बाई बाई (कहानी) : सआदत हसन मंटो

Bai Bai (Hindi Story) : Saadat Hasan Manto

नाम उस का फ़ातिमा था पर सब उसे फातो कहते थे बानिहाल के दुर्रे के उस तरफ़ उस के बाप की पन-चक्की थी जो बड़ा सादा लौह मुअम्मर आदमी था।
दिन भर वो इस पन चक्की के पास बैठी रहती। पहाड़ के दामन में छोटी सी जगह थी जिस में ये पन चक्की लगाई गई थी। फातो के बाप को दो तीन रुपय रोज़ाना मिल जाते जो उस के लिए काफ़ी थे। फातो अलबत्ता उन को नाकाफ़ी समझती थी इस लिए कि उस को बनाओ सिंघार का शौक़ था। वो चाहती थी कि अमीरों की तरह ज़िंदगी बसर करे।
काम काज कुछ नहीं करती थी बस कभी कभी अपने बूढ़े बाप का हाथ बटा देती थी। उस को आटे से नफ़रत थी। इस लिए कि वो उड़ उड़ कर उस की नाक में घुस जाता था। वो बहुत झुँझलाती और बाहर निकल कर खुली हवा में घूमना शुरू कर देती या चनाब के किनारे जा कर अपना मुँह हाथ धोती और अजीब क़िस्म की ठंडक महसूस करती।
उस को चनाब से प्यार था उस ने अपनी सहेलियों से सुन रखा था कि ये दरिया इश्क़ का दरिया है जहां सोहनी महींवाल हीर रांझा का इशक़ मशहूर हुआ।
बहुत ख़ूबसूरत थी और बड़ी मज़बूत जिस्म की जवान लड़की। एक पन-चक्की वाले की बेटी शानदार लिबास तो पहन नहीं सकती मैली शलवार ऊपर फिरन कुर्ता....... दुपट्टा नदारद।
नज़ीर सचेत गढ़ से लेकर बानिहाल तक और भद्रवा से किश्तवाड़ तक ख़ूब घूमा फिरा था। उस ने जब पहली बार फातो को देखा तो उसे कोई हैरत न हुई जब उस ने देखा कि फातो के कुर्ते के निचले तीन बटन नहीं हैं और उस की जवान छातियां बाहर झांक रही हैं।
नज़ीर ने इस इलाक़े में एक ख़ास बात नोट की थी कि वहां की औरतें ऐसी क़मीसें या कुरते पहनती हैं जिन के निचले बटन ग़ायब होते हैं उस की समझ में नहीं आता था कि आया ये दानिस्ता हटा दिए जाते हैं या वहां के धोबी ही ऐसे हैं जो उन को उतार लेते हैं।
नज़ीर ने जब पहली बार सैर करते हुए फातो को अपनी तीन कम बटनों वाली क़मीस में देखा तो उस पर फ़रेफ़्ता हो गया। वो हसीन थी नाक नक़्शा बहुत अच्छा था ताज्जुब है कि वो मैली होने के बावजूद चमकती थी उस का लिबास बहुत गंदा था मगर नज़ीर को ऐसा महसूस हुआ कि यही उस की ख़ूबसूरती को निखार रहा है।
नज़ीर वहां एक आवारागर्द की हैसियत रखता था वो सिर्फ़ कश्मीर के देहात देखने और उन की सयाहत करने आया था और क़रीब क़रीब तीन महीने से इधर उधर घूम फिर रहा था। उस ने किश्तवाड़ देखा भद्रवा देखा कुद और बटोत में कई महीने गुज़ारे मगर उसे फातो ऐसा हुस्न कहीं नज़र नहीं आया था।
बानिहाल में पन-चक्की के बाहर जब उस ने फातो को तीन बटनों से बेनयाज़ कुरते में देखा तो उस के जी में आया कि अपनी क़मीस के सारे बटन अलाहिदा कर दे और उस की क़मीस और फातो का कुरता आपस में ख़लत-मलत हो जाएं। कुछ इस तरह कि दोनों की समझ में कुछ भी न आए।
