्रमोशन हो चुका था। केवल उसका नंबर नहीं आया था। प्रोसपेक्टिव केन्डीडेट की लिस्ट में उसके साथ जिन लोगों का नाम था, वे सब केडर में उससे जूनियर थे। फिर भी अनिकेत चिंतित नजर आ रहा था। वह जोशी को भी जानता था तो दाश के बारे में भी उसे सब कुछ पता था। सभी एक से बढ़कर एक थे, कोई किसी से कम नहीं था। अनिकेत कहता था, "जानती हो, पिछली बार प्रधान का प्रमोशन कैसे हुआ था? उसका ससुर एम.पी. है न। मेहनत की कीमत यहाँ कौन जानता है? सभी स्टेटस को ही बड़ा मानते हैं। इसी बात को सबसे ज्यादा तवज्जों दी जाती है कि किस का कितना होल्ड है, बड़े महकमों में कितनी जान-पहचान है। तुम्हारे पिताजी ने एक बार तुम्हारे बड़े बहनोई के ट्रांसफर आर्डर कैंसिल करवाने के लिए एम.पी. से सिफारिश करवाई थी। मेरे लिए भी उनसे एक बार बात करके तो देखो।"
"पिताजी अब बूढ़े हो गए हैं। एक लंबा अर्सा हो गया उन्हें राजनीति छोड़े हुए उनको कहने से क्या फायदा होगा?" कूकी ने उत्तर दिया था।
यह थी कूकी के साथ मार-पीट होने के एक दिन पूर्व की घटना। अनिकेत गुस्से में तमतमाकर बोला था, "इसका मतलब तुम यह कहना चाहती हो कि मेरे और तुम्हारे बहनोई में जमीन-आसमान का फर्क है। साला, मैं उसकी बेटी के लिए यहाँ मल-मूत्र धो रहा हूँ और मेरे लिए बूढ़े को तनिक भी चिन्ता नहीं।"
अनिकेत गुस्से में अपना आपा खो बैठता था और बोलते समय वह तूँ- ताँ पर उतर आता था। उस समय उसे अच्छे-बुरे का बिल्कुल भी ख्याल नहीं रहता था। जब उसके दिमाग पर गुस्से का भूत सवार हो जाता था तो वह बहुत गंदी-गंदी गालियाँ देने लगता था। वह इतना भी भूल जाता था कि वह एक पढ़ा लिखा और एक बड़े कारपोरेशन में ग्रेड-वन अधिकारी है।
कूकी ने कहा था, "हर छोटी-मोटी बातों में मेरे पिताजी की टाँग खींचने की क्या जरुरत है? उन्होंने तुम्हारे लिए मना तो नहीं किया है। बड़े बुजुर्गों के प्रति ऐसे ओछे शब्दों का प्रयोग तुम्हें शोभा नहीं देता।"
"तुम्हारे बाप को क्या मैं आज से जानता हूँ। हर बार उसकी तरफदारी मत किया कर।" इतना कहते हुए अनिकेत थप्पड ताने कूकी के सामना आ गया।
उसका रौद्ररुप देखकर कूकी पूरी तरह ड़र गई थी। कहने लगी, "अच्छा ठीक है, टेंशन मत पालो। मैं पिताजी से बात करके देखती हूँ। उनसे जितना हो सकेगा वे करेंगे। ज्यादा चिंता मत करो। सब ठीक-ठाक हो जाएगा।"
"कुछ ठीक होने वाला नहीं है।" अनिकेत ने गुर्राते हुए कहा। अनिकेत का यह व्यवहार देखकर कूकी दुखी हो रही थी। वह आसानी से अनिकेत के दुख को समझ सकती थी। उसका दुख धीरे-धीरे कर इन्फीरियोरीटी काम्प्लेक्स में बदल गया था।
अनिकेत सुबह आठ बजे घर से बाहर निकलता था तो लौटता था शाम को आठ बजे। उसके साथ वाले सभी अधिकारियों का प्रमोशन हो चुका था। वे ए.सी. चैम्बर में बैठकर मजे मार रहे थे। और अनिकेत बेचारा अभी तक फील्ड में खट रहा था। कुछ समय बाद उसका तबादला आफिस में हो गया तब तक उसे रात दस बजे फाइलों से ऊपर उठकर झाँकने की फुर्सत नहीं मिल रही थी। उससे भी बढ़कर दुख की बात थी कि उसके फाँकीबाज दोस्त भी प्रमोशन के बारे में बाजी मार ले गए थे।
अनिकेत कुंठाग्रस्त होकर कहने लगता था, "यहाँ एक गरीब उड़िया आदमी की कौन सुनेगा?" उड़िया परिवार में पैदा होना मानो उसके लिए एक अभिशाप बन गया हो।
अनिकेत के प्रति कूकी की सहानुभूति थी। केवल इतना ही नहीं, वह उसकी सारी बातों का समर्थन भी करती थी। वह जानती थी कि गैर उड़िया आफिसरों के बीच उड़िया आफिसर की कुछ भी नहीं चलती है। फिर भी तो कई उड़िया आफिसर दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति करते जा रहे थे। अनिकेत की सबसे बड़ी समस्या थी उसका बेकाबू गुस्सा, जो कि उसके प्रमोशन में सबसे बड़ी बाधा थी।
कूकी को स्वस्थ हुए लगभग एक महीना हो गया था। कई दिनों से बच्चें बाजार से कुछ सामान खरीदने के लिए हठ कर रहे थे। अनिकेत सपरिवार सबको अपने साथ लेकर गया था। बच्चों ने अपने-अपने सामान खरीदे, डिजनी लैंड में कुछ देर तक खेले कूदे और अंत में पिज्जा कॉर्नर में जाकर पिज्जा भी खाया। बहुत दिनों बाद बाहर घूमकर कूकी को अच्छा लग रहा था। पिज्जा कॉर्नर से बाहर निकल कर बच्चे भेलपुरी खाने के लिए जिद्द करने लगे। औह! ऐसी क्या भूल कर दी कूकी ने? बच्चों के साथ हँसते-खेलते, मस्ती करते बच्चों के साथ सामान खरीदते, भेलपुरी खाते-खाते वह अपनी पानी की बोतल से पानी पीना भूल गई थी और उसने खोमसे वाले से दो घूँट पानी पी लिया। तुरंत ही आग बबूला हो उठा अनिकेत। उसने सबके सामने कूकी को एक तमाचा जड़ दिया। सभी उपस्थित लोग उसकी इस हरकत से अवाक रह गए। वह चिल्लाकर कहने लगा, "साली, तुम्हारे लिए मैं हजारों रूपए खर्चकर रहा हूँ। महीनों-महीनों से तुम्हारा मलमूत्र साफ कर रहा हूँ। किसने कहा तुझे यह पानी पीने के लिए। जब यह पानी पीना ही था तो पानी की बोतल अपने साथ क्यों लाई? साली, बदजात औरत, मिडल क्लास मेंटलिटी।"
कूकी को अनिकेत की 'मिडल क्लास' वाली गाली सबसे ज्यादा चुभी। अवाक दुकानदार तथा ग्रहकों को देखकर कूकी लज्जित हो गई। कान के ऊपर वाले हिस्से में अभी भी थप्पड़ की गूँज सुनाई दे रही थी। ऐसी परिस्थिति के लिए कूकी मानसिक तौर पर बिल्कुल भी तैयार नहीं थी। वह अपनी आँखों से छलकते हुए आँसुओं को रोक नहीं पा रही थी। वह मुँह घुमाकर रास्ते के दूसरी तरफ देखने लगी। वह मन ही मन अनिकेत के खिलाफ कहने लगी।
"अनिकेत, तुम्हारे दिमाग के अंदर जो कीड़ा कुलबुला रहा है, उसको निकालकर फेंक दो। आइ हेट, आइ हेट द वल्गर इन्सेक्ट विच मेक्स यू मैड। तुम्हें शायद मालूम नहीं, मेरे अंदर की बीमारी के जीवाणुओं से हजार गुणा ज्यादा खतरनाक है तुम्हारे दिमाग का यह कुलबुलाता हुआ कीड़ा। मुझे तुम्हारे ऐशो-आराम की कोई जरुरत नहीं है। और न ही जरुरत है मुझे तुम्हारे प्रेम की। मुझे ऐसे नारकीय जीवन की भी कतई जरुरत नहीं है।"
ऐसा जीवन मुझे कभी नहीं चाहिए। कूकी सोच चुकी थी। वह मन से बहुत दुखी थी। वह गहरे अवसाद में डूब चुकी थी, फिर भी आत्महत्या करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। इसके बावजूद भी वह ऐसे जीवन से घृणा करने लगी थी।
कूकी ने पहले कभी सोचा नहीं था कि उसे इस जीवन में एक अनोखी दुनिया भी देखने को मिल सकती है। जहाँ अनिकेत स्वच्छता-प्रिय तथा अति-क्रोधी स्वभाव का था, वहाँ शफीक परवर्टेड़ मगर उदार स्वभाव का था।
अगर कोई उससे यह सवाल करता, तुम अनिकेत और शफीक दोनो में से किसको चाहोगी? तब उसका उत्तर होता, "दोनो को।" भले ही, दोनो आदमियों के बारे में सुनने से किसी के भी मन को खराब जरुर लगता। मगर कूकी यह बात अच्छी तरह से जानती थी कि किसी एक को छोड़कर दूसरे आदमी के पास वह किसी हालत में खुश नहीं रह पाएगी। लेकिन क्या यह संभव हो सकता है।
कूकी के इस गुप्त संबंध के बारे में जब अनिकेत को पता चलेगा तो क्या वह इस बात को सहन कर सकेगा? शायद वह गुस्से से पागल हो जाएगा। गुस्से-गुस्से में या तो वह कूकी की हत्या कर देगा या फिर वह खुद जहर खाकर आत्म-हत्या कर लेगा। क्रोध के आवेश में आकर वह सारे घर को तहस-नहस कर देगा। घर में लाशों के ढेर लगा देगा। फिर टूटे हुए घर के अंदर लाशों के ढेर के ऊपर बैठकर वह अपने किए पर पश्चाताप करने लगेगा।
एक बार वह जब अनिकेत के साथ ट्रेन में यात्रा कर रही थी, तब कोई आदमी कूकी की तरफ घूर-घूरकर देख रहा था। यह देखकर अनिकेत गुस्से से लाल-पीला हो गया था। रातभर वह चैन की नींद नहीं सो पाया था। वह कूकी को अपनी जायदाद समझता था। वह उसको जब भी चाहे, गाली दे सकता है, जब भी चाहे उसके साथ मार-पीट कर सकता है, जब उसकी इच्छा हो वह उसे प्यार कर सकता है, तरह-तरह के आभूषणों तथा नई-नई साड़ियों से लाद सकता है और अपनी अद्र्धांगिनी बनाकर पार्टियों और पिकनिकों में साथ ले जाकर घुमा सकता है।
पता नहीं, अब कहाँ रहती होगी तिस्ता? यूनिवर्सटी में पढाई करते समय वह कूकी की रुम-मेट थी बहुत ही स्मार्ट और साथ ही साथ स्वतंत्र विचारधारा की भी। एक दिन कूकी की अनुपस्थिति में उसने पता नहीं अनिकेत को क्या कह दिया था कि जब वह अपने गाँव से लौटी तो अनिकेत ने उससे कहा था, "कूकी, आज मेरा मन तुम्हारे चरण-स्पर्श करने का हो रहा है।" यह सुनकर कूकी के आश्चर्य की सीमा नहीं रही। वह सोचने लगी, कहीं अनिकेत पागल तो नहीं हो गया है? इस तरह चरण स्पर्श करके अनिकेत क्या कहना चाहता है?
उस समय अनिकेत आई.आई.टी. खड़गपुर का एक होनहार छात्र था। वह अक्सर कूकी को मिलने वहाँ आता था। इस बार अनिकेत के आने की खबर कूकी को पता नहीं थी, इसलिए हर शनिवार की तरह इस शनिवार को भी वह अपने गाँव चली गई थी। सोमबार को जब वह गाँव से लौटी थी, तो तिस्ता ने अनिकेत के मिलने की खबर सुनाई थी। और एक घंटा बीता भी नहीं होगा कि अनिकेत ने उसके सामने यह नाटकीय प्रस्ताव रखा था, "मैं तुम्हारे चरण-स्पर्श करना चाहता हूँ।"
"तुम तिस्ता पर इतना विश्वास करते हो? कुछ जानते भी हो, यह कैसी लड़की है?"
कल से मैं तुम्हारे यहाँ की लड़कियों का चाल-चलन देख रहा हूँ। तिस्ता की बात सुनकर तो मुझे आश्चर्य हो गया। सचमुच, कूकी तुम वन्दनीय हो। अच्छा करती हो तुम हर शनिवार को अपने घर चली जाती हो।"
कूकी को समझ में आ गया था कि तिस्ता ने अपना साहस दिखाते हुए यहाँ की सारी गुप्त बातों को अनिकेत के सामने प्रकट कर दिया होगा। तिस्ता एक दिलफेंक लड़की थी। उसे इस बात का बिल्कुल भी मान नहीं रहता था कि किसके सामने उसे कब, क्या बोलना चाहिए। एक स्थायी प्रेमी होने के बावजूद भी वह अक्सर अपने दूसरे ब्वायफ्रेन्डों के साथ शहर में इधर-उधर घूमती थी। यहाँ तक कभी-कभी वह अपने ब्वायफ्रेन्डों के साथ शहर छोड़कर बाहर भी चली जाती थी।
अनिकेत ने कहा था, "एक साल और इंतजार कर लो, फिर मैं तुम्हें विवाह-बंधन में बाँध लूंगा। उसके बाद तुम केवल मेरी बनकर रहोगी। केवल मेरी।"
बंधन, हाँ बंधन नहीं तो और क्या? सोने के पिंजरे में एक बंदी की जिंदगी जी रही थी कूकी। उसे दूर गगन में उड़ जाने की प्रबल इच्छा हो रही थी। एक बार अनिकेत ने कूकी के साथ अप्रत्याशित व्यवहार किया था, जिसकी उसे अनिकेत से बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। उस समय कूकी एम ..ए. फाइनल ईयर की छात्रा थी। उस समय घर में लोग शादी का प्रस्ताव लेकर आ रहे थे। इस विषय में वह किसी से कुछ भी नहीं बोल पा रही थी। हर समय मानसिक तनाव से ग्रस्त रहती थी। हर दिन अनिकेत के पास पत्र-व्यवहार भी नहीं कर पा रही थी। एक दिन अचानक उनके हॉस्टल में पहुँच गया था अनिकेत। दाढ़ी बढ़ी हुई थी, बाल विखरे हुए थे, उस अवस्था में वह किसी पागल से कम नहीं लग रहा था। उसके हाथों में एक पोलिथीन का पैकेट था। उस पैकेट को उसने गुस्से के साथ वह पैकेट थमा दिया था कूकी के हाथों में।
"इस पैकेट के अंदर सब-कुछ है तुम्हारे सारे फोटोग्राफ्स, तुम्हारी चिट्ठियाँ और कुछ गिफ्ट जो तुमने मुझे समय-समय पर दिए थे। सब रखो अपने पास, बाद में मुझे दोष मत देना। अब मुझे आजाद कर दो। तुम्हारे साथ शादी कर, मैं तुम्हारी अवहेलना का शिकार बनना नहीं चाहती। बल्कि मैं चाहता हूँ तुम खूब खुश रहो।"
अनिकेत की आँखें जैसे आग उगल रही हो। हॉस्टल के सामने कुछ प्रेमी-युगल प्रेमालाप करने में व्यस्त थे, अचानक वे सभी अनकी तरफ घूरकर देखने लगे। कूकी की समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था। वह सोचने लगी थी, क्या सचमुच में उनके बीच का संबंध विच्छेद होने जा रहा है? लेकिन क्यों? उससे ऐसी क्या भूल हो गई? कूकी को मन ही मन कुछ खो देने का अहसास हो रहा था? बिना किन्हीं कारणों के उसके पाँव थरथराने लगे थे। उसका फूट-फूटकर रोना भी अनिकेत को रोक नहीं पाया था। बहुत गुस्से में लौट गया था अनिकेत हॉस्टल से उस दिन।
क्या अनिकेत को कूकी के चरित्र पर संदेह था? क्या वह यह सोच रहा ता कि यूनिवर्सिटी के किसी दूसरे लड़के के साथ उसका चक्कर चल रहा है? अगर ऐसा नहीं तो फिर अनिकेत ने इतना नाटक क्यों किया? मगर अनिकेत ने कूकी को पूरी तरह से नहीं छोड़ा था। आखिरकर अनिकेत ही कूकी का प्रारब्ध था। कूकी के एक छोटे से पत्र का उत्तर अनिकेत ने दिया और तब से फिर दोनों एक दूसरे के साथ जुड़ गए थे।
जहाँ अनिकेत कूकी की युवावस्था का प्रेमी था वहीं शफीक उसका अधेड़ उम्र का प्रेमी था। कई बार कूकी ने इस बात का अहसास किया था, जब भी वह अनिकेत की बात छेड़ती थी तब शफीक या तो उस बात का उत्तर नहीं देता था या फिर उस बात को बदल देता था। ना तो अनिकेत के विषय में वह कोई दिलचस्पी दिखाता था और ना ही कुछ पूछने के लिए उत्साह। वह इस तरह व्यवहार करता था जैसे कूकी के जीवन में अनिकेत का कोई अस्तित्व ही नहीं है। उसके ध्यान में वहाँ केवल दो ही प्राणी हैं - शफीक और उसकी रुखसाना यानि कूकी।
कभी-कभी उसे लगता था, शफीक अनिकेत से ईर्ष्या करता है। यह बात दूसरी थी, वह उसके बारे में कभी भी सीधे नहीं लिखता था। कभी-कभी कूकी अपने बीते दिनों के प्रेम-प्रसंग का जिक्र कर अनिकेत के प्रेम-पत्रों का उदाहरण देकर लिखती थी तो शफीक भावुक होकर लिखने लगता था, "अनिकेत की तुलना में मेरा प्रेम ज्यादा महान, व्यापक और शाश्वत है।"
तुम्हारा प्रेम,
मेरी आत्मा की धधकती एक ज्वाला है,
तुम्हारा प्रेम,
मेरी आत्मा को उर्ध्वगामी बनाने
और पूर्णता प्रदान करने वाला है।
क्योंकि तुम मेरी जिंदगी हो,
मेरी दुनिया हो,
तुम्हारे बिना मैं कहीं भी नहीं,
तुम हर पल मेरे साथ
मेरे सपनों के भीतर हो।
तुमने मुझे एक नया जीवन प्रदान किया है
तुम्हारा लुभावना सौंदर्य
ले जाता है खींचकर मुझे
एक अनोखे ब्राह्मांड के भीतर।
मेरी हर धड़कन में तुम्हारा प्रेम बसा है।
मेरी आत्मा के संगीत में तुम्हारे प्रेम की धुन बजती है।
तुम हर दिन हरपल प्रेम को एक नया संगीत देती हो।
मैं तुम्हें दिल से प्यार करता हूँ
और जीवन भर करता रहूँगा।
तुम्हारा पाक प्रेम
हरपल मेरे दिल में
मेरी आत्मा में
तब तक बंधा रहेगा
मौत भले ही
हमें दूर कर दें
मगर मरने के बाद भी
फिर एक बार मिलेंगे हम
जन्नत में
मरने के बाद।
शफीक लिखता था, "एक दिन मैं तुम्हें ले जाऊँगा। मेरे बुलाने पर तुम आओगी न? उस समय अगर तुम ना नुकर करोगी तब भी मैं नहीं मानूँगा। मैं यहाँ से पेरिस जाने के लिए कोशिश कर रहा हूँ। वहाँ कोलम्बिया यूनिवर्सटी में प्रोफेसर का एक पद खाली है। उसके लिए मैने आवेदन पत्र भरा है। मुझे यह अच्छी तरह मालूम है उस पोस्ट को पाना मेरे लिए इतना आसान नहीं है। बहुत टफ कम्पीटीशन होगा। होगा न? फिर भी मैं तुम्हारी खातिर एक बार जरुर कोशिश करूँगा। उसके लिए मुझे इस्लामिक आर्ट पर एक पैराथीसिस सबमिट करना पडेगा। पता नहीं, वे लोग मेरी पैराथीसिस को एकसेप्ट करेंगे या नहीं? तुमने कभी दुनिया की सबसे प्रसिद्ध आर्ट गैलेरी लॉवर के बारे में सुना है? मैं तुमको मेरे साथ वहाँ ले जाऊँगा। हम दोनो आराम से उस गैलेरी में घूमेंगे। मेरे साथ वहाँ घूमना पसंद करोगी न? मेरे दिल की एक तमन्ना है वहाँ मैं सबके सामने तुम्हारा चुम्बन लूँ। ओह, तुम्हारे खूबसूरत क्रीमसनरेड लिपिस्टिक कोटेड लिप्स.....। ओह, आई एम डाइंग फॉर योर लिप्स।"
वह आदमी फिर से सपने दिखाने लगा और खुद सपनों की दुनिया में गोते लगने लगा। कूकी ने कभी सोचा भी नहीं था कि पेरिस की सैर कर पाएगी या नहीं। वहाँ वह एफिल टॉवर के ऊपर चढ़कर पेरिस शहर को देख सकेगी या नहीं? उसे क्या पता, वहाँ के किसी बगीचे में एक दूसरे के हाथ में हाथ डालकर शफीक के साथ बैठ पाएगी या नहीं? लेकिन उसके बारे में सपने देखने में क्या खर्च होता है। उम्र के जिस पड़ाव पर लोग दुनियादारी को लेकर चिंतित रहते हैं, उम्र के उसी पड़ाव पर कूकी सपनों के तानें बुन रही थी। कुछ क्षण के लिए उसे बहुत अच्छा लगता है जब वह अपने चारों तरफ की दुनिया को भूल जाती है और एक काल्पनिक दुनिया में नई-नई संभावनाओं को तलाशती है। जीवन का अंत कहने से जीवन का अंत नहीं हो जाता है, किसी भी पल किसी भी समय एक नया जीवन प्रारम्भ हो सकता है।
शफीक ने लिखा था, "मैने उस महान पेंटिंग का काम शुरु कर दिया है, जिसके लिए मैं आज तक तरस रहा था। रुखसाना, तुम मेरी एक प्रेरणा हो। मुझे छोड़कर कभी मत जाना। तुम जानती हो, तुम्हारा प्रेम और तबस्सुम का दुख मेरी सृजनशीलता में वृद्धि करते हैं। तबस्सुम का दुख मुझसे बर्दाश्त नहीं होता है और तुम्हारे प्यार के बिना मैं जिन्दा नहीं रह सकता हूँ। तुम्हारे बिना इस दुनिया में मेरा कोई अस्तित्व नहीं है। तुम मुझे छोड़कर मत जाना। तुम्हारे लिए मैं कुछ भी करने के लिए तैयार हूँ। तुम्हें पाने के लिए मैं दुनिया के किसी भी कोने में पहुँच सकता हूँ। तुम्हें पाने के लिए मैं आमरण इंतजार कर सकता हूँ। रुखसाना, बस, तुम मुझे छोड़कर मत जाना।
रुखसाना, अभी तक मैने तुम से कोई भी बात नहीं छुपाई है। तुम मुझसे अलग नहीं हो, बल्कि मेरे परिवार का हिस्सा हो। क्या-क्या हुआ तबस्सुम के साथ, क्या मैं तुमसे छुपा पाऊँगा? जब से तुम मेरे जीवन में आई हो, मेरी तकदीर ही बदल गई। तबस्सुम हँसमुख रहने लगी, उसको खुश देखकर मैं भी खुश रहने लगा। तुम मेरा सौभाग्य हो। मुझे अकेले भँवर में छोड़कर कहीं चले जाने की बात कभी भी मत सोचना।"
कूकी ने उत्तर दिया था, "तुम्हारे दिल में हमेशा मुझे खोने का डर क्यों सताता है? तुमको छोड़कर मैं कहाँ जाऊँगी? तुम तो मेरे प्रारब्ध हो। मैं नहीं जानती, जीवन की डोर मुझे किस तरफ ले जा रही है? मैं तो यह भी नहीं जानती, कौनसा प्यार क्षणिक है और कौनसा चिर-स्थायी? मुझे कुछ भी पता नहीं, मैं किसी मोह या भ्रम की मरीचिका के पीछे भाग रही हूँ अथवा किसी पूर्णता की तरफ अग्रसर हो रही हूँ। मैं कुछ भी नहीं जानती, शफीक, कुछ भी नहीं जानती। मुझे यह भी पता नहीं, आने वाली सुबह तक मैं इस सुंदर पृथ्वी का एक हिस्सा भी रहूँगी या नहीं। मुझे कहाँ मालूम, मैं सरहद पारकरके तुम्हारी धरती पर या तुम सरहद पारकर मेरी धरती पर पाँव रख पाओगे या नहीं। मुझे तो यह भी ज्ञात नहीं कि समय के साथ बर्लिन क्यों दो भागों में बँट जाता है और फिर समय के साथ मिल भी जाता है। मैं तो यह भी नहीं जानती कि 'बिग बेंगथ्योरी ' पर विश्वास करने वाले वैज्ञानिक अचानक भगवान के ऊपर क्यों विश्वास करने लग जाते हैं। मुझे तो इस बात का भी पता नहीं, भगवान का अवतार कहा जाने वाला सन्यासी अपने जीवन के अंतिम चरण में एक वेश्या के घर का आतिथ्य क्यों स्वीकार करता है। मुझे बहुत सारी बातें मालूम नहीं है, शफीक।"
"जब तुम्हें पता नहीं है तो फिर किसको पता होगा?" शफीक ने लिखा था।
"तुम तो देवी हो। तुम तो एक फरिश्ता हो। आइ गेज अपोन योर ब्यूटी। आइ थिंक माइसेल्फ नेवर आइ हेव सीन एन एंजिल फ्लाई सो लो।"
"आइ गेज अपोन योर ब्यूटी। आइ थिंक माइसेल्फ नेवर आइ हेव सीन एन एंजिल फ्लाई सो लो।"
शफीक ने लिखा था, "तुम्हारे मेरे जीवन में आने के बाद और कोई तकलीफ नहीं बची है और नहीं कोई दुख।"
शफीक के पागल की तरह लिखे हुए इस ई-मेल को पढ़कर कूकी मन-ही-मन हँसने लगी थी। "काश! सचमुच में मैं एंजिल होती, तो मुझे जीवन में इतना दुख तो झेलना नहीं पड़ता।" उसने शफीक के लिए लिखा था, "जब तुम मुझे स्पर्श करोगे तो तुम्हें पता चलेगा कि मैं भी तुम्हारी तरह हाड़-मांस की बनी हुई एक साधारण इंसान हूँ। सुख-दुख, सफलता-असफलता, पाप-पुण्य आदि मेरे साथ भी ऐसे ही जुड़े हुए हैं। मुझे भी भूख लगती है, प्यास लगती है। मैं भी तरह-तरह की कामनाएँ करती हूँ। मेरी भी कई अभिलाषाएँ शेष हैं। मैं भी दिखावा करती हूँ। कई बार अनिकेत को धोखे में रखती हूँ। मैं भी झूठा दिखावा करते हुए एक सज्जन आदमी का जीवन जीती हूँ जानते हो, देवी की क्या परिभाषा है? जो कुछ दे सकती है, वह देवी है। मैं तुम्हे क्या दे सकती हूँ, कुछ भी तो नहीं।"
कूकी के ई-मेल का उत्तर देते हुए शफीक ने लिखा था,
"दुख इस बात का है,
फरिश्ते स्वर्ग में होते हैं
और वे चमकते हैं
अपने रूहानी प्यार की रोशनी से,
उसी तरह
तुम्हारा प्यार भी एक रोशनी है
जो हर दिन उजाला करता है
उन लोगों के जीवन में
जिन्हें तुम अपने रास्ते जाते हुए देखती हो।"
रुखसाना, तुम तो मेरे चेहरे पर हमेशा के लिए मुस्कराहट ले आई हो। उससे ज्यादा और तुम्हें क्या देना चाहिए? तुमसे मैं कुछ भी बात छुपाना नहीं चाहता क्योंकि तुम एक पल के लिए भी मुझसे अलग नहीं हो। जानती हो, जब से तुम मेरी जिंदगी में आई हो, तब से मैने नाइट क्लब जाना बन्द कर दिया है यहाँ तक ग्रुप सेक्स से भी दूर रहता हूँ। तुम्हारे प्रेम ने ही मुझे जीवन के सुनहरे मार्ग की ओर जाने के लिए प्रेरित किया है। मेरा अब कुछ भी दुख नहीं बचा है। दुख जो बचा है वह केवल तबस्सुम के लिए। तुम तो यह भी अच्छी तरह जानती हो, मैने ही उसको इतनी छूट दे रखी है। जब उसकी इच्छा हुई है, वह अपने ब्वायफ्रैंड के साथ डेटिंग पर गई है। मैं उसके रास्ते में कभी भी रुकावट नहीं बना। मगर उससे ग्लैमर की इस चमचमाती दुनिया में एक आदमी को पहचानने में एक बहुत बड़ी गलती हो गई। जिसकी वजह से वह आज तकलीफ उठा रही है। सी इज क्लच्ड बाय ए मिलिटेरी मेन। कुछ महीने पहले तबस्सुम के उस आदमी के साथ अवैध संबंध स्थापित हो गए थे। कई बार उसके साथ वह डेटिंग पर गई थी। लेकिन वह आदमी बड़ा ही चालाक था। तबस्सुम के भोलेपन का फायदा उठाते हुए एक दिन उस आदमी ने तबस्सुम को अपने बॉस के पास उपहार स्वरुप भेज दिया। मगर तबस्सुम उसके लिए मानसिक रुप से तैयार नहीं थी। उसकी इस घटना ने उसे भीतर से बुरी तरह तोड़ दिया। घटना के उस दिन के बाद तबस्सुम घर से और कभी बाहर नहीं निकली। काफी दिनों तक वह डिप्रेशन का शिकार रही। वह केवल एक जिंदा लाश बनकर रह गई थी। उसको हाथ लगाने से भी मुझको डर लगने लगा था। उसकी इतनी बुरी हालत और मुझसे बरदाश्त नहीं हो रही थी। मुझे अपने आप से नफरत होने लगी थी। इधर वह बदमाश बार-बार उसे फोन करके अपने पास बुलाता था। मगर तबस्सुम उसके पास जाने के लिए बिल्कुल भी राजी नहीं हो रही थी। मगर वह दुष्ट मिलिटरी मैन किसी भी हालत में तबस्सुम को पाना चाहता था।
उसने बहुत बार कोशिश की, मगर हर बार वह असफल रहा। तब उसने क्या किया, जानती हो? उसने मुझे ब्लैकमेल करना शुरु किया। वह सोच रहा था कि मुझे ब्लैकमेल करने से मजबूर होकर तबस्सुम उसके पास जाएगी।
रुखसाना, जानती हो, वह आदमी मुझे किस तरह से ब्लैकेल कर रहा था? वही दो साल पुराना मेरा केस जो ठंडे बक्से में पड़ा हुआ था। वही लड़की जो पेंटिंग के लिए मेरी मॉडल थी, जिसने बाद में शादी करली और अपना घर-संसार बसा लिया। उस आदमी के बहकावे में आकर उसने फिर से मेरे खिलाफ बलात्कार का आरोप लगाकर एक शिकायत दर्ज करवाई है। वह सोच रहा था, मुझे ब्लैकमेल करने से मैं परेशान होकर तबस्सुम को उसके पास भेज दूँगा। तुम्हें तो वह बात अच्छी तरह याद होगी, इस केस की तहकीकात के लिए मुझे इस्लामाबाद जाना पड़ा था? बट माइ एंजिल, वेन यू आर विद मी, हाऊ कुड दे टच? मुझे इस बात की बिल्कुल भी आशा नहीं थी कि सारा मामला इतने सहज ढंग से निपट जाएगा रुखसाना, आइ लव यू आइ एडोर यू। यू नो वेन एनी स्काई टर्न ग्रे एंड थंडर बोल्ट आफ लाइटनिंग स्टार्ट फ्लैशिंग एंड इट सीम्स टूमारो विल नेवर कम, आइ टर्न टू यू एंड यू आर माई एंजिल सेंट टू मी फ्रॉम एबॉव।"
शुरु-शुरु में कूकी की धारणा तबस्सुम के प्रति बिल्कुल अच्छी नहीं थी। वह उसको मनमौजी और उच्छश्रृंखल किस्म की औरत समझती थी। वह उसे मिडिल क्लास मेंटलिटी की औरत समझती थी, जो कुछ पाने के लिए अपने आप को किसी के हाथों में सुपुर्द कर देती थी। कूकी को उसकी कामोन्मादता के बारे में सोचकर अपने आप घृणा होने लगी थी। शफीक ने पहले भी उसे बताया था कि तबस्सुम के कई दिवाने हैं। उनमे से सबसे कम उम्र वाला था पच्चीस साल का एक जवान। जो कि तबस्सुम के बदन की मालिश करता था तथा घर का खाना बनाने से लेकर दूसरे कामों में हाथ बँटाता था। शायद वह उसके सेक्स का गुलाम था।
शफीक के लिए सबसे बड़ा असहनीय व्यवहार था उसके रिश्तेदार भाई का, जो उसकी बेटी नगमा को अपने घर की बहू बनाने के लिए आया था। उसने मौका देखते ही तबस्सुम का चुम्मा ले लिया। भले ही, तबस्सुम ने उसकी इस घटिया हरकत का विरोध नहीं किया था फिर भी उसने उसके लड़के के साथ अपनी बेटी की शादी करने से इंकार कर दिया था। नगमा उस लड़के को पसंद करती थी और वह लड़का नगमा को। मगर तबस्सुम का यह कहना था वह आदमी अपने बेटे से संबंध के बहाने उसके साथ अवैध संबंध स्थापित करना चाहता है। जो आदमी शादी से पहले उसके साथ इतनी घटिया हरकत कर सकता है, वह शादी के बाद कितने नीचे स्तर तक गिर सकता है। उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी भविष्य में और दिक्कते बढ़ सकती है। बेहतर यही रहेगा, नगमा का रिश्ता उस घर में नहीं करना चाहिए।
इस घटना के बारे में कूकी पहले से बहुत कुछ जानती थी क्योंकि शफीक ने उससे इस विषय पर सलाह-मशविरा किया था, "कूकी मुझे क्या करना चाहिए इस अवस्था में? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है। नगमा का निकाह उस घर में करना चाहिए या नहीं? अगर मैं तबस्सुम की बात मानता हूँ तो बेटी ताना मारेगी कि उसके बाप ने सौतेली माँ की बात मानकर उसके प्यार को ठुकरा दिया। अगर बेटी की बात मानता हूँ तो भविष्य में नगमा और तबस्सुम के संबंधों में दरारा पड़ सकती है। और हकीकत बात बेटी को कैसे बताई जा सकती है?"
उस समय कूकी ने इस बात को गंभीरतापूर्वक नहीं लिया था। उससे ज्यादा वह सोच रह थी तबस्सुम की किस्मत के बारे में। जो कोई उसके सपर्क में आता है, हाथ मारकर चला जाता है। वह भी आखिरकर एक औरत है। कब तक इन चीजों का विरोध नहीं करेगी? उसके लिए तो मानो इज्जत आबरु जैसे कोई शब्द इस दुनिया में नहीं बने हैं। यद्यपि कूकी ने अपनी राय शफीक को बता दी थी। उसने कहा था, मेरे हिसाब से जहाँ संबंध बनने से पहले ही टकराव की नौबत आ गई हो, वहाँ किसी भी हालात में बेटी सुखी नहीं रह सकती।
उस मिलिटरी मेन के द्वारा तबस्सुम के ब्लैकमेल होने की बात पता चलने पर कूकी के मन में उसके प्रति दया के भाव जागने लगे। जहाँ कभी वह तबस्सुम को उच्छश्रृंखल और मनमौजी प्रवृति की औरत समझती थी, वहाँ यह बात सुनकर तबस्सुम के लिए अब संदेह दूर हो गया। कूकी को समझ में आ गया था, तबस्सुम जैसा वह सोचती थी, ऐसी औरत नहीं है। कूकी को ऐसा लगने लगा था तबस्सुम के कदाचारी जीवन के लिए परवर्टेड शफीक ही जिम्मेदार है। बेचारी यह सहधर्मिणी बनकर उसके कदमों के साथ अपने कदम मिलाकर चलते-चलते आज इस नरक में पहुँच गई है।
धीरे-धीरे कर कूकी के मन में तबस्सुम के प्रति घृणा के भाव धूमिल होते गए। कूकी तबस्सुम के बारे में कल्पना करने लगी। उसे लग रहा था मानो एक सुंदर स्त्री की आँखें पत्थर की बनी है। एक मूर्ति की भाँति वे निर्जीव आँखें अपने दिल के दुख-दर्द का बयान कर रही हो। कूकी ने उसके लिए लिखा था, "तबस्सुम को कहना, मुझे उसके प्रति पूरी हमदर्दी है। बेचारी वह अपनी किस्मत की मारी है। यह कहाँ का न्याय है, एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को किसी दूसरे पुरुष को भेंट कर दे। क्या तबस्सुम कोई सामान है? उसकी यह हालत देखकर मैं बुरी तरह बेचैन हो जा रही हूँ शफीक। उसकी दुर्दशा और मैं नहीं देख सकती।
शफीक उसके सुख-दुख में सहभागी बनो। दुनिया दुखों की नगरी है। कुछ पाने में भी दुख तो कुछ खोने में भी दुख। आजाद होने में भी दुख तो गुलाम होने पर भी दुख। आदमी बाहर से एकदम भरा-पूरा लगता है, मगर वह भीतर से बहुत ही खोखला और असहाय होता है। इस बात की सही-सही विवेचना एक जानकार ही कर सकता है।
यह बात अलग है, मैने भी अनिकेत से प्रेम-विवाह किया था, मगर शादी से पहले हमने कभी भी शारीरिक संबंध स्थापित नहीं किए थे। शादी के बाद ही मुझे पता चला अनिकेत के भीतर मेरे प्रति प्रेम की कोई भावना नहीं थी। उसके लिए तो सेक्स मात्र कुछ मिनटों का आनंद जैसा था। आर्गेज्म क्या होता है? मुझे उसकी बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी। तुम्हें यह जानकर आश्चर्य होगा कि मुझे शादी किए चौदह साल बीत गए, मगर आज तक उसने मेरा एक चुम्बन तक नहीं लिया। इतना होने के बावजूद भी मेरे और अनिकेत के बीच प्रेम अभी भी जिंदा है। अगर हमारे बीच प्रेम खत्म हो गया होता, तो उसके दुख में मैं पूरी तरह बिखर गई होती। तुम्हें तो यह अच्छी तरह मालूम है, यह प्रेम एक वीणा की झंकार की तरह है, वक्त-बेवक्त, होश-बेहोश सभी अवस्थाओं में झंकृत होता है दिल के अंदर।
शफीक, तबस्सुम के पास लौट जाओ। उसके सुख-दुख में सहभागी बनो, उसका साथ दो, उसे अकेला मत छोड़ो।"
"उसका साथ दो, अकेला मत छोड़ो। तुम यही चाहती हो ना बेबी, मगर किसका साथ दूँ? तबस्सुम का या तुम्हारा? बेबी, आइ कुड नॉट बिलीव देट यू हेव नॉट बीन किस्ड बाय योर हसबेंड सिन्स लास्ट फोर्टीन इयर्स ? वेरी सेड। तुम्हारे इस ई-मेल को पढ़कर मुझे बहुत दुख हुआ।"
शफीक ने जवाब दिया था, "मुझे पता नहीं था कि तुम्हारा पति एक नपुंसक आदमी है। उसने चौदह साल से तुम्हें चूमा तक नहीं।क्या यह सम्भव है? मैं तुम्हारे दुख को समझ सकता हूँ। अब तुम और दुखी मत होना, अब मैं तुम्हारे जीवन में आ गया हूँ। अब मैं तुम्हें वे सारे महान सुख दूँगा। रुखसाना,मुझे तुम्हारे लिए बहुत अफसोस हो रहा है। तुमने आज तक ये सब क्यों नहीं बताया? कम टू माई आर्म बेबी, आई वान्ट टू हग यू।"
शफीक ने अपने लम्बे-चौड़े ई-मेल में केवल शारीरिक प्रेम के बारे में लिखा था। उसका ई-मेल संभोग की विभिन्न किस्मों और कलाओं से भरा हुआ था। उसका दम घुट रहा था। कूकी संभोग की बातों को पढ़कर परेशान हो रही थी। अगर उसका मूड़ ठीक होता तो शायद वह उनका आनंद ले पाती। मगर शफीक ने अनिकेत को नपुंसक कहकर पहले ही उसका मूड़ ख़राब कर दिया था ।
धीरे-धीरे कूकी गुस्से से लाल-पीली हो रही थी। क्या वह आदमी अनिकेत से ईर्ष्या करता है? कूकी पहले से ही महसूस करती आ रही थी कि अनिकेत के विषय में उस आदमी की बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं है। आज तक कभी भी उसने यह नहीं पूछा था कि अनिकेत क्या काम करता है? दिखने में कैसा है, गोरा है या काला? लम्बा है या ठिगना? यहाँ तक कि अगर कूकी अनिकेत के गुण-अवगुण तथा स्वभाव के बारे में शफीक को कभी लिखती भी थी, तो भी वह अपनी ओर से कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं करता था, जैसे कि कूकी के जीवन में अनिकेत नाम का कोई व्यक्तित्व ही नहीं है। वह तो उसके बारे में ऐसा सोच रहा था मानो कूकी अभी भी अविवाहित लड़की है। कई दिन पुरानी जान पहचान होने के बावजूद शायद पहली बार उसने अनिकेत के बारे में लिखा था। वह भी अनिकेत का नाम लेकर नहीं, बल्कि 'माइ काउंटरपार्ट' के संबोधन से।
कूकी ने उस मेल को बार-बार पढ़ा और हर बार नपुंसक शब्द को पढ़ते समय रुक जाती थी। बहुत ही बेकार आदमी है। नहीं, अब उसे और शफीक के साथ कोई संबंध नहीं रखना चाहिए। उसने मेरे पति को नपुंसक बोलने की जुर्रत कैसे की? क्या सोचता है शफीक? क्या अनिकेत से शारीरिक सुख नहीं मिलने के कारण मैंने उसके साथ संबंध जोड़ा है? उस आदमी के जीवन में शारीरिक सुख के अलावा और कोई भी सुख मायने नहीं रखता है? भगवान ना जाने, किस मिट्टी से बना हुआ है वह?
कूकी के गुस्से ने शफीक से इस बारे में जवाब तलब करने के लिए उसको बाध्य कर दिया।
"हाऊ कुड यू डेअर टू कॉल माइ हसबेंड एज एन इम्पोटेंट ? कितनी नीच भावना वाले हो, शफीक, तुम? तुमने अनिकेत को नपुंसक कह दिया? क्या तुम्हें अनिकेत से ईर्ष्या होती है? अगर हाँ तो क्यों? तुम्हारे इस शब्द ने मेरा दिल तोड़ दिया है। मैं मानती हूँ कि एक गृहस्थ जीवन ऊबाऊ और रुचिहीन होता है। मैं यह भी मानती हूँ कि गृहस्थ जीवन गुलामी तथा नीरसता से भरा हुआ मात्र एक समझौता होता है। मगर गृहस्थ जीवन की डोर को एक बार ढीला करके देखो, तुम्हारा सारा अस्तित्व एक ही पल में मटियामेट हो जाएगा। एक ही पल में तुम अपने आपको पूरी तरह असुरक्षित अनुभव करोगे।
शफीक, क्या तुम्हारी नजरों में शरीर ही सब कुछ है? आत्मा जैसी कोई चीज नहीं है इस दुनिया में? क्या सौन्दर्य-बोध, रुचि-बोध जैसे शब्द निरर्थक है इस दुनिया में? तुम खुद एक कलाकार हो। मैं तुम्हें क्या समझाऊँ आंतरिक सौन्दर्य की बातें? भावना और भावुकता की बातें? प्रेम की बातें? क्या तुम्हारे अंदर कोई कलाकार नहीं है?
शफीक, अगर तुम मुझे प्यार करना चाहते हो तो तुम्हें मेरी सुंदरता के साथ-साथ मेरी कुरुपता को भी प्यार करना होगा। मेरा भूत, मेरा वर्तमान, मेरे सगे-संबंधी, मेरा देश, मेरी विचार-धारा सभी को तुम्हें प्यार करना होगा। क्या ये सब बातें तुम्हें मंजूर हैं?" उस ई-मेल में कूकी ने प्रेम की एक भी बात नहीं लिखी। क्रोध में आकर उसने उस ई-मेल को भेज दिया। उसको भेजने के बाद कूकी को थोड़ी राहत मिली। मगर अगले ही पल एक दुश्चिंता उसे सताने लगी। कहीं उसका ई-मेल पढ़कर शफीक ने अपने आपको अपमानित महसूस कर लिया तो वह और ई-मेल नहीं करेगा? इतने दिनों के बने-बनाए संबधों पर एक ही मिनट में पानी फिर जाएगा।
एक बार फिर उसके दिल में सूनापन छा गया। वह नहीं समझ पा रही थी आखिरकर वह चाहती क्या है? क्या आशाएँ लगाए बैठी है शफीक से? अगर शफीक कहता है, मैं अपनी परवर्टेड़ दुनिया में ठीक हूँ। मुझे मेरी देहवादी दुनिया ही अच्छी लगती है। तुम तुम्हारी दुनिया में मस्त रहो। मुझे बार-बार अपमानित करने का अधिकार तुम्हें किसने दिया? मेरे निरंकुश जीवन में अंकुश लगाने के लिए तुम्हें किसने कहा? तुम्हारा कोई हक नहीं बनता है मेरी दुनिया में दखल देने का। मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो और तुम अपनी दुनिया में अनिकेत के साथ खुश रहो। तुम्हारी दुनिया और मेरी दुनिया का कोई ताल-मेल नहीं।
अगर शफीक कहता "तुम जिसे प्रेम कहती हो उसका दुनिया में कोई अस्तित्व नहीं है। तुम अपने शरीर से इतनी नफरत क्यों करती हो? जबकि यह शरीर ही किसी सत्ता के होने का परिचायक है। अगर यह शरीर नहीं होता तो क्या दो दिलों में आकर्षण होता? अगर पंच भूतों से बना शरीर नहीं होता तो प्रेम किसके आधार पर टिकता?"
