बहुरूपी भूत : असमिया लोक-कथा
Bahuroopi Bhoot : Lok-Katha (Assam)
पुराने जमाने में एक जंगली गाँव में दो मित्र रहा करते थे। मछली पकड़ने का दोनों को नशा सा था। सुबह से शाम तक दोनों | मछलियाँ पकड़कर लाते । स्वयं खाते और पास-पड़ोस को देकर प्रसन्न होते थे । उनके गाँव के पास एक जंगल था । उस जंगल के पास स्थित जलाशय में वे मछली पकड़ते थे। एक दिन एक दोस्त को सुबह उठने में बहुत देर हो गई, जिसके कारण बहुत विलंब हुआ। उस दिन उनको मछली कम मिलीं। दोनों को दुःख हुआ। उस दिन से दोनों ने संकल्प लिया, आगे कभी देर नहीं लगाएँगे। देर करनेवाले ने कहा, "दोस्त! जलाशय के उस तरफ जो घर है, उसमें कोई नहीं रहता है। मैं वहीं पर रहूँगा । तब जल्दी मछली पकड़ना शुरू कर पाऊँगा। तुम भी जल्दी आ जाना, तब हम अधिक मछली पकड़ सकेंगे।"
दूसरे मित्र ने कहा, "तुम उस घर में क्यों रहोगे ? तुमको मालूम नहीं है क्या, उस घर में एक बहुरूपी भूत रहता है, वह जब जो चाहे, उसके अनुसार रूप धारण कर सकता है और आदमी को मारता है। इसलिए भूतों के इस घर में तुमको अकेले मैं नहीं रहने दूँगा। इससे बेहतर यह होगा आज तुम हमारे घर में रह जाओ, तब कल दोनों को एक साथ आने में सुविधा हो जाएगी।" परंतु मित्र की बात उसने नहीं मानी और अपने निर्णय के अनुसार उस भूतबँगले में रहने का हठ किया। तब दूसरे मित्र ने घर जाने के लिए तैयार होते हुए कहा, “ठीक है, मैं कल जल्दी आ जाऊँगा।" दोनों में जब चर्चा हो रही थी, तब वह बहुरूपी भूत मक्खी का रूप धारण कर सबकुछ सुन रहा था और उनकी बातें सुनकर हँस रहा था।
दूसरे बंधु के घर जाने के बाद वह उस घर में सो गया। सुबह होने के बहुत पहले बहुरूपी भूत ने घर जानेवाले मित्र का रूप धारण कर भूत- बँगले में रहनेवाले मित्र को जगाया और कहा, "मित्र, उठो । मैं घर से आ गया। तुम अब तक सो ही रहे हो। चलो, मछली पकड़ने चलें।"
मित्र की आवाज सुनकर तह तुरंत उठा और जाल लेकर निकल गया। भूत के साथ जलाशय पर उपस्थित हो गया । वहाँ उसने कहा, "बंधु ! मैं पानी में उतरकर मछली पकड़कर देता रहूँगा और तुम सब खालै (बाँस से बने एक प्रकार का बड़ा घड़ा) में इकट्ठा करके रख देना।"
भूत ने कहा, “ठीक है, मैं ऐसा ही करूँगा। तुम जाओ, मछली पकड़ और मुझे देते रहो।" वह मछली पकड़कर देने लगा। जब वह मछली भूत की तरफ फेंक देता तो वह तुरंत उस मछली के सिर को रखकर बाकी अंश खा जाता और 'खालै' में रख देता। मछली पकड़नेवाले मित्र ने सोचा, मछली कितनी हुई, एक बार देख तो लूँ। उसने पानी से ऊपर आकर देखा कि खालै में मछलियों के शिरोभाग ही हैं। उसने तुरंत मित्ररूपी बहुरूपी भूत से पूछा, " मित्र ! क्या हुआ ? मैंने अनेक मछली पकड़कर दीं, परंतु मछलियों का शिरोभाग ही है। बाकी अंश का क्या हुआ ? क्या है इसका रहस्य ?" उसकी बात सुनकर भूत खें खें करके हँसने लगा और बोला, “इसका रहस्य है कि अब तुम मेरे साथ युद्ध करो और मुझे यदि पराजित कर सको तो मछली वापस मिल जाएँगी।" मित्र ने कहा, “मछली के लिए मैं तुम्हारे साथ संघर्ष नहीं करना चाहता हूँ।" परंतु भूत ने तुरंत उसपर हमला बोल दिया। दोनों में भीषण संघर्ष हुआ, कुछ समय संघर्ष के बाद बेचारा युवक थक गया और गिर पड़ा। भूत उसका सारा शरीर खाकर सिर वहीं छोड़कर जंगल की तरफ भाग गया।
कुछ क्षण बाद उसका मित्र गाँव से आकर उस भूतबँगले में मित्र को खोजने गया। वह वहाँ जब नहीं मिला, तब वह तुरंत तालाब की तरफ आगे बढ़ा। वहाँ जाकर वह मित्र का सिर देखकर चिल्ला-चिल्लाकर रोने लगा । उसने रो-रोकर कहा, “मित्र ! तुम कहाँ गए, तुम्हारी यह दशा कैसे हुई ?" वह रो-रोकर इधर-उधर घूम-फिरकर एक वृक्ष पर चढ़ गया और पक्षी बन गया। उसने कर्कश आवाज से चिल्ला-चिल्लाकर कहा, “मित्र ! तुम मेरे पास आ जाओ, मेरे पास आ जाओ। मैं तुम्हें लेने के लिए आया हूँ ।" उसकी आवाज से सारा जंगल मुखरित हो गया । अरण्य काँपने लगा।
उस दिन से मिचिंग समाज में विश्वास है कि वह पक्षी जब जोर- जोर से चिल्लाएगा, तब जरूर अमंगल होगा। वह चिड़िया जब चिल्लाएगी, तब आस-पास के गाँव के कई लोगों की मृत्यु होगी। इस प्रकार का विश्वास मिचिंग समाज में आज भी बरकरार है।
(साभार : देवेनचंद्र दास 'सुदामा')