उस से मिलना नज़ीर के लिए मुश्किल नहीं था इस लिए कि उस का बाप दिन भर गंदुम मकई और ज्वार पीसने में मशग़ूल रहता था और वो थी हँसमुख हर आदमी से खुल कर बात करने वाली। बहुत जल्द घुल्लू मिट्ठू हो जाती थी चुनांचे नज़ीर को उस की क़ुरबत हासिल करने में कोई दिक्कत महसूस न हुई। चंद ही दिनों में उस ने उस से राह-ओ-रस्म पैदा कर ली। ये राह-ओ-रस्म थोड़ी देर में मुहब्बत में तबदील हो गई पास ही चनाब जिसे इश्क़ का दरिया कहते हैं और जिस के पानी से फातो के बाप की पन-चक्की चलती थी इस दरिया के किनारे बैठ कर नज़ीर उस को अपना दिल निकाल कर दिखाता था जिस में सिवाए मुहब्बत के और कुछ भी नहीं था। फातो सुनती इस लिए कि वो इस के जज़्बात का मज़ाक़ उड़ाना चाहती थी असल में वो थी ही हन्सोड़। सारी ज़िंदगी वो कभी रोई न थी, उस के माँ बाप बड़े फ़ख़्र से कहा करते थे कि हमारी बच्ची बचपन में कभी नहीं रोई।
नज़ीर और फातो में मुहब्बत की पेंगें बढ़ती गईं। नज़ीर फातो को देखता तो उसे यूं महसूस होता कि उस ने अपनी रूह का अक्स आईने में देख लिया है और फातो तो उस की गरवीदा थी इस लिए कि वो उस की बड़ी ख़ातिरदारी करता था उस को ये चीज़ जिसे मुहब्बत कहते हैं पहले कभी नसीब नहीं हुई थी इस लिए वो ख़ुश थी।
बानिहाल में तो कोई अख़बार मिलता नहीं था इस लिए नज़ीर को बटोत जाना पड़ता था। वहां वो देर तक डाकख़ाना के अंदर बैठा रहता डाक आती तो अख़बार पढ़ के पन-चक्की पर चला आता। क़रीब क़रीब छः मील का फ़ासिला था मगर नज़ीर इस का कोई ख़याल न करता। ये समझता कि चलो वरज़िश ही हो गई है।
जब वो पन-चक्की के पास पहुंचता तो फातो किसी न किसी बहाने से बाहर निकल आती और दोनों चनाब के पास पहुंच जाते और पत्थरों पर बैठ जाते।
फातो उस से कहती “बख़ैर – आज की ख़बरें सुनाओ”
उस को ख़बरें सुनने का ख़बत था। नज़ीर अख़बार खोलता और उस को ख़बरें सुनाना शुरू कर देता। उन दिनों फ़िर्क़ा-वाराना फ़सादाद थे। अमृतसर से ये क़िस्सा शुरू हुआ था जहां सिखों ने मुस्लमानों के कई मुहल्ले जला कर राख कर दिए थे। वो ये सब ख़बरें उस को सुनाता वो सिखों को अपनी गंवार ज़बान में बुरा भला कहती। नज़ीर ख़ामोश रहता।
एक दिन अचानक ये ख़बर आई कि पाकिस्तान क़ायम हो गया है और हिंदूस्तान अलाहिदा हो गया है। नज़ीर को तमाम वाक़ियात का इल्म था मगर जब उस ने पढ़ा कि हिंदूस्तान ने रियासत मांगरोल और मानावा वार पर ज़बरदस्ती क़ब्ज़ा कर लिया है तो वो बहुत परेशान हुआ मगर उस ने अपनी इस परेशानी को फातो पर ज़ाहिर न होने दिया।
दोनों का इश्क़ अब बहुत उस्तिवार हो चुका था इस का इल्म फातो के बाप को भी हो गया था। वो ख़ुश था कि मेरी लड़की एक मुअज़्ज़ज़ और शरीफ़ घराने में जाएगी मगर वो चाहता था कि उस की बेटी स्यालकोट न जाये जहां का नज़ीर रहने वाला था। उस की ये ख़्वाहिश थी कि नज़ीर उस के पास रहे।
दौलत-मंद का बेटा है। पन-चक्की के पास काफ़ी ज़मीन पड़ी है इस पर एक छोटा सा मकान बनवा ले और दोनों मियां बीवी इस में रहें जब चाहा पलक झपकते श्रीनगर पहुंच गए वहां एक दो महीने रहे फिर वापिस आ गए कभी कभार स्यालकोट भी चले गए कि वो भी इतनी दूर नहीं।