कूकी के ई-मेल करने के एक घण्टे के अन्दर शफीक का जवाब आ गया था। इतनी जल्दी वह उत्तर देगा, कूकी ने सोचा भी नहीं था। उसने इस बार सोच लिया था कि निश्चित तौर पर उसके उस ई-मेल के बाद शफीक उसके साथ और कोई संबंध नहीं रखेगा? वह तो कूकी के साथ जरा-सा सुख पाने के लिए जुड़ा हुआ था, ना कि बार-बार अपमानित होने के लिए।
शफीक ने अपने जवाब में लिखा था, "तुम मुझे गलत क्यों समझती हो? मैं अपने काउंटरपार्ट से ईर्ष्या करूँगा? जिसने मेरी अनमोल धरोहर को अपनी हिफाजत में सही सलामत रखा है। बल्कि मुझे तो उसका आभार व्यक्त करना चाहिए। रुखसाना, मैने ऐसी क्या गलती कर दी कि तुम मुझ पर गुस्सा हो रही हो? तुमने ही तो लिखा था कि चौदह साल से मेरे काऊन्टरपार्ट ने तुम्हारा एक बार भी चुम्बन नहीं लिया है। तुम्हें किस तरह समझाऊं कि मैं तुम्हारे बाहरी सौन्दर्य को ही नहीं वरन् आंतरिक सौन्दर्य को भी उतना ही प्यार करता हूँ।
हाँ, तुम्हारी यह बात सच है। मुझे मालूम नहीं है कि प्रेम क्या चीज होती है? मैं तो अभी तक शरीर ही भोग रहा था मगर तुमने मुझे प्रेम करना सिखलाया है। मैं अपने अनुभवों को किस तरह पेश करूँ? हम अभी तक मिले नहीं हैं, मगर हर समय इस बात का अह्सास रहता है कि तुम मेरे साथ हो। रुखसाना, तुम मेरी जिंदगी हो। तुमने मुझे जिंदगी जीना सिखाया है। तुमने मुझे वे सारी बातें सिखाई है,जिसकी मुझे जरुरत थी। यू हेव टॉट मी लव विदाऊट होÏल्डग बेक।
जाने-अनजाने में अगर मैने तुम्हें दुख पहुँचाया हो तो माफी चाहता हूँ। मुझे गलत मत समझना। एकसेप्ट यू आई हेव नो एक्जिटेंस। तुम्हें क्या पता, तुम्हारे बारे में मैं दिन भर कितने सपनें देखता हूँ? अगर अल्लाह ने चाहा तो किसी दिन हम दोनों का अस्तित्व एक हो जाएगा। एवरीटाइम आइ आस्क टू अल्लाह फॉर यू बेबी। मैं आजकल अपनी पैराथीसिस लिखने में व्यस्त हूँ, इसलिए ज्यादा और कुछ नहीं लिखूँगा। मुझे फिलहाल वक्त नहीं मिल पा रहा है उस महान पेंटिंग के लिए। केवल डेढ़ महीने की बात है। फिर मैं वापस मेरी सर्वश्रेष्ठ कृति के पास लौट आऊँगा। दिसम्बर के अंत तक मुझे मेरी पैराथेसिस का काम पूरा करना होगा तथा जनवरी के पहले हफ्ते में मैं उसे जमा करवा दूँगा। जानती हो, तुम्हें पाने के लिए मात्र यही रास्ता बचा है। गिव यॉर ब्लेसिंग्स माइ मदर सो देट आई कुड कम्पलीट माइ पैराथीसिस।
कूकी को ऐसा लग रहा था मानो एक भयंकर आंधी-तूफान उसके सिर के ऊपर से होते हुए गुजर गया हो। और अपने साथ उसकी छाती पर जमी हुई गंदगी को उड़ाकर ले गया हो । अंदर ही अंदर वह टूटा हुआ अनुभव कर रही थी। कूकी ने धीरे-धीरे अपने मन को शांत किया। इन्हीं कुछ दिनों में कूकी को यह समझ में आ गया था कि ईश्वर के सामने देश, धर्म, जाति का विभेद कोई मायने नहीं रखता। ठीक उसी तरह मानवीय संवेदनाओं के सामने भी देश, धर्म, जाति आदि तुच्छ तथा निहायत झूठे हैं।
शफीक को व्यर्थ में गाली देने के कारण कूकी का मन पश्चाताप से भर उठा। उसे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था। इतनी जल्दी वह क्यों क्रोधित हो जाती है? जबकि शफीक उसको दिल से प्यार करता है, उसकी इज्जत करता है। इसमें शफीक की क्या गलती थी? अनजान आदमी भी अगर इस ई-मेल को पढ़ता तो शायद वह भी यही सोचता।कूकी किस तरह शफीक को अपने उबाऊ गृहस्थ जीवन की कैमिस्ट्री के बारे में समझाती ? उसका गृहस्थ जीवन तो बहुत पहले ही कोमा में चला गया था। क्या कूकी इस तरह लिखती?, जानते हो शफीक, मेरे जीवन में तुम्हारे आने से पहले प्रेम की भाषा भूल गई थी। प्रेम के स्वाद और उसकी खुशबू के बारे में भी भूल गई थी। मैं अपने लिए एक पल का समय नहीं दे पा रही थी, यहाँ तक कि न तो आधी रात में और न ही भोर में। अनिकेत की मर्दानगी मेरे लिए कुछ काम की नहीं थी। हमेशा हम साथ-साथ सोते थे, मगर हमारे बीच कोई संपर्क नहीं रहता था। मानो किसी ने मेरे ऊपर काला जादू कर दिया हो और देखते-देखते मेरे जिस्म की सारी उत्तेजना मेरे स्तन, मेरी योनि और मेरे होठों से छू मंतर हो गई थी।
क्या कूकी लिख देती, "शफीक, तुम्हें कैसे पता चला? हम बिस्तर में आठ-घंटे एक साथ सोते हैं, पूरे आठ घंटे। तुम्हें कैसे पता चला, हमारे यहाँ केवल जिस्मानी खेल होता है, वह होना चाहिए इसलिए होता है । तुम्हें कैसे पता चला कि हम में सजीदंगी नहीं है। हम केवल समय के स्रोत मे बहते जा रहे हैं?"
छिः! ये सब लिखने से शफीक क्या सोचेगा? अपनी खुद की कमजोरी तथा अवगुण दूसरों के सामने जाहिर करने से क्या फायदा? अनिकेत तो नपुंसक नहीं है। वह तो केवल शुचिता - प्रिय आदमी है। अनिकेत को कभी-कभी खराब लगता है, जब कूकी की साँसें उसके चेहरे पर लगती है। वह ढंग से सो नहीं पाता है। सारी रात छटपटाता रहता है। वह तो सीधा भी नहीं सोता है, पीठ मोड़कर दूसरी तरफ सो जाता है। कहीं अनिकेत को उसकी साँसों का स्पर्श न हो जाए यह सोचकर वह दोनों के बीच में एक तकिया रख देती है। जैसे ही उनके बीच संभोग की क्रिया मशीनवत पूरी हो जाती थी, वैसे ही तकिए की दीवार फिर से खड़ी हो जाती थी। एक चुंबन मे छुपे प्यार की अनुभूति और सिहरन के बदले अनिकेत को उसकी लार में छिपे असंख्य जीवाणु दिखाई देते थे।
घर में सभी अलग-अलग गिलास प्रयोग में लाते थे। कोई भी किसी के गिलास को छू तक नहीं सकता था। कोई किसी का गमछा उपयोग में नहीं लाता था। सबके लिए अलग-अलग साबुन की व्यवस्था थी। बाथरूम में और बेसिन के पास डिटॉल की बोतलें रखी हुई थी। शफीक को इतनी सारी बातें कैसे समझाती?
कूकी की वह दुनिया बहुत पीछे छूट गई जिस दुनिया में कूकी अपनी बहन के साथ एक ही थाली में खाना खाती थी। एक दूसरे का जूठन भी खा लेती थी। वे एक ही साबुन से नहाती थी। पास ही एक रस्सी पर एक या दो गमछे टँगे हुए रहते थे। कोई भी उसका इस्तेमाल कर सकता था।
अब कूकी की आदत भी बदल गई थी और उसका जीवन के प्रति दृष्टिकोण भी बदल गया था । साथ ही साथ उसकी विचारधारा भी बदल गई थी। वह नौकरी करना चाहती थी। मगर अनिकेत को यह पसंद नहीं था। उसके हिसाब से यदि कोई औरत बाहर दस आदमियों के साथ मिलकर नौकरी करती है तो उसके भीतर के कोमल भाव, स्वच्छ विचार और नरम स्वभाव में कमी आ जाती है।
घर के अंदर घुटकर कभी-कभी कूकी छटपटाने लगती थी। खासकर जब उसे अनिकेत के क्रोध का सामना करना पड़ता था। उसकी इच्छा घर छोड़कर भाग जाने की होती थी। वह नौकरी करके भले ही अलग रह जाएगी मगर इस घर में नहीं रहेगी। अपने कॉलेज के सभी मटमैले प्रमाण-पत्र बाहर निकाल कर देखती थी, उन पर हाथ घुमाते हुए सोचती थी कि ये सारे कागज इस जन्म में कुछ काम नहीं आए।
कभी-कभी वह सोचती थी कि नौकरी करने के लिए अब उम्र नहीं बची है। बेहतर यही होगा समय पास करने के लिए एक एन.जी.ओ खोला जाए। क्या अनिकेत उसे बरदाश्त कर पाएगा? कभी-कभी उसके मन में ख्याल आता था कि वह एक नर्सरी-स्कूल खोल दे। मन ही मन वह सारी योजनाएँ भी बना लेती थी, स्कूल कहाँ बनेगा? कैसा बनेगा? इत्यादि। मगर कुछ दिनों के बाद ये सारे ख्यालात अपने आप लुप्त हो जाते थे।
अनिकेत अपने परिवार को खूब प्यार करता था। वह अपने परिवार के प्रति पूरी तरह समर्पित था। उसे इधर-उधर घूमना भी पसंद नहीं था। अपना काम पूरा होने के बाद वह सीधे घर लौटता था। बच्चों को होम-वर्क देने के बाद स्नान करके वह पूजा करने लगता था। जल्दी घर वापिस आने के कारण नए अधिकारी उसे बहुत समय के बाद पहचान पाते थे।
कूकी यहाँ तक जानती थी कि जरुरत पड़ने पर अनिकेत अपने परिवार की खातिर जान भी दे सकता है। उसका दोस्त चावला मजाक करते हुए कहता था, "अरे, भाई! बच्चों और परिवार को इस तरह ढोते रहोगे तो एक न एक दिन नौकरी खतरे में पड़ जाएगी।"
कूकी अनिकेत की नस- नस से वाकिफ थी। भले ही बाहर से वह घमंडी व रुखा दिखाई देता था, मगर वह यह बात अच्छी तरह जानती थी कि अनिकेत भीतर से उतना ही कमजोर व भावुक प्रकृति का आदमी है। वह सोचता था उसे कोई प्यार नहीं करता। न माँ-बाप, न भाई-बहिन, न बेटा-बेटी, न कोई सहकर्मी और न ही पास-पड़ोसी। यहाँ तक कि कूकी भी उसको प्यार नहीं करती।
अगर उसे शफीक की वह बात पता चल जाती तो शायद वह गुस्से से पागल हो जाता। चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगता, तुम मेरी पीठ में चाकू घोंप रही हो। मैं पागल हूँ। मुझे पता तक नहीं। मुझे लोग नपुंसक बोलने लगे हैं? ये गुप्त बातें तुम्हारे अलावा और कौन बता सकता है? मुझे आज तक पता नहीं था कि मेरे आस्तीन में एक साँप छुपा हुआ है। कोई भी कितनी भी शांत प्रवृति तथा स्वतंत्र विचार-धारा का हो, अगर कोई उसे नपुंसक कहकर गाली दे तो क्या वह सहन कर पाएगा? तुरंत ही उसका खून खौल उठेगा?
जब वह पूरी तरह शांत हो जाता तो पश्चाताप की आग में जलते हुए कहता, इसमें किसी का दोष नहीं है। मेरा ही दोष है। मेरी किस्मत ही फूटी है। बचपन से लेकर आज तक मैने केवल दुख ही दुख देखे हैं। बचपन में मेरे माँ-बाप हमेशा छोटे भाई की तरफदारी करते थे। उसको प्यार करते थे। उसीको पैसा देते थे। कभी-कभार जब सिनेमा देखने की इच्छा होती थी, मुझे केवल उतना ही पैसा मिलता था जिससे एक टिकट खरीदा जा सके। एक बार बड़ी दीदी के ससुराल गया था। शाम को बाहर बाजार में घूमते-घूमते एक हलवाई के यहाँ मिठाई खाने की इच्छा हुई। मगर पैसे कहाँ? माँ ने तो बस किराए से एक फूटी कौड़ी भी ज्यादा नहीं दी थी। शाम को जब दीदी के घर पहुंचा तो दीदी ने पूछा, "बाजार गए थे, कुछ मिठाई खाई?" मैने सीधे शब्दों में उत्तर दे दिया "मेरे पास पैसे कहाँ हैं जो मिठाई खाता। माँ तो हिसाब करके पैसे देती हैं।"
यह सुनकर दीदी को बहुत दुख लगा था और उसने अपने पर्स में से पाँच रुपए निकाल कर मेरी हथेली पर रख दिए और कहा, "जाओ, इन पैसों से अपने पसंद की मिठाई खा लेना।"
छोटा भाई रमू सबका चहेता था। मेरे लिए कभी कोई परेशान नहीं हुआ। मेरी कोई परवाह नहीं करता था। कब घर आया,कब घर से चला गया किसी को कोई लेना-देना नहीं था।
अनिकेत के मन में यह बात भी टीस रही थी कि दोनो बच्चें उसकी तुलना में कूकी को ज्यादा प्यार करते थे जबकि वह बच्चों को कूकी की तुलना में ज्यादा समय देता था। अधिकांश समय तो कूकी बीमार रहती थी, इसलिए बच्चों की देखभाल से लेकर स्कूल की पढ़ाई तक सारा भार उसके कंधों पर था।
प्रतिस्पर्धा के इस जमाने में जहाँ लोग एक दूसरे से आगे निकलने के लिए भागदौड़ में व्यस्त रहते थे, वहाँ अनिकेत बच्चों का जीवन सँवारने के लिए उनका साथ देता था। मगर कूकी को इन चीजों से कोई लेना-देना नहीं था। बच्चों की हर शरारत को वह सहन करता था। मगर बच्चे फिर भी कूकी को ज्यादा प्यार करते थे। कभी-कभी उसके मन का दुख जुबान पर आ जाता था और वह बच्चों को डाँटने लगता था, "अभी तक तुम लोग बाप के महत्व को नहीं समझते हो। उसके प्यार को महसूस नहीं कर पाते हो। जब मैं मर जाऊँगा तब तुम लोगों को पता चलेगा, तुम्हारा बाप कैसा आदमी था?"
तब कूकी उसको समझाने का प्रयास करती थी, "छोटे बच्चों के साथ ऐसी उखड़ी-उखड़ी बातें क्यों करते हो? उनकी उम्र ही क्या है? कितनी समझ है उनमें? तुम व्यर्थ में उनकी छोटी-छोटी बातों को पकड़कर बैठ जाते हो, प्यार कोई दिखाने की चीज है, जो वे ढिंढोरा पीटेंगे?"
अनिकेत कहता था, "मैं अच्छी तरह जानता हूँ बच्चें तुम पर गए हैं।"
उसका यह तर्क सुनकर कूकी चिढ़ जाती थी। वह कहने लगती थी, "बच्चे माँ को प्यार करते हैं इसमें बड़ी बात क्या हो गई? क्या बच्चों का अपनी माँ से प्यार करना उचित नहीं है? दुनिया का हर बच्चा सबसे पहले अपनी माँ को प्यार करता है फिर दूसरे लोगों को।" बच्चें भी अनिकेत के संदेह को दूर करने का प्रयास करते थे मगर अनिकेत कहाँ समझता था, उल्टा उनको गाली देना शुरु कर देता था।
कूकी भी अनिकेत को समझाती थी, "तुम्हारा यह क्रोध ही तुम्हें अपने बच्चों से दूर ले जा रहा है। सब तो कूकी नहीं हैं जो तुम्हें समझ पाएँगे।"
अनिकेत लंबी साँस लेते हुए कहने लगता था, "किसी-किसी की तकदीर ही खराब होती है।" कहते-कहते अनिकेत अपनी अंगुलियों के नाखून दाँत से काटने लगता था। उसको नाखून काटता देख कूकी को गुस्सा आने लगता था।
"व्यर्थ में क्यों अपनी किस्मत को कोस रहे हो? क्यों जान बुझकर अपने दुर्भाग्य को न्यौता दे रहे हो? क्या तुम्हें मालूम नहीं है दाँतों से नाखून काटना बहुत बुरी आदत है। इतना क्या सोच रहे हो? किस बात की इतनी चिंता करते हो?"
अन्यमनस्क होकर अनिकेत कहने लगता था, "इस बार मुखर्जी दादा और दास ने न्यूयार्क और शिकागो जाने की बाजी मार ली हैं। साले, चमचे लोग चमचागिरी करके तीन-चार बार फायदा उठा लिए हैं। इस बार तो सपरिवार विदेश गए हैं।"
अनिकेत को उसकी कंपनी ने सिर्फ एक ही बार अमेरिका भेजा था, वह भी बहुत पापड़ बेलने के बाद। उसे हमेशा यह डर सताए रहता था कि उसकी जगह कोई दूसरा आदमी न चला जाए। उस समय अनिकेत की नजरों में विदेश यात्रा की इतनी अहमियत थी कि उसने मन ही मन यह संकल्प लिया था कि अगर उसे विदेश यात्रा का अवसर मिला तो वह जगन्नाथ पुरी में भीख माँगकर भगवान को प्रसाद चढ़ाएगा। और वास्तव में विदेश यात्रा से लौटकर अनिकेत ने जगन्नाथ पुरी में भगवान को भीख मांगकर प्रसाद चढ़ाया था।
इस बार पता नहीं अनिकेत के मन में क्या आया, उसने छह महीने पहले ही कूकी और बच्चों का पासपोर्ट बनवा दिया था। वह कहता था, हर साल कंपनी अपने अधिकारियों को विदेश भेज रही है। अगर कभी मौका मिला तो हम लोग भी विदेश-यात्रा कर लेंगे।
कूकी ने कभी भी अपना पासपोर्ट बनवाने के लिए इतनी उत्सुकता जाहिर नहीं की थी। उसके लिए विदेश यात्रा कोई मायने नहीं रखती थी। लेकिन उसे इस बात की कहाँ जानकारी थी, एक दिन उसके जीवन में कोई आएगा और उससे कहेगा "मैं तुम्हें पैरिस ले जाऊँगा। वहाँ हम लॉवरे में घूमेंगे। सभी के सामने मैं तुम्हारा किस करते हुए हुए कहूँगा, "मीट माइ वाईफ"।"
"मीट माइ वाइफ " अनिकेत ने हाथ में कोल्ड ड्रिंक्स लिए हुए ध्यान से गजल सुनती हुई कूकी का परिचय अपने बॉस से करवाया था।
कूकी की आँखों मे कई सवाल थे। उसने हाथ जोड़कर अनिकेत के दोस्त को नमस्कार किया। उस सज्जन आदमी ने कूकी से पूछा, "शनिवार की पार्टी मे आप कहीं दिखाई नहीं दी?"
"इसे हल्ला-गुल्ला, भीड़-भाड़ पसंद नहीं है। इसलिए पार्टियों में बहुत कम आती-जाती है।" कूकी की तरफ से अनिकेत ने उत्तर दिया था।
"ओह, यह बात है। लेकिन क्यों? जीवन के प्रति आपका दृष्टिकोण इतना नकारात्मक क्यों है? कुछ पलों की जिंदगी है, उसे अच्छी तरह से जी लेना चाहिए।"
कूकी से आखिरकार रहा नहीं गया। न चाहते हुए भी उसे बोलना ही पड़ा, "नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। बच्चों की पढ़ाई की वजह से बाहर निकलना थोड़ा कम हो रहा है।"
"मतलब?" वह सज्जन आश्चर्य चकित होकर उसकी तरफ देखने लगे। ठीक उसी समय अनिकेत का दूसरा दोस्त खोसला उधर पहुँच गया। कूकी उनको नमस्कार कर बात करने लग गई।
वे सब लोग इधर-उधर की बातें करने लगे। कूकी पनीर का पकोड़ा खाते- खाते धीमे-धीमे संगीत पर बज रही गजल सुनने में व्यस्त हो गई। ठीक उसी समय मिसेज शर्मा उसके पास पहुँचकर बच्चों की कोचिंग के बारे में बात करने लगी, "बेटे को कौन-सी कोचिंग में भर्ती करवाया है? मेरी बेटी तो इस शहर के नामी-गिरामी कोचिंग सेंटर में पढाई कर रही है।"बात-चीत में मशगूल होकर वह यह बताने लगी कि अमुक आदमी का बेटा पढाई पूरी करके आस्ट्रलिया चला गया है और अमुक औरत की बेटी शादी करके अमेरीका चली गई।
उसी समय कूकी की पहले वाले सज्जन से फिर मुलाकात हो गई। उसने हँसते हुए पूछा, "मैडम, आप जा रही हैं?"
"जी, जी हाँ, मैं अब जा रही हूँ।" सिर हिलाते हुए कूकी ने कहा।
"मैडम, कभी हमारे घर भी तशरीफ लाइए ।" उसने कहा।
"जरुर, अगले हफ्ते।" अनिकेत ने उत्तर दिया।
एक दूसरे को शुभरात्रि कहकर उन्होंने एक दूसरे से विदा ली। जबकि बच्चें वहाँ कुछ और देर रुकना चाहते थे। मगर अनिकेत के सामने उनकी कुछ भी नहीं चली।
"वह महाशय कौन थे, जिनके साथ अभी कुछ समय पहले मेरा परिचय करवाया था? मैं तो उनसे पहले कभी मिली नहीं थी।" कूकी ने अनिकेत से प्रश्न किया।
"चौहान, मेरा इमिडिएट बॉस।"
"हे भगवान! मैं तो सोच रही थी कि आपके साथ वाला ही कोई आफिसर होगा। मुझे आपने बताया क्यों नहीं?"
"क्यों? अगर बता भी देता तो तुम क्या कर लेती?" कहते हुए अनिकेत ने एक व्यंग्य-बाण छोड़ा था।
अपनी अंगुलियों से इशारा करते हुए कूकी ने अनिकेत से कहा, "देखो, मुझसे उल्टी-सीधी बातें मत करो। बच्चों का तो थोड़ा-बहुत ख्याल करो।"
अनिकेत पहले की तरह खिसिया कर हँस रहा था। तभी उसे लगने लगा कि उसकी मारुति कार में कुछ कचरा आ गया है।
"क्या हुआ?" कूकी ने पूछा।
"लग रहा है गाड़ी का क्लच काम नहीं कर रहा है।"
कुछ दूर चलकर गाड़ी रुक गई।
"क्या हुआ, पापा?" बड़ा बेटा पीछे वाली सीट से अपना मुँह बाहर निकालकर कहने लगा।
"चुपचाप बैठ न।" अनिकेत ने उत्तर दिया।
फिर से उसने गाड़ी स्टार्ट करने की कोशिश की, मगर कार स्टार्ट नहीं हुई। फिर उसने कार को पीछे से कुछ दूरी तक धक्का दिया, मगर कार एक कदम भी आगे नहीं बढ़ी, मानो वह रुठ गई हो। अनिकेत कार का बोनट खोलकर उसे ठीक करने लगा। फिर एक बार उसने कार स्टार्ट करने की कोशिश की। मगर इस बार भी कार स्टार्ट नहीं हुई। आधे घण्टे से ज्यादा का समय सड़क पर ही बीत गया था। आस-पास में कोई गैरेज भी नजर नहीं आ रहा था, जिससे वह किसी मैकैनिक को बुलाता। अनिकेत तनावग्रस्त हो गया था। देखते-देखते वह अपने नाखूनों को दाँत से काटने लगा। तभी अनिकेत के छोटे बेटे ने कहा "पापा, अब हम घर कैसे जाएँगे? कोई लिफ्ट लेकर?"
"चुप रहो।" कूकी ने छोटे बेटे को डाँटा। अनिकेत के ऊपर भी उसे गुस्सा आ रहा था। उसने कई बार अनिकेत को कहा था या तो इस गाड़ी को किसी गैरेज में भेजकर ठीक करवा लो या फिर इसको बेचकर कोई नई गाड़ी खरीद लो। मगर अनिकेत कब उसकी बात सुनने वाला था? अब भुगतो।
चुप्पी को तोड़ते हुए बड़े बेटे ने कहा, "अब क्या करेंगे?"
सड़क पर खड़ा होकर अनिकेत इसी बारे में सोच रहा था। रात होती जा रही थी और गाड़ियों का सड़क पर आना-जाना भी धीरे-धीरे कम होता जा रहा था। अनिकेत कहने लगा, "एक काम करो।अगर अपनी कॉलोनी का कोई व्यक्ति इधर से गुजरेगा, तो तुम सब उसके साथ चले जाना। मैं गाड़ी ठीक- ठाक करवाकर घर आ जाऊँगा।"
तभी दूर से एक आटोरिक्शा आता दिखाई दिया। अनिकेत को ऐसा लगने लगा मानो किसी डूबते को तिनके का सहारा मिल गया हो। अनिकेत ने हाथ दिखाकर आटोरिक्शा को रोका। और उन्होंने इस बात का निर्णय लिया कि वे सभी एक साथ आटो में बैठकर घर चले जाएँगे, फिर अनिकेत किसी मेकेनिक को लेकर वापिस कार के पास चला आएगा।
ऑटोरिक्शा वाले ने वहीं सड़क पर कार को छोड़कर जाने के लिए मना किया। उसका कहना था कि सड़क पर इस तरह लावारिस कार छोड़कर जाने पर पुलिस कार का चालान काटकर आपको जेल भेज सकती है। अच्छा तो यही रहेगा आप अपनी कार को आटो के पीछे बाँध दीजिए, ताकि खींचकर ले जाया जा सके। केवल पाँच किलोमीटर दूरी ही तो तय करनी है। फिर उस आदमी ने गाड़ी को अपने रिक्शे के भीतर रखी हुई रस्सी के साथ अपने आटो से बाँध दिया।
आटो उन सब को गाड़ी में बैठे हुए खींचते हुए ले जा रहा था।अभी वह ऑटो सिर्फ एक-दो किलोमीटर की दूरी तक ही खींचकर ले गया होगा कि तभी उसकी टोशन वाली रस्सी टूट गई। आटो के ड्राइवर ने दोबारा से कार को आटो के साथ बाँधा। फिर वह बोला "आप लोग कार से उतर जाइए। वजन ज्यादा होने की वजह से रस्सी फिर से टूट जाएगी। आप लोग मेरे आटो में बैठ जाइए।"
आटो ने बड़ी मुश्किल से खींचते-खांचते आखिरकर किसी तरह उन्हें घर पहुँचा ही दिया, कूकी को बहुत थकान लग रही थी, भीतर ही भीतर वह अपमान भी महसूस कर रही थी। बच्चें भी इस घटना से दुखी हो गए थे। रास्ते भर बहुत परेशान कर रहे थे। घर पहुँचने के बाद बड़ा बेटा कहने लगा, "मम्मी, पापा से कहिए कि उस खटारा गाड़ी को किसी कबाड़ी के यहाँ बेच दे।"
"चुप कर, पापा सुन लेंगे तो डाँट पड़ेगी।" जैसे-तैसे कर कूकी ने बड़े बेटे को शांत तो करवा दिया, मगर उसके मन का असंतोष अभी भी कम नहीं हुआ था।
पिछले साल जब बहुत बारिश हुई थी,तब उनके इलाके में घुटनों तक पानी जमा हो गया था। सारा पानी उनके इलाके में ही जमा होता था क्योंकि वह सिटी का सबसे निचला इलाका था। कार पूरी तरह पानी में डूब गई थी। पानी घटने के बाद कार की हालत खस्ता हो गई थी। पूरी कार में जहाँ-तहाँ जंग लग गया था व सीट का तो पूरी तरह से कचूमर निकल गया था। अनिकेत ने उस कार की बिल्कुल भी मरम्मत नहीं करवाई थी, उसका कहना था,कि इसकी मरम्मत पर पैसा खर्च करना व्यर्थ है, बेहतर यही होगा, हम एक नई गाड़ी खरीद लेंगे। मगर अब तक भी उसने कोई नई गाड़ी नहीं खरीदी थी।
छोटे बेटे ने कहा, "देखिए न मम्मी, अंकुर के घरवालों ने हमारी कार को आटो से खिंचते हुए देखा है। कल सब मुझे स्कूल में ताना मारेंगे और कहेंगे, कब तक खटारा गाड़ी में बैठते रहोगे। प्लीज मम्मी, अगली बार मुझे उस गाड़ी में बैठने के लिए मत कहना।"
तभी बड़े बेटे ने अपनी सहमति जताते हुए कहा, "वर्मा अंकल ने अभी-अभी एक सेंट्रो कार खरीदी है। कॉलोनी में सबके पास नई-नई गाड़ियाँ हैं एक से बढ़कर एक। केवल हमारे पास ही यह पुरानी गाड़ी है।"
अनिकेत का मन पहले से ही गुस्से से भरा हुआ था। बच्चों की बात सुनते ही उसका दबा हुआ गुस्सा आग के गोले के रुप में फट पड़ा। आव देखा ना ताव, हाथ में डंडा लिए बच्चों पर टूट पड़ा।
"बदतमीज, पढ़ाई तो ढंग से होती नहीं है। गणित में कभी भी अस्सी से ऊपर नंबर नहीं आते हैं और घूमने के लिए चाहिए सेन्ट्रो कार।"
कूकी बीच-बचाव करते हुए कहने लगी, "बच्चें अभी नासमझ हैं। उन्हें इन चीजों के बारे में क्या जानकारी है? उन्हें डंडे से पीटते हुए तुम्हें शर्म नहीं आ रही है। कॉलोनी के कुछ लोगों ने जब उनका मजाक उड़ाया था तो उन्हें खराब लगा, इसलिए उन्होंने कह दिया। इसमें बच्चों को पीटने की क्या बात है?"
"तुम बच्चों की ज्यादा तरफदारी मत किया करो। बदजात, तुमने ही इन दोनों को सिर चढ़ाकर बिगाड़ दिया है।" कहते-कहते अनिकेत ने कूकी को भी दो-चार डंडे जड़ दिए। अचानक डंडे की मार से कूकी चिल्ला उठी, "ऊई माँ, मैं मर गई, मुझे मत मारो, मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?" मगर अनिकेत कहाँ रुकने वाला था। धड़ाधड़ सिर से लेकर पाँव तक डंडे मारता ही गया। आखिर थक हारकर उसने वह डंडा फेंक दिया।
कूकी सुबक-सुबककर रोने लगी। रोते-रोते उसने देखा, सामने वाले फ्लैट की खिड़की खुली हुई थी। माँ को मार खाता देख बच्चें अपने-अपने कमरे में दुबक गए मगर उनकी आँखों में नफरत और क्रोध के भाव स्पष्ट झलक रहे थे।
कूकी के पूरे शरीर पर जहाँ-तहाँ डंडे की मार के लाल निशान दिखाई दे रहे थे। उसकी आँखों से आँसू मानो थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। पूरा शरीर दर्द से कराह रहा था।तब कूकी अपमान के घूँट पीकर रह गई थी। उसकी घर छोड़कर भाग जाने की इच्छा हो रही थी। पल्लू को मुँह में ठूँसकर बैठ गई थी कूकी। हिचकियों के ऊपर हिचकियाँ आ रही थी। उसे मन ही मन अनिकेत से नफरत होने लगी। छिः! बहुत पढ़ लिखरकर अच्छी नौकरी पाने से भी क्या फायदा? जब किसी के मन से इंसानियत ही खत्म हो गई हो। बीच-बीच में अनिकेत कितना खूंखार हो जाता था कि उसका दया भाव बिल्कुल ही मर जाता था। अच्छे-बुरे का ख्याल छोड़कर वह हैवान हो जाता था। कभी-कभी तो कूकी के मन में इच्छा होती थी, कि वह आत्म-हत्या कर लें। मगर दो मासूम बच्चों को निर्दयी अनिकेत के पास छोड़कर कैसे मर सकती थी?
कूकी ने देखा, बिस्तर पर लेटे हुए बड़ा बेटा इधर-उधर करवटें बदल रहा था। कूकी ने कहा, "लाइट बंद कर रही हूँ। आराम से सो जाओ।"
बेटे ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया। वह बहुत ही गंभीर और परिपक्व लग रहा था। चेहरे से ही लग रहा था कि वह अपने बाप पर गया है। जब भी उसे क्रोध आता था, वह सारा क्रोध कूकी पर उतारता था। घर का सारा
बेटे ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया। वह बहुत ही गंभीर और परिपक्व लग रहा था। चेहरे से ही लग रहा था कि वह अपने बाप पर गया है। जब भी उसे क्रोध आता था, वह सारा क्रोध कूकी पर उतारता था। घर का सारा सामान इधर-उधर फेंककर तोड़ देता था। तकिया काटकर उसकी रुई बिखेरने लगता था। टेबल पर कूकी के पड़े हुए लेमिनेटेड़ फोटो पर केरोसिन ड़ालकर आग लगा देता था। घर की दीवारों पर जहाँ-तहाँ अंडे फेंककर पूरा घर खराब कर देता था। पूजाघर से भगवान की मूर्ति और बाकी पूजा का सामान इधर-उधर फेंककर सब तहस-नहस कर देता था। कूकी को मन ही मन लगता था, वह बड़ा होकर जरुर अनिकेत को मारने लगेगा।
कूकी अनिकेत से जितना डरती थी उतना ही बड़े बेटे से डरती थी । लेकिन वह जानती थी अब जबकि उसका गुस्सा अनिकेत के ऊपर है, तब भी वह अपनी माँ को सांत्वना देने के लिए उठकर नहीं आएगा। छोटा बेटा माँ के प्रति अपनी सहानुभूति जताकर सोने के लिए जा चुका था।
कूकी जब अपने कपड़े बदलकर बाथरुम से बाहर निकली तो उसने देखा अनिकेत ने दोनों कमरों में बेड के ऊपर मच्छर दानी लगा दी थी। उसकी अनिकेत के पास जाकर सोने की इच्छा बिल्कुल नहीं हो रही थी। फिर भी बिना कुछ बोले वह अनिकेत के पास जाकर सो गई। अनिकेत भी चुपचाप सोता रहा। पता नहीं, उसे कब नींद आ गई। पता नहीं, तब रात कितनी हुई होगी। जब अचानक कूकी की नींद टूट गई। उसने महसूस किया अनिकेत उसके जख्मों पर मल्हम लगा रहा था। कूकी आँखें बंद करके ऐसे ही पड़ी रही। मगर कब तक वह आँखें बंद करके बिस्तर पर पड़ी रहती? अनिकेत का स्पर्श पाकर उसकी आँखें आँसुओं से भर आई। और पूरी रात सोचते-सोचते यूँ ही कट गई। उसे सारी रात नींद नहीं आई।
"उसे सारी रात नींद नहीं आई। कम्प्यूटर के सामने बैठे-बैठे यूँ ही समय बीत गया। सारी रात मन में अंतर्द्वंद्व चलता रहा। अब सुबह होने जा रही है। मुझे चिड़ियों की चहचहाट सुनाई देने लगी है। कुछ ही देर बाद सूरज उदय होने लगेगा। और अंतर्द्वंद्व क्यों? आखिरकर मैने सोचा कि इसे भेज ही देता हूँ। बाकी जो मेरी किस्मत में होगा, देखा जाएगा।" शफीक ने ई-मेल भेजा।
इतना द्वन्द क्यों? किसलिए? शब्दों के हिज्जें गलत लिखे हुए थे।शफीक ने इससे पहले कभी भी गलत हिज्जें वाले शब्द लिखकर ई-मेल नहीं किया था। उसका ई-मेल पढ़कर ऐसा लग रहा था मानो वह दिमागी तौर पर सठिया गया हो और इसलिए शायद उसकी अंगुलियाँ बेकाबू होकर की-बोर्ड पर जहाँ-तहाँ पड़ गई हो।
शफीक ने पूरे मेल में कूकी को खो देने के डर से संयमित भाषा का इस्तेमाल किया था। क्या कूकी उसके लिए इतनी बेशकीमती है ? अपने जीवन में उसने जिसे कभी देखा तक नहीं था छूना तो दूर की बात थी , उसके प्रति इतना मोह?
इस ई-मेल में शफीक के कुछ फोटोग्राफ अटैच किए हुए थे।कूकी कई दिनों से शफीक को उन फोटो को भेजने के लिए कह रही थी। यद्यपि चैटिंग के शुरुआती दौर में शफीक ने अपने पासपोर्ट साइज का फोटो अपने एक ई-मेल के साथ भेजा था।
लम्बा कद, गदराया हुआ बदन, गोल-मटोल चेहरा, छोटे-छोटे गुलाबी होंठ, लंबी नाक, मोटी-मोटी मूँछें और एकदम गोरे रंग वाला आदमी लग रहा था वह फोटो में । उस समय उसने अपने बारे में लिखा था, "मेरा कद छह फुट,है और देखने में गोरा- चिट्टा हूँ।"
शफीक के फोटो भेजने के तीन-चार महीनों के बाद कूकी ने भी अपना फोटो भेजा था। तब तक शफीक ने उसका एक काल्पनिक चित्र तैयार कर लिया था। उस काल्पनिक चित्र की पेंटिंग बनाकर उसने कूकी को ई-मेल कर दिया था, यह कहते हुए कि मेरी कल्पना में तुम कैसी दिखती हो? और वह भी जानना चाह रहा था, "क्या तुम वास्तव में पेंटिंग वाली मेरी कूकी की तरह दिख रही हो न?"
उस पेंटिंग को देखकर कूकी की समझ में आ गया था, भले ही शफीक सीधे मुह नहीं बोल पा रहा है, मगर कहीं न कही उसके दिल में कूकी को देखने की चाह है। कूकी ने यही सोचकर अपना भी एक फोटो भेज दिया था। वह उसका बीस साल पहले का फोटो था। एकदम छरहरा बदन, नशीली आँखों वाला मनमोहक फोटो था वह।शफीक ने जिसे बाद में एनलार्ज करवाकर अपने स्टूडियो, कार, पर्स और डायरी में लगा दिया था।
शफीक के पुराने फोटो को कूकी कम्प्यूटर के एक सीक्रेट जंक फोल्डर में छुपाकर रखती थी। जब भी उसका मन करता, उसको खोलकर देख लेती थी। एक दिन सारे पुराने ई-मेलों को डिलीट करते समय गलती से वह फोल्डर भी डिलीट हो गया था। बाद में उसने रिसायकिल बिन के सारे ई-मेलों तथा फोल्डरों को भी डिलीट कर दिया था। अब उसके लिए शफीक का फोटो देखना नामुनकिन था। मगर उसके दिल में वही पुराना फोटो घर कर चुका था। कूकी अपने दिल में छुपी सारी भावनाएँ उस फोटो के सामने प्रकट करती थी।उसने एक दिन शफीक से चैटिंग के समय बातों ही बातों में उस फोटो के डिलीट होने वाली सारी घटना का पूरा ब्यौरा उसके सामने रख दिया। और अपनी ख्वाहिश प्रकट की थी कि अगर वह अपना एक फुल साइज फोटो भेज देता तो उसके लिए अच्छा होता।
शफीक ने कुछ दिनों तक कूकी की ख्वाहिश पूरी नहीं की। मगर जब भी शफीक चैटिंग में कूकी की उस नशीली आँखों वाली फोटो की याद दिलाता था तो कूकी उसे उसकी फोटो को भेजने वाली बात याद दिला देती थी, "शफीक, मैने तुमसे एक फोटो माँगा था। अभी तक नहीं भेजा। क्या भेजना भूल गए हो?"
कूकी की बात टालते-टालते आखिरकर वह कब तक उसकी बात टालता। एक दिन उसने मनमसोस कर कूकी के प्रश्न का उत्तर देते हुए लिखा था, "कूकी, मैने विगत पच्चीस साल से अपना कोई फोटो नहीं खिंचवाया है। अब इस अधेड़ उम्र में फोटो खिंचवाना मुझे अच्छा नहीं लग रहा है। फिर भी तुम्हें चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है। तुम्हारे लिए मैं स्टूडियो में जाकर अपना एक फुल साइज फोटो जरुर खिंचवाऊँगा। और उसे जल्दी ही भेज दूँगा।"
फोटो भेजने का वायदा किए हुए लगभग डेढ़ महीना बीत चुका था, मगर अभी तक उसने अपना वायदा नहीं निभाया था। कूकी के मन में एक तीव्र जिज्ञासा पैदा हो चुकी थी, अगर शफीक का पहले वाला फोटो पच्चीस साल पहले का था तो अब शफीक कैसा दिखता होगा? जहाँ कूकी मोटी हो गई है, चेहरे पर झुर्रियाँ परने लगी है, तब शफीक का चेहरा कितना बदला होगा? कूकी ने मन ही मन शफीक के फिगर की कल्पना कर ली थी। एक लम्बी कद काठी वाला, गोरा- चिट्टा, पचास साल के आस-पास की अधेड़ उम्र का एक आदमी जिसकी होंगी भूरी आँखें, गुलाबी होंठ, मोटी-मोटी मूँछें और सिर पर बचे होंगे थोड़े-बहुत बाल।
कूकी ने एक दिन रूठकर अपने ई-मेल में लिखा था, "शफीक, मुझे अब तुम्हारी किसी फोटो की जरुरत नहीं है। अब तक तो तुम्हारा चेहरा पूरी तरह से बदल गया होगा। अपने पहले वाले फोटो की तुलना में अब तुम ज्यादा बूढ़े दिखाई दे रहे होंगे।मेरी बातों की जब तुम कद्र नहीं करते हो, मुझे बहुत बुरा लगता है। मेरा विश्वास करो, तुम भले ही एक लूले, लँगडे या अंधे हो, मैं हर कीमत पर तुम्हे अपनाने के लिए तैयार हूँ। लेकिन मेरे बार-बार अनुरोध करने के बाद भी जब तुम चुप रह जाते हो तो मेरे लिए सहन करना कठिन हो जाता है।क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है? इतनी दूर आगे बढ़ने के बाद क्या मैं वापिस पीछे लौट जाऊँगी, जिस जगह पर मैं थी? क्या तुम्हें मुझ पर बिल्कुल विश्वास नहीं है?"
कूकी के इस मेल ने शफीक को शायद पूरी तरह से विचलित कर दिया था। इसलिए उसने सारी विपरीत परिस्थितियों का मुकावला करते हुए अपनी चार अलग-अलग तरह की फोटो अपने ई- मेल में भेज दी थी।
कूकी ने तब तक उन फोटो को नहीं देखा था। एक पेड़ के नीचे, पोल के ऊपर पार्क के बेंच पर बैठे हुए शफीक के फोटो को उसने डाऊनलोड करके 'माई पिक्चर' के एक फोल्ड़र में सेव कर लिया था। वह सबसे पहले शफीक के ई-मेल को पड़ना चाहती थी।कूकी को उसका ई-मेल पढ़ने से लग रहा था,कि शफीक बुरी तरह से डरा हुआ था। लेकिन वह क्यों डरा हुआ था?
कूकी के मन में ई-मेल पढ़कर एक संदेह पैदा हो गया था, इसलिए वह सेव किए हुए फोटो को एक-एक कर एडोब फोटोशॉप में बड़ा कर के देखने लगी। उन फोटो को देखते ही उसे ताज्जुब होने लगा। यह शफीक का चेहरा है? शफीक की पहले वाली फोटो के साथ उन फोटो का कोई मेल नहीं था।
क्या यह कोई दूसरा आदमी है? ऐसे आदमी की तो उसने कल्पना नहीं की थी। तो वह आज तक क्या किसी और आदमी को ई-मेल कर रही थी. क्या यही आदमी इतने दिनों से कूकी के साथ अलग-अलग आसनों में रति-क्रिया में लीन था। नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। यह आदमी शफीक नहीं हो सकता। यह आदमी तो देखने में गोरा-चिट्टा नहीं लग रहा था। इस आदमी के बाल घने ना होकर, छितरे हुए लग रहे थे। बहुत कम बालों में जबरदस्ती कंघी किया हुआ वह आदमी कौन हो सकता है? पिचके हुए गालों वाला आदमी जिसकी मूँछे भी नहीं है? कौन हो सकता है यह? यह आदमी तो किसी भी हालत में शफीक नहीं हो सकता।
उसे मन ही मन किसी षड़यंत्र की बू आ रही थी। वह आदमी कहीं दगाबाज तो नहीं? क्या यही कारण है कि उसे रात भर नींद नहीं आई थी। और उसकी चालबाजी पकड़ में आ जाने के कारण वह बुरी तरह भयभीत हो गया हो? क्या इसी वजह से वह फोटो भेजने के लिए हिचकिचा रहा था? क्या यही कारण हो सकता है कि उसने अपने ई-मेल में लिखा था, "आखिरकर मैं भेज रहा हूँ जो किस्मत में होगा, देखा जाएगा।"? शायद यही वजह होगी कि आज तक वह आदमी अपने फोटो भेजने की बात टालता आ रहा था।
तब शफीक ने जो फोटो पहले भेजा था वह फोटो किसका था? कहीं मुझे प्रभावित करने के लिए उसने किसी दूसरे व्यक्ति का फोटो तो नहीं भेज दिया था। कूकी को ऐसा लग रहा था मानो वह किसी गलत आदमी के हाथों छली गई है। जरुर हो न हो, वह किसी ठग के शिकंजे में फंस गई है।
उसका जोर-जोर से रोने का मन कर रहा था। वह सोच रही थी, इसका मतलब कि वह आदमी अभी तक झूठे प्रेम का नाटक कर रहा था। मगर उस आदमी की व्याकुलता, भावुकता तथा उसके नाम कविताओं पर कविताएँ लिखते जाना क्या महज एक मजाक था? क्या बिना किसी प्रेम के कोई भी आदमी ऐसा कर सकता है? अगर यह बात सही है कि वह आदमी कूकी से प्यार करता है तो उसने बीच में इस छूठ का इस्तेमाल क्यों किया? क्या वह यह नहीं जानता था कि झूठ के पाँव नहीं होते हैं, एक न एक दिन झूठ का भांडा फूट जाता है? क्या वह इस बात को नहीं समझ पा रहा था कि इस सफेद झूठ की वजह से कूकी का दिल टूट जाएगा?
कूकी ने सुना था कि नेट के द्वारा प्रेम करना असंभव है। केवल फ्लैटरी तथा शारीरिक आकर्षण की बातें की जा सकती है। वह यह भी जानती थी कि नेट द्वारा बने संबंध कभी भी स्थायी नहीं हो सकते क्योंकि नेट में एक दूसरे को आमने-सामने देखने तथा पूरी तरह समझने परखने की सुविधा नहीं होती है। वहाँ केवल कल्पना की दुनिया में गोते लगाने पड़ते हैं। केवल सपनों से भरी हुई दुनिया। नेट के इस प्रेम में ना तो सामने कोई शरीर होता है और ना ही किसी का मन। इतना सब कुछ जानते हुए भी क्या कूकी का पहले से सचेत रहना जरुरी नहीं था?
शफीक भौतिकवादी दुनिया का इंसान था पर कूकी? पता नहीं, वह कैसे सब कुछ भूलकर इस दुनिया में घुस गई?कूकी का ऐसे बुरे समय में कौन साथ देगा? जिसको वह अपने मन के दुखड़े सुना पाती। उसके सबसे नजदीक तो अनिकेत है, लेकिन अनिकेत को ये सब बताना क्या संभव था? घर में प्रलय आ जाएगी। जिस किसी को भी वह यह सब बताएगी, वे उसकी बातों पर ताज्जुब करने लगेंगे। सबके मुँह से एक ही बात निकलेगी, उम्र के इस पड़ाव में प्रेम? एक अनजान आदमी से प्रेम करने की जुर्रत इस उम्र में? यहाँ तो केवल सेक्स-चैटिंग की जा सकती है या फ्लेटरी। मगर प्रेम?
कूकी बार-बार उस आदमी के मेल को पड़ रही थी। उसके फोटोग्राफ को बड़ा करके देखती थी। नहीं उसने ऐसे आदमी की कभी भी कल्पना नहीं की। यह कोई दूसरा आदमी है। उसका शफीक नहीं हो सकता है। वह तो इस आदमी को पहचानती भी नहीं है। कूकी को बहुत दुख लग रहा था। आज से क्या वह उस आदमी के बारे में सोचने लगेगी जिसके बारे में उसने कभी भी नहीं सोचा था।
कूकी ने जवाब में लिखा था, "शफीक तुमने मेरे साथ दगाबाजी की है, । तुमने मुझे किस आदमी का फोटो भेजा है? क्योंकि यह फोटो तुम्हारी पहले वाली फोटो से तनिक भी मेल नहीं खाता है। मैं किसे शफीक मानूँ? इतने दिनों से जो चेहरा मेरे दिलो दिमाग पर छा गया है उसको या अभी भेजे हुए उस फोटो वाले आदमी को? तुमने एक बार भी ख्याल नहीं किया कि मुझे कितना दर्द हो रहा होगा? मै असली शफीक किसे समझूँ? या फिर एक महीने बाद कोई तीसरा आकर कहेगा, मैं शफीक हूँ?
तुमने मेरे साथ ऐसा विश्वासघात क्यों किया? तुम्हें मेरे साथ खेल खेलकर मजा आया होगा? मैने तुमसे कुछ पाने के लिए ऐसा नहीं किया था। अब हमारे लिए इस संबंध को बरकरार रखना नामुमकिन हो जाएगा। मुझे नहीं पता कि मैं आगे से और ई-मेल कर पाऊँगी या नहीं? शायद यह मेरा आखिरी ई-मेल है। मैं पूरी तरह से टूट चुकी हूँ।"
तुरंत कूकी ने इस मेल को बिना कुछ सोचे समझे भेज दिया था।
मेल भेजने के बाद कूकी को याद आया कि एक बार शफीक ने लिखा था, "एंड द ग्रेटेस्ट मिराकल आफ आल इस, हाऊ आइ नीड यू एंड हाऊ यू नीड मी, टू।"
कूकी का मेल मिलते ही शफीक ने उत्तर दिया था, "मुझे पहले से ही पता था, ऐसा ही होगा। इसी बात की मुझे चिंता थी। इस वजह से मैं फोटो भेजना नहीं चाहता था। अगर समय ने मेरा चेहरा बदल दिया तो उसमे मेरा क्या कसूर? रुखसाना, तुम्हें कैसे यकीन दिलाऊँ कि वे दोनों फोटोग्राफ मेरे ही हैं। वह मेरी बहुत बड़ी गलती थी कि मैने अपना बीस साल पहले वाला फोटो तुम्हें भेज दिया था। मगर उसके पीछे मेरा कोई गलत मकसद नहीं था। कई सालों से मैने अपना कोई फोटो नहीं खिंचवाया था। हर दिन आइने में अपनी तस्वीर देखने के बाद भी मेरी नजर मेरे बदलते हुए चेहरे की तरफ नहीं गई।
अगर तुम मुझे बाध्य नहीं करती तो शायद अभी भी अपना फोटो नहीं खिंचवाता और कभी भी यह समझ नहीं पाता कि समय के थपेड़ों ने मुझे किस कदर तोड़ दिया है।
केवल यही इकलौती वजह थी कि मैं अपना फोटो भेजने से कतरा रहा था। मुझे इस बात का डर सता रहा था कि तुम जवान शफीक और बूढ़े शफीक के बीच फर्क को देखकर कहीं टूट न जाओ।
आज मैं दिल से अल्लाह को कोस रहा था कि उन्होंने मुझे समय के साथ-साथ इतना क्यों बदल दिया? मुझे क्यों नहीं एक सुंदर चेहरे वाला इंसान बनाए रखा? रुखसाना, उन बातों को याद करो, जब मैने तुमसे कहा था कि मैं दिखने में सुंदर आदमी नहीं हूँ? हो सकता है तुमने उस समय इस बात को ज्यादा तवज्जो नहीं दी होगी। शायद तुमने मेरा बड़प्पन कहकर इस बात को टाल दिया होगा। लेकिन रुखसाना, एक बात बताओ, क्या चेहरा ही सब कुछ होता है?
रुखसाना, अभी भी मैं तुम्हें तहे-दिल से प्यार करता हूँ। तुम्हारे छोड़कर चले जाने की बात सोचकर ही मुझे आँखों के सामने तारें नजर आने लगते हैं। क्या तुम अपना वायदा भूल गई? जब तुमने लिखा था भले ही, तुम लंगड़े हो या अंधे हो, मैं तुम्हें अपनाने के लिए तैयार हूँ। इतनी जल्दी भूल गई तुम अपने वायदे को?
तुम मुझ पर ऐतबार करो, मैं कोई दगाबाज नहीं हूँ। तु ही मेरे लिए सब कुछ हो तुम्हारे सामने मैं बिल्कुल भी झूठ नहीं बोल पाता। तुम मेरी दुनिया हो, तुम ही मेरा ईमान हो।
रुखसाना,
रुखसाना,
पहले मैं माफी माँगता हूँ
पिछले दिनों में हुई
मेरी कुछ भूलों पर
मेरी हीन भावनाओं ने
मुझे नजरबंद कर रखा था।
मुझे मंझधार में छोड़कर मत चली जाना
मैं यहाँ गर्दिश में हूँ
और मेरे चारों तरफ खामोशी ही खामोशी
मुझे ताज्जुब हो रहा है,
तुमने मेरा इतना ख्याल क्यों रखा?
तुमने इस कदर मेरी हिफाजत क्यों की?
सारी जिंदगी खत्म नहीं हुई
अभी भी मुझे ऐसा लगता है
जिंदगी कहीं थम सी गई है
मुझे तुम्हारे आलिंगन की सख्त जरुरत है।
तुम्हारे मासूम चेहरे को छूने की इकलौती ख्वाहिश है।
मुझे अपनी उन सारी भूलों की जानकारी है
जिसन तुम्हारे दिल को गहरी चोट पहुँचाई है
मगर मेरा कोई गलत मकसद नहीं था
और न ही कोई साजिश
मुझे अपने किए पर अफसोस है
मुझे माफ कर दो
बार-बार पाँव पड़कर माफी माँगता हूँ
मुझे अत्यंत खेद है गुजरी बातों पर
मुझे माफ कर दो
मैं तुम्हारे प्यार
तुम्हारी मुस्कान
और तुम्हारे संस्पर्श के बिना
जिन्दा नहीं रह सकता हूँ।
शफीक ने एक बच्चे की भाँति क्षमा माँगते हुए कविता लिखी थी। उस ई-मेल को पढ़ते ही कूकी का क्रोध शांत हो गया। वह धीरे-धीरे फिर से अपनी पूर्वावस्था में लौट रही थी। उसके चारों तरफ से धीरे-धीरे कुहासा हटने लगा था। धीरे-धीरे फिर उसे पहाड़, नदी-नाले, बाग-बगीचे, बाजार और आदमी स्पष्ट नजर आने लगे। उस ई-मेल को पढ़ने के बाद कूकी ने फिर से उन फोटोग्राफ्स को निकाला। एक-एक फोटो को बड़ा करते हुए बड़े ध्यान से देखने लगी। उम्र बीतने के साथ किसी के शरीर में कैसे बदलाव आते हैं।
कूकी बहुत बारीकी के साथ उस फोटो के होठ देखने लगी। होठों की साइज तो दिमाग में बने पुराने फोटो के साथ मेल खा रही थी बस फर्क केवल इतना ही नजर आ रहा था कि ये होठ पुराने फोटो के होठों की तुलना में निष्प्रभ नजर आ रहे थे। कूकी ने उन भूरी-भूरी आँखों की तरफ ध्यान से देखा।
लंबा चेहरा उम्र के थपेड़ों ने गोल कर दिया था। ठोड़ी वैसी की वैसी ही था। मूँछे नहीं होने के कारण चेहरा बिल्कुल अलग दिख रहा था। ललाट तो पुराने जैसा ही दिख रहा था, मगर बाल झड़ जाने तथा बाल बनाने का तरीका बदल जाने से चेहरा एकदम बदलकर एक नई शख्सियत में तब्दील हो गया था।
कूकी ने कम्प्यूटर के एडाब फोटोशॉप साफ्टवेयर की सहायता से उस फोटोग्राफ के ऊपर नकली मूँछे बना दी तथा बालों को पहले की तरह सजा दिया।अब यह फोटो पुराने वाले शफीक के फोटो की तरह दिख रहा था। अब वह निश्चिन्त हो गई थी कि वह आदमी झूठ नहीं बोल रहा था। कूकी को अपनी गलती का अह्सास होने लगा। वह सोचने लगी,कि शफीक, उसके बारे में क्या सोचता होगा? एक शक्की औरत? जरुर उसके मन में यह ख्याल आता होगा कि मैने तो उसको एक देवी की तरह पूजा जबकि वह मुझे दगाबाज समझती है। मैने उसको एक देवी का रुप माना, मगर वह भी उन बावन औरतों से कम नहीं है।
कूकी समझ नहीं पा रही थी कि शफीक को क्या उत्तर लिखा जाए? क्या 'सॉरी' कह देने से काम चल जाएगा? पता नहीं क्यों, कम्प्यूटर के की-बोर्ड पर अंगुलियाँ थिरक नहीं पा रही थी। जहाँ शफीक बिना कुछ गलती किए क्षमा माँगने के लिए तत्पर रहता है, तब मैं क्यों नहीं? अगर कोई आदमी किसी से माफी माँग लेता है तो क्या वह छोटा हो जाता है? यही सोचते हुए आखिर में कूकी ने लिखा था, "सॉरी, शफीक, मेरे कहने का यह मतलब नहीं था। सही मायने में तुम्हारा चहरा इतना बदल गया है कि देखने वाला कोई भी भ्रम में पड़ जाएगा। अगर तुमने पहले यही फोटो भेजा होता तो शायद कुछ भी दिक्कत नहीं होती। मैने तुम्हे आज तक कभी भी नहीं देखा।मुझे आज के बाद तुम्हारे इस चेहरे को दिमाग में उतारना होगा। आज के बाद तुम्हारे इस चेहरे के सामने प्रणय निवेदन करना होगा। मेरे मन की अवस्था तुम जरुर समझ रहे होगे।"
ई-मेल भेजने के बाद एक पल के लिए कूकी अन्यमनस्क हो गई। यह भी हो सकता है, अगर शफीक उसे एक सुंदर स्त्री सोच रहा होगा और वह उसकी कल्पना के अनुरुप नहीं निकली तो शफीक का दिल धराशायी हो जाएगा। अब तक तो कूकी का चेहरा भी पूरी तरह से बदल गया है। जब भी उससे मुलाकात होगी, वह कहीं यह न सोच ले, "सो मच क्लाईÏम्बग फॉर सच ए नेगलीजीबल हाइट?"
"सो मच क्लाइम्बिंग फॉर सच ए नेगलीजीबल हाइट।"कूकी सोते वक्त अनिकेत को देखकर सोच रही थी कि सोते हुए हर इंसान ही मासूम लगता है अनिकेत गहरी नींद में सो रहा था। उसका चेहरा बड़ा ही शांत और मासूम लग रहा था। एक अद्भुत सी शांति उसके चेहरे पर छाई हुई थी।
जैसे ही उसकी नींद खुलेगी, संसार का सारा मायाजाल उसके मन और शरीर पर हावी होने लगेगा। और फिर से वह अपना रुख उन अंतहीन सपनों की तरफ करेगा, जिनकी कोई थाह नहीं है। वही मायाजाल उसे लड़ने के लिए उकसाएगा और वह सजग होते हुए भी निनान्वें के चक्कर में झूलकर रह जाएगा।
कुछ घण्टे पहले ही डॉक्टर अनिकेत का चेकअप करके गए हैं तथा कहकर गए हैं, "उन्हें सोने दीजिए। जब तक अपने आप नींद नहीं खुलती तब तक उन्हें आराम से सोने दीजिए। किसी भी प्रकार की ऐसी बात मत कहिएगा कि उन्हें टेंशन हो जाए। जितना टेंशन-फ्री रहेंगे उतना ही जल्दी ठीक होंगे। घर में कुछ दिनों से टेंशन चल रहा था क्या?
कूकी क्या उत्तर देती? आज के जमाने में हर किसी को हजारो टेंशन हैं। पहले लोग खाने को रोटी, पहनने को कपड़ा और रहने को छोटा-मोटा मकान मिल जाने पर खुशी से जिंदगी बिताते थे। उन्हें किसी प्रकार का कोई टेंशन नहीं होता था। थोड़ा बहुत समय मिलने पर भजन-कीर्तन तथा नाच-गाने में व्यस्त रहते थे। मगर आज के आदमी की इच्छाओं की कमी नहीं। प्रतिस्पर्धा की दौड़ में वह अपने आपको भी भूल जाता है। उसे तो यह भी याद नहीं रहता कि आखिर उसके जीवन का उद्देश्य क्या है?
कूकी को समझ में नहीं आ रहा था कि किन कारणों की वजह से अनिकेत का ब्लड-प्रेशर बढ़कर खतरनाक 230 मिमी (पारा) के स्तर तक पहुँच गया है। उसे ऐसी कौन सी बात की चिंता सता रही थी? दुनिया में समस्याओं की कमी तो किसी के पास नहीं हैं।कूकी ने सुबह चाय पीते समय अनिकेत को बहुत समझाया था, "ऐसा कोई जरुरी नहीं होता कि हर बच्चा इंटेलीजेंट ही निकले ?क्यों ऐसा सोचते हो कि सब बच्चें क्लास में टॉप ही करेंगे? आजकल तो बहुत सारे मेडिकल और इंजिनियरिंग के प्राइवेट कॉलेज खुल गए हैं। थोड़ा बहुत पैसा खर्च करने से अपने बच्चों का बंगलूरू या पूना के किसी भी अच्छे कॉलेज में दाखिला करवाया जा सकता है।"
अनिकेत ने झल्लाकर उत्तर दिया था, "तुम क्या यह सोच रही हो, कि मुझे पैसा खर्च करने में डर लग रहा है? ऐसी बात नहीं है। मेरा कहने का मतलब था, हमारा बेटा पूरी तरह से बर्बाद हो गया है। अगर वह मन लगाकर पढ़ता तो आज उसे अच्छे गवर्मेंट कॉलेज में एडमिशन मिल जाता। प्राइवेट कॉलेजों का स्टेंडर्ड बहुत ही खराब है। कालोनी के लोग क्या कहेंगे, तुम्हारा बेटा प्राइवेट कॉलेज से इंजिनियरिंग कर रहा है? उसका आई.आई.टी. में सलेक्शन नहीं हुआ। खैर कोई बात नहीं, कम से कम एन.आई.टी या गवर्नमेंट इंजिनियरिंग कॉलेज में तो हो जाना चाहिए था।"
कूकी ने अनिकेत को समझाने का प्रयास किया "आप चिंता मत कीजिए। लड़के का कैरियर चौपट नहीं होगा। ऊपर भगवान है ना? अगर भगवान ने हाथ-पाँव दिए हैं तो खाना-पीना भी जरुर देगा।"
अनिकेत का पारा आसमान छूने लगा।
"भोंदू माँ का भोंदू बेटा।"
"मतलब?"
"भोंदू मा का भोंदू बेटा नहीं तो और क्या? तुमने मैट्रिक सेकेण्ड़ डिवीजन में पास की है ना? और आर्टस में एम.ए. करके कौन-सा निहाल कर दिया है ? ऐसे भी आर्टस कोई सब्जेक्ट होता है क्या?"
छोटी-छोटी बातों में अनिकेत इस तरह बार- बार कूकी को अपमानित करता रहता था। कूकी यह नहीं समझ पा रही थी,कि अनिकेत ने उसमें ऐसा क्या देखकर शादी की थी? शादी से पहले का सारा प्यार कहाँ हवा हो गया। उसे ऐसा लग रहा था मानो वे प्यार की सारी बातें पिछले जन्म की कोई दास्तान हो।कूकी अब अनिकेत के साथ एक अलग जीवन जी रही है । सवेरे-सवेरे बहस करके मूड़ खराब करना ठीक नहीं है। यही सोचकर कूकी अपमान के सारे घूँट पी गई और अनिकेत के साथ बातचीत को वहीं विराम दे दिया। मगर वह अनिकेत की परेशानी के कारणों को समझ नहीं पाई। कैसे उसके मन की बात सामने आती? वह समझ नहीं पा रही थी, अनिकेत वास्तव में क्या चाहता था? कई सालों से प्रमोशन के पीछे वह भागा दौड़ी कर रहा था।उसने बहुत ही अशांति में वे दिन बिताए थे। हर साल जब प्रमोशन का समय आता था और उसे प्रमोशन नहीं मिल पाता था, तब घर में क्या हुडदंग मचता था वह कूकी ही जानती थी। मगर जब अनिकेत को प्रमोशन मिल भी गया तो क्या वह खुश रह पाया? नहीं, उसके स्वभाव में कोई फर्क नहीं पड़ा था। पुराने तौर तरीके से ही जिंदगी की गुजर बसर हो रही थी। भले ही, तनख्वाह पैंतीस हजार प्रति महीने से बढ़कर बयालीस हजार हो गई थी, मगर जीवन शैली में कोई परिवर्तन नजर नहीं आ रहा था। हेडआफिस से तबादला फील्ड में हो गया। फील्ड में जाकर वह प्रोडक्शन लाइन में काम करने का सोचकर मन ही मन बल्लियों उछल रहा था। जब वह हेडआफिस मे काम करता था तब वहाँ बैठकर/फील्ड में काम करने वाले आफिसरों के ठाट-बाट देखकर चकित रह जाता था। फील्ड़ में रहने से खूब सुविधाएँ मिलती हैं।उसके नीचे कई आदमी काम करने के लिए मिलेंगे। एक टीम के साथ मिलकर काम करने का मजा कुछ और ही होता है, जबकि हेडआफिस में कंप्यूटर पर बैठकर केवल डाटा भरने का काम उसे बहुत ही नीरस और उबाऊ लगता था ।
अनिकेत का जब से फील्ड़ में तबादला हुआ है, वह सुबह जल्दी घर से बाहर निकल जाता है, मगर घर आने का कोई ठिकाना नहीं। बीच-बीच में कभी ब्रेक -डाऊन होने से अथवा कोई इमरजेन्सी पड़ जाने से आधी रात को भी ड्यूटी जाना पड़ सकता था। इस प्रकार की दिक्कतें नौकरी के शुरुआती दौर में भी आती थी, मगर उस समय अनिकेत जवान था और बच्चें भी छोटे थे। आजकल इस प्रकार के ब्रेक -डाऊन अटैंड करने से अनिकेत चिड़चिड़ा जाता है। घर की तरफ आवश्यक ध्यान नहीं दे पाने के कारण उसका मन दुखी हो जाता है। कभी-कभी दुखी होकर कहने लगता है, इस फील्ड की तुलना में तो आफिस का काम ही ठीक था। कम से कम ए.सी. रुम में आराम से बैठने को समय मिल जाता था। सही देखा जाए तो कोई भी इंसान किसी भी परिस्थिति में ज्यादा समय तक खुश नहीं रह सकता। ना दाल-रोटी खाने में और ना ही हलवा-पूरी खाने में। ना चाँद के ऊपर रहने में और ना ही जल-महल में रहने से। हमेशा मन किसी न किसी चीज को ना पाने के दुख से दुखी रहता है।
उस दिन कूकी ने हँस कर कहा था, "तुम किसी भी परिस्थिति में खुश नहीं रह सकते हो। जब कोई एक लक्ष्य की प्राप्ति हो जाती है तो दूसरा लक्ष्य मुँह खोले खड़ा रहता है। अगर भगवान् दुनिया की सारी सुख-सुविधाएँ भी तुम्हें दे दे तो भी तुम खुश नहीं रह पाओगे?"
कूकी की बात सुनकर अनिकेत का क्रोध भड़क उठा, "तुम्हें कहने में क्या जाता है? तुम्हें तो कुछ करना नहीं पड़ता है। तुम क्या जानो पीर पराई ? तुम्हें तो केवल घर में बैठकर रोटियाँ ही तोड़ना है। चूल्हे-चौके से बाहर निकलोगी तब न बाहरी दुनिया का पता चलेगा? और वैसे भी तुम्हारी आधी से ज्यादा जिंदगी तो बीमारी में पार हो गई। अगर तुम्हें मेरी तरह मेहनत करनी पड़ती तो ये सब बातें तुम्हारे मुँह से कभी नहीं निकलती ।"
कूकी चुपचाप अनिकेत की डाँट सुनती रही। वह उसके मुँह नहीं लगना चाहती थी, वह जानती थी कि अगर वह कुछ कहने लगेगी तो अनिकेत क्रोधित होकर जोर-जोर से चिल्लाने लगेगा। और मोहल्ले वाले भी अनिकेत का तमाशा देखने लगेंगे। अनिकेत का यह चिड़चिड़ा स्वभाव आज का नहीं था, इसी वजह से अनिकेत की तबीयत खराब हुई होगी, कूकी के लिए सोचना बेबुनियाद था। कहीं अनिकेत घर की कुछ समस्याओं को लेकर तो चिंतित नहीं हो गया? कुछ दिन पहले भुवनेश्वर में उनके मकान को किसी गुंडे आदमी ने दबा दिया है। शुरु-शुरु में वह मकान का किराया समय पर दे देता था। मगर आजकल उसने किराया देना बंद कर दिया है। जब भी कोई भाड़ा माँगने जाता है तो जान से मारने की धमकी देने लगता है, इसलिए कोई भी उसके पास दोबारा जाने की हिम्मत नहीं करता था। कोई सगा-संबंधी भी उसके पास जाने का खतरा उठाना नहीं चाहता था। अनिकेत ने अपने खून-पसीने की कमाई के सात-आठ लाख रुपए खर्च करके एक सुंदर सा डुप्लेक्स घर बनावाया था। पता नहीं, अनिकेत का छोटा भाई कैसे उस गुंडे आदमी के चंगुल में फंस गया। उसने बिना कुछ लिखा-पढ़ी किए वह घर उसको किराए पर दे दिया। उस आदमी का भी उसी कॉलोनी में मकान बन रहा था। उसने अनिकेत के छोटे भाई को यह भी कहा था कि जैसे ही उसका मकान पूरा हो जाएगा, वह यह मकान छोड़ देगा। मगर उस बात को हुए पूरे आठ साल बीत गए। उस आदमी ने एक यक्ष की भाँति उस मकान को अपने कब्जे में कर रखा है।
जब भी अनिकेत उसको मिलने जाता है वह आदमी कोई न कोई बहाना बनाकर इधर-उधर गायब हो जाता है। उसकी सुंदर बीवी अनिकेत से मीठी-मीठी बातें करके मुख्य मुद्दे से उसे घुमा देती है। वह कहने लगती है, "आप चिंता मत कीजिए। जल्दी ही हम यह घर छोड़ देंगे। मेरे पति जिस झिंगा कंपनी में काम करते हैं, वह कंपनी घाटे में चल रही है। इस वजह से भाड़ा देने में देर हो रही है। अगले महीने तक पुराना सारा बकाया चुका देंगे। आपको यहाँ आने की भी जरुरत नहीं पड़ेगी।हम सारा पैसा बैंक ड्राफ्ट बनाकर आपके पते पर भेज देंगे।"
उसकी बीवी की ये बातें सुनकर अनिकेत खाली हाथ लौट आया था। वह केवल उसके हाथों से बनी हुई अदरक की चाय पीकर ही संतुष्ट हो जाता था।
कूकी को उसके पास जाना बिल्कुल पसंद नहीं था। फिर भी एक बार वह किराया वसूलने उनके पास गई थी। तब उसकी बीवी बाहर नहीं निकली थी बल्कि वह गुंडा आदमी बाहर निकल कर आया था। कहने लगा था, "मैड़म, चाय पीकर जाइएगा। मिसेज पड़ोस में गई हुई है। जल्दी ही आ जाएगी।" उस आदमी की लाल-लाल आँखें देखकर कूकी ड़र जाती थी। केवल इतना ही पूछ पाती थी, "आप घर कब खाली कर रहे हैं?"
भर्राए हुए गले से वह आदमी कहने लगता था, "अचानक बोल देने से तो घर खाली नहीं किया जा सकता है। कुछ समय लगेगा। कुछ दूसरा जुगाड़ भी करना पड़ेगा। आपका भाड़ा देढ़ साल से हमारे पास रखा हुआ है। अगले हफ्ते आइए, सारा भाड़ा मैं चुकता कर दूँगा।"
"अगले हफ्ते क्यों? अगले हफ्ते तो मुझे मुंबई जाना है।"
"ठीक है। कोई बात नहीं। आप वहाँ का पता बता दीजिएगा, मैं ड्राफ्ट भेज दूंगा।"
और बिना कुछ ज्यादा बोले कूकी घर लौट आती थी। उसे मन ही मन डर लग रहा था, वह गुंडा आदमी कुछ भी कर सकता था। कूकी के लिए कोर्ट-कचहरी में जाने के सिवाय और कोई रास्ता शेष नहीं था। मगर कोर्ट-कचहरी में इतनी भागा-दौड़ी कौन करेगा? तब वह सोचने लगी थी, स्थानीय पुलिस को कुछ खिला पिला कर मदद ली जाए। मगर इस बात की भी कोई गारंटी नहीं थी कि पुलिस भी उसको मकान खाली करवाने में मदद करेगी।
लौटते समय ट्रेन पर छोड़ने आए उसके एक भतीजे ने कूकी से कहा था, "चाची, आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए। लोहे को लोहा काटता है। मैं अपने साथ कुछ दादा लोगों को लेकर जाऊँगा। देखता हूँ कितना दम है उसमें?" साला, कैसे घर खाली नहीं करेगा?"
कूकी ने भतीजे से कहा था, "ऐसा करना क्या उचित होगा? कहीं मारपीट हो गई तो फौजदारी केस हो जाएगा। तब मुश्किल में फँस जाएँगे हम लोग?"
चार दिन के बाद भतीजे ने फोन किया था, "चाची, मैं भाड़े के कुछ दादा लोगों को लेकर उसके पास गया था। मगर बदकिस्मती से वे भाई लोग भी उसके जानने वालों में से निकले। उल्टा उसके घर चाय-नाश्ता किए और वापस मेरे पास आ गए। वे भाई लोग कह रहे थे "अनिल भाई, तुम्हें चिंता करने की जरुरत नहीं है। वह ऐसा आदमी नहीं है। जल्दी ही घर छोड़ देगा। तब भी अगर नहीं छोड़ता है तो हम लोग हैं ना?हम उसे समझा-बुझाकर घर खाली करवा देंगे।"
टेलिफोन पर बात करते हुए भतीजे से अनिकेत को पता चला था कि वह आदमी ब्लू प्राऊन कंपनी में सिक्युरिटी का काम करता है। गाँव वालों और ब्लू प्राऊन कंपनी के बीच बार-बार टकराव होता रहता है, इसलिए इस कंपनी ने उस गुंडे आदमी को सिक्युरिटी के रुप में वहाँ रखा है। ताकि गाँव वाले उससे डर कर शांत रहें तथा कोई दंगा-फसाद न करें।
टेलिफोन का रिसीवर नीचे रखकर अनिकेत सिर पकड़कर बैठ गया, "कूकी, ऐसा लगता है मकान हाथ से निकल गया। आज उस मकान की कीमत कम से कम सोलह-सत्रह लाख होगी और अगर यह मकान बेच दें तो कम से कम बीस-बाईस लाख रुपए मिल जाएँगे।"
अनिकेत की बात सुनकर कूकी के दिल को भयंकर आघात लगा था। वह भी जानती थी, कोई घर बनाना बच्चों का खेल नहीं है। लाखों रुपए की संपत्ति से उसे हाथ धोना पड़ेगा, सोचकर वह देवर को इस मूर्खतापूर्ण काम के लिए कोसने लगी थी। उसको कोसते देखकर अनिकेत ने अपने भाई की तरफदारी करते हुए कूकी को बहुत डाँटा था। फिर भी कूकी ने अपनी समझदारी का परिचय देते हुए अनिकेत को समझाया था, "हमारा मकान कोई भी हमसे छीन नहीं सकता है। अभी तक हमने किसी का बुरा नहीं किया है तो क्यों भगवान हमारा बुरा करेगा?"
तब भी अनिकेत के चेहरे पर चिंता की रेखाएँ साफ-साफ दिखाई दे रही थी, "आप चिंता मत कीजिए। जो किस्मत में होगा, देखा जाएगा। अगर मकान जाना लिखा होगा, तो चला जाएगा। ऐसा ही समझ लेंगे कि हमने अपना मकान कभी बनाया ही नहीं था। और वैसे भी उस मकान में हम कितने दिन रुके हैं? एक दिन से ज्यादा नहीं। उस मकान के प्रति हमारा कोई मोह भी नहीं है। अगर हाथ से निकल भी गया तो कोई दुःख की बात नहीं है। ऐसा ही सोचेंगे हमारे नसीब में यह मकान लिखा ही नहीं था। वैसे भी हमारा जीवन तो कंपनी के क्वार्टर में कट जाएगा। रही बच्चों की बात, बच्चें कौन-कहाँ रहेंगे? उनका भी कोई निश्चित ठिकाना नहीं है। कितने साल और जिएंगे, जो इतनी चिंता करेंगे। मेरी तो बहुत पहले से इच्छा हो रही है, जीवन का शेष भाग हिमालय पर स्थित किसी आश्रम या गुफा में बिताऊँ। तुम देखोगे, अंत में, मैं हिमालय पर चली जाऊँगी।"
"ऐसे जो तुम्हारे मन में आता है, वह बोलती जाती हो।" अनिकेत ने कूकी को फटकारते हुए कहा।
"पता नहीं, तुम्हारे मन में क्या है? घर-संसार बसाने के बाद भी तुम्हारा मन घर-संसार में नहीं लगता है। जरा सा भी सांसारिक दायित्वों की जानकारी नहीं है। कभी गृहस्थ का बोझ अपने कंधों पर उठाई हो? बच्चों की पढ़ाई पूरी कराने से लेकर उनके कैरियर बनाने तक की बातों के बारे में कभी सोचा है? जो घर हाथ से निकल रहा है, उसका अभी तक लोन भी खत्म नहीं हुआ है। कभी बैंक जाकर पैसे निकलवाई हो? अगर बैंक जाती, तब पता चलता कि लोन कटने के बाद मुझे कितने पैसे मिलते हैं? कभी अनिकेत के साथ कंधे-से कंधा मिलाकर चलने की सोची हो? घर में खाली बैठे-बैठे केवल इधर-उधर के सपने देखती रहती हो।
कूकी का दिल रोने को कर रहा था। मन ही मन उसे डर भी लग रहा था, कहीं अनिकेत को उसके 'गर्भ-गृह' के बारे में पता तो नहीं चल गया? नहीं, ऐसा तो संभव नहीं है। अगर उसको पता चल गया होता तो क्या वह उसको घर में रहने देता? उसे दुख लग रहा था कि अनिकेत ने कभी भी उसको किसी काम के योग्य नहीं समझा। और उसने न ही उसको कुछ कर दिखाने का मौका कभी दिया। बार-बार इस चीज को लेकर वह उसे प्रताड़ित करता रहता था। उसे हर काम अपने हाथ से करने में ही अच्छा लगता था। काम पूरा होने पर वह संतुष्ट हो जाता था। वह बाहर का कोई भी काम कूकी को करने नहीं देता था। फिर भी उसे कूकी पर भरोसा नहीं हो रहा था। शायद कूकी के अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन नहीं करने के कारण तो ऐसा नहीं हुआ है? कूकी का मन अपने गृहस्थ-जीवन में बिल्कुल नहीं लग रहा था, शायद यही कारण था कि वह शफीक के प्रेम में रंग गई।वह एक किशोरी की भाँति सुदूर उड़ जाने के सपने देखती थी। अनिकेत बेचारा अकेले ही कोल्हू के बैल की तरह संसार का बोझ ढोता जा रहा था।
अनिकेत अभी भी गहरी नींद में था। उसे नींद में ना तो अपने बच्चों के कैरियर की चिंता थी, ना किसी प्रमोशन की चिंता और ना ही मकान का अपने हाथों से निकल जाने की चिंता। वह एक दम चिंता मुक्त होकर सो रहा था। कूकी यह देखकर मन ही मन अपने आपको धिक्कारने लगी। अगर अनिकेत एक अच्छा जीवन साथी होता तो क्या वह आज तक अपने घर के आधे बोझ को अपने कंधों पर नहीं उठा लेती? अगर वह उसे कुछ काम करने की आजादी देता, तो क्या अनिकेत को आज इस तरह हाथ-पैर समेटकर बिस्तर पर लेटे रहना पड़ता?
खुदा-न-खाँस्ता, अगर अनिकेत को कुछ हो जाता है तो वह क्या करेगी? उसे तो दुनियादारी की कुछ भी जानकारी नहीं है। उसे तो अनिकेत के बैंक खातों, संचित पूँजी तथा देनदारों के खातों के बारे में भी तनिक ज्ञान नहीं है। कितने पैसे उसने शेयर में लगाए हैं और कितने पैसे ईश्योरेंस में?घर के परचूनी सामान में मासिक कितना खर्च आता है? कैसे बनता है महीने का बजट? क्या बच्चे उस समय अपनी अनाड़ी माँ को झेल पाएँगे?
अनिकेत कभी-कभी उसको सफेद हाथी कहकर उसका मजाक उड़ाता था। तुम्हारा पालन-पोषण करना किसी एक सफेद हाथी के पालन-पोषण करने से कम नहीं है।मैंने लाखों रुपए तुम्हारे ऊपर पानी की तरह बहाए हैं।
शफीक ने लिखा था, "इफ यू आर रिएली माइन, आइ विल पुट यू इन द टॉप आफ माइ मोस्ट वेल्यूएवल गुड्स। माइ एंटीक, डायमंड पर्ल्स एंड आल रिसेज। आइ विल पुट इन ग्लास शो-केस एंड पॉलिश यू एवरीडे। किप यू ग्लिटरिग, एंड आइ विल आनर, चेरिश, स्कवीज, होल्ड यू टाइट एट नाइट। आइ विल लेट यू कैरी मी एंड प्लेस मी आन योर पिलो राइट बाई योर साइड, किस यू गुड नाइट एंड होल्ड आल थ्रू द नाइट।"
"इफ यू आर रिएली माइन, आई विल पुट यू इन द टॉप आफ "माइ मोस्ट वेल्यूएवल गुड्स। माई एंटीवस, डायमंड पल्र्स एंड आल रिसेज।" ये बातें शफीक ने लिखी थी। कूकी क्या कोई सामान है? कोई शो-पीस है? जिसे पाने में गर्व तथा लोगों को दिखाने में खुशी की अनुभूति की जा सके।
जैसे कि कूकी का खुद का कोई अस्तित्व नहीं हो। वह केवल सफेद हाथी हो। वह केवल अपने पति के लिए गर्व की वस्तु है? क्या वह एक शो-पीस है, जिसे जो कोई खरीद लेगा, वह अपनी खरीददारी पर गर्व करने लगेगा?
शफीक ने लिखा था, "रुखसाना, आज मैं बहुत खुश हूँ। तुम्हें खुशी की यह खबर सुनाने के लिए मैं बुरी तरह से बेताब हूँ। मेरे पैराथीसिस का कोलम्बिया यूनिवर्सटी में चयन हो गया है। अगले महीने के आखिरी हफ्ते में मुझे पेरिस में इंटव्र्यू के लिए बुलाया गया है। लेकिन, रुखसाना, यूनिवर्सिटी ने नब्बे पैराथीसिस का चयन किया है जबकि पोस्ट केवल तीन खाली है। बहुत कड़ी प्रतिस्पर्धा है। पता नहीं, मुझे क्यों डर लग रहा है? मेरा चयन होगा या नहीं? तुम्हें पाने के लिए एकमात्र यही कठिन साधना बची है। तुम तो मेरे लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं हो। अगर तुम्हारी दुआ मुझे नसीब हो गई तो मेरा काम हो जाएगा। मेरी गोडेस, मुझे दुआ दोगी न?"
अभी कूकी ने ई-मेल पूरा पढ़ा भी नहीं था कि पास में ही फोन की घंटी बजने लगी। फोन पर कोई दूसरी तरफ से शांत लहजे में बोलने लगा, "हेलो, रुखसाना।"
कई दिनों से कूकी ने रुखसाना नाम को पूरी तरह से आत्मसात कर लिया था इसलिए जैसे ही उसने फोन पर रुखसाना नाम सुना तो उसकी सारी सोई हुई इंद्रियाँ जाग उठी।
"कौन शफीक?" कूकी ने खुशी से उछलते हुए कहा। मगर थोड़ी ही देर बाद उसे डर सताने लगा, "तुमने मुझे फोन क्यों किया? मैने तो तुम्हे फोन करने के लिए मना किया था। तुम तो जानते ही हो हमारे दोनो देशों के बीच तनातनी का माहौल चल रहा है। तुम्हारा ऐसे हालात में मुझे फोन करना खतरनाक साबित हो सकता है।"
"मुझे यह बात अच्छी तरह मालूम है। मगर तुम्हारी मधुर आवाज सुनने की बहुत तमन्ना हो रही थी। मै अपने आपको उस आवाज को सुनने के लिए रोक नहीं पाया।"
"मैं तो अभी-अभी तुम्हारा ई-मेल ही पढ़ रही थी। मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि तुम्हारे पेराथीसिस का सलेक्शन हो गया है।"
"केवल तुम्हारी वजह से ही सलेक्शन हो पाया है अन्यथा इतनी कड़ी प्रतिस्पर्धा में मेरे पेराथीसिस का सलेक्शन होना नामुनकिन था। तुम मेरी गोडेस हो। यू आर द पार्ट आफ अल्लाह।"
"पागल कहीं के, जो मन में आता है, बोलते रहते हो।"
"मैं दिल से कह रहा हूँ, रुखसाना। शुभान अल्ला दुम्मा बभी दमदिका, बाता बाराकास्मुका वा ता-आला जाददुका, वा ला-इल्लाहा बैरूक बिस्मिल्ला ही रेहमानीर रहीम।"
"तुम क्या बुदबुदा रहे हो? मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।"
"यू आर माई गोडेस आलमाइटी। यही तो मैं कह रहा हूँ। सही बताऊँ, रुखसाना, मैं तुम्हारे सामने नमाज अदा करना चाहता हूँ।"
उस दिन शफीक ने दिल खोलकर बातें की थी, मगर कूकी उससे बात करके पूरी तरह नर्वस हो गई थी। कूकी के लिए दीवाने शफीक को काबू में करना मुश्किल होता जा रहा था। शफीक का ऐसा मानना था कि उसके जीवन की हर सफलता के पीछे कूकी का हाथ है।कूकी जबसे उसके जीवन में आई उसके ऊपर लगा हुआ केस खारिज हो गया। उसे विदेशों में कला के क्षेत्र में काफी ख्याति प्राप्त हुई।शफीक इस तरह अपनी सफलताओं की एक लम्बी चौड़ी सूची कूकी के नाम कर देता था। कूकी उसकी बातों को बेशक तवज्जों नहीं देती थी, क्योंकि वह जानती थी कि अगर उसकी वजह से शफीक के जीवन में तरक्की आ रही है तो फिर अनिकेत के जीवन में क्यों नहीं? अनिकेत अच्छा-खासा पैसे कमाने के बाद भी अपनी खुशहाल जिंदगी क्यों नहीं जी पा रहा है?
शफीक कभी उसको फरिश्ते के नाम से संबोधित करता था तो कभी देवी के नाम से।
"एवरी नाइट आइ ड्रीम ऑफ़ हेवन। आइ ड्रीम देट दे आर लुकिंग फॉर एन एंजिल वन देट वेन्ट मिसींग द वेरी डे यू स्टेप्ड इन्टू माइ लाइफ। द डे आल माइ सोरो वानिश्ड एंड आइ टूक ए स्टेप इन्टू इम्पोसिबल क्रोसिंग द मार्जिन फ्रॉम नेचुरल एंड द सुपर नेचुरल।"
कूकी सोचने लगी, काश! ये सारी बातें सही होती। काश! भगवान् ऐसा जादू कर देता, मेरे पाँव पड़ते ही घर में चंदन की खुशबू चारों तरफ फैलने लगती और मेरी वजह से किसी का घर खुशी से खिलखिला उठता।
कूकी ने एक बार शफीक से पूछा था, "अगर तुम्हारा कहा हुआ सच में बदल जाता और मैं एक फरिश्ता बन जाती और अल्लाह मुझे जादू की छड़ी दे देते तो मैं जादू की छड़ी को यही हुक्म देती, जाओ दोनो देशों के बीच की दीवार गिरा दो, दोनो देशों के बीच की दुश्मनी को मिटा दो। देखते-देखते मेरे सामने दोनो देश एक हो जाते।"
इस विषय पर शफीक ने कोई टीका -टिप्पणी नहीं की। उसने अपने ई-मेल में कुछ दूसरी ही बातें लिखी थी, "जानती हो रुखसाना, नगमा के निकाह की बात फाइनल हो गई है। लड़का कम्प्यूटर इंजिनियर है और वह अमेरिका में किसी कंपनी में नौकरी कर रहा है। मेरी ख्वाहिश है, मेरे पेरिस जाने से पूर्व उसका निकाह हो जाए। तुम्हारी क्या राय है? ठीक रहेगा न?
तबस्सुम चाहती है कि मैं नगमा का निकाह करने से पहले मेरी पहली बीवी निसार, नगमा की माँ से इस बारे में बात करूँ। मगर मैं इस विषय पर उससे कोई बात नहीं करना चाहता हूँ। मैं चाहता हूँ कि उससे बिना कुछ बात किए ही नगमा की शादी हो जाए। तुम क्या चाहती हो?"
कूकी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या राय दे। उसकी राय से क्या लेना-देना? ना तो उसने शफीक को देखा है और ना ही तबस्सुम को? ना तो उसने निसार को देखा है और ना ही नगमा को? न उसको उनके लाहौर के घर का पता है और ना ही गांव के घर का?