फातो के बाप से मुफ़स्सल गुफ़्तुगू की वो उस से बहुत मुतअस्सिर हुआ और उस ने अपनी रजामंदी का इज़हार कर दिया। नज़ीर और फातो बहुत ख़ुश हुए उस रोज़ पहली मर्तबा नज़ीर ने उस के होंटों को चूमा और ख़ुद अपने हाथ से इस के कुरते में तीन बटन लगाए।
दूसरे दिन नज़ीर ने अपने वालिदैन को लिख दिया कि वो शादी कर रहा है। कश्मीर की एक देहाती लड़की है जिस से उस की मुहब्बत हो गई है एक माह तक ख़त-ओ-किताबत होती रही आदमी रोशन ख़याल थे इस लिए वो मान गए हालाँकि वो अपने बेटे की शादी अपने ख़ानदान में करना चाहते थे।
उस के वालिद ने जो आख़िरी ख़त लिखा उस में इस ख़्वाहिश का इज़हार किया गया था कि नज़ीर फ़ातिमा का फ़ोटो भेजे ताकि वो अपने रिश्तेदारों को दिखाएंगे इस लिए कि वो उस के हुस्न की बड़ी तारीफ़ें कर चुका था।
लेकिन बानिहाल जैसे दूर उफ़्तादा इलाक़े में वो फातो की तस्वीर कैसे हासिल करता उस के पास कोई कैमरा नहीं था न वहां कोई फ़ोटोग्राफ़र, बटोत और कुद में भी इन का नाम-ओ-निशान नहीं था।
इत्तिफ़ाक़ से एक दिन सिरीनगर से मोटर आई नज़ीर सड़क पर खड़ा था उस ने देखा कि इस का दोस्त रणबीर सिंह ड्राईव कर रहा है इस ने बुलंद आवाज़ में कहा : “रणबीर यार – ठहरो”
मोटर ठहर गई दोनों दोस्त एक दूसरे को गले मिले। नज़ीर ने देखा कि उस की मोटर में कैमरा पड़ा है रोली फैक्स। नज़ीर ने उस से कुछ देर बातें कीं फिर पूछा “तुम्हारे कैमरे में फ़िल्म है?”
रणबीर ने हंस कर कहा “ख़ाली कैमरा और ख़ाली बंदूक़ किस काम की होती है मेरे कैमरे में सोला एक्सपोज़ेर मौजूद हैं”
नज़ीर ने फ़ौरन फातो को ठहराया और अपने दोस्त रणबीर से कहा : “यार इस के तीन चार अच्छे पोज़ ले लो और तुम मेरा ख़याल है स्यालकोट जा रहे हो वहां से डेवेलोप और प्रिंट करा के मुझे दो दो कापियां बटोत के डाकखाने की मार्फ़त भिजवा देना”
रणबीर ने बड़े ग़ौर और दिलचस्पी से फातो को देखा उस की मोटर में डोगरा फ़ौज के तीन चार सिपाही थे थ्री नाट थ्री बंदूक़ें लिए। रणबीर जो मुक़ाम फ़ोटो लेने के लिए पसंद करता ये मुसल्लह फ़ौजी इस के पीछे पीछे होते। नज़ीर उस के हमराह होना चाहता तो ये डोगरे उसे रोक देते। कश्मीर में हुल्लड़ मच रहा था उस के मुतअल्लिक़ नज़ीर को अच्छी तरह मालूम था कि हिंदूस्तान उस पर क़ाबिज़ होना चाहता है मगर पाकिस्तानी उस की मुदाफ़अत कर रहे हैं। फ़ोटो लेकर जब नज़ीर का दोस्त रणबीर अपनी मोटर के पास आया तो उस ने नज़ीर की तरफ़ आँख उठा कर भी न देखा फातो डोगरे फ़ौजियों की गिरिफ़त में थी उन्हों ने ज़बरदस्ती मोटर में डाला वो चीख़ी चलाई। नज़ीर को अपनी मदद के लिए पुकारा। मगर वो आजिज़ था। डोगरे फ़ौजी संगीनें ताने खड़े थे।
जब मोटर स्टार्ट हुई तो नज़ीर ने अपने दोस्त रणबीर से बड़े आजिज़ाना लहजे में कहा :“यार रणबीर! ये क्या हो रहा है”
रणबीर सिंह ने जो कि मोटर चला रहा था नज़ीर के पास से गुज़रते हुए हाथ हिला कि सिर्फ़ इतना कहा :

“बाई बाई”
(११, मई ४५-ई.)

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