कूकी तो यह भी नहीं जानती है, कि शफीक अपनी पहली बीवी निसार को क्यों पसंद नहीं करता? जबकि निसार से पैदा हुई दोनो बच्चियों को वह अपने साथ रखता है। कूकी क्या राय देती? उस जगह के खान-पान, रहन-सहन, बोल-चाल तथा लोक परम्पराओं की उसको तनिक भी जानकारी नहीं है।
कूकी अपनी क्या बात रखती? जब उसे नगमा और निसार के बीच आपसी सम्बंधों की कोई जानकारी नहीं है। माँ-बेटी के बीच पटती भी है या नहीं? कूकी को फिर भी ऐसा लगता था कि शफीक को इस मामले में कम से कम निसार की राय अवश्य लेनी चाहिए। चूँकि निसार ही नगमा को जन्म देने वाली माँ है। उसका हक़ नगमा के ऊपर तबस्सुम से ज्यादा बनता है।
यही सारी बातें सोचकर कूकी ने लिखा था, "शफीक, मैं यह तो नहीं जानती कि तुम क्यों निसार को पसंद नहीं करते? क्यों उससे बात करना नहीं चाहते? तुम दोनों के बीच में इतनी कटुता क्यों भरी हुई है? तुमने निसार से कब शादी की और कब तलाक ले लिया? शफीक, तुम उससे इतनी नफरत क्यों करते हो? फिर भी मैं तो यही चाहूँगी, कि तुम्हें कम से कम एक बार निसार की राय जरुर लेनी चाहिए, क्योंकि यह नगमा के जीवन का सवाल है और माँ होने के कारण उसका पूरा-पूरा हक बनता है।"
शफीक ने उस ई-मेल का उत्तर दिया था, "तुम्हारी बात सही है। मैं निसार से बुरी तरह नफरत करता हूँ। वह मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है। उसको पसंद ना करने के पीछे हजारों कारण हैं। पहला तो, यह कि वह अनपढ़ होने के साथ-साथ फ्रिजिड भी है। उसको मेरा परवरसन बिल्कुल भी पसंद नहीं है। इसके अलावा, वह शक्की तथा झगड़ालू औरत भी है। रुखसाना, जानती हो जब मेरी उम्र केवल उन्नीस साल की थी, उस समय मैं कॉलेज में पढ़ रहा था, तब मेरा निकाह निसार के साथ हो गया था। तुम्हें पता नहीं है, वह बड़े ही दुष्ट स्वभाव की औरत है। मैं उसकी शक्ल भी देखना नहीं चाहता।"
शफीक का ई-मेल पढ़कर कूकी को मन ही मन निसार पर दया आने लगी। उसके अनपढ़ रहने में उसकी क्या भूमिका थी? बेचारी, निसार। पता नहीं, किस संदर्भ में शफीक उसको फ्रिजिड कहता है? अधिकतर औरतें अज्ञानवश तथा भ्रम के कारण फ्रिजिडिटी का शिकार बनती हैं। सेक्स के विषय पर चर्चा करना आज तक हमारे समाज में खराब माना जाता है, इसी प्रकार सेक्सी होना भी हमारे समाज में एक दुर्गुण के रुप में देखा जाता है। मगर यह बात दूसरी है, बदलते हुए समय को देखते हुए सेक्सी शब्द को कुछ अच्छे विशेषण के रूप में भी इस्तेमाल किया जा रहा है। जैसे ' ब्यूटीफुल एंड सेक्सी' यह युगल शब्द मुहावरे में बदल गया। जहाँ तक परवर्सन की बात उठती है, दुनिया की कौन पत्नी चाहेगी कि उसका पति परवर्टेड़ हो? कूकी खुद भी अगर पढ़ी-लिखी औरत नहीं होती तो क्या वह इन सारी बातों के बारे में जान पाती? उसका परिचय जितना शफीक की जिंदगी से नहीं था, उससे कई गुणा ज्यादा निसार की जिंदगी से था।
तबस्सुम एक बिंदास जीवन जीने वाली होने के बाद भी निसार के प्रति कोमल भावनाएँ रखती थी।कूकी उसकी इस नेकदिली के लिए तबस्सुम की तारीफ करना नहीं चूकती थी। कम से कम वह इतना तो सोचती थी कि शफीक को नगमा के निकाह के लिए निसार की राय लेनी चाहिए।
तबस्सुम और कूकी दोनों का एक ही राय होने के कारण शफीक बाध्य होकर अपने गाँव गया था।शफीक ने अपने गाँव जाने से पहले कूकी से तीन दिन तक बात नहीं कर पाने के लिए दुख जताया था। जब-जब वह अपने शहर को छोड़कर कहीं बाहर जाता है, तब-तब वह कूकी के बारे में सोचकर दुखी हो जाता था। उसको ऐसा लगता था जैसे वह कूकी को छोड़कर किसी विदेश-यात्रा पर जा रहा हो। उसका स्टूडियो -कम-स्टडीरुम उसके और कूकी के लिए मानो शयन कक्ष हो। उस कमरे में वह तबस्सुम को छोड़कर किसी और को आने की इजाजत नहीं देता था। यहाँ तक कि वह उस कमरे में तबस्सुम के साथ संभोग भी नहीं करता था। उसने वह कमरा मानो केवल कूकी के लिए आरक्षित रखा हो। रोजमर्रा के सारे काम पूरे करके शफीक वापिस अपनी जगह लौट आता था। आते ही वह कूकी के नाम एक ई-मेल लिखता था, "रुखसाना, मैं फिर से तुम्हारे आगोश में लौटकर आ गया हूँ। फिर से मुझे अपनी मुस्कराहट के मायाजाल में बाँध लो।"
कूकी को भी शफीक के ई- मेल देखने की आदत पड़ गई थी। जब कभी शफीक का ई-मेल नहीं मिलता था तो उसे मन ही मन बहुत कष्ट होने लगता था।उसका ई - मेल नहीं पाकर वह एक ड्रग-एडिक्ट की भाँति छटपटाने लगती थी। शफीक के गाँव जाने के तीन दिनों के दौरान वह उसके सारे पुराने ई-मेल खोल-खोलकर पढ़ने लगती थी। वह सोते समय अनजाने देश पेरिस के बारे में कल्पना करने लगती थी। जिस देश में शफीक उसको ले जाना चाहता था। पेरिस की सुंदरियां, पेरिस का फेशन-शो और वहाँ का खान-पान सब कुछ तो सारी दुनिया में मशहूर है। सच में, क्या कूकी कभी पेरिस जा पाएगी? क्या कभी एफिल टॉवर पर खड़े होकर पेरिस शहर देखने का उसका सपना पूरा हो सकेगा?
शफीक ने लाहौर पहुँचकर लिखा था, "रुखसाना, मैं कह रहा था कि वह बड़े दुष्ट स्वभाव की औरत है। निसार नगमा का निकाह गाँव में करने के लिए जिद्द कर रही है। तुम तो जानती हो नगमा का निकाह गाँव में करने के लिए हमे खूब सारी परेशानियाँ झेलनी पडेगी। मैं तो पहले से ही उससे बात करने के हक़ में नहीं था, मगर तुम दोनो ने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया। जिसका यह नतीजा निकला। उसके लिए तुम और तबस्सुम जिम्मेदार हो। तुम दोनों की बातों में आकर मैने यह कदम उठाया था। मैं तो पहले से ही जानता था कि वह तो ऐसा ही कुछ खेल खेलेगी। तबस्सुम और नगमा दोनो नहीं चाहती हैं कि निकाह का कार्यक्रम गाँव में रखा जाए। मैं सोच रहा हूँ निसार को बिना बताए नगमा का निकाह लाहौर में रच दूँगा।"
कूकी उनके घरेलू मामलों मे क्या कह सकती थी ? मगर उसे भी ऐसा लग रहा था कि अगर नगमा की शादी लाहौर मे हो जाती तो अच्छा रहता। शफीक के सारे दोस्त, जान-पहचान वाले लोग, सगे-संबंधी लाहौर में रहते हैं इसलिए नगमा की शादी वहाँ पर बड़े धूम-धाम के साथ सम्पन्न होती।
निसार की बात आखिरकर मान ली गई और शफीक ने नगमा के निकाह को गाँव में करने का निर्णय लिया। शफीक हमेशा अपने को दुनियादारी से दूर रखता था मगर बेटी की शादी को लेकर वह अपना अधिकतर समय घर में गुजारने लगा था।
शफीक अभी कूकी के प्रेम की दुनिया में लौटा ही था कि उसको फिर से अपने गाँव का दौरा करना पड़ा। वहाँ पर नगमा की मँगनी का कार्यक्रम होना था। साथ ही साथ, दूल्हे पक्ष वाले भी चाहते थे कि निकाह का काम जल्दी से जल्दी समाप्त हो जाए। दूल्हे को बार-बार छुट्टी नहीं लेनी पडेगी। गाँव जाने से पहले शफीक ने दुखी मन से लिखा था "तुम तो जानती हो मेरी दुनियादारी में कोई दिलचस्पी नहीं है। मुझे लोक-व्यवहार की भी बिल्कुल जानकारी नहीं है। मैं तो यह भी नहीं जानता हूँ, नगमा के शगुन पर मुझे क्या करना पड़ेगा? तबस्सुम भी चाह रही है कि उस समय मैं वहाँ रहूँ। उस गाँव में मेरा मन नहीं लगेगा। मगर बेटी का बाप हूँ, वहाँ जाना तो पडेगा ही।
रुखसाना, आज मुझे अल्लाह के ऊपर खूब क्रोध आ रहा था। बार-बार अल्लाह से एक ही सवाल पूछ रहा था कि वह मुझे रुखसाना से दूर क्यों ले जा रहे हैं। तुम्हें क्या पता, तुम मेरी क्या लगती हो? तुम नहीं जानती, तुम मेरे लिए सबकुछ हो।मेरे लिए तुम्हें छोड़कर कहीं जाना बहुत कष्टकारक होता है।और कितने दिन यह कष्ट झेलना पड़ेगा, बताओ तो?
रुखसाना क्या तुम जानती हो कि नगमा चाहती है उसकी इंडिया वाली अम्मी उसके निकाह में तशरीफ रखे। मैने वैसे तो उसको समझा दिया है कि यह नामुमकिन है। हमारे दोनो देशों के बीच सम्बंध अच्छे नहीं है। ऐसे हालात में तुम्हारी इंडिया वाली अम्मी पाकिस्तान कैसे आ पाएंगी?
रुखसाना, एक और बात है कि तुमसे दूर जाने की बात सोचने मात्र से ही दिल की धड़कनें बढ़ने लगती है। मगर क्या करूँ, जाना तो पड़ेगा ही क्यूंकि बेटी की जिंदगी का सवाल जो है। रुखसाना क्या तुम नगमा को शादी का नेग नहीं दोगी?"
उसी समय कूकी के छोटे बेटे को पीलिया हो गया था। कूकी बहुत दुखी थी। डॉक्टर कह रहे थे, "घबराने की कोई बात नहीं। दवाई काम कर रही है। जल्दी ही आपका बेटा ठीक हो जाएगा।"
अनिकेत ने बेटे की देखभाल करने के लिए दो दिन की छुट्टी ले ली थी। मगर बेटे को शांति से सोने देने की बजाय उससे तरह-तरह की पूछताछ कर रहा था। "गुड्डू, सही बता तो, बेटा। तुमने स्कूल में नल का पानी पिया था न? तुमने बाजार मे गुपचुप खाए थे? नहीं तो, चालू आइसक्रीम तो जरुर खाई होगी? अगर तू मुझे कह देता तो क्या मैं तुम्हारे लिए अच्छी आइसक्रीम खरीद कर नहीं लाता? तुमने बाहर की दूषित चीजें खाकर अपना क्या हाल बना रखा है? कितना कमजोर दिखाई दे रहा है?"
कूकी काफी देर तक उसको पास लेटाने की राह देखती रही, मगर कब उसे नींद आ गई, उसे पता ही नहीं चला। अचानक छोटे बच्चे के रोने की आवाज सुनकर उसकी नींद खुली। बच्चे का जोर-शोर से रोना सुनकर कम्पार्टमेन्ट के सारे लोग जाग गए थे। नींद से उठकर उसने देखा कि बेटा नीचे गिरा हुआ है और जोर-जोर से रो रहा है। अनिकेत के अपनी बर्थ से नीचे उतरने से पहले ही कूकी ने अपने बेटे को गोद में ले लिया था। सारे यात्री लोग कूकी को धिक्कार रहे थे। "कैसी माँ हो? खुद आराम से सोने के लिए बेटे को ऊपर की बर्थ पर से गिर कर मर जाने के लिए भेज दिया,।"
कूकी को सब लोग उन निगाहों से घूर रहे थे मानो कूकी के अंदर मातृत्व बिल्कुल भी नहीं है।कूकी यह देखकर पीठ घुमाकर ब्लाऊज का बटन खोलकर बेटे को दूध पिलाने लगी। दूध पिलाते-पिलाते वह अपने हल्के हाथों से उसका सिर सहलाने लगी।उसने अभी कुछ दिन पहले ही अपने स्तनों पर करेले के कड़वे पत्ते लगाकर उसके स्तन-पान की आदत छुड़वाई थी। वह उस समय उस बात को भूल गई थी।
अनिकेत का मानना था, कि कूकी नाजुक होने के साथ-साथ ज्यादा सोना भी पसंद करती है। इसलिए वह उसके सोने मैं खलल नहीं डालता है, मगर उसकी उसी बात को लोगों के सामने उदाहरण के रूप में पेश करता है। अनिकेत सुहाग-रात की उस बात को अभी तक नहीं भूला था कि कूकी संभोग करते समय कुम्भकर्ण की नींद सो गई थी। अनिकेत ने इस बात को अपनी इज्जत पर ले लिया था। उसके मन में उस बात का गुस्सा कई दिनों तक दबा रहा।
कूकी की अभी भी ज्यादा नींद लेने की आदत मे कोई परिवर्तन नहीं हुआ था। वह फिर भी यही चाहती थी कि छोटे बेटे को अपनी छाती से चिपकाकर सोए।
अनिकेत बेटे से लगातार बक-बक किए जा रहा था।कूकी को यह देखकर मन ही मन भयंकर क्रोध आ रहा था। उसे लग रहा था जैसे गुडडू यदि अपनी गलती स्वीकार कर लेगा तो उसकी तबीयत अपने आप ठीक हो जाएगी।उसे फिर भी अनिकेत को कुछ बोलने में डर लग रहा था। व्यर्थ में बीमार बेटे के सामने माँ-बाप के बीच लड़ाई होने लगेगी, यह सोचकर कूकी चुपचाप रह गई।
अनिकेत ने शाम को सोते समय साफ-साफ शब्दों में कह दिया था, “मैं छोटे बेटे को अपने साथ लेकर सोऊँगा और तुम बड़े बेटे को लेकर बच्चो के कमरे में सो जाना।" अनिकेत की इस बात से कूकी को मन-ही-मन अपमान महसूस हो रहा था। उसे ऐसा लग रहा था मानो अनिकेत उसके मातृत्व की अवहेलना कर रहा हो। और वह यह दिखाना चाह रहा हो मानो उसे ही बच्चे की सारी चिंता है, कूकी को नहीं।
कूकी के लिए यह कोई नई बात नहीं थी। वह अनिकेत के इस व्यवहार को बहुत समय से झेलती आ रही थी। बहुत पुरानी बात थी। शायद उस समय बड़ा बेटा सात या आठ महीने का रहा होगा। अनिकेत उस समय चेन्नई में नौकरी कर रहा था। अनिकेत गाँव में दुर्गा-पूजा की छुट्टियाँ बिताने के बाद सपरिवार चेन्नई जा रहा था। उन्हें काफी भीड़ होने की वजह से ट्रेन के टिकट लेने में बहुत परेशानी हुई थी। ट्रेन में फस्र्ट क्लास और ए.सी. बोगी की सीटे खाली नहीं थी। किसी तरह सेकेण्ड क्लास के दो टिकट मिल पाए थे। कूकी नीचे वाले बर्थ पर सोई थी तो अनिकेत ऊपर वाले बर्थ पर। कूकी के काफी मना करने के बाद भी अनिकेत रात को बेटे को सुलाने के लिए अपने साथ ऊपर बर्थ पर ले गया।उसने सीने के ऊपर उसे चिपकाकर पीठ थपथपाते हुए सुला दिया। यह उसकी पुरानी आदत थी।कूकी का एक हाथ बहुत समय तक बेटे पर लगा रहता था भले ही वह प्रगाढ़ निद्रा मे बेहोश की भाँति पड़ी रहे । बीमार बेटे को छोड़कर वह अलग कमरे में किस तरह सो पाएगी? अनिकेत की छोटे बेटे को अपने साथ लेकर सोने की बात ने उसके दिल को बहुत बड़ा आघात पहुँचाया। कूकी के लिए यह आश्चर्य की बात थी, उस रात कूकी को बिल्कुल भी नींद नहीं आई। इधर-उधर की बहुत सारी बातें रह-रहकर उसको मन में याद आ रही थी।
नगमा की इंडिया वाली अम्मी जान? इंडिया वाली मॉम? क्या ये सब हकीकत है या किसी परीलोक की कहानी? उसके साथ ये सब क्यों हो रहा है? ऊपर वाले ने किसी का जीवन सँवारने के लिए उस जैसी औरत को क्यों चुना? शफीक के सामने वह कोई आम इंसान नहीं है, बल्कि एक देवी है जिसकी दुआ मिलते ही अनहोनी चीजें होनी में बदल जाती है। शफीक की दिली ख्वाहिश है कि रुखसाना उसका साथ अंतिम साँस तक दें। एक बार शफीक ने लिखा था,
"तुम मुझे तब तक प्यार करना,
जब तक मैं एकदम बूढ़ा न हो जाऊँ
मेरा शरीर पूरी तरह से जर्जर हो जाए
मेरी सारी त्वचा झूलने लगे और
मेरा पूरा अस्थी-पंजर झूलता हुआ नजर आए
मगर मेरी काम वासना जीवित हो
सारी रात तुम मुझे सँभालते रहना
जब मेरे सिर के बाल सफेद हो जाए
मेरी इस बात पर अटूट विश्वास करना
मरते दम तक मैं तुम्हारा इंतजार करूँगा।
कल से अनिकेत अपने काम पर जाएगा। बच्चे को अभी बुखार तो नहीं है, मगर बहुत दुर्बल हो गया है। शफीक के गाँव जाने से पहले उसे नगमा के निकाह के लिए अपनी तरफ से शुभ कामनाएँ देनी होगी। कूकी यह सोचते ही झटसे बिस्तर से उठ गई और दूसरे कमरे में सोए हुए छोटे बेटे को देखने लगी। छोटा बेटा गहरी नींद में सोया हुआ था। अनिकेत बेटे के ऊपर हाथ रखकर खर्राटे मारते हुए सो रहा था। कूकी उनको सोता देख कर बड़े बेटे के पास अपने कमरे में लौट आई। क्या वह छोटे बेटे को अपने अंक में समेटकर सो नहीं पाएगी? उसका फूट-फूटकर रोने का मन हो रहा था। जोर-जोर से चिल्लाकर कहने की इच्छा हो रही थी, “अनिकेत यह घर संसार किसका है? मेरा या तुम्हारा?"
"किसका है यह संसार, अनिकेत? मेरा या तुम्हारा?" शफीक और रुखसाना का? अनिकेत और कूकी का? वास्तव में कूकी की दो दुनिया है। अनिकेत जब उसका त्याग करता है तो शफीक उसे स्वीकार करता है। शफीक चाहता है कि रुखसाना उसके प्रत्येक निर्णय में अपनी राय दे और समस्याओं के समाधान के लिए सही रास्ता दिखाए।
जबकि इधर अनिकेत कूकी को कुछ भी नहीं गिनता है। उसको ऐसी कूकी की आवश्यकता है, जो घर की कालिंग बेल बजते ही नंगे पाँव दोड़ी चली आए, हँसकर दरवाजा खोले, उसके जूते-मोजे खोलकर अलग रखे, ठन्डे पानी का गिलास सामने रखकर ड्राइंग रुम में बैठकर उसकी बातों में हुंकारा भरे। अनिकेत जब घर लौटता है और यदि संयोगवश उसे घर पर कूकी नहीं मिलती है तो अनिकेत को खाली घर काटने को दौड़ता है। यही वजह थी कि कूकी अगर अनिकेत के घर आने के वक्त पास-पड़ोस में होती तो तुरंत अपने घर लौट आती थी।अनिकेत घर पर उसको ना पाकर कहने लगता था, "मैं बाहर जाने के लिए तुम्हे मना नहीं कर रहा हूँ।तुम दिन भर बाहर घूम सकती हो। मगर मेरे वापिस आने के वक्त तुम घर में रहा करो वर्ना, जब कॉलिंग बेल बजाने पर भी दरवाजे नहीं खुले तो मुझे बहुत खराब लगता है।"
"मिसेज दास दिन-रात इधर-उधर घूमती रहती हैं। कभी क्लब में तो कभी किट्टी पार्टी में जाती है। दास साहब खुद अपना नाश्ता बनाकर अपने आफिस चले जाते हैं और तुम?"
"तब तुम दास साहब से शादी क्यों नहीं कर लेती?"
"अंट-शंट क्यों बक रहे हो? क्या मैं रोज घर से बाहर जाती हूँ? कभी-कभार घर से बाहर चली जाती हूँ तो आपका पारा क्यों चढ़ जाता है? ठीक है अगली बार तुम्हारे घर आने के वक्त मैं दरवाजे पर खड़ी रहूँगी और सिक्यूरिटी की तरह तुम्हे सेल्यूट मारूँगी।"
अनिकेत यह सुनते ही पलटकर फुफकारने लगा मानो किसी ने गलती से साप की पूँछ पर पाँव रख दिया हो।
"अपनी मर्यादा में रहकर बात किया करो। अपने पति को सेल्यूट मारना कोई खराब बात है क्या?"
कूकी को ऐसा लग रहा था मानो अनिकेत के हृदय में उसके लिए बिल्कुल भी प्यार नहीं है। इतने बड़े- बड़े आक्षेप उसके चरित्र पर? क्या उसने ये सारे आक्षेप अपने मन में छुपा कर रखे थे और उसके जीवन में शफीक के आते ही अनिकेत के व्यवहार में तेजी से बदलाव आया।
लेकिन कूकी यह तुलना क्यों कर रही है? अनिकेत अनिकेत है और शफीक शफीक। शफीक की तरह अनिकेत ने बहुत सारी औरतों के साथ अपने संबंध नहीं बनाए थे। कूकी के प्रति वह पूरी तरह वफादार भी था। कूकी के विश्वास को उसने कभी भी ठेस नहीं पहुंचाई थी। मगर शफीक ने भी तो अपने अतीत की सारी दास्तानों को कूकी के सामने ज्यों का त्यों रख दिया था। वह भी धोखेबाज आदमी नहीं है। तब तो सारा दोष कूकी का है। वह जैसी है, वैसी है। जिसकी मर्जी है चाहे तो रखें या फेंक दे। शफीक जितना आग में जलता है, उतना ही सोने की भाँति देदीप्यमान हो रहा है।
कूकी मन ही मन सोच रही थी कि वह आइन्दा अनिकेत और शफीक की तुलना नहीं करेगी। मगर उसके बावजूद भी वह फिर से दोनों की तुलना करने लगी। दोनो अपनी- अपनी जगह ठीक हैं। शफीक कूकी के होठों की मुस्कराहट और उसके रात-दिन का सपना है। यस, ही इज द ड्रीम मेकर। कूकी को वह सपने दिखाता है और उसके अधरों पर मुस्कान बिखेरता है। जिंदगी कहीं रुकती नहीं है, किसी भी समय एक नए जीवन की शुरुआत हो सकती है।
अधेड़ावस्था में कूकी के एक नए जीवन की शुरुआत हुई थी। उसके जीवन में एक नए संबंध ने जन्म लिया था जैसे कि वह उसका प्रारब्ध हो। उसका संबंध एक ऐसे आदमी के साथ बन गया था, जिसको उसने देखा तक नहीं था, फिर भी दोनो के बीच में किसी तरह का कोई अविश्वास नहीं, कोई अनास्था नहीं थी।
कूकी पहली बार नगमा और तबस्सुम के लिए अपनी शुभ कामनाएँ प्रेषित करते हुए ई-मेल कर रही थी।।वह आज तक उनके बारे में केवल शफीक के ई-मेल में पढ़ती आ रही थी। कभी उन लोगों से सीधी बात नहीं हुई थी। क्या लिखेगी वह? एक ऐसी लड़की जिसने कूकी को कभी देखा नहीं, मगर फिर भी वह उसे खूब प्यार करती है। इंडिया वाली अम्मीजान कहकर पुकारती है। कूकी ने बहुत हिचकिचाहट के साथ कुछ लाइनें टाइप की। उसके बाद उसने राहत की सांस ली।
अंत में उसने शफीक के आई.डी. पर उस ई-मेल को भेज दिया।शफीक पता नहीं, नगमा और तबस्सुम को इस ई-मेल के बारे में बताएगा अथवा नहीं। उसे बताना तो चाहिए क्योंकि शफीक के परिवार वाले उसे अपने घर का सदस्य मानते हैं। लेकिन नगमा की प्रतिक्रिया के बारे में कूकी को कैसे पता चलेगा? शफीक कल भोर होते ही अपने परिवार के साथ गाँव चला जाएगा। उसको फिर से तीन-चार दिन के लिए अकेले रहना पडेगा। उसे ऐसा लगने लगा मानो उसके जीवन के संगीत के छंद बिखर गए हो और कुछ पल के लिए समय मानो थम-सा गया हो।कूकी भी इसी तरह एक बार शफीक को छोड़कर चार-पाँच दिन के लिए बाहर चली गई थी। जब वह घर वापस लौटी तो मेल बॉक्स में उसके नाम शफीक की एक लंबी कविता इंतजार कर रही थी।
चार दिन बीत गए
तुमसे बिछुडे हुए
मैं हर पल तुम्हें याद करता हूँ
तुम मेरे दिल के दरवाजे में धीरे से दस्तक देती हो
तुम्हारी मुसकान
अल्लाह की कसम
मेरी एक चाहत
दिल-ए-तमन्ना
जन्नत में आग लगाने की
भाव तरंगों को भड़काने की
तुम्हारे अधरों के रसपान का प्यासा
तुम्हारे नाजुक हाथ जैसे ही मेरे दिल को छूते हैं
मुझे एक अजीबो गरीब रुहानी अह्सास होता है
रुखसाना, तुम मेरे जीवन के सूर्योदय की लालिमा हो
और हर सुबह तुम मुझे ओस की बूंदों से नहलाती हो।
इसमें कोई अचरज नहीं, मुझे तुमसे प्यार है
जब भी तुम मुझसे दूर जाती हो
मेरा दिल खून उगलने लगता है
और मेरी आँखें आँसुओं से पथरा जाती है।
मेरा जीवन सूना हो जाता है
जब तुम मुझसे दूर जाती हो
मैं एक निबुज कोठरी
मेरे दिल की हर धड़कन
बेकाबू
हवा की साँसों में हर वक्त मेरा मन
प्रकृति की शरद मौत में मेरा जीवन
जब अम्बर में सूरज न चमके
तब तुम मुझे याद करना
कभी तुम मेरी थी
यही बात याद करना।
शफीक को गाँव गए हुए दो दिन भी नहीं हुए थे कि अचानक कूकी के पास शफीक का फोन आया। यह तो कूकी की खुशकिस्मती थी कि वह उस समय घर में अकेली थी। कूकी ने शफीक से पूछा "क्या हुआ शफीक! फोन क्यों किया? मैने तुम्हें फोन नहीं करने के लिए कहा था, मगर तुम मानने वाले कहाँ हो? देखना कभी न कभी हमें इस वजह से परेशान होना पडेगा।"
शफीक ने सिर झुकाकर कूकी की डाँट को सहन कर लिया। कूकी ने शफीक को ऊपरी मन से फटकार तो दिया था मगर खुशी से फूली नहीं समा रही थी। उसे ऐसा लग रहा था मानो किसी ने उसके वक्षस्थल पर चमेली के फूलों का ढेर लगा दिया हो। और उसकी मनमोहक खुशवू से चारो दिशाएँ सुवासित हो उठी हो। उसका मन पुलकित हो गया था तथा तन उत्तेजनावश काँपने लगा था।
शफीक उदास स्वर में कहने लगा था, "रुखसाना, मैं और सब्र नहीं कर सका। इस छोटे से कस्बे में कहीं भी साइबर कैफे नहीं है कि तुम्हें दो लाइन लिखकर ई-मेल कर सकूँ। चार घंटे से तुम्हे फोन लगाने की कोशिश कर रहा था। यह तो अल्लाह का शुक्र है कि अभी लाइन मिल गई। टेलीफोन बूथ वाला भी मुझसे खफा हो रहा था। मैं उसके टेलिफोन बूथ में काफी समय से दखलंदाजी कर रहा हूँ और उसको काफी कुछ सुना भी चुका हूँ। इसलिए हम जल्दी-जल्दी बात चीत करेंगे। तुम कैसी हो? क्या तुम्हें मेरी याद सताती है? तुम्हारे बिना मुझे बहुत कष्ट हो रहा है। मेरी इच्छा हो रही है कि जितनी जल्दी हो सके लाहौर लौट जाऊँ। लाहौर लौटते ही मैं तुम्हारी बाहों में समा जाऊँगा। मेरा सही मायने में यहाँ कुछ भी काम नहीं है। केवल बोर हो रहा हूँ।"
"काम क्यों नहीं है? नगमा के शगुन का काम हो गया?"
"आज ही तो उसका शगुन होने वाला है।"
"आज जब शगुन की रस्म अदा होने वाली है और तुम चार घंटे से टेलीफोन बूथ में बैठे हो। मजनू कहीं के।"
"हाँ, मैं मँजनू हूँ। रुखसाना का मँजनू। तुम्हारी मधुर आवाज सुनने के लिए तरस गया हूँ। तुम मुझे विरह वेदना में क्यों जला रही हो? आ जाओ, मेरी बाहों में समा जाओ।"
इस उम्र में भी शफीक मानो एक नवयुवक बन गया हो।
"सही में तुम बहुत बड़े पागल हो। अब सीधे से घर चले जाओ। सारे घर वाले वहाँ पर तुम्हारा इंतजार कर रहे होंगे।"
शफीक कुछ और बोलना ही चाह रहा था, कि अचानक उसी समय टेलीफोन की लाइन कट गई।कूकी काफी देर तक उसके टेलीफोन का इंतजार करती रही, मगर शफीक का और कोई फोन नहीं आया।
कूकी उस आदमी की दीवानगी की हद को देखकर अचरज में पड़ गई। यह तो उसने सुन रखा था कि आर्टिस्ट, कवि, साहित्यकार लोग दीवाने होते हैं, मगर इस कदर कि उन्हें अपने हित-अहित की बातों की भी जानकारी नहीं हो, यह उसे पता नहीं था। दुनिया में ऐसा कौनसा बाप होगा, जो अपनी बेटी के शगुन की रस्मों को आधा- अधूरा छोड़कर एस.टी.डी बूथ में चार-चार घंटे तक अपना समय बिताएगा?
कूकी के लिए शफीक की यह दिवानगी काफी सुखदायक थी। तो क्या सुख की अनुभूति ही प्रेम है? वह अनिकेत से ज्यादा शफीक को अपने नजदीक पाती थी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके दिल की हर धड़कन में शफीक की साँस चल रही हो, और घर के अंदर बिना शरीर का शफीक उसके साथ- साथ उसके इर्द-गिर्द घूम रहा हो।
शफीक का फोन पाकर कूकी जितनी खुश हुई थी उतनी बेचैन भी। कूकी की अंतरात्मा शफीक को फोन करने की गवाही नहीं देती थी। दोनो देशों के बीच सम्बन्ध अच्छे नहीं चल रहे हैं। चारों तरफ गुप्तचर संस्थाएँ सक्रियता से काम कर रही है। वे लोग बिना किसी कारण के ही हैरानी में पड़ सकते हैं। अगर ऐसी कुछ बातें लीक हो जाती है, तो वह अनिकेत को, अपने बच्चों को, सगे-संबंधियों और अपने देश-वासियों को क्या जवाब देगी। उस समय कौन उस पर विश्वास करेगा कि उन दोनों में केवल प्रेम ही था। प्रेम, वह भी इस उम्र में? छिः! इतना जलील होने से पहले तो उसके लिए मर जाना उचित रहता। वह भी कोई इंसान है जो केवल अपने स्वार्थ की खातिर जिंदा रहता है? क्या अपनी खुद की संतुष्टि ही सर्वोपरि है? क्या इस तुच्छ प्रवृत्ति को अपने परिवार और देश की खातिर काबू में नहीं रखा जा सकता था?
कूकी कभी-कभी इधर-उधर की खूब सारी बातें सोचकर डर जाती थी, मगर वह अपनी चंचल इंद्रियों की गुलाम थी। वह उसे अपना प्रारब्ध मानती थी मानो वह शफीक से सम्मोहित हो गई हो। चार दिन के बाद लौटकर शफीक ने ई-मेल लिखा था, "रुखसाना, मैं अपने घर लौट आया हूँ। मै अपने स्टूडियों में आँखें बंद करके भी तुम्हें देख पाता हूँ। मुझे हर समय तुम्हारा हँसता मुस्कराता चेहरा स्टूडियो की दीवारों पर तथा कम्प्यूटर के मोनिटर पर नजर आता है। मेरे लिए तुमको भुलाना कष्टदायक है। तुम ही मेरी सबकुछ हो। तुम ही मेरा अस्तित्व हो। पिछले आठ सालों से हमारा सम्बंध आज भी गुलाब की पंखुडियों की भाँति खिला हुआ हैं। तब से तुम्हारी जगह मेरे दिल में है।"
"आठ साल?" ई-मेल पढ़ते ही कूकी आठ साल के पास आकर रुक गई। उनका संबंध तो पिछले एक साल से हुआ है मगर शफीक ने आठ साल क्यों लिखा? कहीं किसी दूसरे का ई-मेल तो उसके पास फॉरवर्ड नहीं कर दिया। किसने आठ साल से उसके दिल पर कब्जा किया हुआ है? वह कूकी तो नहीं हो सकती है, जरुर कोई दूसरा होगा? लिंडा जानसन होगी शायद? इसका मतलब कूकी के प्रेम की इतनी तड़प, व्याकुलता और बेचैनी महज एक धोखा थी? कूकी का यह मानना था कि शफीक उसका प्यार पाकर धीरे-धीरे अपने आप को नरक से उबार रहा है। वह अपनी पुरानी आदतों को छोड़ रहा है। धीरे-धीरे उसका आवारापन भी कम होता जा रहा है। मगर अब भी वह आदमी जरा सा भी नहीं बदला है।
कूकी अपने आप को बहुत जलील अनुभव कर रही थी। उसे अपने आप पर तरस आ रहा था कि वह किस लंपट आदमी के हाथों में बुरी तरह फँस गई है। शायद नेट की इस अनोखी दुनिया में शफीक न केवल उसके साथ बल्कि दुनिया की हजारों औरतों के साथ उस की तरह ही फ्लैटरी करता होगा। कूकी भी कोई खास नहीं है बल्कि उन अनगिनत औरतों में से एक है।
कूकी अपने आप पर फक्र अनुभव करती थी कि जैसे शफीक पर केवल उसी का अधिकार है। शफीक को उसके अलावा कोई भी छू तक नहीं सकता। उसे आज समझ में आ रहा था कि कभी-कभी राधा कृष्ण से क्यों रुठ जाती थी? क्यों उसका मन दुखी हो जाता था?
शफीक के ऊपर ना तो उसने किसी तरह की कोई पाबंदी लगाई थी और ना ही कोई शर्त रखी थी।उसने तो अपने मुँह से कभी भी उसको अपनी जीवन शैली बदलने के लिए कुछ भी नहीं बोला था। कभी उसने यह भी नहीं कहा था कि अगर मुझे तुम पाना चाहते हो तो तुम्हें अपनी जीवन शैली बदलनी होगी। मगर आज किसने उसे यह अधिकार दिया कि वह शफीक के जीवन को अपने काबू में रखे?
उसका मन इस बात की गवाही नहीं दे रहा था। ऐसे आदमी के सामने उसका पूरी तरह समर्पण कर देना उसे अच्छा नहीं लग रहा था। उसे मन ही मन लिंडा से जलन होने लगी थी और शफीक के ऊपर बहुत गुस्सा आ रहा था।
उसने घर में खाली समय पाकर आवेश में आकर शफीक को एक ई-मेल किया था। "तुम यह अच्छी तरह जानते हो कि हमारा सम्बंध बने अभी एक साल ही हुआ है। मगर तुमने आठ साल क्यों लिखा? क्या तुम नशे की हालत में थे या फिर किसी दूसरे का ई-मेल मेरी तरफ फारवर्ड कर दिया है। मगर तुमने ऐसा करने का दुस्साहस कैसे किया? मै इस बारे में तुमसे तत्काल बात करना चाहती हूँ। अगर संभव है तो ई-मेल पाते ही मुझसे फोन पर बात करो।"
ई-मेल किए हुए एक घंटा भी नहीं हुआ था कि शफीक का फोन आ गया। शफीक उस बात को बड़े हल्के से लेते हुए हँस रहा था। हँसते-हँसते वह कहने लगा, "मैने ई-मेल में आठ साल लिख दिए हैं?" वह फिर से खिलखिलाकर हँसने लगा।
उसका हँसना मानो कूकी के शरीर में आग लगा रहा हो। क्रोधित होकर कूकी बोली, "किसी दूसरे का बासी गुलाब मुझे देते हुए तुम्हें शर्म नहीं आई?"
कूकी के इस तरह के रुखे उत्तर से शफीक चुप हो गया। कूकी अपनी भड़ास निकालती जा रही थी, "तुम्हें लिंडा से अभी भी प्यार है तो कम से कम मुझे बताना तो चाहिए था। उसे ई-मेल किया, उसमें मुझे कोई तकलीफ नहीं है। तुम्हारी जैसी मर्जी, वैसा करो। मैं कौन होती हूँ तुम्हारी आजादी पर प्रतिबंध लगाने वाली? मगर दूसरे का ई-मेल मुझे क्यों भेजा? मुझे इस बात से बहुत दुख लगा है। "
शफीक सहमकर बड़े धीरे से बोला, "रुखसाना, आजकल मेरा लिन्डा के साथ कोई सम्बंध नहीं है। मैं तो यह भी नहीं जानता, वह आजकल कहाँ पर रहती है और क्या करती है? मैं किस प्रकार तुम्हें यकीन कराऊँ? कैसे समझाऊँ? रियली, आई लव यू रुखसाना।" कहते-कहते उसने रिसीवर पर ही कूकी का चुम्बन कर लिया।
"तुम अब भी मुझ पर गुस्सा करती हो। बार-बार मेरे ऊपर संदेह करती हो। मेरी लाड़ली, रुखसाना, इसलिए कि मैं पाकिस्तानी हूँ, इसलिए कि मैं हिन्दू नहीं हूँ।"
कूकी ने शफीक की इस बात का कोई जवाब नही दिया। शफीक समझ गया था कि फोन पर कूकी को समझाना नामुमकिन है। इसलिए वह कहने लगा, "अच्छा, रुखसाना मैं फोन रख रहा हूँ। बाद में ई-मेल करूँगा।"
शफीक ने कुछ ही घंटों के बाद पाँच पन्नों वाला एक ई-मेल भेजा था जिसमें उसने अपनी भावनाओं को पूरी तरह से उडेल दिया था। उसने कूकी के बारे में बहुत कुछ लिखा था। जैसे कूकी उसका जीवन है। उसके बिना उसका जीना व्यर्थ है। वह कूकी को कितना प्यार करता है। इन सारी बातों पर उसने पैरॉग्राफ के ऊपर पैरॉग्राफ लिखा था। कूकी के नाम उसने एक लंबी कविता भी अटैच करके भेजी थी।
तुम्हें अभी तक पता नहीं
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ?
तुम्हें कैसे दिखाऊँ
मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूँ?
रोशनी की किसी परछाई के पीछे
जहाँ सर्पिल नदी बहती हो
गरमी के दिनों में भी,
जहाँ लहलहाते खेतों में तेज हवा चलती हो
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
तुम्हें अभी तक पता नहीं?
जी हाँ, मेरा प्यार
मंत्र की तरह पवित्र
नमाज की तरह पाकीजा
बाइबिल की तरह एक प्रार्थना है।
मेरा प्यार
किसी फुसफुसाहट से लेकर
लहरों की गर्जना तक
फैला ही फैला है।
मेरा प्यार
उससे भी ज्यादा
और बहुत ज्यादा
कूकी के मन में संदेह की जमी हुई बर्फ धीरे-धीरे पिघलनी शुरु हो गई। शफीक की कविता पढ़कर उसका मन पुलकित हो उठा था।
वह एक अनोखे आनंद से तरोताजा अनुभव करने लगी थी मानो उसकी कोई बहुत बड़ी पुरानी बीमारी ठीक हो गई हो। दो-चार दिन बीतने के बाद वह अपने आपको पहले की तरह सामान्य अनुभव करने लगी। घर गृहस्थी के झगड़े प्रायः ऐसे ही होते है जैसे शरद ऋतु में कोई बारिश होती हो। अचानक कुछ बूँदें बरसने के बाद आकाश एकदम पहले की भाँति साफ, निर्मल और सुंदर हो जाता है। अगले दिन फिर शफीक ने फोन किया, "अब क्या हो गया, शफीक? इतना मना करने के बाद भी तुम मेरी बात क्यों नहीं मानते हो? एक दिन जरुर मुझे भी फँसाकर रहोगे। जानते हो न, मुंबई पुलिस बहुत खतरनाक है। बिना किसी वजह के ही मेरी हालत खराब कर देगी।"
"तुम तो मुझसे ऐसी बात कर रही हो, जैसे कि मैं कोई आतंकवादी हूँ।"
शफीक की बात सुनते ही कूकी एकदम चुप हो गई।
"रुखसाना, मैं इस्लामाबाद से बात कर रहा हूँ। मैं अपने वीसा के काम से यहाँ आया था। आने वाली पन्द्रह तारीख को पेरिस में मेरा इंटरव्यू होगा। पता नहीं समय पर मुझे वीसा मिलेगा भी या नहीं। फ्रांसिसी दूतावास के अधिकारी मुझसे अजीबो गरीब सवाल पूछ रहे थे मानो मैं कोई दहशतगर्द हूँ। उनको मुझ पर बिल्कुल भरोसा नहीं है। वे मुझे घर लौट जाने के लिए कह रहे थे। वे यह भी कह रहे थे जब भी पैनल अपना निर्णय देगा, तुम्हें सूचित कर दिया जाएगा। सोच रहा हूँ पैनल का निर्णय आने तक यही बैठकर दो-तीन दिन इंतजार कर लूँ। हाँ, तुमको फोन करने की दो वजह थीं। मगर तुम तो इतना गुस्सा हो गई कि मैं कुछ बोल भी नहीं पाया।"
"शफीक, क्या कहना चाहते हो? कहो, प्लीज।" कूकी ने उत्तर दिया "तुम मेरे साथ पेरिस चलोगी न? मैं एक चक्कर में पड़ गया हूँ। कभी सोचता हूँ मैं तुम्हें अपने साथ ही ले जाऊँगा। वहाँ हम दोनो पेरिस घूमेंगे और खूब मजे करेंगे। कभी सोचता हूँ मैं अगर अभी तुम्हें अपने साथ ले जाता हूँ तो हो सकता है तुम बाद में मेरे साथ यहाँ आना न चाहो। मैं चाहता हूँ कि जीवन भर तुम मेरे साथ रहो। दो साल वहाँ रुकने के बाद मैं किसी परमानेन्ट नौकरी की तलाश करूँगा। मगर असली बात क्या है, जानती हो?" खुदा न खास्ता, मैं अगर इंटरव्यू में फेल हो जाता हूँ तो तुम्हें पाने का एक अच्छा मौका मेरे हाथ से चला जाएगा। रुखसाना, अब तुम्हीं बताओ, कि मेरे साथ अभी चलोगी या बाद में?
"पूरे पागल हो। अच्छा, अब बताओ दूसरी वजह क्या है?" कूकी ने कहा।
"मैं इस्लामाबाद में हूँ, इसलिए यहाँ से फोन करने या ई-मेल करने में कोई दिक्कत नहीं होगी।मैंने यही बताने के लिए तुम्हें फोन किया था। मगर तुमने तो मेरे पहले सवाल का अभी तक जवाब नहीं दिया। चलोगी न मेरे साथ पेरिस?"
"तुम जाओ, शफीक। सफल होकर लौटना। मेरी दुआ तुम्हारे साथ है।"
"तुम कुछ तो बोलो? मैं बाहर से फोन कर रहा हूँ इसलिए मेरे लिए कुछ खुलकर बोलना सम्भव नहीं हो रहा है।"
"क्या बोलूँ?" कूकी ने जवाब दिया।
"बुद्धू कहीं की!" कहते हुए शफीक ने रिसीवर पर ही कूकी का चुंबन ले लिया और फोन नीचे रख दिया।
शफीक वास्तव में उसको तहे दिल से प्यार करता था अन्यथा वह क्यों कूकी के लिए इतना परेशान होता? वह चाहे अपने गाँव में हो या राजधानी में, क्यों वह कूकी के लिए इतने खतरों से खेलता? काश! वह अपने ऐसे प्रेमी से एक बार मिल पाती। हाय! क्या यह सम्भव हो सकेगा? एक तरफ सपनों की अनोखी दुनिया तो दूसरी तरफ निष्ठुर वास्तविकता।
पता नहीं, इस तरह का दोहरा जीवन दुनिया में किसी और का होगा?
पता नहीं, इस तरह का दोहरा जीवन दुनिया में किसी और का होगा? बड़े गुप्त रूप से कूकी अपना संसार रचती जा रही थी। जिस संसार मे ना तो अनिकेत था, ना उसके बच्चें थे, ना मुम्बई महानगर था ना घर की छत के ऊपर का बगीचा था और ना ही कोई सगे सम्बन्धी थे। दूसरों की आँखों के सामने वह संसार नजर नहीं आ रहा था मगर उसका एक अस्तित्व था। उस अनोखे जहान में कुछ पात्र थे, जो उसे खोजते थे, उसकी जरुरत को अनुभव करते थे। किसी का हँसना, रोना उसके मूड़ पर निर्भर करता था। कोई ऐसा भी था जो उसके चेहरे पर मुस्कराहट ला देता था।
यह भी संभव है कि कूकी के मरने के बाद उसका यह सम्बंध जमीन के नीचे दफन हो जाएगा और अनिकेत को उसके बारे में बिल्कुल भी जानकारी नहीं होगी। बच्चों को भी यह पता नहीं चल पाएगा कि उसकी माँ की आत्मा किसी दूसरे देश में धड़कती थी।
ऐसा भी हो सकता है कि उसकी दुनिया में अचानक एक विध्वंसकारी भूकंप आ जाए और एक ही झटके में उसकी बनी बनाई सारी दुनिया को तहस नहस कर दे। सारे सगे सम्बंधी उससे मुँह फेर लेंगे। पति उसको छोड़ देगा। उसके बच्चें उसको छोड़कर दूर चले जाएँगे। असहाय होकर कूकी अकेली बैठी रहेगी। उसके पास कोई हमदर्दी जताने वाला भी नजर नहीं आएगा। उसने दुनिया की नजरों में बहुत बड़ा पाप किया है। उसके इस बड़े पाप की खातिर सारी दुनिया उसके मुँह पर थूकने लगेगी।
पता नहीं, कूकी को सारा दिन बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था। उस दिन वह कोई ई-मेल लिख नहीं पाई थी।अनिकेत जब शाम के समय बच्चों के साथ पिज्जा कॉर्नर में गया हुआ था। उस समय कूकी के मन में आया कि वह एक ई-मेल लिख दे। गम हो या खुशी, कूकी किसी भी अवस्था में अपने आप पर काबू नहीं रख पाती थी। उसके कदम अपने आप कम्प्यूटर की ओर खिंचे चले जाते थे।
कूकी ने अपने ई-मेल में लिखा था, पता नहीं आज क्यों उसका मन भारी-भारी लग रहा था। उसे इस तरह की मायूसी लग रही थी मानो उसके सामने कोई दुर्घटना घट गई हो। शफीक, मेरा मनोबल तुम्हारी तरह मजबूत नहीं है कि मैं हर प्रकार की समस्याओं का सामना कर सकूँ। पता नहीं भगवान की क्या इच्छा है? मुझे तुम्हारे साथ क्यों जोड़ दिया? मेरा तुम्हारे बिना जिन्दा रहना अब सम्भव नहीं है, मगर मैं यह भी जानती हूँ तुम्हारे साथ जुडे रहना भी मेरे लिए खतरे से खाली नहीं है। अगर मैने इस ई-मेल में कुछ गलत लिख दिया हो तो उस पर ध्यान मत देना और मुझे क्षमा कर देना।
कूकी ने उसके बाद के पैराग्राफ में शफीक के प्रति अपना प्यार जताया था। पूरा मैटर टाइप करने के बाद जब उसने अपना ई-मेल आई.डी. खोला तो उसने देखा उसके मेल बाक्स में पहले से ही उसके नाम शफीक का एक ई-मेल आया हुआ था। ऐसे समय पर शफीक का ई-मेल देखकर कूकी को अचरज होने लगा। अपना मेल न भेजकर पहले वह शफीक का ई-मेल पढ़ने लगी। शफीक ने अपने छोटे-से ई-मेल में लिखा था, "आज मेरा मूड़ ठीक नहीं है। मैं अब और इस देश में रहना नहीं चाहता हूँ। सही बता रहा हूँ, रुखसाना, अगर मेरे कंधों पर तबस्सुम और लड़कियों का बोझ नहीं होता तो मैं कबसे तुमको लेकर हमेशा-हमेशा के लिए पेरिस चला गया होता।
जानती हो, रुखसाना, आज यहाँ के लोगों ने मेरे घर के ऊपर पत्थर फैंके। कुछ कट्टर पंथियों ने मेरे घर के सामने विरोध प्रदर्शन किया। मैं काफी तनाव में हूँ। मेरी दिमागी हालत ठीक नहीं है, इसलिए आज मैं ज्यादा नहीं लिख पा रहा हूँ। मैं आज तन्हा महसूस कर रहा हूँ मेरी एंजिल। बाद में विस्तार से लिखूँगा।"
क्या इसे टेलीपेथी कहते हैं? इधर कूकी का मन अस्थिर और विषाद ग्रस्त था, और उधर शफीक तकलीफों के साथ जूझ रहा था।
शफीक का ई-मेल पाते ही कूकी के दिल की धड़कने बढ़ने लगी। शफीक के साथ ऐसा क्या हो गया? उसके घर के सामने विरोध प्रदर्शन का क्या कारण हो सकता है ? कहीं वह मौलवियों के हाथ पकड़ा तो नहीं गया? आज के जमाने में कुछ भी नामुमकिन नहीं है। शफीक अपने विवाहोत्तर सम्बंधों को लेकर जिस तरह लापरवाही बरत रहा था, कूकी को पहले से ही अंदेशा हो रहा था कि कभी न कभी वह किसी गंभीर समस्या का शिकार होगा। अपने सम्बंधों के बारे में तबस्सुम और बच्चों को बताने की क्या जरूरत थी?
कूकी मन ही मन बुरी तरह बेचैन हो रही थी। उसे लग रहा था जैसे उसके पाँव काँप रहे हो। पहले से लिखे हुए ई-मेल को भेजना उसने उचित नहीं समझा। उसने केवल दो लाइन का एक मेसेज बनाया और शफीक को भेज दिया।
"अगर सम्भव हो तो मुझे फोन करो। तुम्हारे साथ ऐसा क्या हुआ?" मुझे, प्लीज, जल्दी बताओ। मैं बुरी तरह परेशान हूँ।"
मगर शफीक का कोई फोन नहीं आया। घर में बच्चें पिज्जा-कॉर्नर से लौट आए थे। घर मे आते ही हल्ला-गुल्ला करने लगे। बच्चें पापकार्न खाते-खाते टीवी में कॉमेडी सीरियल देखकर जोर-जोर से हँस रहे थे। मगर कूकी के चेहरे पर हँसी के कोई भाव नहीं थे। वह भी बच्चों के पास बैठकर कॉमेडी सीरियल देख जरूर रही है, मगर उसका ध्यान सीरियल की तरफ कहाँ? उसे लग रहा था कहीं उसे बुखार न हो जाए। मन ही मन एक बात कौंध रही थी,कि आखिर शफीक ने फोन क्यों नहीं किया? कहीं उसके साथ कोई दुर्घटना तो नहीं घट गई।
कूकी के पीले पड़े हुए चेहरे की तरफ देखकर अनिकेत कहने लगा "क्या तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है?"
कूकी ने झूठ बोला, "ऐसे ही हल्का-हल्का सिर दर्द हो रहा है।"
"शॉवर के नीचे खड़ी होकर बहुत समय तक नहाई होगी?"
"फिर पेट साफ नहीं हुआ होगा?"
"सिर हल्का-हल्का दर्द कर रहा है।"
"गरमा गरम एक चाय बनाकर पी लो, सब ठीक हो जाएगा।"
"पहले तुम अपनी पूजा खत्म कर लो फिर एक साथ बैठकर चाय पीएँगे।"
अनिकेत की हर रोज की आदत थी। जब भी वह आफिस से घर लौटता था तब नहाने धोने के बाद आधे घण्टे तक पूजापाठ करता था। पूजापाठ खत्म होने के बाद वह चाय पीता था। कूकी का उसकी तरह पूजापाठ में ध्यान नहीं लगता था। अनिकेत एक छोटी-सी डायरी में लिखकर रखता था, कि किस मंदिर में उसे इस महीने दरिद्र भोजन करवाना है? किस मंदिर में बीस नारियल चढ़ाने हैं? किस मंदिर में ब्राह्मण -भोज खिलाना है? और माँगी हुई मुराद पूरी होने पर किस मंदिर में भागवत पाठ करवाएगा?
यद्यपि कूकी की दिनचर्या में भी पूजा शामिल थी, मगर वह भगवान के सामने अपने लिए कुछ माँग नहीं पाती थी। वास्तव में पूजा के समय उसका ध्यान कहीं और होता था। उसकी जिंदगी में दुखों की कोई कमी नहीं है। किन - किन दुखों के निवारण के लिए वह भगवान से प्रार्थना करती? इसके अलावा, कई दुख ऐसे भी थे जो अनिकेत और उसके बीच कॉमन थे।
पता नहीं, आज क्यों कूकी की मन ही मन इच्छा हो रही थी कि वह शफीक के लिए भगवान से कुछ माँगे। वह भगवान से माँगेगी कि शफीक के साथ कुछ अमंगलकारी घटना न घटे।
उस दिन शाम को लगभग चार फोन आए थे। पहले दो फोन अनिकेत के दफ्तर से थे, तीसरा फोन स्थानीय स्टेट बैंक के मैनेजर की पत्नी का था और आखिरी फोन कूकी की छोटी बहिन का था। उड़ीसा से बाहर रहने वाले उड़िया लोगों में जिस तरह अपने आप एक घनिष्ठ सम्बंध स्थापित हो जाता है, कूकी का भी ठीक उसी तरह उड़िया लोगों से घनिष्ठ सम्बंध था।
जितनी बार फोन में रिंग बजती थी उतनी बार कूकी की छाती एक अज्ञात भय से धड़कने लगती थी।
कूकी को चिंता हो रही थी, कहीं शफीक का फोन तो नहीं था। कूकी ने उसको फोन करने का कोई निर्दिष्ट समय नहीं बताया था। कूकी ने शफीक का ई-मेल मिलते ही उसको फोन करने के लिए कहा था। अगर शफीक ने शाम को उसका ई-मेल पढ़ लिया होगा तो?
जितनी बार फोन की घटी बजती थी, उतनी बार कूकी सहम जाती थी। डर के मारे वह फोन भी नहीं उठाती थी। बार-बार घंटी बजने के बाद भी उसको फोन नहीं उठाता देख बेटे को गुस्सा आ गया था। गुस्से में वह कहने लगा "मम्मी आप फोन के पास बैठी हो,, फिर भी फोन नहीं उठा रही हो। क्यों? मै कितनी बार अपनी पढ़ाई छोड़कर फोन उठाने जाऊँगा?"
इधर पूजापाठ में बैठा हुआ अनिकेत भी चिल्लाने लगा, "कोई नहीं है क्या फोन के पास? कोई तो जाकर फोन उठाओ। कब से घंटी बज रही है?"
कूकी मन ही मन सोच रही थी कि अगर शफीक का फोन आता है तो वह गलत नंबर कहकर फोन रख देगी, अन्यथा वह जैसे ही उसकी आवाज सुनेगा ; फोन पर गपियाना शुरु कर देगा।
कूकी रात भर शफीक के बारे में सोचते-सोचते ठीक ढंग से सो नहीं पाई। बीच-बीच में बार-बार उसकी नींद टूट जा रही थी। नींद टूटने पर वह कभी बाथरुम जाने लगती तो कभी पानी पीने लगती। सुबह जाकर कहीं थोड़ी-बहुत आँख लगी थी। आँख लगते ही उसने एक विचित्र-सा सपना देखा। जिसके कारण उसको नींद से जागते ही सिर भारी-भारी लगने लगा। चाय पीने के बाद भी सिर का भारीपन खत्म नहीं हुआ।
कूकी को छोड़कर सभी लोग दस बजे तक अपने- अपने काम के लिए घर से बाहर निकल गए थे। खाली घर मे उसको शफीक की याद और तड़पाने लगी। किस अवस्था में होगा बेचारा वह? अभी तक उसका फोन क्यों नहीं आया? कुछ अनहोनी घटना तो नहीं घटी उसके साथ? कूकी अपने व्यग्र मन को स्थिर नहीं कर पा रही थी।
उसी समय शफीक का फोन आया, जिसका वह काफी समय से इंतजार कर रही थी।
"क्या हुआ, शफीक? तुम्हारे घर के सामने विरोध-प्रदर्शन क्यों हो रहा था?" कूकी के मन की सारी भावनाएँ एक साथ फूट पड़ी थी मानो बाँध ने टूटकर धाराओं का रुप ले लिया हो।
"रुखसाना, तुम इतनी डरी हुई क्यों लग रही हो? मैं एकदम ठीक हूँ। मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है।"
"शफीक, सही- सही बताओ, तुम्हारे साथ वास्तव में क्या हुआ है?"
"रुखसाना, इसमें मेरा कोई कसूर नहीं है। मैं तो केवल इतना ही कह रहा था कि मैं किसी भी देश से बँधा हुआ नहीं हूँ। कोई भी आर्टिस्ट किसी एक देश का नहीं होता है, बल्कि सारी दुनिया ही उसका घर होती है।"
"यह बात किसको कह रहे थे?"
"प्रेस को।"
"प्रेस मतलब प्रेस कांफ्रेंस में? प्रेस-कांफ्रेंस क्यों बुलाई थी ?"
शफीक ने कहा, "तुम तो जानती ही हो मैं किसी भी धर्म में विश्वास नहीं रखता। मेरे लिए हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी समान है। मैं केवल एक परम सत्ता में विश्वास रखता हूँ। मैं तुम पर विश्वास करता हूँ। मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ। तुम ही मेरी प्रेरणा-स्रोत हो। तुम मेरे लिए सब-कुछ हो। तुम तो मेरे लिए गोडेस हो। मैने कई बार अपने सपनों में तुम्हे न्यूड़ देखा है। रुखसाना, मेरे देश पाकिस्तान में मेरी पेंटिंग 'गोडेस' काफी विवादों के घेरे में रही। तुम तो जानती हो, इस्लाम धर्म में देवी-देवताओं का कोई स्थान नहीं है। दियर इज आनली वन गाड! सो, दे काल्ड मी ए "काफिर"। उन्होंने मुझ पर दोषारोपण किया है कि मैं एक विधर्मी आदमी हूँ। मैने अपनी पेंटिंग में हिंदुत्व को प्रोत्साहित किया है।मैंने इसी विवाद को विराम देने के लिए प्रेस कांफ्रेंस बुलाई थी और उसमें अपना वक्तव्य दिया था, "मेरा अपना कोई देश नहीं है। और वैसे भी कोई भी आर्टिस्ट किसी एक देश से बंधकर नहीं रहता। सारा जहान उसका अपना घर होता है।"
मेरी इस बात को मीडिया वालों ने तोड़-मरोड़कर आवाम के सामने पेश कर दिया। बस और, होना ही क्या था? यहाँ के कट्टरपंथियों ने बेवजह इस बात को तूल दे दिया।
"तुम हमेशा पागलों जैसी हरकतें क्यों करते हो?" कूकी ने पूछा।
"पेंटिंग मेरा पागलपन है। अब बताओ, क्या तुम मेरी गोडेस नहीं हो? क्या किसी आर्टिस्ट को इतना अधिकार नहीं है कि वह अपने मन के भावों को कैनवास पर उतार सके?"
"शफीक, मुझे बहुत डर लग रहा है। कहीं वे लोग तुम्हें किसी तरह का नुकसान तो नहीं पहुँचा देंगे?"
"धत् तुम बेकार में डर रही हो। वे लोग मेरा क्या कर लेंगे? छोड़ो उन बातों को। माइ गोडेस, कम टू माई आर्म्स ; आइ वांट टू फील यू।"
कूकी ऐसे दीवाने आर्टिस्ट के साथ क्या करेगी? वह तो अपनी साधना के उस स्तर तक पहुँच गया है जहाँ पर मोक्ष और सांसारिक सुख दोनों एक साथ मिलते हैं।
कूकी कभी उसके सामने भोग्या थी, कभी उसकी प्रेमिका, तो कभी वह उसकी साधना की सिद्धिदात्री देवी। कूकी को याद आया, कभी उसने कुंडलिनी के विषय में कुछ श्लोक पढ़े थे
"यत्रास्ति मोक्ष न च तत्र भोग यत्रास्ति भोग न च तत्र मोक्ष
श्री सुंदरी सेवन तत्पराणां भोगश्च मोक्षश्च करस्थानै व।"
कूकी जानती थी कि अगर वह ये श्लोक शफीक को लिखकर ई-मेल कर देती है, तो शफीक उससे यह अवश्य पूछने लगेगा, कुण्डलिनी क्या होती है।"
तब कौन उसको कुण्डलिनी और उसके जागरण के सारे तत्वों के बारे में समझाने बैठेगा? उसने जिस भावना से उसे स्वीकार किया है, वही ठीक है। वह जहाँ भी रहे खुशी से रहे। सदैव चेहरे पर मुस्कान बनी रहे। मगर कब तक यह सब चलता रहेगा? इस संबंध का कभी न कभी तो अंत होगा? क्या होगा वह अंत? आखिर में अंत तो होना ही था। शफीक को क्या पता, उसे जिंदगी किस तरफ ले जा रही है? उन दोनों की जिंदगी में क्या मोड़ आने वाला है? आगे स्वर्ग मिलेगा या नरक? मगर चलना तो पड़ेगा ही।
"मगर चलना तो पड़ेगा ही।" शफीक ने फोन पर कहा था।
"रुखसाना, आखिरकर तुम्हे मेरी खातिर चलना ही पड़ेगा। अन्यथा उम्र के इस पड़ाव में इंटरव्यू देने की मुझे क्या जरुरत थी ? क्या जरुरत थी मुझे पेंटिंग का काम छोड़कर पैराथिसिस लिखने की? मुझे लगता है दोनों देशों के सम्बंधों में बढ़ती कटुता हमें इस जन्म में कभी मिलने नहीं देगी, इसलिए मैं सोच रहा था कि किसी तीसरे देश में जाकर एक साथ रहा जाए। नगमा का निकाह सिर पर है। ऐसे समय में तुम्हारा कहीं और जाना क्या शोभा देगा?"
"निकाह में मेरा क्या काम है? तबस्सुम है वह सब कुछ कर लेगी। जानती हो, रुखसाना, नगमा के निकाह को लेकर तबस्सुम इतनी व्यस्त हो गई है कि वह डेटिंग वगैरह सब कुछ भूल गई है। इस बारे में कुछ पूछने पर कहने लगतीहै, पहले बेटी के निकाह का काम पूरा हो जाए, उसके बाद दूसरे काम। सही में तबस्सुम ही है जिसकी वजह से मेरी दुनिया बची हुई है। नहीं तो मेरी दुनिया तो कब की उज़ड़ गई होती।"
"फिर भी तुम्हें उसकी हर तरीके से मदद करनी चाहिए।"
"मेरा काम तो सिर्फ तुम्हारी सेवा करना है।"
"कहाँ से बात कर रहे हो, शफीक? पेरिस कब जाना है?"
"रुखसाना, मैं कराची से बात कर रहा हूँ। बड़ी बहिन के पास कुछ रुपए उधार लेने आया था। यहाँ से परसो रात को पेरिस के लिए रवाना होउंगा। रुखसाना, तुम कुछ बोलती क्यों नहीं हो? तुम्हें अकेला छोड़कर जाते हुए मुझे बहुत दुख लग रहा है। मन ही मन ऐसा महसूस हो रहा है, कि खुदा न खास्ता, अगर मैं इंटरव्यू में फेल हो जाता हूँ तो तुम्हें पाने का एक सुनहरा मौका मेरे हाथ से निकल जाएगा। रुखसाना मैं बाहर से फोन कर रहा हूँ इसलिए तुमसे प्यार की बातें नहीं कर पाऊँगा। पेरिस पहुँचने के बाद तुम्हें फोन करुँगा। मुझे सिर्फ चार दिन का वीसा मिला है, इसलिए मुझे जल्दी ही घर लौटना पड़ेगा। आजकल वीसा पाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
"हाँ आतंकवाद के कारण से। खासकर तुम्हारे देशवासियों की वजह से..." कहते-कहते कूकी गहरी सोच में पड़ गई। शफीक उसके बारे में क्या सोचेगा? मगर जो भी हो, बात तो सही है।
कूकी की इन बातों पर शफीक ने कोई ध्यान नहीं दिया? उसने सिर्फ इतना ही कहा "अभी मैं फोन रख रहा हूँ। बाद में बात करेंगे।" कहते हुए शफीक ने लोगों की नजरों से छुपकर रिसीवर पर चुंबन लेते हुए फोन को नीचे रख दिया।
कहीं कूकी की बात से शफीक दुखी तो नहीं हो गया? कूकी की टिप्पणी ने कहीं उसके दिल पर चोट तो नहीं पहुँचा दी? कहीं कूकी के मन में ऐसी शंका तो नहीं है, कि शफीक आतंकवादियों के साथ मिला हुआ है? कई बार एक विशेष विचारधारा से सम्बंध रखने वाले लोगों के बाहरी सामाजिक जीवन और भीतरी व्यक्तिगत जीवन में रात-दिन का फर्क होता है। पता नहीं, कूकी किसी खतरनाक षडयंत्र का शिकार तो नहीं होती जा रही है।
वह समझ नहीं पा रही थी कि इंसान-इंसान के बीच इतना वैर क्यों है? क्या धर्म ही दहशतगर्दी की जड़ है? इसके पीछे आर्थिक और नैतिक शोषण कोई कारण नहीं है? ना तो विकसित पूँजीवादी देश तीसरी दुनिया के लोगों का शोषण करना बंद कर रहे हैं और ना ही तीसरी दुनिया के लोग आतंकवाद से अपना पीछा छुड़ा रहे हैं। चाहे जो भी कारण रहे हो आर्थिक या धार्मिक, कष्ट तो आखिरकर इंसान ही पाता है।
कूकी ने कभी भी शफीक के साथ आतंकवाद के मुद्दे पर बातचीत नहीं की थी। कभी भी उसने दोनो देशों की राजनैतिक गतिविधियों अथवा धार्मिक मामलों पर चर्चा नहीं की थी। इन सारी फूट डालने वाली बातों से वे दोनों अपने आपको कोसों दूर रखते थे। कूकी ने कभी भी शफीक से यह सवाल नहीं किया, क्यों तुम्हारे देश के लोग हमारे देश के लोगों को जान से मार देते हैं? इसी तरह शफीक कभी-कभी कूकी को कहता था, काश! दोनो देश पूर्व और पश्चिम बर्लिन की तरह मिलकर एक हो जाएँ?
वे दोनों सिर्फ अपनी दुनिया में मशगूल रहते थे। उनके चारों तरफ भयंकर हो-हल्ला, खून-खराबा, बम धमाके, मार-काट, चीत्कार-हाहाकार हो रहा था, मगर उन्हें किसी भी तरह की कोई आवाज सुनाई नहीं पड़ रही थी। वे दोनों तो मानो किसी दूसरे प्रकार की उपलब्धि प्राप्त करने में लगे हुए थे। मानवीय निम्न चेतना से मानो वे काफी ऊपर उठकर एक अद्भुत सुख और आनंद की खोज में लगे हुए थे।
कूकी मानो चेतना की वह उच्चतम अवस्था नैरात्मा हो। एक सुंदरी शबरी की तरह। और शफीक एक पागल की भाँति पहाड पर चढ़ते हुए उसे मिलने आ रहा हो। इतने बड़े पहाड़ पर चढ़ना कोई मामूली काम नहीं था। उस सहज सुंदरी की योनि कई किलोमीटर दूर-दूर तक सुवासित हो रही थी। उस कूकी के बालों में मयूर के पंख लगे हुए थे और गले में वह रंग-बिरंगी मोतियों की माला पहने हुए थी। वह बेसब्री से अपने प्रेमी के आने का इंतजार कर रही थी। आज प्रेमी से उसका मिलन होगा और उस मिलन से एक नैसर्गिक सुख की प्राप्ति होगी। एक दूसरे में समा जाने का बाद वे लोग अपना बनावटी मुखौटा उतारकर फेंक देंगे। देखते-देखते वे अहंकार शून्य हो जाएँगे। तब उनके चारों तरफ न रहेंगे समाज के बंधन और न ही रहेगा संस्कृति और सभ्यता का छिछोलापन। ना ही वे लोग पेड-पौधों, नदी-नालों, पशु-पक्षियों तथा खगोलीय पिण्डों की भाँति प्रकृति के अधीन सीमाबद्ध होकर रहेंगे।
कूकी का मन उदास हो गया था क्योंकि उसने शफीक को शुभकामनाएँ देने के स्थान पर उल्टी-उल्टी बातें की थी। इतनी दूर वह इंटरब्यू देने जा रहा था, उसे अपनी ओर से शुभकामनाएँ अवश्य देनी चाहिए थी।
जो होना था, वह हो गया। क्या उसे अभी एक ई-मेल में शुभकामनाओं का छोटा-सा संदेश भेज देना ठीक नहीं होगा? पेरिस जाने से पहले अगर वह अपना ई-मेल चेक करेगा तो कम से कम उसे पाकर खुश हो जाएगा।
ई-मेल भेजने के बाद कूकी के मन का बोझ हल्का हो गया। टी.वी. में चल रहे फिल्मी गीत की धुन पर अपने सुर मिलाकर वह गुनगुना रही थी। उसी समय उनके गाँव से फोन आया था " तुम्हारी सास की तबीयत ज्यादा खराब है। उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया है।"
कूकी ने तुरंत अनिकेत के मोबाइल पर फोन किया। वह सोचने लगी कि अब उन्हें जल्दी ही गाँव जाना पडेगा। इतने कम समय में ट्रेन का रिजर्वेशन मिलना भी मुश्किल होगा। यही सोचकर अपने गाँव जाने के लिए अगले ही दिन उन्होने फ्लाइट पकड़ ली थी। अनिकेत पूरी तरह से नर्वस हो गया था और कूकी उसको बार-बार सांत्वना दे रही थी।
कूकी गाँव आने के बाद इतना व्यस्त हो गई थी कि उसे शफीक के बारे में सोचने तक का वक्त नहीं मिल पा रहा था। अस्पताल में दस दिन भर्ती रहने के बाद सास स्वस्थ होकर घर लौट आई थी। सास की सेवा-सुश्रूषा तथा परिजनों से मिलने में दस दिन ऐसे बीत गए कि उसे पता तक नहीं चला। दुनियादारी की दिक्कतों तथा दुख के समय कूकी के लिए अनिकेत ही काम आता था, शफीक नहीं। दिन भर के काम से कूकी इतनी थक जाती थी कि बिस्तर पर लेटते ही उसको नींद आ जाती थी।
माँ के स्वास्थ्य को लेकर अनिकेत चिंतित था। उसने कूकी से कहा "कुछ दिनों के लिए हम माँ को अपने साथ ले जाते हैं।" यह सुनते ही कूकी के दिल की धड़कनें बढ़ने लगी। वह अपनी गुप्त दुनिया के बारे में सोचकर दुखी हो रही थी। अनिकेत और बच्चों को लेकर वह आराम से अपनी दोनों दुनिया सँभाल लेती थी।
दोनों दुनिया में वह हँसती थी, रोती थी। दोनो दुनिया में वह समागम करती थी। जब अनिकेत नहीं होता था तो शफीक आ जाता था और जब शफीक नहीं होता था तो अनिकेत आ जाता था।
यह अलग बात थी कि सास को कम्प्यूटर की भाषा समझ में नहीं आएगी, फिर भी क्या वह घंटों-घंटों तक कम्प्यूटर के पास बैठ पाएगी?क्या इस नीरव घर में वह बार-बार शफीक का फोटो निकालकर देख पाएगी? क्या अपनी साँसों में शफीक की साँस अनुभव कर पाएगी?
अनिकेत की माँ को साथ ले जाने की बात से कूकी का मन उदास हो गया था। लेकिन उसमें विरोध करने का साहस भी नहीं था। अगर वह विरोध करती तो किस आधार पर? अनिकेत अपनी बीमार माँ को सेवा-सुश्रुषा के लिए अपने साथ ले जाना चाहता था। यह बात तो बिल्कुल उचित थी। अगर वह अपनी माँ को साथ नहीं ले जाता तो यह अनुचित बात होती।
पता नहीं, वह कितने महीने उनके साथ इधर रहेगी ? इधर दीवाना शफीक उसे फोन किए बिना नहीं रहेगा। उसे ऐसा लग रहा था अब उसके लिए शफीक से और सम्बंध बनाए रखना नामुमकिन होगा। कूकी शायद अपना आखिरी ई-मेल भेजने के बाद उड़ीसा आई है। और उसके लिए अब कभी भी ई-मेल लिखना सम्भव नहीं होगा।
उड़ीसा आने के एक दो दिन बाद कूकी मुम्बई जाना नहीं चाहती थी,यह जानकर सबको बहुत अचरज हो रहा था .। उसे ऐसा लग रहा था कि वह अपना गाँव छोड़कर अन्यत्र कहीं भी ढंग से नहीं रह पाएगी। मुम्बई से मानो उसका मन फट गया था। गाँव में रहने के लिए उसे किसी तरह की परेशानी महसूस नहीं हो रही थी क्योंकि साथ में वहाँ भतीजे भी रहते थे। कूकी मन ही मन भगवान को धन्यवाद दे रही थी कि अच्छा हुआ माँ साथ नहीं चलेगी?
कूकी ने मुम्बई लौट आने के बाद मौका पाकर अपना मेल-बॉक्स चेक किया। उसने देखा कि शफीक के दो लम्बे-चौड़े ई-मेल उसका इंतजार कर रहे थे। कूकी सब काम निपटाकर ई-मेल पढ़ने बैठ गई। उस ई-मेल में शफीक ने लिखा था, "मैने तुम्हें पेरिस से फोन किया था। तुम्हारे फोन की घंटी बज रही थी, मगर तुमने मेरा फोन नहीं उठाया। क्या किसी तरह की परेशानी थी? या फिर तुम्हारा टेलिफोन खराब हो गया है? बड़ी आशा के साथ मैने तुम्हें पेरिस से फोन किया था, मगर मुझे मेरी रुखसाना नहीं मिली। इन्टरव्यू अच्छा हुआ है। ऐसा लग रहा है कि खुदा ने मेरी अर्ज सुन ली है। तुम भी भगवान शिव की पूजा करो ताकि मुझे यह नौकरी मिल जाए। सही में, रुखसाना तुम मेरे साथ यहाँ आकर रहोगी न?”
कूकी को लग रहा था कि यह कुछ नहीं है, बल्कि शफीक का पागलपन बोल रहा है। क्या इतनी कड़ी प्रतिस्पर्धा में इतनी आसानी से उसको नौकरी मिल जाएगी? इसके अलावा, पश्चिम एशिया के लोग दक्षिण एशिया के लोगों से नफरत करते हैं। इन्टरव्यू अच्छा होने पर भी जॉब मिल जाएगा, इस बात की कोई गारंटी नहीं है।
कूकी पहला ई-मेल पढ़ने के बाद दूसरा ई-मेल पढ़ने लगी।शफीक ने दूसरे ई-मेल में लिखा था "यहाँ आने के बाद मैने अपना प्रवास तीन दिन के लिए और बढ़ा दिया है। जानती हो, रुखसाना, बड़े ही आश्चर्य की बात थी कि यहाँ मेरी मुलाकात लिन्डा के साथ हो गई। उसकी हालत ठीक नहीं है। उसका शराबी पति उसे बहुत ही कष्ट देता है, यहाँ तक कि उस पर हाथ भी चला देता है। उसने कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी भी दी है। वह कह रही थी, जब उसे तलाक मिल जाएगा तब वह अमेरिका चली जाएगी। तीन-चार दिन वह मेरे साथ रही। मैने उसको मानसिक सांत्वना देने की बहुत कोशिश की। उसके अलावा, मैने इन दिनों में उसके साथ शारीरिक सम्बंध भी बनाए। सही में, लिन्डा बहुत दुखी है। मैं जानता हूँ, तुम्हें मुझ पर गुस्सा आ रहा होगा कि मैं लिंडा के साथ क्यों सोया " वह मुझे दिल से चाहती है। उसको मेरी सख्त जरुरत थी। रुखसाना, मेरे लिए यह एक विचित्र बात थी कि मै उसके साथ सोने पर भी तुम्हें नहीं भुला पा रहा था।मेरे लिए यह घटना किसी आश्चर्य से कम नहीं थी।मुझे उसी समय मुझे समझ में आ गया था कि तुम्हारे बिना मेरा जीवन अधूरा है। तुम ही मेरी सब कुछ हो।"
ई-मेल पढ़कर कूकी एकदम आवाक रह गई। उसके मुँह से अपने आप निकल गया, शफीक....।
"शफीक, अरे योगी! तुमने ऐसा क्यों किया? क्या तुम्हें पता नहीं था कि पर्वतारोहण में एकाग्रचित्त होना अनिवार्य है? थोड़ा-सा भी मन इधर-उधर होने से पाँव फिसल सकता हैं। तुमने इतना जानने के बाद भी पीछे की तरफ मुड़कर क्यों देखा?"
कूकी को इस बार पहले की तरह लिंडा से ईर्ष्या नहीं हुई, बल्कि वह तो केवल शफीक के बारे में सोचने लगी,कि क्या उसने अभी तक अपने मन को पवित्र नहीं किया? पवित्र शब्द कूकी का नहीं है। शफीक इस शब्द को अक्सर अपने ई-मेलों में प्रयोग करता है, "रुखसाना, जानती हो, तुम्हें पाने के लिए मुझे पवित्र बनना पड़ेगा। मैं जब तक एक अच्छा इंसान नहीं बन जाता हूँ तब तक मैं तुम्हें नहीं पा सकूँगा। तुम कहाँ जानती हो तुमको ई-मेल लिखने से पहले मैं 'वोजू' करता हूँ। जानती हो 'वोजू' क्या होता है? नमाज पढ़ने से पहले शारीरिक शुद्धता के लिए नहाने की प्रक्रिया को 'वोजू' कहते हैं।"
कूकी नहीं जानती थी, कि क्यों शफीक पवित्र होना चाहता है? क्यों उसका मन पाप की भावना से इतना दबा हुआ है? क्यों अपने आप को वह अधम -पापी समझता है?
लिन्डा के साथ उसकी मुलाकात महज एक संयोग हो सकती है, शायद पुराने दोस्त का दुख दर्द उसको लिन्डा के नजदीक खींच लाया होगा। लिन्डा के साथ उसके सम्बंध स्थापित हो गए, ठीक है। मगर शफीक के लिए कूकी को यह बात बताना कहाँ तक उचित था? क्या उसके दिमाग में एक बार भी यह ख्याल नहीं आया कि यह बात बताने से कूकी को कितना दुख लगेगा।
नहीं चाहते हुए भी उस दिन कूकी का दिल टूट गया था। कूकी अपने अशांत दिल को शांत करने का भरसक प्रयास कर रही थी। परन्तु उसकी सारी कोशिशें निरर्थक हुए जा रही थी।वह भले ही, कम्प्यूटर के सामने जाकर बैठ गई, मगर शफीक को ई-मेल लिखने की इच्छा नहीं हुई।
कूकी ने कभी भी शफीक को बदलने की कोशिश नहीं की। शफीक के चरित्र में जितने भी परिवर्तन आए थे, वे सारे उसकी अपनी मेहनत का फल था। मगर ये सारे परिवर्तन शफीक क्यों चाहता था ? केवल कूकी को पाने के लिए? कूकी तो पहले से ही उसके बारे में सब कुछ जानती थी, और तब भी उसने मन ही मन शफीक को अपना मान लिया था। फिर ये बातें दोहराने का क्या मतलब?
उस दिन कूकी ने कोई ई-मेल नहीं लिखा था, मगर अगले दिन उसके मेल बॉक्स में उसके नाम का एक ई-मेल आया हुआ पड़ा था। "रुखसाना, क्या हुआ तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है? मेरा इससे पहले वाला ई-मेल मिला? घर पर नहीं हो? रुखसाना तुम्हें कैसे बताऊँ? मैं बहुत दुखी हूँ फिर से हम दोनों एक लम्बे समय के लिए एक दूसरे से जुदा होने वाले हैं. तुमसे जुदा होने की बात सोच लेने मात्र से मुझे खुद पर गुस्सा आने लगता है। मन ही मन खुदा से शिकायत करने की इच्छा होती है, तुम हमें इतना दुख क्यों दे रहे हो? मगर क्या करुँ? नगमा के निकाह में मुझे जाना ही पड़ेगा। मैं गाँव में किसी को भी अच्छी तरह से नहीं जानता। मेरे लिए बेहतर यही होगा, कि गाँव में कुछ दिन पहले से जाकर सब तैयारियाँ कर लूँ। तबस्सुम खुद भी यही चाहती है, हम लोग अभी से ही गाँव जाकर तैयारियाँ करना शुरु कर दे। तुम्हारे बिना गाँव में तीन सप्ताह गुजारने की बात दिमाग में आते ही आँखों से आँसू छलक जा रहे हैं। गाँव में कहीं भी सायबर कैफे नहीं है। पता नहीं, पब्लिक बूथ में आई.एस.डी. की सुविधा है अथवा नहीं? रुखसाना मैं तुम्हारे बिना वहाँ कैसे रहूँगा?
तुम्हें यह जानकर खुशी होगी, नगमा खुद चाहती है कि उसकी इंडिया वाली अम्मी कैसे भी करके उसके निकाह में शामिल हो। मैं तो कई बार उसको समझा चुका हूँ ऐसा होना नामुमकिन है। दोनो देशों के बीच सम्बंध अच्छे नहीं है, इसलिए इंडिया वाली अम्मी का तुम्हारे निकाह में शरीक होना असम्भव है। अगर तुम आ जाती तो सभी परिजनों तथा सगे-सम्बंधियों से मैं तुम्हारा परिचय करवा देता।
रुखसाना, मैं आज बुरी तरह से थक गया हूँ।मैंने तबस्सुम के साथ शाम से लेकर रात दस बजे तक दुकान-दुकान घूमकर नगमा के लिए साड़ी और गहनें खरीदे हैं। यहाँ की औरतें प्रायः साड़ी नहीं पहनती हैं, मगर उच्च वर्ग की कुछ भद्र महिलाएँ अपने आप को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए कभी-कभी निकाह जैसे उत्सवों में साड़ियाँ पहनती हैं। तुम अगर यहाँ आती तो मैं तुम्हारे लिए एक लाल रंग की साड़ी जरुर खरीद कर लाता।
नगमा का निकाह सात लाख रुपए के मेहर में तय हुआ है। मेहर क्या होता है, जानती हो? किसी कारण से अगर पति अपनी बीवी को तलाक देता है तो उसे मेहर में कहे हुए रुपयों को बीवी को देना होगा। हमारे यहाँ निकाह की सारी रस्में एक घंटे में पूरी हो जाती हैं, मगर उस यादगार को शानदार बनाने के लिए ये सारी रस्में चार दिन तक खींची जाती है। निकाह से पहले लड़की को हल्दी का उबटन लगाया जाता है। घर में नाच-गाना चलता है। काश! तुम यहाँ आ जाती तो इस निकाह में और चार चाँद लग जाते।
रुखसाना, इस दौरान मैं सारी बातें भूल गया हूँ। मैं एक कलाकार हूँ, मेरा एक स्वतंत्र जीवन है, ये बातें भी मेरे दिमाग से निकल चुकी है। मेरी एक ही ख्वाहिश बची है कि पेरिस जाने से पहले नगमा का निकाह हो जाए। उसके बाद मैं आराम से तुम्हारे साथ पेरिस में दो साल बिता सकूँगा। रुखसाना, तुम चलोगी न मेरे साथ? आओ, बेबी, मैं गाँव जाने से पहले तुम्हें प्यार की बारिश में नहला दूँ। उसके बाद अगला पैराग्राफ काम-क्रीड़ा के वर्णनों से भरा हुआ था। शफीक ने अंत में लिखा था, रुखसाना मेरे लौट आने तक इंतजार करना।"
शफीक को इस बात का बिल्कुल भी आभास नहीं हुआ कि कूकी ने नाराज होकर उसको ई-मेल नहीं किया है। कूकी को आज से बहुत लंबे समय तक शफीक का इंतजार करना पड़ेगा। खाली समय मिलने पर भी वह कम्प्यूटर के सामने बैठकर क्या करेगी? क्या वहाँ शफीक उसको याद करेगा? या निकाह में व्यस्त होकर रह जाएगा? ऐसे तो वह कुछ भी काम नहीं करता है। सारा कामकाज तबस्सुम सँभालती है। दिखने में नगमा कैसी होगी? कैसा होगा उनका गाँव, उनका घर-द्वार? न तो उसने शफीक को देखा है और ना ही नगमा को? फिर भी उसे मन ही मन ऐसा लग रहा था जैसे वह अपने घर के किसी नजदीकी रिश्तेदार की शादी मे नहीं जा पा रही है। उस समय उसकी आँखों के सामने दोनो देशों की दुश्मनी या आतंकवाद में हताहत हुए लोगों की लाशें कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। उसे बम के धमाकों की गूँज भी सुनाई नहीं पड़ रही थी। देशों के बीच सरहदें मनुष्य ने बनाई है, भगवान ने नहीं। यह सरहद नाम की चीज आदमी से आदमी के बीच केवल वैमनस्य को जन्म देती है। अगर इस सरहद को एक बार मिटा दिया जाए तो हमें पता चलेगा सरहद के उस पार तथा इस पार के आदमियों में कोई फर्क नहीं है। उनके दुख दर्द, भूख, शौक , आनन्द, संभोग की संवेदनाओं में भी कोई अंतर नहीं है। अगर थोड़ा-बहुत भी अंतर होता तो नगमा अपने निकाह में उसका इंतजार क्यों करती? और क्यों कूकी का मन उस निकाह में नहीं जाने के कारण उदास होता? कूकी को आश्चर्य होने लगा। यहाँ तक कि वहाँ के और यहाँ के रीति-रिवाजों में भी कोई फर्क नहीं है। दोनों जगह वही हल्दी और मेहंदी लगाने की रस्में अदा की जाती है। शादी से पहले ही नाच-गाना और वही महोत्सव की धूम। मगर समय इंसान को पूरी तरह से बदल देता है। जो कभी दोस्त हुआ करता था, आज वह दुश्मन है।
कूकी इन तीन सप्ताह तक अनिकेत की दुनिया में डूब गई। वे सब लोग अपनी नई सेन्ट्रो कार में बैठकर सिद्धि विनायक मंदिर में दर्शन करने गए थे। कूकी छोटे बच्चे की पढ़ाई पर भी ध्यान देने लगी. मगर अनिकेत कूकी के इस कार्य से असंतुष्ट था। अनिकेत ने एक बार कूकी से कहा, "अगर वास्तव में बच्चों के भविष्य की इतनी चिंता है तो बेहतर यही रहेगा उनके लिए एक मराठी ट्यूशन मास्टर खोज लो।" अनिकेत की बात सुनकर कूकी ने वास्तव में पड़ोसियों से पूछताछ करके एक ट्यूशन मास्टर की व्यवस्था कर ली थी। हालांकि छोटे बेटे का जन्म मुम्बई में हुआ था मगर उसकी पकड़ मराठी भाषा पर इतनी नहीं थी। यह तो उसकी बदकिस्मती थी कि उसे महाराष्ट्र बोर्ड़ से पढ़ाई करनी पड़ रही थी। उन्होंने अच्छा स्कूल मानकर अपने छोटे बेटे का दाखिला मराठी मीडियम स्कूल में करवा दिया था। अनिकेत मराठी भाषा के अलावा बाकी सारे विषय पढ़ा लेता था .
शफीक के ना होने के कारण कूकी को घर में कुछ भी काम नजर नहीं आ रहा था, इसलिए अनिकेत और बच्चों के घर से चले जाने के बाद दिन में खाली घर उसे काटने को दौड़ता था। घर में कुछ काम नहीं होने के कारण वह समय बिताने के लिए पड़ोसियों के साथ जुड़ गई थी। कभी इधर-उधर की गपशप करके समय बिताती थी तो कभी किट्टी पार्टी में जाकर, तो कभी हौजी खेलकर। तब भी उसके अंदर शफीक की यादें जीवित थी। एक विशिष्ट समय पर वह छटपटाने लगती थी। कभी-कभी उसकी इच्छा होती थी कि वह अपने घर चली जाए। हो सकता है शफीक का फोन आया होगा। वह उसे बेचैनी से ढूँढ़ रहा होगा। हौजी में रुपए कमाने या गँवाने से उसे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।
एक दिन कूकी अपने घर से बाहर नहीं निकली। सारा दिन घर में बैठे-बैठे शफीक के फोन का इंतजार करती रही और शफीक के पुराने ई-मेल खोलकर पढ़ने लगी। पढ़ते-पढ़ते वह भावुक हो गई। सोचने लगी, कब लौटेगा शफीक?उसे इतने दिन पहले जाने की क्या जरुरत थी? सोचते-सोचते वह बहुत बेचैन हो रही थी। उसी समय मिसेज मालवे का फोन आया। वह किट्टी पार्टी में जाने के लिए कह रही थी। मगर कूकी ने तबीयत खराब होने का बहाना बनाकर उसे मना कर दिया।वह इसी तरह हर रोज अपनी अन्य सहेलियों को पेट की बीमारी का बहाना बनाकर मनाकर देती थी। जब कोई उसे घर पर मिलने आता था तो वह दर्द का झूठा नाटक करने लगती थी। वह इस प्रकार धीरे-धीरे अपने आपको सबसे अलग करती गई।
नगमा का निकाह होने में एक दो दिन बचे थे कि अचानक शफीक का फोन आया। उसी नियत समय पर जिस समय वह हमेशा फोन करता था। कूकी ने आश्चर्य चकित होकर उससे पूछा "नगमा का निकाह तो अभी तक पूरा नहीं हुआ है। आप इतना जल्दी लाहौर कैसे लौट आए? सब सकुशल तो है?"
"सब सकुशल है, परसों नगमा का निकाह होगा। मेहमानों से घर भरा हुआ है। मैं तो यह भी नहीं जानता था कि मेरे इतने सारे सगे-सम्बंधी भी हैं। तुम सबकी कुशलता के बारे में पूछ रही थी? लेकिन मैं बिल्कुल भी खुश नहीं हूँ। तुम्हारे बगैर यहाँ मन नहीं लग रहा है। यह मेरे लिए बहुत ही कठिन समय है। और दो दिन बचे हैं। जैसे ही नगमा का निकाह हो जाएगा, वैसे ही मैं तुम्हारे पास लौट आऊँगा।
"तुम तो कह रहे थे गाँव में फोन करने की सुविधा नहीं है फिर फोन कहाँ से कर रहे हो?"
"अरे, बेबी! मैं अभी एक छोटे से कस्बे में हूँ जो हमारे गाँव से पैंतीस किलोमीटर की दूरी पर है।"
"यहाँ किसी काम से आए हो ?"
"काम? क्या मैं तुम्हारे साथ बातचीत करने के लिए नहीं आ सकता हूँ।"
"इतनी दूर? तुम क्या पागल हो गए हो शफीक?"
"रुखसाना, मैने तुम्हें फोन किया, क्या तुम्हें अच्छा नहीं लगा?"
"नहीं, ऐसी बात नहीं है। मैं तो कब से तुम्हारे फोन का इंतजार ही कर रही थी।"
"रियली! कम टू माई आर्म्स, बेबी।"
बात करते समय बार-बार टेलिफोन लाइन कट रही थी इसलिए शफीक दिल खोलकर बात नहीं कर पाया। कूकी का मन भी नहीं भरा था। फिर भी मानो वह किसी वन्डरलैंड में घूम रही हो, ऐसे ही सपनों में डूबी हुई थी कूकी।
निकाह का काम सम्पन्न होने के एक दिन बाद शफीक सचमुच में लाहौर लौट आया था।वह पन्द्रह-सोलह दिनों के बाद अपनी कूकी के पास लौटा था, इसलिए उसने खुशी में कूकी को ई-मेल लिखा था "हम लोग अभी-अभी अपने गाँव से लौटे हैं। तबस्सुम घर सजा रही है। शमीम घर के काम में उसका हाथ बटा रहा है। शमीम के बारे में जानती हो? तबस्सुम का नौजवान प्रेमी। मैं सीधे अपने स्टडी-रुम में आ गया हूँ। यहाँ तक कि ' वोजू भी नहीं किया, सीधे तुम्हे ई-मेल लिखने बैठ गया। दिल खाली-खाली लग रहा है, रुखसाना। सीने के भीतर एक सूनापन-सा मह्सूस होने लगा है। बेटी को विदा करते समय बाप का दिल इस कदर टूट जाएगा, मुझे मालूम नहीं था। मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे मेरे शरीर का कोई अंग कट गया हो। मैं अपने आपको रोक न सका, मैं फूट-फूटकर रोने लगा। तुम अगर मेरे पास होती तो मैं तुम्हारे कंधे पर अपना सिर रखकर रोता। घर में नगमा का टेबल, उसका सामान, दीवार पर टंगी हुई उसकी तस्वीर, अलमारी में पडे हुए उसके कपड़े, शू-स्टैण्ड पर रखी चप्पलें सारी चीजें जैसी की तैसी पड़ी हुई हैं, मगर नगमा नहीं है।वह पूरे बाईस साल तक इस घर में घूमती रही, मगर आज यह घर उसके लिए पराया हो गया। शफीक ने एक पंक्ति यह भी लिखी थी।रुखसाना, मेरा यह छोटा-सा ई-मेल देखकर दुखी मत होना। रात को एक अच्छा ई-मेल करुँगा।
कूकी ने उसको धीरज बँधाते हुए एक ई-मेल किया था, "शफीक, चिन्ता मत करना। नगमा अपने पति के साथ है। धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। शफीक,देखना एक दिन ऐसा भी आएगा जब नगमा तुम्हारे घर में ज्यादा समय के लिए रुकना नहीं चाहेगी। अपने पति के पास जाने के लिए उसका मन व्यग्र हो उठेगा।"
कुछ ही दिनों में कूकी और शफीक अपनी दुनिया में वापिस लौट आए थे। फिर से तबस्सुम ने पहले की तरह डेटिंग पर जाना शुरु कर दिया था । गाँव से लौटे हुए अभी दस बारह दिन भी नहीं बीते होंगे, कि शफीक ने कूकी को एक खुश खबरी दी। कोलम्बिया यूनिवर्सिटी में उसकी नौकरी लग गई थी। इस बात से वह इतना खुश हो गया था मानो उसे स्वर्ग का सारा राज्य नसीब हो गया हो। उसने अपने ई-मेल में लिखा था, "रुखसाना, सब कुछ इतनी आसानी से हो जाएगा ये मैने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। मुझे अभी तक विश्वास नहीं हो रहा है कि वास्तव में, मैं पेरिस जाऊँगा। इससे पहले मैं कई बार अपने दोस्तों के पास अमेरिका और लंदन गया हूँ, मगर मुझे इतनी खुशी पहले कभी नहीं हुई। रुखसाना, इससे पहले मेरी विदेश यात्रा का एक खास मकसद रहता था, वह था मेरा केरियर। लेकिन इस बार मेरा एक ही मकसद है, अपने प्रेम को पाना। आइ एम वेरी मच थ्रिल्ड, बेबी। जस्ट दियर आर फ्यू स्टेप्स टू रीच द मून। व्हेअर आइ विल बी विद यू एंड यू विल बी विद मी।"
"व्हेअर आइ विल बी विद यू एंड यू विल बी विद मी।" इस दुनिया में हम दोनों के सिवा कोई भी नहीं होगा। थ्रू सेक्स वि कुड रीच नेचुरल टू सुपनेचुरल। यही ओशो की थ्योरी थी न रुखसाना?" शफीक ने अपने ई-मेल में पूछा था "रुखसाना, तुम ओशो के विषय में कुछ जानती हो? मैं उनके विषय में जानने का इच्छुक हूँ। मैने सुना है ओशो को हिन्दुस्तान में भगवान की तरह पूजा जाता है।"
आजतक उन्होंने कई विषयों पर चर्चा की थी मगर ओशो और तंत्र के विषय में किसी ने कभी भी कोई बात नहीं छेड़ी थी । अचानक शफीक के दिमाग में यह प्रश्न क्यों उठा? क्या शफीक ने ओशो के बारे में कहीं से कुछ पढ़ लिया है? शायद इसलिए वह ओशो के बारे में जानने के लिए अपनी जिज्ञासा प्रकट कर रहा है। कूकी ओशो की कुछ किताबें पहले से ही पढ चुकी थी। मगर उसका किताब पढ़ने के पीछे किसी तरह का कोई विशेष उद्देश्य नहीं था। उन किताबों को पढने के बाद उसने उन पर कभी चिंतन मनन भी नहीं किया। उसे समझ में नहीं आ रहा था, शफीक को इस बारे में क्या लिखें?
कूकी ने बहुत सोच-समझकर अपने ई-मेल में लिखा, "मैने ओशो की कुछ किताबें जरुर पढ़ी है। वे किताबें पढते समय तो तर्क संगत अवश्य लगती है. मगर पढने के कुछ समय बाद वे किताबें अपने आप दिमाग से निकल जाती है. हमारे प्राचीन हिन्दु-शास्त्रों में 'कुमारी साधना' का उल्लेख आता है। ऐसे प्राचीन ग्रंथों में साधना के कई मार्ग दिखाए गए हैं। शफीक, जानते हो, हमारे ऋषि-मुनियों ने हमारे शरीर के भीतर छह चक्रों की खोज की थी। वे छह चक्र क्रमशः मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि तथा आज्ञा चक्र हैं। मूलाधार चक्र में एक सर्पिणी ढाई कुंडल मारकर बैठी रहती है, जिसे कुंडलिनी कहते हैं। हमारे मेरुदण्ड में तीन मुख्य नाडियाँ होती हैं, इडा, पिंगला और सुषुम्ना। जैसे-जैसे योगाभ्यास द्वारा जब कुंडलिनी जागृत होकर इन छह चक्रों का भेदन करती हुई आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे साधक को तरह-तरह की सिद्धियाँ प्राप्त होती जाती है। अंत में कुंडलिनी आज्ञा चक्र को भेदते हुए सहस्रार बिंदु पर पहुँच जाती है तो वहाँ साधक को आलौकिक ज्ञान की प्राप्ति होने लगती है. यही पहुँचकर साधक मोक्ष पद को प्राप्त करता है। इसी पुराने आध्यात्मिक ज्ञान को ओशो ने जरा सा बदलकर एक नई पद्धति को इजाद किया। वह है 'संभोग से समाधि की ओर', 'सेक्स टू सुपर कांशियसनेस', 'काम से राम की ओर'।
मगर शफीक, इन सारी बातों को जानकर तुम्हें क्या फायदा होगा? तुम्हें तो कोई महापुरुष नहीं बनना है? तुम एक धर्मगुरु भी नहीं बनना चाहते हो। हमें हमारा प्रेम ही शारीरिक प्रेम की ओर आकर्षित कर रहा है। हम केवल प्रेम में जिएँगे और केवल शारीरिक सुख भोगेंगे। ओशो का कथन है कि जो व्यक्ति बिना वीर्य क्षरण के अपने सारे चक्रों का भेदन करता है, वह तुरीयावस्था को प्राप्त कर लेता है। वह दुनिया के सुख दुखों से ऊपर उठ जाता है। उसे किसी भी तरह की सांसारिक चिन्ता नहीं सताती है। आखिरकर वह आदमी अपने परम लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है।
तुम्हें यह बात किसने कही कि भारत में ओशो को भगवान का दर्जा दिया गया है। यह व्यक्तिगत श्रद्धा और आस्था का सवाल है। यह कोई जरुरी नहीं है, जो अनुयायी ओशो को भगवान मानता है तो दूसरा आदमी भी ओशो को भगवान मानेगा। हिन्दुस्तान में ऐसे बाबाओं और माताओं की कोई कमी नहीं है, जिन्हें लोग अभी भी भगवान का अवतार मानते हैं। फिर अगर तुम ओशो के बारे में कुछ और ज्यादा जानना चाहते हो तो मैं तुम्हारे लिए कुछ और किताबें पढूँगी तथा उसके बारे में विस्तार से लिखकर तुम्हें ई-मेल कर दूँगी। अगले दिन शफीक का ई-मेल आया था, " तुम्हारा ई-मेल मुझे एक अनोखी दुनिया में ले गया है।जब कभी भी हमारी मुलाकात होगी तो क्या हम सेक्स-थ्योरी को अपने ऊपर इस्तेमाल करेंगे? मगर तुमने तंत्र के विषय पर तो कुछ भी नहीं लिखा। क्या यह विषय तुम्हारे दिमाग से उतर गया?"
रुखसाना, मेरे पेरिस जाने के दिन जितने नजदीक आ रहे हैं, मैं उतना ही खुश होता जा रहा हूँ। अभी से ही मैने अपने भविष्य के बारे में सपने देखने शुरु कर दिए है। बेबी, उस वक्त तुम पेरिस आने के लिए इंकार तो नहीं कर दोगी?"
अंतिम पैराग्राफ में वही घिसी-पिटी प्रेम की बातें, जिसे कूकी लंबे अर्से से पढ़ती आ रही थी। " आइ एम सोकिंग योर लिप्स। गिव मी योर सैलिवा, आइ वांट टू ड्रिंक। इन्जर्ट योर टंग इन्टू माई माऊथ।"
शफीक का यह ई-मेल पढकर कूकी को कुछ अच्छा नहीं लगा। वह सेक्स को लेकर इतने एक्सपेरीमेंट क्यों करना चाहता है? शफीक के लिए केवल सेक्स ही सब कुछ है। क्या प्रेम उसके लिए कोई मायने नहीं रखता? तो फिर उसकी बातें "यू आर माई एवरीथींग, विदाउट यू आइ हेव नो अक्सीजटेंस" सब बनी बनाई थी?
सेक्स पर प्रयोग करने की बातों को लेकर कूकी को गुस्सा आ रहा था। गुस्से-गुस्से में कूकी ने शफीक को एक जवाबी ई-मेल लिखा था, "मैं ओशो के द्वारा दिखाए गए रास्ते पर चलने में तुम्हारा बिल्कुल भी सहयोग नहीं कर सकती। मैं तो एक सामान्य औरत हूँ। मेरी इच्छाएँ भी साधारण ही हैं। मैं आपसे प्रेम की उम्मीद करती हूँ। जिस प्रेम की खातिर मैं जी सकूँ। साधना-मार्ग से मेरा कोई वास्ता नहीं है। तुम सेक्स पर अपने प्रयोग जारी रख सकते हो। किसी दूसरी औरत को अपने इस प्रयोग में इस्तेमाल कर सकते हो। मैं इस कार्य के लिए तुम्हें कभी भी नहीं रोकूँगी। मैं तो केवल जीना चाहती हूँ। मैं इस जीवन का भरपूर उपभोग करना चाहती हूँ। मुझे मोक्ष प्राप्ति की तनिक इच्छा नहीं है. जबकि मैं तो चाहती हूँ कि मैं नैरात्मा बनकर तुम्हारे आने का इंतजार करुँ। मैं तो यही चाहती हूँ कि तुम व्याकुल होकर मेरी तरफ दौड़े चले आओ। बस इतनी छोटी-सी ख्वाहिश है मेरी. तंत्र के बारे में तुम कुछ जानना चाहते थे? हमारे देश में कई जगह तंत्र को मान्यता दी गई है तो कई जगह पर खारिज भी कर दी गई है। कहीं तंत्र को साधना का सर्वोपरि साधन मानकर स्वीकार किया गया है, तो कहीं इसे 'काला जादू' कहकर तिरस्कारित किया गया है। कभी-कभी यह भी सुना जाता है कि तंत्र के माध्यम से बड़े से बड़े असाध्य काम भी आसानी से हल हो जाते हैं। तो कभी-कभी यह भी सुना जाता है कि तांत्रिक लोग तंत्र को काले जादू के रुप में प्रयोग करते हैं। इसलिए तंत्र को आम लोग नफरत की दृष्टि से देखते हैं। ऐसा भी सुना गया है कि तंत्र के किसी मंत्र के उच्चारण में अगर भूल हो जाती है, तो साधक का बुरी तरह से अनिष्ट हो जाता है।
कभी-कभी तो नतीजा इतना भयानक होता है कि तांत्रिक का सर्वनाश हो जाता है। अच्छा, न तंत्र-मंत्र की बातें छोड़ो। मुझे यह बताओ कि अचानक तुम अपना रास्ता बदलकर किस दिशा में आगे बढ रहे हो? हम तो प्रेम की राह के राहगीर थे। उसी राह पर वापिस आ जाओ। सिद्धी प्राप्त होने से अथवा साधना फलीभूत हो जाने से हमे क्या मिलेगा? मान लेते हैं, अगर हमे मोक्ष भी मिल जाए तो क्या फायदा?"
कूकी ने इस ई-मेल को भेजने के बाद सोचा कि शफीक जैसे आर्टिस्ट को सँभालना उसके बस की बात नहीं है। कब उसका मूड़ बदल जाएगा? उसके मूड़ का कोई ठिकाना नहीं है। शाम को जब अनिकेत घर लौटता था। घर का सारा वातावरण बदल जाता था। अनिकेत ने छोटे बेटे को पढ़ाते समय अपने नाखूनों से चिकुटी काटते हुए उसका कान इतनी जोर से मरोड़ दिया था कि उसके कान से खून बहने लगा था। कूकी यह देखकर अनिकेत पर कम से कम आधे घण्टे तक झल्लाती रही। उसके बाद उसने छोटे बेटे के कान पर मल्हम लगाया था।कूकी उस दिन अनिकेत से झगड़ा कर भूखी सो गई थी। उसके घर में इस तरह के नाटक तो हर दिन चलते थे। एडॉप्ट अनलेस एडजस्ट . उसको तो केवल एडजस्ट करके चलना पड़ रहा था क्योंकि आत्महत्या करना उसके वश की बात नहीं थी। मायके वह जा नहीं सकती थी और तलाक लेने की बात तो वह अपने सपने में भी नहीं सोच सकती थी। जैसे-तैसे करके उसे अपना जीवन गुजारना था।
पिछली रात की सारी बातों को उसने सुबह होते ही भुला दिया था। कूकी ने सबके लिए खाना बना लिया था।उसने नैकरानी के घर से जाने के बाद अपने दूसरे दरवाजे के फाटक खोल दिए थे। वहाँ शफीक का ई-मेल उसका इंतजार कर रहा था। "यू हिन्दू पीपल आर वेरी आर्थोडाक्स एंड सुपरस्टीसियस इन स्प्रिच्चूलिज्म। ओशो की सेक्स साधना में मेरी मदद करने से तुमने इनकार क्यों कर दिया? क्या तुम मुझसे नाराज हो? ऐसा क्या हो गया जो तुमने इस कार्य हेतु मुझे एक अलग पार्टनर खोजने की सलाह दी? क्या तुम मुझे अपना पार्टनर नहीं मानती? व्हाई आर यू सो आर्थोडाक्स बेबी?
शफीक की यह बात कूकी को बुरी तरह से लग गई। 'यू हिन्दू पीपल?' क्या कहना चाहता है शफीक? तो क्या उनका सम्बंध भी हिन्दू-मुस्लिम के मजहबी दायरे में चला गया। शफीक ने उसको आर्थोडाक्स हिन्दू कहकर न केवल उसको बल्कि समस्त हिंदू समाज को गाली दी है। कूकी को अन्धविश्वासी और रुढिवादी कहने का अधिकार उसको किसने दिया था? इसका मतलब कहीं यह तो नहीं शफीक के दिल में उसके प्रति प्रेम की भावना कम होती जा रही है। नहीं तो, इन सब अनर्गल बातों से उसका क्या अभिप्राय है?
संस्कृति, परम्परा और धर्म प्रत्येक व्यक्ति को एक अलग परिचय दिलाता है। यही कारण है कि वक्त-वक्त पर धर्म उसके जीवन राह पर दस्तक देता है। कूकी भगवान के अस्तित्व के बारे में कभी भी अपना दिमाग नहीं लगाती है। अध्यात्म, मोक्ष या निर्वाण के बारे में उसका ध्यान कभी भी नहीं जाता। वह तो केवल इतना ही चाहती है कि उसका जीवन सुखमय हो और जीवन के हर क्षण को वह अच्छी तरह से उपभोग कर सके। उसके लिए तंत्र-मंत्र, योग-साधना आदि की बातें कोई मायने नहीं रखती। फिर भी शफीक के तीन शब्दों 'यू हिंदू पीपल' ने उसे अंदर से बुरी तरह से तोड़ दिया। क्यों? अभी तक कहाँ रह गया था उसके हिंदुत्व का परिचय? पता नहीं क्यों, वह अपने इस परिचय को ना तो स्वीकार कर पाई और ना ही अस्वीकार। अब उसको मन ही मन 'सेक्यूलर' शब्द का स्वरुप अपनी आँखों के सामने साफ झलकने लगा था।
कूकी अपने आपको बिल्कुल भी सँभाल नहीं पाई। तुरंत ही उसने शफीक के नाम का एक ई-मेल लिखा. तथा उसके ई-मेल से 'यू हिंदू पीपल' वाले वाक्य को कॉपी करके अपने ई-मेल में पेस्ट कर दिया। उसके आगे उसने लिखा "शफीक, तुम्हारी बातों से मैं बुरी तरह टूट गई हूँ। मुझे बहुत दुख हुआ कि तुम्हारे मन में भी इस तरह की संकीर्ण भावना भरी हुई है। मुझे आज तक इस बात का पता नहीं था। मुझे पहले से ही यह बात समझ में क्यों नहीं आ गई? अगर तुम्हें ऐसा लगता है कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ तो मुझे आराम से छोड़ सकते हो। यही सोच लो हम एक दूसरे के लिए बने ही नहीं। अपनी इस हिन्दू प्रेमिका का परित्याग कर दो। मैं इतना भी जानती हूँ तुम इतनी जल्दी मुझे नहीं भुला पाओगे। मैं खुद भी इतनी आसानी से तुम्हें नहीं भूल पाऊँगी। क्या तुम मुझे भूल सकोगे? बस, कलम को यही विराम देती हूँ। तुम्हारी रुखसाना।"
इससे पहले जब कभी भी शफीक के ई-मेल से कूकी को कुछ गलत फहमी होती थी तो अपना प्रत्युत्तर ई-मेल भेजने के बाद उसे कुछ राहत मह्सूस होने लगती थी। मगर इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ।उसने उस दिन खुद को घर के काम काजों में व्यस्त रखना चाहा। लेकिन उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था। उसने अपना मन लगाने के लिए एक पत्रिका का सहारा लिया, तब भी उसका मन स्थिर नहीं हुआ। उसका मन शायद शफीक के फोन का इंतजार कर रहा था। उसे लग रहा था शायद फोन की घंटी अभी बज उठेगी और शफीक उससे कहने लगेगा, "बेबी, इतनी जल्दी तुम गुस्सा क्यों हो जाती हो? सॉरी, मेरा तुम्हे कष्ट पहुँचाने का कोई इरादा नहीं था।"
मगर शफीक का कोई फोन नहीं आया। कूकी बुरी तरह से बेचैन हो रही थी।उसने एक बार इंटरनेट लगाकर अपना मेल बॉक्स चेक भी किया था, मगर उस मेल बॉक्स में उसके नाम शफीक का कोई ई-मेल नहीं था। वह सोचने लगी शायद शफीक ने अपना मेल बॉक्स अभी देखा नहीं होगा।वह शाम को जब अपना मेल बॉक्स चेक करेगा तो कूकी का ई-मेल उसे मिल जाएगा.कूकी तरह-तरह की बातों से अपने मन को सांत्वना दे रही थी, तब भी उसके मन से शफीक की बात 'यू हिंदू पीपल' हटने का नाम नहीं ले रही थी। कितने अच्छे लोग हुआ करते थे वे? उनका देश, धर्म, जाति से कोई लेना-देना नहीं था। मगर इस बार अचानक कहाँ से उसके मन में आ गई 'यू हिंदू पीपल' वाली बात।
दूसरे दिन घर से अनिकेत और बच्चों के अपने काम पर जाने के बाद बड़ी आशाओं के साथ कूकी ने अपनी दूसरी दुनिया का दरवाजा खोला। मगर तब भी दूसरी दुनिया में उसके नाम कोई संदेश नहीं था। उसका मन कर रहा था वह शफीक का नाम लेकर जोर-जोर से चिल्लाए।
कूकी डर रही थी कि कहीं शफीक नाराज तो नहीं हो गया। नाराज हो जाने पर भी वह अपने हाथ इतनी जल्दी पीछे नहीं खींचता। शायद वह कहीं बाहर गया हुआ होगा इसलिए उत्तर नहीं दे पाया होगा। अगर वह बाहर जाता तो एक बार तो जरुर बताता। एक बार उसे अचानक क्वेटा जाना पडा था। वहाँ जाते ही उसने कूकी को फोन किया था। कूकी का मन तरह-तरह की आशंकाओं से व्याकुल होने लगा था। इस बार शफीक के फोन नहीं करने का क्या कारण हो सकता है?
आज तक जितनी भी बार उन लोगों में मन मुटाव हुआ था, उन सभी मन मुटावों से वे ऊभर कर बाहर निकल जाते थे । इस वजह से उनके सम्बंधों में कभी भी दरार नहीं पड़ी थी। कहीं ऐसा तो नहीं गुस्से में आकर कूकी ने अपने ई-मेल को किसी दूसरे के नाम पर भेज दिया हो? मन ही मन वह विचार कर रही थी इतने दिनों से ई-मेल लिखने के अभ्यस्त हाथ क्या गलत टाइप कर सकते हैं? इसके बावजूद भी कूकी बैठकर शफीक के फोन का इंतजार कर रही थी, मगर शफीक का कोई फोन नहीं आया। शफीक के फोन का इंतजार करते-करते कूकी का धीरज टूटने लगा था। उसने फिर से एक ई-मेल लिखा, शफीक, क्या तुम्हें मेरा ई-मेल नहीं मिला? तुमने अभी तक जवाब क्यों नहीं दिया? क्या सही में तुम मुझ से नाराज हो गए हो? मगर क्यों? इस बार तो गुस्सा करने की मेरी बारी थी। मैने ऐसी कौनसी बात कह दी जो तुम्हारे सीने में चुभ गई? जिस बात को लेकर तुम सम्बंध तोड़ना चाहते हो। मैं बहुत दुखी हूँ। जल्दी से उत्तर दो।
इस ई-मेल को भेजने के दो घण्टे बाद फिर कूकी ने अपना मेल बॉक्स चेक किया, मगर अब भी उसके नाम शफीक का कोई ई-मेल नहीं आया था। कूकी सोचने लगी, क्या इतनी छोटी-सी बात पर शफीक नाराज हो जाएगा? चोरी और ऊपर से सीनाजोरी। 'यू हिन्दू पीपल' कहकर गाली भी देगा और ऊपर से भाव भी दिखाएगा। कितना निष्ठुर है शफीक? इस बार तो कूकी के रुठने की बारी थी। उसके मन से तो गुस्से के बादल छँट चुके थे। अब तो वह मन ही मन डर रही थी कि कहीं वह शफीक को खो न दे। वह तो ऐसे छटपटाने लगी थी जैसे किसी ड्रग एडिक्ट को ड्रग नहीं मिलने पर छटपटाने लगता है। वह अपनी मुट्ठियाँ भींचकर अपने भीतर के कंपन को रोकने का प्रयास कर रही थी। उसका अन्तर्मन शून्य होता जा रहा था। भीतर ही भीतर वह कटती जा रही थी। कुछ हल न देखकर वह दीवार पर हाथ रखकर रोने लगी।
क्या कोई इस तरह किसी के ऊपर गुस्सा करता है? शफीक इतने दिनों से उसको लिखता आ रहा था, "तुम मेरी गोडेस हो, तुम मेरी सब कुछ हो।" क्या ये सारी बातें झूठ थी? वह देर रात तक सो नहीं पाई। बिस्तर में केवल करवटें बदलती रही।
उसने अगले दिन डरते हुए काँपते हाथों से इंटरनेट लगाया। उसका मन कह रहा था उसके नाम कोई ई-मेल नहीं होगा और वास्तव में मन की बात खरी उतरी। उसके नाम मेल बॉक्स में कोई ई-मेल नहीं था। इसका मतलब शफीक फरेबी था? वह उसके साथ कोई खेल, खेल रहा था? कूकी तो पहले से जानती थी वह कभी भी यहाँ की मोहमाया छोड़कर पेरिस नहीं जा पाती।उसमे इतनी ऊँची उड़ान भरने का साहस नहीं था। ऐसे भी दोनों अपनी अपनी दुनिया में खुश थे। उनकी कल्पना की दुनिया बड़े ही आराम से चल रही थी। कहीं ऐसा तो नहीं है कि शफीक पेरिस जाने से पहले बालू के घर की तरह उनके सारे संबंधों को तोड देना चाहता हो?
कूकी को शफीक का ई-मेल नहीं मिलने से दिन में भी अंधेरा नजर आने लगा था। जीवन अकेलेपन तथा निराशा से भर गया था।वह अपने मन की व्यथा को किसके सामने रखती? कूकी ने कुछ समाधान न मिलते देख फिर से एक ई-मेल लिखा।
"शफीक, तुम्हें अगर मेरी बात से कोई ठेस पहुँची हो तो मुझे माफ कर देना।मैंने तुम्हारे बिना रहने की बहुत कोशिश की, मगर सारी कोशिशें नाकाम रही। तुम आज तक मुझे गोडेस कहकर मेरे चरण स्पर्श करते थे, आज मैं तुम्हारे चरण स्पर्श करते हुए यह ई-मेल लिख रही हूँ। मेरी सूनी दुनिया में लौट आओ। लौट आओ अपने इस घर में। यह घर तुम्हारे बिना काटने को दौड़ता है। मैं बेसब्री से तुम्हारा इंतजार कर रही हूँ। तुम्हारी असहाय एंजिल।
कूकी इस ई-मेल को लिखने के बाद सोचने लगी कि शफीक इसको पढने के बाद विचलित हो जाएगा। वह अपने आपको रोक नहीं पाएगा और जरुर ई-मेल लिखेगा। वह तो कूकी का एक नंबर का दिवाना है।वह कितने दिनों तक उससे रुठ कर रह सकेगा? अधिक से अधिक दो-चार दिन। कूकी रोने लगी, क्या वह इतना जानने के बाद भी उत्तर नहीं देगा?
आसमान में बादल गरज रहे थे। बाहर तेज बारिश होने लगी थी। आँधी-तूफान को देखते हुए कॉलोनी में बार-बार बिजली काटी जा रही थी।कूकी को बारिश के इस सुहाने मौसम में रह-रहकर शफीक की याद सताने लगी।कूकी इस दौरान शफीक को लगभग पन्द्रह ई-मेल भेज चुकी थी। दस-बारह से ज्यादा दिन बीत चुके थे। कूकी ने अब और शफीक के ई-मेल की आशा छोड दी थी। फिर भी उसके हाथ आदत से मजबूर होकर कम्प्यूटर में शफीक के ई-मेल खोजते थे। पंद्रह दिन बीतने के बाद अचानक उसके इन बॉक्स में शफीक का एक मेल नजर आ रहा था। शफीक का ई-मेल आई.डी. वास्तव में कितना प्यारा लग रहा था।उसमे कितना अपनापन नजर आ रहा था। वह ई-मेल आई.डी. मानो उसके जन्म-जन्मों का कोई साथी हो।
कूकी ने अधीर होकर ई-मेल खोला, मगर कम्प्यूटर बार-बार बंद हो रहा था।कूकी थक हारकर चिल्लाने लगी, " शफीक, जल्दी आओ, शफीक।"
कूकी की बात शायद कंप्यूटर ने मान ली और शफीक का ई- मेल धीरे-धीरे कर खुलने लगा। शफीक ने बहुत ही संक्षिप्त में लिखा था, "मुझे इंटरपोल ने लंदन में हुए बम ब्लास्ट के सिलसिले में गिरफ्तार कर लिया है। लंदन पुलिस के अनुसार उस बम ब्लास्ट में मेरे एक साथी का भी हाथ है। मेरा वह दोस्त मुझसे हर दिन फोन पर बात करता था। इसी वजह से पुलिस ने मुझे भी संदेह के घेरे में ले लिया है। मेरे चारों तरफ कड़ी निगरानी रखी गई है। यहाँ तक कि मुझे घर आने के लिए केवल एक घंटे की मोहलत दी गई थी। उसी समय मैने देखा कि तुम्हारे खूब सारे मेल आए हुए थे। मैं नहीं कह सकता मैं इस परिस्थिति से उबर पाउँगा भी या नहीं? अगर मैं इस परिस्थिति से मुक्त हो जाता हूँ तब हम फिर बातें करेंगे। मुझे गलत मत समझना, प्लीज। तुम्हारा शफीक।"
कूकी का दिल धडक उठा। कूकी ने कभी सोचा भी नहीं था शफीक का एक चेहरा ऐसा भी होगा। क्या यह वही शफीक था जो कूकी के जीवन में एक साल पहले उसके सपनों का सौदागर बनकर आया था। उसने कितने सारे रंगीन सपने अपने झोले में से निकालकर कूकी के सामने रख दिए थे। क्या उसने उन सपनों में एक बम भी छुपाकर रखा था? जो एक दिन उसके जीवन का सृष्टिकर्ता बनकर आया था। जिसने उसके जीवन की बगिया में तरह-तरह के फूल खिलाए थे। उसने उस बगिया के पानी के फव्वारों से इन्द्रधनुष के रंग छितराए थे और जिस बगिया की धरती को अपनी नरम- नरम घास की चादर से ढका था। वह आदमी एक दिन विध्वंसकारी के रुप में नजर आएगा। शायद वह झूठ बोल रहा होगा। शायद वह बचने का कोई रास्ता खोज रहा होगा. मगर उसके लिए बहाने बनाने की क्या जरुरत? अगर वह बचना चाहता तो उसके लिए चुपचाप रहना ही पर्याप्त था। कूकी बीच-बीच में कुछ दिन तक इंटरनेट लगाती रही।वह कुछ दिनों तक उदास रही मगर धीरे-धीरे कर वह अपने आप को समझाने लगी। वह चुपचाप रहने की कोशिश करने लगती। वह शफीक को भूलना चाहती। उसके लिए इतने नाटक की क्या जरुरत थी? इसका मतलब यह सब झूठ-मूठ का खेल था। मानो सच्चाई का कहीं पर भी नामोनिशान नहीं था। उसने अभी तक शफीक के सारे ई-मेलों को बहुत ही अच्छे ढंग से संभाल कर रखा था। एक ई-मेल में शफीक ने लिखा था, "रुखसाना,तुम्हे वह मखमली रात कैसी लगेगी, जिस रात को तुम आकाश की तरफ देखोगी और तुम्हें एक भी तारा दिखाई नहीं देगा। तुम्हें ऐसा लगेगा मानो पंछी गीत गा रहे हो, मगर उनके गीतों की ध्वनि तुम तक नहीं पहुँच पा रही होगी। तुम्हारे अंदर दिल तो धड़क रहा होगा मगर धड़कन का तुम्हें कोई अनुभव नहीं हो रहा होगा। क्या तुमने कभी इस प्रकार का अनुभव किया है, तुम अपने प्रेमी को पुकारने में व्याकुल हो और तुम्हारे विरह के दर्द वाली चीत्कार उस तक नहीं पहुँच पा रही हो?तुम तब क्या करोगी? एक घिनौनी वास्तविकता और रंगीन स्वप्निल दुनिया के पाटों के बीच पिसी जाओगी और उस समय तुम किसी के योग्य भी नहीं रहोगी।"
कूकी का मन अस्थिर हो गया था। शफीक क्या तुम पहले से जानते थे, कि हमारे सम्बंध का अंतिम परिणाम यह होगा? शायद यही वजह रही होगी इसलिए तुमने एक दिन लिखा था, "रुखसाना, पता नहीं क्यों, हमारे लिए वक्त और घड़ी का काँटा उलटा घूम रहा है। एक-एक पल और एक-एक सेकण्ड तुम्हारे और हमारे बीच के फासले को बढ़ाता जा रहा हो। वक्त एक दिन तुमको मुझसे बहुत दूर ले जाएगा और मेरे बहुत चाहने से भी मैं तुमको नहीं पा सकूँगा। मैं अगर तुम्हारे जैसी एक परी होता तो इसी क्षण उड़कर तुम्हारे पास पहुँच जाता। तुम्हारी गोद में बैठकर मैं समय के सारे षडयंत्रों को ध्वस्त कर देता। अगर मेरे पास इतने लम्बे दो हाथ होते तो मैं समय की सुई को वहीं रोक देता तथा तुम्हारी गोद को सिरहाना बनाकर चुपचाप सो जाता।"
कूकी बेचैन मन से कम्प्यूटर में लगी हुई थी।वह जिधर देखती, उधर उसे शफीक नजर आता था। कम्प्यूटर के अंदर एक निजी फोल्डर में उसके पासवर्ड की सुरक्षा कवच में चारों तरफ शफीक ही शफीक बंद था। उसका चित्त, उसकी भाषा, उसकी कविता। एक बार शफीक ने कहा था, "तुम बार-बार मुझे यह पूछती रहती हो, मैं तुम्हें इतना प्यार क्यों करता हूँ? कैसे बताऊँ इसका कारण? सब क्यों का उत्तर एक समान नहीं होता। तुम्हें शायद रब ने मेरे लिए बनाया हो कि तुम मेरी पतित जीवनचर्या, मेरी विचारधारा को बदलकर मेरी सारी समस्याओं का समाधान करते हुए मुझे शुद्ध और पवित्र बनाओगी। मैं तुमको प्यार करता हूँ क्योंकि तुमने ही मुझे मेरा परिचय दिया है। तुमने मुझे जीवन जीने की नई राह दिखाई है और वे सारी बातें सिखाई है, जिन पर अमल करके मैं एक अच्छा इंसान बन पाया हूँ।"
क्या कूकी के जीवन में आने से पहले ही शफीक आतंकवादियों के साथ मिला हुआ था? क्या वह कूकी के प्रेम के कारण आतंकवाद को छोड़ना चाहता था? लेकिन पुराने दुष्ट कर्मों के लिए दण्ड तो मिलना ही था। क्या वह अपनी सजा पूरी भुगतने के बाद कूकी के जीवन में फिर से लौट आएगा? क्या कूकी उसको फिर से स्वीकार कर पाएगी? नहीं, अब ऐसा नहीं हो पायेगा। कूकी का मन अभी भी इस बात की गवाही नहीं दे रहा था कि शफीक कभी आतंकवादी रहा होगा। क्या हथियार उठाने वाला कभी कैनवास पर चित्र बना सकता हैं? अपनी प्रेमिका के लिए कविता लिख सकता हैं? खून के धब्बें देखकर जिसका मन विचलित नहीं होता, क्या वह फूल के सौंदर्य से प्रभावित हो सकेगा?
कूकी को फिर भी संदेह होता है. शफीक ने लिखा था, "उसका कोई देश नहीं, उसका कोई धर्म नहीं। किसी भी आर्टिस्ट का कोई देश नहीं होता है।"
बड़ा ही रहस्यमयी आदमी था शफीक। उसका प्रेम एक छलावा मात्र था। कूकी को बहुत कष्ट हो रहा था, मगर उसके आतंकवादी होने पर विश्वास भी नहीं हो रहा था। कूकी की आँखें आँसुओं से भर आई थी, मगर वह रो नहीं पा रही थी। किसे दिखाएगी वह ये आँसू? किसे कहेगी वह कि उसके अंदर एक और सत्ता मौजूद थी? रुखसाना की सत्ता। किसे बताएगी कि उसके भीतर की एक सत्ता कहीं लुप्त हो गई है और वह उसे खोज नहीं पा रही है।
शफीक ने लिखा था, "रुखसाना, इंसान अधिकतर अपनी सारी जिंदगी एक पूर्णता को खोजने में बिता देता है । जबकि पूर्णता कहीं नहीं होती। अधिकतर लोग उसके पीछे भागते-भागते ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में पहुँच जाते हैं जहाँ से उन्हें अपने उत्तर अनसुलझे और क्षणिक लगते हैं। रुखसाना, हमारा सम्बंध कभी भी उस जड़, निर्जीव और आवेग शून्य प्रज्ञा के पास नहीं पहुँचे। इसके लिए मैं अल्लाह से दुआ मांगता हूँ। पता नहीं, अल्लाह मेरी दुआ कबूल करेंगे भी या नहीं?"
शायद इंसान को पहचानना दुनिया का सबसे कठिन काम होता है। या फिर आधुनिक राजनीति और मीडिया मिलकर इंसान के अंदर के सतेज, सुंदर और रंगीन फूलों जैसे कोमल भावों को छिन्न-भिन्न कर कुरुप बना देते हैं।क्या वह उसको ई-मल करने वाले शफीक को पहचानती थी? कौन था यह शफीक? उसकी प्रेम कविताएँ, उसकी बेचैनी, अपनी बेटी की शादी के समय पब्लिक बूथ में कतार लगाकर खड़ा रहने का पागलपन, ये सब क्या था?क्या यह सब आज के शफीक के साथ कोई मेल खाते हैं?
कूकी मानो एक लम्बा सपना देख रही हो। ऐसा सपना जो टूटने का नाम ही नहीं ले रहा हो। टूटते-टूटते वह सपना फिर नया रूप ले रहा था। सपने में कोई उसका हाथ पकड़कर एक अलग साम्राज्य में ले जा रहा था, जहाँ किसी तरह की कोई हिंसा नहीं, कोई छलावा नहीं। बचा है तो केवल प्यार ही प्यार। उस साम्राज्य में केवल मधुर संगीत की धुनें तथा लाल-नीली रोशनी से भरी मनोरम धरती। कूकी शायद अभी-अभी नींद से उठ रही है और सपनों वाला मायावी साम्राज्य गायब हो चुका था। और उसे सामने नजर आ रहा था चारों तरफ घनघोर बादलों से घिरा हुआ आकाश, कडकती हुई बिजली और मूसलाधार बारिश के कारण छत से टपकता पानी। दीवारों से झरने की तरह पानी बह रहा था। तभी छोटे बेटे ने आकर कहा, "मम्मी, देखो, सामने वाली सड़क पर कितना पानी भरा हुआ है? कार भी पानी में डूबती जा रही है। नीचे वाले क्वार्टर में पानी घुस गया है।"
कूकी का सपना टूट गया। वह खिड़की से बाहर की तरफ देखने लगी। बाहर जल तांडव मचा हुआ था। मुम्बई शहर पानी में डूबता जा रहा था। अचानक उसे अनिकेत का ध्यान आया। अनिकेत कहाँ है?
अनिकेत कहाँ हो तुम? वह आस-पास तो कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। तो फिर इतनी जोर-जोर से दरवाजा कौन खटखटा रहा था? ऐसा लग रहा है जमकर बारिश हुई है। अभी भी ठंडी-ठंडी हवा बह रही है। रात के कितने बजे होंगे?कूकी दरवाजे पर चिटकनी लगाकर अपने कमरे के अंदर लौट आई थी। कोई जोर-जोर से 'कूकी' 'कूकी' कहकर चिल्ला रहा था. कौन होगा वह? अनिकेत? उसका चेहरा साफ नहीं लग रहा था।
क्या कूकी कोई सपना देख रही थी?उसकी नींद किसी के जोर-जोर से आवाज देने से खुल गई थी।वह उठते ही दरवाजा खोलने के लिए जल्दी से बाहर निकली। मगर अंधेरा होने की वजह से उसे दरवाजा नहीं मिल रहा था। वह अलमारी के दरवाजे को बाहर का दरवाजा समझकर बार- बार टकरा रही थी। अंतः में उसने दीवार पर हाथ रखा और धीरे-धीरेकर आगे बढ़ती गई तो दरवाजा मिल गया। मगर अलमारी के दरवाजे से टकरा जाने के कारण उसके सिर में चोट आ गई थी और सूजन आने की वजह से सिर में दर्द होने लगा था। उसके बावजूद भी वह अंधेरे में तेजी से भागते हुए दरवाजे के पास पहुँच गई।
शायद अनिकेत आ गया है। वह दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। मगर जब उसने दरवाजा खोलकर देखा तो वहाँ पर कोई नहीं था।उसके पाँव कुछ समय के लिए दहलीज के पास आकर रुक गए। तब कौन हो सकता है दरवाजे पर दस्तक देने वाला? हवा? या वह अभी भी सपना ही देख रही है?
कूकी को रोना आ रहा था। अनिकेत किसी तकलीफ में तो नहीं फँस गया है? क्या वह बड़ी बेचैनी के साथ अपने परिवार को तो नहीं खोज रहा है? ऐसी आपदा के समय कौन उसकी मदद करेगा? सभी की हालत तो एक जैसी है। इस मूसलाधार बारिश में हर परिवार का कोई न कोई आदमी कहीं न कहीं बाहर पानी में फँस गया होगा। कौन उसके साथ इस मौसम में अनिकेत को खोजने के लिए बाहर निकलेगा?अनिकेत ने दोपहर के समय एक बार कूकी को फोन किया था, "कूकी, यहाँ मूसलाधार बारिश हो रही है। बारिश जब कुछ थम जाएगी, तब मैं घर लौटूँगा।" कहते-कहते बीच में ही फोन कट गया था।
अनिकेत की जगह के बारे में भी कूकी पूछ नही पाई। तब से लेकर अब तक अनिकेत की कोई खबर नहीं। टेलीफोन लाइन खराब हो गई थी। मोबाइल में भी टावर का सिगनल नहीं आ रहा था। अनिकेत अब तक घर क्यों नहीं आया?
उसको लग रहा था कि इस जल-प्रलय में सभी डूब जाएँगे। दिन भर लगातार मूसलाधार बारिश हो रही थी। रास्तों पर जल का स्तर बढ़ता ही जा रहा था। अगर इसी तरह पानी का स्तर बढ़ता रहा तो सारी मुंबई नगरी पानी में डूब जाएगी। सारे ठौर-ठिकाने हमेशा-हमेशा के लिए इस मूसलाधार बारिश के साथ बहकर चले जाएँगे। साथ ही उनके अपूरित असंख्य सपने, आशाएँ और आकांक्षाएँ। महाकाल की गोद में समा जाने के लिए कितना कम समय लगता है! शायद कल की सुबह होते-होते अनिकेत और कूकी का नाम इस धरती पर नहीं हो। समुन्दर के गर्भ में अथाह जलराशि के नीचे उनके सुख-दुख, पाने- खोने की सारी बातें अर्थहीन हो जाएगी।कुछ जीवन फिर भी शेष बचेगा।
जिस तरह एक महाप्रलय के बाद सृष्टि में शेष रह जाते हैं थोड़े-से बीज, कुछ विशेष फूलों के अंश, कुछ चिड़ियों का क्षीण गुंजन और कुछ डरे-सहमे जीवन। बचे हुए वे जीवन फिर से बिना किसी राग-द्वेष तथा खून खराबे की दुनिया का निर्माण करते हैं। फिर से एक बार सृजन की प्रक्रिया आरंभ होती है। थोड़े-से बीज खेतों में फसल बनकर लहलहाने लगते हैं। फूलों के अंश बगीचों में बदल जाते हैं। चिडियों के गुंजन आकाश को संगीतमय बना देते हैं. डरे सहमे इंसान फिर से ईर्ष्या-द्वेष की मायानगरी में फँसकर एटम बम बनाने लगते हैं।
कूकी को अंधेरे में इधर-उधर हाथ घुमाने पर एक टॉर्च मिल गई।उसने टॉर्च की मदद से दीवार घड़ी में देखा कि रात के दो बजने जा रहे थे। बाहर अभी भी मूसलाधार बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी। कूकी अंधेरे में बैठकर अनिकेत का इंतजार कर रही थी। वह आज से पहले कभी भी इतना प्यारा नहीं लगा था। घर की मुर्गी दाल बराबर। शायद कोई भी अस्तित्व पास में होने की वजह से अपना महत्व खो देता है।अनिकेत पास होकर भी उसके पास नहीं था। दोनों एक साथ बैठकर चाय पीते थे, लड़ाई-झगड़ा करते थे, ज्वाइंट पास-बुक में एक साथ पैसा रखते थे, अपने मन के मुताबिक घर बनवाते थे और बच्चों का जीवन सँवारने में लगे रहते थे। मगर उसके मन में अनिकेत के लिए लेशमात्र भी श्रद्धा के भाव नहीं थे। उसे एक कविता की पंक्ति याद आ गई, "तुम मेरी सुंदरी विधवा, मैं तेरे पति का कंकाल।"
कूकी की आँखें आँसुओं से भर आई। उसे ऐसा लग रहा था मानो अनिकेत कंधों तक गहरे पानी में फँस गया हो और अगर एक बित्ता पानी का स्तर और बढ़ गया तो खड़े-खड़े उसकी जल समाधि लग जाएगी।कूकी डूबते अनिकेत का पीला पड़ा हुआ चेहरा, पानी के बहाव से फिसलते हुए उसके पैर और जीवन बचाने की प्रार्थना में ऊपर उठे हुए हाथों की कल्पना करके जोर-जोर से रोने लगी। यह अनिकेत के प्रति प्रेम है अथवा स्वार्थगत अपनी असुरक्षा का भाव। अगर यह प्रेम है तो इसका मतलब यह हुआ कि कूकी के दिल के किसी कोने में अनिकेत के प्रति प्रेम आज तक छुपा हुआ था।
हाँ, वह अनिकेत से प्यार करती है। उसके बिना कूकी का अस्तित्व अधूरा है, उसकी दुनिया अधूरी है। अभी तक उसके दोनो बच्चें छोटे हैं, अपने पैरों पर खड़े होने में उन्हें समय लगेगा। उसके जीवन के नाटक का अभी तक पटाक्षेप नहीं हुआ है। लौट आओ, अनिकेत, लौट आओ। तुम तो शफीक नहीं कि मेरा घर छोड़कर चले जाओगे।
क्या नाराज हो गए हो अनिकेत? क्या तुम्हें मेरी गुप्त दुनिया के बारे में पता चल गया है? क्या यही कारण है, एक भयंकर अपराध-बोध मुझे सारी रात डसता जा रहा है ? क्या यह सब मेरे पापों का फल है? क्या तुम्हें खो देना मेरे लिए प्रायश्चित है? क्या तुम भी शफीक की तरह मुझे मंझधार में छोड़कर चले जाना चाहते हो, अनिकेत?
तभी नींद में छोटा बेटा बड़बड़ाने लगा। कूकी दौड़कर उसके पास चली गई। अब तक उसकी आँखें अंधेरे में देखने के लिए अभ्यस्त हो चुकी थी। नींद में छोटे बेटे की बड़बड़ाहट अस्पष्ट थी। कूकी उसकी पीठ पर अपना हाथ घुमाते हुए कहने लगी "बेटे, कोई सपना देख रहे हो? सो जा, मेरे लाड़ले, सो जा।"
दोनों बच्चे अपने पापा को घर नहीं आया देखकर बुरी तरह से डर गए थे।उन्होंने तरह-तरह के सवाल पूछकर कूकी को परेशान कर दिया था, "पापा अभी तक क्यों नहीं लौटे हैं? आपने पापा को कार ले जाने के लिए क्यों नहीं कहा?मम्मी, पापा कहाँ होंगे? कहीं पापा पानी में बह तो नहीं गए होंगे? अगर पापा घर नहीं लौटे तो हम लोग क्या करेंगे?"
बड़े बेटे ने अपने छोटे भाई को जोर से डाँटा था, "चुप, अंट-शंट क्यों बोल रहा है?"
कूकी ने अपनी बाहें फैलाकर अपने दोनो बेटों को सीने से लगा लिया था। अपने मन के सारे दुखों को छुपाते हुए वह कहने लगी, "तुम लोग व्यर्थ में परेशान हो रहे हो? मैं हूँ न। पापा जरुर लौट आएँगे। जैसे ही बारिश थम जाएगी, वैसे ही हम चाचा और मामा को फोन करेंगे। पापा को कुछ नहीं होगा। मूसलाधार बारिश के कारण पापा कहीं रुक गए होंगे। जैसे ही बारिश खत्म हो जाएगी, वसे ही पापा खुद फोन करेंगे।"
रात को कूकी ने जैसे- तैसे करके खाना बनाया, मगर दोनो बच्चों ने ढंग से खाना भी नहीं खाया। वह खुद भी भूखी रही। कूकी अपने बेटों के साथ पलंग पर लेटे-लेटे अनिकेत का इंतजार कर रही थी।बच्चों को तो इंतजार करते-करते नींद आ गई थी, मगर कूकी की आँखों में नींद कहाँ?
उसेक लिए बहुत ही खराब समय चल रहा था। ना उसके पास शफीक था और ना ही अनिकेत। कल तक वह अपनी काल्पनिक दुनिया में खोई हुई थी। कल तक वह अनिकेत के सहारे अपने दर्दनाक जीवन को घसीट रही थी।आज दोनों में से कोई उसके पास नहीं है। कूकी को ऐसा लग रहा था मानो वह अनिकेत के साथ वाणी विहार लेडीज हॉस्टल के सामने खड़ी होकर घंटो-घंटो तक बातें कर रही थी। और शफीक अभी-अभी आकर उसको पेरिस साथ जाने के लिए कह रहा था।
पेरिस का नाम दिमाग में आते ही उसे शफीक द्वारा भेजी गई पिकासो वाली पेंटिंग याद आने लगी। पेंटिंग का नाम था, "ले कोकू मेनेफिक"। रुखसाना, जानती हो इसका मतलब क्या होता है? इसका मतलब होता है, वह पत्नी जो अपने पति को छोड़कर दूसरे मर्दों के प्रेम में मस्त रहती है। वह पेंटिंग बहुत ही अद्भुत थी। एक औरत पहिये वाली गाड़ी में अपने पैर के ऊपर पैर रखकर सोई हुई है। पैरों के बीच से उसके यौनांग साफ दिखाई दे रहे थे। एक नंगा आदमी उस पहिये वाली गाड़ी को खींच रहा है और कुछ नंगे आदमी उस दृश्य को छिपकर देख रहे हैं। पेंटिंग में बाईं तरफ एक लड़की फ्रॉक पहनकर घोड़े के ऊपर खड़ी है और उसके हाथ में खुला हुआ एक चाबुक है।
कूकी को उस पैंटिंग का भावार्थ मालूम नहीं था। वह शफीक की भाँति कोई पेंटर नहीं थी। फिर भी पता नहीं क्यों, उसे मूसलाधार बारिश की उस अंधेरी रात में पिकासो की वह तस्वीर याद आने लगी। ले कोक मेनेफिक मतलब वह औरत जो गैर मर्दों के प्रेम में मस्त रहती हो।वह एक विचित्र पापबोध से ग्रस्त होती जा रही थी। आज तक उसके मन में कभी भी इस तरह पाप की भावना नहीं आई थी मगर आज पता नहीं क्यों? ओह! अनिकेत,तुम लौट आओ, आओ देखो, मैं कितनी बेचैनी से तुम्हारा इंतजार कर रही हूँ।
कूकी की आँखें फैली की फैली रह गई या पता नहीं, कहीं यह हेलुसिनेशन तो नहीं था? वह दूर से अनिकेत को देख रही थी, मंद रोशनी में वह एक जिन्न की तरह लग रहा था। उसके हाथ अपने आप अनिकेत की तरफ बढ़ते जा रहे थे उसको छूने और गले लगाने के लिए।
उसके हाथ अपने आप अनिकेत की तरफ बढ़ते जा रहे थे उसको छूने और गले लगाने के लिए। यद्यपि उसे अनिकेत को सुबह-सुबह घर की दहलीज पर सिर से पाँव तक एक फोटो की तरह खड़े देखकर विश्वास नहीं हो रहा था। उसको देखते ही कूकी की अलसाई आँखों से नींद उड़ गई और उसके होंठ थरथराने लगे। कूकी ने अनिकेत को हाथ आगे बढ़ाकर अपनी छाती से लगा लिया मानो उसके बिना कूकी का कोई अस्तित्व नहीं था। अनिकेत, तुम्हारे बिना हम नहीं जी सकते।
"अंदर चलो, अन्दर चलो। बाहर खड़ी होकर यह क्या नाटक कर रही हो।" कहते-कहते अनिकेत कूकी को एक तरफ करते हुए घर के अंदर चला गया। उसके हिसाब से मानो बीते अड़तालीस घंटो में कुछ भी नहीं हुआ था मानो बाकी दिनों की तरह वह आज भी ऑफिस से घर लौटा हो। अनिकेत की आवाज सुनते ही बच्चें बिस्तर छोड़कर फटाफट उसके पास आ गए और पूछने लगे, "पापा अभी तक आप कहाँ थे? आप तो जानते ही हो मूसलाधार बारिश और बाढ़ ने मुम्बई में चारों तरफ तबाही मचाई है। लाखों लोग बाढ़ की चपेट में आए हैं। हम लोग तो बुरी तरह से डर गए थे कि कहीं आप भी बाढ़ की चपेट में नहीं आ गए हो। नहीं तो, आपने अपनी सही सलामती का हमे फोन क्यों नहीं किया ?"
"बच्चो, मैं तो ऑफिस में था। ऐसे कैसे बाढ़ की चपेट में आता? मैने तुम्हारी मम्मी को फोन किया था।"
"फोन पर पूरी बात कहाँ हुई? बीच में ही फोन कट गया था। उसके बाद तो आपने फोन भी नहीं किया।"
छोटे बेटे ने कहा, "जब आप सही सलामत अपने ऑफिस में थे। तब फिर मम्मी फूट-फूटकर क्यों रो रही थीं?"
"तुम्हारी मम्मी बहुत बड़ी नाटकबाज है। क्या मैं किसी झुग्गी झोपड़ी में काम करता हूँ कि थोड़ी सी बाढ़ आने पर मैं उसके साथ बह जाऊँगा?"
अनिकेत का व्यंग्य-बाण कूकी से सहा नहीं गया। वह विरक्त होकर कहने लगी, "कोई भी दैवी-आपदा अमीर- गरीब को नहीं देखती है।"
"ठीक कहती हो, मगर इसका मतलब यह नहीं है कि छोटे बच्चों के सामने रोना-धोना करके उन्हें नर्वस करो। तुमने आज जिस तरह से मुझे अपनी बाहों में लिया, तभी मैं समझ गया था कि तुमने बच्चों को बहुत नर्वस किया होगा। तुम कभी-कभी मूर्ख गँवार औरतों की तरह व्यवहार क्यों करती हो?"
"एक बात कहूँ, बुरा मत मानना। तुम्हें इतना घमंड किस बात का है? आई.आई.टी. से इंजिनियरिंग करने का मतलब यह तो नहीं है। ऐसे भी तुम्हारे परिवार के सभी लोगों में अहम-भाव कुछ ज्यादा ही है।"
"क्यों, तुम्हारा बाप कमा कर देता है इसलिए वे लोग घमंड का प्रदर्शन करते हैं? तुम्हारे घर वालों के बारे में बताऊँ ....?"
अनिकेत के गुस्से को देखकर बड़ा बेटा कहने लगा, "पापा, प्लीज, चुप रहिए न। सुबह-सुबह किचर-किचर करना अच्छा लगता है?"
कूकी बड़े बेटे का मूड़ भाँपते हुए अनिकेत से पूछने लगी, "चाय बनाती हूँ?"
वह पहले से जानती थी कि अनिकेत बिना कपड़े बदले घर की किसी चीज को हाथ नहीं लगाएगा. सबसे पहले वह अपनी शर्ट पेंट खोलकर वाशिंग मशीन में डालेगा फिर लूंगी पहनकर अपनी अंगूठी व घड़ी साफ करने के बाद सोफे के ऊपर जाकर बैठ जाएगा। अति साफ-सफाई रखने वाली बीमारी से ग्रस्त होने के कारण उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया था।
अनिकेत को टॉवेल देकर कूकी रसोई घर के भीतर चली गई। रसोई-घर में जाते ही उसे याद आया कि घर में आटा खत्म हो गया है। तेज बारिश होने की वजह से कॉलोनी में ब्रैड बेचने वाले भी नजर नहीं आ रहे थे।वह दो दिन से चूड़े का उपमा बनाकर बच्चों को खिला रही थी। अनिकेत को चूड़े का उपमा पसंद नहीं है। वह तो यह भी सुनना नहीं चाहेगा कि तेज बारिश की वजह से वह डिपार्टमेंटल स्टोर नहीं जा पाई। यह सुनकर वह गुस्से से तमतमा उठेगा और कहने लगेगा, "मैं दो दिन घर में क्या नहीं रहा,घर की सारी व्यवस्था बिगड़ गई। तुम दो दिन घर नहीं चला पाई।"कूकी ने अंत में काफी सोचने के बाद अनिकेत के लिए सूजी का उपमा बना दिया। अनिकेत स्नान करने के बाद पूजा करने लग गया, तब तक कूकी घर के सामान सामानों की लिस्ट बनाने लगी,कि उसे इस महीने कौन-कौन सा परचूनी सामान खरीदना हैं? अनिकेत प्रतिदिन कम से कम आधे घंटे तक पूजा करता है, मगर कूकी कभी नहीं। दोनों का स्वभाव अलग-अलग होने के बाद भी तकदीर ने उन्हें जोड़ दिया था। सबसे बड़ी अचरज की बात यह थी कि दोनों ने एक दूसरे को पसंद कर प्रेम-विवाह किया था. मगर दुनियादारी में कदम रखने के बाद उसे पता चला कि अनिकेत प्रेक्टिकल आदमी है। कूकी कुछ ज्यादा ही संवेदनशील है जबकि अनिकेत कुछ ज्यादा ही संवेदनहीन।
अब तक अनिकेत की पूजा समाप्त नहीं हुई थी। कूकी डायनिंग टेबल पर उसका नाश्ता रखकर बालकनी में चली गई। वहाँ से वह बरिश में डूबी हुई मुंबई का नजारा देखने लगी। मुंबई की गगन-चुंबी इमारतें और सड़कें दूर- दूर तक कमर तक पानी में डूबे हुए नजर आ रहे थे। अभी तक रास्तों में पानी का भराव साफ नजर आ रहा था। अगर कूकी भी अनिकेत की बात मानकर ऊपर वाला फ्लैट नहीं लेती तो शायद उनके घर में पानी घुसने की नौबत आ जाती। कूकी को ऊपर वाला घर एक कैदखाने की तरह लग रहा था। उसके हिसाब से नीचे वाले घर का एक अलग आकर्षण होता है।कूकी को नीचे वाले घर का सजा सजाया बगीचा छोड़कर जाने में बड़ा दुख लग रहा था। बच्चें भी उस घर को छोड़ने के पक्ष में नहीं थे। बड़े बेटे ने उस घर में एक रातरानी का पौधा लगाया था, जो देखते-देखते काफी बड़ा हो गया था। उस पेड़ से उसे बहुत लगाव था, अतः वह उसे छोड़कर किसी दूसरे घर में नहीं जाना चाहता था। वह अक्सर कहता था, नीचे वाले घर में रहने की वजह से उसे स्कूल बस पकड़ने में आसानी रहती है।छोटा बेटा स्कूल बस का हॉर्न सुनते ही बेल्ट और जूते हाथ में पकड़कर भागते हुए बस पकड़ लेता था। अब ऊपर वाले घर में रहने के कारण बस पकड़ने के लिए पहले से ही तैयार होकर बस स्टाप तक पहुँचना पड़ता है .
अनिकेत अपना तर्क देता था, "यह घर सबसे पुराना है। दीवारों में चारों तरफ से रिसाव हो रहा है। घर के सारे दरवाजें ढीले हो चुके हैं। कॉलोनी के सभी लोग नए फ्लैट में जाना चाहते हैं। केवल तुम लोग इस मकान को छोड़ना नहीं चाहते हो। एक बार जाकर नया फ्लैट तो देखो। देखने में कितना सुंदर और आधुनिक डिजाइन का लग रहा है! इसके अलावा, उसमें एक बड़ा कमरा अलग से बना हुआ है, जिसे बच्चों के स्टडी-रुम के रुप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यू शुड बी मॉडर्न। आदिवासियों की तरह बाड़ी, बगीचा, कुँआ, सहजन के पेड़ आदि से अभी तक चिपके हुए हो? इस घर से ऐसा-कैसा मोह है?"
कूकी के लिए अनिकेत की इच्छा के विरुद्ध जाना सम्भव नहीं था। अनिकेत की बात को मानते हुए उन्होंने कुछ ही दिन पहले वह मकान छोड़कर नए फ्लैट में प्रवेश किया था. अब उसे इस बात पर विश्वास हो गया था, भगवान जो भी करता है, अच्छे के लिए ही करता है। नहीं तो, अगर वे मूसलादार बारिश के समय पुराने घर में रहते होते तो शायद उनकी हालत खराब हो गई होती।
अनिकेत कूकी को डायनिंग टेबल के पास बुलाकर अपनी थाली में डाले हुए उपमा को कम करने के लिए कहने लगा।
कूकी पहले से जानती थी कि अनिकेत उपमा पसंद नहीं करता था। इसलिए वह उससे पूछने लगी, "दूध कॉर्न फ्लेक्स दे दूँ? घर में आलू-प्याज, आटा, ब्रैड कुछ भी नहीं है।"
"घर में आते ही नहीं का नाटक शुरु हो गया।"
"इतनी तेज बारिश में न तो मैं सामान खरीदने के लिए जा पाई और न ही बच्चे को भेज पाई।"
अनिकेत नाश्ता करने के बाद तुरंत ऑफिस की तरफ रवाना हो गया। जाते-जाते वह कहने लगा "अगर आज केजुअल लीव ले लेता तो उसके लिए अच्छा रहता। मगर ऑफिस में कुछ ऐसा काम फँस गया है कि केजुअल लीव लेना उचित नहीं होगा। जानती हो, हम लोग पिछले दो दिनों से ऑफिस में बहुत परेशान हुए हैं। किसी को पता नहीं था कि ऑफिस बस बीच किसी रास्ते में फँस गई थी। कैण्टीन का खाना खाकर रहना पड़ा था दोनो दिन। मैं अपना और नामदेव का टेबल पास-पास सटाकर उसके ऊपर सो गया था।"
"यह नामदेव कौन है?"
"अरे, वही महा डरपोक आदमी। इतनी तेज बारिश में भी वह अपने घर चला गया। वह अपने माँ-बाप के साथ बान्द्रा में रहता है। मुझे नहीं लगता कि वह अपने घर पहुँच पाया होगा। इधर उसके घर वाले परेशान हो रहे होंगे। उसके घर से बार-बार ऑफिस में फोन आ रहा था। उसके लिए सबसे बड़ी दिक्कत वाली बात थी उसकी पत्नी का पेट से होना।"
और अनिकेत ज्यादा कुछ नहीं कहकर तेजी के साथ घर से बाहर निकल गया।वह बाहर जाते-जाते कह रहा था "तुमने जो सामान की लिस्ट मुझे दी है, वह सारा सामान शाम को ही खरीद पाऊंगा? नहीं तो फिर खुद मार्केट काम्प्लेक्स जाकर खरीद लेना।"
अनिकेत के जाने के बाद बड़े बेटे ने कहा, "मुझे फिजिक्स की ट्यूशन जाना है। बारिश बंद हो गई है, मैं जा रहा हूँ।"
बड़े बेटे के बाहर जाते ही छोटा बेटा कहने लगा, "मम्मी, मैं जिमी के घर जा रहा हूँ। पता करके आता हूँ स्कूल कब खुलेगा? थोड़ा विडियो गेम भी खेलूँगा। मुझे आने में थोडी देर होगी।"
देखते-देखते एक घंटे के भीतर घर पूरा खाली हो गया। फिर से वही अकेलापन कूकी को काटने लगा। दिन में शफीक की यादें फिर से तरोताजा होने लगी। शफीक से बात किए बिना कितने दिन बीत गए थे ? वह शफीक को भूलने लगी थी। क्या वह शफीक से नाराज थी? उसे शफीक से नफरत हो गई थी? या फिर परिस्थितियों के सामने वह सिर झुकाने के लिए मजबूर थी? वह अभी क्या कर रहा होगा? कहाँ होगा वह? काश! यह मन एक ब्लैकबोर्ड की तरह होता। एक बार मिटा देने से सब कुछ मिट जाता। तब उसके लिए कोई समस्या नहीं रहती।
शफीक, अभी कहाँ हो तुम? क्या जेल में? या अपने घर में? या अपने डिपार्टमेंट में अपने पुराने कारोबार के साथ? ग्रुप सेक्स या अपने प्रोफाइल में?
क्या कभी तुम्हें रुखसाना की याद आती है? पता नहीं, अभी भी शफीक की यादें कूकी के कोमल दिल में भीगी हुई मिट्टी की तरह जिन्दा है। वह यह अच्छी तरह जानती है शफीक कभी भी उसके जीवन में अनिकेत की तरह लौटकर नहीं आ सकता है। इतना जानने के बाद भी क्या वह अपने शफीक को भूल सकती थी?
शफीक, कहाँ हो तुम? देखो, ज्येष्ठ महीने की दोपहर की भाँति जिंदगी कैसे पार होती जा रही है! मेरी जिंदगी ठूंठ की ठूंठ रह गई है। ना चिड़ियों की कोई चहचहाट सुनाई देती है और ना ही किसी को छाया मिलती है। मेरा जीवन सूना-वीराना पड़ा है। मेरे जीवन के पेड़ की शाखाएँ-प्रशाखाएँ उदास हो गई है और अपने हाथ आकाश की तरफ उठा दिए हैं। दिल के अंदर प्रेम का झरना सूखता जा रहा है। उस झरने पर लगातार गरम हवा के झोंके चल रहे हैं तथा पहचान में नहीं आने वाली तरह-तरह की परछाइयाँ बना रही है। शफीक, तुम भी अनिकेत की तरह मेरे जीवन में लौट आओ।
लौट आओ, मेरे जीवन में एक आतंकवादी बनकर नहीं, एक कवि बनकर, एक प्रेमी बनकर। क्या तुम वास्तव में जेल की चारदीवारी के भीतर कैद हो? इसलिए तुम चुप हो? क्या तुम अपनी रुखसाना को भूल गए हो? या फिर तुम्हें क्रूर काल के चक्र ने सब-कुछ भूला दिया है? शफीक, क्या तुम इंटरपोल के घेरे में भिनभिनाती हुई मक्खियों की तरह सवालों का जवाब देते-देते थक गए हो ?क्या तुम्हारा शरीर पुलिस की घोर यातना की वजह से लहुलुहान हो गया है? शफीक, तुम्हें बहुत कष्ट हुआ होगा ? मेरा मन बहुत दुखी है।मेरे साथ अक्सर ऐसा क्यों होता है? क्यों उठता है चाय के प्याले में तूफान? हाथ की पहुँच में स्वर्ग आते-आते अचानक छूट गया और नरक का अंधेरा उसके चारों तरफ घिरने लगा। मन ही मन प्रबल इच्छा हो रही थी कि एक आवरण बनकर तुम्हें ढक लूँ। जानते हो, शफीक, तुम्हारे और मेरे अंदर ज्यादा फर्क नहीं है। तुम भी एक कैदी हो, मैं भी एक कैदी। तुम्हें भी यातनाएँ दी जा रही है और मुझे भी।
नौकरानी घर का काम करके चली गई। कूकी कम्प्यूटर के सामने हाथ पर हाथ रखकर बैठ गई। उसे ऐसा लग रहा था मानो उस कुर्सी पर बैठे हुए एक युग बीत गया हो । की-बोर्ड पर उसकी अंगुलियाँ चले हुए बहुत दिन बीत गए थे। कोई जमाना था यह जगह कितनी प्यारी लगती थी। आज उसी कुर्सी पर बैठने से मन भारी उदास हो जाता है। इंटरनेट लगाने पर एक शरारती दरबान की भाँति हँसते हुए कम्प्यूटर बताने लगा, यू हेव जीरो अनरेड मेसेज। और इनबॉक्स खोलने का क्या मतलब था? कूकी वहीं से वापस लौट आती थी।
कूकी ने फिर भी मन मसोसकर शफीक के आखिरी ई-मेल को खोला और पढ़ने लगी, "रुखसाना, लंदन बम ब्लास्ट के बाद मैं गिरफ्तार हो गया हूँ।" एकदम छोटा-सा ई-मेल जिसकी अंतिम पंक्ति थी, "इंशा अल्लाह, वी विल मीट अगेन।" कूकी के दिल में अभी भी शफीक के लिए आशा की किरण जगी हुई थी। अभी भी सब कुछ खत्म नहीं हुआ था। सोचते-सोचते वह शफीक के द्वारा लिखी हुई कुछ कविताएँ पढ़ने लगी। कितनी प्रेम-रस से भरी कविताएँ थी वे! उसे सब कुछ सपने की तरह लग रहा था। वर्डपैड खोलकर वह अपने दिल की व्यथा को लिखने लगी।
कभी
भयंकर नीरवता में
सुषुप्ति और जागृति के मध्य
मेरी चेतना की एक झलक में
तुम मेरे दिल के किसी झरोखे में दिखाई देते हो,
अचानक मैं उस झरोखे को बंद करती हूँ
सोई हुई यादों को जगाती हूँ
बहला फुसलाकर।
मैं उन सभी यादों को भूल जाना चाहती हूँ
नहीं चाहते हुए भी अतीत की तस्वीरें
मेरे मानस-पटल पर उभर कर सामने आती है।
कुछ अन सुलझे क्षण मुझे चिड़ाने लगते हैं
कभी उन्हीं क्षणों में तुम्हे हँसते हुए देखती थी
एक बार तुम्हें हँसते हुए देख
बालों में चमेली के फूल गूंथे थे
होठों पर लाल रंग लगाया था।
आज इन क्षणों की सुगंध मुझे पसंद नहीं
मैं तो अपने चेहरे को दर्पण में देखना भी भूल गई।
कूकी को अपने आप पर आश्चर्य होने लगा। कभी शफीक कविता लिखा करता था, मगर आज वह भी कविता लिखने लगी है। उसके दिल में अब तक कहाँ छुपा हुआ था कवित्व के छोटे-से झरने का यह उद्गम-स्थल? क्या उसे शफीक के पास यह कविता भेज देनी चाहिए। भले ही वह इस कविता का कोई उत्तर न दे।शफीक पूछताछ के बाद बाहर लौट आएगा? वह मन ही मन क्या सोच रहा होगा? क्या वह उसी बेसब्री के साथ रुखसाना के ई-मेल का इंतजार कर रहा होगा?
कूकी ने फिर एक बार इंटरनेट लगाया। उसने होमपेज खुलने से पहले अपनी आँखें बंद कर ली, क्योंकि अपने इनबॉक्स में जीरो मेसेज देखने की उसकी हिम्मत नहीं थी। उसने अंगुलियों के पोरों के बीच में से झाँककर देखा था, "यू हेव जीरो अनरेड मेसेज।" यह देखते ही वह शफीक के बारे में सोचते-सोचते दुखी हो रही थी। फिर भी जिद्दी अंगुलियाँ की-बोर्ड पर लिखने लगी, "हाऊ आर यू शफीक? योर रुखसाना।" उसने इस ई-मेल को शफीक के ई-मेल आई.डी. पर भेज दिया।उसमे अपनी कविता भेजने का साहस नहीं था ।
कूकी ई-मेल भेजने के बाद डर के मारे काँपने लगी। खुदा-न-खास्ता, अगर इंटरपोल का लम्बा हाथ उसकी गर्दन तक पहुँच गया तो? क्या करेगी वह? कौन है यह शफीक? तुम्हारे उसके साथ क्या सम्बंध है ? कूकी उस समय अपने कुटुम्ब और अपने देश के सामने क्या चेहरा दिखाएगी ?
कूकी अपनी भूल पर काफी समय तक पछताती रही, मगर अब और क्या किया जा सकता है?
"मगर और क्या किया जा सकता है?" अनिकेत ने कहा था। "मेरे हाथ में कुछ होता तब न, मैं कुछ कर सकता। हेडक्वार्टर से आर्डर आया हुआ है। अगर मैं नहीं जाऊँगा तो कोई दूसरा चला जाएगा, मगर उसके बाद कंपनी कभी भी मुझे विदेश यात्रा के लिए नहीं भेजेगी। सब लोग तो विदेश यात्रा के लिए मुँह फाडकर बैठे हैं। अगर यह मौका मैने जानबूझकर हाथ से जाने दिया तो लोग मेरी खिल्ली उडाएँगे।"
कूकी और अनिकेत दोनो कुछ समय तक गंभीर मुद्रा में बैठे रहे। फिर कूकी कहने लगी, "विदेश यात्रा की बात तो अच्छी है। मगर कंपनी अमेरिका या कनाडा भेजती या फिर कम से कम मलेशिया या थाइलैण्ड भेजती तो बात कुछ और होती। मगर कुवैत का नाम सुनने मात्र से ही मन में एक अजीब-सा भय पैदा होता है।"
"भय किस चीज का? क्या कुवैत में लोग नहीं रहते हैं?"
"भय तो लगेगा ही। भय वाली जगह है वह।" कूकी ने कहा, "कुवैत में अभी-अभी दो भारतीय ड्राइवरों को अगवा कर लिया गया था।"
अनिकेत गुस्से से कहने लगा, "तुम मुझे क्या ड्राइवर समझती हो? नौकरी करना कोई बच्चों का खेल नहीं है। जब ओखली में सिर दिया तो फिर मूसलों का क्या डर? आई एम पेड फॉर देट। अगर कंपनी चाहेगी तो मुझे नर्क में भी भेज सकती है और मैं उस नर्क में जाने के लिए भी बाध्य हूँ।"
"हम तो ऐसे भी तुम्हारे जाने के बाद अधमरे हो जाएँगे।" कूकी कहने लगी, "तुम एक साल के लिए कुवैत जा रहे हो। हम न तो तुम्हारे साथ कुवैत जा पाएँगे और ना ही उड़ीसा।बच्चों की पढाई एक साल तक बंद तो नहीं की जा सकती। इसके अलावा, अभी तो बड़े बेटे के लिए कैरियर बनाने का क्रिटिकल समय है। ऐसे समय में तुम चले जाओगे तो मै अकेली क्या करुँगी? मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। मुझे तो चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा दिखाई दे रहा है।"
अनिकेत अभद्र हँसी हँसते हुए कहने लगा, "अब समझ में आया न, घर चलाना बहुत कठिन काम है। अभी तक तो तुम्हारे कंधों पर घर का बोझ पड़ा नहीं, अभी से चिंता करने लग गई हो।"
"चिंता नहीं होगी?" कूकी ने पलटकर सवाल किया।
"वही तो मैं भी सोच रहा हूँ।" अनिकेत ने कहा,
"मगर किया क्या जा सकता है? सही में एक साल तुम्हें अकेले काटने में बहुत परेशानी होगी।"
"ऐसे बुरे वक्त में तुम मुझे छोड़कर जाना चाहते हो, अनिकेत।" कूकी मन ही मन सोचने लगी।वह कल अगर समस्याओं से घिर जाती है तो? उस समय उसका साथ कौन देगा? अगर शफीक के बारे में छानबीन करती हुई पुलिस उसके पास पहुँच जाती है तो उसे कौन बचाएगा? अगर इंटरपोल को कोई सुराग मिल जाता है तो?कूकी ने अपने मनोभोवों को छुपाने का प्रयास करते हुए कहा, "तुम तो जानते हो, अनिकेत। बीच-बीच में मेरी तबीयत खराब हो जाती है।"
अचानक अनिकेत गुस्से से तमतमा उठा। कूकी ने उस समय उसके इस तरह के व्यवहार की उम्मीद नहीं की थी। अनिकेत ने कहा, "तो क्या मैं इस सदारोगी के लिए चौबीसों घंटे पहरा देता रहूँ?"
" ऐसी गंदी भाषा का इस्तेमाल क्यों कर रहे हो, अनिकेत?"
"कौन-सी गंदी भाषा?मैंने ऐसा क्या कह दिया ? याद करो, तुम जब से इस घर में आई हो, ऐसा कोई महीना बीता है, जिस महीने में तुम बीमार नहीं पडी हो?"
"पिछले ग्यारह महीने से मैं डॉक्टर के पास नहीं गई हूँ।" कूकी ने कहा।
"अच्छी बात है. मगर इसका मतलब यह नहीं है कि तुम बीमार नहीं पड़ी हो. खैर, अगर तुम्हे अपनी तबीयत को लेकर इतनी ज्यादा चिंता सता रही है तो मैं अपनी माँ को यहाँ बुला लेता हूँ वह तुम्हारी देख-भाल करेगी."
"हे भगवान! तुम्हारी माँ से मैं अपनी देखभाल करवाऊँगी। वह तो खुद बुड्ढी हो गई है। अगर उनकी तबीयत बिगड़ गई तो उनको कौन संभालेगा? बेहतर यही होगा, मैं अकेली बच्चों के साथ एक साल तक रह लूँगी। आगे से माँ को यहाँ बुलाने की बात मत करना।"
"ठीक बात कह रही हो।" अनिकेत ने चिंतित होकर कहा।
"मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है, क्या करना उचित रहेगा? एक तरफ तुम लोगों को एक साल के लिए छोड़कर जाने की बात सोचने से घबराहट होने लगती है, दूसरी तरफ मैं यह सुनहरा मौका भी हाथ से गँवाना नहीं चाहता।"
'मौका' शब्द सुनते ही कूकी को अचानक शफीक की याद आ गई। वह भी इन्टरव्यू देते समय इसी तरह अंतर्द्वंद्व में रहता था। रुखसाना, क्या करुँगा? मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। तुम्हें अभी साथ में लेकर पेरिस जाऊं या जॉब पक्का होने के बाद तुम्हें साथ ले जाऊं। कम से कम छह महीने तो साथ में रह पाओगी। मेरे दिमाग में यह भी बात आ रही है अगर कहीं मैं इन्टरव्यू में फेल हो गया तो तुम्हें पाने का एक सुनहरा अवसर मेरे हाथ से निकल जाएगा। पता नहीं क्यों, पुराना सम्बंध बीच-बीच में तरोताजा हो जाता है। जितना भी वह भूलना चाहे, मगर वह भूल नहीं पाती है।
अनिकेत ने उस दिन कूकी और बच्चों को अपने साथ ले जाकर खूब घुमाया था। मुम्बई के जौहरी बाजार से उसके लिए एक मंगलसूत्र भी खरीदा था और बच्चों के लिए जीन्स की पेंट, टी-शर्ट और पर्स। पापा की विदेश-यात्रा को लेकर बच्चें बहुत खुश थे। एक की उन्नति को देखकर दूसरे को खुशी होगी ही मानो वे एक ही सूत्र में पिरोये हो। मगर अनिकेत बहुत चिंतित दिखाई दे रहा था।उसने तभी तो बच्चों के लिए खूब सारा सामान विदेश जाने से पहले ही खरीद लिया।
कूकी ने सोने से पहले अनिकेत से कहा था, "अनिकेत, तुम निÏश्चत होकर विदेश जाओ। हमें कोई दिक्कत नहीं होगी। देखते ही देखते चुटकियों में एक साल पार हो जाएगा और किसी को पता भी नहीं चलेगा। कॉलोनी में तो सब जान-पहचान वाले लोग हैं। कोई परेशानी नहीं होगी। उसमें भी जुगलकर जैसे समाजसेवी आदमी भी है, जिन्होंने मेरे लिए रक्त दान किया था।"
कूकी सोच रही थी, काश! ऐसा भी होता कि वह उड़ना जानती। अगर वह उड़ना जानती तो वह उड़कर बहुत दूर चली जाती। मगर यहाँ तो बात दूसरी थी। अनिकेत अपना घरौंदा छोड़कर उड़ने जा रहा था। यही यथार्थ है। जितना भी कठोर हो, कर्कश हो या निष्ठुर हो, उसे तो मानना ही पडेगा। कूकी को अचरज हो रहा था। एक दिन उसको इसी फ्लैट में एकदम एकांत चाहिए था। उस एकांत में कूकी और शफीक के अलावा कोई भी न हो। और जब अनिकेत एक साल के लिए जा रहा है तो खुश होने के बजाय उसके चेहरे पर मायूसी छा रही थी। उसे ऐसा लग रहा था मानो वह एकाकीपन उसे खा जाएगा।
आधी से ज्यादा रात बीत चुकी होगी। बच्चें और अनिकेत गहरी नींद में सो गए थे, मगर कूकी की आँखों में नींद का नामोनिशान नहीं था। वह अपने बिस्तर से चुपचाप उठकर बैठ गई। उसका मन भयंकर तरीके से व्यग्र हो रहा था। एक साल के लिए अनिकेत उसको छोड़कर जा रहा है। पता नहीं, उसका क्या होगा? किसके आधार पर जीएगी वह?
उसने मन की बेचैनी को कम करने के लिए अपनी किताब की अलमीरा में से एक डायरी बाहर निकाली जिसमें उसने शफीक की कुछ कविताएँ लिखकर रखी थी। शफीक की गिरफ्तारी के बाद कूकी बुरी तरह से टूट चुकी थी।उसने एक अनजान भय के कारण अपने कम्प्यूटर में से शफीक के सारे ई-मेल डिलीट कर दिए थे।उसने डिलीट करने से पहले शफीक की कुछ कविताएँ अपनी डायरी में नोट कर ली थी। डायरी के पन्ने पलटकर वह शफीक की एक कविता पढ़ने लगी,
"शमां जलती है उन दो परवानों के लिए
जिनके सिवाय जमीं पर कोई नहीं
केवल तुम और मैं,
सामने हो
एक लाजवाब रात्रि भोज और
सुरा की बोतल।
समय के इस स्थिर पल में हम एक साथ हैं
दुनिया में वे बिरले ही है, जो इस प्यार को पाते हैं
और तारों से टिमटिमाती रात में
केवल हमारी छोटी-सी दुनिया में
तुम, मैं और जलती हुई वह शमां।
हम महसूस करते हैं एक दूसरे की धड़कन
पतझड़ के हवा के झोंके
विचलित करते मेरे दिलोदिमाग को
वे लंबी आहें और मधुर मुस्कान
हम एक दूसरे के आगोश में
एक धधकती ज्वाला
जो हमारे दिल में जलती
हम एक दूसरे का चुम्बन करते
मानो देवदूत अधरों का रसपान करते
मेरे लिए तुम जन्नत की एक परी हो
तुम्हें पाने के लिए मैं मौत को भी गले लगा लूँगा
मगर यहाँ इस मेज पर केवल तुम और मैं।"
तभी एक कार रात की नीरवता को चीरते हुए पार्किंग में आकर रुक गई। अवश्य मिसेज सूद ही होगी। वह अधिकांश समय बाहर दावत करती है और देर रात घर लौटती है। कूकी की आँखें बोझिल होने लगी। आखिरकर वह टेबल लैम्प बुझाकर अनिकेत के पास जाकर सो गई।अभी भी दोनों के बीच में एक लम्बा गोल तकिया पड़ा हुआ था। कूकी यह देखकर मन ही मन हँसने लगी। वह सोचने लगी, जहां उसका मन सरहद लांघकर दूर-दूर भाग रहा है और यहाँ पास-पास सोते हुए भी उन्होंने तकिया डालकर अपने लिए दो अलग-अलग इलाके बाँट लिए है।
कूकी की आँखों में दूर-दूर तक नींद नजर नहीं आ रही थी। वह बिस्तर पर पड़े-पड़े दाएँ-बाएँ करवटें बदल रही थी। अनिकेत नींद मे बड़बड़ा रहा था। उसकी बड़बड़ाहट की आवाज कभी स्पष्ट सुनाई दे रही थी तो कभी अस्पष्ट। अनिकेत को हाथ से हिलाते हुए कूकी ने पूछा,
"क्या कोई बुरा सपना देख रहे थे?"
करवट बदलते हुए वह बुदबुदाने लगा, "बहुत डरावना सपना।"
"कैसा डरावना?"
"आइ एम नॉट इन ए सेफ पोजीशन" फिर से गहरी नींद की आगोश में जाते हुए अनिकेत ने कहा।
"आइ एम नॉट इन सेफ पोजीशन।" शफीक ने अपने ई-मेल में लिखा था। कूकी ने सोचा भी नहीं था कि इतने दिनों के बाद शफीक का कोई ई-मेल भी आएगा। शफीक का इससे पहले वाला ई-मेल आए हुए दो महीने बीत चुके थे। और कूकी ने भी हर दिन इंटरनेट लगाना बंद कर दिया था। वह तो यह भी भूल चुकी थी कि इस घर के बाहर इस धरती के किसी कोने पर उसकी एक अलग दुनिया भी थी।उसे बीच-बीच में शफीक की याद सताने लगती थी, मगर अब पहले जैसी वेदना नहीं होती थी। कुवैत जाने के दिन नजदीक आते जा रहे थे। वह अपने घर-संसार में बहुत व्यस्त रहने लगी थी। बड़े बेटे की हताशा को दूर करने के लिए तथा छोटे बेटे की मुस्कराहट को बरकरार रखने के लिए उसने अपना जीवन न्यौछावर कर दिया था।
पता नहीं कैसे एक दिन वह अपने आप पर काबू नहीं रख सकी और कम्प्यूटर में सीडी लगाते समय इंटरनेट को लाग ऑन कर दिया। कभी यह वही घर था जिसमें वह रोजाना आती जाती थी। अचानक कई दिनों के बाद अपने नाम का ई-मेल देखकर उसे अचरज होने लगा था। उसमें सेन्डर का नाम तक देखने का धैर्य नहीं था । हो सकता है किसी ने वायरस भेजा हो या यह भी हो सकता है चेटिंग का कोई इनविटेशन हो या कोई स्पैम हो। मगर उसका सारा अंदाजा गलत साबित हुआ। उसने जब सेंडर का नाम देखा तो खुशी के मारे उछल पड़ी। वह तो सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि शफीक उसे और ई-मेल करेगा। वह तो सोच रही थी शफीक कारावास में होगा। उसका मन हमेशा शफीक को कुख्यात अपराधी मानता था, मगर शफीक का ई-मेल देखकर उसके मन से संदेह हवा हो गया था । वह ई-मेल सात दिनों से मेल बॉक्स में पड़ा हुआ था। उसने अभी तक उसे खोल कर नहीं देखा था। इस ई-मेल का उत्तर नहीं पाकर क्या सोचता होगा शफीक? शफीक ने उस ई-मेल में लिखा था, " आइ एम नॉट इन ए सेफ पोजीशन। मेरे मेल और फोन पर सख्त निगरानी रखी जा रही है। आइ हेव लास्ट माई जॉब एंड इन रुइन्ड कंडीशन। आइ एम ए विक्टिम ऑफ फेट, बेबी। मेरा इंसानियत के ऊपर से विश्वास उठ गया है। शमीम, तबस्सुम का वह नवयुवक प्रेमी आखिर में एक इन्फोर्मर निकला।"
ई-मेल पढ़ते-पढ़ते कूकी के दिल की धड़कनें बढती जा रही थी। उसे पहले से ही कुछ अंदेशा लग चुका था कि शफीक के अरेस्ट होने के बाद ये सब घटनाएँ अवश्य घटेगी। यह दुखद खबर पाने के बाद उसका मन खिन्न हो गया। शफीक ने साथ में यह भी लिखा था, अगर मुमकिन हुआ तो बाद में वह और लंबे ई-मेल करेगा। मगर तुम इस दौरान और कोई ई-मेल मत करना। मैं नहीं चाहता कि मेरी खातिर तुम्हें और कोई दिक्कत हो। रुखसाना, तुम केवल भगवान से प्रार्थना करना कि हम लोगों की कभी न कभी इस जीवन में मुलाकात हो जाए। मैं नहीं जानता, मैं पाकिस्तान के सैनिक प्रशासन द्वारा किए गए इस षडयंत्र के जाल से बच पाऊँगा भी या नहीं।मुझे सैनिक प्रशासन तरह-तरह से परेशान कर रहा है। पता नहीं मेरा कया हाल होगा? अगर रब ने चाहा तो हम एक दिन जरुर मिलेंगे। तुम्हारा, शफीक।"
शफीक के इस ई-मेल को पढ़ने के बाद कूकी दुख के मारे टूट गई। उसकी मन ही मन दौड़कर पाकिस्तान जाने की इच्छा हो रही थी। उसका मन कर रहा था कि वह शफीक का सिर अपनी गोद में रखकर सहलाए। मैं जानती थी शफीक तुम एक अपराधी नहीं हो सकते हो। मेरा अंदाज सही था कि तुम हो न हो किसी खतरनाक षडयंत्र का शिकार हुए हो। मेरा अभी भी तुम्हारे ऊपर अटूट विश्वास है। मगर कूकी एक लाइन भी नहीं लिख पाई थी, क्योंकि शफीक ने उसको ई-मेल करने के लिए मना किया था।
कूकी को तबस्सुम के ऊपर खूब गुस्सा आ रहा था। वही असली अपराधी है।शफीक आज उसके मुक्त आचरण की वजह से फँसा था। बाकी शफीक की कोई गलती नही थी? वैसे भी तबस्सुम के कई सारे पुरुष मित्र हैं, अगर वह एक और मिलिटरी ऑफिसर को अपना मित्र बना लेती तो क्या हो जाता? उसके जैसी छिनाल औरत को क्या फर्क पड़ता? अगर वह अपने मिलिट्री वाले ब्वायफ्रेंड की बात मान लेती और उसके ऑफिसर के सामने अपने आप को सुपुर्द कर देती तो शायद आज उन्हें यह भयानक दिन नहीं देखना पड़ता।
कूकी इन छोटी-छोटी चीजों को समझ नहीं पा रही थी। मिलिट्री ऑफिसर की किस बात की वजह से तबस्सुम एक लम्बे अर्से तक अवसाद का शिकार बनकर पत्थर की मूर्ति की तरह बैठ गई थी ? और शफीक उसका विरोध करने के कारण धीरे-धीरेकर एक चक्रव्यूह में फँस गया। एक बार किसी औरत की इज्जत चले जाने के बाद और अच्छे-बुरे ज्ञान का क्या मतलब?
भले ही, कूकी शफीक को कितना भी प्यार करे, मगर अनिकेत के अलावा किसी ने उसके शरीर को छुआ नहीं है। ऐसी कौनसी चीजों का अभाव था? या ऐसा क्या गम था? या फिर अधिक कामुकता की वजह से तबस्सुम जैसी लड़कियाँ नशे में धुत्त होकर इस तरह के मुक्त-यौनाचार में लिप्त हो जाती हैं? उसे ऐसा लगने लगा जैसे एक बहुत बड़ा देश, धर्म, मुक्त-यौनाचार और नशे के लपेट में आ गया है।
आजकल एशिया और अफ्रीका के लोगों की मानसिकता पूरी तरह से विकृत हो गई है। एक तरफ पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण तो दूसरी तरफ उनकी गुलामी मानने से इंकार ने उन्हें एक दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है। आजकल इन देशों में साम्यवाद और पूंजीवाद की बात नही की जाती है। आजकल लोग शीतयुद्ध को लेकर चिंतित नहीं हैं। आज के जमाने में पूरी दुनिया आतंकवाद से काँप रही है। आजकल आतंकवाद की विभीषिका और उसका विकराल रूप किन्हीं निर्दिष्ट भौगोलिक सीमाओं के अंतर्गत सीमाबद्ध नहीं है। आतंकवाद न तो कोई नीति है और न कोई नियम। किसी देश को अगर समूल नष्ट भी कर दिया जाए तो भी आतंकवाद को जड़ से उखाड़कर नहीं फेंका जा सकता। आतंकवाद तो मानो रक्तबीज का एक वंशज है। जैसे ही खून की एक बूँद जमीन पर गिरेगी तो असंख्य आतंकवादी और पैदा हो जाएँगे।
कूकी पूरा दिन उदास रही। वह सोच रही थी, शायद शफीक बेल पर छूटा होगा।वह नौकरी चली जाने के कारण अपना आत्म सम्मान खो चुका हगा और पागलों की भाँति इधर-उधर घूम रहा होगा या फिर घर के किसी कोने में अपना मुँह छुपाकर बैठा होगा। वह अपनी तकदीर को कोस रहा होगा। कभी कूकी तो कभी रुखसाना, तो कभी खुद के बारे में तो कभी पेरिस के बारे में सोच-सोचकर वह पागल हो जाता होगा। क्या करती होगी उसकी बेटियाँ और तबस्सुम?
कूकी का मन शफीक की बेटियों के बारे में सोचकर उदास हो रहा था।कूकी ने कभी सोचा भी नहीं था कि किसी अनजान आदमी के बच्चों के लिए उसके मन में करुणा के भाव उमड़ पडेंगे। उसकी बेटियों पर क्या बीत रही होगी?वे लोग किस तरह अपने घर का खर्च चलाते होंगे? शफीक के बिना वह परिवार कहीं असहाय तो नहीं हो गया होगा? कूकी के मन को तरह-तरह की चिंताएँ बेचैन कर रही थी।
उसके मन में फिर भी यह पक्का विश्वास था कि शफीक एक फरेबी आदमी नहीं है। शफीक ने उसके साथ किसी तरह का कोई विश्वासघात नहीं किया है। वास्तव में वह बिना मतलब के मुश्किल में फँस गया। शफीक का आतंकवाद से कोई लेना-देना नहीं है और न ही वह कोई आतंकवादी है। यह जानकर कूकी के मन में विश्वास के बीज फूटने लगे थे। अगर वह आतंकवादी होता तो वह कभी यह नहीं लिखता कि वह सैनिक प्रशासन के अत्याचार का शिकार हुआ है। केवल यह कहकर बात को टाल सकता था कि वह सब उसकी तकदीर का दोष है। यह छोटा-सा ई-मेल कूकी के मन में एक नए योगसूत्र का काम कर रहा था, एक कोमल आत्मीयता को जन्म दे रहा था।
पता नहीं, पाकिस्तान सरकार की कानून व्यवस्था कैसी है?उसे और कितने दिनों तक जेल में सड़ना पडेगा?कूकी नहीं जानती थी कि अभी शफीक एक विचाराधीन अपराधी है अथवा अपराध सिद्ध होने के बाद जेल की सजा काट रहा था। वह तो यह भी नहीं जानती थी कि उसे किस अपराध के लिए दंड दिया गया है। शफीक की असलियत की खबरें उसको किससे प्राप्त होती? नगमा फिलहाल अपने पति के साथ अमेरिका में रहती है। कूकी के पास ना तो नगमा का कोई पता था और ना ही उसका ई-मेल आइ.डी। क्या तबस्सुम अभी भी अपने सपनो की दुनिया में विचरण कर रही होगी? या शफीक को जेल से छुडवाने के लिए कोर्ट- कचहरी के चक्कर लगा रही होगी?
एक बार शफीक ने लिखा था, "रुखसाना, जानती हो। मैं कोई आज से लड़ाई नहीं कर रहा हूँ। मेरी स्पष्टवादिता के कारण मैं कई बार आलोचना का शिकार हुआ हूँ।जब मैं 'गोडेस ' पेंटिंग को लेकर विवादों के घेरे में था, तब तो आम जनता ने मुझ पर पथराव भी किया था।मैं नेशनल स्कूल ऑफ आर्ट से डिप्लोमा करने से पहले लाहौर यूनिवर्सिटी में एंथ्रोपोलोजी का छात्र था।मैंने उस समय एक सेमिनार में अपना एक पेपर पेश किया था, तब भी मैंने खतरनाक आलोचना का सामना किया था। जानती हो, उसमें मेरी कुछ भी भूल नहीं थी। मैं यह सिद्ध करना चाहता था कि सिन्धु घाटी सभ्यता का उदगम हिंदुस्तान से अलग नहीं है और उसकी कला संस्कृति, पुरातत्व प्रमाण आदि सभी हिन्दुस्तान में मिले अवशेषों जैसे ही है।
बेबी, मुझे उस कॉलेज जमाने से ही लोगों का विरोध सहन करने की आदत पड़ गई है।मुझे कॉलेज के प्राचार्य तक ने अपने चेम्बर में बुलाकर खूब डाँटा था। उन्होंने कहा था मैने राष्ट्रीय स्तर के सेमिनार में एक निराधार पेपर पेश कर उनकी नौकरी के लिए खतरा पैदा कर दिया है। तुम तो जानती हो, किसी मानव जाति के भविष्य निर्माण के लिए इतिहास की सही जानकारी होना जरुरी है। तब रुखसाना, उसमें जबरदस्ती उलटफेर करने की क्या आवश्यकता है? तुम्हें जानकर घोर आश्चर्य होगा कि पाकिस्तान में बच्चों को इतिहास की पढ़ाई सातवीं कक्षा के बाद शुरु होती है। अरब के इतिहास को यहाँ का मूल इतिहास माना जाता है।"
कूकी ने उत्तर में लिखा था, "सदियों से इतिहास को एक खेल समझा गया है। जैसे ही सरकार बदल जाती है, इतिहास का कोर्स भी बदल जाता है। कभी कोई सरकार किसी को नायक का दर्जा देती है, तो दूसरी सरकार उसे खलनायक बना देती है। बाप के द्वारा पढ़ा गया इतिहास बेटे के समय में पूरी तरह से बदल गया होता है। तुम्हीं कहो, शफीक, इस दुनिया में इंसान को कब निष्पक्ष भाव से सही इतिहास पढ़ाया जाएगा।"
पता नहीं क्यों, कूकी को फिर से वे सारी पुरानी बातें याद आने लगी। क्या कहीं ऐसा तो नहीं, शफीक ने फिर से किसी विवादास्पद बात को तूल दे दिया होगा और सरकार की नजरों में वह कानून का गुनहगार साबित हो गया होगा।
उसकी मन ही मन प्रबल इच्छा हो रही थी कि एक छोटा-सा ई-मेल भेजकर कम से कम शफीक की खबर ले लेती।उसने मन मसोस कर अपने आप पर काबू पा लिया, क्योंकि शफीक ने उसे पहले से ही ई- मेल नहीं भेजने के लिए आगाह कर दिया था।
कूकी कम्प्यूटर के पास से अनमने भाव से उठकर बाहर चली गई। वह सोच रही थी, कि शफीक एक न एक दिन जरुर फिर से उसे ई-मेल करने लगेगा। महीने, साल, पाँच साल या फिर जेल से मुक्त होने के बाद वह उसे जरुर ई-मेल करेगा। उसे उस दिन का बेसब्री से इंतजार रहेगा।
उसे उस दिन का बेसब्री से इंतजार रहेगा। उसके लिए अनिकेत के बिना अकेले रहना बहुत दुखदायी था? अन्यथा, उसके भीतर इतनी अस्थिरता क्यों रहती? जब वह एक सप्ताह तो क्या एक दिन के लिए भी घर से बाहर रहता था तो कूकी को घर में खाना बनाने की इच्छा नहीं होती थी। इधर-उधर करके थोड़ा बहुत खाना बना लेती थी। बच्चें भी आक्षेप लगाने लगते थे कि घर में पापा नहीं है इसलिए मम्मी उनका पूरा ध्यान नहीं रखती है। यहाँ तक कि कूकी अपना श्रृंगार भी अनिकेत को खुश रखने के लिए करती थी। उसने कभी अपने पिताजी को गर्व के साथ कहते हुए सुना था, देखो, मैं कितना भाग्यशाली हूँ कि मेरा दामाद एक बहु राष्ट्रीय कंपनी में काम करता हैं।कूकी भी अपने पिताजी को खुश देखकर फूली नहीं समाती थी।
भले ही, इस घर की चारदीवारी में दोनों के बीच में अच्छा तालमेल नहीं हो पा रहा था। कूकी को दिल खोलकर बात करने का अवसर नहीं मिल पा रहा था। उसे फिर भी लगता था कि अनिकेत की वजह से घर में सब-कुछ ठीक ठाक चल रहा है। जब वह एक साल के लिए ह घर से बाहर चला जाएगा तो क्या वह घर की देखभाल करने में समर्थ होगी? वह अपने आपको एक अबोध शिशु की तरह अनुभव कर रही थी तथा इस दुनिया को निर्वाक होकर आश्चर्य के साथ टुकर-टुकर देख रही थी। एक नए कैदी के लिए कैदखाने से उड़ जाने के लिए चिल्लाना या छटपटाना तो एक स्वाभाविक बात है मगर कैदखाने का दरवाजा खुल जाने के बाद इतने विशाल आकाश में सही दिशा खोज पाना बहुत ही कष्ट का काम है।
कूकी को मन ही मन बहुत डर लग रहा था मगर वह उस डर के बारे में किसी को कुछ भी नहीं बता पा रही थी। वह ठीक उसी तरह रोमांचित हो रही थी जैसे वह शफीक के इंटरव्यू में सफल होने के बाद हुई थी।
उस समय शफीक ने पूछा था, "रुखसाना, तुम आखिरी समय में मेरे साथ जाने के लिए मना तो नहीं कर दोगी?" कूकी पता नहीं शफीक के साथ जाने में कितना सफल होती, मगर वह शफीक का प्रेम पाकर इतनी शक्तिशाली हो गई थी कि वह उसका हाथ पकड़कर बिना किसी डर के उसके साथ दुनिया के किसी भी कोने में जा सकती थी।
यद्यपि अनिकेत को छोड़कर चले जाने तथा अनिकेत द्वारा उसको छोड़कर जाने के कारणों में रात-दिन का फर्क था। उसे फिर भी ऐसा लग रहा था कि उन दोनों में से कोई भी एक दूसरे को छोड़कर अगर चला जाए तो उसकी दुनिया उजड़ जाएगी।
अनिकेत ने शाम के समय उसको उसकी अनुपस्थिति में घर चलाने के सारे दायित्वों के बारे में समझा दिया था। उसकी अनुपस्थिति में उसे क्या-क्या काम करने चाहिए? उसने पूरी तरह से कूकी को समझा दिया था। एक छोटी-सी डायरी में उन सारे कामों का लेखा-जोखा लिख दिया था और कूकी को वह डायरी देते हुए यह भी कहा था, "मैने इसमें सब कुछ लिख दिया है।तुम इसे एक बार अच्छी तरह से पढ़ लो वरना मेरे जाने के बाद बुरी तरह से परेशान हो जाओगी। मेरे कितना भी समझाने की कोशिश करने के बाद भी तुमने कभी भी कोई काम करना नहीं चाहा। कम से कम बैंकों का काम सीख लेती तो मेरे मन को तसल्ली रहती। खैर, गुजरी हुई बातों को करने से क्या फायदा? अच्छा सुनो, मैंने कम्प्यूटर की एक फाइल में सारी बातें लिखकर रख दी है। अगर कभी कम्प्यूटर में कुछ प्रॉब्लम हो और वे फाइलें नहीं खुल सके तो यह डायरी तुम्हारे काम आएँगी।"
कूकी मन ही मन अनिकेत की प्रशंसा कर रही थी।वह कितनी सावधानी के साथ ये सारे काम कर लेता था। अनिकेत ने कहा था, "यह देख लो, आई.सी.आई.सी बैंक में पांच हजार रुपए का हमारा एक आर.डी. खाता खोला हुआ है।उस खाते में हर महीने याद करके पाँच हजार रुपए जमा करा देना। मार्च महीना खत्म होने से पहले- पहले एल.आई.सी. के दोनो प्रीमियम जमा करवाने के लिए दस हजार का चेक उनके ऑफिस में भेज देना। देखो,डायरी में इस जगह पर पालिसी नम्बर और प्रीमियम की राशि लिख दी है। हाउसिंग लोन की किश्त कंपनी मेरी तनख्वाह में से अपने आप काट लेगी। तुम्हें उसके लिए चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है। इस साल तीन सेविंग सर्टिफिकेट मेच्योर होंगे, मैंने जिनके कागज पत्र तैयार कर लिए हैं। केवल एजेन्ट को फोन कर देना वह अपने आप उन्हें भुनाकर तुम्हें पैसे दे देगा।मैंने ट्रैवल एजेंसी से भी बातचीत कर ली है, तुम्हें जब भी किसी गाड़ी की जरुरत पड़े, तो उन्हें फोन कर देना वह ड्राइवर भेज देंगे। जहाँ भी जाना होगा, आराम से चली जाना। याद रखना, खुद ड्राइविंग कभी मत करना।"
कूकी को ऐसे लग रहा था जैसे कि अनिकेत उसे किसी अलग राज्य की बागडोर देकर जा रहा है। वह तो यह भी नहीं जानती, कि अनिकेत के बैंक में कितना बैलेंस है और कितना लोन चुकाना बाकी है। बच्चों की पढ़ाई के साथ-साथ ये सारे काम अनिकेत ही करता आ रहा था। एक के चले जाने के बाद दूसरे के महत्व का आकलन होता है। जाओ, अनिकेत, जाओ। तुम्हारी अनुपस्थिति में तुम्हारी परछाई तुम्हारे कद से भी लंबी हो जाएगी।
क्या शफीक के बिना तबस्सुम भी इतनी दिक्कतें झेल रही होगी? शायद बिल्कुल नहीं।शफीक ने एक बार यहाँ तक कहा था कि वह दुनियादारी चलाने में असमर्थ है। तबस्सुम ही उसकी दुनिया की सारी देख रेख करती है। कूकी का स्वभाव तबस्सुम के विपरीत है। वह जरुर ये सारे काम कर लेती होगी।
अनिकेत ने मेडिकल की एक फाइल लाकर कूकी को थमा दी और कहने लगा, "ये सब तुम्हारी दवाइयों की पर्चियाँ है। अगर कभी तबीयत ज्यादा खराब हो जाए तो डॉक्टर मेहता से कन्सल्ट कर लेना।उन्हें पास्ट हिस्ट्री देखकर इलाज करने में सुविधा होगी।"
पता नहीं क्यों, उस समय कूकी बिलख-बिलखकर रोने लगी। अनिकेत के दिल के किसी कोने में उसके प्रति थोडा-बहुत प्रेम अभी भी जिंदा है।कूकी ने तो अभी तक उसका रुखापन ही देखा था। अनिकेत, तुम ऐसे क्यों हो गए हो?तुम दो शब्द मीठे बोलने में भी इतनी कंजूसी क्यों करते हो? कभी वह भी एक गुजरा हुआ जमाना था, जब हम एक दूसरे को खूब प्यार करते थे और एक दूसरे पर मर मिटने के लिए तैयार रहते थे। तुमने चाँद के ऊपर पाँव तो जरुर रखा मगर उसकी उबड़ खाबड़ सतह के सिवाय कुछ नहीं देख सके। जानते हो, "बेबी" जैसे छोटे से संबोधन में भी एक विशाल समुन्दर की तरह प्यार भरा हुआ है। एक बार तो कभी प्यार से उस तरह संबोधित करते। कम से कम एक बार तो प्यार की चट्टान तोड़कर मेरे लिए झरना बहा देते ताकि मैं उसके ठंडे पानी में भीगकर अपने को धन्य समझती।
कूकी की आँखों में आँसू भर आए थे। नाक काँपने लगी थी। वह अपने आपको एक दम असहाय अनुभव कर रही थी।
"अरे, इतनी जोर-जोर से रो क्यों रही हो?" अनिकेत ने पूछा।
"अगर तुम इस तरह से बिलख-बिलखकर रोओगी तो बच्चों को किस तरह सँभाल पाओगी। बड़ी मुश्किल की बात है। मुझे तो किसी भी हालत में जाना ही पड़ेगा।"अनिकेत कुछ उपाय सूझता न देख दाँतों से नाखून काटने लगा।उसकी भी मन ही मन रोने की इच्छा हो रही थी, मगर वह जान बूझकर रो नहीं पा रहा था। उसे डर था कि कहीं ऐसा नहीं हो उसका मन दुर्बल हो जाए।
"तुम देहाती औरतों की भाँति रो क्यों रही हो? तुम्हारी खास सहेली रेणु फिलहाल अकेली अमेरिका में जाकर बस गई है। अच्छा अब रोना-धोना बंद करो। ये लो यूनियन बैंक का पासबुक अपने पास रखो।तुम्हे बड़े बेटे के लिए तो कोई चिंता करने की जरुरत नहीं है, मगर छोटे बेटे की स्कूल में ट्यूशन फीस जमा कराने के समय इस चेक को साइन करके दे देना। उनके स्कूल में चेक से फीस जमा होती है। यह हमारा ज्वाइंट पास-बुक है। किसी तरह डरने की कोई बात नहीं है। और अगर कुछ शेष रह गया हो तो बताओ?"
"तुम तो ऐसे बात कर रहे हो जैसे मुझे हमेशा-हमेशा के लिए छोड़कर जा रहे हो।"
"उस बात का कोई पता चलता है? हो सकता है कल प्लेन क्रेश हो जाए? या कोई मुझे किडनेप कर ले? या फिर कोई बम ब्लास्ट हो जाए?" अनिकेत ने कहा।
कूकी गुस्से से कहने लगी, "ओह! और आगे मत बोलो, प्लीज। क्या तुम्हारे मुँह से कभी कोई अच्छी बातें नहीं निकलती?"
"इंसान के जीवन का क्या ठिकाना? यह तो बुलबुले की तरह है। कब फट जाएगा, पता भी नहीं चलेगा।"
"ठीक कह रहे हो, अनिकेत।" कूकी मन ही मन सोच रही थी।
कल तक शफीक शराब और शबाब के साथ जीवन बिता रहा था। अपने जीवन को अच्छी तरह भोग रहा था। कूकी के साथ भी कल्पना लोक में विचरण कर रहा था, मगर अभी एक अभिशप्त गंधर्व की भाँति धरती पर ऐसा गिरा कि आज वह अपना अस्तित्व भी नहीं खोज पा रहा है।
अनिकेत अपने सारे कागजात ठीक कर रहा था। फिर लगभग एक घंटे तक कम्प्यूटर के सामने बैठकर अपनी सारी फाइलें चेक करता रहा। रात का खाना खाने के बाद अनिकेत टी.वी देखने के बजाय सीधे बिस्तर पर जाकर सो गया। बच्चें भी जल्दी सो गए थे। कूकी की आँखों में आज भी नींद का नामोनिशान नहीं था।अनिकेत को बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गई। ऑफिस में चार्ज हेंड ओवर करने का काम, फिर घर के ढेर सारे छोटे-मोटे काम करते-करते अनिकेत बुरी तरह से थक गया था। कूकी की इच्छा हो रही थी कि वह अनिकेत की ललाट पर एक चुम्बन कस दे। मगर उसे डर लग रहा था कि कहीं वह यह न कह दे, "क्या नाटक कर रही हो? देख नहीं रही हो मैं बुरी तरह थक गया हूँ। मुझे सोने दो" तब कूकी बुरी तरह से अपमानित हो जाएगी।
कूकी यह सोचकर चुपचाप दबे पाँवों बिस्तर से उठ गई तथा फिर से अपनी बुकशेल्फ से एक डायरी निकाली जिसमें उसने शफीक की कविताएँ लिखी थी।वह डायरी के पन्ने पलटते-पलटते एक कविता पर आकर रुक गई। उस कविता में शफीक ने लिखा था
"किसी भ्रम में खोकर, आत्म-विभोर होकर
मैने अपने सपनों और इच्छाओं का सम्बंध जोडा
स्वप्नावस्था केवल एक फेंटेंसी है
मगर इच्छा का दायरा उससे भी बहुत लंबा और गहरा है
हो सकता है सपने सही हो
मगर इच्छा कोई जरुरी नहीं पूरी हो।
इच्छा का संवेग साधारण है
कुछ पाने के प्रयास को जोडने का
फिर भी मैं क्यों भ्रमित हूँ
मुझे कुछ पता नहीं
क्योंकि तुम मेरी आखिरी इच्छा हो
वर्तमान में एक प्यारा सपना
यथार्थ के कठोर धरातल पर
तुम मेरे लिए एक सुंदर-सी फेंटेंसी हो।
मुझे चाहत है केवल तुम्हारे प्यार की
और उसके इंतजार में तमाम करना चाहता हूँ
मैं अपना सारा जीवन।"
कूकी को अचानक ऐसा लगा जैसे अनिकेत नींद से जाग गया हो और उसे आवाज दे रहा हो।वह डायरी को अपनी जगह पर रखकर भागकर सोने वाले कमरे में चली गई। उसने देखा कि अनिकेत बीच वाले तकिये पर अपने पैर रखकर सोया हुआ है।कूकी भी बिना आवाज किए धीरे-धीरे बिस्तर पर सो गई।
क्या शफीक उसके लिए एक फेंटेसी था, जिसकी कल्पना में खोकर वह अपना जीवन बिता रही थी? जिस तरह ध्रुव तारा देखकर समुद्र में मार्ग भूला हुआ नाविक अपनी सही दिशा की तलाश कर लेता है। शफीक तो था ही ऐसा। उसके गले की आवाज सुनते ही उसके शरीर में एक अद्भुत सिहरन पैदा हो जाती थी। हाथ की पहुँच में न होते हुए भी वह नजदीक लगने लगता था, मगर अनिकेत पास होते हुए भी पास नहीं था। हे भगवान! कोई चीज नहीं मिलने पर दिल इतना बेचैन क्यों होता है? उसे ऐसा क्यों लगता है उसका जीवन बरबाद हो गया?
क्या अप्राप्ति की यह भावना हमेशा के लिए उसे टिसती रहेगी? क्या शफीक दूर क्षितिज में एक छोटा सा तारा बनकर रह जाएगा ? जिसको छूने की वह जितनी भी कोशिश करले, पर उसे छू नहीं पाएगी। क्या अभी शफीक जेल के भीतर पाँव मरोडकर सोया होगा? या मच्छर काटने के कारण छटपटाते हुए रुखसाना को याद करता होगा?या यह भी हो सकता है कि वह स्टडी रुम में बैठकर कूकी की तारीफ में कविताएँ लिख रहा होगा, मगर उनके सैनिक प्रशासन के डर से उसको ई-मेल नहीं कर पा रहा होगा या फिर उसने किसी की परवाह किए बगैर इस दौरान ई-मेल कर भी दिया होगा।
कूकी के मन में इस छोटी-सी आशा की किरण ने उजाला कर दिया था। उसको पाने के लिए मन और छटपटाने लगा। पता नहीं,शफीक ने उधर से कब से ई-मेल भेजा होगा और कूकी इधर अनिकेत के पास इस तरह सोई पड़ी है।वह फिर से चुपचाप उठकर अपने स्टडीरुम में आ गई और कम्प्यूटर ऑन करने लगी। इससे पहले अनिकेत की उपस्थिति में उसने कम्प्यूटर खोलने का कभी भी दुस्साहस नहीं किया था। किसी को यह पता तक नहीं था कि उसका भी कम्प्यूटर में कभी काम पड़ता है और उसने अपने प्रेम को उस डिब्बे के अंदर सहेज कर रखा है।
कम्प्यूटर ऑन करते ही एक जानी पहचानी आवाज ने घर की संपूर्ण नीरवता को भंग कर दिया। डर के मारे कूकी का दिल धड़कने लगा। उसे ऐसा लग रहा था मानो वह किसी मंझधार में फंस गई है। उसे दोनों तरफ के किनारे नजर आ रहे हैं, जिस किनारे की तरफ जाए, उस तरफ आफत ही आफत। अगर वह कम्प्यूटर बंद करती है तब भी आवाज होगी और अगर वह उसे चालू रहने देती है तो पकड़े जाने का डर है। अपने स्वभाव की तरह उस आवाज को रोकना उसके बस की बात नहीं थी।
उसने कम्प्यूटर को चालू रखा और इंटरनेट लगाने लगी। मानीटर पर स्क्रीन सेवर में स्क्रीनें बदलती जा रही थी। तभी पीछे से अनिकेत के गरजने की आवाज आई।
"यह आधी रात को तुम्हें क्या हो गया है?"
"नींद नहीं आ रही थी इसलिए सोच रही थी नेट में पेपर पढ लूँ।"
अनिकेत ने उसकी बात पूरी भी नहीं सुनी और बीच में चिल्ला उठा "तुम्हें आधी रात का समय मिला है अखबार पढ़ने के लिए? ना तो रातभर खुद सोती हो और ना ही किसी को चैन की नींद सोने देती हो। अच्छी औरत हो? भूतनी की तरह रातभर इधर-उधर घूमती रहती हो। कल सुबह उठकर कहोगी, मेरा ब्लड प्रेशर बढ़ गया है और मैं तुम्हारे लिए डॉक्टरों के पीछे भागता फिरुँगा।"
"ओह, हेल!" दाँत दबाकर कूकी अपना अपमान सहन करने का प्रयास करने लगी। अनिकेत ही तो वह आदमी है जिसने जबरदस्ती से कूकी के नाम एक ई-मेल आई.डी खोला था तथा कहने लगा था, "जानती नहीं हो, दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गई है और तुम अभी तक यहीं पड़ी हुई हो। आओ, तुम्हें दिखाता हूँ, जैसे ही तुम ब्राउज करोगी, वैसे ही तुम्हें पता चलेगा दुनिया सिमटकर बहुत छोटी हो गई है।" और अब वही अनिकेत है जो कूकी को भूतनी कहकर अपमानित कर रहा है।
कूकी कम्प्यूटर बंद करके चुपचाप उठकर चली गई। अनिकेत की बातों का मुँहतोड़ जवाब दिए बिना बिस्तर पर जाकर अपनी जगह पर करवट लेते हुए सो गई और कितने दिन? कितने दिन सहन करना पड़ेगा इस आतंकवाद को? उसे पता नहीं।
और कितने दिन? कितने दिन सहन करना पड़ेगा इस आतंकवाद को? उसे पता नहीं।ऐसे ही हर दिन कुछ न कुछ निर्दोष लोग मरते होंगे। लेकिन वे लोग जिनके मरने से दुनिया में कुछ सुधार आता, वे लोग मीडिया के कैमरे में बंद होकर भाषण देते नजर आते हैं। उस दिन की घटना ने सबको हिलाकर रख दिया था। टी.वी चालू करते ही वह दिल दहला देने वाला दृश्य दुकानों और मकानों के भग्नावशेष, जले हुए साइन बोर्ड, आदमियों की लाशों के ढेर, बिखरे हुए उनके शरीर के अंग, किसी के हाथ किसी के पैर, दर्द से कराहते हुए आदमी और असहाय होकर शून्य की तरफ देखता हुआ निर्वाक शिशु।
चारों तरफ बारुद की गंध मानो इंसान के मन को विषाक्त कर दे रही हो। कभी आकाश से बम गिर रहा था तो कभी इंसान की नकली हँसी से बम गिर रहा था। उस लड़की की क्या गलती थी जो आसाम से भ्रमण पर दिल्ली आई हुई थी और अपने परिजनों के लिए कुछ सामान के वास्ते बाजार गई हुई थी? उस लड़के की क्या गलती थी जो सुदूर बिहार से यहाँ होटल में काम करने आया था? क्या जवाब देगा आतंकवाद उस छोटी-सी बच्ची को? जिसको उसके माँ-बाप टी.वी. देखता छोड़कर आए थे यह कहते हुए कि एक घंटे के भीतर वे उसके लिए खिलौने और मिठाई लेकर आएँगे। उस बच्ची को तो यह भी पता नहीं कि उसके सिर पर लाखों रुपए का हाउस बिÏल्डग लोन बाकी है और कुछ ही दिन बाद उसे दर-दर की ठोकरें खानी पडेगी। उसे ऐसा लग रहा था मानो इंसान के दिल में प्यार नाम की कोई चीज नहीं है। और ईश्वर कुंभकर्ण की नींद सो गए है। उसे इंसानों की करुण-पुकार बिल्कुल भी सुनाई नहीं पड़ रही है। क्या शफीक भी इस तरह के जानलेवा षड़यंत्रों में शामिल था? उसने एक छोटा-सा ई-मेल लिखा था, जिसमें वह अपने आपको निर्दोष साबित कर रहा था और अपनी बदकिस्मती को कोस रहा था। उसके बाद से उसकी तरफ से सारे ई-मेल बंद हो गए थे। कूकी की धीरे-धीरे इंसान के ऊपर से आस्था और विश्वास उठने लगा था। उसे बहुत कष्ट हो रहा था। कभी-कभी वह शफीक को संदेह की दृष्टि से भी देखती थी।
कूकी के सामने बार-बार वही दृश्य आ रहा था और उसे विचलित कर दे रहा था। कहीं शफीक इस तरह की आतंकवादी गतिविधियों में शामिल तो नहीं? कूकी इस विभिषीका के कारण अपने आप को अपने और पराए में फर्क समझने में असमर्थ पा रही थी। यहाँ तक कि उसे गुलाब की पंखुडियों में भी बम होने का अंदेशा लगता था। जैसे कि दीपावली उत्सव से पहले पहाडगंज और सरोजिनी नगर मार्केट के सीरियल बम ब्लास्ट ने दिल्ली महानगर को बुरी तरह से थर्रा दिया था, उस अवस्था में भगवान की इस दुनिया को सुंदर कैसे कहा जा सकता है?
चारों तरफ धुँए के गुबार ने महानगरी को अपनी चपेट में ले लिया था। चारों तरफ हताहत लोगों की करुण चीत्कार से जमीन काँप रही थी। बाजार श्मशान - घाट में बदल गया था। कूकी को बहुत दुख लग रहा था। अगर अभी शफीक खुले आसमान के नीचे होता और अपने प्रेम को पहले जैसी कविताओं के माध्यम से जाहिर कर रहा होता तो वह उससे जरुर पूछती, "जहाँ चारों तरफ विध्वंस का तांडव चल रहा हो शफीक उस अवस्था में भी तुम प्रेम करने के बारे में सोचते हो? तुम अपनी पेंटिंग में इस क्षण को यादगार बनाने के लिए लाल रंग का छींटा डालकर क्यों नहीं छोड़ देते? तुम्हीं ने तो मेरा परिचय करवाया था पिकासो के चित्र के साथ। तुम्हीं ने तो कहा था, पहले विश्वयुद्ध ने पिकासो की चित्रकला शैली में एक विशेष परिवर्तन ला दिया था। पिकासो ने क्यूबा की शैली का परित्याग कर दिया था और क्लासिक चित्रकला की शैली की तरफ रुख करते हुए पारंपरिक वेशभूषा और आदमियों के सटीक चेहरों के चित्र बनाना शुरु कर दिया था। उस समय उनकी मॉडेल हुआ करती थी, मारितेरेज बाल्टेयर। मगर अचानक विश्वयुद्ध की विभीषिका ने उनकी चित्रकला की शैली को बदल दिया था। धीरे-धीरे उनके मॉडल का चेहरा विकृत होता जा रहा था। विश्वयुद्ध के परवर्ती समय में अनुशासन हीनता, अत्याचार, निराशा, हताशा और दुख के भावों को पिकासो ने एक विकृत चेहरे के माध्यम से पेश करने का प्रयास किया था।
द्वितीय विश्वयुद्ध के समय पिकासो की पेंटिंगें अजीबो गरीब रुप धारण कर चुकी थी। उन पेंटिंगों में उन्होंने विकृत चेहरों को दर्शाया था, जिसमें ध्वंस और यंत्रणा के स्वरुप साफ झलक रहे थे।
मैं चाहती हूँ, शफीक, तुम भी समय को अपनी मुट्ठी में पकड़ लो। तुम भी अपने रंगों से कैनवास पर इंसान की निराशा, यंत्रणा, असहायता और हवस की ओर अग्रसर होती हुई इंसानी बर्बरता को दर्शाओ। सभी चैनलों पर एक ही खबर दिखाई जा रही थी। वही दिल दहलाने वाला भयंकर दृश्य। कूकी ने टी.वी बंद कर दिया।
बच्चें अपने- अपने स्कूल चले गए थे। अनिकेत उस समय विदेश जाने से पहले अपनी माँ को मिलने के लिए गाँव गया हुआ था।कूकी घर में अकेली थी। अनिकेत के कुवैत जाने की बात को लेकर उसे बड़ा डर लग रहा था।उसके मन में खूब सारी दुश्चिंताएं जन्म ले रही थी। भीतर ही भीतर तरह-तरह की आशकाएँ उसे खाए जा रही थी। कितना अच्छा होता, अगर कंपनी अनिकेत की विदेश-यात्रा के प्रस्ताव को निरस्त कर देती। मुखर्जी और गुप्ता दोनो ने बड़ी चालाकी के साथ इस प्रस्ताव को केंसल करवा दिया। कुछ न कुछ बहाना बनाकर अपनी विदेश यात्रा को टलवा दिया था।
कमल के पत्ते के ऊपर पानी की एक बूँद की तरह डगमगा रही है अभी जिंदगी, एक बार घर से बाहर निकले तो जिंदा घर वापस आओगे, उसकी भी कोई गारंटी नहीं। हर दिन कुछ न कुछ लोग आतंकवाद का शिकार बनेंगे, आजकल यह एक आम बात हो गई है। इसी दौरान कूकी ने बांग्लादेश का एक अखबार पढ़ा था। शायद वह अखबार प्रथम आलो या इत्तेफाक या युगांतर था। किसी ने अपने आलेख में कवि काजी नजरुल इस्लाम की कविता का उदाहरण देते हुए लिखा था "मऊ-लोभी" "मऊ लभी" अर्थात् महु लोभी मतलब मौलवी। कवि काजी नजरुल इस्लाम के अनुसार शहद का लोभी मौलवी होता है। मरने के उपरांत जन्नत में ऐशो आराम और हूर परियों को पाना ही उनका एकमात्र उद्देश्य होता है। आजकल कौमी मदरसों में भी यह सिखाया जाता है कि मरने के बाद जन्नत में केवल जेहादी लोग ही हूरों के साथ सुख-शांति से रह सकते हैं। जो भी मुस्लिम जेहादी बनकर जितने काफिरों को मौत के घाट उतारेगा, उसे उतनी ही ज्यादा हूरों का आनंद मिलेगा।
उस आलेख को पढ़कर कूकी को अचरज होने लगा था। क्या इस दुनिया में परियों का अभाव है? प्रेम, खुशी और संभोग का इतना अभाव? जिस जन्नत को हमने कभी देखा नहीं। जन्नत है भी या नहीं? उसके नाम पर मौत को गले लगाने का क्या तात्पर्य है?
तो क्या वास्तव में जन्नत में हूरों के साथ संभोग करने की प्रबल इच्छा के कारण चारो तरफ आंतकवाद की यह आग फैली हुई है? शायद नहीं, यह बात गलत है। उन कुबेरपति राष्ट्रों से पूछिए। उन महत्वाकांक्षी देशों से जवाब तलब कीजिए जो आतंकवादी षडयंत्रों को रचकर सालों-साल से निरीह मासूम इंसानों के ऊपर जुल्म ढाते आ रहे हैं।
पूछिए, अमेरिका से पूछिए। अफगानिस्तान से रुस की सेना को हटाने के लिए जिन आयुधों और अपनी सेना का उपयोग किया था, जिन ह्मदयहीन रोबोटों का निर्माण किया था। अब वह सेना कहाँ जाएगी? वे आयुध और वे रोबोट किस गड्ढे में गाड़े जाएँगे? वे लोग इतनी पुरानी तालीम को किस तरह भूल पाएँगे। गोला-बारुद, अस्त्र-शस्त्र तो हमेशा खून और जिंदगी माँगते हैं।
टी.वी. खोलते ही फिर मौत का वही नंगा नाच। मनहूस दिन था वह। कूकी फुर्सत में थी मगर शफीक के ई-मेल अपने कम्प्यूटर में खोज नहीं पा रही थी। मानो उस बमब्लास्ट ने उसको भी आहत कर दिया हो।वह पत्थर की मूरत बन गई थी। उसका मन धुँए और बारुद की गंध से पिकासो की पेंटिंग की तरह विकृत होता जा रहा था। मानो किसी ने प्रेम की भावना को गुलाब की पंखुडियों की तरह मसलकर फेंक दिया हो। सही मायने में प्रेम को पहचान पाना भी मुश्किल हो गया है। मगर वह कुछ दिन पहले तो केवल प्रेम के आधार पर ही अपनी जिंदगी गुजार रही थी।
मगर कुछ दिन पहले तो वह केवल प्रेम के आधार पर ही अपनी जिंदगी गुजार रही थी। अभी भी प्रेम है मगर नगण्य। उसको शफीक का फोन आने के बाद ऐसा ही लग रहा था।वह जब सवेरे-सवेरे नहाने जा रही थी तभी शफीक का फोन आया था। उस समय बच्चे स्कूल चले गए थे। कूकी ने यह सोचकर कि अनिकेत उड़ीसा अपने गाँव पहुँच गया होगा, दौड़कर फोन उठाया। मगर वह फोन अनिकेत का नहीं था। उस तरफ से शफीक की आवाज आ रही थी।कूकी को शफीक की आवाज सुनकर आश्चर्य होने लगा। अगले ही पल में उसका आश्चर्य खुशी में तब्दील हो गया।उसकी आँखें एक लंबे अर्से के बाद रुखसाना संबोधन सुनकर भर आई थी। शफीक की आवाज सुने शायद तीन-चार महीने बीत चुके थे। आवाज में अभी भी वही सम्मोहन शक्ति थी। शांत स्वर में वह कहने लगा था, "रुखसाना, कैसी हो बेबी?"
"शफीक, माई गॉड। मुझे विश्वास नहीं हो रहा है।" कूकी का गला भर आया था। उसका पूरा शरीर एर अद्भुत सी उत्तेजना में काँप रहा था।
"बेबी, तुमने मेल चेक किया? मेरा ई-मेल मिला?"
"तुमने ई-मेल किया था? मुझे तो अभी तक नहीं मिला। वैसे मैने कई दिनों से ई-मेल चेक नहीं किए हैं।"
"अच्छा, अभी चेक कर लेना। मैने उस ई-मेल में सब-कुछ लिख दिया है। रुखसाना, एक बात पूछूँ सही-सही बताओगी न?"
"पूछो।"
"बेबी, तुम मुझे अभी भी प्यार करती हो ना पहले की तरह?"
"हाँ।"
"मेरे बारे में कहीं तुम्हारी धारणा बदल तो नहीं गई?"
"नहीं।" कूकी ने कहा।
"बेबी, मैं तुमको बाहर से फोन कर रहा हूँ। मेरे फोन और ई-मेलों की जाँच होने की संभावना है। रुखसाना, मैं दो दिन के लिए पेरोल पर छूटकर आया हूँ। आई मिस यू, आई लव यू।" धीरे से शफीक ने रिसीवर पर चुंबन ले लिया। "बेबी, फोन रख रहा हूँ। बाकी तुम मेल में पढ़ लेना।"
कूकी कहीं सपना तो नहीं देख रही थी? या उसने वास्तव में अभी-अभी शफीक के साथ फोन पर बातचीत की। फिर से एक बार चारों तरफ चमेली के फूल खिलने लगे और उसका जीवन सुवासित होने लगा। उसके दिल के अंदर फिर से कोई कविता गाने लगा। प्रेम की कविता। ओह, सुनने में कितना मधुर और कितना स्पष्ट उच्चारण!
कूकी नहाने जाने से पहले कम्प्यूटर की तरफ दौड़ गई। इंटरनेट का कनेक्शन बार-बार कट रहा था। यह देखकर कूकी अधीर हो रही थी। उसे ऐसा लग रहा था, जैसे ही इंटरनेट की खिड़की खुलेगी, वह शफीक को अपने सामने देख पाएगी और शफीक कूकी को देखते ही अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाते हुए कहेगा, "आओ, बेबी, आओ, मेरी बाँहों में समा जाओ।"
इंटरनेट कनेक्ट होने के बाद उसने देखा, वास्तव में एक ई-मेल उसके इनबॉक्स में पडा हुआ था। मगर उसको भेजने वाले का नाम था स्टीफेन। कौन है यह स्टीफेन? शफीक का तो कोई ई-मेल नहीं था। यह देखकर कूकी दुखी होने लगी। फिर शफीक का ई-मेल कहाँ चला गया? उसे डर लगने लगा। कहीं वह किसी दिक्कत में तो नहीं पड़ गया है?
स्टीफेन कौन हो सकता है? कहीं वह उसके साथ चेटिंग करना तो नहीं चाहता। कूकी ने कभी भी चेटिंग नहीं की थी। उसे इस तरह के आलतू-फालतू सम्बंध रखना पसंद नहीं था।वह इसलिए आज तक इन झूठे सम्बंधों को टालते आ रही थी। उसने अनिकेत को कई बार चेटिंग करते हुए देखा था। बड़ा बेटा अनिकेत के डर से घर मे चेटिंग न करके बाहर साइबर-केफे में जाकर चेटिंग करता था। कूकी ने कई बार उसको परोक्ष रुप से चेटिंग करने के लिए मना किया था।
कूकी पहले- पहल समझ नहीं पा रही थी कि ई-मेल को खोला जाए अथवा नहीं। फिर वह सोचने लगी ई-मेल खोल देने से भी उसका उत्तर देने के लिए वह बाध्य तो नहीं है। ई-मेल खोलने के बाद उसके आश्चर्य की सीमा नहीं रही। उसमें शफीक वाले संबोधन का इस्तेमाल हुआ था। "माई स्वीट एंजिल रुखसाना।"
ऐसे छद्म नाम से उसने ई-मेल क्यों किया?या तो शायद वह अपने आपको पाकिस्तान के सैनिक प्रशासन के चुंगल से बचाने की कोशिश कर रहा हो या फिर वह यह सोच रहा होगा कि कहीं उसके कारण कूकी किसी दिक्कत में न फँस जाए।"
शफीक ने लिखा था "कैसे शुरु करुँ, समझ नहीं पा रहा हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे यहीं से हमारे सम्बंध के अंत की शुरुआत है। मैं अपने आपको भाग्यशाली मानूँगा जिस दिन तुम्हें पाने के सपने को असली रुप दे सकूँ।मुझे उस दिन का इंतजार रहेगा। तब भी मुझे आज यह खतरा उठाना ही पड़ेगा क्योंकि अगर आज नहीं तो फिर मैं कभी भी तुम्हारे सामने खड़े होने का साहस जुटा नहीं पाऊँगा और यह भी नहीं कह पाऊँगा कि मेरी बदकिस्मती ने मेरे साथ एक खतरनाक खेल खेला है। फिलहाल मैं ज्यूडिशियरी कस्टडी में एक विचाराधीन कैदी हूँ। हालाँकि अभी तक मेरे खिलाफ कोई चार्ज फ्रेम नहीं किया जा सका है। मैं सोच रहा हूँ इसके खिलाफ मुझे सुप्रीम कोर्ट में रिट-पीटिशन दाखिल करनी चाहिए कि किसी भी निर्दोष व्यक्ति को दोषी करार देना कानूनी जुर्म है। तुम जानती हो, रुखसाना, जब पूरा देश किसी एक व्यक्ति का दुश्मन बन जाता है तो उस व्यक्ति के पास अपने बचाव का कोई उपाय नहीं बचता है। काफका के "द ट्राइल" में "के" को देखो। मैं भी अपने आपको वह "के" मानता हूँ। एक राष्ट्र की क्या परिभाषा है? मेरा यह मानना है कि कभी भी एक राष्ट्र एक व्यक्ति से बढकर नहीं हो सकता है। व्यक्ति के मूड और मर्जी पर सारे राष्ट्र का परिचालन होता है। जो भी शासक है, आखिरकर वह एक व्यक्ति ही है ना? अमेरिका दुनिया का एक शक्तिशाली राष्ट्र होकर तो कुछ कर रहा है, क्या वह सब जार्ज बुश की मर्जी के अनुरुप नहीं हो रहा है? इसी तरह पाकिस्तान क्या मुशर्रफ की मर्जी का गुलाम नहीं है? क्या किसी एक व्यक्ति को किसी राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करना चाहिए? सारे दंगे-फसाद, सारी समस्याएँ असल में व्यक्ति-व्यक्ति के बीच की लडाई का ही परिणाम है। अभी मैं इस ज्यूडिशियरी कस्टडी में रहकर समझ पाया हूँ कि किस्मत भी कोई चीज होती है और कितना भी चाहने से बदकिस्मती को बदला नहीं जा सकता है।"
ई-मेल का यह अंश पढ़कर कूकी एक दम चुप होकर बैठ गई। और आगे की पंक्तियाँ पढ़ने की उसमें हिम्मत नहीं थी। नौकरानी घर का काम खत्म करके जाने का इंतजार कर रही थी। वह पूछने लगी "मैडम, आप तो नहाने जा रही थी?" कूकी ने उसके सवाल का कोई जवाब न देकर उसे वहाँ से चले जाने का ईशारा कर दिया और चुपचाप ऐसे ही बैठी रही।शफीक ने ई-मेल के नीचे अपनी कविता भेजी थी, मगर उसे पढ़ने की इच्छा नहीं हो रही थी। उसकी इच्छा हो रही थी कि वह उसी क्षण दौड़कर शफीक के पास चली जाए।
वह शफीक से कहती "आओ, शफीक, आओ। हम दोनों समुद्र के किसी टापू पर अपना घर बसाएँगे। जहाँ किसी तरह का कोई कानून नहीं होगा।"
कूकी के गाल के ऊपर से आँसू बह रहे थे? नहीं तो, इतनी भावुकता क्यों?
उससे आगे शफीक ने लिखा था, "फिलहाल मेरा परिवार सकुशल है। कुछ दिन पहले सारे परिजन बुरी तरह से परेशान हो गए थे। धीरे-धीरे कर यह सभी की आदत में शुमार हो गया है। मेरे वहाँ नहीं होने से उनके कार्य में कोई रुकावट पैदा नहीं हुई, पहले की भाँति तबस्सुम अपने डेटिंग में व्यस्त हो गई, मैं फिर भी उसका बहुत आभारी हूँ। इतना व्यस्त रहने के बाद भी मुझे रोजाना मिलने आती थी। उसीने मेरे लिए एक अच्छा वकील भी खोजा। रुखसाना, मेरा इंतजार करोगी? इंतजार करोगी केवल कुछ दिनों तक? उस दिन तक जिस दिन मुझे कानूनी दाँवपेचों से मुक्ति मिल जाएगी। तुम मेरी सब कुछ हो। मुझे छोड़कर कहीं चली मत जाना।
मेरे लिए खौफनाक है तुम्हें खोना
तुम्हारे बिना मेरा तन्हा रहना
जिंदा-लाश हूँ मैं केवल यह जानने के लिए
तकदीर ने मुझे अकेला क्यों छोडा?
एक खतरनाक दर्द झेलने के लिए
इधर बेशकीमती चीज खोने का गम
उधर एक टूटे दिल का गम
तुमने मेरे घावों पर मल्हम लगाया
मुझे अंबर में चमकीला तारा बनाया
अब तुम मुझे छोड़ना चाहती हो?
मेरा घायल दिल अभी भी इस बात की
गवाही देता है कि तुम यहाँ हो
तुम मुझे अपने दिल में दिखाई देती हो
फिर भी मैं तन्हाँ हूँ
किसे अपना गम बताऊँ?
मुझे मेरे प्यार की पहचान है
तुम्हें पता नहीं
तुम मेरी क्या लगती हो?
तुम मेरा प्यार हो,
तुम मेरी अंतरात्मा को छूती हो
अपने प्यार से मेरे गमों को दूर करती हो
तुम मुझे अपनी बाहों में ले लो
तुम्हारे प्यार की ठंडक की इस वक्त मुझे सख्त जरुरत है
तुम्हारे प्यार का अह्सास मेरी तन्हाई को दूर करता है
मैने तुम्हें दिल से प्यार किया
तकदीर ने तुम्हें मुझसे छीना
मगर अभी भी मेरे दिल में तुम्हारा प्यार जिंदा है
प्यार की ये कसमें, ये वादें कभी पुराने नहीं होते
खास प्यार जो तुमने मुझे दिया था
आज भी अपने दिल में सँभाल कर रखा हूँ
भले ही हम कभी मिले ही नहीं
मगर हमारा प्यार कभी घटा ही नहीं
जब मैं तन्हा होता हूँ
तुम्हारे प्यार की कमी मुझे खलने लगती है
तुम्हारा वही प्यार तुम्हें मेरा बनाता है
केवल मेरा
भले ही हम कभी मिले ही नहीं
हमारा प्यार कभी घटा ही नहीं।"
कविता पढ़ते-पढ़ते कूकी के गाल के ऊपर आँसुओं की धारा बहने लगी। वह आजीवन इंतजार करेगी शफीक के लिए उसके प्रेम के लिए, उसके बाल सफेद होने तक, उसकी त्वचा झूलने तक, आँखें कमजोर होने तक। वह शफीक का इंतजार करेगी।
(अनुवादक : दिनेश कुमार माली)